Sunday, August 5, 2018

ऐसा देश है मेरा (Aisa Desh Hai Mera)

ऐसा देश है मेरा (Aisa Desh Hai Mera)



कभी-कभी ऐसा कुछ होता है जिसके बारे में हम कुछ सोच नहीं पाते। ऐसा ही कुछ हुआ जिसके कारण हमने ये लेख लिखा है। इस आलेख की पटकथा एक फोटो से आरंभ हुई थी इसलिए उसी फोटो को हम इस पोस्ट में लगा रहे हैं। यह फोटो हमारे एक घुमक्कड़ मित्र आदरणीय किशन बाहेती (Kishan Bahety) जी द्वारा लेह यात्रा के दौरान ली गई थी। आइए आप भी पढि़ए इस आलेख को, जिसे लिखने में मेरा सहयोग अनुराग गायत्री चतुर्वेदी (Anurag Gayatree Chaturvedi) जी ने भी किया है।

ऐसा देश है मेरा तो क्यों परदेश मैं जाऊं।
अगला जन्म लेकर इस पुण्य धरा पर आऊं।

उपरोक्त ये जो दोनों पंक्तियां अभी आपके सामने है, ये केवल दो पंक्तियां नहीं बल्कि अपने इस देश की गौरव गाथा है। इन दो पंक्तियों से ही इस देश की संपूर्ण गाथा लिखी जा सकती है। ज्यादा तो नहीं थोड़ा लिखने की कोशिश किया हूं, उम्मीद है सबको पसंद आएगा। असल ये दोनों पंक्तियां आदरणीय किशन बाहेती जी की है, जिस पर मैंने अपने देश का गुणगान करते हुए ये लेख लिखा है।

इन दो पंक्तियों की पटकथा फेसबुक से आरंभ हुई। किशन बाहेती जी की इस फोटो की तारीफ मैंने तीन भाषाओं के तीन शब्दों से किया था। अब तीन शब्दों से तारीफ के पीछे संजय कौशिक (Sanjay Kaushik) जी का हाथ है, वही कहा करते हैं कि आजकल लोग किसी चीज की तारीफ केवल सुपर लिख कर देते हैं, कुछ और शब्द प्रयोग ही नहीं करते। उसी बात से प्रेरित होकर फोटो की तारीफ करने के लिए मैंने तीन शब्दों का प्रयोग किया जिसमें पहला सुपर, दूसरा मस्त और तीसरा झक्कास था। इन्हीं तीन शब्दों के कारण किशन बाहेती जी के अंतर्मन से उद्गारस्वरूप ये दो पंक्तियां निकली और इन दो पंक्तियों में उन्होंने अपने देश की सुंदरता, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज आदि सब कुछ को समेट दिया और मुझे विस्तार से लिखने के लिए कहा।

अपने इस सुंदर देश के बारे में यदि कोई भी विस्तार से लिखने बैठ जाए तो न जाने कितना बड़ा ग्रंथ लिखा चला जाएगा ठीक उसी तरह जैसे

सात समंद को मसि करौ, लेखनी सब वनराई।
धरती सब कागज करौ हरि गुण लिखा न जाई।

और उसी तरह अपने इस देश पर जितना लिखते चले जाएंगे उतना कम पड़ता जाएगा। क्या कुछ नहीं है अपने देश में, उत्तर से दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक हर जगह सौंदर्य ही सौंदर्य बिखरा पड़ा है, अगर कुछ कमी है तो बस उस सौंदर्य देखने और परखने वाले की। लोग विदेश यात्रा करके आते हैं और वहां की खूबसरती का ऐसे बखान करते हैं जैसे उस अमुक देश की तुलना में अपना भारत कुछ भी नहीं है। वो कहते हैं न कि दूर के ढोल सुहावन होते हैं, उसी प्रकार ये विदेश यात्रा भी है। अपने ही देश में आप घूमने निकलेंगे तो भांति-भांति के लोग, उनके रहन-सहन आपको ऐसे आकर्षित करेंगे जैसे ताजा खिला कमल का फूल भौरे को आकर्षित करता है और सरसों के खेत में खिले हुए पीले-पीले फूल तितलियों और मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं।

