Thursday, January 25, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Ujjain-Omkareshwar Journey-2: Mahakaleshwar Jyotirling)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग (Ujjain-Omkareshwar Journey-2: Mahakaleshwar Jyotirling)



उज्जैन पहुंचते पहुंचते बारह बज चुके थे। गाड़ी के स्टेशन पहुंचते ही ट्रेन से उतर कर जल्दी से स्टेशन से बाहर गए। सड़क पर पहुंचते ही एक आॅटो मिल गई जो दस रुपए प्रति सवारी के हिसाब से लोगों को रामघाट तक ले जा रही थी। हम आॅटो में बैठे ही थे कि उसके तुरंत बाद मेरी ही उम्र का एक व्यक्ति और आया जो मेरे ही बगल में बैठ गया। जल्दी ही बातें होने लगी तो पता चला कि वो भी उज्जैन और ओंकारेश्वर घूमने के लिए आए हैं। हम दोनों ही इस शहर से अनजान थे, अतः एक दूसरे का साथ पाकर थोड़ी सी ये तो उम्मीद बंधी कि चलिए ज्यादा तो नहीं कम से कम रामघाट पर नहाने भर का साथ तो रहेगा ही। कुछ देर में ही आॅटो भी सवारियों से भर गई। आॅटो वाले ने आॅटो को स्टार्ट किया और रामघाट की तरफ चल दिया। अभी आधे ही दूर गए थे कि सभी सवारियां उतर गई। अब आॅटो में केवल हम दो लोग ही बैठे रह गए थे। सभी सवारियों के उतरने के बाद आॅटो वाला पहले तो हमें आधे रास्ते में उतारने की कोशिश करने लगा, पर हमने साफ कहा कि भाई रामघाट बोलकर आॅटो में बैठाए हो और हम रामघाट पर ही उतरेंगे अगर रामघाट नहीं पहुंचा सकते तो मुझे वापस स्टेशन ही पहुंचा दो और उस बाद के कोई पैसे नहीं मिलेंगे, तो न चाहते हुए भी आॅटो वाले ने आधे मन से हमें रामघाट तक पहुंचाया।


रामघाट पर जहां हम आॅटो से उतरे वहां से रामघाट की दूरी 100 कदम से ज्यादा नहीं है। आॅटो से उतर कर हम अपने उस अनजान साथी के साथ गलियों से होते हुए रामघाट की तरफ बढ़ गए। घाट पर पहुंचा तो देखा इक्का-दुक्का लोग हैं जो यहां वहां नहा रहे हैं। पुल पार करके हम दूसरी तरफ गए और नहाने की प्रक्रिया आरम्भ कर दिए। घाटों पर जमे काई से हालात ऐसे थे कि नहाने के दौरान कई बार गिरते गिरते भी बचे। हम तो बच गए पर कई लोगों को उस काई पर फिसल कर गिरते हुए भी देखा। उन कई गिरने वाले लोगों में हमारे वो अनजान साथी भी थे जो नहाने के बाद एक बार फिर से अपने हाथ धोने गए थे और फिसलने के बाद डुबकी लगा दिए थे। अब तक की सारी प्रक्रिया में लगभग एक बज चुके थे। रामघाट पर नहाने के बाद यहां नदी के किनारे के मंदिरों को देखने के पश्चात हम महाकाल के दर्शन के लिए बढ़ गए। रामघाट से महाकाल मंदिर की दूरी ज्यादा नहीं है और केवल दस मिनट पैदल चलकर आप रामघाट से मंदिर तक पहुंच जाएंगे। हमने भी पैदल का ही रास्ता लिया और धीरे धीरे चलते हुए और फोटो खींचते हुए आगे बढ़ने लगे। हमारी चलने की गति इतनी ज्यादा थी कि दस मिनट का सफर तय करने में हमें करीब आधे घंटे लग गए। हमारे अनजान साथी हमारे फोटो खींचने की आदत से केवल आधे घंटे में ऊब चुके थे और बार-बार यही कह रहे थे कि ये कौन सी आदत है आपकी जो आप उन चीजों की फोटो लेने लगते हैं जिनको कोई देखता भी नहीं। अब उनको क्या समझाते कि हम फोटो क्यों लेते हैं, बस उनकी बातों को मुस्कुरा कर टाल जाते पर वैसे मुझे मुस्कुराना नहीं आता। दस मिनट के रास्ते को आधे घंटे में पूरा करते हुए हम करीब पौने दो बजे मंदिर के प्रवेश द्वार के पास पहुंच गए।

