त्रिवेंद्रम यात्रा : पद्मनाभस्वामी मंदिर और कोवलम बीच
आज हमारी यात्रा का आठवां दिन था और हमारी यात्रा अब धीरे धीरे अंतिम अवस्था में पहुंच रही थी। त्रिवेंद्रम से दिल्ली की हमारी ट्रेन दोपहर बाद 2ः15 बजे थी। तब तक पहले की बनी योजना के अनुसार आज पद्मनाभ स्वामी मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन करना और उसके बाद कोवलम बीच जाना था। उसके बाद वापसी में समय बचने पर गणपति मंदिर में गणपति जी के दर्शन करना था। तड़के सुबह 3 बजे अलार्म बजने के साथ ही नींद खुल गई। रात में 11 बजे के बाद तो सोए थे और 4 घंटे में नींद ठीक से पूरी हुई भी नहीं कि जागना पड़ रहा था। वैसे भी घुम्मकड़ी में नींद और भूख दोनों को त्यागना पड़ता है तभी घुमक्कड़ी हो सकती है। खैर जैसे तैसे आंखे मलते हुए उठे और दूसरे कमरे में सो रहे सभी लोगों को जगाया। यहां कमरा भी ऐसा मिला था कि हरेक व्यक्ति के लिए एक छोटा कमरा था और हम पांच लोगों के लिए पांच अलग अलग कमरे थे। हमारी योजना मंदिर 5 बजे से पहले पहुंचने की थी इसलिए सब जल्दी जल्दी नहा धो कर निकलने की तैयारी करने लगे। 4 बजते बजते हम लोग तैयार हो गए। सारा सामान पैक कर लिया गया कि आने के बाद ज्यादा समय न लगे और गीले कपड़े सूखने के लिए कमरे में ही डाल दिया गया। इतना सब करते करते 4ः15 बज गए। मंदिर जाने के लिए हम कमरे से निकले तो अभी बाहर बिल्कुल घना अंधेरा था। स्टेशन से बाहर आते ही हमें पद्मनाभ स्वामी मंदिर जाने के लिए केवल 50 रुपए में एक आॅटो मिल गया। आॅटो वाले से हमने मंदिर के मुख्य दरवाजे की तरफ छोड़ने का कहा। केवल 10 मिनट के सफर में हम मंदिर के पास पहुंच गए और आॅटो वाले को पैसे देकर हम मंदिर की तरफ बढ़ गए।
अब तक 4ः45 बज चुके थे। जैसा कि मुझे मालूम था उस हिसाब से 5ः00 बजते ही मंदिर बंद कर किया जाता है। मंदिर के पास पहुंचे तो पता चला कि यहां पुरुष केवल धोती पहन कर ही जा सकते हैं। ये तो अच्छा था कि हमने तिरुपति में जो धोती खरीदा था साथ में रख लिया था वरना हमें वापस जाकर धोती लाना पड़ता या फिर यहां मुंह मांगे दाम में धोती खरीदने पड़ते। वहीं पास ही एक दुकान में सामान रखने की व्यवस्था थी और सामान रखने की कीमत सामान की गिनती के हिसाब से तय था। जैसे पैंट के 3 रुपए, शर्ट के 2 रुपए, कैमरे और मोबाइल के 5 रुपए प्रति नग (वस्तु) के हिसाब आदि आदि। सामान जमा करवा कर हम मंदिर के पास पहुंचे तो प्रवेश द्वार पर तैनात महिला सुरक्षा गार्ड ने बताया कि महिलाओं के लिए साड़ी अनिवार्य है। माता जी तो साड़ी में थी लेकिन कंचन कुर्ता और सलवार में थी और वो इस कपड़े में मंदिर नहीं जा सकती थी। अब सुरक्षा कर्मियों से ही मैंने कुछ सुझाव मांगा कि यदि इस कपड़े में इन्हें आप अंदर नहीं जाने देंगे तो साड़ी के लिए मुझे वापस स्टेशन जाना पड़ेगा जिसमें हमारा घंटे भर से ज्यादा का समय बर्बाद हो जाएगा और यदि कोई दूसरा उपाय है तो बताइए। अब उनके अनुसार दूसरा उपाय ये था कि मैं एक धोती खरीदूं और ऐसे ही उपर से लपेट कर काम चल सकता है। मैं जल्दी से एक धोती खरीद कर लाया और सुरक्षा जांच के बाद मंदिर में प्रवेश किया। इस धोती खरीदने की प्रक्रिया में हमारा 10 मिनट का समय बर्बाद हो गया और मंदिर बंद हो गया। मंदिर के कर्मचारियों ने बताया कि अब दर्शन के लिए दुबारा मंदिर 6ः30 बजे खुलेगा तब तक आप यहीं बैठ कर इंतजार कर सकते हैं। हमारे पास कोई और उपाय नहीं था और जहां से दर्शन के लिए लाइन लगती है वहीं जाकर बैठ गए और दुबारा मंदिर खुलने का इंतजार करने लगे।
