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Sunday, November 24, 2019

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)




एक बहुत ही लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से एक छोटी या बड़ी घुमक्कड़ी का संयोग बन रहा था, जिसमें जाने की तिथि तो हमने तय कर लिया था कि अमुक दिन हमें जाना है लेकिन वापसी की तिथि का कुछ पता नहीं था कि वापसी कब होगी, क्योंकि पहले यही नहीं पता था कि जाना कहां है, किस ओर कदम बढ़ेंगे, कितने दिन लगेंगे, और कौन साथ में चलेंगे या फिर अकेले ही जाना होगा, अगर कुछ तय था तो जाने का दिन और जाने की दिशा। अब जब जाने का दिन और दिशा तय था ही तो हमने सोचा कि क्यों न जाने का एक टिकट करवा लेता हूं और यही सोचकर हमने दिल्ली से हरिद्वार का एक टिकट बुक कर लिया। टिकट बुक करने के बाद कुछ साथियों को पूछा कि इतने तारीख को हम कहीं जाएंगे अगर आपका विचार बनता है तो साथ चलिए, जगह आप जहां कहेंगे हम वहां चले जाएंगे, पर वही ढाक के ढाई पात, ओह साॅरी ढाई नहीं तीन पात वाली बात हुई। कोई भी साथी जाने को तैयार न हुए।

Tuesday, January 23, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन (Ujjain-Omkareshwar Journey-1: Delhi to Ujjain)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन (Ujjain-Omkareshwar Journey-1: Delhi to Ujjain)




रामेश्वरम के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके लौटने के बाद से ही उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का मन होने लगा था। जैसा कि हमारी एक गलत आदत है कि कहीं भी जाओ तो एक जगह जाकर वापस आना मुझे अच्छा नहीं लगता है तो हमने उज्जैन के पास ही स्थित किसी और जगह जाने के बारे में हिसाब-किताब लगा लिया और वो जगह थी ओम्कारेश्वर। उज्जैन और ओंकारेश्वर में कोई खास दूरी नहीं है और उज्जैन से करीब चार घंटे का सफर करके ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है तो हमने उसी हिसाब से उज्जैन के साथ-साथ ओंकारेश्वर को भी अपनी इस यात्रा में जोड़ लिया। छुट्टियों के हिसाब से बहुत सोच विचार कर दिन और तिथियों का हिसाब लगाया तो अगस्त में दो ऐसा संयोग बन रहा था कि एक छुट्टी लेकर इस यात्रा को अंजाम दिया जा सकता था। पहला संयोग था 6 से 8 अगस्त और दूसरा था 13 से 15 अगस्त। 6 से 8 अगस्त तो पहले ही तुंगनाथ-चंद्रशिला के लिए आरक्षित हो चुका था तो दूसरे विकल्प पर ही जाने का निश्चित हुआ। अतः 13 अगस्त रविवार और 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी को देखते हुए हमने आॅफिस में पहले ही बीच में पड़ रहे 14 अगस्त की छुट्टी के लिए आवेदन दे दिया। अब एक दिन की छुट्टी ले रहा था तो कोई दिक्कत नहीं हुई।

