Thursday, May 4, 2017

बैजनाथ महादेव (Baijnath Mahadev), हिमाचल प्रदेश

बैजनाथ महादेव, पालमपुर
(Baijnath Mahadev, Palampur)

सबसे पहले आपको आज की योजना के बारे में बता दूँ। आज की मेरी योजना चिंतपूर्णी देवी से सीधे बैजनाथ जाने की है। साधन कुछ हो हो सकता है। चिंतपूर्णी देवी से ज्वालामुखी रोड तक बस से और वहां से ट्रेन से या फिर चिंतपूर्णी देवी से सीधे बैजनाथ तक बस से। उसके बाद 2:30 बजे वाली ट्रेन से बैजनाथ से पठानकोट और रात में पठानकोट में विश्राम और अगले दिन सुबह दिल्ली के लिए रवाना।


अब कुछ बाते बैजनाथ महादेव के बारे में 


हिमाचल के कांगड़ा ‌स्थित बैजनाथ का ये मंदिर आज भी त्रेता युग की यादों को समेटे हुए हैं। कहा जाता है कि रावण भी यहां से शिवलिंग को लंका नहीं ले जा पाया था। बाद में यहीं पर भगवान शिव का मंदिर बनाया गया। मान्यता है कि रावण तीनों लोकों पर अपना राज कायम करने के लिए कैलाश पर्वत पर तपस्या कर रहा था। भगवान भोलेनाथ को खुश करने के लिए उसने अपने दस सिर हवन में काटकर चढ़ा दिए थे। बाद में भगवान भोलेनाथ रावण की तपस्या से खुश हुए और उसके सिर उसे दोबारा दे दिए। यही नहीं भोलेनाथ ने रावण को असीम शक्तियां भी दी जिससे वह परम शक्तिशाली बन गया था। रावण ने एक और इच्छा जताई। उसने कहा कि वह भगवान शिव को लंका ले जाना चाहता है। ‌भगवान शिव ने उसकी ये इच्छा भी पूरी की और शिवलिंग में परिवर्तित हो गए। मगर उन्होंने कहा कि वह जहां मंदिर बनवाएगा वहीं, इस शिवलिंग को जमीन पर रखे। रावण भी कैलाश से लंका के लिए चल पड़ा। रास्ते में उसे लघुशंका जाना पड़ा। वह बैजनाथ में रुका और यहां भेड़ें चरा रहे गडरिए को देखा। उसने ये शिवलिंग गडरिए को दे दी और खुद लघुशंका करने चला गया। क्योंकि शिवलिंग भारी था इसलिए गडरिए ने इसे थोड़ी देर के लिए जमीन पर रख दिया। जब रावण थोड़ी देर में वापस लौटा तो उसने देखा कि गडरिए ने शिवलिंग जमीन पर रख दी है। वह उसे उठाने लगा लेकिन उठा नहीं पाया। काफी कोशिश करने के बाद भी शिवलिंग जस से तस नहीं हुआ। रावण शिव महिमा को जान गया और वहीं मंदिर का निर्माण करवा दिया। मंदिर का निर्माण अब नगोरा शैली में किया गया है। आज इस भव्य मंदिर में देश विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। आने आने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। हर साल राज्य स्तरीय शिवरात्रि मेला भी यहां होता है। जो मान्यता यहाँ के मंदिर के बारे में है वही मान्यता देवघर (बिहार, अब झारखण्ड) के बारे में है। 

जो कथा यहाँ के मंदिर के बारे में कही जाती है बिलकुल वही कथा बैद्यनाथधाम (जिला देवघर, बिहार, अब झारखण्ड) के बारे में भी कही जाती है।  इन दोनों के अलावा इस कथा से सम्बंधित एक और जगह है जो उत्तराखंड के कुमायूं में स्थित है। 