इन्तजार के इस पल में जो हमने देखा वो भी एक अद्भुत दृश्य था। कुछ स्थानीय लोग भी मंदिर में आए हुए थे और उनके अनुसार इस दृश्य को देखने का सौभाग्य हर किसी को नहीं मिलता। अगर कुछ बुरा होता है तो समझिए कुछ अच्छा भी होने वाला है और यही हमारे साथ भी हुआ। मंदिर बंद होना मेरे लिए थोड़ी सी परेशानी देकर गया और मेरा समय बर्बाद हुआ। पर आगे जो अच्छा हुआ वो एक सुनहरे सपने जैसा था। मंदिर के पुजारी लोग ढोल-नगाड़ों के साथ गोविंदा (भगवान विष्णु) की प्रतिमा को सिर पर उठाकर परिक्रमा करा रहे थे और ऐसा ही तीन बार हुआ और हम उसके साक्षी बने। धीरे धीरे समय बीत रहा था और इन खूबसूरत नजारों के बीच कब 6:30 बज गए पता भी नहीं चला। 6:30 बजने से कुछ मिनट पहले दर्शनों के लिए लाइन में लगे लोगों को धीरे आगे भेजा जाने लगा और हम भी लाइन के साथ बढ़ने लगे। धीरे हम गर्भ गृह में पहुंच गए जहां हमने गोविंदा (भगवान विष्णु) के दर्शन हुए। यहां भी हमें ठीक वैसी ही अनुभूति का अनुभव हुआ जैसा हमें तिरुपति में हुआ था। एक पल को लगा कि हम एक बार फिर से वहीं पहुंच गए हैं। यहां से दर्शन करके निकलने के बाद हम आगे बढ़े और आगे भी कुछ देवी देवताओं की प्रतिमाओं के दर्शन हुए। उसके बाद हम बाहर निकले तो एक जगह खीर का प्रसाद बांटा जा रहा था। हमने भी उसे खीर को खाया और बर्तन को धोकर उचित स्थान पर रखा। उसके बाद कुछ और चीजें प्रसाद के रूप में खाने के लिए मिला जिसका नाम मुझे पता नहीं है और वो भी बहुत ही स्वादिष्ट था। एक बात और जो मैंने मंदिर में देखा कि केवल वहां दर्शन के लिए आने वाले लोग ही नहीं मंदिर की सुरक्षा में लगे गार्ड भी केवल और केवल धोती में ही थे। यहां तक कि वहां पुलिस के भी जो जवान थे उन सबका लिबास भी यहाँ आने वाले दर्शनार्थी के जैसा ही था। यहां आकर सबका एक ही रूप था, न तो कोई बड़ा न ही कोई छोटा। प्रसाद ग्रहण करने के बाद हम मंदिर से बाहर निकलने के बाद अपने कपड़े, मोबाइल और कैमरा लिया और उसका भुगतान करने के बाद कोवलम बीच जाने के लिए चल पड़े।
मंदिर के पास ही बने बस स्टैंड पर गए तो कुछ आॅटो वाले से सामना हुआ। इनमें से एक आॅटो वाले ने 200 रुपए में कोवलम बीच तक पहुंचाने की बात की। 200 रुपए कुछ ज्यादा लग रहा था इसलिए हमने बस से जाने का विचार किया पर वो पीछा छोड़ने के लिए तैयार नहीं था, कहने लगा कि अगर आप बस से जाते हैं तो 30 रुपए प्रति सवारी लगेंगे और बस आपको कोवलम बीच तक नहीं पहुंचाएगी और मुख्य सड़क पर ही उतार देगी। मुख्य सड़क से कोवलम बीच की दूरी करीब एक किलोमीटर है। अब पांच सवारी के बस से जाने के 150 रुपए तो हो ही जाते तो 200 रुपए में हमने आॅटो से जाना ही उचित समझा। बात तय हो जाने के बाद हम आॅटो में बैठ गए। कुछ दूर के बाद शहरी इलाके कम होने लगे और हरियाली ने उसकी जगह ले ली। सड़क के दोनों तरफ हरे हरे केले, नारियल और भी अन्य प्रकार के पेड़ों की भरमार थी। देखकर ये महसूस नहीं हो रहा था कि हम किसी शहर में हैं। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे हम किसी जंगल के बीच बने सड़के से होकर गुजर रहे हैं। ऐसी ही मनोहारी दृश्यों के साथ करीब 25 मिनट के सफर के बाद हम कोवलम बीच पहुंच गए।
