Friday, August 3, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर (Indore to Omkareshwar)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर 
(Indore to Omkareshwar)



अब तक के पिछले भागों में आपने पढ़ा कि किस तरह मैं उज्जैन के दर्शनीय स्थानों महाकालेश्वर मंदिर, विक्रमादित्य का टीला, हरसिद्धी मंदिर, भतृहरि गुफा, गढ़कालिका मंदिर, कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम आदि जगहों को देखने के बाद उज्जैन से इंदौर अपने घुमक्कड़ मित्र डाॅक्टर सुमीत शर्मा जी के यहां पहुंचा। उनके साथ वो प्यार भरी मुलाकात, अपने हाथों से परोसा कर खाना खिलाना और साथ में इंदौर के बाजार में रात्रि भ्रमण। इंदौर का पूरा सर्राफा बाजार घूम लेने के बाद जब हमने कुछ नहीं खाया तो उनका ये कहना कि कोई और होता तो इतना खाता कि उसे चार आदमी उठा कर ले जाते, पर आपने पूरा सर्राफा बाजार घूम लिया और खाने-पीने के नाम पर केवल आधा गिलास दूध। बाजार भी ये सोच रहा होगा कि इस खाऊ-पकाऊ गली में केवल खाने-पीने वाले लोग आते है, ये पहला अजूबा आदमी आया है जिसने कुछ नहीं खाया। अब उनको क्या बताते कि आपने अपने हाथों से थोड़ा और थोड़ा और करके जितना खिला दिया वो क्या कम था जो अब और खाते। पेट में एक दाने के लिए जगह नहीं थी तो कैसे खाते। खैर ये तो हो गई कल की बात। अब आगे की बात करते हैं।


आज की हमारी मंजिल इंदौर से चलकर ओंकारेश्वर तक पहुंचने की थी और उसके आगे का कुछ पता नहीं था कि ओंकारेश्वर के बाद मांडू या महेश्वर की ओर जाना है या वापस इंदौर की तरफ आना है। चलिए अब आगे के सफर पर ले चलते हैं। रात में इंदौर भ्रमण के पश्चात घर पर आकर सोने से पहले 5 बजे का अलार्म लगाकर सोया था और कब नींद आई थी कुछ पता नहीं चला था। खैर सुबह 5 बजे अलार्म बजते ही नींद खुली तो पांच मिनट और पांच मिनट और करते करते पंद्रह-बीस मिनट ऐसे ही निकल गए। पूरे दिन के आॅफिस की थकान, उसके बाद पूरी रात गाड़ी का सफर, उसके बाद पूरे दिन उज्जैन में घूमते घूमते ही बहुत ज्यादा थकान हो गई थी और उसके बाद रात में इंदौर भी घूमने निकल पड़े थे। एक तो थकान और उसके ऊपर से सोने में हुई देरी के कारण सुबह उठने का बिल्कुल भी मन नहीं हो रहा था, फिर करते भी क्या उठना तो था ही। किसी तरह करते करते साढ़े पांच बजे उठे और जल्दी जल्दी नहा-धो कर तैयार हुए तब तक डाॅक्टर बाबू भी जाग चुके थे और ईधर माता जी चाय-नाश्ते की तैयारी में लगी हुई थीं।

