उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ (Omakareshwar Parikarma Path)

परिक्रमा पथ पर परिक्रमा करने का हमने तय तो कर लिया पर पीठ पर लदे बैग का कुल वजन लगभग 10 किलो से ज्यादा था और हम इतना वजन लेकर चलना नहीं चाह रहे थे कि क्योंकि अगस्त का महीना और उसके ऊपर दोपहर का समय था और उमस भी बहुत ज्यादा थी। अगर बैग कहीं रख देते तो आसानी हो जाती और कुछ खाली रहने पर समय की भी बचत होती क्योंकि चढ़ाई के रास्ते पर इतना भारी बैग ले जाना उचित नहीं था। फिर मैंने उसी दुकान वाले से पूछा कि ये बैग कहीं रखा जा सकता है तो उसने बताया कि पुल के पास एक दुकान है और वही उसका घर भी है, वो यहां आए लोगों का बैग रखने का काम भी करता है। अब हम उस दुकान पर पहुंच गए तो देखा कि वो दुकान को बंद कर चुका है क्योंकि उसके खाने का समय हो गया था। मैं वहां पहुंचते ही उनको बैग रखने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि 20 रुपए दे दीजिए और बैग रख दीजिए और शाम तक आकर कभी भी ले जाइए। मैंने बैग उनको सुपुर्द किया और उनकी दुकान से ही दो बोतल पानी लिया और पैसे देकर आगे बढ़ गए।
ओंकारेश्वर में श्रद्धालु मनोकामना पूर्ति के लिए भगवान ओंकारेश्वर एवं मान्धाता पर्वत की परिक्रमा करते हैं। यह करीब 7 से 8 किलोमीटर की परिक्रमा है। परिक्रमा पथ पर पूरा रास्ता सीमेंट की ढलाई वाला पक्का बना हुआ है। इस पथ पर पूरे रास्ते मनोरम, मनभावन, नयनाभिराम दृश्य देखने को मिलते हैं और साथ ही अनेक मंदिर और आश्रम हैं भी है। इसी रास्ते पर चलकर संगम का भी दर्शन होता है जहां श्रद्धालु स्नान करते हैं। बरसात में यहां की खूबसूरती और ज्यादा निखर जाती है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली बिखर जाती है। रास्ते में मंदिरों और आश्रमों के अलावा कई पुरातात्विक और पौराणिक स्थल भी हैं, जैसे धर्मराज द्वार, ऋण मुक्तेश्वर मंदिर, गौरी सोमनाथ मंदिर, पाताली हनुमान मंदिर (लेटे हनुमान मंदिर), शिव प्रतिमा मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर, आशापुरी देवी मंदिर, राज राजेश्वरी मंदिर, चाँद सूरज द्वार, भीम अर्जुन द्वार, नर्मदा नदी, ओंकारेश्वर बांध आदि बहुत कुछ हैं जो इस परिक्रमा पथ की खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देते हैं। साथ ही पूरे पथ पर जगह जगह महाभारत में धृतराष्ट्र और संजय के आपसी संवादों को शिलालेखों द्वारा दर्शाया गया है।
हां तो हम बात कर रहे थे कि बैग रखकर हम परिक्रमा पथ की तरफ चल पड़े। परिक्रमा पथ की शुरुआत सीढि़यां चढ़ने के साथ हुआ। गर्मी और उसम इतनी थी कि शुरुआत की वो लगभग पचास ऊंची-ऊंची सीढि़यां चढ़ते हुए ही गला सूखने लगा था। पहले तो यही लगा कि इस तपती हुई भरी दोपहरी में परिक्रमा पथ पर चलना ठीक नहीं होगा, पर हमारे लिए उस गरमी से ज्यादा महत्वपूर्ण अपने समय का सदुपयोग करना था और हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते गए। सीढि़यों चढ़ते हुए जिस गर्मी का अहसास हुआ था वो आगे जाकर शीतलता में बदल गई। चारों तरफ हरियाली, नर्मदा की तरफ से आती ठंडी हवाएं, नर्मदा के शांत जल में दौड़ती मोटर युक्त नावें, दोनों किनारे पर खड़े हरे-हरे पेड़ और पेड़ों पर चहचहाते चिडि़यों और पक्षियों की आवाज से समूचा वातावरण गुंजायमान हो रहा था। साथ ही मार्ग पर दोनों किनारे पर बंदरों की धमाचैकड़ी भी बहुत हद तक थकावट को दूर करने का काम कर रही थी। पथ के एक तरफ पहाड़ तो दूसरी तरफ बहुतायत में बने मंदिर, आश्रम और मठ परिक्रमा पथ की शोभा बढ़ाने का काम कर रहे थे। इस पथ पर हर सौ दो सौ कदम पर कोई न कोई मंदिर या आश्रम बना हुआ है, रास्ते किनारे स्थानीय लोग भी कुछ खाने-पीने की सामान के साथ अपनी दुकान लगाए हुए थे।
