Tuesday, March 1, 2022

नालन्दा बार-बार देखो (Nalanda)

नालन्दा बार-बार देखो (Nalanda)



बिहार का अभिमान देखो।
राजगीर की शान देखो।
विपुलगिरि पहाड़ देखो।
रत्नागिरि की आन देखो।
उदयगिरि की ठाट देखो।
स्वर्णगिरि का अट्टहास देखो।
वैभारगिरि का मान देखो।
सप्तपर्णी का आन देखो।
स्वर्ण भंडार गुफा देखो।
ब्रह्मकुंड का ताप देखो।
सप्तधारा का धार देखो।
वेणुवन की शीतलता देखो।
कलंदक निवाप देखो।

Wednesday, October 13, 2021

मेट्रो की सवारी (Metro ki Sawari)

मेट्रो की सवारी (Metro ki Sawari)




मेट्रो ट्रेन के डिब्बे में
मिल जाती है यूं ही
अजब गजब सी जिंदगी।
दरवाजे से सटे
कोने वाली सीट पर
नजरें गड़ाए हुए
मोबाइल पर
तन कर बैठी है तनु।
घुटने तक की पहनी जींस
वहीं बगल में खड़ी है मनु।
और वहीं बगल में खड़ा वनु
कर रहा है सीट के
खाली होने का इंतजार।

Tuesday, July 6, 2021

कहानी तस्वीरों की (Story of pictures)

कहानी तस्वीरों की (Story of pictures)



जैसे साहित्य समाज का दर्पण होता है वैसे ही मुझे लगता है कि फोटो भी यात्राओं का दर्पण होते हैं। और वे केवल फोटो केवल हमारी यात्राओं की यादें ही नहीं होती वरन वो हमारे लिए बहुत कुछ होते हैं, जैसे सखा, मित्र, भाई, सहेली, आदि।

वो हमारे साथ चलते हैं, हमारे साथ रहते हैं, हमसे बातें करते हैं और इतनी बातें करते हैं कि बातें कभी खत्म ही नहीं हो पाती है। फोटुओं से बातें करते हुए हम फिर से उसी सफर में पहुंच जाते हैं जहां से हम उन फोटुओं को पकड़ पकड़ के लाते हैं।

Monday, July 5, 2021

एक यात्रा की कुछ यादें (Some memories of a journey)

एक यात्रा की कुछ यादें (Some memories of a journey)




शाम का समय था और दिन भर के थके-हारे सूरज बाबा अपने घर में आराम करने के लिए जा रहे थे और ईधर लौह पथ गामिनी भी दो इंच चौड़े लौह पथ पर बिना धूल उड़ाए हरर-हरर घरर-घरर की आवाज किए हुए चली जा रही थी। ट्रेन के बाहर सूरज देव की सुनहरी आभा छलक रही थी तो अंदर सफेद रोशनी बिखर रही था। कितना अच्छा संयोग था बाहर आभा मैडम और अंदर रौशनी मैडम माहौल को खुशनुमा बनाए हुए थे। शम्भू दयाल जी इस ट्रेन से वहां तक जा रहे थे जहां तक ट्रेन जा रही थी और संयोग से उनके आॅफिस के ही एक सहकर्मी भी इसी ट्रेन से जा रहे थे और संयोग ऐसा कि वो भी उसी कोच में थे। बड़ी मुश्किल से शम्भू दयाल और उनके साथी ने मिलकर सीटों की अदला-बदली किया और एक जगह विराजमान हुए। ट्रेन के बाहर विराजित आभा मैडम भी अपने घर चली गईं और ट्रेन के अंदर विराजित रौशनी मैडम जी भी अपने घर जाने लगे थे और शम्भू दयाल जी नींद की शरण में जाने की तैयारी करने लगे थे।

Sunday, July 4, 2021

मैं और मेरी कहानी (Main aur Meri Kahani)

मैं और मेरी कहानी (Main aur Meri Kahani)



मैंने अपने जीवन के पहले कुछ साल और शायद उसके बाद के कुछ साल और फिर उसके बाद के कुछ और साल एक गूंगे-बहरे आदमी की तरह बिताया। बचपन से ही पुराने ढंग के पोशाक पहनना पसंद है जैसे कोई पाषाण काल का आदमी हूं और जैसा कि मैं सोचता हूं मैं उसमें बुरा नहीं लगता हूं। .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... .... मैं किसी गुप्त आग में जलना, किसी अन-अनुमेय कुएं की गहराई में डूबना तो चाहता था लेकिन उस आग में अपने को फेंकने या कुएं में कूदने का साहस मुझमें नहीं था और न ही कोई ऐसा नहीं मिला जो मुझे उस आग में धकेल दे इसलिए मैं बिना उस ओर ताके किनारे पर ही चलता।

Wednesday, June 30, 2021

हमारा संसार : जय-जय बिहार (Hamara Sansar: Jay Jay Bihar)

हमारा संसार : जय-जय बिहार (Hamara Sansar: Jay Jay Bihar)



(22 मार्च 2019
): मेरे प्यारे बिहार आज तुमने अपने जीवन का 107 साल पूरा कर लिया और 108वें वर्ष में प्रवेश करने की बहुत सारी बधाइयां शुभकामनाएं तुमको।

तुमने 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर अपना एक अलग घर बसाया और समय के थपेड़ों को सहते हुए एक-एक वर्ष करते करते आज तुमने अपने जीवन का 107 वर्ष पूरा कर लिया। इन 107 वर्षों में तुमने क्या-क्या नहीं देखा। एक इंसान की तरह तुम्हें हर समय प्रताडि़त किया गया, तुम्हारी मेहनतकशी को लानते-तोहमतें दी गई, हर पल तुमको धराशायी करने का प्रयास चलता रहा फिर भी तुम उसी शान से खड़े रहे जिस शान से तुम सदियों और सहस्रों साल पहले खड़े थे।

Tuesday, June 29, 2021

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा (Chau Chau Kang Nilda Mountain)

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा
(Chau Chau Kang Nilda Mountain)





अनिल दीक्षित जी ने एक पर्वत की चोटी के बारे में कुछ पूछा तो हम उस पर्वत के बारे में इंटरनेट पर खोजने लगे जो उस पहाड़ से संबंधित वहां की एक लोककथा हमें मिली, जो कि अंग्रेजी में था जो हमें बहुत अच्छा लगा तो हमने उसे हिन्दी में अनुवाद किया और अनिल दीक्षित जी के उसी फोटो के साथ हम उसे यहां पोस्ट कर रहे हैं।