सारी तैयारी करने और नाश्ता करते करते करीब छह बज चुके थे। नाश्ता करने के दौरान ही सुमीत जी ने इंदौर से ओंकोरश्वर और आगे जहां भी जाना हो वहां तक जाने के लिए अपनी बुलेट ले जाने का आॅफर दिया। बुलेट चलाना मेरे लिए जहाज उड़ाने से कम नहीं था। एक तो मेरे पास बुलेट चलाने का अनुभव नहीं था, दूसरा नई जगह और नए रास्ते और तीसरा इंदौर से ओंकारेश्वर जाने में रास्ते में घाटियों से होकर गुजरती हुई सड़क। कुल मिलाकर कहें तो बुलेट की सवारी शान की सवारी मेरे लिए जान पर भारी हो जाती। वैसे भी बुलेट को मैं स्टैंड पर खड़ा नहीं कर पाता तो उसे चलाने का तो सोच भी नहीं सकता था। अतः बुलेट चलाने का अनुभव नहीं होने के कारण मेरे लिए बुलेट ले जाना संभव नहीं था, इसलिए मैंने डाॅक्टर बाबू को सारी मजबूरियां बताते हुए मना कर दिया कि एक तो मेरे पास बुलेट चलाने का अनुभव नहीं, उस पर अनजान और घुमावदार रास्ते, अगर कहीं गिर गए तो खुद उठेंगे या बुलेट को उठाएंगे इसलिए रहने दीजिए मैं बस से ही चला जाऊंगा। उसके बाद उन्होंने उसी बुलेट पर मुझे बैठाया और बस स्टेशन तक लेकर आए।

बस स्टेशन आते हुए रास्ते में हल्की बरसात भी होने लगी थी जो ज्यादा देर टिक नहीं सकी और स्टेशन पहुंचते पहुंचते ही बंद हो गई। स्टेशन पहुंचकर पहले तो ओंकारेश्वर जाने वाले बस की तलाश शुरू हुई और पूछने पर पता चला कि ओंकारेश्वर की कोई भी बस एक घंटे से पहले से नहीं है। अब एक घंटे इंतजार करना तो समय की बर्बादी ही होती तो करना यही था कि जो भी बस उस रास्ते की ओर जा रही हो उसी बस से चला जाए और फिर गाड़ी बदलकर ओंकारेश्वर पहुंचा जाए। वैसे ओंकोरेश्वर इंदौर से खंडवा जाने वाली सड़क पर पड़ने वाले मोरटक्का नामक जगह से करीब 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। हां तो हम बात कर रहे थे कि हम सीधे ओंकारेश्वर की बस की तलाश में थे जो कि मिली नहीं तो किसी और बस से जाने का तय किया। पास ही में एक खंडवा जाने वाली बस खड़ी थी। पूछने पर पता चला कि बस अभी पांच-दस मिनट में यहां से खंडवा के लिए प्रस्थान करेगी जो हमें मोरटक्का में उतार देगी और फिर वहां से मैं किसी भी गाड़ी से ओंकारेश्वर जा सकता हूं। मित्र सुमित शर्मा जी विदा लेकर और फिर जल्दी से मिलने का वादा करके हम बस में बैठ गए और डाॅक्टर बाबू (सुमित शर्मा जी) अपने बुलेट से अपने घर की तरफ प्रस्थान कर गए।