मित्र सुमित शर्मा जी के अनुसार हम मंदिर के पास बने लाॅकर में अपना सामान रखकर आराम से भोलेनाथ के दर्शन के लिए जा सकते थे पर जैसे ही हम लाॅकर कक्ष के पास गए तो देखा कि यहां पहले से ही बहुत लंबी लंबी लाइनें लगी हैं। उन लाइनों में सामान रखने के लिए अपनी बारी आने में ही घंटा भर लग जाता तो हम वहीं प्रसाद की दुकान पर ही अपना सामान और जूते-चप्पल आदि चीजें रखकर दर्शन के लिए चल दिए। यहां भी उसी भीड़ से सामना हुआ और हम भी लाइन में लगे लोगों की पंक्ति में सबसे पीछे खड़े हो गए। धीरे-धीरे लाइन आगे बढ़ रही थी और हम भी लाइन के साथ बिना मेहनत के ही पीछे से धक्का मारने वालों की कृपा से आगे खिसकते जा रहे थे। 

इस भीड़ का एक परिणाम यह हुआ कि स्टेशन में मिले साथी हमसे बिछड़ कर अलग हो गए और यहां के बाद हम अकेले रह गए। खैर जब अकले आए ही हैं तो रहना भी अकेले ही है। यहां तो जिंदगी के सफर में लोग अकेले चलते हैं और मेरा तो ये रास्ते का सफर था। लाइन आगे बढ़ती रही और धीरे धीरे हम भी सब लोगों के साथ मंदिर के अहाते में पहुंच गए। यहां पहुंचकर रामेश्वरम मंदिर की तरह ही यहां भी पुजारियों के आतंक से सामना हुआ। यहां उपस्थित हरेक पंडा-पुजारी दर्शन के लिए आए हुए श्रद्धालुओं को अपने अपने तरह से लूटने की कोशिश में लगे हुए थे और कुछ लोग इस कोशिश में कामयाब भी हो रहे थे। कई जगह पुजारियों से मेरा भी सामना हुआ पर इस बार हम सोच कर ही आए थे कि चाहे दर्शन हो या न हो हम इस बार तो इनके झांसे में न आने वाले। कुछ आगे बढ़े तो चंदन टीका लगाने वाले लोगों से सामना हुआ जो टीका लगाने के नाम पर पैसे वसूल रहे थे। छोटा टीका 51 रुपया, बड़ा टीका 101 रुपए, त्रिपुण्ड टीका 151 रुपए। अब जैसे टीका न होकर कोई वस्तु हो गया हो कि जितना वजन या जितना आकार उतना ज्यादा कीमत। एक पंडा मेरे पास भी आया और झट से टीका लगा दिया और 51 रुपए की मांग करने लगा। मैंने भी उन्हें साफ शब्दों में कह दिया कि भाई मैंने तो आपको टीका लगाने नहीं कहा था और आपने टीका अपनी मर्जी से लगाया है और पैसे मांगने लगे हो। एक तो आप बिना किसी के मर्जी के जबरदस्ती टीका-चंदन लगाते हो और फिर पैसे मांगने लग जाते हो। जिसे टीका लगा रहे हैं उससे उसकी मर्जी तो पूछ लिया कीजिए कि वो व्यक्ति टीका लगवाना चाहता है या नहीं। हम आपको टीका लगाने का कोई पैसा नहीं देंगे और आप चाहें तो अपना टीका पोछ लीजिए।