चाउ चाउ कांग कांग निलदा स्पीति में एक प्रसिद्ध पर्वत है। चै चै का अर्थ है छोटी लड़की, परी या राजकुमारी। कांग का मतलब बर्फ से ढका पहाड़ होता है। नी यानी नीमा जिसका अर्थ सूर्य है। दा यानी दाव का अर्थ चंद्रमा है। यानी कि यह एक परी पर्वत है जिस पर जिस पर सूर्य और चंद्रमा चमकते हैं। चाउ चाउ लंगजा मठ से बहुत सुंदर दिखाई देता है।

Monday, June 28, 2021

अथ श्री कचौड़ी-जलेबी कथा (Kachaudi Jalebi Katha)

अथ श्री कचौड़ी-जलेबी कथा (Kachaudi Jalebi Katha)



बात पिछले साल की है। जेठ के तपते झुलसते महीने में एक दिन शाम के समय हम घर से निकलकर खेतों की तरफ जाकर एक छोटे से पुलिया पर बैठे हुए थे। गोधूलि बेला के इस समय में खेत में चरने गई गाय-भैंसे हरी और सूखी घास चरकर वापस अपने घर को आ रहे थे और उनके पीछे उनका मालिक भी कंधे पर लाठी और गमछा लिए हुए हो-हो, है-है, हे-हे करते हुए आ चले आ रहे थे और मैं ध्यानमग्न होकर उन दृश्यों को निहारे जा रहा था। उधर सूर्य देव भी दिन पर अपनी चमक बिखेरने के बाद अपनी बची हुई लालिमा को लेकर वापस अपने घर को जा रहे थे और उनकी इस लालिमा से चारों दिशाएं केसरिया रंग में रंग चुकी थी और हम इसी केसरिया रंगों में डूबे हुए कई साल पीछे के दृश्यों में तैर रहे थे।

Sunday, June 27, 2021

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

पहली नजर : अभ्यानन्द सिन्हा


एक मधुर मिलन की सुनहरी यादें 
14 फरवरी 2020, दोपहर 2.30 बजे

स्थान बिहार शरीफ का रामचन्द्रपुर बस स्टैंड पर : पटना, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा, नवादा, गया, राजगीर, हिलसा, रांची, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़, गढ़वा, टाटा, चाईबासा, कलकत्ता, पूर्णिया, सहरसा, भागलपुर, मुंगेर, जमुई, पकरीबरावां, जहानाबाद, आदि जगहों की कर्णभेदी आवाजों से पूरा वातावरण गुंजायमान था और एक मुसाफिर पटना की बस पर बैठने को आतुर था, और दो-तीन बस छोड़ने के बाद उसे अपनी मनपसंद की सीट मिल गई और वो उस सीट पर अपने कब्जे में लेकर बैठ गया। बस चली और ठुमकते हुए बाईपास पर पहुंचने के बाद दाएं तरफ मुड़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 20 पर पहाड़ के किनारे किनारे तांडव करते हुए आगे बढ़ने लगी। बस चली जा रही थी और मुसाफिर अपनी धुन में बाहर के हरे भरे दृश्यों का आनंद लेते हुए न जाने कौन सी दुनिया में मगन था तभी फोन में कंपन होती है और एक मैसेज दिखता है :

Saturday, June 26, 2021

उस रात के अंधेरे में.... (In the darkness of that night...)

उस रात के अंधेरे में.... (In the darkness of that night...)



ये बात 20 साल पूर्व उस समय की है जब हम नवादा के कन्हाई लाल साहू महाविद्यालय में प्रवेशिका (इंटरमीडिएट) में पढ़ते थे। मार्च के महीने हमारी की परीक्षा चल रही थी। इन परीक्षाओं के बीच में ही हमें रविवार के दिन दानापुर छावनी में सेना भर्ती के लिए कुछ जरूरी प्रकियाओं के लिए दानापुर भी जाना था। शनिवार को दोपहर 1.30 बजे परीक्षा खत्म होने के बाद हम अपने कमरे पर गए और वहां से बैग उठाकर बस स्टेशन आ गए। वैसे तो नवादा से पटना के लिए हर दस मिनट में बसें मिल जाती थी लेकिन उस समय चारा वाले मुख्यमंत्री जी की कोई रैली निकलने वाली थी इसलिए बसों की संख्या कम हो गई थी, फिर भी हमें बस जल्दी ही मिल गई और रात होते होते हम पटना पहुंच गए और समयानुसार कहें तो 8 से ज्यादा बच चुके थे।

Friday, June 25, 2021

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)



भारत गांवों और तीर्थों का देश है और हम इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि भारत का शरीर गांवों में और हृदय तीर्थों में बसता है। भारतीय जनजीवन में संचित चिरकालीन श्रद्धा एवं भावना का यथार्थ दर्शन इन तीर्थों में ही होता है। हमारे देश में यह जो एक अद्भुत सामासिक एकता दिखाई देती है, उसका रहस्य भी हमारे हृदयस्वरूप इन्हीं तीर्थों की पवित्रतम एवं मनोरम तपोभूमि में निहित है। क्योंकि वहां देश के कोने-कोने से लाखों नर-नारी एक ही कामना, एक ही आकर्षण के वशीभूत होकर पुरातन काल से एकत्रित होते आ रहे हैं। वे कहीं भी रहते हों, कुछ भी करते हों, उनका अन्तर्मन अधिक नहीं तो जीवन में कम-से-कम एक बार इन तीर्थों की पवित्र रज मस्तक पर धारण करने को आतुर रहता है। यही कारण है कि जब यात्रा की आधुनिक सुविधाएं प्राप्त नहीं थी, तब भी तीर्थयात्रियों का तारतम्य कभी टूटा नहीं और सहस्रों मील पैदल चलकर तीर्थों के दर्शन करने लागे सहर्ष आते-जाते रहे। इस प्रकार उपलब्ध इतिहास की दृष्टि से भी परे, काल की अनन्त श्रृंखला को लांघकर अनेकानेक छोटे-बड़े उथल-पुथल के अभ्यन्तर, वैयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक अथवा अन्य किसी भी विवशता के बन्धन से मुक्त, देश की आन्तरिक समता को अक्षुण्ण बनाए रखकर उसे अमर जीवन प्रदान करने का जो श्रेय प्रकृति के सुरम्य वातावरण में बसे हमारे तीर्थों को प्राप्त है। उसकी मिसाल संसार में अन्यत्र दुर्लभ है।

Thursday, June 24, 2021

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)



अगर कोई हमें ये पूछे कि आपको क्या अच्छा लगता है और आपके पास कुछ भी करने के लिए नहीं हो तो क्या करेंगे तो मेरा जवाब कुछ ऐसा होगा!

