Sunday, April 21, 2019

हिमालय (Himalaya)

हिमालय (Himalaya)






बचपन से तुम्हारे बारे में सुना करता था, कभी किताबों में पढ़ता था, तो कभी अखबारों में देखता था, तो कभी बड़े-बुजुर्गों से तुम्हारे बारे में सुना करता था, पर तुमको कभी देख नहीं पाया था। बस मन ही मन महसूस करता था कि तुम कैसे दिखते होगे, कितने खूबसूरत होगे, तुमको देखकर कैसा लगता होगा। तुम्हारा नाम जब भी कोई लेता था मन में एक जिज्ञासा उठती थी आखिर ऐसा क्या है जो तुम इतना लुभाते हो सबको। तुमसे मिलने की ईच्छा लिए कई बार घर से भी भागा पर तुम तक पहुंच नहीं पाया। कभी कलकत्ता तो कभी बनारस, कभी गया तो कभी देवघर, कभी पटना तो कभी सुल्तानगंज, कभी रांची तो कभी बोकारो, कभी राजगीर तो कभी गिरियक, कभी यहां तो कभी वहां, कभी ईधर तो कभी उधर--कहां कहां नहीं गया तुमसे मिलने के लिए, लेकिन तुम इतने दूर बैठे थे कि मैं तुम तक कभी पहुंच ही नहीं पाता था। तुमसे मिलने की आस में आधी से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर पर तुम नहीं मिले।


फिर वो समय भी आया जब मैं तुमसे मिलने आया, पर तुम्हारे नखरे देखकर ही तुमसे प्यार हो गया। पहले तो दूर से ही तुमने थोड़ा सा अपना मुखड़ा दिखाया फिर बादल और बरसात की धानी चुनरी ओढ़कर छुप गए। दिन भर तेरे इंतजार में बैठा रहा पर तुम न दिखे, हमने रात भी तुमसे मिलने की आस में तुम्हारे ही पनाहों में गुजार दिया तो सुबह तुम हंसते-मुस्कुराते दिख गए। तुमको देखकर हमारे तो होश ही उड़ गए थे, बस देखता ही रह गया था तुमको, खो गया था तुम्हारे खयालों में, आश्चर्यचकित रह गया था मैं तुम्हारी सुंदरता देखकर। तुमको देखते ही तुझमें ऐसे खो गया था जैसे भंवरा खिले फूल को देखकर खो जाता है। मैं इस कदर खो गया था, वापस आना नहीं चाहता था फिर भी आना पड़ा था वापस मुझे तुमसे अलग होकर, हो जाना था दूर तुमसे मिलने से पहले ही बस एक नजर देखकर। 

वापस आ तो गया पर मन नहीं लगा तुम्हारे बिना। कुछ दिन बाद फिर तुमको देखने के लिए गया और इस बार फिर से तुमने अपना एक अलग ही रूप, अलग की रंग दिखाया मुझे। तुमको पास जाकर छू लेने का मन करता था पर तुम पास होकर भी इतने दूर इतने दूर होते कि छूना तो दूर की बात, छूने की सोच भी नहीं सकते थे। इस बार भी तुमको देखकर वापस आ गया फिर बार-बार जाने लगा तुमसे मिलने। जितनी बार तुमसे मिलने गया उतना ही तुझमें खोता गया। ऐसे ही दिन गुजरते गए और एक बार फिर मैं तुमसे मिलने आया पर तुम इतने नाराज, इतने रुष्ट थे और बादलों की ओट में ऐसे छुपे, ऐसे छुपे कि एक बार भी बाहर ही नहीं निकले। कई दिन और कई रात मैं तुम्हारी पनाहों में ही रहकर तुमसे मिलने के लिए तरसता रहा, पुकारता रहा, तड़पता रहा पर तुम निष्ठुर बने छुपे ही रहे, एक पल के भी मेरे नजरों के सामने न आए। 

