घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)
दद्दा चंद्रेश कुमार (Chandresh Kumar) जी आपने मुझे सिक्किम का सपना दिखाकर यूं ही पागल बना दिया। और तब से हमें घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने आने लगे हैं। उन सपनों में से एक सपना यह भी है। एक दिन सुबह सुबह हम आॅफिस के लिए निकले और डीटीसी की प्रशीतक यंत्र वाली लाल बस पर बैठते ही हमने एक हसीन सपना देखा। हमने देखा कि मेरा मन कहीं घूमने का हो रहा है और हम बहुत जल्द कहीं घूमने निकल जाएं। बहुत दिमाग लगाने के बाद हमने रेल का टिकट कटाया और और हवाई अड्डे पहुंचकर बोर्डिंग पास लेकर ट्रैक्टर में सवार होकर बालू की लहरों पर अपने साइकिल के पतवार को चलाते हुए समुद्री रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी ऐसा लगा कि जैसे हमारे बाइक का पहिया पंक्चर हो गया और एक परचून की दुकान पर जाकर एलपीजी डलवाया और पहुंच गए गुजरात की बर्फीली वादियों में और वहां से देखा तो महाराष्ट्र के एक कोने में बैठा चौखम्भा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा। हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि एवरेस्ट रास्ते में बैठा मेरा इंतजार कर रहा है फिर हम उससे कुछ बातें करने के बाद चल पड़े केरल की तरफ और वहां देखा कि कंचनजंघा चोटी पर बादलों ने बसेरा बसा लिया है और वहां मेरा मन वहां नहीं लगा तो हम वहीं से सीधा अपनी बैलगाड़ी के काॅकपिट में गए और बैलगाड़ी को पहाड़ी रास्ते के ढलान पर लुढ़काते हुए सीधा दिल्ली पहुंच गए।