हम वो पथिक हैं जो सदा ही एक सफर में रहना चाहते हैं और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलते ही रहना चाहते हैं। हमें मंजिल नहीं चाहिए, हमें तो बस रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते ही मेरे लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव।

हम चलते रहना चाहते हैं और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहते हैं। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें हमें पागल, बावला और दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में हम बस चलते रहते हैं, उससे मिलने के लिए। हम बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहते हैं और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेने चाहते हैं।

Wednesday, June 23, 2021

शब्द (Word)

शब्द (Word)


शब्द ... आप जो चाहें सो कह सकते हैं, जी हां, लेकिन ये शब्द ही हैं जो गाते हैं, वे ऊपर उठते हैं और नीचे उतरते हैं... मैं उनके सामने नत मस्तक होता हूं... मैं उन्हें प्यार करता हूं, उन्हें पकड़ता हूं, उनकी अवमानना करता हूं, उन्हें काटता हूं, उन्हें पिघलाता हूं... मैं शब्दों से इतना प्यार करता हूं... अनपेक्षित शब्द... कुछ शब्द...

Friday, June 11, 2021

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण') (The Helmet story)

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण'
(The Helmet 
story)



जी हां, मैं वही हूं, जिसे हर बाइक खरीदने वाला बड़े अरमान के साथ अपने घर ले जाता है और कहीं खूंटी पर टांग देता है या किसी मेज के नीचे रख देता है। अरे जब मुझे प्रयोग ही नहीं करना था तो अपने घर में मुझे क्या घर की शोभा बढ़ाने के लिए लाए हो। मुझे अगर तुम केवल अपने घर की शोभा ही बढ़ाने के लिए लाए थे तो उससे अच्छा मुझे दुकान में ही पड़े रहने देता, कम से कम मैं वहां अपने अन्य साथियों के साथ तो रहता था। मुझे अपने दोस्तों से अलग करके अपने घर लाते समय तो तुम कह रहे थे कि मैं कहीं भी जाऊंगा तो तुमको अपने साथ ही लेकर जाऊंगा और मैंने भी वादा किया था तुमसे कि जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूंगा तुमको कुछ नहीं होने दूंगा, पर तुम तो घर लाकर मुझे भूल ही गए।

Wednesday, June 24, 2020

ताड़ : प्रकृति का अनुपम उपहार (Palm: The Unique Gift of Nature)

ताड़ : प्रकृति का अनुपम उपहार
(
Palm: The Unique Gift of Nature)




बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे ताड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।

पता नहीं किसने ये कहावत शुरू किया होगा। ताड़ का पेड़ सीधे भले ही मुसाफिरों को छाया नहीं देता पर उस एक पेड़ के इतने गुण हैं कि यही कह सकते हैं कि

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं ताड़ गुण लिखा न जाइ।

ताड़ का पेड़ प्रकृति प्रदत्त एक अनुपम उपहार है जिसका जीवन तो बस परोपकार के लिए ही है, वो अपना हर चीज (जड़, तना, पत्ता, फल, बीज, आदि सभी चीज) लोगों की सेवा में समर्पित कर देता है। 

Wednesday, June 10, 2020

कटा पहाड़ और वटवृक्ष (Chopped Mountain and Banyan Tree)

कटा पहाड़ और वटवृक्ष (Chopped Mountain and Banyan Tree)


एक फकीरे को बहुत समय से एक बेशकीमती हीरे की तलाश थी और वो आज उसी हीरे की तलाश में सुनसान और निर्जन राहों पर निकल पड़ा था। वो उन सुनसान राहों पर चला ही जा रहा था कि बीच में एक नदी के प्रवाह ने उसको रोक लिया। अनजान रास्ते में मिलने वाली नदी को यूं ही अनजाने में पार करने से पहले फकीरे ने कुछ देर इंतजार किया कि क्या पता कोई मुसाफिर ईधर से गुजरे जिसे नदी में पानी का अंदाजा हो और वो भी उसके साथ नदी पार कर जाए। उसकी ये सोच भी बहुत जल्द फलीभूत हुई। वो नदी किनारे बैठा किसी मुसाफिर का इंतजार कर ही रहा था कि कई राहगीरों का एक समूह भी नदी तट पर आया जो नदी के दूसरी तरफ अपने काम पर जा रहा था। फकीरा भी उन लोगों के साथ नदी पार करने लगा और उन राहगीरों से बेशकीमती हीरे की जगह के बारे में पूछताछ करने लगा। पूछने पर उन राहगीरों ने केवल इतना ही बताया कि नदी पार करने के बाद आप उन कच्चे रास्ते पर चलेंगे तो दूर, थोड़ा दूर, थोड़ा और दूर निर्जन राह पर एक वटवृक्ष आएगा और उसके सामने ही पश्चिम की तरफ कटा पहाड़ है और कटा पहाड़ पार करते ही आपको वो हीरा मिल जाएगा।

Monday, April 27, 2020

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)




रात के आठ बज चुके थे और शम्भू दयाल अपनी पत्नी गौरी दयाल, मित्र विक्की दयाल और उनकी पत्नी विनिता दयाल के साथ रेलवे स्टेशन पहुंचकर ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। अभी गाड़ी आने में करीब डेढ़ घंटे का ज्यादा का समय बाकी था। इस डेढ़ घंटे के समय को शम्भू दयाल जी ने यहां तक आने के बस के सफर की दास्तान छेड़ दी जो कुछ खुशी और कुछ गम लिए हुई थी। हुआ ये था कि शम्भू बाबू घर से इतना समय लेकर चले थे कि शाम से पहले ही उनको स्टेशन पहुंच जाना चाहिए था पर कुछ बस वालों की चालाकी और कुछ यातायात की दुश्वारियों के कारण वो अपने द्वारा तय किए गए समय से करीब 3 घंटे की देर से यहां तक पहुंचे थे।

Saturday, April 4, 2020

एक छोटी सी ट्रेन यात्रा (A Short Train Journey)

एक छोटी सी ट्रेन यात्रा (A Short Train Journey)







