Thursday, April 25, 2019

रात में चोपता से चंद्रशिला (Chopta to Chandrashila in the Night)

रात में चोपता से चंद्रशिला
(Chopta to Chandrashila in the Night)







चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला श्रृंखला के इस पोस्ट में आइए हम आपको चोपता से लेकर चंद्रशिला तक की यात्रा (नवम्बर 2017) करवाते हैं। रात के दो बज रहे थे और सभी साथी चोपता के एक बुगियाल में अपने अपने घोसले (टेंट) में नींद की आगोश में लिपटे हुए हसीन सपने में खोए हुए सो रहे थे। तभी अचानक से मोबाइल का अलार्म बजता है और किसी एक की नींद में खलल उत्पन्न होता है और वह नींद के थैले (स्लीपिंग बैग) के अंदर से ही उसी घोसले में अपने साथ सो रहे तीन और साथियों को हिला-डुला कर और कुछ आवाज लगाकर जगाता है। कुछ आंखें खुलती है तो कुछ बंद ही रहती है लेकिन जगाने वाला भी जिद में था कि जगा कर ही छोड़ना और आखिरकार सबको जगाकर ही वो रुकता है।

इसके बाद सिलसिला शुरू होता है दूसरे घोंसले में सो रहे पक्षियों को जगाने का। कुछ घोसेले से सोए हुए पक्षियों की मीठी आवाजें (खर्राटे की आवाज) आ रही थी तो कुछ घोसले में बिल्कुल ही खामोशी छाई हुई थी। शाम को जितने लोगों ने चंद्रशिला जाने के लिए हामी भरा था उन सबको एक-एक कर जगाने का दौर शुरू हो चुका था। धीरे धीरे करते हुए सबको जगा दिया जाता है। पर क्या कहें नींद माता की खुमारी सब पर ऐसे छाई हुई थी कि एक को जगाओ तो दूजा सो जाता है और यही हो रहा था कि एक को जगाते ही दूसरे नींद की शरण में चले जाते।

अंत में धमकियों का दौर आरंभ हुआ कि अब जो नहीं जागेगा उसके ऊपर ठंडे ठंडे पानी के छींटे मारे जाएंगे। अब एक तो शून्य का तापमान और उसके ऊपर से पानी के छींटे में कौन भीगना चाहेगा और सब जल्दी से जागकर तैयार भी हो गए। कुछ साथी तो तैयार होने के बाद भी मना कर दिए कि नहीं जाएंगे। उन मना करने वाले सदस्यों में प्रतीक गांधी 10 सीजीपीए अंक के साथ सबसे ऊपरी क्रम पर विराजमान थे। जिन लोगों ने मना किया उन सभी को छोड़कर कुल 13 लोग (संजय कौशिक, रितेश गुप्ता, संगीता बलोदी, चारु दूबे, मनोज धाड़से, आलोक जोशी, रोहित दुधवे, कपिल चौधरी, अनुराग चतुर्वेदी, नितिन शर्मा, अभ्यानन्द सिन्हा, बीरेंद्र कुमार और नरेंद्र चौहान) चोपता से तुंगनाथ की तरफ चले। योजना थी कि 9 बजे तक चंद्रशिला तक जाकर वापस चोपता वापस आ जाना है।

3 बज चुके थे। चारों तरफ घुप्प अंधेरा फैला हुआ था, कहीं से किसी झींगुर के बोलने तक भी आवाज नहीं आ रही थी। हर तरफ सब कुछ बिल्कुल नीरवता धारण किए हुआ था। केवल हवा की सांय सांय करती आवाजें थी। ठंड से हाथ-पैर की उंगलियां भी काम नहीं कर रही थी। एक तो दुमास और उसके ऊपर से खरमास भी आ जाए तो सोचिए कैसा लगेगा ठीक उसी तरह एक तो कड़ाके की ठंड और उसके ऊपर से तीर चुभाती ठंडी हवा जान लेने पर आतुर थी। ठंड का आलम ये था कि इंसान तो क्या खुद जो चंदा मामा जो शाम से आधा दिख रहे थे वो भी बादलों का कम्बल ओढ़कर तकिया लगाकर सो गए।

कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा की तर्ज पर हम सब भी कदम कदम बढ़ाते हुए तुंगनाथ की तरफ चलते चले जा रहे थे। यहां एक बार पहले भी आ चुके थे इसलिए रास्ते की कठिनाइयां का आभास तो पहले से था ही। यहां पर हम लोगों के सोने पर सुहागा का जो अर्थ निकलता है उसके विपरीत अर्थ के वाक्य हम लोगों के लिए फिट बैठ रहे थे। कड़ाके की ठंड, घना अंधेरा, तीर की तरह चुभती सर्द हवाएं, कठिन रास्ता और उसके ऊपर से एक दिन पहले सनियारा की थका देने वाली चढ़ाई उतराई की थकान ने इस सफर को बहुत ही मुश्किल बना दिया था। फिर भी सारी मुश्किलों को पार करते हुए हम लोग अंधेरा रहते ही तुंगनाथ मंदिर तक पहुंच गए थे।

यहां आकर संगीता दीदी, अनुराग और चारु दुबे ने हाथ खड़े कर दिए कि अब यहां से आगे नहीं हम नहीं जा पाएंगे तो उन लोगों के साथ संजय कौशिक जी और रितेश गुप्ता जी भी वहीं तुंगनाथ पर ही रुक गए। 13 में से पांच लोग इसी स्टेशन पर विश्राम करने लगे और बाकी 8 लोग चंद्रशिला की तरफ बढ़ गए। अभी भी अंधेरा हम लोगों के साथ ही चल रहा था। चोपता से जो उसने हम लोगों को पकड़ा वो अभी तक साथ नहीं छोड़ा था। हमने कई बार सोचा कि इस अंधेरे को यहीं छोड़कर जाएं पर वो मानने के लिए तैयार नहीं था, हर बार एक ही जवाब देता कि अगर हमने साथ छोड़ दिया तो जो आप लोग चंद्रशिला पर जो देखने जा रहे हो वो नहीं मिलेगा, इसलिए मैं वहीं जाकर तुम्हारा साथ छोड़ूगा।

तुंगनाथ से चंद्रशिला के रास्ते में हम सबने अभी आधी दूरी भी तय नहीं किया होगा कि एक साथी रोहित दुधवे ने और आगे जाने से मना कर दिया कि अब हमसे नहीं चला जाएगा और हम यहीं रुकेंगे या वापस तुंगनाथ मंदिर के पास जाकर आपका इंतजार करेंगे जहां पहले से ही पांच लोग थे। रोहित जी के मना करने के बाद अब हम सात लोग थे जो चंद्रशिला तक जाने वाले थे और अंधेरा खत्म होने से पहले हम लोग चंद्रशिला तक पहुंच गए थे। हम लोगों के वहां पहुंचते ही अंधेरे ने भी हम लोगों का साथ छोड़ दिया। चोपता से लेकर तुंगनाथ और ऊपर चंद्रशिला तक रास्ते में जो नजारे मिलते हैं और वहां पहुंचकर जो दौलत हासिल होती है वो दुनिया के किसी खजाने में समाहित नहीं हो सकता। चाहे आप जिस मौसम में चले जाओ आप वहां जाकर दिल खोकर ही आओगे। वहां की लुटेरी हवा आपका दिल हर हाल में लूट लेगी।

पिछली बार जब यहां आए थे बरसात का मौसम था और बादल भैया और बरखा दीदी के डर के कारण सूरज बाबा अपने घर से बाहर नहीं निकले और हम बिना उनके दर्शन के ही वापस चले गए थे। लेकिन इस बार मौसम अलग था। चारों तरफ हिमालय की मनोहारी वादियां दिखाई दे रही थी। जिधर भी नजर करते उधर बस पहाड़ और घाटियां ही थी। एक तरफ चौखम्भा भी सीना तान कर खड़ा था और हम लोगों के साथ साथ उसे भी सूरज बाबा का इंतजार था। कुछ ही मिनट पश्चिम दिशा में स्थित चौखम्भा के बदलते रंग को देखकर ये अहसास हो गया था कि पूरब से सूरज बाबा अपने रथ पर सवार होकर हमें दर्शन देने के लिए चल चुके हैं। अब तक जो चौखम्भा सफेद बर्फ से रुपहले रंग में चमक रहा था, सूरज की रोशनी पड़ते ही वो सुनहरे रंग में रंगने लगा था।