भारत ही एक ऐसा देश है जहां एक ही दिन में सभी ऋतुओं के दर्शन होेेते हैं। एक शहर में बरसात हो रही होती है तो दूसरा शहर भीष्ण गर्मी से तप रहा होता है। एक शहर में हाड़ कंपाने वाली सर्दी अपना सितम ढा रही होती है तो दूसरे शहर में समुद्र अपने उमस भरे माहौल को घोल रहा होता है। उत्तर में हिमाच्छादित पर्वत-श्रृंखलाएं शोभा बढ़ा रही है तो दक्षिण में विशाल सागर इसके चरणों को धो रहा होता है। उसके ऊपर से यहां का मौसम इस विविधता को इतना अधिक आकर्षित बना देता है कि मन का मयूर नाचने का आतुर हुआ रहता है। बरसात के बाद जो हरियाली बिछती है वो किसी मखमली डनलप वाले गद्दे से कम मुलायम और आरामदायक नहीं होती है। संपूर्ण जगत में भारत ही एक मात्र देश है जहां एक ही दिन में छह ऋतुएं अपने रंग दिखा रही होती है।

यदि हम भारत के नक्शे को एक शरीर मान लेते हैं तो गंगा, यमुना, सरस्वती, कालिंदी, कावेरी, रामगंगा, कोसी, कृष्णा, गोदावरी, गंडक, घाघरा, चम्बल, चेनाब, झेलम, दामोदर, नर्मदा, ताप्ती, बेतवा, पद्मा, फल्गू, बागमती, ब्रह्मपुत्र, भागीरथी, महानदी, महानंदा, रावी, व्यास, सतलुज, सरयू, सिन्धु नदी, सुवर्णरेखा, हुगली आदि और भी न जाने कितनी नदियां इसकी शिराएं और धमनियां हैं और इन्हीं शिराओं व धमनियों में ही अपने देश का लहू बहता है, और जीवंत करता रहता है इस भूभाग को और यहाँ के निवासियों ने इनका अभिनंदन कुछ इन शब्दों में किया है-

भारतम् महा भारतम्
गंगा नर्मद पुण्य तीर्थम्
सिंधु सरस्वती कावेरी
जीवन कारक मूल तत्वम्
नदी राष्ट्रस्य महाअमृतम्
भारतम् महा भारतम्

उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक न जाने कितने तरह के लोग, कितनी तरह की भाषाएं, कितने ही रीति-रिवाज, परंपराएं, धर्म और संस्कृति हमारा स्वागत करती है। अपना देश भौगोलिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधताओं के साथ-साथ पौराणिक कथाओं वाला एक विशाल देश है, जहां हर जगह पर एक कहानी है, एक मान्यता है। न जाने कितने प्रकार की बोली है, कितने ही प्रकार के खान-पान हैं। हर जगह की अपनी एक भाषा और शैली है, उनका अपनी एक कहानी और मान्यता है और उसी मान्यता पर चलने रहना भी इस विविधता में एकता की अनोखी मिसाल है। देश के अंदर ही ऐसे भी बहुत से स्थान हैं जहां तक अभी इंसानों की पहुंच नहीं हो पाई है।

उत्तर में हिमालय, पूरब में अराकानयोमा और तीन तरफ से समुद्र से सुसज्जित यह भूखंड दुष्यतं पुत्र भरत के नाम से प्रसिद्ध है, आर्यों और द्रविड़ों की यह संयुक्त धरती पालना रही है मानवता, सभ्यता और संस्कृति की। इस पुण्य धरा पर ही मनुष्य ने सर्वप्रथम विज्ञान को साध प्रगतिशील बना जहां समस्त विश्व में मानव नरवानरों की श्रेणी में विचरण करता था उस कालखंड में यह धरती उन्नति के नये आयाम रच रहा था।