इस पथ पर चलते हुए मंदिरों और आश्रम के अलावा जो सबसे पहला मनोहारी, मनभावन दृश्य दिखाई दिया वह था संगम स्थल। संगम स्थल परिक्रमा पथ के रास्ते से हटकर करीब दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित था। संगम स्थल पर नहाने वाले लोगों की भीड़ लगी हुई थी। कुछ अकेले, कुछ दोस्तों के साथ तो कुछ परिवार और संबंधियों के साथ संगम स्थल पर नर्मदा में डुबकी लगाने में व्यस्त थे। लोगों को नहाता देखकर मेरे मन में भी आया कि काश हम भी यहां दो-चार डुबकी लगा लेते पर ये हो नहीं सकता था क्योंकि बैग तो हमने नीचे मंदिर के पास ही दुकान में रख दिया था और मेरे पास नहाने के बाद पहनने के लिए कपड़े थे नहीं, तो नहाना संभव नहीं था। कुछ मिनट दूर से ही खड़े होकर संगम के खूबसूरत विहंगम दृश्य को निहारने के बाद उस खूबसूरत दृश्य को देखने के लिए हम भी संगम की तरफ बढ़ गए। वहां जाकर पानी के बीच एक पत्थर पर बैठकर कुछ समय बिताया फिर आगे के सफर पर चल पड़ा। संगम किनारे से चलकर हम फिर से परिक्रमा पथ पर आ गए और खूबसूरत दृश्यों का दीदार करते हुए धीरे धीर चलने लगे। संगम स्थल के पास ही एक मंदिर भी बना हुआ है जिसका नाम है ऋण मुक्तेश्वर मंदिर।
मंदिर से संगम तक पहुंचने में करीब डेढ़ किलोमीटर के लगभग दूरी तय करनी पड़ती है। संगम से थोड़ा ही आगे बढ़े थे कि पहले पौराणिक स्थल से सामना हुआ जिसका नाम था धर्मराज द्वार। परिक्रमा पथ के आरंभिक स्थान से धर्मराज द्वार की दूरी 2100 मीटर है। धर्मराज द्वार के समीप ही पुरानी खंडित प्रतिमाएं भी रखी हुई हैं जो शायद खुदाई में मिली हों। अब थोड़ा और आगे बढ़े तो शिव के एक और मंदिर के दर्शन हुए जिसका नाम है गौरी सोमानाथ मंदिर। इस मंदिर की दूरी परिक्रमापथ के आरंभिक स्थान से तीन किलोमीटर है। यहां से कुछ ही कदम आगे बढ़े तो राम भक्त हनुमान के मंदिर के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। इस मंदिर में हनुमान जी की लेटी हुई अवस्था में प्रतिमा स्थापित है। इस मंदिर का नाम पाताली हनुमान मंदिर और लेटे हनुमान मंदिर है। यहां से थोड़ा आगे उस शिव प्रतिमा के दर्शन हुए जो ओंकारेश्वर आने वाले हर व्यक्ति को दूर से ही दिखाई देता है। इसी शिव प्रतिमा मंदिर के सामने एक और मंदिर अवस्थित है जिसका नाम आशापुरी देवी मंदिर है। इन दोनों मंदिरों से कुछ और आगे बढ़ने पर रास्ते से कुछ मीटर हटकर एक और शिव मंदिर है। मंदिर तो ध्वस्त हो चुका है पर शिवलिंग अभी भी विराजमान है और मंदिर की ध्वस्त हुई दीवारों के अवशेषों में बहुत सी मूर्तियां भी अवस्थित हैं जिनमें से कुछ तो अपने पूर्ण रूप में है और कुछ खंडित हो चुकी हैं। यहां से आगे जाने पर एक और द्वार से सामना होता है जिसका नाम है चांद-सूरज द्वार।