(यात्रा तिथि : 2 दिसम्बर 2019) : राजगीर (राजगह, राजगृह) के कुछ जगहों को घूमते-देखते लगभग 11 बजे चुके थे और अब हमें यहां से अपने गांव की तरफ प्रस्थान करना था तथा उसके लिए पहले हमें बिहार शरीफ पहुंचना था। राजगीर से बिहार शरीफ जाने के लिए हर 5 से 7 मिनट पर बसें मिल जाती है और छोटी गाडि़यां भी, साथ ही करीब एक दर्जन ट्रेन उपलब्ध है। इतने सारे साधन होने के बावजूद भी हम ये सोचने लगे कि हम किस साधन से बिहार शरीफ तक जाएं, बस से या ट्रेन से। और यही सोचते हुए कुछ मिनट ऐसे ही बीत गए और सोचने के पीछे भी एक कारण था। वो ये कि अगर हम बस से जाते हैं तो बस जी हमें जिस बस पड़ाव पर उतारेंगे वहां से दूसरे बस पड़ाव तक जाने के लिए ऑटो से दूसरी तरफ जाना पड़ेगा क्योंकि बस हमें शहर के पश्चिम तरफ के बस पड़ाव पर छोड़ेगी और मेरे गांव की गाड़ी शहर के पूरब से मिलती है। यही यदि हम ट्रेन से जाते हैं तो ट्रेन महाराज हमें शहर के पूरब की तरफ छोड़ेंगे जहां से मैं पांच मिनट पैदल चलकर पांच मिनट में उस बस पड़ाव पर पहुंच जाऊंगा और कुछ धन भी बचा लूंगा क्योंकि यदि बस से जाता तो मेरा खर्चा 30 और 12 मतलब कि कुल 42 रुपए खर्च होते और ट्रेन महाराज हमें केवल और केवल और केवल 10 रुपए में ही वहां पहुंचा देंगे और शहर की भीड़ भाड़ से भी बचा लेंगे।

Thursday, April 2, 2020

लवनी और फेदा (Lavni and Feda)

लवनी और फेदा (Lavni and Feda)




गांव से जब हम पहली बार दिल्ली आए थे हमें बहुत ही अजीब सा महसूस हुआ था। वो अजीबपन कुछ इस तरह का था; जैसे, सिर्फ काली सड़कें, कंक्रीट से बने पक्के मकान हैं, पेड़ों के नाम पर इक्का-दुक्का पेड़, जिनके नाम जानने के लिए भी मुझ अनाड़ी को किसी वनस्पति विज्ञान के प्रोफेसर और वैज्ञानिक की जरूरत पड़ जाए। हमारे यहां तो गांव में के पेड़ों के नाम आम, अमरूद, ताड़, खजूर, शीशम, पाकड़, गूलर, महुआ, लसोड़ा, सिरिस, कटकरेजी, पुटुस आदि होते थे और गांव तो गांव पास के शहरों में भी ये सब पेड़ मिल जाते हैं; पर दिल्ली आकर उन पेड़ों को के बारे में जानना ख्वाब बन गया और देखना तो सपना।

Sunday, February 2, 2020

बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)

बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)



शिव के प्रति आस्था तो मेरे मन में बचपन से ही थी। सावन आने के कुछ दिन पहले से ही गांव शिवमय हो जाता था। जहां सभी महिलाएं गांव के शिवालय में हर दिन महादेव पर जल चढ़ाने जाती थीं वहीं गांव के बहुत सारे पुरुष कांवड़ लेकर बाबा के नगरिया बाबाधाम जाते थे और उन जाने वाले लोगों में मेरे पिताजी भी हुआ करते थे। सभी के देवघर से लौटने तक प्रसाद का इंतजार करते थे। जाने के करीब सप्ताह भर बाद सब लौट कर आते तो मकोनदाना, चूड़ा, बेलचूर्ण और पेड़ा दम भर खाते थे। वैसे चूड़ा शब्द आया तो एक बात है कि देवघर जैसा स्वादिष्ट चूड़ा और और पेड़ा दुनिया में कहीं नहीं मिलता होगा।

बचपन का बागी घुमक्कड़-1 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-1)

बचपन का बागी घुमक्कड़-1 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-1)




वो बचपन के दिन भी कितने कितने प्यारे थे। जब स्कूल में गर्मी की की छुट्टियां होती थी तो सभी भाई कोई नाना के घर, कोई मौसी के यहां तो कोई बुआ के यहां चले जाते थे और हम अकेले ही बिना टिकट के बिहार शरीफ से पटना अपने बड़का बाबू (बड़े पापा) के यहां चले जाते थे। वहां जाते ही सबसे पहले कहते थे कि बस से आया या रेल से तो मैं कहता था कि रेल से आया, फिर एक ही जवाब मिलता था उनकी तरफ से कि इस बार भी तू पक्का बिना टिकट के आया होगा। कितनी बार कहा हूं कि टिकट ले लिया कर पर मानता नहीं है, किसी दिन पकड़ लेगा टीटी तो हम लोग खोजते हुए परेशान होंगे। मैं कहता था कि बाऊजी कुछ नहीं होगा, टीटी पकड़ेगा तो भाग जाएंगे न और कहां ले जाएगा पकड़कर मुझे।

Sunday, December 15, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-4, घोड़ा कटोरा से वापसी (Ghoda Katora Taal-4: Retrun from Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-4, घोड़ा कटोरा से वापसी (Ghoda Katora Taal-4: Retrun from Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : सुबह घर से चलकर यहां आते आते दोपहर हो चुकी थी और कुछ मिनट यहां गुजारने के बाद अब समय था यहां से वापसी का तो कुछ मीठी और सुनहरी यादें लेकर हम चल पड़े थे वापसी के उसी पथ पर जिससे होकर हम यहां तक आए थे। आते समय तो हम उन दोनों लड़कों के साथ आए थे पर वापसी मुझे अकेले ही जाना था क्योंकि वो दोनों लड़के बहुत पहले ही यहां से जा चुके थे। अगर वो रहते तो हमारा एक-दो अच्छा फोटो खींच देते पर अब सोचने का क्या फायदा वो तो जा चुके थे तो हमने खुद कभी अपने मोबाइल से तो कभी कैमरे से सेल्फी लेने की नाकाम सी कोशिश करते रहे और उन कोशिशों में ही एक अच्छी सी फोटो आ गई और अच्छी भी ऐसी कि जिसकी हमने उम्मीद भी नहीं की थी। फोटो-वोटो लेने के बाद हम चल पड़े उसी रास्ते पर जिस रास्ते से आए थे और ठीक 12.00 बजे हम फिर से पहाड़ के उसी कटे हुए भाग तक पहुंच चुके थे। वहां पहुंचकर झील से एक वादा किया कि एक बार और पुनः जल्दी ही आऊंगा और फिर उन कच्चे रास्तों पर धूल का गुब्बार उड़ाते हुए सुस्त कदमों से धीरे धीरे चल पड़े। आधे घंटे के सफर के बाद एक बार पुनः हम नदी के उस स्थान पर आ चुके थे जहां हम सुबह पानी से होकर गुजरे थे। वहां पहुंचकर हमने अपने कदमों को रोककर पहाड़ पर खड़े अजातशत्रु स्तूप को एक नजर देखा था, और मन में सोचा था कि यहां भी हो लेते हैं पर समय और शरीर दोनों हमें इस काम की इजाजत नहीं दे रहे थे तो हमने जल्दी ही दुबारा आने का वादा किया और फिर फिर नदी को पार करके गिरियक बाजार की तरफ बढ़ चले।