हाथ में एक भी रुपया न आता देख उन्होंने अपने रेट कम कर दिए और कहा कि ठीक है आप 51 रुपए नहीं तो 25 रुपए दे दीजिए। रेट कम करने के बाद भी मैंने उनको पैसे देने से साफ मना कर दिया पर पीछे एक चाचाजी जैसे व्यक्ति खड़े थे उन्होंने कहा कि बेटा अब टीका पोछ कर क्या करोगे दे दो पैसे। मैंने उनको भी वही बोला कि आपको दया आ रही है तो आप दे दीजिए मेरे बदले पैसे पर मैं नहीं देता। अंततः बात दस रुपए में बनी और मैं वो भी देने वाला नहीं था पर उस अंकल जी ने दस रुपया जब अपने तरफ से देने की बात कही तो फिर हमने जेब से 10 रुपए का सिक्का निकाल कर पंडा जी को दे दिया। पहले तो उन्होंने सिक्का लेने से मना किया कि सिक्का नहीं चाहिए तो मैंने उनको कहा कि लाइए मेरा सिक्का मुझे वापसे दे दीजिए तो यही सिक्का बाहर आॅटो वाले को देने के काम आएगा। फिर उसने कहा ठीक है रहने दीजिए हम सिक्का ही रख लेते हैं वरना आप ये भी न दोगे। सिक्का लेकर पंडाजी बुदबुदाते हुए अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। अब उनके बुदबुदाने के पीछे गाली था या आशीर्वाद ये तो वही जानें। वैसे दस रुपए में गाली ही मिल सकती है आशीर्वाद इतने कम पैसे में कहां मिलने वाली चीज है।

करीब एक घंटे से लाइन में खड़ा खड़ा धीरे-धीरे लाइन के साथ आगे बढ़ता रहा और और धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए मंदिर के गर्भगृृह में पहुंचे गए। पुजारियों ने यहां भी वही धांधली मचा रखी थी। दूर से ही शिवलिंग को देखो, हाथ जोड़ो और आगे बढ़ो। जैसे भोलेनाथ के शिवलिंग को इन पुजारियों ने ही प्रकट किया है। ये तो अच्छा है कि स्वयंभू शिवलिंग है वरना इन पुजारियों के वश की बात होती तो ये शिवलिंग को अपने घर ले जाकर रखते। खैर दूर से ही दर्शन करने के पश्चात् हम आगे बढ़े और गर्भगृह से बाहर आए। थोड़ा आगे बढ़े तो देखा कि एक जगह मिश्री के दाने प्रसाद के रूप में बांटे जा रहे थे तो उस प्रसाद के लिए हमने भी अपनी झोली फैला दी और फिर प्रसाद लेकर आगे बढ़ गए।

प्रसाद लेकर बाहर निकले और कुछ देर के लिए साथी बने जिनका नाम भी मुझे मालूम नहीं उनके इंतजार में एक जगह कोने में खड़ा हो गया कि आना तो उनका यहीं से होगा तो पर भीड़ के कारण न उन्होंने हमें देखा और न मैं उनको देख सका। कुछ देर के इंतजार के बाद हम आगे बढ़े और मंदिर परिसर में ही स्थित और अन्य मंदिरों और मूर्तियों के दर्शन करने लगे। ऐसे ही एक छोटे मंदिर में गया तो यहां भी पंडे-पुजारियों का आतंक दिख गया। लोगों की मनोकामना पूर्ण हो उसके लिए 151 रुपए का एक यंत्र बेच रहे थे। दर्शन के पश्चात जब मैं उनके आगे से गुजरा तो उन्होंने मुझे भी 151 रुपए में यंत्र लेने की पेशकश किया पर मैं उनकी पेशकश को ठुकराता हुआ आगे बढ़ गया। 

