श्रीनगर (गढ़वाल) से गौरीकुण्ड (Srinagar to Gaurikund)
तीसरा दिन
आज हमें श्रीनगर से रुदप्रयाग हुए होते हुए गौरीकुंड तक जाना था और गौरीकुंड में ही रात्रि विश्राम करना था।सुबह हम लोग 3 बजे ही जाग गए। कल की थकान के कारण आज उठने का मन नहीं कर रहा था फिर भी किसी तरह उठा और नहाने गए तो पानी बहुत ठंडा था फिर भी हम लोग नहाये सामान पैक किया और 5 बजे गेस्ट हाउस से बाहर आ गए। बाहर आते ही एक जीप मिली वो रुद्रप्रयाग तक जा रही थी हम लोग उसमें बैठ गए। 6 बजे हम लोग रुद्रप्रयाग पहुँच गए। जीप वाले ने हमसे 5 लोगों के 150 रुपए लिया। मौसम बिलकुल ठंडा था। कहाँ दिल्ली में 40 से 40 डिग्री तापमान और यहाँ इतनी ठण्ड। रुद्रप्रयाग पहुँचते पहुँचते बेटा ठण्ड से काँपने लगा था। यहाँ जीप से उतरते ही सबसे पहले उसे जैकेट पहनाया गया। रुद्रप्रयाग में जहाँ हम जीप से उतरे वहां पर बहुत साड़ी जीपें खड़ी थी। कुछ जीप गुप्तकाशी जा रही थी, कुछ कर्णप्रयाग, कुछ चमोली, कुछ उखीमठ। यहाँ से कोई भी जीप सीधे सोनप्रयाग तक नहीं जा रही थी, जो भी जा रही थी गुप्तकाशी तक और गुप्तकाशी से फिर दूसरी जीप से सोनप्रयाग। मैं गुप्तकाशी जाने वाली एक जीप में बैठने ही वाला था कि एक बस पर नज़र पड़ी जो सीधे सोनप्रयाग जा रही थी। हम बस में जाकर बैठ गए। 7 बजे बस खुली और रुद्रप्रयाग बाजार पर करने के बाद मैंने देखा की वह से सड़क दो तरफ जाती है। एक सड़क बदरीनाथ और दूसरी केदारनाथ। रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है। मन्दाकिनी केदारनाथ से आती है और अलकनन्दा बदरीनाथ से आती है। यहाँ दोनों मिलकर इससे आगे देवपरयाग तक अलकनन्दा के नाम से ही जानी जाती है।रुद्रप्रयाग बाजार पार करने के बाद बस केदारनाथ के रास्ते पर चल पड़ी। रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक का बस का एक आदमी का किराया 100 रुपए है। सड़क इतनी खतरनाक कि देखकर ही जान निकल जाती। सड़क पर बस दौड़ी चली जा रही थी।
आज हमें श्रीनगर से रुदप्रयाग हुए होते हुए गौरीकुंड तक जाना था और गौरीकुंड में ही रात्रि विश्राम करना था।सुबह हम लोग 3 बजे ही जाग गए। कल की थकान के कारण आज उठने का मन नहीं कर रहा था फिर भी किसी तरह उठा और नहाने गए तो पानी बहुत ठंडा था फिर भी हम लोग नहाये सामान पैक किया और 5 बजे गेस्ट हाउस से बाहर आ गए। बाहर आते ही एक जीप मिली वो रुद्रप्रयाग तक जा रही थी हम लोग उसमें बैठ गए। 6 बजे हम लोग रुद्रप्रयाग पहुँच गए। जीप वाले ने हमसे 5 लोगों के 150 रुपए लिया। मौसम बिलकुल ठंडा था। कहाँ दिल्ली में 40 से 40 डिग्री तापमान और यहाँ इतनी ठण्ड। रुद्रप्रयाग पहुँचते पहुँचते बेटा ठण्ड से काँपने लगा था। यहाँ जीप से उतरते ही सबसे पहले उसे जैकेट पहनाया गया। रुद्रप्रयाग में जहाँ हम जीप से उतरे वहां पर बहुत साड़ी जीपें खड़ी थी। कुछ जीप गुप्तकाशी जा रही थी, कुछ कर्णप्रयाग, कुछ चमोली, कुछ उखीमठ। यहाँ से कोई भी जीप सीधे सोनप्रयाग तक नहीं जा रही थी, जो भी जा रही थी गुप्तकाशी तक और गुप्तकाशी से फिर दूसरी जीप से सोनप्रयाग। मैं गुप्तकाशी जाने वाली एक जीप में बैठने ही वाला था कि एक बस पर नज़र पड़ी जो सीधे सोनप्रयाग जा रही थी। हम बस में जाकर बैठ गए। 