Saturday, December 14, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-3: घोड़ा कटोरा और मैं (Ghoda Katora Taal-3, Ghoda Katora Taal aur Main)

घोड़ा कटोरा ताल-3: घोड़ा कटोरा और मैं (Ghoda Katora Taal-3: Ghoda Katora Taal aur Main)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : मेरे प्यारे घोड़ा कटोरा, जब हमने तेरे बारे में सुना था तो लगा था कि तुम गांव की तलैया जैसे होगे, फिर किसी ने बताया था कि नहीं वो तलैया के जैसा न होकर अपने गांव की नदिया के जैसा है। फिर गया था तुमको देखने पर न जाने क्यों नहीं पहुंच पाया था तेरे पास, या तो तुम मुझसे रूठे थे और मुझसे मिलना नहीं चाहते थे या फिर मेरे मन में ही तुमसे मिलन की लालसा नहीं थी। अपने घर की छत के कोने से तेरे चारों तरफ फैले पहाड़ों को देख कर सोचा करता था कि पता नहीं कैसे तुम अकेले इन पहाड़ों के बीच में रहते होगे, पर मुझे क्या पता था कि ये पहाड़ ही हैं जो तुम्हारी रक्षा के लिए चारों तरफ तुमको घेरे खड़े हैं और तुम उनके बीच बिल्कुल सुरक्षित हो। फिर न जाने कितनी बार, अनगिनत बार, तेरे किनारे से गुजर गया, पर न तो तुमने मुझे बुलाया न ही मैं तुम्हारे पास गया, न तो तुमने मेरी तरफ नजर किया और न ही मैंने तुमसे नजर मिलाया और बस तेरे किनारे से आते और जाते रहे; और गुजरते समयांतराल के बाद मैं भी तुमको भूल गया और तुमने भी मुझे भुला दिया।

Friday, December 13, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : हम अपने गांव से चलकर गिरियक पहुंचे और वहां एक दुकान वाले से घोड़ा कटोरा तक जाने का रास्ता पूछा तो उन्होंने दो रास्ते बताए, एक तो सीधा नदी पार करके और दूसरा अगर नदी पार करना नहीं चाहते हैं तो 3 किलोमीटर घूम कर जाने वाला रास्ता जहां नदी पर पुल बना है, पर पुल वाला रास्ता भी आगे बढ़कर यहीं नदी के रास्ते में ही मिलता है। अब केवल पानी में पार होने से बचने के लिए 3 किलोमीटर का लंबा रास्ता कौन तय करे और वैसे भी नदी के पानी में पार हुए बहुत दिन हो गए हैं क्योंकि अब अधिकतर जगहों पर पुलों का निर्माण हो गया है तो नदी से गुजरने का मौका भी नहीं मिलता है और आज ये मौका मिल रहा था तो हम इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे और चल पड़े थे पानी वाले नदी को नदी पार करने। उन्होंने हमें जो रास्ता बताया था हम उसी ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगे। गली से चलते हुए नदी तक पहुंचने में हमें करीब 20 मिनट का समय लगा। वहां देखा तो कुछ लोग नदी पार कर रहे हैं तो हम भी उनके पीछे हो लिए। नदी पार करते ही एक सज्जन ने बताया कि आगे अभी और एक जगह पार करना पड़ेगा और सवाल भी शुरू किया कि 

Thursday, December 12, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-1: घोड़ा कटोरा ताल की ओर (Ghoda Katora Taal-1: Towards Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-1: घोड़ा कटोरा ताल की ओर (Ghoda Katora Taal-1: Towards Ghoda Katora Taal)



घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : आइए हम आपको इस बार एक प्राकृतिक झील की सैर पर ले चलते हैं, जो 2500 साल से भी ज्यादा पुरानी है और यह स्थान बिहार के नालंदा जिले में राजगीर और गिरियक के मध्य पहाडि़यों के बीच स्थित है और इसका नाम है घोड़ा कटोरा ताल। यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता राजगीर विश्व शांति स्तूप तक जाने वाले रोपवे के पास से है और दूसरा रास्ता गिरियक से है। गिरियक पटना-रांची राजमार्ग पर बिहार शरीफ से रांची की ओर जाने पर बिहार शरीफ से 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है जो जानवरों के हाट के लिए प्रसिद्ध है। राजगीर वाले रास्ते से इस झील की दूरी 6 किलोमीटर है, वैसे कहते हैं कि 6 किलोमीटर है लेकिन है 7 किलोमीटर और साधन के रूप में या तो आपको पैदल जाना पड़ेगा या टमटम (घोड़ा गाड़ी) से। पक्षी अभयारण्य क्षेत्र होने के कारण यहां मोटर गाड़ी पूरी तरह से प्रतिबंधित है। गिरियक वाले रास्ते से भी दूरी करीब 5-6 किलोमीटर है और जाने का साधन कच्ची सड़कों पर मलंग फकीर बनकर धूल उड़ाते हुए चलना। वैसे पारंपरिक रास्ता राजगीर से ही है, गिरियक वाला रास्ता तो हम जैसे भटकटैया लोगों के लिए है कि वीराने में भटकते हुए चलते चले जाएं।

Saturday, November 30, 2019

बेचैन रातें (Anxious Nights)

बेचैन रातें (Anxious Nights)




दीपक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में व्यस्त था तभी पूरे दिन खामोश पड़ा रहने वाला चलभाष अचानक ही घनघना उठता है। ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....!!!!!
दीपक अनजान नम्बर देखकर बड़े ही अनमने ढंग से फोन रिसीव करता है, पर उधर से जानी-पहचानी आवाज से सामना होता है। आपस में कुशलक्षेम की पूछने का दौर चलता है।
‘‘हेलो अमित, कैसे हो?’’
‘‘मैं ठीक हूं दीपक। आप बताइए आप कैसे हैं?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं। पर आज अचानक इस समय कैसे? सब कुछ कुशल मंगल तो है न?’’
‘‘हां, सब कुछ ठीक है। वो क्या है कि आरती को रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल लेकर आया था, पर डाॅक्टर ने उसे एडमिट कर लिया।’’

