धर्मशाला : हिमाचल का गहना (Dharamshala)
कल पूरे दिन के सफर की थकान और बिना खाये पूरे दिन रहने के बाद रात को खाना खाने के बाद जो नींद आयी वो एक ही बार 4:30 बजे मोबाइल में अलार्म बजने के साथ ही खुला। बिस्तर से उठकर जल्दी से मैं नहाने की तैयारी में लग गया। फटाफट नहा-धोकर तैयार हुआ और सारा सामान पैक किया। इतना करते करते 5 :30 बज गए। अब कल की योजना के मुताबिक एक बार फिर माँ ज्वालादेवी के दर्शन के लिए चल दिया। बाहर घुप्प अँधेरा था। इक्का-दुक्का लोग ही मंदिर के रास्ते पर मिल रहे थे। कुछ देर में हम मंदिर पहुँच गए। यहाँ मुश्किल से इस समय 25 -30 लोग ही थी। अभी मंदिर खुलने में कुछ समय था। कुछ देर में आरती आरम्भ हो गयी। आरती समाप्त होते होते मेरे पीछे करीब 300 से 400 लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी। आरती के बाद 6:30 पर मंदिर के कपाट खोल दिए गए। बारी बारी से श्रद्धालु एक एक करके मंदिर में प्रवेश कर रहे थे और दर्शन के बाद दूसरे दरवाजे से निकल रहे थे। 20 मिनट में मेरी बारी आयी तो मैंने भी एक बार फिर से दर्शन किये। 7 :00 बज चुके थे उसके बाद सीधा मैं गेस्ट हाउस आया और अपने बैग उठाकर नीचे आया। यहाँ से मुझे बस से ज्वालामुखी रोड जाना था उसके बाद वहां से ट्रेन से बैजनाथ जाना था।
मैं एक बस में बैठ गया। बस बैजनाथ जा रही थी और मुझे भी वहीं जाना था। मैंने ड्राइवर से पूछा कि आपकी बस बैजनाथ कब तक पहुँच जाएगी तो उसने बताया की 1 बजे पहुंचेगी और किराया 130 रुपये। मैंने यही विचार किया कि ज्वालामुखी रोड तक बस से जाते है और वहां से ट्रेन से चले जाएंगे और खर्च भी कुल 40 रूपये होंगे। कंडक्टर के आने पर मैं ज्वालामुखी रोड का टिकट लिया और 8 बजे ज्वालामुखी रोड पहुँचने पर उतर कर रेलवे स्टेशन गया। जैसे ही मैं स्टेशन के गेट पर गया तो देखा कि ट्रेन मुझे मुँह चिढाते हुए सिटी बजाते हुए चल दी। अगली ट्रेन 10 बजे थी। इतनी देर इंतज़ार करना मैंने उचित नहीं समझा और जहाँ बस से उतरा था वहीं पहुंचकर यही सोचते हुए इंतज़ार करने लगा कि दोनों तरफ में से किसी भी जिस भी तरफ की बस आएगी मैं उसमे बैठ जाउगा। मैंने घडी पर निगाह डाली तो 8 :30 बज चुके थे। इतने में एक बस ज्वालाजी की तरफ से ही आ रही थी जो पता नहीं कहाँ जा रही थी। बस के रुकते ही मैं उसमे घुसा और एक खाली पड़ी सीट पर बैग रखा और दूसरे पर बैठ गया। अब मेरी और कंडक्टर के बीच हुए संवाद को देखिये :
कंडक्टर : कहाँ जाना है ?