इस देश की प्रारंभिक कडि़यां मिलती है, इसके मध्य मर्म स्थल पर विराजमान भीमबेटका की गुफाओं में जब मनुष्य क्षुधा पर विजय प्राप्त कर कला में प्रवीण हो रहा था। फिर दौर आया प्रथम नगरीकरण का और यह सिंधु प्रदेश सिरमौर बन गया समस्त विश्व का, जिसके नगरीकरण को आज भी उदाहरण तौर पर देखा जा सकता है। धीरे-धीरे आर्यों ने इस धरा पर अपने कदम रखे और पर्वतों से नीचे उतर जब इन नये लोगों ने शस्य श्यामल भूमि को देखा तो इसे माता कह देवतुल्य कहा और तब इसे आर्यावर्त नया नाम भी मिला। धन धान्य, जल, प्रकाश से परिपूर्ण यह पृथ्वी ने उनको प्रकृतिपूजक ही बना दिया।

मौर्यकाल और गुप्त काल में इस धरा ने अपना स्वर्णकाल देखा तो उसके बाद हिंदूकुश के खैबर दर्रे से आने वाले आक्रांताओं इसे पददलित भी किया। इस देश ने सभी को अपनाया और ऐसा आत्मसात कर लिया की उनका अस्तित्व ही नष्ट हो गया और वे विदेशी भी इस संस्कृतिसागर में विलीन हो इसके इंद्रधनुषी रंग को और गहरा कर रहे है। उतंग शिखरों पर शुभ्र वस्त्र धारण कर विचरण करती यह धरती मां जब तराई में आती है तो हरे खेतों में धानी-पीली चुनर ओढ़ दौड़ती है मैदानों में।

विंध्य और सतपुड़ा जब दिवार बन इसका रास्ता रोकती है तो तो वह दण्डकारण के बीहडों से अपना रास्ता खोज कर पठारी धरती पर अनमनी से चहलकदमी कर आगे आगे बढ़ हाथ थाम लेती है गोदावरी, कृष्णा, कावेरी जो इसकी लहराती चुनर में फिर रंग भर डालती है। उत्तर के पहाडियों से सुरक्षित यह क्षेत्र गवाह रहा है अनेक स्वर्णिम कालों का जहां जन्म हुआ भक्ति और साकार देवपूजा के निमित्त बने अनेकोनेक विस्मय से परिपूर्ण देवालयों का।

इसी भाग के नील पहाडि़यों पर उगे विभिन्न मसालों ने काम किया प्रकाश स्तंभ का जो दूर देश से खींच लाते थे अनगिनत व्यापारियों को जो अपने साथ लाते अपनी भाषा तहजीब और खान पान। पश्चिमी किनारों से गुजरती यह देवी भीगती हुई पहुंचती है रेतीली धरती तक जहां ये अपने आंचल को सुखा झाड़ आगे बढ़ आ जाती है गंगा-यमुना के दोआब में और उपजाऊ धरती बन कर भरण पोषण करती है अपने करोड़ो बच्चों का।

नदियों की धीमी गति से आगे बढ़ ये प्रागज्योतिष क्षेत्र में जा एक नये जनजाति रंग लेकर निखर कर लहराती है अपना धानी चुनर। इस धरती माता का सजीव प्रतिनिधित्व करती है इस जमीन पर रहती जनता, जो संभाले है हजारों साल के मानवता के इतिहास को और अनेक विविधताओं में भी एकता रख कर संवारती है इस धराधाम को...। हांलाकि इस देश और यहां के धरती की गाथा अनंत है और मानव सामथ्र्य अत्यंत निम्न।

इस धरादेवी के वैभववर्णन को समेट मैं बस यहीं कहूंगा कि यदि निम्न योनियों में भी जन्म लेना पड़े तो मैं इस पुण्य वसुंधरा का ही चयन करूँगा।

कुछ इन शब्दों के साथ में इस अनंत लेख को बस एक मुकाम दे विराम देता हूं और आप सबसे विदा लेता।

मन समर्पित, तन समर्पित और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूं देश की धरती तुझे कुछ और भी दूं।



Photo: 
Photo by Kishan Bahety ji...
View from Spituk Monastery, Kali Mata Mandir, Laddakh
Place: Leh (October 2016 )