Friday, November 29, 2019

उस रात की यादें (Memories of that night)

उस रात की यादें (Memories of that night)





वैसे तो रात को अंधेरे के लिए जाना जाता है लेकिन कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसा घटित होता है जिसके कारण रात अंधेरी न होकर सुनहरी हो जाती है। यह घटना तब की है जब हमारी आयु केवल 15 वर्ष थी। मैट्रिक की परीक्षा का अंतिम दिन था। सभी विषयों की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और अंतिम दिन केवल एक विषय बचा हुआ था। हर साल की तरह इस साल भी हमारे स्कूल का परीक्षा केन्द्र करीब 40 किलोमीटर दूर था। परीक्षा के अंतिम दिन सुबह पिताजी सारा सामान लेकर गांव की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और हम स्कूल की तरफ। एक बजे परीक्षा समाप्त हुई और अंतिम बार स्कूल के साथियों से मुलाकात करते करते और बातें करते करते कब दो घंटे बीत गए पता नहीं चला।

Thursday, November 28, 2019

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)



मैं मगध हूँ..!
मैं मगध हूँ... एक सभ्यता हूँ... एक संस्कृति हूँ...

गंगा के विस्तृत जलोड़ और कछार की मेरी यह भूमि समृद्ध रही है अपने मतवाले गजों और घनघोर साल के जंगलों से...! शिलागृहों और गर्तवासी आदिमानवों की शिकार-क्रीड़ांगन रही यह भूमि, संस्कृति सूर्य के चमकने पर जन से जनपद, जनपद से महाजनपद, महाजनपद से राज्य और राज्य से अखिल जम्बूद्वीप का केंद्र और निर्माणकर्ता रही है और इसने ही प्रथम साम्राज्य बने उस आर्यावर्त को भी बनाया।

Wednesday, November 27, 2019

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)




दद्दा चंद्रेश कुमार (Chandresh Kumar) जी आपने मुझे सिक्किम का सपना दिखाकर यूं ही पागल बना दिया। और तब से हमें घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने आने लगे हैं। उन सपनों में से एक सपना यह भी है। एक दिन सुबह सुबह हम आॅफिस के लिए निकले और डीटीसी की प्रशीतक यंत्र वाली लाल बस पर बैठते ही हमने एक हसीन सपना देखा। हमने देखा कि मेरा मन कहीं घूमने का हो रहा है और हम बहुत जल्द कहीं घूमने निकल जाएं। बहुत दिमाग लगाने के बाद हमने रेल का टिकट कटाया और और हवाई अड्डे पहुंचकर बोर्डिंग पास लेकर ट्रैक्टर में सवार होकर बालू की लहरों पर अपने साइकिल के पतवार को चलाते हुए समुद्री रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी ऐसा लगा कि जैसे हमारे बाइक का पहिया पंक्चर हो गया और एक परचून की दुकान पर जाकर एलपीजी डलवाया और पहुंच गए गुजरात की बर्फीली वादियों में और वहां से देखा तो महाराष्ट्र के एक कोने में बैठा चौखम्भा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा। हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि एवरेस्ट रास्ते में बैठा मेरा इंतजार कर रहा है फिर हम उससे कुछ बातें करने के बाद चल पड़े केरल की तरफ और वहां देखा कि कंचनजंघा चोटी पर बादलों ने बसेरा बसा लिया है और वहां मेरा मन वहां नहीं लगा तो हम वहीं से सीधा अपनी बैलगाड़ी के काॅकपिट में गए और बैलगाड़ी को पहाड़ी रास्ते के ढलान पर लुढ़काते हुए सीधा दिल्ली पहुंच गए।

Tuesday, November 26, 2019

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)




सफर के रोमांच का मजा लेना चाहते हैं तो रात के सन्नाटे में तेज हवा के झोंकों के बीच बिल्कुल अकेले ऋषिकेश में रामझूला अवश्य पार करें और उस पल के अद्भुत रोमांच को महसूस करें। ऋषिकेश स्थित राम झूला और लक्ष्मण झूला का आज तक हमने केवल नाम ही सुना था पर कभी देखा नहीं था। पर अचानक हुई यात्रा में हमें इसे देखने का मौका मिल गया। 30 मार्च 2019 रात को तीन बजे ऋषिकेश पहुंचे और पैदल ही चल पड़े राम झूला की तरफ। रात के सन्नाटे को चीरते हम केवल तीन लोग (मैं, पत्नी कंचन और बेटा आदित्या) तीर्थनगरी की सड़कों पर बढ़े जा रहे थे। बस स्टेशन से चन्द्रभागा पुल तक एक भी इंसान दिखाई नहीं दे रहा था, बस एक-दो बसें ही थी जो आ-जा रही थी और हम सब डरे-सहमे ऐसे ही आगे बढ़ते जा रहे थे। कभी कभी एक-दो कुक्कुर महाराज जी भौंकते हुए बगल से गुजर जाते तो कभी खड़े होकर अपने संगीत सुनाकर डराने का असफल प्रयास करते, लेकिन हम तो बस अपने धुन में चले ही जा रहे थे।

Monday, November 25, 2019

बदरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 minutes aur Ganga Snan)

दरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 Minutes aur Ganga Snan)





बदरीनाथ यात्रा के दूसरे भाग में आइए हम आपको हरिद्वार से आगे के सफर पर ले चलते हैं। आगे चलने से पहले हम आपको थोड़ा बीते हुए लम्हों में एक बार फिर से ले जाना चाहते हैं। अभी तक आपने देखा कि कैसे हम हरिद्वार पहुंचे और कैसे केदारनाथ की बस मिली लेकिन पीछे की सीट मिलने के कारण हमने उस बस को छोड़ दिया और उसके बाद बदरीनाथ जाने वाली बस पर मनपसंद सीट मिलने पर उसी सीट पर अपना कब्जा जमाया और सीट अपने नाम कर लिया। अब सीट तो हमने हथिया लिया था पर अभी भी ये तय नहीं था कि हम बदरीनाथ पहुंचेंगे या फिर रुद्रप्रयाग उतरकर केदारनाथ चले जाएंगे; या चमोली उतरकर रुद्रनाथ चले जाएंगे। खैर वो बातें आगे होगी अभी हम पिछले आलेख में किए गए वादे के अनुसार आपको गंगा स्नान के लिए ले चलते हैं।