मैं : बैजनाथ।
कंडक्टर : ये बस बैजनाथ नहीं जाएगी।
मैं : तो पहले बोलना चाहिए था ना।
कंडक्टर : तो पहले पूछना चाहिए था ना।
मैं : आपने पूछने का मौका कहाँ दिया।
कंडक्टर : क्या मौका नहीं दिया।
मैं : मेरे बस में चढ़ते ही आपके ड्राइवर ने बस भगा दी।
कंडक्टर : तो आप ड्राइवर को बोलिये मुझे नहीं।
मैं : तो पैसे मुझे ड्राइवर माँगेगा आप नहीं।
कंडक्टर : अच्छा कोई बात नहीं आप 23 रूपये दे दो।
मैं : 23 रूपये में कहाँ तक ले जाओगे।
कंडक्टर : काँगड़ा तक।
मैं : और उससे आगे।
कंडक्टर : मैं वहां आपको बैजनाथ वाली बस में बैठा दूँगा।
मैं : वैसे आपकी बस कहाँ तक जा रही है।
कंडक्टर : धर्मशाला।
मैं : तो आप मुझे धर्मशाला ले चलो।
कंडक्टर : अभी तो आप कह रहे थे कि बैजनाथ जाना है।
मैं : श्रीमान हम कहीं भी जा सकते हैं।
कंडक्टर : ठीक है धर्मशाला जाना है तो 50 रूपये दीजिये।
मैं : नहीं ये लीजिए 30 रूपये और मुझे 7 रूपये वापस कीजिये मैं काँगड़ा तक ही जाउगा।
कंडक्टर : ठीक है आपकी मर्ज़ी, पर आप जैसा हरेक सवारी करने लगे तो मैं पागल हो जाऊँगा।
मैं : अरे पागल तो मैं हो गया हूँ मुझे खुद पता नहीं कि कहाँ जाना है मेरी ट्रेन छूट गयी है अब मैं कहीं भी जा सकता हूँ।
कंडक्टर : बड़े अजीब आदमी हो आप।
मैंने कंडक्टर को 30 रूपये दिए थे उसने 7 रूपये मुझे वापस कर दिया और काँगड़ा में दूसरी बस में बिठाने की बात कहकर वो अपनी सीट पर बैठ गया। करीब 20 मिनट बाद बस एक जगह रुकी मैं वहीं उतरने लगा। मुझे उतरता देख कर कंडक्टर ने मुझे रोका :
कंडक्टर : आप अभी मत उतरिए अभी काँगड़ा नहीं आया है।
मैं : कोई बात नहीं मैं यहीं उतर जाता हूँ।
कंडक्टर : पर आप इस घाटी में कहाँ उतरेंगे और कहाँ जायेंगे।
मैं : कहीं नहीं बस पुरे दिन घूमूंगा क्योंकि मैं दिल्ली से घूमने ही आया हूँ।
कंडक्टर : आपके घर में तो सब ठीक है ना।
मैं : हाँ सब ठीक है और मैं मरने नहीं घूमने आया हूँ आप चिंता मत करें।
कंडक्टर : फिर भी मैं आपको यहाँ किसी भी हालात में उतरने नहीं दूंगा।
मैं : तो।
कंडक्टर : कुछ दूर बाद जब आबादी शुरू होगी तो आप उतर जाइयेगा मैं नहीं रोकूँगा।
मैं : अरे मुझे उतरने दीजिये मैं अब बैजनाथ नहीं चिंतपूर्णी जाऊंगा।
कंडक्टर : अभी तो आप कह रहे थे कि बैजनाथ जाऊंगा अब कह रहे है कि चिंतपूर्णी जाऊँगा।
मैं : हां मेरा मन बदल गया।
कंडक्टर : कुछ भी हो मैं आपको यहाँ नहीं उतरने दूँगा।
मैं : अजीब जबरदस्ती है।
कंडक्टर : जबरदस्ती नहीं है , फिर भी आप यहाँ नहीं उतर सकते।
मैं : अच्छा ठीक है।
कंडक्टर : यहाँ तो सब घूमने ही आते हैं , पर आप अलग तरह के घूमने वाले हैं।
मैं : मैं अलग किस्म का आदमी हूँ।
अब इस बात का मुझे भी पता नहीं कि मैं यहाँ क्यों उतरना चाहता था, अगर मैं यहां उतर भी जाता तो क्या करता ? करता क्या कोई और बस किसी भी तरफ जाने वाली उसमे बैठ जाता। पर उतरना क्यों चाहता था ये समझ नहीं पाया। खैर जो भी हो चाहे कंडक्टर की जिद से ही सही मैं उतरने से बच गया। और जब मेरी और कंडक्टर की मुँह-ठिठोली हो रही थी तो बस में बैठे सभी यात्री मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे कि या तो मैं कोई आतंकवादी हूँ या परग्रही हूँ। अरे चौकिये मत परग्रही का मतलब मैं अभी बता देता हूँ। परग्रही उसे कहते है जो दूसरे ग्रह से आया हो जिसे आप एलियन कहते हैं। पर मुझे इसमें मज़ा आ रहा था।