Friday, October 13, 2017

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 1) : दिल्ली से हरिद्वार

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 1) : दिल्ली से हरिद्वार





आइए अपनी इस यात्रा में हम आपको उस स्थान पर ले चलते हैं, जो भगवान शिव से संबंधित है और उस जगह का नाम है तुंगनाथ। तुंगनाथ को पांच केदारों में से एक हैं। कुछ समय पहले जब हमने केदारनाथ की यात्रा किया था तो ये सोचा भी नहीं था कि कुछ ही समय बाद मुझे एक और केदार के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। कहा जाता है कि जब तक महादेव का बुलावा न आए तब तक यहां कोई नहीं आ सकता और जब बुलावा आ जाए तो इंसान खुद न चाहते हुए भी वहां पहुंच जाता है। मेरे साथ भी कुछ वैसा ही हुआ। मई महीने की बात है मेरे एक घुमक्कड़ मित्र संजय कौशिक हैं, जिन्होंने मुझे तुंगनाथ चलने के लिए कहा, पर व्यस्तता के कारण मैं उनके साथ नहीं जा सका। पर उसी दिन मैंने ये निर्णय ले लिया कि जितना जल्दी हो मैं तुंगनाथ जी के दर्शन कर लूंगा और उसी दिन छुट्टियों का हिसाब देखकर 6 से 8 अगस्त तक तुंगनाथ जाने की योजना बना लिया। 6 अगस्त रविवार, 7 अगस्त को रक्षाबंधन की छुट्टी और 8 अगस्त को आॅफिस से छुट्टी लेकर तुंगनाथ जाने की योजना पर काम करने लगा। 5 अगस्त रात्रि में दिल्ली से प्रस्थान और वापसी में 8 अगस्त की रात्रि में हरिद्वार से वापसी का निश्चित किया। अब बात रह गई हरिद्वार तक आने जाने की टिकट के लिए। साथ चलने के लिए किसी साथी की तलाश में करीब महीना भर बीत गया पर कोई भी साथ जाने के लिए नहीं मिला। अंत में थक हार कर हमने टिकट बुकिंग की प्रक्रिया शुरू की। ट्रेन के समयानुसार अगर हम मूसरी एक्सप्रेस का टिकट लेते तो हरिद्वार सुबह के सात बजे पहुंचते लेकिन हम वहां जल्दी पहुंचना चाहते थे जिससे हरिद्वार में हमें थोड़ा ज्यादा समय मिल सके। यही सब सोचकर हमने नंदा देवी एक्सप्रेस में टिकट देखा तो दिल्ली से हरिद्वार के लिए कोई टिकट उपलब्ध नहीं थी पर दिल्ली से देहरादून के लिए कुछ सीटें उपलब्ध थी, तो हमने दिल्ली से देहरादून की ही टिकट ले लिया पर उतरना मुझे हरिद्वार में ही था। नंदा देवी एक्सप्रेस का टिकट हमने हरिद्वार में कुछ ज्यादा समय मिलने के लिए लिया था पर दुर्भाग्यवश या कहिए कि मेरी लापरवाही से मुझे ज्यादा किया थोड़ा समय भी नहीं मिल सका और इसके बारे में आप आगे पढ़ेंगे। वापसी की टिकट भी इसी हिसाब से लेना था कि आने के बाद उसी दिन आॅफिस ज्वायन कर लें और उसके लिए मसूरी एक्सप्रेस एक्सप्रेस से आकर आॅफिस नहीं पकड़ सकता था क्योंकि मसूरी एक्सप्रेस दिल्ली आठ बजे सुबह पहुंचाती है। अतः हमने वापसी का टिकट भी नंदा देवी से ही लिया क्योंकि नंदा देवी दिल्ली सुबह 5 बजे ही पहुंच जाती है। नंदा देवी हरिद्वार से रात में 12:50 पर चलती है, इसलिए तकनीकी रूप से मैंने 9 अगस्त का टिकट लिया। वैसे कहा 8 अगस्त ही जाता पर रात के बारह बजे के बाद की ट्रेन के कारण 9 अगस्त की टिकट हुई। टिकट कर लेने के बाद हम यात्रा की तिथि का इंतजार करने लगे।

Friday, October 6, 2017

त्रिवेंद्रम से दिल्ली : एक रोमांचक रेल यात्रा

त्रिवेंद्रम से दिल्ली : एक रोमांचक रेल यात्रा



14 जून 2017 : आठ दिन से घूमते हुए अब यात्रा बिल्कुल अंतिम दौर में पहुंच चुकी थी। पद्मनाभ स्वामी मंदिर और कोवलम बीच से आने के बाद अब हमें वापसी की राह पकड़नी थी। तिरुवनंतपुरम् सेंट्रल स्टेशन से हमारी ट्रेन (ट्रेन संख्या 22633) दोपहर 2:15 पर थी। वैसे तो आम दिनों में इस ट्रेन को त्रिवेंद्रम से दिल्ली पहुंचने में 48 घंटे का समय लगता है पर माॅनसून के समय यही ट्रेन दिल्ली पहुंचाने में 52 का घंटे का समय लेती है। एक बजे तक हम लोगों ने सारा सामान पैक किया और खाने के लिए निकल पड़े और स्टेशन परिसर में ही बने फूड प्लाजा में खाना खाया और फिर वापस आकर सामान उठाकर प्लेटफार्म की तरफ चल पड़े। हमें प्लेटफाॅर्म पर पहुंचते पहुंचते 1:45 बज चुके थे। प्लेटफाॅर्म पर गया तो तो देखा कि ट्रेन पहले से ही खड़ी है और अधिकतर यात्री अपनी अपनी सीटों पर बैठ चुके हैं। जब हम अपनी सीट पर गए तो देखा कि कुछ लोग हमारी सीट पर भी कब्जा जमाए हुए हैं। अपनी सीट प्राप्त करने के लिए पहले तो उन लोगों से बहुत देर तक मुंह ठिठोली करनी पड़ी। इस सीट पर से हटाएं तो उस सीट पर बैठ जाएं, वहां से हटाएं तो फिर दूसरी पर। थक हार कर मुझे ये कहना पड़ा कि इस कूपे की सारी सीटें मेरी है। 4 लोगों में से 3 लोग तो आराम से निकल लिए पर चाौथे ने जिद पकड़ रखी थी नहीं जाने की और हमारी भी जिद थी हटाने की, लेकिन फिर हमने सोचा कि चलिए कुछ देर बैठने ही देते हैं फिर देखा जाएगा। इसी दौरान उन महाशय ने ये कह दिया कि क्या आपने ट्रेन खरीद लिया है और इसी बात की जिद से हमने भी उनको सीट से हटा कर ही दम लिया। अपनी ही जगह के लिए इतनी मशक्कत इस यात्रा में पहली ही बार हुआ। खैर मुझे सीट मिल गई और वो भाई साहब कहीं और जाकर बैठ गए।