10 comments:

  1. साधु... साधु... इस धराकथा में कुछ शब्दाहविष्य की आहुति देने का सौभाग्य आपके प्रयास से मिला। इसकी कथा ऐसे ही है जिसका कोई अंत ही नहीं... हरि अनंत हरि कथा अनंता जैसे।
    एक और बार पढ़ कर आनंद आ गया। बहुत सुंदर है अपना यह भूखंड 💐💐🌹

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    1. इस टिप्पणी के लिए धन्यवाद नहीं कहूंगा आपको शुभकामनाएं दूंगा क्योंकि इस लेख में जितनी मेहनत हमने किया उतना ही आपने भी किया है। अपने देश की गाथा है ही ऐसी कि जितना लिखा जाए कम पड़ेगा। क्या कुछ नहीं है अपने देश में, जितना देखो उतना छूट जाता है, जितना घूमो उतना कम पड़ जाता है। एक जन्म क्या दस जन्म भी केवल घूमते रह जाएं तो भी इस धरा को पूरा नहीं देखा जा सकता।

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  2. बहुत खूब लगे रहो

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद दीदी।

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  3. सबसे पहले किशन बाहेती जी को धन्यवाद करूँगा जिनके फोटो के कारण आपको हमारे देश के बारे में लिखने का मौका मिला इसके बाद आपको और चतुर्वेदी जी को धन्यवाद करूँगा जिसके कारण आज हमें अपने देश के बारे में जानकारी मिली है ।
    वास्तव में बाहेती जी की उन दोनों लाइनों में पूरे देश की गौरव गाथा का वर्णन, देश प्रेम और देश भक्ति झलकती है ।
    आपने और चतुर्वेदी जी ने इस लेख के लिए काफी मेहनत करके हम लोगों के समक्ष लाये और इतने मनमोहक ढंग से प्रस्तुत किया उसके लिए एक बार पुनः धन्यवाद।
    आखिर में आपके द्वारा लिखित दोनों पंक्तियों ने मेरे दिल में और मेरे दिमाग में एक गहरी छाप छोड़ी है।

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    1. बहुत सारा धन्यवाद अर्जुन जी।
      सही कहा आपने पहला धन्यवाद तो उनको ही जाता है, अगर वो फोटो पोस्ट नहीं करते तो इतने सुंदर लेख को लिखने की प्रेरणा नहीं मिलती और अनुराग चतुर्वेदी जी ने भी भरपूर साथ दिया मेरे इस लेख में। अपना देश है ही ऐसा कि इस पर जितना लिखेंगे कम ही लगेगा। पूरे देश को घूमने और देखने महसूस करने के लिए दस जन्म भी बहुत कम पड़ जाएंगे। क्या कुछ नहीं है अपने देश में। हर तरह की संस्कृति, वेश-भूषा, प्राकृतिक र्सौदर्य, धार्मिक अनुष्ठान, नदिया, सागर, हिमालय, पहाड़, जंगल सब कुछ तो भरपूर मात्रा में हैं। और अपना ही एक ऐसा देश है जहां एक ही दिन में हर तरह के मौसम के रंग दिखते हैं। कहीं बरसात, कहीं सर्दी तो कहीं भीष्ण गर्मी।

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  4. अत्यंत सुन्दर लेख।

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    1. बहुत सारा धन्यवाद गजेंद्र पाल जी।

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  5. शानदार लेखन अभय जी ....जब अपना देश ही इतनी विविधताओं से परिपूर्ण है तो और कही क्यों तकना .... सभी कुछ है अपने देश में नदी, पहाड़, झील, सागर, मंदिर, एतिहासिक विश्व धरोहर, उससे बड़ा हिमालय .... बढ़िया जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको। बिल्कुल सही कहा आपने क्या कुछ नहीं है अपने देश में। हर तरह की संस्कृति, सभ्यता, वातावरण, मौसम, विविधता में एकता है तभी तो बाहर के लोग भी अपने देश में घूमने आते हैं और मीठी-सुनहरी यादों को साथ लेकर जाते हैं।

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