अब इस बात का मुझे भी पता नहीं कि मैं यहाँ क्यों उतरना चाहता था, अगर मैं यहां उतर भी जाता तो क्या करता ? करता क्या कोई और बस किसी भी तरफ जाने वाली उसमे बैठ जाता। पर उतरना क्यों चाहता था ये समझ नहीं पाया। खैर जो भी हो चाहे कंडक्टर की जिद से ही सही मैं उतरने से बच गया। और जब मेरी और कंडक्टर की मुँह-ठिठोली हो रही थी तो बस में बैठे सभी यात्री मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे कि या तो मैं कोई आतंकवादी हूँ या परग्रही हूँ। अरे चौकिये मत परग्रही का मतलब मैं अभी बता देता हूँ। परग्रही उसे कहते है जो दूसरे ग्रह से आया हो जिसे आप एलियन कहते हैं। पर मुझे इसमें मज़ा आ रहा था।
अब आगे की बात। कुछ दूर बाद फिर बस एक जगह रुकी। मैंने कंडक्टर को कहा कि अब मैं उतर जाऊं तो उसने कहा कि हाँ अब आप उतर सकते हैं। इस बार तो मैं आपका टिकट काट चुका था पर कभी अगली बार आप मिले तो आपसे पैसे नहीं लूँगा। उसकी इस बात पर मैंने उसे कहा कि आपके ऐसा सोचने के लिए धन्यवाद पर हम आपसे अब कभी मिलेंगे नहीं।
ज्वालामुखी रोड से यहाँ तक के सफर में पुरे रास्ते बर्फ से ढके हिमालय की चोटियां दिखती रही। बस से उत्तर कर मैंने आगे की और देखा तो हिमालय का ख़ूबसूरत नज़ारा सामने था। अब तक 9 बजे गए थे। धुप भी बहुत तेज़ थी। बर्फ से ढंके चोटियों पर धुप पड़ने से उसकी खूबसूरती और निखर रही थी। मन में हो रहा था कि काश यहीं के होके रह जाएँ। यहाँ का चप्पा चप्पा बहुत ही खूबसूरत और मनमोहक है, भाग्यवान हैं वो लोग जो इस देवभूमि पर रहते हैं।
मैं यहाँ से वापस उसी तरफ जाने का सोचा की चलो चिंतपूर्णी चलते हैं और जिधर बस गयी थी उधर ही चलने लगा कि बस इधर गयी है तो स्टेशन भी इधर ही होगी। फिर न चाहते हुए भी एक गुमटी वाले से मैंने रास्ता रास्ता पूछ ही लिया। अरे आप गुमटी तो समझते ही होंगे ना, लकड़ी की बड़ी छोटी सी दुकान को हम गुमटी कहते है, कुछ लोग इसे खोखा भी कहते हैं। अब मेरी और उस गुमटी वाले दुकानदार का संवाद देखिये :
जाना तो मुझे बस स्टेशन की तरफ ही था।
मैं : बस स्टेशन का रास्ता किधर है।
दुकानदार : इसी दिशा में आगे 10 मिनट लगेगा।
मैं : अच्छा चिंतपूर्णी की बस कहाँ मिलेगी।
दुकानदार : यहाँ भी मिल जाएगी पर यहाँ हो सकता है कि खाली जगह न मिले।
मैं : तो।
दुकानदार : तो आप बस स्टेशन जाइये।
मैं : अच्छा धर्मशाला कितनी दूर है।
दुकानदार : 18 किलोमीटर।
मैं : और क्या है पास में देखने के लिए।
दुकानदार : धर्मशाला से आगे 10 किलोमीटर मैक्लोडगंज और यदि समय है तो मैक्लोडगंज चले जाइये।
मैं : अच्छा पहले आप मुझे एक फ्रूटी दीजिये।
दुकानदार : फ्रूटी नहीं एप्पल जूस है।
मैं : दे दीजिये।
दुकानदार : वैसे आपको जाना कहाँ है।
मैं : मेरे पास 2 दिन का समय है कहीं भी जा सकते है।
दुकानदार : तो फिर आप धर्मशाला और नड्डी चले जाओ।
मैं : पैदल कितनी देर लगेगी।
कंडक्टर : शाम तक पहुँच जायेगें।
मैं : और बस से ?
कंडक्टर : एक घंटा धर्मशाला और वहां से 15 मिनट मैक्लोडगंज।
मैं : बस स्टेशन कितनी दूर है?