मुख्य सड़क से कोवलम बीच तक पहुंचने का रास्ता बिलकुल ढलान वाला रास्ता है। यहां पहुंचकर जो नजारा दिखा उसे देखकर तो ऐसा लगा जैसे इतने दिन से सफर की जो थकान हम पर हावी थी वो सब कहीं दूर चली गई। नारियल के पेड़ों से घिरा धनुषाकार कोवलम बीच बहुत ही सुन्दर लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी खूबसूरती इस पर लुटाई हो और शायद इसी वजह से इसे भारत के सबसे खूबसूरत बीचों में से एक कहा गया है। वैसे भी कोवलम का अर्थ ही होता है नारियल के पेड़ों का समूह और शायद इसी कारण इसका नाम कोवलम रखा गया है। पास ही में समुद्र के बीच लाइट हाउस बना है और वहां रहने वाले लोगों के अनुसार इसकी खूबसूरती रात में और निखर जाती है। नजारा ऐसा खूबसूरत था कि यहां से जाने का मन तो बिल्कुल भी नहीं था। एक घंटे कब बीत गए कुछ पता नहीं चला। घड़ी देखा तो 9 बज चुके थे। यहां की मनोहारी छटा को देखने के बाद अब हम वापस चल पड़े। एक आॅटो बुक किया जो 200 रुपए में स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गया पर यहां से वह 2 लोगों को ही बैठाने के लिए राजी हुआ क्योंकि यदि सब लोग बैठ जाते तो इतनी चढ़ाई पर चढ़ना आॅटो के लिए संभव नहीं था और दुर्घटना की भी संभावना थी। पिताजी और आदित्या को आॅटो में बैठाकर मैं, कंचन और माताजी पैदल ही सड़क की तरफ चल पड़े। सड़क पर पहुंच कर आॅटो में बैठे और फिर से उन्हीं मनोहारी और नयनाभिराम रास्ते से होते हुए स्टेशन की तरफ बढ़ते रहे।
जिस रास्ते से गए थे वापसी भी उसी रास्ते से थी तो आते समय एक बार फिर पद्मनाभ स्वामी मंदिर के दूर से दर्शन हुए। मंदिर से कुछ दूर आगे जाने पर स्टेशन से कुछ पहले एक गणपति जी का बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है, जिसके बारे में नरेंद्र शेलोकर भाई ने मुझे बताया भी था पर समय के अभाव के कारण मैं इसे अपनी योजना में शामिल नहीं कर सका था। अब जब रास्ते से गुजरते हुए मंदिर दिख गया तो हमने आॅटो वाले को रुकने के लिए बोला और घड़ी देखा तो अभी 9ः30 बजे थे। अभी हमारे पास इतना समय बच रहा था कि हम आराम से गणपति जी के दर्शन कर सकें। ऑटो वाले को पैसे देकर हम यही उतर गए और चल दिए गणपति जी के दर्शन करने। दक्षिण के अन्य मंदिरों की तरह यहां भी धोती अनिवार्य था। बिना धोती के आप बाहर से दर्शन कर सकते हैं, पर अंदर जाकर दर्शन करने के लिए धोती पहनना जरूरी था। हमने भी गणपति जी के दर्शन किए और करीब आधा घंटे तक मंदिर परिषद में बिताने के बाद पैदल ही रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया। गणपति मंदिर से स्टेशन की दूरी करीब एक किलोमीटर है। स्टेशन पर रिटायरिंग रूम पर पहुंचकर घड़ी देखा तो 10:30 बज चुके थे और हमारी ट्रेन दोपहर बाद 2:15 बजे थी। कुछ और देखने क मन तो था पर समय न होने के कारण कहीं और न जाकर कुछ देर आराम करने का ही विचार किया। वैसे भी त्रिवेंद्रम में हमने जो कुछ भी देखा वो हमारी इस यात्रा का बोनस था क्योंकि यात्रा की योजना बनाते समय ये हमारी योजना में शामिल नहीं था। ट्रेन के समय के अनुसार हमने हमारे पास कुछ घंटे थे जिसका सदुपयोग करते हुए इन चीजों को देखने का मौका मिला। अब इस पोस्ट के लिए बस इतना ही। आगे की वापसी यात्रा अगली पोस्ट में जो केवल एक ट्रेन यात्रा न रहकर बहुत कुछ था। मैंने ट्रेन यात्राएं तो बहुत की है पर इस यात्रा में जो देखने को मिला उसका अनुभव तो सदा सदा के लिए मेरे मन में एक अमिट छाप छोड़ गया। वो पश्चिमी घाट और कोंकण रेलवे में भरी बरसात में ट्रेन यात्रा सोचिए कितनी रोमांचक होगी और उस रोमांच में आभासी दुनिया के कुछ लोग आभासी दुनिया से निकलकर हकीकत की धरातल पर आकर गले मिलते हैं तो उन पलों के लिए तो कोई शब्द ही नहीं हो सकता है। चलिए ये सब बातें अगले पोस्ट में। तब के लिए आज्ञा दीजिए।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर के बारे में
