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Wednesday, November 27, 2019

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)




दद्दा चंद्रेश कुमार (Chandresh Kumar) जी आपने मुझे सिक्किम का सपना दिखाकर यूं ही पागल बना दिया। और तब से हमें घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने आने लगे हैं। उन सपनों में से एक सपना यह भी है। एक दिन सुबह सुबह हम आॅफिस के लिए निकले और डीटीसी की प्रशीतक यंत्र वाली लाल बस पर बैठते ही हमने एक हसीन सपना देखा। हमने देखा कि मेरा मन कहीं घूमने का हो रहा है और हम बहुत जल्द कहीं घूमने निकल जाएं। बहुत दिमाग लगाने के बाद हमने रेल का टिकट कटाया और और हवाई अड्डे पहुंचकर बोर्डिंग पास लेकर ट्रैक्टर में सवार होकर बालू की लहरों पर अपने साइकिल के पतवार को चलाते हुए समुद्री रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी ऐसा लगा कि जैसे हमारे बाइक का पहिया पंक्चर हो गया और एक परचून की दुकान पर जाकर एलपीजी डलवाया और पहुंच गए गुजरात की बर्फीली वादियों में और वहां से देखा तो महाराष्ट्र के एक कोने में बैठा चौखम्भा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा। हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि एवरेस्ट रास्ते में बैठा मेरा इंतजार कर रहा है फिर हम उससे कुछ बातें करने के बाद चल पड़े केरल की तरफ और वहां देखा कि कंचनजंघा चोटी पर बादलों ने बसेरा बसा लिया है और वहां मेरा मन वहां नहीं लगा तो हम वहीं से सीधा अपनी बैलगाड़ी के काॅकपिट में गए और बैलगाड़ी को पहाड़ी रास्ते के ढलान पर लुढ़काते हुए सीधा दिल्ली पहुंच गए।

Sunday, April 21, 2019

हिमालय (Himalaya)

हिमालय (Himalaya)






बचपन से तुम्हारे बारे में सुना करता था, कभी किताबों में पढ़ता था, तो कभी अखबारों में देखता था, तो कभी बड़े-बुजुर्गों से तुम्हारे बारे में सुना करता था, पर तुमको कभी देख नहीं पाया था। बस मन ही मन महसूस करता था कि तुम कैसे दिखते होगे, कितने खूबसूरत होगे, तुमको देखकर कैसा लगता होगा। तुम्हारा नाम जब भी कोई लेता था मन में एक जिज्ञासा उठती थी आखिर ऐसा क्या है जो तुम इतना लुभाते हो सबको। तुमसे मिलने की ईच्छा लिए कई बार घर से भी भागा पर तुम तक पहुंच नहीं पाया। कभी कलकत्ता तो कभी बनारस, कभी गया तो कभी देवघर, कभी पटना तो कभी सुल्तानगंज, कभी रांची तो कभी बोकारो, कभी राजगीर तो कभी गिरियक, कभी यहां तो कभी वहां, कभी ईधर तो कभी उधर--कहां कहां नहीं गया तुमसे मिलने के लिए, लेकिन तुम इतने दूर बैठे थे कि मैं तुम तक कभी पहुंच ही नहीं पाता था। तुमसे मिलने की आस में आधी से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर पर तुम नहीं मिले।

Thursday, January 17, 2019

घुमक्कड़ (Traveller)

घुमक्कड़ (Traveller)




एक घुमक्कड़ हमेशा एक सफर में रहना चाहता है और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलता ही रहना चाहता है। उसे मंजिल नहीं चाहिए होता है उसे तो रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते उसके लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव। वह चलता रहना चाहता है और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहता है। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें उसे दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में वो बस चलता रहता है, उससे मिलने के लिए। वह बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहता है और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेना चाहता है।

Tuesday, January 15, 2019

रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)

रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)




बिछड़े हुए दो प्रेमी : रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)कितनी अजीब बात है न, हम दोनों ने एक ही जगह से अलग-अलग दिशाओं में सफर करना आरंभ किया था और सोचे थे कि चलते चलते एक न एक दिन कहीं मिल जाएंगे। मिलने की उम्मीद में बस चले ही जा रहे थे कि सहसा ही हमारे कदम रुक गए थे। हमने पीछे मुड़कर देखा था कि जरूर तुम भी मुझे पीछे मुड़कर देख रहे होगे और बहुत खुशी हुई थी कि ये देखकर कि तुम भी मुझे ठीक वैसे ही देख रहे हो जैसे हम तुमको देख रहे हैं। हम सोच रहे थे कि तुम वापस आओगे और तुम सोच रहे थे हम वापस आएंगे और इसी सोच में न जाने कब हम दोनों ही अपने स्थान पर जड़बद्ध हो गए पता ही नहीं चला।

Monday, January 14, 2019

रास्ता (Way)

रास्ता (Way)



जब हम कहीं किसी सफर पर निकलते हैं तो बस दो चीजें ही ध्यान में रहती है कि कहां से चलना है और कहां जाना है। यहां से वहां तक और फिर वहां से वहां तक। पर कुछ दीवाने हमारे और आप जैसे भी होते हैं जिनका ध्यान यहां से वहां तक बहुत कम होता है। उनको ध्यान तो यहां से वहां के बीच पड़ने वाले रास्ते पर होता है। जो रोमांच रास्तों को देखकर होता है वो मंजिल पर पहुंचकर नहीं। मंजिल तक पहुंचकर तो सफर समाप्त हो जाता है। रास्ते तो बस चलते रहते हैं जो कभी खत्म नहीं होता। जो खूबसूरती किसी सफर में रास्ते में दिखाई देती है वो मंजिल पर पहुंचकर नहीं। मंजिल तो बस एक विश्रामस्थल है जहां कुछ देर रुकना फिर आगे चल पड़ना है।