चांद सूरज द्वार से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक बहुत ही बड़े शिवालय का खंडित रूप से सामना हुआ। देखकर यही लग रहा था कि अपने पुराने समय में ये एक बहुत ही बड़ा और खूबसूरत शिवमंदिर होगा। ध्वस्त अवस्था में भी यह मंदिर अपनी अद्भुत खूबसूरती को समेटे हुए खड़ा है। खम्भों की गई शिल्पकारी और जगह जगह बनी हुई हाथियों की मूर्तियां इसकी खूबसूरती को और अधिक बढ़ा देती है। ओंकारेश्वर डैम और नर्मदा की खूबसूरती को निहारने के लिए इस जगह से बढि़या जगह ओंकारेश्वर में कहीं और नहीं है। हम भी कुछ पल यहां से नर्मदा को देखते रहे और ये सोचते रहे कि जब ये मंदिर सही अवस्था में होगा तो कितना खूबसूरत होगा। इन्हीं खयालों में खोए हुए न जाने कितने देर गुजर गए पता नहीं चला। हम कभी मंदिर तो कभी नर्मदा और डैम को निहारने में लगे हुए थे कि अचानक आई बरसात ने उस जगह से हटने पर मजबूर कर दिया। आसपास बरसात से बचने का कोई साधन नहीं था। अगर हम चलते रहते हैं तो भी भीगना होगा और रुकते हैं तो भीगना होगा तो रुकने से कोई फायदा नहीं था और हम भीगते हुए ही रास्ता नापने लगे। करीब दस मिनट के बाद इंद्रदेव ने दया दिखाते हुए बरसात को रोक लिया फिर भी इतने देर में हम पूरी तरह भीग चुके थे। यहां से मंदिर की दूरी अभी करीब डेढ़ किलोमीटर थी और इतनी दूरी पैदल तय करते हुए करीब साढ़े चार बजे हम फिर से मंदिर के पास पहुंच गए और इस तरह ओंकारेश्वर की हमारी परिक्रमा पूरी हुई और ओंकारेश्वर में हमने एक दिन में ही बहुत कुछ देखा व महसूस किया और जानकारियों का अभाव होने के कारण बहुत कुछ छूट भी गया और वो तब पूरा होगा जब हम परिवार समेत एक बार फिर से वहां की यात्रा करेंगे।
हमने एक बजे परिक्रमा आरंभ किया था और अब तक करीब साढ़े चार बज चुके थे यानी कि हमें इस परिक्रमा को पूरा करने में करीब साढ़े तीन घंटे का समय लगा। परिक्रमा पूरी करने के बाद एक बार फिर से हम ओंकारेश्वर मंदिर के पास आ गए। मंदिर के पास आकर एक बार फिर से हमने अपने भगवान भोले नाथ को प्रणाम किया और आगे के सफर पर निकल पड़ा। हमारी योजना ओंकारेश्वर से महेश्वर जाने की थी पर होनी को कुछ और ही मंजूर था और हम चले थे महेश्वर के लिए और पहुंच गए कहीं और। वो कहते हैं न कि दुनिया गोल है जहां से आप चलेंगे वहीं पहुंच जाएंगे और मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ। तब तक आप भी सोचिए कि हम कहां पहुंचे होंगे। आज बस इतना ही इससे आगे का भाग लेकर हम जल्दी ही आएंगे जिसमें हम आपको अपने साथ आगे के सफर पर ले चलेंगे। अभी आज्ञा दीजिए बस जल्दी ही मिलते हैं अगले पोस्ट के साथ।
ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ के दर्शनीय स्थल
ऋण मुक्तेश्वर मंदिर : यह मंदिर कावेरी और नर्मदा के द्वितीय एवं अंतिम संगम पर स्थित है।
धर्मराज द्वार : परिक्रमा पथ पर स्थित धर्मराज द्वार से लगा हुए करीब 4 किलोमीटर की एक चहारदीवारी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे परमार शासकों ने 11वीं शताब्दी में बनवाया था। इस चहारदीवारी के अंदर अनेक परमारकालीन मंदिर बने हुए थे, जिनके अवशेष आज भी हैं। कहा जाता है कि मांधाता दुर्ग का पश्चिमी द्वार अपने समय में एक विशेष महत्व रखता था जो बाद के समय में भी बना रहा। पथ पर पड़ने वाले द्वारों के नाम वहां पर स्थापित मूर्तियों के नाम पर रखे गए हैं। बीते समय में हो सकता हो कि यहां पर यमराज की मूर्ति स्थापित हो इसलिए इस द्वार का नाम धर्मराज द्वार रखा गया है। यह द्वार पत्थरों के टुकड़ों से निर्मित है। यहां सुरक्षा में लगे सैनिकों के लिए दो कक्ष का भी निर्माण कराया गा था। इन कक्षों में प्रवेश के लिए पत्थरों की सीढि़यां बनाई गई हैं। साथ ही यह द्वारा परमारकालीन अलंकृत स्तम्भों पर आधारित है।