चौखम्भा को इस रूप में देखकर यही प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा आईसक्रीम हो और किसी ने उसके ऊपर लाल सीरप या लाल-लाल चेरी के टुकड़े बिखरा दिया हो। इस समय हम सबका मन बिल्कुल आह्लादित था, जिधर भी हम नजर घुमा रहे थे उधर बस रंग ही रंग दिखाई पड़ रहे थे। उसी दिन तुंगनाथ से चंद्रशिला तक हल्की बर्फबारी भी हुई थी ओस भी जमे हुए थे और इन पर भी सूर्य की रोशनी पड़ रही थी। घास पर जमे हुए ओस पर जब सूरज की रोशनी पड़ रही थी तो ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हमारे स्वागत में किसी ने हर जगह सुनहरे मोती बिखरा दिए हों। कुछ ही समय में सूरज का सुनहरा प्रकाश दुधिया रोशनी में बदल गया और चौखम्भा फिर से सफेद हो गया और उधर पूरब दिशा से सूरज जी का रथ आगे बढ़ता हुआ चला आ रहा था। पहाड़ के एक कटे हुए हिस्से से सूरज बाबा धीरे धीरे दिखाई देने लगे थे और कुछ ही पलों में चांदी सा चमकता हुए एक थाल हमारी आंखों के सामने आ चुका था।

सूरज की रोशनी पड़ते ही हरी वादियां खुशी से झूम उठी थी। दूर दूर तक जहां तक नजर जा रही थी बस घाटियां ही घाटियां हमारा स्वागत कर रही थी। इन दृश्यों को देखकर पिछली बार इन दृश्यों से वंचित रहने का जो दुख था वो आज दूर हो चुका था। धीर धीरे सूरज बाबा ऊपर आते जा रहे थे और मौसम में जो ठंडक थी वो अब धीरे धीरे कम होने लगी थी और हम सब भी वहां से अब वापस तुंगनाथ की तरफ चल पड़े थे। चंद्रशिला से वापसी में फोटो वोटो के चक्कर में हम थोड़ा पीछे हो गए और हमारे साथी आगे बढ़ चुके थे। कभी हम आगे जा रहे साथियों को देखते तो कभी फोटो खींचते, कभी उन सुनहरे और मनोहारी वादियों को देखते तो कभी चंद्रशिला की तरफ देखते कि पता नहीं अब फिर कब आएंगे और इसी कशमकश में हमारा पैर रास्ते से हटकर घास पर पर पड़ गया और जमे हुए ओस के कारण जो पैर फिसला तो एक ही बार बिना कोई कदम बढ़ाए करीब 30 फीट नीचे घिसटते हुए चले आए। उस समय मेरे दाएं हाथ में लाल कैमरा और बाएं हाथ में छोटा कैमरा था लेकिन दोनों कैमरों का कोई नुकसान नहीं पहुंचा पर जो हुआ वो भी कम नहीं था।

घिसटते हुए नीचे आने से बाएं हाथ की कलाई में मुड़ गई था और मुंह में भी जोर-शोर से चोट लगी थी। घिसटने से पीठ में भी हलकी चोट लगी थी। गिरे गिरे नजर दौड़ाया तो देखा कि सभी साथी लगभग नीचे पहुंच चुके हैं मतलब कि हमें कोई उठाने नहीं आएगा। किसी तरह उठे और धीरे धीरे कदम बढ़ाकर उतरने लगे। कुछ कदम नीचे आते ही ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कि कुछ छूट गया है। देखा तो सिर से टोपी और आंखों से चश्मा गायब था। नजरें ऊपर उठाकर देखा तो टोपी दूर खड़ा मुस्कुरा रहा था और चश्मा कराह रहा था। अब इतनी हिम्मत नहीं बची थी कि फिर से सौ-डेढ़ सौ फीट ऊपर जाकर टोपी-चश्मा लाने जाएं इसलिए उसे वहीं पड़ा रहने दिया और हम नीचे की तरफ चल दिए। मन तो कर रहा था कि सभी साथियों को जी भर कर गाली दूं पर अगर गाली देता तो हिमालय की उस सुनसान वादियों में वो केवल हम ही सुन पाते और साथी तो सुनते ही नहीं इसलिए गाली देने का मन बदलकर तेज कदमों से चलते हुए हम भी उन लोगों के पास आए।