अब आज की यात्रा के बारे में


कल पूरे दिन के सफर की थकान के कारण जो नींद आयी वो एक ही बार 4:30 बजे मोबाइल में अलार्म बजने के साथ ही खुला। थकान इतनी थी कि उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था। और वैसे इतनी जल्दी उठ कर करता भी क्या। सोने से पहले मैंने होटल वाले से बस की जानकारी ली थी तो उसने बताया था कि चिंतपूर्णी से होशियारपुर और जलंधर की बस तो 5 :30 बजे ही मिलनी शुरू हो जाती है और ज्वालादेवी की पहली बस 6:30 बजे के करीब मिलती है लेकिन काँगड़ा की बस यहाँ से बहुत देर में मिलती है और उसका भी कोई समय नहीं है। उनकी बातों से आश्वस्त होकर हम भी यही सोचे कि आज 4:30 नहीं 5:30 बजे जागेंगे और आधे घंटे में तैयार होकर 6:00 बजे तक होटल से निकल जायेंगे। ठीक 1 घंटे बाद 5:30 बजे दुबारा मोबाइल का अलार्म बजते ही मैं उठा और जल्दी जल्दी नहा कर तैयार हुआ और निकल पड़ा बस स्टैंड की तरफ। वहां जाकर पता चला कि काँगड़ा की कोई बस नहीं है और ज्वालादेवी की बस 6:45 पर है। यदि मुझे काँगड़ा की बस मिल जाती तो मेरा करीब डेढ़ घंटा का समय बच जाता। 




अब कहते हैं ना कि "न मरता क्या न करता" या "फिर मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी" और यही कहावत इस समय मेरे ऊपर सेट कर रही थी। न चाहते हुए भी मुझे ज्वालादेवी की बस में बैठना पड़ा। बस चली तो मैंने ज्वालादेवी का टिकट ले लिया। रास्ते में एक देहरा नाम की जगह आती है वहां बस स्टैंड में मैंने देखा कि एक बस काँगड़ा जाने के लिए खड़ी है। हम ज्वालादेवी जाने वाली बस से उतर कर काँगड़ा जाने वाली बस में बैठ गए। अब मेरे मन में फिर कल वाले ख्याल आने लगे कि यदि आज बस ज्वालामुखी रोड 8 बजे तक पहुंच जाएगी तो बस से न जाकर ट्रेन से ही चले जाएंगे। मेरा ये ख्वाब पूरा हो भी जाता यदि रास्ते में बस के आगे भेड़ों का झुण्ड आकर बस को रास्ते में कुछ रुकने पर मजबूर नहीं करता। खैर किसी तरह भेड़ों को हटाकर बस आगे बढ़ी और कुछ देर बाद ज्वालामुखी रोड पहुंची, मैं घडी देखा तो समय के हिसाब से ट्रेन जा चुकी थी। मैं बस में ही बैठा खूबसूरत वादियों को देखते हुआ कहाँ खो गया कुछ पता नहीं लगा। ये वादियां इतनी हसीन है कि कोई भी यहाँ आकर बस खो जाता है। कल भी हम इसी रास्ते से 2 बार गुजरे थे और आज भी गुजर रहे हैं फिर ऐसा नहीं लग रहा था जैसे हम इन नज़ारों को पहली बार देख रहे हैं। नज़रें इन वादियों पर ऐसे टिक गयी थी जैसे आप अपनी महबूबा को पहली बार देख रहे हैं। इन वादियों में एक अलग ही नशा था। जैसे पीने वाले को कितना भी पिलाओ वो  मना नहीं करते वैसे ही इन खूबसूरत नज़ारों को जितना भी देखिये मन नहीं भरेगा। खैर जो भी हो हमें इस बस से काँगड़ा तक जाना था और वहां से बैजनाथ के लिए दूसरी बस पकड़नी थी। इन बहारों में खोये हुए हम कब काँगड़ा पहुँच गए पता ही नहीं चला। काँगड़ा पहुंचकर घड़ी देखा तो 8:45 बज चुके थे। जैसे ही बस से बाहर निकले तो देखा कि बैजनाथ के लिए बस खड़ी है और खड़ी ही नहीं बस चलने के लिए तैयार थी। हम जल्दी से बस में घुसे और एक खिड़की के साइड वाले सीट पर जम गए।