गौरी सोमनाथ मंदिर : यह तारे के आकार का अत्यंत ही सुन्दर वास्तुकला वाला मंदिर है। यहाँ विशालकाय करीब 6 फुट ऊँचा चमकदार काले पत्थर से निर्मित शिवलिंग है। शिवलिंग अत्यंत ही पुराना है एवं इसी के सामान काले पत्थर की नंदी की प्रतिमा भी मंदिर के बहार स्थित है। इस मंदिर को मध्यकाल में औरंगजेब द्वारा खंडित कर दिया गया था।
पाताली हनुमान मंदिर : परिक्रमा पथ पर लेटे हुए हनुमानजी का सिद्ध मंदिर है। यह मंदिर गौरी सोमनाथ मंदिर के पास ही है।
शिव प्रतिमा मंदिर : ओंकारेश्वर के परिक्रमा पथ पर राज राजेश्वरी सेवा संस्थान द्वारा निर्मित अनेक मंदिरों में एक शिव मंदिर भी है जिस मंदिर पर भगवान शिव की लगभग 90 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है जोकि काफी दूर से भी दिखाई देती है और यहां पहुंचने वाले हर श्रद्धालु को सबसे पहले दूर से इस प्रतिमा के ही दर्शन होते हैं।
आशापुरी देवी मंदिर : सदियों से मान्धाता क्षेत्र राव परिवार द्वारा संचालित रहा है। आशापुरी मंदिर राव परिवार की कुलदेवी एवं प्राचीन जनजाति की पूज्य देवी का मंदिर है। इस मंदिर की देव प्रतिमा अत्यंत ही सुन्दर है। यहाँ सभी विधि विधान के साथ नियमित पूजन किया जाता है।
चाँद सुरज एवं भीम अर्जुन द्वार : परिक्रमा पथ में आने वाले ये अत्यंत ही प्राचीन अवशेष हैं, ऐसा प्रतीत होता है की ये किसी प्राचीन सभ्यता के भवन के अवशेष हैं।
सिद्धनाथ मंदिर : वास्तुकला की दृष्टि से यह काफी प्रभावशाली मंदिर है। इस मंदिर को ब्रिटिश लोर्ड कर्जन द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किया गया था। यह द्वीप के पठारी भाग में स्थित है। इसे एक विशाल चबूतरे से आधार दिया गया है जिसके चारों ओर विभिन्न मुद्राओं में बहुत से हाथियों की मूर्तियां गढ़ी गई हैं। मंदिर के अंदर जाने के लिए चारों से प्रवेश की व्यवस्था है और साथ ही एक भव्य सभामंडप भी बना हुआ है। हर सभामंडप में 14 फुट ऊंचाई के 18 खम्भे हैं, जो कि पत्थर से बने हुए हैं और उन पर सुन्दर कलाकृतियों बनाई हुई है। जब यह मंदिर अपने सही रूप में होगी तो बहुत ही भव्य और खूबसूरत होगा।
इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें
भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास
आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
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परिक्रमा पथ पर जगह जगह ऐसे ही धृतराष्ट्र और संजय के बीच हुए संवादों का शिलालेख लगा हुआ है |
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नर्मदा, हरियाली और नावें |
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नर्मदा और घाट |
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परिक्रमा पथ पर एक स्थित एक मंदिर का शीर्ष भाग |
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परिक्रमा पथ पर एक मंदिर |
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संगम पर नहाते श्रद्धालु |
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संगम पर नहाते श्रद्धालु |
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संगम से दिखाई देता पुराना पुल |
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संगम का विहंगम दृश्य |