अब जैसा कि मित्र डाॅ. सुमित शर्मा ने बताया था कि मंदिर परिसर में ही प्रसाद के लड्डु जरूर खरीदें, तो लड्डु जैसा स्वादिष्ट चीज मुझ जैसा व्यक्ति कैसे छोड़ सकता था। खोजते हुए लड्डु विक्रय काउंटर पर पहुंचा तब तक लड्डु खत्म हो चुके थे। कर्मचारी ने बताया कि बस दस मिनट में गाड़ी भरकर लड्डु आ जाएंगे। हम चुपचाप लाइन में खड़े रहे। करीब 20 मिनट बाद लड्डुओं से भरी गाड़ी आ गई। लड्डु आते ही लड्डु की बिक्री आरंभ हो गई। मेरा नम्बर दूसरा ही था तो जल्दी ही मुझे भी लड्डु के दर्शन हो गए। लड्डु लेकर जैसे ही हम लाइन से निकले तो हमारे अनजान साथी लाइन में खड़े दिख गए। कुछ देर में उनकी भी बारी आ गई और लड्डु लेने के पश्चात् हम दोनों ही साथ-साथ मंदिर से बाहर निकले और प्रसाद की दुकान पर रखा हुआ अपना-अपना सामान लिया और आगे के सफर पर चल पड़े। अब तक 3 बज चुके थे। हमने उनसे आगे के सफर के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अब हम थक चुके हैं और किसी होटल में कमरा लेंगे और आराम करेंगे या फिर अभी इंदौर चले जाएंगे और वहीं कोई कमरा लेकर रहेंगे फिर कल सुबह ओंकारेश्वर के लिए प्रस्थान करेंगे। वैसे मुझे उनकी बातों से ये नहीं लग रहा था कि वो थक चुके हैं, शायद मेरे फोटो खींचने वाले बीमारी से वो डर गए हों इसलिए उन्होंने हमसे अलग होने का फैसला किया। खैर जो भी हो उनकी मर्जी जहां जाएं और ईधर मेरी मर्जी मैं कुछ भी करूं।

घड़ी देखा तो सूई तीन से आगे बढ़ चुकी थी। हमने सुमित शर्मा जी के द्वारा बताए गए जगहों के बारे में वहां के लोगों से पूछा तो पता चला कि सब जगह एक दूसरे से थोड़ी-थोड़ी दूर पर स्थित है और पैदल चलकर आप उन जगहों को नहीं देख सकते। कोई आॅटो कर लीजिए जो दो-तीन सौ रुपए में आपका सब जगह घुमा देगा। मुझे भी ये विचार अच्छा लगा और हमने आॅटो के बारे में पता किया तो मालूम हुआ कि आगे हरसिद्धी मंदिर के चौराहे पर उज्जैन के विभिन्न स्थानों पर घूमने के लिए आॅटो मिल जाएंगे तो हम उसी दिशा में बढ़ चले, जिसका वृत्तांत हम अगले पोस्ट में आपको बताएंगे कि कैसे कैसे हम उज्जैन में स्थित विभिन्न मंदिरों, गुफाओं और आश्रमों का भ्रमण किया। अभी के लिए बस इतना ही, अब आज्ञा दीजिए।


कुछ बातें उज्जैन और वहां के दर्शनीय स्थलों के बारे में

उज्जैन : उज्जैन (उज्जयिनी) नगर भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख और प्राचीन शहर है जो क्षिप्रा नदी के किनारे बसा है। कालांतर में यह राजा विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी हुआ करती थी। उज्जैन को लोग कालिदास के नगर के नाम से भी पुकारते हैं। भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल यहीं स्थित हैं। महाकाल मंदिर के अलावा यहां बहुत से प्राचीन और दर्शनीय मंदिर हैं। 