5 मिनट बाद ही बस काँगड़ा से चल पड़ी। यहाँ भी हिमालय की बर्फ से ढकी चोटिया साथ साथ चल रही थी। मेरी नज़र इन दृश्यों से हट ही नहीं रही थी। करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद 10 :30 बजे हम पालमपुर पहुंच गए। पालमपुर चाय के बागानों के लिए जाना जाता है। यहाँ की काँगड़ा टी (चाय ) की प्रसिद्धि भारत ही नहीं पूरे दुनिया में फैली है। बस मनाली तक जा रही थी। मैंने कंडक्टर से मनाली पहुंचने के समय के बारे में पूछा तो उसका जवाब सुनकर मुझे ठीक वैसे ही महसूस हुआ जैसे एक प्रेमिका द्वारा प्रेमी को ठुकरा देने पर होता है। जरा संवाद देखिये :


मैं : आपकी बस कहाँ तक जा रही है।
कंडक्टर : मनाली तक।
मैं : यहाँ से कितना किराया है। 
कंडक्टर : आपका तो बैजनाथ तक का टिकट है , उससे आगे का 200 रूपये।
मैं : किराया की तो बात छोड़िये, ये बताइये कितने देर में पहुँच जाएंगे। 
कंडक्टर : यहाँ से 8 घण्टे।
मैं : रहने दीजिये आपने तो दिल ही तोड़ दिया। 
कंडक्टर : क्या मनाली चलना है।
मैं : चलने का तो मन है, पर परसों मेरा ऑफिस में रहना बहुत जरूरी है।
कंडक्टर : नहीं चल लीजिए।
मैं : नहीं, नहीं जा सकता, बहुत काम है ऑफिस में। 

कंडक्टर : तो एक-दो दिन की ज्यादा छुट्टी ले लेते।

मैं : अचानक प्लान बन गए आने का। अच्छा मनाली से आगे। 

कंडक्टर : मनाली लास्ट है उससे आगे गाड़ी नहीं जाती।

मैं : अपने आठ घंटे का समय बताकर मेरा दिल तोड़ दिया।

कंडक्टर : अब समय ही इतना लगता ही है तो हम दिल क्यों तोड़ेगे आपका।

मैं : ठीक है आप मुझे बैजनाथ में उतार दीजियेगा, भोलेनाथ के दर्शन करके वापस लौट जाऊंगा। 

कंडक्टर : अभी बैजनाथ पहुंचे में 30 मिनट लगेंगे।


इतना कहकर कंडक्टर आगे बढ़ गया। आधे घंटे बाद करीब 11 बजे हम बैजनाथ पहुँच गए। बस से उतरकर मैंने कंडक्टर से ही मंदिर के में पूछा। मंदिर यहाँ से दूर नहीं थी 

यहाँ पहुंचकर अब मंदिर जाना था। यहाँ हमने पहले किसी से मंदिर का रास्ता पूछने का सोचा पर दूसरे ही क्षण मैं बिना किसी से कुछ पूछे ही बस स्टैंड से बाहर आया। यहाँ से मंदिर ज्यादा दूर नहीं है। बस अड्डे के विपरीत साइड में ही मंदिर है। हमने सड़क पार की और मन्दिर परिसर पहुँच गए। 

सच कहूँ तो ऐसा सुन्दर और भव्य मंदिर मैंने आज तक नहीं देखा। मंदिर को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी सपनों की दुनिया में आ गया। पता नहीं कौन होने वो लोग जो इतनी खूबसूरती से इसे बनाया होगा। अगर कुछ देखना ही है तो यहाँ आइये और एक निहायत ही ख़ूबसूरत स्थल पर ख़ूबसूरत कारीगरी को देखिये। मंदिर का स्थापत्य कला देखकर तो यही लगता है कि पहले ज़माने के लोग हम लोगो से ज्यादा सभ्य होंगे।