7 बजे बस खुली और रुद्रप्रयाग बाजार पर करने के बाद मैंने देखा की वह से सड़क दो तरफ जाती है। एक सड़क बदरीनाथ और दूसरी केदारनाथ। रुद्रप्रयाग में अलकनन्दा और मन्दाकिनी का संगम है। मन्दाकिनी केदारनाथ से आती है और अलकनन्दा बदरीनाथ से आती है। यहाँ दोनों मिलकर इससे आगे देवपरयाग तक अलकनन्दा के नाम से ही जानी जाती है।रुद्रप्रयाग बाजार पार करने के बाद बस केदारनाथ के रास्ते पर चल पड़ी। रुद्रप्रयाग से सोनप्रयाग तक का बस का एक आदमी का किराया 100 रुपए है। सड़क इतनी खतरनाक कि देखकर ही जान निकल जाती। सड़क पर बस दौड़ी चली जा रही थी।
गौरीकुंड गेस्ट हाउस के बरामदे से लिया गया केदार घाटी के पहाड़ के खूबसूरत दृश्य |
सड़क के एक तरफ मन्दाकिनी की गहरी घाटी और दूसरी तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़। इतने खतरनाक रास्ते पर होते हुए भी हम सब लोग रोमांचित थे। मन में बस एक ही बात ही थी कि कब गौरीकुंड पहुचे, कब रात ख़तम हो और कब सुबह हो और हम लोग केदारनाथ की चढ़ाई चढ़कर केदारनाथ के दर्शन करें। एक घंटे की यात्रा के बाद केदारनाथ की बर्फ से लदी चोटियाँ दिखने लगी पर हमें क्या पता कि वही केदारनाथ हैं। 9 बजे के करीब हम गुप्तकाशी पहुँचे। बस यहाँ कुछ देर खाने पीने के लिए रुकी। हम लोगों ने बस से नीचे आकर कुछ खाने पीने का सामान ख़रीदा और फिर वापस बस में बैठ गए। कुछ देर बाद बस चली और 12 बजे हम लोग सोनप्रयाग पहुँच गए। बस से उतरते ही हलकी हलकी बरसात शुरू हो गयी। हम सब रजिस्ट्रेशन काउंटर के पास बने शेड में बरसात रुकने का इंतज़ार करने लगे। जब तक बरसात बंद हुई उतने देर में हम सबने कुछ खा लिया। बरसात बंद होने पर हम लोग जीप में बैठे और गौरीकुण्ड के लिए चल पड़े। अभी 1 बजे थे।सोनप्रयाग से गौरीकुंड की दूरी 5 किलोमीटर है और एक आदमी का किराया 20 रुपए है। सोनप्रयाग से गौरीकुंड तक कोई प्राइवेट गाड़ी नहीं जाती है। यहाँ केवल गवर्नमेंट द्वारा रजिस्टर्ड गाड़ियाँ ही चलती है। सोनप्रयाग में मन्दाकिनी और सोन गंगा का संगम है।
गौरीकुंड से केदारनाथ के रास्ते में रूद्र फॉल (यह इंटरनेट से लिया गया है) |
1:30 बजे हम गौरीकुंड पहुँच गए। गौरीकुंड में भी मैंने उत्तराखण्ड सरकार द्वारा संचालित गेस्ट हाउस गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस ही बुक किया हुआ था। जीप से उतरने के बाद 2 -3 मिनट पैदल चलने पर बाईं तरफ गेस्ट हाउस है। गेस्ट हाउस जाने के लिए ऊँची ऊँची लगभग 40-45 सीढ़ी चढ़ना पड़ता है। वहां जाते ही हम लोगों ने कुछ देर आराम किया। उसके बाद गीले कपडे सूखने के लिए डाल दिया। शाम को मैं और मेरी पत्नी बाजार में गए और 5 स्टिक लिए जिससे चढ़ाई में आसानी हो। 5 बजे आसमान में फिर से वही डरावने और काले काले बदल घिर आये हलकी हलकी बरसात शुरू हो गयी। धीरे धीरे बरसात और तेज़ होती जा रही थी। करीब 1 घंटे तक खूब तेज़ झमाझम बरसात जारी रही।
गौरीकुंड गेस्ट हाउस के बरामदे से लिया गया केदार घाटी के पहाड़ के खूबसूरत दृश्य |