पद्मनाभस्वामी मंदिर भारत के केरल राज्य के तिरुअनन्तपुरम में स्थित भगवान विष्णु का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर है। भारत के प्रमुख वैष्णव मंदिरों में शामिल यह ऐतिहासिक मंदिर तिरुअनंतपुरम के अनेक पर्यटन स्थलों में से एक है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर विष्णु-भक्तों की महत्वपूर्ण आराधना-स्थली है। मंदिर की संरचना में सुधार कार्य किए गए जाते रहे हैं। उदाहरणार्थ 1733 ई. में इस मंदिर का पुनर्निर्माण त्रावनकोर के महाराजा मार्तड वर्मा ने करवाया था। पद्मनाभ स्वामी मंदिर के साथ एक पौराणिक कथा जुडी है। मान्यता है कि सबसे पहले इस स्थान से विष्णु भगवान की प्रतिमा प्राप्त हुई थी जिसके बाद उसी स्थान पर इस मंदिर का निर्माण किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु की विशाल मूर्ति विराजमान है जिसे देखने के लिए हजारों भक्त दूर दूर से यहाँ आते हैं। इस प्रतिमा में भगवान विष्णु शेषनाग पर शयन मुद्रा में विराजमान हैं। मान्यता है कि तिरुअनंतपुरम नाम भगवान के ‘अनंत’ नामक नाग के नाम पर ही रखा गया है। यहाँ पर भगवान विष्णु की विश्राम अवस्था को ‘पद्मनाभ’ कहा जाता है और इस रूप में विराजित भगवान यहाँ पर पद्मनाभ स्वामी के नाम से विख्यात हैं।
कुछ और बातें : पद्मनाभ स्वामी मंदिर को भारत का सबसे अमीर मंदिर कहा जाता है और इसकी सम्पत्ति 2 लाख करोड़ बतायी जाती है। सन् 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर पांच सदस्यीय समिति ने सदियों से बंद पड़े इस मंदिर के छह तहखानों में से पांच तहखानों को खोल दिया। तहखानों को खोलने की काम भी पूजा पाठ और विधि विधान के साथ ही होता था। तहखानों से प्राप्त हीरे-जवाहरात, सोना, प्राचीन मूर्तियां स्मृतिचिह्न आदि चीजें प्राप्त हुई जिनकी कीमत लगभग 22 सौ करोड़ डाॅलर आंकी गई। आखिरी तहखाना तीन दरवाजों से बंद है। पहला छड़ों से बना लोहे का दरवाजा है, दूसरा लकड़ी से और तीसरा और आखिरी दरवाजा लोहे से बना एक बड़ा ही मजबूत दरवाजा है जो बंद है। और इस दरवाजे पर ताले भी नहीं लगाए गए हैं और न ही कोई कुंडी है। इस दरवाजे के बारे में कहा जाता है कि इसे एक मंत्र द्वारा बंद किया है और उस मंत्र का नाम ‘अष्घ्टनाग बंधन मंत्र’ है। इस दरवाजे को खोलने के लिए भी उसी मंत्र की आवश्यकता है जिससे इसे बंद किया है। लाखा प्रयासों के बाद भी लोग इस दरवाजे को खोल पाने में नाकामयाब रहे। इस दरवाजे पर बनी आकृतियों में सांपों की आकृतियां बनी है जो ये चेतावनी देती है कि अगर इन दरवाजों को खोला गया तो उसका अंजाम बहुत ही बुरा होग। पांचों तहखानों को खोलने के कुछ दिन बाद ही जिस व्यक्ति ने इन तहखानों को खोलने के लिए अदालत में याचिका दाखिल की थी, अचानक बीमार पड़ और फिर उनकी मौत हो गई और उसके बाद तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तहखाने को खोलने पर रोक लगा दी है।
महत्व
मंदिर का महत्व यहाँ के पवित्र परिवेश से और बढ जाता है। मंदिर में धूप-दीप का प्रयोग एवं शंखनाद होता रहता है। मंदिर का वातावरण मनमोहक एवं सुगंधित रहता है। मंदिर में एक स्वर्णस्तंभ भी बना हुआ है जो मंदिर के सौदर्य में इजाफा करता है। मंदिर के गलियारे में अनेक स्तंभ बनाए गए हैं जिन पर सुंदर नक्कघशी की गई है जो इसकी भव्यता में चार चाँद लगा देती है। मंदिर में प्रवेश के लिए पुरुषों को धोती तथा स्त्रियों को साड़ी पहनना अनिवार्य है। इस मन्दिर में केवल हिन्दुओं को ही प्रवेश मिलता है। मंदिर में हर वर्ष ही दो महत्वपूर्ण उत्सवों का आयोजन किया जाता है जिनमें से एक मार्च एवं अप्रैल माह में और दूसरा अक्टूबर एवं नवंबर के महीने में मनाया जाता है। मंदिर के वार्षिकोत्सवों में लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेने के लिए आते हैं तथा प्रभु पद्मनाभस्वामी से सुख-शांति की कामना करते हैं।