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हरियाली के बीच नर्मदा |
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धर्मराज द्वार |
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धर्मराज द्वार के पास रखी हुई मूर्तियां |
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गौरी सोमनाथ मंदिर |
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शिव प्रतिमा मंदिर की बाह्य दीवारों पर बनी मूर्तियां |
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शिव प्रतिमा |
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राजराजेश्वरी मंदिर का प्रवेश द्वार |
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एक ध्वस्त हुए शिवमंदिर के अवशेषों के बीच विराजमान शिवलिंग |
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शिव मंदिर की टूटी हुई दीवारों पर बनी मूर्तियां |
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एक द्वार के अवशेष |
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चांद सूरज द्वार |
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सिद्धनाथ मंदिर के अवशेष |
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सिद्धनाथ मंदिर के अवशेष और बाहर विराजते नंदी महाराज |
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सिद्धनाथ मंदिर की दीवारों पर उत्कीर्ण हाथियों की मूर्तियां |
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सिद्धनाथ मंदिर के अवशेष |
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सिद्धनाथ मंदिर से दिखाई देता नर्मदा और ओंकारेश्वर बांध |
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सिद्धनाथ मंदिर के अवशेष |
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सिद्धनाथ मंदिर से दिखाई देता ओंकारेश्वर बांध और नर्मदा कावेरी का संगम (बाएं कावेरी और दाएं नर्मदा) |
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एक और मंदिर का अवशेष |
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नर्मदा के शांत जल में तैरती नावें |
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पहाड़ और हरियाली |
इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें
भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
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भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
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भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास
बहुत खूब लिखा भाई
ReplyDeleteधन्यवाद चंद्रेशखर भाई जी।
Deleteरोचक विवरण और सुंदर तस्वीरें। उज्जैन की तरफ जाना हुआ तो इधर का एक चक्कर लगा आऊंगा।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद विकास जी। जब भी जाइएगा बरसात में या बरसात के तुरंत बाद जाइएगा, नजारे ज्यादा खूबसूरत मिलेंगे।
Deleteजी, यही कोशिश रहेगी।
Deleteशुभकामनाएं विकास जी।
Deleteपरिक्रमा पथ के दर्शनीय स्थलों की बढ़िया सैर..
ReplyDeleteपुराने मंदिर सुंदर दिख रहे, पहले के राजा या सेठ लोग तीर्थों पर मंदिर आदि बनवाते रहते थे। उन्ही के अवशेष रहे होंगे। ये सिद्धनाथ मंदिर की तस्वीर देखकर ये लगा की पहले इसको कहीं तो देखा है याद नहीं आ रहा..
