Thursday, April 13, 2017

दिल्ली से हरिद्वार और श्रीनगर (Delhi to Haridwar and Srinagar)

दिल्ली से हरिद्वार और श्रीनगर
(Delhi to Haridwar and Srinagar)

पहला दिन 

यात्रा की सारी तैयारी हमलोगों ने पहले ही कर ली थी। 3 जून को मम्मी पापा का पटना से टिकट था और 4 जून को सुबह वो लोग दिल्ली पहुँच गए। उनकी ट्रेन आने से पहले ही मैं रेलवे स्टेशन पहुंच गया।  ट्रेन समय से आ गई। उनलोगों को लाने के बाद मैं अपने ऑफिस के लिए निकल गया। ऑफिस से 4 बजे ही निकल गया। घर आकर सारी तैयारीयों का जायजा लिया और फिर यात्रा की तैयारी में व्यस्त हो गया। हमारी हरिद्वार की ट्रेन पुरानी दिल्ली स्टेशन से रात्रि में 10:10 पर थी। सबका विचार था की घर से खाना खाकर 9 बजे निकला जाये। 9 बजे निकलने पर या तो मेट्रो या बस से से जाना पड़ता उसमें भी एक जगह बदलना पड़ता और 7 बजे वाली पैसेंजर ट्रेन से चले जाने पर न तो कही बदलने की समस्या न ही भीड़ में धक्का मुक्की। अंत में यही तय हुआ कि 7 बजे ही निकला जाये और स्टेशन पर ही खाना खाया जाये।  




7 बजे की ट्रेन पकड़ने के लिए हम लोग घर से निकले। स्टेशन पहुंचकर 5 टिकट लिया और प्लेटफार्म पर आ गए।  ठीक 7 बजे ट्रेन आ गयी हम लोग ट्रेन में बैठ गए। ट्रेन तिलक ब्रिज, शिवाजी ब्रिज, नई दिल्ली और सदर बाजार होते हुए ठीक 8 बजे पुरानी दिल्ली पहुँच गयी। इस दौरान ट्रेन में सामने के सीट पर एक व्यक्ति बैठे थे उन्होंने मुझे सवाल किया किया की क्या आप लोग हरिद्वार जा रहे तो हमने उनको केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा के बारे में बताया।  मेरा जवाब सुनकर उनके चेहरे का रंग उड़ गया। उनके चेहरे पर हाव-भाव दिख रहे थे उससे साफ झलक रहा था कि जैसे हम केदारनाथ और बद्रीनाथ नहीं बल्कि किसी शेर के पिंजरे में जा रहे हैं और जहाँ से बच कर आने की कोई कोई उम्मीद नहीं हो। अब उनकी जो भी सोच हो पर हम तो यात्रा पर निकले हैं और महादेव खुद ही मुझे सकुशल घर तक पहुंचायेगे।  ट्रेन के दिल्ली जंक्शन (पुरानी दिल्ली) पहुँचते ही ट्रेन से उतरकर हम लोगों ने एक साफ सुथरी जगह देखकरअपना अड्डा जमा लिए। कुछ देर बाद माँ ने खाना निकाला और हम सब खाकर मस्त होकर वही लेट कर ट्रेन का इंतजार करने लगे। ट्रेन सराय रोहिल्ला 9:30 पर खुलती है और 9:50 पर पुरानी दिल्ली आती है पर उस दिन ट्रेन 10 मिनट की देरी से आई। हम लोग ट्रेन में सवार हो गए। जैसा कि ट्रेन 10 मिनट की देरी से आई थी तो खुलने में भी ट्रेन 10 मिनट की देरी से ही खुली। ट्रेन स्टेशन से चलने के बाद शाहदरा में रूकती है उसके बाद सीधे गाजियाबाद में रूकती है। गाजियाबाद से गाड़ी खुलने के बाद हम लोग अपने अपने बर्थ पर सो गए।  जहाँ हमारी सीट थी कुछ और लोग थे वो भी केदारनाथ और बदरीनाथ ही जा रहे थे पर हमारी और उनकी कोई बात नहीं हुई पर हमने उन लोगो की गौरीकुंड में दुबारा देखा था।