मंदिर का स्थापत्य
मंदिर का निर्माण राजा मार्तण्ड द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर के पुनर्निर्माण में अनेक महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखा गया है। सर्वप्रथम इसकी भव्यता को आधार बनाया गया मंदिर को विशाल रूप में निर्मित किया गया जिसमें उसका शिल्प सौंदर्य सभी को प्रभावित करता है। मंदिर के निर्माण में द्रविड़ एवं केरल शैली का मिला जुला प्रयोग देखा जा सकता है। मंदिर का गोपुरम द्रविड़ शैली में बना हुआ है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर दक्षिण भारतीय वास्तुकला का अदभुत उदाहरण है। मंदिर का परिसर बहुत विशाल है जो कि सात मंजिला ऊंचा है गोपुरम को कलाकृतियों से सुसज्जित किया गया है। मंदिर के पास ही सरोवर भी है जो ‘पद्मतीर्थ कुलम’ के नाम से जाना जाता है।
कैसे जाएं
पद्मनाभ स्वामी त्रिवेंद्रम शहर में ही स्थित है, इसलिए सबसे पहले तो त्रिवेंद्रम आना होगा। त्रिवेंद्रम के लिए देश के सभी प्रमुख शहरों से सीधी रेल सेवा है। त्रिवेंद्रम सेंट्रल रेलवे स्टेशन से इस मंदिर की दूरी करीब 2 किलोमीटर है। यदि आप अपनी गाड़ी से पद्मनाभ स्वामी मंदिर जाते हैं तो मंदिर से करीब एक किलोमीटर पहले ही निजी गाडि़यों के लिए पार्किंग की व्यवस्था है। मंदिर में जाने के लिए पुरुष के लिए धोती और महिलाओं के साड़ी अनिवार्य है।
कोवलम बीच के बारे में
केरल के तिरुवनंतपुरम जिले में स्थित कोवलम अपने खूबसूरत बीच और ताड़ और नारियल के पेड़ों के लिए प्रसिद्ध है। कोवलम बीच विश्व के सबसे दर्शनीय बीचों में गिना जाता हैं। सुनहरी रेत को चूमती नीली सागर की लहरें देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक खीचें चले आते हैं। यहां की खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यावली और वाटर स्पोट्र्स की गतिविधियां भी बड़ी संख्या में सैलानियों को लुभाती हैं। कोवलम बीच की दूसरी त्रिवेंद्रम सेंट्रल रेलवे स्टेशन से करीब 12 किलोमीटर है। यहां जाने के लिए स्टेशन के बाहर से ही बसें मिलती है जो कोवलम बीच से करीब एक किलोमीटर पहले मुख्य सड़क पर उतारती है। यदि आप बस से न जाना चाहें तो आॅटो से भी बहुत आसानी से यहां पहुंच सकते हैं।
इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें
भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
भाग 7: तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा
भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल
भाग 10: कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट
भाग 11 : कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल
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आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
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खूबसूरत कोवलम बीच का खूबसूरत दृश्य |
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रात में त्रिवेंद्रम की सड़कें |
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रेलवे स्टेशन के सामने बना केरल रोड ट्रांसपोर्ट बस टर्मिनल (रात में) |
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रेलवे स्टेशन के सामने बना केरल रोड ट्रांसपोर्ट बस टर्मिनल (दिन में) |
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पदमनाभ स्वामी मंदिर (रात में) |