कंडक्टर : बस 10 मिनट से भी कम लगेगा।
मैंने दुकानकार को एप्पल जूस के पैसे दिए और चल दिया। थोड़ा ही आगे बस स्टेशन था। मैं धर्मशाला जाने वाली बस में बैठ गया। 9:30 बज चुके थे। 2 मिनट से भी कम समय में ड्राइवर ने बस स्टार्ट किया और चल दिया धर्मशाला की ओर। रास्ता बहुत मनमोहक था। पूरा हिमालय दिख रहा था। ऐसा लग रहा था कि सब कुछ जो दिख रहा है या तो उसे कैद कर लूँ या यहीं रह जाऊं। एक घण्टे के सफर के बाद 10 :30 बजे हम धर्मशाला पहुँच गए। वहाँ जैसे ही हम बस से उतरे वही पहले वाले बस का कंडक्टर दिख गया। मैं उससे बचने की निष्फल कोशिश करने लगा क्योकि मुझे उसने देख लिया था। वो मेरे पास आया और बोला आप यहाँ। मैंने उसे बोला कि भाई जी मैं आपको पहले ही कह चूका हूँ कि मैं घुमक्कड़ हूँ कहीं भी जा सकता हूँ। उसने कहा कि यदि मेरी आज अभी ड्यूटी नहीं होती तो एक दिन के लिए मैं भी आपके साथ घुम्मकड़ बन जाता। इसके बाद उसने मेरा नंबर लिया और अपना नंबर दिया और बोला की कभी फिर आना हो तो फ़ोन कीजियेगा हम भी एक दिन घुमक्कड़ी का मज़ा लगे। उसके बाद वो अपने बस में चला गया।
यहाँ मैं कुछ देर इधर उधर घुमा, क्या खूबसूरत जगह है। दिल्ली की भाग दौड़ वाली जिंदगी से हज़ार गुना अच्छी जिंदगी है यहाँ की। हर तरफ शांति है, शुकून है, जिसे भी देखो इन वादियों को एकटक निहार रहा है। पर एक चीज़ की कमी लग रही थी वो ये था कि जिन बर्फ से चमकते हुए पहाड़ों को देखकर हुए मैं यहाँ तक पंहुचा था वो यहाँ आके लुप्त हो गयी बस एक छोटी सी चोटी थी जो दिखाई पड़ रही थी। दूर दूर तक केवल जंगल, घाटी और मनमोहक वादियों में खोये हुए कब खड़े खड़े 30 मिनट बीत गए पता नहीं चला।
ध्यान आया तो वही खड़े एक आदमी से पूछा कि मैक्लोडगंज की बस कहाँ मिलेगी। उसने एक बस की तरफ इशारा करते हुए बोला कि वही बस जाएगी। अब तक 11 बज चुके थे। मैं मैक्लोडगंज जाने वाली बस में जाकर बैठ गया।
कुछ बातें धर्मशाला के बारे में
कुछ बातें धर्मशाला के बारे में
धर्मशाला भारत के हिमाचल प्रदेश प्रान्त का शहर है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के अलावा बौद्ध मठों के लिए जाना जाता है। बर्फ से ढंका हिमालय। यहाँ की नदियां और यहाँ की मनमोहक वादियां आपका मन मोह लेती है। ये एक बहुत ही छोटा शहर है। वैसे ये दो हिस्सों में बंटा हुआ है। पहला हिस्सा लोअर धर्मशाला है जिसे हम धर्मशाला के नाम से जानते हैं। दूसरा हिस्सा अपर धर्मशाला है जिसे हम मैक्लोडगंज के नाम से जानते हैं। धर्मशाला से मैकलोडगंज की दुरी करीब 10 किलोमीटर है।
धर्मशाला की ऊंचाई 1,250 मीटर (4,400 फीट) और 2,000 मीटर (6,460 फीट) के बीच है। यह पर्वत 3 तरफ से कसबे से घिरा हुआ है और यह घाटी दक्षिण की ओर जाती है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां पाइन के ऊंचे पेड़, चाय के बागान और इमारती लकड़ी पैदा करने वाले बड़े वृक्ष ऊंचाई, शांति तथा पवित्रता के साथ यहां खड़े दिखाई देते हैं। वर्ष 1960 से, जब से दलाई लामा ने अपना अस्थायी मुख्यालय यहां बनाया, धर्मशाला की अंतरराष्ट्रीय ख्याति भारत के छोटे ल्हासा के रूप में बढ़ गई है।
