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Friday, November 29, 2019

उस रात की यादें (Memories of that night)

उस रात की यादें (Memories of that night)





वैसे तो रात को अंधेरे के लिए जाना जाता है लेकिन कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसा घटित होता है जिसके कारण रात अंधेरी न होकर सुनहरी हो जाती है। यह घटना तब की है जब हमारी आयु केवल 15 वर्ष थी। मैट्रिक की परीक्षा का अंतिम दिन था। सभी विषयों की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और अंतिम दिन केवल एक विषय बचा हुआ था। हर साल की तरह इस साल भी हमारे स्कूल का परीक्षा केन्द्र करीब 40 किलोमीटर दूर था। परीक्षा के अंतिम दिन सुबह पिताजी सारा सामान लेकर गांव की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और हम स्कूल की तरफ। एक बजे परीक्षा समाप्त हुई और अंतिम बार स्कूल के साथियों से मुलाकात करते करते और बातें करते करते कब दो घंटे बीत गए पता नहीं चला।

Tuesday, July 24, 2018

नदी : एक शीतल अहसास (Nadi: Ek Sheetal Ehsas)

नदी : एक शीतल अहसास (Nadi: Ek Sheetal Ehsas)


हर इंसान की जिंदगी को कुछ न कुछ चीजें प्रभावित करती हैं। कुछ चीजों के प्रति उसका जुनून और पागलपन हमेशा उसके साथ रहता हैं। कुछ शब्द, कुछ वस्तुएं, शहर, गांव, नदियां, खेत, जानवर, पक्षी आदि बहुत सी चीजें हैं जिनसे इंसान प्रभावित होता है और किसी खास चीज से इंसान का खास लगाव भी रहता है। कुछ चीजें किसी खास इंसान को बहुत हद तक आकर्षित करती है। वैसे ही और लागों की तरह हमें भी बहुत सी देखी-अनदेखी चीजों ने आकर्षित किया है, जैसे पहाड़, समुद्र, नदी, झरने, सड़कें, बाढ़, हरे-भरे खेत आदि और भी न जाने ऐसी कितनी चीजें हैं जिसके प्रति सदा ही मेरा आकर्षण रहा है। पहाड़ के प्रति मेरे लगाव, जुनून और पागलपन को आपने पहले पढ़ा ही होगा। आइए अब अपने नदी के प्रति उस लगाव के बारे में बताते हैं, जहां पहुंचकर हमें एक बहुत ही शीतलता का आभास होता था।

Wednesday, May 16, 2018

मैं और मेरी साइकिल (Main aur Meri Cycle)

मैं और मेरी साइकिल (Main aur Meri Cycle)


साइकिल एक ऐसा शब्द है जो किसी के लिए बस, तो किसी के लिए ट्रक तो किसी के लिए खेल का सामान, तो किसी के लिए जीविका का साधन है, पर मेरे लिए साइकिल एक सपना था, जिसे पूरा करने के लिए बहुत इंतजार करना पड़ता था। चौथी कक्षा में पढ़ता था तभी से साइकिल के प्रति मेरा रुझान हो गया था। चौथी कक्षा में साइकिल वाला अध्याय पढ़कर मेरे मन में साइकिल चलाने के प्रति तो जुनून आरंभ हुआ वो बस मन में ही दबी रही, उसे मन के गहराइयों से बाहर निकलने के लिए चार साल तक इंतजार करना पड़ा। जब चौथी कक्षा में तो लोगों को साइकिल चलाते हुए देखता तो एक अजीब सी उत्सुकता मन में होती थी कि ये साइकिल तो खुद बिना स्टैंड के खड़ी नहीं होती पर जब चलती है तो कभी एक, कभी दो, कभी तीन और कभी-कभी तो दो आदमी और दो बोरा सामान भी अपने ऊपर लेकर चलती है।

Monday, February 12, 2018

पहाड़ : मेरा बालहठ

पहाड़ : मेरा बालहठ




हर इंसान की जिंदगी को कुछ न कुछ चीजें प्रभावित करती हैं। कुछ चीजों के प्रति उसका जुनून और पागलपन हमेशा उसके साथ रहता हैं। कुछ शब्द, कुछ वस्तुएं, शहर, गांव, नदियां, खेत, जानवर, पक्षी आदि बहुत सी चीजें हैं जिनसे इंसान प्रभावित होता है और किसी खास चीज से इंसान का खास लगाव भी रहता है। कुछ चीजें किसी खास इंसान को बहुत हद तक आकर्षित करती है। वैसे ही और लागों की तरह हमें भी बहुत सी देखी-अनदेखी चीजों ने आकर्षित किया है, जैसे पहाड़, समुद्र, नदी, झरने, सड़कें, बाढ़, हरे-भरे खेत आदि और भी न जाने कितनी चीजें हैं जिसके प्रति सदा ही मेरा आकर्षण रहा है। इन चीजों में पहाड़ और समुद्र दो ऐसे शब्द हैं जिसने मुझे बचपन से ही बहुत ज्यादा आकर्षित किया और इसका भी कुछ खास कारण रहा। वो कारण ये था कि और चीजें तो हम हर दिन देखते और महसूस करते थे पर पहाड़ और समुद्र से हम बहुत दूर थे। तो आइए आज हम आपको पहाड़ के बारे में अपने जुनून और पागलपन की बातें बताते हैं और समुद्र के बारे में फिर कभी। शुरुआत एक फिल्मी गाने से करता हूं, जो पता नहीं किस फिल्म का है जो मुझे पता नहीं क्योंकि मैं फिल्में नहीं देखता हूं और न ही गाने सुनता हूं। वैसे गाने की पंक्तियां तो न चाहते हुए भी सुननी पड़ती है क्योंकि बसों, दुकानों, चौक-चौराहे पर आते-आते गाने सुनने को मिल जाते हैं जिसे न चाहकर भी सुनना पड़ता है, उसमें ही कुछ पंक्तियां याद भी रह जाती है, तो दो पंक्तियां आपके सामने प्रस्तुत करता हूं :