Sunday, February 23, 2025

जंगल (Woods)

जंगल (Woods)


जंगल भी बहुत अजीब होता है न ... तरह तरह के छोटे बड़े पेड़ ... घनी झाडि़यां ... ऊबड-खाबड़ रास्ते ... पेड़ों पर हरियाली ... छांव का बसेरा ... पेड़ों से छन कर आती सूरज की किरणें ... शांति और नीरवता ... और उसे तोड़ती हुई झिंगुरों की मधुर ध्वनि ... हर कदम पर बिखरे दिलकश नजारे ... चलते हुए कदमों में लिपटते पत्ते और बेलें ... थोड़ा सा भय मिश्रित रोमांच ... उसके ऊपर शाम के बाद घिरता अंधेरा ... दूर दूर तक कोई इंसान नहीं ... हाथ में कैमरा लिए खूबसूरत दृश्यों की तलाश ... किसी जानवर को तलाशती आंखें ... और थोड़ी सी सरसराहट होते ही चौंकन्ने हो जाना ... ईधर-उधर देखना ... कुछ न दिख पाने पर मन में एक उदासी के साथ राहत की सांस लेना ... कुछ कदम चलना और फिर वही प्रक्रिया दुहराना ... धीरे धीरे अंधेरे का गहराता जाना ... रास्ते का भी न दिखाई देना ... टाॅर्च की मद्धिम रोशनी भी रास्ता चलने के लिए नाकाफी ... सब कुछ कितना अजीब लगता है न? ये कोई सपना नहीं है, ये वो पल है जब हमें मध्यमहेश्वर से लौटते हुए गोंडार में ही शाम हो गई थी और अंधरे में ही केवल हम दो लोग उस जंगल को पार कर रहे थे तो मन में ऐसे ही कुछ भाव आ-जा रहे थे।

फोटो : मध्यमहेश्वर जाते हुए रांसी से गोंडार के बीच,

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