मंदिर के पास ही बहती खीर गंगा नदी इस दृश्य को और भी मनमोहक बना देती है। इस मंदिर में कुल 11 शिवलिंग और 11 छोटे छोटे मंदिर हैं। मंदिर में ज्यादा भीड़ नहीं थी।  कुछ स्कूल के बच्चे थे।  कुछ पर्यटक लोग थे। बहुत ही आराम से शिवलिंग के दर्शन हुए।  मंदिर में 2 नंदी की प्रतिमायें हैं, एक बड़ी और एक छोटी। कहा जाता है कि बड़ी नंदी के कान में यदि आप कुछ मन्नत मांगो तो वो बहुत जल्दी पूरी हो जाती है। कुछ लोग ऐसा कर भी रहे थे।  मैंने भी नंदी के कान में अपनी मन की बातें कह दिया।

एक घंटे तक यही रहने के बाद हम वापस पपरोला स्टेशन की तरफ चल दिए। यहाँ से चलने से पहले हमने अपने दिल पर हाथ रखा तो दिल से एक आवाज़ आ रही थी कि चलो एक बारे जोगिन्दर नगर चलते हैं पर उसी टाइम दिमाग से भी कुछ आवाज़ आयी, "ओ ज्यादा दूर मत जा आज वापस भी जाना है, क्योकि ऑफिस में भी ज्वाइन करना है , और कल का पठानकोट से टिकट भी है, अब चल यही से वापस।" अब दिमाग की बात मानकर हम वापस चल दिए। 

अब हमें शिव मंदिर से पपरोला स्टेशन जाना था।  आप पपरोला तक पैदल भी जा सकते हैं , पर मैंने बस से ही जाना उचित समझा और आ गए बस स्टेशन।  एक बस जो पठानकोट जा रही थी उसमे बैठ गए। यहाँ से पपरोला स्टेशन के किराया जानते है कितना है केवल और केवल 3 रूपये।  कुछ अजीब है न, 3 रूपये में तो दिल्ली में बस के गेट पर भी नहीं रहने देते।  बस में घुसो नहीं कि 5 रूपये दे दो। खैर हम पपरोला पहुंच गए।  भूख भी लग रही थे। मैंने आधा दर्जन केले लिया और पपरोला स्टेशन आ गए। अभी 1 बजे थे।  यहाँ से पठानकोट की ट्रेन 2:10 बजे थी।  मतलब अभी मुझे 1 घंटे से ज्यादा यहाँ ट्रेन का इंतज़ार करना होगा।  चलो अच्छा है थोड़ा सुस्ता लेते हैं।  आप भी थोड़ा आराम कर लीजिये। इससे आगे की यात्रा अगले भाग में।  जुड़े रहिये हमारे साथ , बस कुछ ही देर में आते हैं। 




कैसे जाएँ : बैजनाथ जाने के लिए पहले तो आपको पठानकोट जाना होगा।  पठानकोट से बैजनाथ के लिए डायरेक्ट बसें है और आप चाहे तो पठानकोट से काँगड़ा और उसके बाद काँगड़ा से बैजनाथ जा सकते हैं। अगर आप पूरे रास्ते ट्रेन से ही जाना चाहते हैं तो पठानकोट से जोगिन्दर नगर छोटी लाइन (काँगड़ा वैली ट्रेन) से जा सकते है।  यहाँ बैजनाथ मंदिर नाम से ही स्टेशन है जो मंदिर से 1 किलोमीटर दूर है, यदि आप यहाँ उतरते है तो आपको ये 1 किलोमीटर का सफर चढ़ाई करके पूरी करनी होगी, तो इससे अच्छा आप पपरोला उतर जाएँ जाएँ तो मंदिर से 3 किलोमीटर पहले है।  यहाँ से आप बस से चले जाये तो बिलकुल मंदिर के पास में ही उतारेगी। 


कहाँ ठहरें : यहाँ ठहरने के लिए प्राइवेट गेस्ट हाउस और होटल तो है ही और इसके अलावा यहाँ मंदिर न्यास प्राधिकरण द्वारा संचालित गेस्ट हाउस है जो बहुत ही किफायती और अच्छी है। 





अब कुछ फोटो हो जाये :





बैजनाथ मंदिर, पपरोला (पालमपुर, हिमाचल प्रदेश)

बस का रास्ता रोकते हुए भेड़ 

काँगड़ा चाय के लिए मशहूर पालमपुर, हिमाचल प्रदेश का चाय बागान 

.... 