Sunday, November 24, 2019

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)




एक बहुत ही लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से एक छोटी या बड़ी घुमक्कड़ी का संयोग बन रहा था, जिसमें जाने की तिथि तो हमने तय कर लिया था कि अमुक दिन हमें जाना है लेकिन वापसी की तिथि का कुछ पता नहीं था कि वापसी कब होगी, क्योंकि पहले यही नहीं पता था कि जाना कहां है, किस ओर कदम बढ़ेंगे, कितने दिन लगेंगे, और कौन साथ में चलेंगे या फिर अकेले ही जाना होगा, अगर कुछ तय था तो जाने का दिन और जाने की दिशा। अब जब जाने का दिन और दिशा तय था ही तो हमने सोचा कि क्यों न जाने का एक टिकट करवा लेता हूं और यही सोचकर हमने दिल्ली से हरिद्वार का एक टिकट बुक कर लिया। टिकट बुक करने के बाद कुछ साथियों को पूछा कि इतने तारीख को हम कहीं जाएंगे अगर आपका विचार बनता है तो साथ चलिए, जगह आप जहां कहेंगे हम वहां चले जाएंगे, पर वही ढाक के ढाई पात, ओह साॅरी ढाई नहीं तीन पात वाली बात हुई। कोई भी साथी जाने को तैयार न हुए।

Saturday, November 23, 2019

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)




बहुत समय बाद एक बार फिर कहीं जाने का सुयोग बन रहा था। इससे पहले भी कई बार कई जगहों पर जाने का प्रयत्न किया पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। कभी ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाना, कभी कोई अन्य काम, तो कभी कुछ तो कभी कुछ कारण सामने आ जाते और हर बार मन को समझाकर घर पर ही बैठना पड़ता। इस बार जब जाने का कार्यक्रम तय किया तो कुछ पता नहीं था कि कहां जाएंगे; पर ये पता था कि कहीं न कहीं तो जाएंगे ही और इस बार तो ऑफिस की छुट्टियां भी बाधा नहीं बन रही थी। नवरात्रि के त्यौहार के कारण दो छुट्टियां पड़ रही थी और एक रविवार मिलाकर तीन दिन का इंतजाम तो अपने आप हो गया था और एक दिन आगे और एक-दो दिन बाद की छुट्टी लेने पर कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी तो बना लिया कहीं जाने का प्लान।

Monday, October 28, 2019

प्रकृति पूजा का महापर्व है : छठ महापर्व

प्रकृति पूजा का महापर्व है : छठ महापर्व





केलवा जे फरेला घवद से, आह पर सुगा मंडराय
उ जे चढैवो आदित्य के, सुग्गा देले जुठियाय
मरबो रे सुगवा धनुष से, सुग्गा गिरै मुरछाय
सुगनी जे रोवे ला वियोग से आदित्य होवा न सहाय

छठ महापर्व के ऐसे ही कुछ कर्णप्रिय और मधुर गीत आजकल पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र के हर गली, नुक्कड़, गांव, शहर और चौक-चौराहे पर सुनने के लिए मिल जाएंगे। कुछ दशक पहले तक छठ पर्व एक ऐसा त्यौहार था जो केवल बिहार और पूर्वांचल तक ही सीमित था और इन इलाकों से अलग दूसरे राज्य के निवासी इसे एक आश्चर्य की तरह देखते थे कि ये कैसा त्यौहार है, लेकिन अब यहां के निवासियों का दूसरे राज्यों और यहां तक कि दूसरे देशों में बसने के कारण यह त्यौहार वहां भी मनाया जाने लगा है। मुझे याद है जब दिल्ली में 18 साल पहले आया था तो बहुत कम लोग यहां छठ मनाते थे और बिहार के लोग भी छठ में अपने अपने शहरों की ओर त्यौहार मनाने के लिए लौट जाते थे, लेकिन अब एक तो आने जाने में गाडि़यों की इतनी दिक्कत होने लगी है कि लोग उस परेशानी से बचने के लिए यहीं छठ मनाने लगे और आज के समय में छठ यहां धूमधाम से मनाया जााने लगा है।

Saturday, September 14, 2019

घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं—अभ्यानन्द सिन्हा

घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं—अभ्यानन्द सिन्हा



इस साक्षात्कार को एकऑनलाइन पोर्टल ने छापा था, लेकिन कालांतर में उसने वहां से हटा दिया तो मैं उन शब्दों का यथावत् अपने ब्लाॅग पर प्रकाशित कर दिया।

Thursday, April 25, 2019

रात में चोपता से चंद्रशिला (Chopta to Chandrashila in the Night)

रात में चोपता से चंद्रशिला
(Chopta to Chandrashila in the Night)







चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला श्रृंखला के इस पोस्ट में आइए हम आपको चोपता से लेकर चंद्रशिला तक की यात्रा (नवम्बर 2017) करवाते हैं। रात के दो बज रहे थे और सभी साथी चोपता के एक बुगियाल में अपने अपने घोसले (टेंट) में नींद की आगोश में लिपटे हुए हसीन सपने में खोए हुए सो रहे थे। तभी अचानक से मोबाइल का अलार्म बजता है और किसी एक की नींद में खलल उत्पन्न होता है और वह नींद के थैले (स्लीपिंग बैग) के अंदर से ही उसी घोसले में अपने साथ सो रहे तीन और साथियों को हिला-डुला कर और कुछ आवाज लगाकर जगाता है। कुछ आंखें खुलती है तो कुछ बंद ही रहती है लेकिन जगाने वाला भी जिद में था कि जगा कर ही छोड़ना और आखिरकार सबको जगाकर ही वो रुकता है।

Wednesday, April 24, 2019

चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (Chopta-Tungnath-Chandrashila)

चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (Chopta-Tungnath-Chandrashila)




इस जगह पर जाने का सौभाग्य हमें दो बार प्राप्त हुआ और दोनों ही बार मौसम ने बिल्कुल अलग अलग रंग दिखाए। एक ही दिन में मौसम के हजार रंग देखने को मिले। कभी बादल भैया ने रास्ता रोका तो कभी बरखा दीदी ने दीवार खड़ा किया तो कभी सूरज बाबा ने अपनी चमक से हमें चमकाया। कभी उन वादियों में खो गए तो कभी रास्ता भी भटके। कभी हिमालय के बड़े से कप में बादलों की आईसक्रीम का स्वाद लिया, तो कभी सुनहरे बादलों में सूरज का गुलाब जामुन भी बनते देखा। कभी सूरज को बादलों में प्रवेश करते देखा तो कभी उसी सूरज बाबा को बादलों से के आगोश से निकलने के लिए तड़पते भी देखा। कभी महादेव के चरणों में लोटे तो कभी चंद्रशिला से उगते सूरज का देखा।