उज्जैन के दर्शनीय स्थल

उज्जैन एक प्राचीन धार्मिक नगर हैं और यहां के अधिकतर दर्शनीय स्थल मंदिर हैं। मंदिर के अलावा भी यहां ऐसी बहुत सी चीजें है जिसे आप यहां आकर देख सकते हैं।
महाकालेश्वर मंदिर : यह बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है।
बड़ा गणेश मंदिर : यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास ही है।
हरसिद्धि मंदिर : यह महाकालेश्वर मंदिर और रामघाट के बीच स्थित है। यह मंदिर देवी सती से संबंधित है और यह राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी भी थी।
विक्रमादित्य का टीला : यह राजा विक्रमादित्य से संबंधित है।
रामघाट : क्षिप्रा नदी के किनारे बना स्नान घाट।
संदीपनी आश्रम : भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुदामा जी यहीं अपने गुरु संदीपनी से शिक्षा ग्रहण करते थे।
मंगलनाथ मंदिर : इस स्थान को मंगल का जन्मस्थान माना गया है।
सिद्धवट मंदिर : संसार के चार पवित्र वटवृक्षों में एक वृक्ष यहीं का है।
कालभैरव मंदिर : कालभैरव को उज्जैन शहर का कोतवाल भी कहा जाता है।
गढ़कालिका मंदिर : यह मंदिर देवी काली से संबंधित है।
भतृहरि गुफा : यह स्थान राजा भतृहरि की तपस्थली है।


कैसे जाएँ 
रेल मार्ग : उज्जैन रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से उज्जैन तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से उज्जैन तक रेल सेवा नहीं है वो नागदा जंक्शन, इंदौर या देवास होते हुए उज्जैन तक बस या रेल से जा सकते हैं। इंदौर से उज्जेन की दूरी करीब 55 किलोमीटर है जहाँ से बहुतायत में बसें उपलब्ध हैं। 

वायु मार्ग : नजदीकी एयरपोर्ट इंदौर है जो यहां से 55 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से उज्जैन पहुंचा जा सकता है। 

सड़क मार्ग : सड़क मार्ग द्वारा उज्जैन जाने के लिए इंदौर, देवास आदि जगहों से नियमित बस सेवाएं हैं। 

भ्रमण समय : उज्जैन आने के लिए आपको किसी खास मौसम की आवश्यकता नहीं है। आप यहां साल भर में कभी भी आ सकते हैं। 

कहाँ ठहरे : उज्जैन में ठहरने के लिए प्राइवेट होटल और गेस्ट हाउस की कोई कमी नहीं है। यहाँ हर बजट के लोगों के रहने के लिए आसानी से कमरे मिल जाते हैं। वैसे यहाँ ठहरने के लिए सबसे उपयुक्त और अच्छी जगह महाकालेश्वर मंदिर द्वारा संचालित गेस्ट हाउस सबसे अच्छा विकल्प है, जिसकी बुकिंग मंदिर समिति के वेबसाइट www.mahakaleshwar.nic.in पर 30 दिन पहले (समय सीमा घटाई या बढ़ाई भी जा सकती है) किया जा सकता है। 


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :



रामघाट का एक दृश्य

रामघाट का एक दृश्य

रामघाट का एक दृश्य

रामघाट का एक दृश्य

रामघाट के किनारे एक मंदिर

रामघाट के किनारे मंदिर

रामघाट से नर्मदा का एक दृश्य

रामघाट पर नर्मदा में नंदी और शिव

मंदिर की शक्ल में एक धर्मशाला

चित्रगुप्त मंदिर, रामघाट

रामघाट पर एक मंदिर

रामघाट और महाकाल मंदिर के बीच एक मंदिर

रामघाट और महाकाल मंदिर के बीच एक हनुमान मंदिर

हरिसिद्धी मंदिर के पास चैराहे पर

मंदिर के पास प्रसाद की दुकानें

विक्रमादित्य के टीले से दिखाई देता महाकालेश्वर मंदिर

रात में महाकालेश्वर मंदिर

मंदिर के पास प्रसाद की दुकानें

रामघाट से मंदिर के रास्ते में

रामघाट पर एक अन्य मंदिर

रामघाट पर रास्ते और मंदिर

रामघाट पर एक मंदिर

रामघाट पर एक मंदिर

रामघाट कर एक दृश्य
 
रामघाट कर एक दृश्य

रामघाट कर एक दृश्य

इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास












19 comments:

