Sunday, February 2, 2020

बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)

बचपन का बागी घुमक्कड़-2 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-2)



शिव के प्रति आस्था तो मेरे मन में बचपन से ही थी। सावन आने के कुछ दिन पहले से ही गांव शिवमय हो जाता था। जहां सभी महिलाएं गांव के शिवालय में हर दिन महादेव पर जल चढ़ाने जाती थीं वहीं गांव के बहुत सारे पुरुष कांवड़ लेकर बाबा के नगरिया बाबाधाम जाते थे और उन जाने वाले लोगों में मेरे पिताजी भी हुआ करते थे। सभी के देवघर से लौटने तक प्रसाद का इंतजार करते थे। जाने के करीब सप्ताह भर बाद सब लौट कर आते तो मकोनदाना, चूड़ा, बेलचूर्ण और पेड़ा दम भर खाते थे। वैसे चूड़ा शब्द आया तो एक बात है कि देवघर जैसा स्वादिष्ट चूड़ा और और पेड़ा दुनिया में कहीं नहीं मिलता होगा।

बचपन का बागी घुमक्कड़-1 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-1)

बचपन का बागी घुमक्कड़-1 (Bachapan ka Bagi Ghumakkad-1)




वो बचपन के दिन भी कितने कितने प्यारे थे। जब स्कूल में गर्मी की की छुट्टियां होती थी तो सभी भाई कोई नाना के घर, कोई मौसी के यहां तो कोई बुआ के यहां चले जाते थे और हम अकेले ही बिना टिकट के बिहार शरीफ से पटना अपने बड़का बाबू (बड़े पापा) के यहां चले जाते थे। वहां जाते ही सबसे पहले कहते थे कि बस से आया या रेल से तो मैं कहता था कि रेल से आया, फिर एक ही जवाब मिलता था उनकी तरफ से कि इस बार भी तू पक्का बिना टिकट के आया होगा। कितनी बार कहा हूं कि टिकट ले लिया कर पर मानता नहीं है, किसी दिन पकड़ लेगा टीटी तो हम लोग खोजते हुए परेशान होंगे। मैं कहता था कि बाऊजी कुछ नहीं होगा, टीटी पकड़ेगा तो भाग जाएंगे न और कहां ले जाएगा पकड़कर मुझे।