Friday, August 11, 2017

तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा

तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा 






तिरुमला स्थित भगवान् वेंकटेश्वर और तिरुपति स्थित देवी पद्मावती के दर्शन करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात हमारा अगला पड़ाव रामेश्वरम था, जिसके लिए हमें पहले तिरुपति से चेन्नई सेंट्रल तक एक ट्रेन के सफर के बाद चेन्नई एग्मोर से रामेश्वरम तक का सफर दूसरे ट्रेन से करना था। दोनों ट्रेन की हमारी बुकिंग पहले से ही थी इसलिए सीट की भी कोई चिंता नहीं थी। पद्मावती मंदिर के दर्शन करके मन में एक नई ऊर्जा भर गई थी, क्योंकि इस जगह पर जाने के लिए न तो मैंने सोचा था और न ही यहाँ जाने की कोई योजना थी और हम थोड़े से खाली समय का सदुपयोग करके इस मंदिर के दर्शन भी कर लिया। शायद इस मंदिर के दर्शन न करता और बाद में लोगों से ये सुनता कि जितना समय हमारे पास था उससे कम समय में इस मंदिर के दर्शन किये जा सकते थे तो बाद में बहुत अफ़सोस होता, पर अब कोई अफ़सोस नहीं था। अब अगर कुछ था तो एक नयी ऊर्जा के साथ आगे की यात्रा के लिए बढ़ना। हमारी ट्रेन 10 बजे थे और 9:30 बज चुका था और हमें यहाँ से निकलकर स्टेशन के लिए प्रस्थान करने का समय हो चुका था। 

Friday, July 21, 2017

चेन्नई से तिरुमला

चेन्नई से तिरुमला


चेन्नई के बाद हमारा अगला पड़ाव तिरुमला था, जहाँ पहुँच कर रात में रुकना था और अगले दिन भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करना था। चेन्नई से तिरुपति तक का सफर ट्रेन और तिरुपति से तिरुमला तक का सफर बस से करना था। भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर तिरुमला की पहाड़ियों में स्थित है जो तिरुपति से बस से द्वारा 22 किलोमीटर और पैदल जाने वाले के लिए 10 किलोमीटर की चढ़ाई है। तिरुपति से तिरुमला पर्वत पर गाड़ियों के लिए जाने का अलग और आने का अलग मार्ग है, मतलब एकतरफा रास्ता है। वैसे चेन्नई से तिरुपति तक बस या ट्रेन दोनों से जाया जा सकता है। चेन्नई से तिरुपति की बसें बहुतायत में मिलती है। तिरुपति के पास में रेलवे का बड़ा स्टेशन रेनिगुंटा है, जहाँ के लिए चेन्नई से दर्जन भर से ज्यादा ट्रेनें है पर तिरुपति के लिए कुछ ही ट्रेन है।आप अगर ट्रेन से जा रहे हैं तो रेनिगुंटा या तिरुपति दोनों जगह से आपको तिरुमला के लिए बस और जीप बहुत आसानी से और बहुतायत में मिलती है। चेन्नई से तिरुपति की हमारी ट्रेन दोपहर 2:15 बजे थी और करीब 1:30 बजे हम वेटिंग रूम से प्लेटफार्म पर आकर ट्रेन का इंतज़ार करने लगे। 