एक बात तो बताई ही नहीं की संगम था किसका?? एक तो नर्मदा दूसरी कौन सी नदी थी?? सभी तस्वीरें भी बढ़िया
बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी। अपना कीमती समय देर आपने पोस्ट पढ़ा और एक सुंदर टिप्पणी से इस पोस्ट की शोभा बढ़ाया।
Deleteहां ये बात तो है पुराने समय के कोई भी मंदिर या शिल्पकारी आज के समय से कई सौ गुना बेहतर थे। सैकड़ों वर्ष बाद भी उनकी सुंदरता मंे कोई कमी नहीं आई है। हां ये फोटो ऐसे ही फेसबुक पर एक बार लगाया था तो देखा होगा आपने।
डैम के ऊपर कावेरी (स्थानीय नदी) और नर्मदा का संगम है और डैम के नीचे जिसे मान लीजिए, कावेरी और नर्मदा या फिर नर्मदा और नर्मदा क्योंकि डैम के बाद नदी दो भागों में बंट जाती है जो आगे जाकर फिर से मिल जाती है। मंदिर और परिक्रमापथ बीच में टापू पर स्थित है।
एक बार फिर से धन्यवाद।
एक बार मे ही 9 भाग पढ़ डाले बस क्रम जरा उल्टा पुल्टा हो गया महाकालेश्वर ,ओंकारेश्वर ममलेश्वर के दर्शन हमने भी 1 नही 2 बार किये मगर ऐसे न किये जैसे आप ने किए अनुभव खट्टे मीठे रहे पुजारियों से पंगा होना तो आम बात है मुझ से भी पंगे होते रहते है पर वो सब प्रोफेशलन हो चुके है तो कोई फर्क न पड़ता उनपर बस भक्त जो श्रद्धा भाव से जाता है उसका मन जरूर विचलित होता है इनलोगों के कारण आपका यात्रा व्रतांत बहुत ही रोचक सारगर्भित जानकारी का भंडार है किसी भी नए व्यक्ति के लिए सारी जानकारी एक जगह पर उपलब्ध है आप के ब्लॉग में महाकालेश्वर में ठहरने की सबसे उचित जगह का सटीक स्थान बताया गया और इसके साथ साथ हरिसिद्धि माता के मंदिर के बगल में भी एक धर्मशाला मंदिर द्वारा संचालित है वो भी बहुत सही है महाकाल मंदिर के समीप में धर्मशाला में अन्न क्षेत्र भी संचालित है जहाँ भक्त उचित मूल्य पर भोजन प्रसाद प्राप्त कर सकते है उसी परिसर में वेद पाठी और कर्मकांडी बटुकनाथ भी रहते है छोटे छोटे बालक ...
ReplyDelete
Deleteबहुत बहुत बहुत और बहुत व सब मिलाकर नौ बार धन्यवाद क्योंकि आपने एक ही बार में सभी नौ पोस्ट को पढ़ लिया।
हां पंडे लोग को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि किसी को उनके व्यवहार से कितना दुख पहुंचता है, लोग कई दिन का सफर तय करके वहां तक पहुंचते हैं और फिर उनको धकिया कर बाहर निकाल दिया जाता है।
ब्लाॅग में थोड़ी बहुत जानकारियां और अपने अनुभव के आधार पर वहां जाने, रहने-खाने के बारे में लिख देते हैं कि किन्हीं को पढ़कर कुछ जानकारी हासिल हो जाए और वहां उनको जाने में आसानी हो जाए, कुछ सुविधा हो जाए तो ब्लाॅग लिखने का जो उद्देश्य है वो पूरा हो जाए।
अच्छा है वृतांत। अपने आप मे पूर्ण है। दरअसल ये जो कावेरी नदी है वह वास्तविक काबेरी नही हैं जिनका पुराण में वर्णन है और पवित्र सप्त नदियों में गिनी जाती हैं। यह कावेरी नाम से ही प्रचलित एक स्थानीय नदी है।