वहीं बैठे बैठे मैंने गेस्ट हाउस में काम करने वाले स्टाफ से कुछ बातें करना शुरू किया। उन लोगों ने बताया कि ये बरसात रोज ही होती है। मेरे इस सवाल पर कि यात्रा यात्रा सीजन के बाद आप लोग क्या क्या करते है तो उन्होंने बताया कि उस टाइम यहाँ कोई नहीं रहता है। यहाँ 10-10 फ़ीट बर्फ जमा हो जाती है। उस समय हम लोग चमोली, रुद्रप्रयाग और निचले इलाकों में चले जाते हैं। उनसे बात करते हुए मैंने उनसे चाय के लिए बोला उनमे उनमे से एक चाय लेने गया और कुछ ही देर में चाय लेकर आ गया। लगभत 1 घंटे के बाद बरसात बंद हो गयी और आसमान एकदम साफ हो गया। मैंने उसने कल सुबह नहाने के लिए पूछा तो बोला कि यहाँ के ठन्डे पानी से तो नहाना बहुत मुश्किल फिर भी कुछ लोग नहा लेते हैं। उसने बताया की नीचे मन्दाकिनी के किनारे पर दो कुंड हैं जिनमे गरम पानी आता है। एक कुंड महिलाओं और दूसरा पुरुषों के लिए है।
गौरीकुंड गेस्ट हाउस के बरामदे से लिया गया केदार घाटी के पहाड़ के खूबसूरत दृश्य |
गौरीकुण्ड बाजार का एक दृश्य (यह इंटरनेट से लिया गया है) |
2013 के आपदा में वो कुंड तो नहीं रहा पर गरम पानी झरने से आता रहता है आप उसमें जाकर नहा सकते हैं। फिर जो स्टाफ चाय लेकर आया था उसने खाने के लिए पूछा मैंने उनको खाने में रोटी और थोड़ा चावल के लिए बोल दिया। 8 बजे तक खाना तैयार मिलेगा ये कहते हुए वो नीचे चला। एक स्टाफ अभी भी यहीं खड़ा था तो मैंने उससे कल की केदारनाथ की यात्रा के बारे में पूछने लगा। उसने बताया कि 5 बजे आप लोग निकल जाइएगा और जो जरूरी सामन और कपडे है वो एक छोटे बैग में रख लीजियेगा और बाकि सामन यहीं क्लोक रूम में रख दीजियेगा। ठीक 8 बजे हम लोगो ने खाना खाया और कल के लिये सामान छोटे बैग में पैक कर लिया और उसके द सो गए। वहां कितनी सर्दी पड़ती है इस बात का अंदाज़ इसी बात से लगता है की होटल में कही भी फैन नहीं लगा था और जून के महीने में भी मोटी मोटी रज़ाई ओढनी पड़ती है। सब लोग सो चुके थे पर मेरी आँखों में आज नींद नहीं थी। मैं बस आने वाले कल के सपने देख रहा था। कब सुबह हो और जल्दी से चढ़ाई चढ़कर नाथों के नाथ केदारनाथ के दर्शन करें। इन हसीं सपने से दूर कल की हकीकत कुछ और होने वाली थी जिसके बारे में जरा भी मेरे मन में खयाल नहीं था, अगर कुछ था वो केवल हसीन सपने। इन सपनों में खोये हुए हम टोर्च जलाकर घड़ी देखा तो 1 बज चुके थे। टॉर्च की रोशनी से पत्नी की भी नींद खुल गई। मैडम जी थोड़ा नाराज़ होते हुए बोली कि अभी तक आप जाग रहे है और सुबह 3 बजे ही जागना है और कल पूरे दिन पैदल चढ़ाई का रास्ता है। ठीक है कहते हुए मैं सोने की कोशिश करने लगा और कुछ ही पल में नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया।
आज के लिए बस इतना ही। इससे आगे विवरण अगले भाग में। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये। हम बस अभी गए और अभी आये।
यात्रा रोमांचक होते जा रही है और वो भी परिवार के साथ
ReplyDeleteइसे ज्यादा रोमांचक यात्रा जब हम गौरीकुंड से केदारनाथ की तरफ बढे तब की यात्रा थी , और वैसे भी जब कोई पहली बार कहीं परिवार के साथ जाता है तो एक अलग ही रोमांच होता है
DeleteYour writing style is so engaging; I can't stop reading your posts. Read the following article click here Leh Ladakh Bike Group Tour – Global Corporate Tour
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