Friday, July 7, 2017

दिल्ली से चेन्नई : एक लम्बी ट्रेन यात्रा

दिल्ली से चेन्नई : एक लम्बी ट्रेन यात्रा



4 महीने से जिस दिन का इंतज़ार कर रहा था आख़िरकार वो दिन आ गया। आज रात 10 बजे तमिलनाडु एक्सप्रेस से चेन्नई के लिए प्रस्थान करना था। मम्मी पापा एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंच चुके थे। यात्रा की सारी तैयारियां भी लगभग पूरी हो चुकी थी। मैं सुबह समय से ऑफिस  के लिए निकल गया। चूंकि ट्रेन रात में 10:30 बजे थी इसलिए ऑफिस से भी समय से पहले निकलने की कोई जल्दी नहीं थी, पर ये घुम्मकड़ मन कहाँ मानता है और 4 बजे ही ऑफिस से निकल गया। घर आकर तैयारियों का जायजा लिया और बची हुई तैयारियों में लग गया। 7 बजे तक सब कुछ तैयार था, बस अब जाते समय सामान उठाकर निकल जाना था। साढ़े सात बजे तक सब लोग खाना भी खा चुके और 9 बजने का इंतज़ार करने लगे। अभी एक घंटा समय हमारे पास बचा हुआ था और इस एक घंटे में मेरे मन में अच्छे-बुरे खयाल आ रहे थे, अनजान जगह पर जहाँ भाषा की समस्या सबसे ज्यादा परेशान करती है उन जगहों पर पता नहीं क्या क्या समस्या आएगी। इसी उधेड़बुन में कब एक घंटा बीत गया पता नहीं चला।

Saturday, May 20, 2017

पठानकोट से दिल्ली (Pathankot to Delhi)

पठानकोट से दिल्ली (Pathankot to Delhi)


इस पोस्ट को लिखने से पहले मैं बार बार यही सोच रहा था कि मैं अगर इससे पीछे वाली पोस्ट को ही अगर मैं थोड़ा और बड़ा कर देता तो ये पोस्ट लिखनी नहीं पड़ती, और अगर उसी पोस्ट में इसे जोड़ भी देता तो शायद पोस्ट लम्बी और उबाऊ हो जाती।  खैर रहने दीजिये इन बातों को, इन बातों का कोई निष्कर्ष तो निकलने वाला है नहीं तो उसके बारे में बोलने या लिखने से क्या फायदा। अब आज की यात्रा की बात करते हैं। 

5 दिन पहले में जिस सफर की शुरुआत की थी आज उसके अंजाम तक पहुँचने का दिन आ चुका था। कल पूरे दिन बस और ट्रेन का सफर (करीब 110 किलोमीटर बस और करीब 220 किलोमीटर ट्रेन का सफर) और इधर उधर की भागा-दौड़ी का ये प्रभाव हुआ कि आज सुबह उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था। 4 :30 बजे अलार्म बजने के साथ ही नींद टूटी तो मैं अलार्म बंद करके फिर सो गया, दूसरी बार अलार्म 5:00 बजे बजा तो उठा और 5:30 बजते बजते जल्दी जल्दी नहा धोकर तैयार हुआ और ये सोचकर स्टेशन से बाहर गया कि कुछ खा-पी लिया जाये क्योकि ट्रेन पर का खाना मुझे बिलकुल पसंद नहीं है, यदि यहाँ नहीं खाया तो पूरे दिन बिना कुछ खाये ही रहना पड़ेगा। स्टेशन से बाहर जाकर भी निराशा ही हाथ लगी, एक चाय की दुकान तक नहीं खुली थी, इधर उधर देखा और कुछ दूर तक भी गया फिर भी कुछ खाने पीने के लिए नहीं मिला। एक कहावत है न कि अपना सा मुँह बना लेना, वही मेरे साथ हुआ, जिसे फुर्ती से मैं स्टेशन से बाहर चाय पीने गया था और कुछ न मिलने के कारण उसी फुर्ती से मुँह बना कर वापस आ गया। 

Saturday, May 6, 2017

बैजनाथ महादेव से पठानकोट (Baijnath to Pathankot)

बैजनाथ महादेव से पठानकोट 
(Baijnath to Pathankot)




इतने दिन से घूमते हुए अब वो घड़ी आ गयी जब हमें वापस जाना होगा। ज्वालादेवी, धर्मशाला, मैक्लोडगंज, भागसू नाग वाटर फॉल, चिंतपूर्णी देवी और बैजनाथ महादेव की यात्रा पूरी करके और कुछ खट्टी-मीठी यादें लेकर और कुछ को अपने कैमरे में कैद करके बुझे मन से वापसी की राह पकड़नी थी। बैजनाथ मंदिर देखने के बाद वहां से बस से हम पपरोला आ चुके थे। 