वापस तुंगनाथ पहुंचकर कुछ देर यहां बिताकर वापस चोपता की तरफ चल पड़े और संजय कौशिक जी ने वापस आने की जो समय सीमा तय किया था उससे दो मिनट पहले हम सब चोपता पहुंच गए थे। इन्हीं शब्दों के साथ चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला यज्ञ की एक और आहूति के साथ हम विदा लेते हैं।

हर हर महादेव।

चोपता से सूर्यास्त का एक सुनहरा नजारा


सूर्योदय के समय चौखम्भा पर स्वर्ण वर्षा


चंद्रशिला से सूर्योदय का एक रुपहला नजारा


चोपता से दिखाई देता मनभावन हिमालय



सूर्योदय के समय चंद्रशिला का रुपहला संग सुनहरा दृश्य

6 comments:

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    1. आपकी ये टिप्पणी मेरे समझ से बाहर है। ब्लाॅग पर आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  2. आकर्षक छवि के साथ सुंदर पोस्ट। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. आह लगेगी आह, पाप लगेगा पाप।
    ठीक उसी तरह जैसे किसी प्यासे के हाथ से पानी छीन लेने पर लगता है; भूखे के आगे से खाना छीन लेने पर लगता है। आपने भी ठीक वही काम किया है, पढ़ने वाले के आगे से लेख छीन लिया है, और ये आह आपको जरूर लगेगी।
    बहुत दिनों से मैं आपके ब्लाॅग पर आ रही हूं पर कोई नया लेख नहीं आ रहा। आपके यात्रा विवरण पढ़कर ऐसा लगता था जैसे हम खुद इस यात्रा के सहयात्री हों। मैं अपने फ्रेंड सर्किल में भी कइयों को भी आपके इस ब्लाॅग के बारे में बताया तो वे लोग भी पढ़ने लगे थे। पर अचानक ही ब्लाॅग पर नए पोस्ट आने बंद हो गए। पहले तो ऐसा लगा कि व्यस्तता के कारण कोई पोस्ट नहीं आ रहा हो, पर इंतजार की भी एक हद होती है; दिन, सप्ताह, महीने बीत गए पर कोई लेख नहीं आया, फिर भी आश लगी रही। फिर बीता साल और अब साल भी बदलकर दूसरे साल में आ चुका है लेकिन कोई पोस्ट नहीं। ये तो वही बात हो गई न कि किसी को कोई चीज दिखाकर छिपा देना। मत लिखिए श्रीमान, मत लिखिए, बिल्कुल भी मत लिखिए, पर आह लगेगी तो पता लगेगा कि किसी ने कमेंट करके चेतावनी दी थी। अभी कुछ नहीं बिगड़ा है अब भी मौका है लिखना शुरू करिए और आह से बचे रहिए, वरना आह लगती रहेगी। आह से बचना चाहते हैं तो लिखना शुरू करें, श्रीमान, तो मैं अपने आह वापस ले लूंगी।
    अगर आप हर्ट हुए हों तो साॅरी!!!!! मेरा इरादा, मेरा इनटेंशन आपको हर्ट करने का नहीं है, लिखने के लिए कहना है।
    कठोर शब्दों के लिए साॅरी, पर पाठकों की प्यास को अपने लेखों से शांत करने का काम लिखने वाले का होता है, इसलिए लिखते रहिए और हमें भी पढ़ने का मौका देते रहिए।
    साॅरी वनस अगेन, साॅरी वनस अगेन।
    Sorry one again and Sorry one again.........................

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    1. आह लगेगी आह, पाप लगेगा पाप।
      मैंने कभी सोचा भी न था कि मेरे ब्लाॅग पर कोई इतना बड़ा कमेंट करेगा/करेगी।
      भाइयो/बहनों जो कोई भी धन्यवाद, दिल खुश हो गया आपका ये कमेंट देखकर।
      कितनी प्रसन्नता हो रही है इस कमेंट को देखकर बता नहीं सकता, दिल गद्गद् हो गया।
      आप जो कोई भी हो ढेर सारा धन्यवाद आपको।

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