दूसरा दिन

सुबह जब हमारी नींद खुली तो ट्रेन लक्सर स्टेशन पर खड़ी थी। लक्सर से हरिद्वार की दूरी 45 मिनट की है। ट्रेन के हरिद्वार पहुँचने का समय सुबह 5:45 है लेकिन उस दिन ट्रेन 30 मिनट की देरी से 6:15 पर हरिद्वार पहुँची। पहले भी मैं 2 बार हरिद्वार जा चूका हूँ। पहली बार पत्नी और बेटे के साथ अक्टूबर 2012 में और दूसरी बार मम्मी के साथ दिसम्बर 2013 में।  इसलिए मुझे हरिद्वार के रास्तों और स्टेशन के बार में अच्छी तरह पता था। हरिद्वार पहुँचने के बाद हम लोग स्टेशन के प्लेटफार्म 1 पर बने टॉयलेट में  फ्रेश हुए और ब्रश भी कर लिया। उसने 5 आदमी के 25 रुपए हमसे लिया। उसके बाद हम लोग गंगा स्नान के लिए जाने लगे। गंगा स्नान के लिए निकलने से पहले मैंने ये पता कर लिया की चार धाम के लिए ऑनलाइन रेगिस्ट्रेशन कहाँ पर होता है। फिर हम लोग स्टेशन से बाहर आये।  बाहर आकर एक ऑटो बुक किया जिसने हम लोगों को 30 रुपए में हरकी पैड़ी पहुंच दिया। हम सबने वहां गंगा में स्नान किया जून के महीने में भी पानी बहुत ठंडा था। ऐसा लग रहा था जैसे फ्रीज का पानी हो। गंगा  स्नान के बाद हम सबने एक-एक कप गरम-गरम चाय पिया।



केदारनाथ का पावन मंदिर

चाय पीने के बाद हम लोग ये सोचकर हरिद्वार-ऋषिकेश बाईपास पर गए कि यहीं से किसी बस या ऑटो या जो भी गाड़ी मिलेगी उससे ऋषिकेश चले जायेगे फिर वह से श्रीनगर (गढ़वाल) चले जायेंगे क्योंकि उस दिन हम लोगो को रात में श्रीनगर (गढ़वाल) में ही रुकना था। पर वहां जाकर हमें निराश ही हाथ लगी क्योंकि वहां पर गाड़ी रुक नहीं  रही थी और जो रुक भी रही थी वो या तो भरी हुई होती थी या फिर वो किसी को बैठा नहीं रहा था। हमने कई सारे ऑटो वाले से पूछा पर कोई भी जाने को तैयार नहीं हुआ और जो एक-दो कोई तैयार भी हुआ तो कोई 1000 रुपए, कोई 1200 रुपए, तो कोई 1500 रुपए माँगता। अंत में हम निराश होकर यही सोचे कि अब हरिद्वार बस स्टेशन चलते है वहीं से कोई गाड़ी ऋषिकेश के लिए पकड़ेंगे या आगे की मिल जाएगी पकड़ लेंगे।  फिर हम वापस हरकी पैड़ी आये और फिर एक ऑटो वाले को बस स्टेशन या रेलवे स्टेशन जाने के लिए पूछा तो कोई भी जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। बहुत मुश्किल से एक जाने के लिए तैयार भी हुआ तो उसने 200 रुपए मांगे। मैंने उससे कहा कि अभी तो एक घंटे पहले हम लोग 30 रुपए में आये हैं तो उसने कहा कि उससे ही चले जाओ और वो आगे बढ़ने लगा इतने में पीछे से एक और ऑटो आया तो उसने उस ऑटो वाले को आता देखकर थोड़ा रुका। हमने उस नए ऑटो वाले से कहा तो वो बोला की चलिए 40 रुपए दे दीजियेगा। हमलोग उस ऑटो में बैठने के लिए सामान उठाये ही  थे कि पहले ऑटो वाले ने कहा कि  चलिए मैं 25 रुपए में पहुंचा दूंगा तो मैंने भी उसे कहा कि अब तो मैं तुम्हारे ऑटो में फ्री  में क्या अब तुम अपनी ऑटो में बैठने के मुझे पैसे भी दोगे तो भी नहीं जाऊंगा और हम पीछे वाले ऑटो में बैठ गए। बस स्टेशन के पास पहुंचकर हम लोग ऑटो से उतारकर बस पड़ाव के अंदर न जाकर रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिए, कारण स्पष्ट था कि रेलवे स्टेशन जाकर पहले तो यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना। यात्रा रजिस्ट्रेशन काउंटर पर हम सब ने बारी-बारी से रजिस्ट्रेशन करवाया। उसके बाद ये तय हुआ कि कुछ खा लिया जाये। और हमलोग खाने के लिए बैठ गए। जब तक माँ ने खाना निकाला उतने देर में पत्नी ने गीले कपडे को सूखने के लिए डाल दी। जितने देर में हमलोगों ने खाना खाया उतने ही देर में जून के महीने में तेज़ धूप में सारे कपडे सूख गए।