धर्मशाला की ऊंचाई 1,250 मीटर (4,400 फीट) और 2,000 मीटर (6,460 फीट) के बीच है। यह पर्वत 3 तरफ से कसबे से घिरा हुआ है और यह घाटी दक्षिण की ओर जाती है। यह अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, जहां पाइन के ऊंचे पेड़, चाय के बागान और इमारती लकड़ी पैदा करने वाले बड़े वृक्ष ऊंचाई, शांति तथा पवित्रता के साथ यहां खड़े दिखाई देते हैं। वर्ष 1960 से, जब से दलाई लामा ने अपना अस्थायी मुख्यालय यहां बनाया, धर्मशाला की अंतरराष्ट्रीय ख्याति भारत के छोटे ल्हासा के रूप में बढ़ गई है।
धर्मशाला में ओक, सेदार, पाइन और इमारती लकड़ी देर यहां उत्कृष्ट दृश्यों के साथ कुछ मनोहारी रास्ते हैं। भारत के ब्रिटिश वाइसराय (186) लॉड एल्गिन को धर्मशाला की प्राकृतिक सुंदरता इंगलैंड में स्थित उनके अपने घर स्कॉटलैंड के समान लगती थी।
जाने के साधन
सड़क मार्ग : दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से धर्मशाला के लिए हिमाचल रोडवे की बसें बहुत आसानी से मिल जाती है। इसके अलावा हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा संचालित डीलक्स बसें भी दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से मिल जाती है। इसके अलावा आप पठानकोट से काँगड़ा और काँगड़ा से धर्मशाला जा सकते हैं।
वायु मार्ग : धर्मशाला तक पहुँचने के लिए वैसे तो कोई सीधे हवाई साधन नहीं है। धर्मशाला का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट है जो धर्मशाला से करीब 13 किलोमीटर दूर है। यहाँ के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों से हवाई सेवा उपलब्ध है।
रेल मार्ग : धर्मशाला कहीं से भी रेल मार्ग से जुड़ा नहीं है। फिर भी यदि आप रेल मार्ग से जाना चाहते हैं तो यहाँ के लिए नज़दीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहाँ से आप बस से भी जा सकते हैं या फिर पठानकोट से जोगिन्दर नगर जाने वाली नैरो गेज रेलवे (टॉय ट्रेन, जिसे काँगड़ा वैली रेलवे भी कहते हैं ) से काँगड़ा तक जा सकते हैं। इसके बाद काँगड़ा से धर्मशाला तक 20 किलोमीटर का सफर बस ही तय करना होगा।
धर्मशाला के आस-पास के दर्शनीय स्थल :
मैकलोडगंज : धर्मशाला से 10 किलोमीटर।
भागसू नाग झरना : मैक्लोडगंज से 2 किलोमीटर।
करेरी झील : ओक और देवदार के पेड़ों के बीच स्थित झील जो आपका मन मोह लेगी।
त्रिउंड : ट्रैकिंग के शौक़ीन लोगो का अड्डा। यहाँ से आगे वैसे भी बर्फ की वादियां आरम्भ हो जाती है
डल झील : जी सही सुना आपने डल झील पर कश्मीर वाली नहीं।
नड्डी गांव : बहुत ही खूबसूरत जगह। मैक्लोडगंज से 6 किलोमीटर।
जाने के साधन
सड़क मार्ग : दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से धर्मशाला के लिए हिमाचल रोडवे की बसें बहुत आसानी से मिल जाती है। इसके अलावा हिमाचल पर्यटन विभाग द्वारा संचालित डीलक्स बसें भी दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस से मिल जाती है। इसके अलावा आप पठानकोट से काँगड़ा और काँगड़ा से धर्मशाला जा सकते हैं।
वायु मार्ग : धर्मशाला तक पहुँचने के लिए वैसे तो कोई सीधे हवाई साधन नहीं है। धर्मशाला का नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट है जो धर्मशाला से करीब 13 किलोमीटर दूर है। यहाँ के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों से हवाई सेवा उपलब्ध है।