Tuesday, April 23, 2019

रेगिस्तान की एक सुबह (A morning of Sand Dunes)

रेगिस्तान की एक सुबह (A morning of Sand Dunes)




16 दिसम्बर की सुबह जैसलमेर की रेगिस्तानी वादियों में आपके सभी साथी अपने अपने तबेले में ऊंट बेच कर सो रहे हों। चारों तरफ सन्नाटा हो, अगर कुछ सुनाई पड़ रहा हो तो अगल-बगल के टेंटों से एक-दो मानवीय ट्रेक्टरों की आवाज। आप भी जागते हैं और रजाई से बाहर आते ही ऐसा लगता है जैसे ठंड काटने को दौड़ रहा है और आप फिर से रजाई में दुबके जाते हैं और याद आता है कि अरे हमने तो पांच बजे सबको जगाने का वादा किया है फिर थोड़ा हां थोड़ा ना करते हुए आप 4 से 5 डिग्री के तापमान में भी रजाई को फेंक कर बाहर निकलते हैं।

Sunday, April 21, 2019

हिमालय (Himalaya)

हिमालय (Himalaya)






बचपन से तुम्हारे बारे में सुना करता था, कभी किताबों में पढ़ता था, तो कभी अखबारों में देखता था, तो कभी बड़े-बुजुर्गों से तुम्हारे बारे में सुना करता था, पर तुमको कभी देख नहीं पाया था। बस मन ही मन महसूस करता था कि तुम कैसे दिखते होगे, कितने खूबसूरत होगे, तुमको देखकर कैसा लगता होगा। तुम्हारा नाम जब भी कोई लेता था मन में एक जिज्ञासा उठती थी आखिर ऐसा क्या है जो तुम इतना लुभाते हो सबको। तुमसे मिलने की ईच्छा लिए कई बार घर से भी भागा पर तुम तक पहुंच नहीं पाया। कभी कलकत्ता तो कभी बनारस, कभी गया तो कभी देवघर, कभी पटना तो कभी सुल्तानगंज, कभी रांची तो कभी बोकारो, कभी राजगीर तो कभी गिरियक, कभी यहां तो कभी वहां, कभी ईधर तो कभी उधर--कहां कहां नहीं गया तुमसे मिलने के लिए, लेकिन तुम इतने दूर बैठे थे कि मैं तुम तक कभी पहुंच ही नहीं पाता था। तुमसे मिलने की आस में आधी से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर पर तुम नहीं मिले।

Saturday, January 19, 2019

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)




मेरे पड़ोस में एक शम्भू दयाल नामक एक व्यक्ति रहते हैं। एक बार अचानक ही उन्हें कहीं जाना पड़ गया। बड़ी मुश्किल से उन्होंने एक तत्काल टिकट का इंतजाम किया, वो भी वेटिंग हो गई, लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और टिकट कंफर्म भी हो गई। वो यात्रा के लिए घर से निकले और स्टेशन पहुंच गए। स्टेशन पर जाने पर पता चला कि उन्होंने जिस गाड़ी का टिकट लिया उससे पहले की दो ट्रेन और बाद की तीन ट्रेन कैंसिल है। ट्रेन कैंसिल होने का कारण भी ये था कि जो ट्रेनें यहां से जानी थी वो आई ही नहीं थी क्योंकि जहां से वो आने वाली थी वो किसी राजनीतिक पार्टी के देश या राज्य बंद के कारण रास्ते में ही खड़ी थी। मतलब कुल मिलाकर यह हुआ कि उन सभी ट्रेनों की जितनी सवारियां हैं उनमें से अधिकतर सवारियां जो भीड़ का सामना करने का हौसला रखती है, वो इसी में सवार होगी।

Thursday, January 17, 2019

घुमक्कड़ (Traveller)

घुमक्कड़ (Traveller)




एक घुमक्कड़ हमेशा एक सफर में रहना चाहता है और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलता ही रहना चाहता है। उसे मंजिल नहीं चाहिए होता है उसे तो रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते उसके लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव। वह चलता रहना चाहता है और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहता है। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें उसे दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में वो बस चलता रहता है, उससे मिलने के लिए। वह बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहता है और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेना चाहता है।

Tuesday, January 15, 2019

रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)

रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)




बिछड़े हुए दो प्रेमी : रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)कितनी अजीब बात है न, हम दोनों ने एक ही जगह से अलग-अलग दिशाओं में सफर करना आरंभ किया था और सोचे थे कि चलते चलते एक न एक दिन कहीं मिल जाएंगे। मिलने की उम्मीद में बस चले ही जा रहे थे कि सहसा ही हमारे कदम रुक गए थे। हमने पीछे मुड़कर देखा था कि जरूर तुम भी मुझे पीछे मुड़कर देख रहे होगे और बहुत खुशी हुई थी कि ये देखकर कि तुम भी मुझे ठीक वैसे ही देख रहे हो जैसे हम तुमको देख रहे हैं। हम सोच रहे थे कि तुम वापस आओगे और तुम सोच रहे थे हम वापस आएंगे और इसी सोच में न जाने कब हम दोनों ही अपने स्थान पर जड़बद्ध हो गए पता ही नहीं चला।

Monday, January 14, 2019

रास्ता (Way)

रास्ता (Way)



जब हम कहीं किसी सफर पर निकलते हैं तो बस दो चीजें ही ध्यान में रहती है कि कहां से चलना है और कहां जाना है। यहां से वहां तक और फिर वहां से वहां तक। पर कुछ दीवाने हमारे और आप जैसे भी होते हैं जिनका ध्यान यहां से वहां तक बहुत कम होता है। उनको ध्यान तो यहां से वहां के बीच पड़ने वाले रास्ते पर होता है। जो रोमांच रास्तों को देखकर होता है वो मंजिल पर पहुंचकर नहीं। मंजिल तक पहुंचकर तो सफर समाप्त हो जाता है। रास्ते तो बस चलते रहते हैं जो कभी खत्म नहीं होता। जो खूबसूरती किसी सफर में रास्ते में दिखाई देती है वो मंजिल पर पहुंचकर नहीं। मंजिल तो बस एक विश्रामस्थल है जहां कुछ देर रुकना फिर आगे चल पड़ना है।