कुछ देर में ठीक 7ः30 बजे बस इंदौर से खंडवा के लिए प्रस्थान कर गई। हम खिड़की के सहारे सिर टिकाकर बाहर के नजारे का आनंद लेने लगे। करीब पंद्रह मिनट में बस इंदौर की खूबसूरत सड़कों से गुजरते हुए शहर से बाहर आ चुकी थी और शुरू हो चुका था एक रोमांच का सफर। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी। एक तो पहाड़, दूसरे हरे हरे पेड़ और तीसरे बरसात की हल्की हल्की फुहारें कुल मिलाकर मौसम बिल्कुल खुशनुमा हो चुका था। जहां कहीं भी कुछ फोटो लेने लायक दिखता तो मैं फोटो लेने की असफल कोशिश करता रहता। दाहिने तरफ बैठने पर मैं बहुत आसानी से चलती बस से भी फोटो ले लेता हूं पर यहां बाएं तरफ बैठ गया था। एक तो तरफ बाएं बैठ कर फोटो लेने में दिक्कत और उस पर चलते हुए बस से फोटो ले पाना संभव नहीं हो रहा था क्योंकि जब भी फोटो लेने की कोशिश करता चलती हुई बस के कारण हाथ हिल जाता और फोटो खराब हो जाती। खैर बस चलती रही और हम रास्ते को निहारते हुए बस में बैठे रहे। बस चलते हुए जब चारों तरफ हरे-हरे पहाड़ों से घिरे हुए घुमावदार रास्ते से जब गुजरने लगी तो उत्तराखंड की सड़कों की याद आने लगी और साथ ही यह भी याद आने लगा कि अच्छा हुआ जो सुमित जी के आग्रह करने पर भी हम बुलेट नहीं लाए वरना यहां आकर तो फंस ही जाते। ऐसे ही चलते हुए जब बस एक बड़े से नदी को पार करने लगी तो मेरे मन में उस नदी का नाम जानने की उत्सुकता हुई। सोचा कि साथ बैठे यात्री से पूछ लूं कि ये कौन सी नदी है पर साथ वाली सीट पर जो सहयात्री थी वो लड़की थी इसलिए पूछ नहीं पा रहा था। मैंने खिड़की से नदी और कुछ दूर बने एक और पुल का फोटो लिया तो उसने ही कह दिया कि इंदौर से यहां तक आपने में बहुत सारे फोटो लिए हैं। इतने सारे फोटो का आप करते क्या हैं। मैंने उनको इतना ही जवाब दिया कि करते कुछ नहीं हैं बस कभी कभी खाली बैठे होते हैं तो फोटो को देखकर अपनी की गई यात्राओं को याद करते हैं। मेरी बात का उसने जवाब दिया कि हम भी कभी कभी सपरिवार कहीं जाते हैं तो केवल अपने ही फोटो लेते हैं, नदी, पहाड़, सड़कें, गाडि़यां, झरने आदि चीजों के फोटो हम लोग नहीं लेते, अब हम भी कोशिश करेंगे ऐसे फोटो लेने की।

अब जब बात हो गई तो नदी का नाम जानने की जो मन में उत्सुकता पैदा हुई थी उसे भी हम शांत कर लेना ही चाहते थे और आखिरकार पूछ ही दिए कि ये कौन सी नदी है तो जवाब मिला कि ये नर्मदा है। उसके बाद बातों का सिलसिला थोड़ा और चला कि कहां जा रहे हैं, कहां से आए हैं आदि आदि। उनके बारे में यही पता चला कि कल 15 अगस्त की छुट्टी है तो वो अपने किसी रिश्तेदार के यहां खंडवा जा रही है। फिर उनका सवाल था कि क्या आप भी खंडवा ही जा रहे हैं तो मैंने कहा कि नहीं मैं ओंकारेश्वर जा रहा हूं। फिर उन्होंने बताया कि आगे कुछ दूर बाद मोरटक्का नामक एक जगह आएगी, आप वहीं उतरकर ओंकारेश्वर जाने वाली कोई गाड़ी पकड़ लीजिएगा। वहां से ओंकारेश्वर ज्यादा दूर नहीं हैं, पंद्रह से बीस मिनट में आप पहुंच जाएंगे। करीब पांच मिनट बाद वो जगह आ गई जहां हमें उतरना था और हम उनको धन्यवाद कहते हुए बस से उतर गए। घड़ी देखा तो 9ः30 बज चुके थे और करीब दो घंटे का इंदौर से मोरटक्का तक सफर पूरा हुआ। बस से उतर कर हमने एक दुकान वाले से ओंकारेश्वर जाने वाली गाड़ी के बारे में पूछा तो बड़े ही विनम्रतापूर्वक उन्होंने उत्तर दिया कि आप यहीं खड़े रहिए। ओंकारेश्वर जाने वाली बस यहीं पर आएगी और कुछ कुछ देर में छोटी गाडि़यां भी आएंगी। करीब दो तीन मिनट बाद ही खंडवा की तरफ से एक बस आ गई जो ओंकारेश्वर जा रही थी। कुछ सवारियां बस से उतरी और उसके बाद मैं भी बस में एक सीट पर अपना कब्जा जमा लिया। बस यहां ज्यादा देर तक रुकी नहीं, सवारियां लेने के बाद ओंकारेश्वर की तरफ बढ़ गई। कंडक्टर जी आए और उनके पैसे देकर मैं चुपचाप बैठा रहा। करीब बीस मिनट के छोटे से सफर के बाद हम ओंकारेश्वर पहुंच गए।