  1. आपने सहीं कहा सर जी ये आटो वाले कहीं भी चले जाइए अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगे
    शायद आप सही थे सर जी वो अंजान मित्र आपके फोटोग्राफी के कारण ही अलग हुए होगे अब उन्हें कौन समझाए कि वो फोटो हम जैसे लोगों के लिए कितने मायने रखते हैं
    ........ खैर आखिरकार महाकाल ने आपको दर्शन दे दिए लेकिन आपके और पंडा के बीच हुए विवाद से रामेश्वरम मंदिर का वाक्या याद आ गया
    क्या हर जगह मंदिर को पंडाओ ने कमाई का स्थान बना लिया है

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां ये आॅटो वालों का हर शहर में यही हाल है, अनजान लोग क्या कभी-कभी तो शहर के बाशिंदों पर भी हाथ आजमाने से नहीं चूकते। हां वो फोटो के कारण ही अलग हुए होंगे, क्योंकि मेरे फोटो खींचने के कारण वो आधे घंटे में ही चिढ़ गए थे। ये पंडो का आतंक हर जगह हर मंदिर में दिखता है जी। रामेश्वरम में तो मेरी हाथापाई की नौबत आ गई थी, जब उसने मेरे छोटे से बेटे को मारने के लिए दौड़ा था।

      Delete
  2. पंडो के साथ ये हाथापाई वाली नौबत मेरे साथ मथुरा, जगन्नाथ पुरी एवं लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर में आ चुकी है. हद दर्जे के लुटेरे एवं गुंडे हैं ये लोग.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद रोहित जी!!!
      जी हां मेरे साथ भी रामेश्वरम में ऐसा हो चुका है, जब मेरा बेटा थोड़ा सा ज्यादा देर खड़ा रह गया था तो पंडा उस बच्चे के ऊपर ऐसे व्यवहार किया कि जैसे कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो, ये तो महादेव से प्यार है वरना मंदिरों के नाम से तो अब डर लगने लगा है।

      Delete
  3. उज्जैन और ओम्कारेश्वर तीन बार जाने का सौभाग्य मिल चूका है .आपके लेख से अपनी यादें ताज़ा हो गयी .

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सहगल साहब। दो बार का तो आपके ब्लाॅग में पढ़ चुका हूं, और अपनी योजना बनाने में आपके ब्लाॅग से भी बहुत सहायता मिली थी इसलिए एक बार और धन्यवाद।

      Delete
  4. हमारी तो पुरानी दुश्मनी है, पंडो से इतना की जगन्नाथ मंदिर भुवनेश्वर में खाली मंदिर देखकर लौट आए थे।
    एक मजेदार काम ये करते है कि मंदिर के बाहर ही तत्व रूप में ईश्वर की मानस पुजा कर लेते है। एक तो ढीलढौल देख ज्यादा बोलते नहीं, और यदी बुदबुदाया तो तेज आवाज में जो लानत मलानत करते है उनकी की 10 लोग इकट्ठा हो जाए फिर तो ऐसे गायब होते है जैसे गधे के सिर से सिंग, पुजारीयों को विनम्र होना चाहिये।
    अब तो सोच रहा हूँ निकट भविष्य में इंदौर जाने पर उज्जैन जाने पर महाकाल मंदिर जाऊ की नही।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अधिकतर जगह पंडों की यही कहानी है पर हमने कालीमठ और तुंगनाथ में पंडों का जो व्यवहार देखा तो उनके आगे नतमस्तक हो गया। इनका वश चले तो ये मंदिर को ही अपने घर में रख लें। ये भी नहीं सोचते कि जब यही श्रद्धालु नहीं आएंगे तो खुद का क्या होगा और श्रद्धालुओं को देखते ही लूटने लगते हैं। रामेश्वरम में तो हमारी भी हाथापाई की नौबत आ गई थी जब आदित्य गर्भगृह के पास थोड़ा ज्यादा देर खड़ा रह गया था तो पंडा लड़ने को आतुर हो गया था बच्चे से तो हमने भी उसको खूब लानत-मलानत कर दिया था। कुछ पंडों के कारण समूचा पंडा समाज बदनाम होता है जिसकी भी फिकर वो नहीं करते। जरूर जाइए जी उज्जैन जाने पर बिना महाकाल के दर्शन के क्यों वापस आएं, उनके डर से कोई जाना थोड़े ही छोड़ देगा।