केदारघाटी का एक मनोरम दृश्य

खाना खा लेने के बाद हम लोग बस स्टेशन गए। बस स्टेशन रेलवे स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं है। जैसे नदी के दो किनारे होते है वैसे ही सड़क के एक किनारे रेलवे स्टेशन है और दूसरे किनारे बस स्टेशन है। वहाँ जाकर भी मुझे निराशा ही हाथ लगी। हरिद्वार से ऋषिकेश जाने के लिए एक भी बस नहीं थी और न ही कोई बस आने की कोई संभावना ही थी।  कुछ ऑटो वाले पूछा कोई जाने के लिए तैयार नहीं हुआ।  कारण पूछने पर ऑटो वाले ने बताया कि पूरा रास्ता हरिद्वार से ऋषिकेश तक जाम है अगर हम गए भी तो शाम तक भी पहुँच नहीं पाएंगे। अब मेरे मन में ये ख्याल आने लगा कि  हम आज श्रीनगर (गढ़वाल) आज नहीं पहुंचे तो मेरा 8 दिन का जो सारा प्लानिंग है वो सब खत्म हो जायेगा। जहाँ जहाँ रात्रि विश्राम के लिए हमने होटल या रूम बुक करा रखा है वो किसी काम का नहीं रह जायेगा। पैसे तो बर्बाद होंगे ही परेशानी होगी सो अलग। इस यात्रा सीजन में यात्रा मार्ग में पड़ने वाले सभी होटल, धर्मशाला लगभग भरे हुए होते हैं। अब निराश होकर हम फिर से रेलवे स्टेशन आये। ट्रेन का टाइम पता किया तो पता चला की 10:25  पर ऋषिकेश के लिए एक पैसेंजर ट्रेन है। उस समय घडी में 9:30 बजे थे। हमने एक खाली जगह देखकर सारा सामन रखा और माँ, पिताजी और बेटे सामान का ध्यान रखने के लिए कहकर मैं और मेरी पत्नी टिकट काउंटर की तरफ गए। टिकट काउंटर पर बहुत भीड़ थी क्योकि जिन लोगों को बस से जाना था सड़क जाम होने के कारण सब लोग ट्रेन से जाने के लिए स्टेशन आ गए थे।  टिकट काउंटर पर भीड़ देखकर मैं एक लाइन में लग गया और पत्नी को महिलाओं की लाइन में लग जाने कहा। पत्नी की बारी पहले आ गयी तो मैं अपने काउंटर पर लाइन से निकल गया। पत्नी ने 5 टिकट लिया। टिकट लेने के बाद हम सामान उठाकर प्लटफॉर्म पर आ गए। 15 मिनट में ट्रेन आ गयी। हम लोग जल्दी से ट्रेन में बैठ गए अगर जल्दी नहीं  करते तो शायद हम लोगों को सीट नहीं मिल पाती। जितने देर तक ट्रेन प्लेटफार्म पर खड़ी रही उतने देर में ट्रेन में इतने लोग घुसे की ट्रेन के अंदर खड़े होने की जगह नहीं बची थी।