ओंकारेश्वर में बस स्टेशन से घाट और मंदिर की दूरी करीब दो से तीन किलोमीटर है और बस स्टेशन से घाट (मंदिर) तक जाने के लिए आॅटो चलती है। मुझे भी बस से उतरते ही एक आॅटो मिल गई। सवारियां पूरी होने के बाद आॅटो चली और करीब दस मिनट में वहां पहुंच गए जहां जाने के लिए आए थे। इंदौर से चलकर यहां तक आने के सफर में करीब तीन घंटे से ज्यादा लगे और समय भी साढ़े दस हो गया था। यहां उतरते ही पहले तो दुकान वाले पीछे पड़ने लगे कि मेरे यहां से प्रसाद ले लीजिए और सामान रख दीजिए और शाम तक आप कभी भी आकर सामान ले जाइएगा। पर हमने कहीं अपना सामान नहीं रखा और सीधे नर्मदा घाट पर पहुंच गए और नहाने के लिए जगह तलाश करने लगे कि कहीं सामान रखकर वहीं पर नहा लें और अभी हम कोई नहाने की जगह खोजते हैं और आप भी तब तक आराम कर लीजिए। बस जल्दी ही मिलते हैं अगली पोस्ट के साथ जिसमें हम नर्मदा स्नान के बाद ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन के लिए ले चलेंगे और साथ ही मनोकामना पूर्ति परिक्रमा पथ की परिक्रमा भी करवाएंगे। तब के लिए आज्ञा दीजिए और हां पढ़ने के बाद बताइएगा जरूर कि ये लेख आपको कैसा लगा।

धन्यवाद।


कुछ बातें ओंकारेश्वर के बारे में


ओंकारेश्वर : ओंकारेश्वर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है जो नर्मदा और कावेरी (स्थानीय नदी) के संगम पर स्थित है और साथ ही भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक यहीं स्थित हैं। ओंकारेश्वर को ओमकार जी के नाम से भी जातना है। ओमकार शब्द कि उत्पत्ति ओम से हुई है। ओंकारेश्वर मंदिर के साथ साथ ममलेश्वर मंदिर और साथ ही परिक्रमा पथ पर बहुत सारे दर्शनीय स्थल हैं जो आप यहां आकर देख सकते है। माॅनसून में यहां की खूबसूरती और अधिक निखर जाती है।

ओंकारेश्वर नगर तीन पुरियों में विभक्त है। ब्रम्हपुरी : यहां दक्षिणी तट पर भगवान ब्रम्हा का एक मंदिर है। विष्णुपुरी : यहां पर भगवान विष्णु का मंदिर है। शिवपुरी : यहां भगवान ओंकारेश्वर का मन्दिर है।

ओंकारेश्वर के दर्शनीय स्थल : श्री ओंकारेश्वर मंदिर, श्री ममलेशवर मंदिर, झूला पुल, पंचमुखी गणेश मंदिर, वृहदेश्वर मंदिर, गोविन्देश्वर मंदिर एवं गुफा, अन्नपूर्णा मंदिर, महाकालेश्वर मंदिर, गुरुद्वारा ओंकारेश्वर साहिब, मनोकामना पूर्ति परिक्रमा पथ, ओंकारेश्वर बांध।

परिक्रमापथ पर पड़ने वाले कुछ मंदिर : ऋण मुक्तेश्वर मंदिर, गौरी सोमनाथ मंदिर, सिद्धनाथ मंदिर, आशापुरी देवी मंदिर, लेटे हनुमान मंदिर, चांद सूरज द्वार आदि।