Deleteइसी तरह हम चित्रकूट में भी पाएंगे। वहां जो नदी बहती है वह मंदाकिनी कहलाती हैं और यह भी स्थानीय नदी है ,लेकिन असल मंदाकिनी तो उत्तराखंड के हिमालय में हैं।
एक तीसरी स्थानीय नदी भी है जिनका नाम गोमती है और द्वारकाधीश मंदिर , गुजरात से सटकर गुजरती हैं और पास ही अरब सागर में मिल जाती हैं। वास्तविक गोमती लखनऊ में हैं जिनके किनारे यह शहर बसा है।
बहुत अच्छा और अद्भुत ब्लॉग। रोचक विवरण और सुंदर तस्वीरें है। मुझे वाकई यह पसंद है। यह बहुत ही रोचक और सूचनात्मक ब्लॉग है। इस जानकारी को साझा करने के लिए धन्यवाद। हम पूरे भारत में ऑनलाइन टैक्सी सेवाएं प्रदान करते हैं। यदि आप भारत में किसी भी स्थान पर जाना चाहते हैं, तो आप कैब और टैक्सी सेवा बुक कर सकते हैं।
ReplyDeletehttps://www.bharattaxi.com/ujjain
धन्यवाद अंकिता जी।
Deleteजरूरत पड़ने पर आपकी टैक्सी सेवा का लाभ जरूर लिया जाएगा।
भाई किस चीज़ का संगम स्थल है यह... ओम्कारेश्वर से 100 km दूर करीब 20 साल रहा और सिर्फ ज़िन्दगी में एक ही बार दर्शन किये...अब आपके माध्यम से पूरा ओम्कारेश्वर देखा जा रहा है
Deleteभाई साब यहां त्रिवेणी संगम है। जो श्री ओम्कारेश्वर मंदिर से करीब 3 किलोमीटर आगे परिक्रमा पथ पर बढ़ने पर आता है। यहां नर्मदा , कावेरी एवम गुप्त सरस्वती नदी का पवित्र संगम है। यहां स्नान का विशेष महत्व है। यहां के बाद परिक्रमा की दिशा बदलती है एवम परवत की परिक्रमा का मुख्य पड़ाव है यह।
Deleteबहुत बहुत धन्यवाद प्रतीक भाई। ये नर्मदा और कावेरी का संगम है। वैसे जानकारी तो आपको गौरव जी ने ही दिया और पूरे परिक्रमापथ पर प्राकृतिक दृश्यों का अथाह भंडार है। नदी, पहाड़, पशु-पक्षी, हरियाली, धार्मिक और ऐतिहासिक इमारतें सब कुछ।
Deleteहर हर महादेव सर जी।
ReplyDeleteअच्छा समय का सदुपयोग किया आपने। बहुत ही सुंदर ढंग से आपने परिक्रमा पथ का वर्णन किया है ।
ऐसा एहसास हुआ जैसे कि मैं भी आपके साथ परिक्रमा पथ पर हूँ। इसका उदाहरण है कि मैं दैनिक तथा आफिस के सभी कामों से फारिग होकर मैने आपकी पोस्ट रात के समय पढ़ी, लेकिन मैं रात को सपने में क्या देखता हूँ कि मैं भी आपके साथ परिक्रमा पथ पर परिक्रमा कर रहा हूं। मुझे तो इस पर बिल्कुल विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा भी हो सकता है । वास्तव में आपकी लेखन शैली गजब है।
अगस्त माह में तो सूर्य देव का अलग ही रुप देखने को मिलता है बारिश के बाद गर्मी और उमस के कारण दो कदम चलना मुश्किल होता है और आपने ऐसे मौसम में परिक्रमा पूरी की। मैं तो एक बार वैष्णोदेवी गया था वहाँ उमस के कारण मुझे चढ़ाई करने में 6 से 7 घंटे का समय लगा था ।
महादेव का आशीर्वाद आपके साथ हमेशा रहता है इसलिए तो आपका बैग नीचे दुकान पर रखे होने पर भी आपकी संगम में नहाने की इच्छा होने पर महादेव ने दूसरे रुप में आपकी इच्छा पूरी कर दी इंद्र देव के द्वारा बारिश कराकर। धन्य हैं आप और आपकी आस्था।
अगले लेख का इंतजार रहेगा......