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पदमनाभ स्वामी मंदिर (दिन में) |
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पदमनाभ स्वामी मंदिर तक जाने का रास्ता |
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पदमनाभ स्वामी मंदिर तक जाने का रास्ता |
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पदमनाभ स्वामी मंदिर तक जाने का रास्ता |
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पदमनाभ स्वामी मंदिर के पास का बस स्टैण्ड |
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कोवलम बीच और दूर खड़ा लाइट हाउस |
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कोवलम बीच पर समुद्र के लहरें |
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कोवलम बीच पर आदित्या |
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पानी की लहरें |
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पानी की लहरें |
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समुद्र में नाव |
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कोवलम बीच पर समुद्र में इन्हीं पत्थर के टीले पर लाइट हाउस बना है |
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लहरों के पीछे लहरें |
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समुद्री लहरें और नाव |
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आदित्या |
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आपने किया है ऐसी खतरनाक बोटिंग, मैंने तो नहीं किया |
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किनारे से टकराने के बाद लौटती हुई लहरें |
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नीला समुद्र |
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पत्थरों से टकराती हुई समुदी लहरें |
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पत्थरों से टकराती हुई समुदी लहरें |
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पत्थरों से टकराती हुई समुदी लहरें |
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पत्थरों से टकराती हुई समुदी लहरें |
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कोवलम बीच पर नारियल के पेड़ |
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समुद्र के बिल्कुल किनारे पर बना एक गेस्ट हाउस |
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नारियल के पेड़ |
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खूबसूरत सड़कें |
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गणपति मंदिर |
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गणपति मंदिर |
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त्रिवेंद्रम (तिरूवनंतपुरम) सेंट्रल स्टेशन |
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भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
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वाकई कोवलम भारत के खूबसूरत समुद्र किनारे में से एक है....और बहुत ही बढ़िया लिखा आपने...ऑटो के विवरण जानकारी से भरपूर थे किसी को यहाँ जाना हो तो अब ज्यादा जानकारी जुटाने की जरूरत ही नहीं बची
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद प्रतीक भाई जी, कोवलम समुद्री किनारा वाकई में बहुत खूबसूरत है,
Deleteवो नारियल के पेड़ के पेड़ों से घिरा धनुषाकार किनारा किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करता है साथ वो समुद्र में बना लाइट हाउस उसका भी कोई जवाब नहीं