ओंकारेश्वर में कुछ महत्वपूर्ण घाट : कोटि तीर्थ घाट, चक्र तीर्थ घाट, भैरों घाट, केवलराम घाटनागर घाट, ब्रह्मपुरी घाट, संगम घाट आदि।

कैसे जाएँ

रेल मार्ग : ओंकारेश्वर जाने के लिए सीधी रेल सेवा नहीं है और यहां पहुुंचने के लिए नजदीकी स्टेशन खंडवा और इंदौर है। खंडवा और इंदौर दोनों शहरों के लिए देश के सभी बड़े शहरों से रेल सेवा उपलब्ध है। इंदौर से ओंकोरश्वर की दूरी करीब 80 किलोमीटर और खंडवा से ओंकारेश्वर की दूरी करीब 70 किलोमीटर है।

वायु मार्ग : नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर है जो यहां से 80 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है।

सड़क मार्ग : सड़क मार्ग द्वारा ओंकारेश्वर जाने के लिए इंदौर, देवास, खंडवा, उज्जैन, आदि जगहों से नियमित बस सेवाएं हैं। अगर इन जगहों से सीधी बस नहीं मिले तो ओंकारेश्वर से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित मोरटकक्का नामक कस्बे से बहुतायत में गाडि़यां उपलब्ध है। मोरटक्का इंदौर से खंडवा जाने वाली सड़क पर स्थित है एक छोटा सा कस्बा है।

भ्रमण समय : ओंकारेश्वर आने के लिए आपको किसी खास मौसम की आवश्यकता नहीं है। आप यहां साल भर में कभी भी आ सकते हैं, लेकिन माॅनसून में यहां की धरती हरियाली की चुनरी ओढ़कर और भी खूबसूरत हो जाती है।

कहां ठहरे : कई प्राइवेट होटल धर्मशाला एवं धर्मशालाएं उपलब्ध हैं। होटलों और धर्मशालाओं के अलावा यहां कई ऐसे आश्रम भी हैं जहां यात्री आराम से ठहर सकते हैं। यहां हर बजट के लोगों के रहने के लिए आसानी से कमरे मिल जाते हैं। वैसे यहाँ ठहरने के लिए सबसे उपयुक्त और अच्छी जगह गजानन धर्मशाला सबसे अच्छा विकल्प है।




इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :





इंदौर का बस स्टेशन

हरियाली से भरा-पूरा रास्ते का एक दृश्य

हरियाली से भरा-पूरा रास्ते का एक दृश्य

हरियाली से भरा-पूरा रास्ते का एक दृश्य

घुमावदार सड़क पर गाडि़यों का काफिला

घुमावदार सड़क और हरियाली

हरियाली और रास्ता

घुमावदार सड़क पर गाडि़यों का काफिला

सड़क किनारे लगे पेड़ों का प्रतिबिम्ब बस की खिड़की के शीशे पर

रास्ते का एक दृश्य

एक बरसाती नदी

हरे-भरे खेत

हरे भरे खेत

हरे भरे खेत, पहाड़ और बादल

बिना हेलमेट चलने वाले लोगों का काफिला

नर्मदा का एक दृश्य

नर्मदा और उसके ऊपर बना पुल

नर्मदा और दूसरी तरफ एक घाट

नर्मदा में एक नाव और नाविक

नर्मदा और उसके ऊपर बना पुल

मोरटक्का से ओंकारेश्वर की दूरी दर्शाता बोर्ड

मोरटक्का से ओंकारेश्वर जाने वाली सड़क


ओंकारेश्वर में नर्मदा पर बना पुराना पुल



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास





14 comments:

  1. वाह.. आपके यात्रा वर्णन का कोई काट नहीं.. if से लेकर but तक और A से लेकर Z तक सबकुछ मिल जाता है।
    आप खाऊ गली से बिना खाए लौट आए और मैं शहडोल और अमरकंटक में ही इतना खा चुका था की रिक्शा पर लाद कर होटल पहुँचता था।
    मुझे डाॅक्टर साब की बुलेट मिलती तो उसे लेकर मध्यप्रदेश की परिक्रमा करने चल देता.. अब तो बुलेट चलाना सीख ही डालिए। 😄😄😃

