झरने और नदी की यात्रा (Journey of Waterfall and River)
यात्रा-कथा कहिए, यात्रा-विवरण कहिए या यात्रा-वृत्तांत कहिए या आपके मन में जो आए वो कह लीजिए। इसकी रचना के लिए न तो कोई निर्दिष्ट पद्धति है न ही कोई निश्चित सिद्धांत। पैरों के साथ-साथ मन के अनुसार ही इसकी पटकथा चलती है और उस पर यदि शब्दों ने सुर-ताल मिला दिया तो बस फिर कहना ही क्या हो गया काम आसान और इसमें से यदि किसी एक ने भी थोड़ा सा साथ नहीं दिया तो फिर लाख प्रयासों के बाद भी लिखना संभव नहीं हो पाता। कभी-कभी यात्रा-कथा लेखन भी हिमालयी क्षेत्र के पर्वतारोहन (ट्रेकिंग) के जैसा ही प्रतीत होने लगता है। कभी तो एकदम सीधा, सरल, सपाट, तो कभी ढलान तो कभी चढ़ाई।
हिमालयी क्षेत्र का हर पर्वतारोहन-पथ किसी-न-किसी नदी के प्रवाह-पथ के साथ-साथ ही चलता है। जैसे केदारनाथ के यात्रा-पथ मंदाकिनी के साथ-साथ तो मध्यमहेश्वर के यात्रा-पथ मधुगंगा के साथ-साथ, सतोपंथ के यात्रा-पथ अलकनंदा के साथ-साथ तो सप्त-ऋषि कुंड के यात्रा-पथ यमुना के साथ-साथ, पिंडारी के यात्रा-पथ पिंडर के साथ-साथ तो गौमुख के यात्रा-पथ भगीरथी के साथ-साथ, अमरनाथ के यात्रा-पथ-पथ लिद्दर और अन्य नदियों के साथ-साथ तो लद्दाख के यात्रा-पथ महासिन्धु, शियोक और नुवरा के साथ-साथ तो कश्मीर के यात्रा-पथ वितस्ता, कृष्णगंगा और उपसिन्धु आदि नदियों के साथ-साथ तो जम्मू-हिमाचल-पंजाब के यात्रा पथ चन्द्रभागा, इरावती, तवी आदि नदियों के साथ-साथ ही अपना पथगमन करते हैं। केवल पर्वतारोहन-पथ ही क्यों पहाड़ की कोई भी यात्रा हो, कोई भी रास्ता हो नदियों के साथ-साथ ही चला करता है।
पर्वतारोहन-पथ के साथ-साथ चलने वाली ये नदियां भी न जाने कितने झरनों और सोतों से मिलकर बनी होती है। नदी को नदी बनाने वाले झरने और सोते अपने सफर में न जाने कितने पत्थरों को काटकर चलते हुए नदी तक पहुंचकर अपनी जलधारा से नदी को नदी बनाते हैं। झरनों से आरंभ हुआ सफर रास्ते में नदी बनती है और पहाड़ी घाटियों के बीच से बहती हुई समतल क्षेत्र तक पहुंचती है और वहां पहुंचकर एक सभ्यता और संस्कृति का निर्माण करती है और उसी नदी के साथ साथ वो सभ्यता और संस्कृति फलती-फूलती रहती है और नदियां बहती हुई चली जाती है और संस्कृति विकसित होती चलती जाती है। बहती हुई ये नदियां बहते बहते कहीं न कहीं जाकर या तो समुद्र में विलीन हो जाती है या तो सूख जाती है और जहां ये नदियां सूखती है वहां सभ्यता भी अपने मरनासन्न स्थिति में पहुंच जाती है....और इस तरह से नदी के साथ-साथ एक झरने के सफर का भी अंत हो जाता है।
अभ्यानन्द सिन्हा
फोटो: रांसी गांव से मध्यमहेश्व के रास्ते का
No comments:
Post a Comment