पपरोला बस स्टैंड से रेलवे स्टेशन की दूरी महज 100 मीटर ही है। मैं स्टेशन पंहुचा तो यहाँ का नज़ारा ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी निर्जन प्रदेश में आ गए। स्टेशन के बाहर-भीतर और यहाँ तक प्लेटफार्म पर भी कोई मानव नहीं दिख रहा था, अरे मानव तो क्या कोई और जंतु भी दिख जाता तो लगता कि कुछ दिखा। अगर कुछ दिख रहा था यार्ड में खड़ी ट्रेन की 2 इंजन और ट्रेनें। मन तो कर रहा था कि स्टेशन के बोर्ड पर जो "बैजनाथ पपरोला" लिखा हुआ है उसे मिटाकर "निर्जन पपरोला" कर दें, पर ऐसा करना सरकारी संपत्ति का नुकसान करना होता, इसलिए नहीं लिखे। 

Monday, April 10, 2017

काँगड़ा वैली ट्रेन यात्रा (Kangra Valley Train Journey)

काँगड़ा वैली ट्रेन यात्रा (Kangra Valley Train Journey)



पठानकोट से ज्वालामुखी रोड (Pathankot to Jwalamukhi Road)

पठानकोट में ट्रेन से उतरने के बाद टिकट लेकर और कुछ फोटो खीचने के बाद मैं सीधा प्लेटफार्म 4 पर चला गया। अभी सुबह के 8 :45 बजे थे। वहां पहले से ही एक ट्रेन लगी थी। मैंने गार्ड से पूछा तो उसने बताया कि ये तो अभी आयी ही है। ये ट्रेन यार्ड में जाएगी और जो जाएगी वो कुछ देर में यहाँ लगा दी जाएगी। मैं पहली बार इतनी छोटी ट्रेन देख रहा था। ट्रेन की पटरियों की चौड़ाई बहुत ही कम थी। देखकर मन प्रफुल्लित हो रहा था। बस जल्दी से ट्रेन में बैठ जाने का मन रहा था। वहीं पर एक चाय की दुकान थी मैंने एक कप चाय लिया और पीने लगा। मेरी चाय ख़त्म होने से पहले ही पहले वहां खड़ी ट्रेन को एक इंजन खीचकर यार्ड की तरफ ले गया। यार्ड में खड़ी दूसरी ट्रेन प्लेटफार्म पर लगा दी गयी। मैं जल्दी से ट्रेन में घुसा और खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गया। 

Thursday, April 6, 2017

दिल्ली से पठानकोट (Delhi to Pathankot)

दिल्ली से पठानकोट (Delhi to Pathankot)



आख़िरकार इंतज़ार ख़तम हुआ और यात्रा की तिथि आ ही गयी। ट्रेन पुरानी दिल्ली (दिल्ली जंक्शन) से रात 11:45 पर थी। रोज तो ऑफिस से मैं करीब 8 बजे आता था। आज जाना था इसलिए ऑफिस से 6 बजे ही निकल गया। करीब 6:30 बजे मैं घर पहुँच गया। अब तक कंचन पैकिंग का सारा काम कर चुकी थी। मुझे 4 दिन बाहर रहना था इसी हिसाब उसे उसने इतना खाने-पीने का सामान दे दिया था कि इतने में बिना कहीं किसी होटल में खाना खाये भी मेरा गुजारा हो जाये। 


9:15 बजे मैं घर से निकला और सीधा मेट्रो स्टेशन पहुँच गया। मेट्रो में जो भीड़ होती है उसके कारण मुझे मेट्रो से कहीं भी आना जाना पसंद नहीं है पर ये सोचकर कि रात ज्यादा हो गयी है तो भीड़ कुछ कम मिलेगी इसलिए मेट्रो से जाने का इरादा किया और मेरा ये अंदाज़ सही निकल जब प्लेटफार्म पर पहुंचे तो कुछ ही लोग थे और जो मेट्रो आयी भी वो भी 8 कोच की जिसके कारण मेट्रो के अंदर भीड़ ज्यादा नहीं हो सकी। पर जैसे जैसे स्टेशन आ रही थी मेट्रो के अंदर भीड़ बढ़ती जा रही थी और उसका कारण एक ही था कि हरेक स्टेशन पर चढ़ने वाले यात्री तो थे पर उतरने वाले यात्री एक भी नहीं थे। इसी तरह बाराखंभा रोड स्टेशन आते आते भीड़ इतनी हो गयी कि अब खड़े होने मुश्किल हो रहा था। अब मन में मैं बस यही सोच रहा था कि काश मैं ऑटो से आ जाता तो ये गति नहीं होती हमारी।