अभयानंद जी, मैने भी सुबह पद्मनाभ मंदिर में दर्शन किये थे, वहाँ घटा सब कुछ किसी स्वप्न की तरह ही लग रहा था।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद विकास नारदा जी, सही कहा आपने, सुबह सुबह पद्मनाभ स्वामी में मंदिर दर्शन करना एक सपने के जैसा ही था, सब कुछ मंत्रामुग्ध कर देने वाला और एक विस्मरणीय पल था
Deleteएकदम डिटेल में जानकारी, कोई बिल्कुल अनजान व्यक्ति भी इसके सहारे घुम्मकणी कर सकता है। बहुत बढ़िया लेखन।😊😊
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी, बस एक कोशिश किया है जानकारी देने का कि पढ़ने वाले को कुछ जानकारी भी मिले और साथ ही किन्हीं को वहां जाने में कुछ मदद मिले
DeleteJanab aapki lekhni ka jabab nahi
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी
Deleteकोवलम बीच से हमने अपनी LTC यात्रा की शुरुआत की थी। आप लगभग हमारी यात्रा के विपरीत घूम रहे थे।
ReplyDeleteकोवलम बीच पर हम सभी ने स्नान करने का लुत्फ भी उठाया था। लाइट हाऊस की तरफ वाले बीच पर पानी एकदम गहरा नहीं होता, जबकि सडक से सीधे हाथ वाली साइड मस्जिद के पीछे जो बीच है वहाँ पानी एकदम से गहराई वाला है।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद अपना कीमती समय देकर पढ़ने के लिए, जी हां भाई जी आप त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी होते हुए रामेश्वरम गए थे और मैं तिरुपति से चेन्नई होते रामेश्वरम और तत्पश्चात कन्याकुमारी और फिर त्रिवेंद्रम पहुंचे। कोवलम बीच पर नहाने का लुत्फ हमने भी उठाया। हमने सड़के के सीधे जहां पर समुद्र है वहीं पर नहाया था।
Deleteपद्मनाभ मंदिर जाने की उत्सुकता बढ़ गयी है आपका विवरण पढ़के. देखिए कब जा पाते हैं. हालाँकि केरल की तीन लंबी लंबी यात्राएं की है, किंतु अभी यहाँ जाना नहीं हो पाया....जब देव बुलाएँ...
ReplyDeleteआभार आपका ब्लाॅग पर आने के लिए, हां जी जरूर जाइए एक बार पद्मनाभ स्वामी मंदिर बहुत ही अच्छी जगह है, हमारी शुभकामनाएं आपके साथ है जी जल्दी ही आपको यहां जानो का सौभाग्य प्राप्त हो, जिस दिन देव बुलाएंगे आप अपने आप खींचे चले जाएंगे
Deleteहमने कोवलम का प्लान कैंसिल किया क्योकि हमे दिन में ही थेक्कड़ी पहुचना था ।
ReplyDeleteबहुत सारा आभार आपको अपना समय देकर पढ़ने के लिए, आपने कोवलम का प्लान कैंसिल किया और हम थेक्कड़ी नहीं देख सके, पर ये कैसे कहें कि हमने नहीं देखा थेक्कड़ी आपके साथ हम भी तो देख ही रहे हैं चाहे आभासी ही सही
Deleteआपने पूरा आनंद लिया
ReplyDeleteऔर बहुत सुन्दर प्रस्तुत किया।
बधाई।
सुमधुर धन्यवाद आपका, जी भाई आनंद तो पूरा लिया इस यात्रा का, एक लंबा सफर वो भी पूरे परिवार के साथ तो आनंद और ज्यादा हो जाता है।
Deleteपदमनाभ मंदिर , बहुत खूबसूरत लग रहा है ! पिछले कुछ सालों से बहुत नाम आ रहा है इस मंदिर का ! वो छुपा खजाना , तहखाने तक जाने देते हैं ? और साथ में समुद्र का बीच ! शानदार लग रहा है अभय जी
ReplyDeleteपदमनाभ मंदिर वाकई में बहुत खूबसूरत है योगेन्द्र जी, ये तो कुछ मरम्मत का काम चल रहा था वरना तो इसकी खूबसूरती देखते ही बनती। हां आजकल यह मंदिर बहुत चर्चा में है जी। वो छुपे हुए खजाने के तहखाने तक किसी को नहीं जाने दिया जाता है। और कोवलम बीच का क्या कहना उसकी खूबसूरती का तो कोई जवाब ही नहीं। बहुत बहुत धन्यवाद योगी जी।
DeleteSach me puri yatra padkar maja aa gaya
ReplyDeleteRaju auto wale ka number share kariye plz.