श्रीनगर (गढ़वाल) के गेस्ट हाउस से लिया गया पहाड़ का सीन

ट्रेन अपने समय से हरिद्वार से ऋषिकेश के लिए चली और एक घंटे की यात्रा के बाद हम लोग ऋषिकेश पहुँच गए।  ऋषिकेश पहुँचकर स्टेशन से बाहर निकलने के रास्ते का पता था नहीं फिर भी जिधर ज्यादा लोग निकल रहे थे उधर ही हम भी चल पड़े।  अच्छी बात ये रही कि हम सही तरफ बाहर निकले नहीं तो अनजान जगह पर किसी से पूछने पर कुछ नहीं बताता और खासकर वैसे जगह पर जहाँ 100 में से 90 लोग बाहर के पर्यटक ही हों। स्टेशन के बाहर बस स्टेशन जाने का रास्ता पूछा तो इधर बताये तो कोई उधर बताये। हर आने और जाने वाले ऑटो को पूछते पर कोई भी बस स्टेशन ले जाने को तैयार नहीं हो रहा था। मुझे तो ये भी पता नहीं था कि किधर जाना है तो एक बार एक तरफ जाने वाले ऑटो को पूछते तो दूसरी साइड कोई ऑटो आ जाता तो उस तरफ आ जाते फिर कोई ऑटो वाला पहली साइड आ जाता तो उससे पूछते पर हर बार निराशा ही मिलती।  इसी तरह पूछते पूछते 15 मिनट हो गए तब कहीं जाकर एक ऑटो वाला तैयार हुआ उसने बोला की 15 रुपए प्रति आदमी। हमलोग ऑटो में बैठ गए हम लोगो के बैठने के बाद 3-4 आदमी और ऑटो में बैठे। जितने लोग ऑटो में बैठ सकते है उससे 4 आदमी ज्यादा उसने बैठा लिया।  मैंने उससे कहा कि इतने लोग कैसे बैठेगे तो उसने बहुत ही रुखा जवाब दिया कि चलना है तो चलिए नहीं तो उतर जाइए। 10 मिनट में ही उसने बस स्टेशन पंहुचा दिया। वहां मैंने उसे 100 रुपए दिए और सोचा की 25 रुपए मुझे वो वापस करेगा।  पर यह क्या उसने मुझे 50 रुपए वापस किया। मेरे ये कहने पर कि आपने तो 15 रुपए प्रति आदमी बोला था तो उसका जवाब इस बार अच्छा था।  उसने कहा कि यदि इतनी लोग नहीं ऑटो में नहीं बैठाते तो 15 रुपए ही लेता। सबको वहां से यहाँ आना जरुरी था इसलिए इतने लोगो को बैठाया। मैंने उसे कहा की मुझे श्रीनगर जाना है बस कहाँ मिलेगी तो बस यहीं मिलेगी कहकर वो आगे बढ़ गया। मैंने तो यही सोचा की बस श्रीनगर से आएगी और श्रीनगर ही वापस जाएगी पर नहीं बस हरिद्वार से ही आती और श्रीनगर जाती।


गेस्ट हाउस के बरामदे में खड़ा मेरा बेटा  

यहाँ भी मैं कई  लोगों से पूछता रहा कि श्रीनगर वाली बस कहाँ मिलेगी तो सब यही कह रहे थे कि बस यहीं पर रुकेगी। एक आदमी बोला की 1:30 से 2:00 के बीच यही पर आएगी। वहीं पास एक आदमी जूस बेच रहा था, 15 रूपये के हिसाब हमने 5 गिलास जूस लिया और एक एक गिलास सबने पी लिया पर इतनी गरमी में इतने जूस से कोई राहत नहीं मिली।  जून की दोपहर की गर्मी और खड़ा भी हम लोग सड़क के किनारे पर थे। किसी तरह से रिक्वेस्ट करके एक दुकान के आगे छाया में हम लोग खड़े हो गए। सबको वहीं  रुकने के लिए कहकर मैं बस की तलाश में कुछ आगे गया।  वहां भी निराश ही हाथ लगी। अब मैं  सोचने लगा कि यदि बस नहीं मिली तो क्या होगा देखा कि एक बस आ रही है मैं दौड़ करके पास आया और सबको सामान लेकर आने का इशारा किया। बस में बहुत भीड़ थी कुछ  लोग बस से बाहर आये जिनको वहीं उतरना था। हम सब किसी तरह बस में सवार हो गए।  उस समय  1:30 बजे थे। बस के कंडक्टर ने 150 रुपए पार्टी आदमी के हिसाब से 750 रुपए लिए। बस में जगह नहीं थी फिर भी कंडक्टर ने मेरी माँ, पत्नी और बेटे को सीट दिया। एक सीट पर दो लोग बैठे हुए थे उनसे रिक्वेस्ट किया तो उन्होंने मेरे पिताजी को बैठने दे दिया। मैं अभी तक खड़ा था बस कुछ ही दूर चली एक किलोमीटर भी नहीं तो देखा की सड़क पूरी जाम है तो एक आदमी ने कहा कि लो यहाँ भी जाम सुबह 8 बजे हरिद्वार से चले हैं तो 6 घंटे में ऋषिकेश पहुंचे हैं। मतलब ये हुआ कि बस के सारे लोग 8 बजे हरिद्वार से चले तो अब ऋषिकेश पहुँचे हैं और मैं 10:25 पर हरिद्वार से ट्रेन से चला तो भी मैं इनके साथ हूँ। पर फर्क ये है की ये लोग आराम से बैठे हैं और मैं खड़ा हूँ। ऋषिकेश से बाहर निकलते ही सड़क के दोनों तरफ बड़े बड़े पहाड़, जंगल, नीचे पतित पावनी गंगा बह रही थी।  सड़क इतनी जाम थी कि बस रेंग रेंग कर चल रही थी। ऋषिकेश से शिवपुरी तक बस ऐसे ही चली।  शिवपुरी से आगे सड़क खाली थी। यहाँ से बस ने अपनी रफ्तार पकड़ी। मैं अब और ज्यादा खड़ा रहने की स्थिति में नहीं था। अब मैं वही फर्श पर ही बैठ गया।  दिक्कत तो बहुत हो रही थी पर ख़ुशी थी कि अब हम जैसे भी हो श्रीनगर पहुँच ही जायेंगे।