रेल मार्ग : धर्मशाला कहीं से भी रेल मार्ग से जुड़ा नहीं है। फिर भी यदि आप रेल मार्ग से जाना चाहते हैं तो यहाँ के लिए नज़दीकी रेलवे स्टेशन पठानकोट है जो देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। यहाँ से आप बस से भी जा सकते हैं या फिर पठानकोट से जोगिन्दर नगर जाने वाली नैरो गेज रेलवे (टॉय ट्रेन, जिसे काँगड़ा वैली रेलवे भी कहते हैं ) से काँगड़ा तक जा सकते हैं। इसके बाद काँगड़ा से धर्मशाला तक 20 किलोमीटर का सफर बस ही तय करना होगा।
धर्मशाला के आस-पास के दर्शनीय स्थल :
मैकलोडगंज : धर्मशाला से 10 किलोमीटर।
भागसू नाग झरना : मैक्लोडगंज से 2 किलोमीटर।
करेरी झील : ओक और देवदार के पेड़ों के बीच स्थित झील जो आपका मन मोह लेगी।
त्रिउंड : ट्रैकिंग के शौक़ीन लोगो का अड्डा। यहाँ से आगे वैसे भी बर्फ की वादियां आरम्भ हो जाती है
डल झील : जी सही सुना आपने डल झील पर कश्मीर वाली नहीं।
नड्डी गांव : बहुत ही खूबसूरत जगह। मैक्लोडगंज से 6 किलोमीटर।
इससे आगे की बात एक छोटे से ब्रेक के बाद, बस बने रहिये मेरे साथ।
काँगड़ा यात्रा के अन्य भाग
अब कुछ फोटो हो जाये :
डिजिटलाइज़ेशन को दर्शाता धर्मशाला बस स्टैंड पर लगा बोर्ड |
काँगड़ा से धर्मशाला के ऊपर बर्फ से ढंके पहाड़ का मनभावन दृश्य |
काँगड़ा से धर्मशाला के ऊपर बर्फ से ढंके पहाड़ का मनभावन दृश्य |
बर्फ से ढंका हिमालय |
ठण्ड से कांपता पेड़ |
बर्फ की वादियां |
बर्फ की वादियां |
बर्फ की वादियां |
बर्फ की वादियां |
बर्फ की वादियां |
बर्फ की वादियां |
धर्मशाला में सैन्य छावनी के आगे खड़ा टैंक |
धर्मशाला से दीखता मैक्लोडगंज |
धर्मशाला से नीचे देखने पर |
धर्मशाला में घुमावदार सड़कें |
धर्मशाला से नीचे घाटियां |
धर्मशाला से दीखता हिमालय की बर्फीली चोटियां |
धर्मशाला से दीखता हिमालय की बर्फीली चोटियां |
धर्मशाला से दीखता खूबसूरत वादी |
न तो मेरी गाड़ी न ही किराये की पर ये किसकी है आप पता कर लीजिये |
धर्मशाला से ऊपर जंगल वाला पहाड़ |
काँगड़ा यात्रा के अन्य भाग
thank you so much sandeep jee, agar aap log aur sab log aise hi like karte rahe to dhire dhire kuch acha bhi likhne lagu
ReplyDeletethank you so much sandeep jee, agar aap log aur sab log aise hi like karte rahe to dhire dhire kuch acha bhi likhne lagu
ReplyDeleteConductor or apke beech jo baat huyi use padhkar maja aa gya
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Deleteहां कंडक्टर वाला संवाद बहुत ही रोचक हो गया, जब उसने कहा कि यदि आप जैसे 4 लोग मिल गए तो मैं तो पागल ही हो जाऊंगा
यही तो असली घुमक्कडी है जो आपने की है
ReplyDeleteधन्यवाद प्रतीक जी , संवाद बनाये रखियेगा
Deleteमजेदार
ReplyDeleteबस साथ साथ चलते रहिये,
Deleteमजेदार यात्रा
ReplyDeleteआपको बहुत सारा धन्यवाद और शुभकामनाएं।
Deleteसुंदर चित्रों के साथ सुंदर विवरण दिया है आपने, पहाड़ों की मेरी पहली यात्रा धर्मशाला की ही रही थी, इसलिए मुझे भी ये जगह पसंद है। आप का पंगा किसी न किसी से चलता ही रहता है 😄
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको। सच में बहुत ही सुंदर जगह है धर्मशाला, यहां फिर से जाना है सर्दियों के मौसम में। अब पंगे का क्या कहें ज्यादातर पंगे हमारे साथ किसी गाड़ी वाले से होता है।
Deletenice post
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