अपको बहुत सारा धन्यवाद प्रीति जी। किसी का भी नंबर शेयर करना मुझे उचित नहीं लगा इसलिए राजू का नम्बर मैंने नहीं दिया। जिनको जरूरत होगी उनको व्यक्तिगत में जरूर देंगे।
Deleteअपको बहुत सारा धन्यवाद प्रीति जी। किसी का भी नंबर शेयर करना मुझे उचित नहीं लगा इसलिए राजू का नम्बर मैंने नहीं दिया। जिनको जरूरत होगी उनको व्यक्तिगत में जरूर देंगे।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अंकिता जी
ReplyDeleteअच्छी और उपयोगी जानकारी दी। आपने जो वंहा जाना चाहते है उनके लिए उपयोगी।
ReplyDeleteब्लाॅग पर आने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
Deleteसरजी
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा .......
आपसे निवेदन हे की हम वहा पद्मनाभस्वामी मंदिर पर बाय एयरपोर्ट से जायेगे और हमारे पास समय काम होनेकी वजह से आपसे थोड़ी राह लेना चाहते हे की हमें इस मंदिर देकने के बाद कन्याकुमारी की और जाना हे और सामको वहा से हमारी ट्रेन हे रामेस्वरम के लिए जानना चाहता हु की जो अगर में एयरपोर्ट से सीधा पद्मनाभस्वामी मंदिर जावु तो वहा लगेज रखने की सुविधा हे और वहासे कितने समय पर जल्दी दर्शन करके निकल सकू मुझे आप जरा ये समजाये आपका फोटो वगेरे और जो पोस्ट किया हे वो सभी मेने पढ़ा खुशी हुई की आपने सभीको इसमें जो जानकारी दी हे वह बहुत लाभदायक हे और थोड़ा मुझे भी शार्ट कट में बताये की हम क्या करे और कैसे करे.
थेंक्स फॉर
मि.चंद्रशेखर बी
सधन्यवाद नमस्कार आपको।
Deleteएयरपोर्ट से आप टैक्सी से मंदिर के पास जाएंगे। और मंदिर के मुख्य दरवाजे के बाहर ही सामन रखने का इंतजाम है। कैमरा, कपड़े, बैग आदि हमने भी उसी में जमा किया था। शायद उस समय उन लोगों ने मुझसे 32 या 35 रुपया लिया ये ध्यान नहीं है। मंदिर में दर्शन के लिए अगर कोई त्यौहार या कार्यक्रम नहीं हो तो भीड़ तो बहुत ज्यादा नहीं होती। आराम से दर्शन हो जाएंगे, एक बात और मंदिर खुलने का समय निर्धारित है, जो मुर्हूत के हिसाब से बदलता है उसमें दस मिनट आगे पीछे की स्थिति बनी रहती है। त्रिवेंद्रम से कन्याकुमारी से ट्रेन का रास्ता भी ढाई घंटे का है।
पद्मनाभ स्वामी मंदिर से स्टेशन की दूरी 1.5 किलोमीटर है आॅटो की कोई दिक्कत नहीं है।
आपको बहुत बहुत धन्यवाद।
ReplyDeleteजय श्री कृष्णा .......
आपसे निवेदन हे जो रामेस्वरम में रूम बुक करनेकी साइड खुल नहीं रही हे तो क्या वह पर नजदिकमे रूम मिल जायेगा.
थेंक्स फॉर
मि.चंद्रशेखर बी
जी हां मंदिर के पास बहुत से होटल है जैसे बांगर यात्री निवास, अग्रवाल धर्मशाला, गुजराती धर्मशाला (फोन नं. 07424861206) और अनगिनत धर्मशालाएं, गेस्ट हाउस, होटल हैं, जहां आप कभी भी पहुंचने कमरे ले सकते हैं।
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