      Delete
  5. ।।जय श्री महाँकाल।।
    हमारा भी लहभग प्रतिवर्ष उज्जैन दर्शन का कार्यक्रम बनता है
    ये पंडो की कार्यशैली लगभग ऐसी ही हर जगह है

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद जी!!!
      अधिकतर जगह पंडों का ऐसा प्रकोप देखने के लिए मिल ही जाता है, खासकर देश के प्रमुख तीर्थस्थलों पर ऐसे वाकये से रूबरू होना ही पड़ता है।

      Delete
  6. बहुत तेज चलते है आप तो 10 मिनट का सफर आधे घंटे में तय किया....फोटो खींचने की आपकी आदत की वजह से में हमेशा आपके साथ चल सकता हु...में धीरे चलूंगा और आप तेज चल कर फोटो खींचते साथ हो लोगे

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद जी!!
      फोटो के चक्कर में ही रामघाट से मंदिर तक आने में 10 मिनट का रास्ता तय करने में मुझे आधा घंटा था। हां अगर आप साथ चलेंगे तो अगर मैं आगे बढ़ जाता हूं तो फोटो के लिए रुकूंगा और तब तक आप भी पहुंच जाआगे और यदि मैं पीछे हो गया तो तेज चलकर आपके साथ हो लूंगा।

      Delete
  7. जय जय महाकाल ....
    लगता है आप पंडो के खूब सताए हुए हो...
    अंजान साथी सही रहा पर आपकी हरकतों की वजह से बीच रास्ते मे छोड़ गया 😁
    जब हम उज्जैन गए थे तब केवल महाकाल मंदिर में दर्शन को गए थे भीड़ बहुत थी ... पर ऐसे पंडो से मेरा सामना बिल्कुल भी नही हुआ जैसा आपने लिखा...हम तो लाइन में लगते हुए सीधे ईमानदारी से दर्शन करते हुए दूसरे दरवाजे बाहर आ गए थे ।

    उज्जैन की अगली यात्रा में पूरा उज्जैन ही घूमना है ...

    बढ़िया रही आपकी ये पोस्ट

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सारा धन्यवाद आपको। हर हर महादेव, जय भोलेनाथ। पंडे तो हर जगह यही करने लगे हैंं, रामेश्वरम में तो मार-पीट की नौबत आ गई थी जब उसने बेटे को धक्का दे दिया था। हां वो साथ फोटो वाली हरकत के कारण ही साथ छोड़ गया वरना वो भी वहीं जाने के लिए आया था जहां मैं। हमें भी एक बार और उज्जैन जाना है, जब से आए हैं रोज सुनने को मिलता है कि अकेले अकेले घूम आए, इसलिए एक बार और जाना पड़ेगा।

      Delete
  8. उज्जैन के दर्शनीय स्थल शेयर करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद गुप्ता जी

      Delete
  9. मुझे भी एक बार महाकाल जी का दर्शन करने का सौभाग्य मिला है, फिर जाने की इच्छा है, वैसे हमारे तीर्थ स्थलों पर पंडों का आतंक एक दुखद समस्या है

    ReplyDelete
    Replies
    1. हां हर तीर्थस्थलों पर एक जैसी ही कहानी है, अगर इनके वश को होता तो मंदिर में स्थापित मूर्ति को ये घर तक लेके चले जाते, पर ये उनके वश का नहीं है। आपकी जैसी ही अपनी भी कहानी है, मेरी भी पुनः इच्छा हो रही है यहां जाने की।

      Delete