पहाड़ के पीछे पहाड़ और उसके पीछे बर्फ से ढंका हिमालय 

नंदी के  कान में अपनी मन्नत मांगते हुए 

मंदिर परिसर में छोटे मंदिर 

मंदिर के अंदर शिवलिंग 

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी 

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी

मंदिर का पूरा दृश्य 

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी

मंदिर से दूर बर्फ से ढंके पहाड़ 

मंदिर परिसर  में लोग 

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी

नंदी

मंदिर का आँगन 

रास्ता दर्शाता बोर्ड 

मंदिर की दीवारों पर मूर्तियों की कारीगरी

सम्पूर्ण मंदिर का दृश्य 

पेड़ और बर्फ 

खीर गंगा नदी 

खीर गंगा नदी के किनारे पठानकोट मनाली हाईवे 

खीर गंगा नदी'

मंदिर के पीछे का भाग 

खीर गंगा घाट का रास्ता 

... 

अब तक तो पहचान ही गए होंगे 



15 comments:

  1. धन्यवाद इतने अच्छे यात्रा विवरणके लिये ।

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    1. आपका भी बहुत बहुत धनयवाद मेरे पोस्ट को पढ़ने के लिए

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  2. यात्रा विवरण बहुत ही अच्छा है
    दो जगह सही लिखना है
    1 हुआ हुआ है
    2 आने आगे लगे
    यहां सुधार की जररूत है

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    1. धन्यवाद, गलतियां बताने के लिए, मैंने गलतियों को सुधार दिया है। आगे भी जो गलतियां दिखे, उसे बताते रहें। एक बार पुनः धन्यवाद।

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  3. बढ़िया पोस्ट अभयानन्द जी....

    ये जगह भी मेरे लिए अन्जानी है ... अच्छा विवरण दिया आपने

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    1. हां ये एक बहुत ही अच्छी जगह है। और सब गूगल बाबा की दें है। ऐसा ही एक मंदिर उत्तराखंड में भी अब जल्दी ही वहां जाने की प्लानिंग करनी है, उससे पहले मुरैना (मध्य प्रदेश) के बटेश्वर मंदिर जाना है

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  4. बहुत अच्छा एक्स्प्लोर किया है आपने

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    1. धनयवाद ब्रजेश भाई

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  5. बहुत सुंदर पोस्ट है यह आपकी, जानकारी से भरी व सुंदर फोटो से सज्जित

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  6. यदि हमारे पास अपनी गाड़ी है तो फिर पठानकोट तो जान ही नही बनता।
    ओर हिमाचल की बसे जो पालमपुर जाती है क्या वो पठानकोट होक जाती है???

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    1. सुमधुर धन्यवाद सचिन जी, अपनी गाड़ी वालों की तो बात ही अलग होती है, वो तो किसी भी रूट से कही भी जा सकते हैं, हाँ पठानकोट से पालमपुर और बैजनाथ तक की बस मिल जाती है, प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह की बसें

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  7. श्याद जहाँ तक मुझे पता है
    दिल्ली से डायरेक्ट बस सेवा है।
    बैजनाथ की

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    1. दिल्ली से डायरेक्ट सेवा है या नहीं इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है

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  8. आपकी बैजनाथ मंदिर यात्रा के बारे में जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद। आपने अपनी यात्रा के प्रत्येक पहलू को कवर किया था और पूरा लेख अगले स्तर का है।

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