बहुत बहुत धन्यवाद अर्जुन जी। आप मेरे ब्लाॅग पर आते हो, पढ़ते हो और फिर इतनी सुंदर टिप्पणी से मेरे ब्लाॅग की शोभा बढ़ाते हो, सच कहूं तो अब तो बस आपकी टिप्पणी का बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहता है। आपकी टिप्पणी को पांच-सात बार पढ़कर जवाब देता हूं।
Deleteहां परिक्रमा पथ की परिक्रमा समय का सदुपयोग ही था, एक शिव प्रतिमा को देखने के लिए आठ किलोमीटर की प्रतिमा हमने किया और उन चार घंटे मंे हमने प्राकृतिक दृश्यों को भरपूर रूप से देखा, वो नदी, हरियाली, पहाड़, ठंडी हवा, शंात जल, संगम, डैम, मंदिर ही मंदिर, आश्रम, पक्षी और जानवर सब कुछ।
अरे वाह आपने ऐसा सपना देखा कि आप हमारे साथ घूम रहे हैं, तब तो भविष्य में कभी न कभी जरूर आपके साथ अपनी कोई न कोई यात्रा जरूर होगी चाहे छोटी या बड़ी।
हां अगस्त माह की सूर्य की तपिश जून से भी ज्यादा होती है, गर्मी से ज्यादा उमस भरी होती है वातावरण में। ये बात बिल्कुल सही कहा आपने नहाने की जो इच्छा संगम पर अधूरी रह गई थी उसे महादेव ने वर्षा के रूप में बरसकर मुझे भीगा कर स्नान करवा दिया।
बहुत ही बहुत से ज्यादा श्रद्धा है मेरी महादेव में, तभी तो हर जगह उनके दरबार में अपना माथा टेकने जाते हैं, और बहुत खुशी मिलती है वहां पहुंचकर।
अगला लेख जल्द ही आपके सामने होगा।
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बहुत बहुत धन्यवाद सर जी मेरी इतनी तारीफ करने के लिए। यह मेरा सौभाग्य है कि आप जैसी इतनी बड़ी शख्सियत को मेरे टिप्पणी का इंतजार रहता है। मैं तो जो भी सीख रहा हूँ आपसे ही सीख रहा हूँ क्योंकि मेरा हमेशा से एक ही शौक रहा है कि नित नई जगह पर घूमने जाऊ, लेकिन कुछ कारणों से मैंने अपना यह शौक छोङ दिया था। मगर जबसे आपसे जुङा और आपके लेख पढे तब से मेरा यह शौक फिर से पूरा हुआ है क्योंकि आपके लेखन में वह जादू है कि घर बैठे ही मैं उस जगह को घूम लेता हूँ ।
ReplyDeleteऔर हाँ सर जी यदि भोले नाथ का आशीर्वाद रहा तो एक दिन आपके साथ घूमने का सपना अवश्य सच होगा ।
।। जय भोले नाथ।।
एक बार फिर से धन्यवाद अर्जुन जी। जब तार दिल से जुड़ जाएं तो इंतजार तो रहता ही है जी। आप इतना दिल लगाकर पढ़ते हैं, फिर एक प्यारी सी टिप्पणी से मेरा उत्साह बढ़ाते हैं तो धन्यवाद कैसे न करे। हां जी घूमना परस्थितियों पर ही निर्भर करता है, जैसे हमे ही देख लीजिए, इस साल पूरा साल अब लगभग गुजरने को आया, एक दिन के लिए भी कहीं नहीं गए हैं। पहले घर-परिवार, नौकरी तब घुमक्कड़ी। नौकरी और परिवार है तो सब कुछ है।
Deleteबहुत हि सुन्दर और सटीक रूप से अपने ॐकार ज़ी महाराज परिक्रमा पथ समझया मे हार बार जाता हू हर श्रवण सोमवार लेकिन आज तक इन सभी स्तंभ महल के बारे मे नहिं जानता था आप ने बताया बहुत अछा लगा आपका धन्यवाद सा
ReplyDeleteठा.राहुल सिंह चिचली
जय राजपूताना संघ खरगोन मध्यप्रदेश आयोजक
mob 7898945444
बहुत बहुत धन्यवाद आपको
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