कितना मनाया, कितने वादे किए पर तुम बाहर निकले ही नहीं। खैर तुमको नहीं निकलना था और न ही तुम बाहर निकले लेकिन तुमने छुपे रहकर भी मुझे बहुत कुछ दिया। इतना दिया, इतना दिया कि हम बस समेटते ही रह गए और तुम लुटाते रह गए। समय के साथ-साथ मेरा तुमसे प्रेम और गहरा होता गया, मैं अब मैं न रहकर तुममें समाहित होने लग गया था। ऐसे ही समय बीतता रहा और कुछ दिन बाद बार फिर मैं तुमसे मिलने गया और इस बार तुम इतने खुश थे, इतने खुश थे, इतने खुश थे कि मेरे तो जीवन के सारे अरमान ही तुमने पूरे कर दिए। 

जितना सोच कर गया था उससे लाख गुना ज्यादा तुमने मुझे दिया। इतना दिया, इतना दिया कि उसे समेटने में, संभालने में मेरा दामन छोटा पड़ गया। तुम बस देते जा रहे थे और मैं सब कुछ अपनी खाली झोली में भरता जा रहा था, भरता जा रहा था। इस बार तो तुमने इतना दिया कि मेरी झोली भर गई पर तुम्हारी झोली के अनमोल रत्न कम नहीं हुए। तुमने मेरे झोली में इतने अनमोल रत्न दिए कि हर दिन अकेले में उन रत्नों को देखकर खुश हो लेता हूं, झूम लेता हूं। उसके बाद से न जाने कितनी बार तुमसे मिलने गया हूं और हर बार तुमने अपना प्यार मुझ पर दिल खोलकर लुटाया है। तुम तक पहुंचने भर की देरी होती है उसके बाद मैं तुम्हें अपनी नजरों के रास्ते दिल की गहराइयों में उतारता रहता हूं। सुबह से शाम, शाम से रात और रात से फिर सुबह हो जाती है पर मेरी नजरें तो बस तुम पर टिकी रहती है। इतनी बार मिलने के बाद भी मिलन अभी अधूरा है। अब तम बस मेरा एक ख्वाब पूरा कर दो, कभी छू लेने तो अपने ठंडे बदन को खेल लेने दो अपने उन बर्फ के खिलौने से जो तुमने अपने दामन में छुपा रखा है। अब तो बस यही कहना है कि तुम्हें छूने को दिल करे, तुम्हें पानेको दिल करे।  बोलो ना, कब आऊं तुमसे मिलने, बोला ना प्लीज एक बार तो कुछ बोल दो, क्यों तड़पाते हो इतना तुम मुझे। बुला लो एक बार अपने इतने पास कि छू लूं तुम्हें, छूकर देख सकूं तुमको, मिल जाऊं तुममे। बोलो ना................

चौखम्भा एक ऐसा नाम है जो हर किसी के जबान पर सबसे पहले आता है और आए भी क्यों न!! ये है ही ऐसा मनोहारी कि हर कोई बरबस ही इसकी ओर खींचे चले आते हैं। ये चौखम्भा न जाने कहां कहां से दिखता है, जहां से देखा चौखम्भा! करीब 2800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सनियारा बुगियाल से चौखम्भा का ये मनोहारी दृश्य जिसने भी देखा वो इसे बस देखता ही रह गया। सुबह ही पहली किरण जब चौखम्भा पर्वत पर पड़ रही थी तो ऐसा लग रहा था कि जैसे सफेद बर्फ से ढंके पहाड़ पर स्वर्ण वर्षा हो रही हो। धीरे धीरे पहाड़ सुनहरे रंग में रंगने लगा। मन का मयूर नाच रहा था कि काश ये दृश्य हर पल आंखों के सामने रहे पर ऐसा हो न सका और जल्दी ही सूर्य देवता का सुनहरा प्रकाश दूधिया रोशनी में बदल गई।








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