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी। ब्लाॅग पर आने के लिए और अपना कीमती समय देकर पढ़ने के लिए ढेर सारा धन्यवाद और अपनी सुंदर टिप्पणी से ब्लाॅग की शोभा बढ़ाने के लिए ढेर सारा धन्यवाद। यात्र विवरण के साथ कुछ जानकारियां देना इसलिए भी अच्छा रहता है कि पढ़ने वाले को ऐसी जानकारी मिल सके कि यदि वो वहां जाना चाहें या उनके कोई जानकार वहां जा रहे हों तो वो उनका मार्गदर्शन कर सकें। एक बार फिर से धन्यवाद।

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  2. वाह!! सर जी
    क्या बढिया लेख लिखा है आपने, आपका हर लेख दिल को छू जाता है। आपके लेखन में एक आकर्षण है।
    वैसे तो मैं भी कई बार इंदौर गया हूं और खाऊ गली गया हूँ , लेकिन अभी तक ओंकारेश्वर मंदिर नहीं जा पाया हूँ मगर अब आपका लेख पढ़ने के बाद मेरा भी मन कर रहा है कि भोले नाथ के दर्शन कर ही आऊ ।
    डॉ साहब के स्नेह और उनकी माता जी के हाथ का बना हुआ खाना था, सो ज्यादा तो खाना ही था क्योंकि यात्रा के दौरान बाहर का खाना तो आप खाते ही हैं ऐसा खाना तो कभी कभार ही मिलता है ।
    बस में बैठी महिला सहयात्री को आपको बताना चाहिए था कि आप एक ब्लॉगर हैं और आप ब्लॉगस लिखते हैं तब शायद वह इन फोटो की अहमियत समझती । लेकिन कोई बात नहीं इन फोटो की वजह से वह भी भविष्य में प्रकृति की सुंदरता का आनंद ले सकेगी।

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    1. बहुत सारा धन्यवाद अर्जुन जी। ये आपका मेरे प्रति स्नेह है जो आप मेरे लेख की इतनी तारीफ करते हो और आप सबकी तरफ से मिले तारीफ के ये शब्द ही आगे लिखने के लिए प्रेरित करता है। हां पहले से ही इतना खा चुका था कि उस खाऊं गली में कुछ खा नहीं सका था कुछ भी। हां एक बार जरूर जाइए ओंकारेश्वर बहुत ही सुंदर जगह है और सात किलोमीटर के उस परिक्रमा पथ पर अपना दिल जरूर खो देंगे। प्राकृतिक दृश्यों की भी कोई कमी नहीं है ओंकारेश्वर में बहुत से दर्शनीय स्थल हैं वहां।
      ये बात तो उस समय ध्यान में आया नहीं नहीं कि मैं ब्लाॅग लिखता हूं पर कोई बात नहीं उनको फोटो की अहमियत समझ आ गई ये बहुत अच्छी बात रही।

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  3. सच मे अजूबा ही हो गया भाई....सराफा गए और कुछ नही खाया यह तो इंदौर के साथ ज्यादती है भाई...

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    1. धन्यवाद प्रतीक भाई जी, डाॅक्टर साहब ने पहले ही घर में थोड़ा और थोड़ा और करके इतना खिला दिया था कि और खाने का कोई उपाय ही नहीं था इसलिए सर्राफा मार्केट से बिना खाए-पिए लौट गए।

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  4. बहुत बहुत धन्यवाद आपको।

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  5. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  6. आपकी ये टिप्पणी मेरे समझ से बाहर है। ब्लाॅग पर आने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।

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  7. बहुत ही सुंदर वर्णन

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  8. Bahut sunder
    Mujhe dwarka Ji or somnath Ji ke darshan
    Ka blog

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