सूर्य की किरणों से चमकता बर्फ से भरा केदारनाथ की घाटी

आधे घंटे बस पूरी रफ़्तार से चलने के बाद कुछ खाने पीने के लिए बस एक जगह रुकी। बस में सवार सभी लोगों ने वहां कुछ नाश्ता किया, कुछ ने पानी पिया, मैंने भी एक दुकान में ठंडा पिया और कुछ टॉफियां रास्ते के लिए ले लिया। बस के ड्राइवर ने कहा कि सब लोग बस में बैठ जाएँ अब हम चलेंगे। सब लोग फिर से अपनी अपनी जगह पर बैठ गए। मैं भी फर्श पर बैठ गया। बस पूरी रफ़्तार से घूम-घुमाव सड़क पर चल रही थी। ऐसी सड़क मैंने पहली बार देखी थी। वैसे पटना से रांची मैं कई बार गया था वहां भी ऎसी सड़क थी पर इतनी ज्यादा नहीं। यहाँ तो 200 मीटर से ज्यादा सीधी सड़क कहीं थी ही नहीं। 4 बजे बस घूम-घुमाव सड़क पर चलते हुए देवप्रयाग पहुँच गयी। देवप्रयाग में दो पावन नदियों भागीरथी और अलकनन्दा का संगम है। भागीरथी गंगोत्री से आती है और अलकनंदा बदरीनाथ से। यहाँ दोनों एक साथ मिल जाती है और यहाँ से आगे गंगा के नाम से बहती है। देवप्रयाग से आगे जाने पर हलकी हलकी बरसात शुरू हो गयी थी। शाम 5:30 पर हम लोग श्रीनगर (गढ़वाल) पहुँच गए। श्रीनगर में खूब बरसात हुई थी यहाँ सड़को पर पानी भरा हुआ था। बस से उतरने के बाद हमने वही दुकान वाले से गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस के बारे में पूछा। उसने बताया की गेस्ट हाउस 50 मीटर पीछे है। गेस्ट हाउस में मुझे फर्स्ट फ्लोर का कमरा दिया। सब लोग थक चुके थे। कमरे में आते ही हम लोग एक-एक बेड पर कब्ज़ा कर लिए। कुछ देर आराम करने के बाद हम लोग नहा-धो कर तरोताज़ा हो गए। उसके बाद हम लोग गेस्ट हाउस के ही कैंपस में बने रेस्टुरेन्ट में खाना खाया और जाकर सो गए।

इससे आगे का विवरण पोस्ट में श्रीनगर से गौरीकुंड वाले भाग में। तब तक के लिए आज्ञा दीजिये।  जो भी गलती हो या जो सुधार की जरूरत हो बताइयेगा जरूर। 






श्रीनगर (गढ़वाल) में स्थित गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस


श्रीनगर (गढ़वाल) में स्थित गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस

श्रीनगर के गेस्ट हाउस से लिया गया पहाड़ का सीन

6 comments:

  1. यात्रा वर्णन बढ़िया किया हे सर जी
    थका देने वाला दिन था आपके लिए .....

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    1. हाँ जी ये पूरे 9 की यात्रा थी, दिल्ली से केदारनाथ, केदारनाथ से बद्रीनाथ, माना गाँव , फिर वापस दिल्ली। इस पूरी यात्रा में 1 दिन भी आराम करने के लिए नहीं मिला था

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    2. बस मिलने न मिलने का किस्सा वाकई जद्दोजहद भरा है...बढ़िया विवरण

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    3. हां ये तो है, यदि बस नहीं मिलता तो मेरा 8 दिन का पूरा प्लान बिगड़ जाता, पर महादेव की कृपा से सब ठीक रहा

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  2. अभय जी आपने बस व भीड का जो वर्णन किया है। पढकर लग रहा है की हम भी उसी तकलीफ से होकर गुजरे है। बढिया लेख

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    1. सचिन भाई, ये तो यात्रा की शुरुआत है, आप केदारनाथ यात्रा की सारी पोस्ट पढ़े बहुत बढ़िया न भी लगे तो क्या अच्छा तो लगेगा, और अपने पोस्ट पढ़ा उत्साहवर्धन किया आपका धन्यवाद्।

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