Sunday, December 15, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-4, घोड़ा कटोरा से वापसी (Ghoda Katora Taal-4: Retrun from Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-4, घोड़ा कटोरा से वापसी (Ghoda Katora Taal-4: Retrun from Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : सुबह घर से चलकर यहां आते आते दोपहर हो चुकी थी और कुछ मिनट यहां गुजारने के बाद अब समय था यहां से वापसी का तो कुछ मीठी और सुनहरी यादें लेकर हम चल पड़े थे वापसी के उसी पथ पर जिससे होकर हम यहां तक आए थे। आते समय तो हम उन दोनों लड़कों के साथ आए थे पर वापसी मुझे अकेले ही जाना था क्योंकि वो दोनों लड़के बहुत पहले ही यहां से जा चुके थे। अगर वो रहते तो हमारा एक-दो अच्छा फोटो खींच देते पर अब सोचने का क्या फायदा वो तो जा चुके थे तो हमने खुद कभी अपने मोबाइल से तो कभी कैमरे से सेल्फी लेने की नाकाम सी कोशिश करते रहे और उन कोशिशों में ही एक अच्छी सी फोटो आ गई और अच्छी भी ऐसी कि जिसकी हमने उम्मीद भी नहीं की थी। फोटो-वोटो लेने के बाद हम चल पड़े उसी रास्ते पर जिस रास्ते से आए थे और ठीक 12.00 बजे हम फिर से पहाड़ के उसी कटे हुए भाग तक पहुंच चुके थे। वहां पहुंचकर झील से एक वादा किया कि एक बार और पुनः जल्दी ही आऊंगा और फिर उन कच्चे रास्तों पर धूल का गुब्बार उड़ाते हुए सुस्त कदमों से धीरे धीरे चल पड़े। आधे घंटे के सफर के बाद एक बार पुनः हम नदी के उस स्थान पर आ चुके थे जहां हम सुबह पानी से होकर गुजरे थे। वहां पहुंचकर हमने अपने कदमों को रोककर पहाड़ पर खड़े अजातशत्रु स्तूप को एक नजर देखा था, और मन में सोचा था कि यहां भी हो लेते हैं पर समय और शरीर दोनों हमें इस काम की इजाजत नहीं दे रहे थे तो हमने जल्दी ही दुबारा आने का वादा किया और फिर फिर नदी को पार करके गिरियक बाजार की तरफ बढ़ चले।

Saturday, December 14, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-3: घोड़ा कटोरा और मैं (Ghoda Katora Taal-3, Ghoda Katora Taal aur Main)

घोड़ा कटोरा ताल-3: घोड़ा कटोरा और मैं (Ghoda Katora Taal-3: Ghoda Katora Taal aur Main)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : मेरे प्यारे घोड़ा कटोरा, जब हमने तेरे बारे में सुना था तो लगा था कि तुम गांव की तलैया जैसे होगे, फिर किसी ने बताया था कि नहीं वो तलैया के जैसा न होकर अपने गांव की नदिया के जैसा है। फिर गया था तुमको देखने पर न जाने क्यों नहीं पहुंच पाया था तेरे पास, या तो तुम मुझसे रूठे थे और मुझसे मिलना नहीं चाहते थे या फिर मेरे मन में ही तुमसे मिलन की लालसा नहीं थी। अपने घर की छत के कोने से तेरे चारों तरफ फैले पहाड़ों को देख कर सोचा करता था कि पता नहीं कैसे तुम अकेले इन पहाड़ों के बीच में रहते होगे, पर मुझे क्या पता था कि ये पहाड़ ही हैं जो तुम्हारी रक्षा के लिए चारों तरफ तुमको घेरे खड़े हैं और तुम उनके बीच बिल्कुल सुरक्षित हो। फिर न जाने कितनी बार, अनगिनत बार, तेरे किनारे से गुजर गया, पर न तो तुमने मुझे बुलाया न ही मैं तुम्हारे पास गया, न तो तुमने मेरी तरफ नजर किया और न ही मैंने तुमसे नजर मिलाया और बस तेरे किनारे से आते और जाते रहे; और गुजरते समयांतराल के बाद मैं भी तुमको भूल गया और तुमने भी मुझे भुला दिया।

Friday, December 13, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : हम अपने गांव से चलकर गिरियक पहुंचे और वहां एक दुकान वाले से घोड़ा कटोरा तक जाने का रास्ता पूछा तो उन्होंने दो रास्ते बताए, एक तो सीधा नदी पार करके और दूसरा अगर नदी पार करना नहीं चाहते हैं तो 3 किलोमीटर घूम कर जाने वाला रास्ता जहां नदी पर पुल बना है, पर पुल वाला रास्ता भी आगे बढ़कर यहीं नदी के रास्ते में ही मिलता है। अब केवल पानी में पार होने से बचने के लिए 3 किलोमीटर का लंबा रास्ता कौन तय करे और वैसे भी नदी के पानी में पार हुए बहुत दिन हो गए हैं क्योंकि अब अधिकतर जगहों पर पुलों का निर्माण हो गया है तो नदी से गुजरने का मौका भी नहीं मिलता है और आज ये मौका मिल रहा था तो हम इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे और चल पड़े थे पानी वाले नदी को नदी पार करने। उन्होंने हमें जो रास्ता बताया था हम उसी ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगे। गली से चलते हुए नदी तक पहुंचने में हमें करीब 20 मिनट का समय लगा। वहां देखा तो कुछ लोग नदी पार कर रहे हैं तो हम भी उनके पीछे हो लिए। नदी पार करते ही एक सज्जन ने बताया कि आगे अभी और एक जगह पार करना पड़ेगा और सवाल भी शुरू किया कि 

Thursday, December 12, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-1: घोड़ा कटोरा ताल की ओर (Ghoda Katora Taal-1: Towards Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-1: घोड़ा कटोरा ताल की ओर (Ghoda Katora Taal-1: Towards Ghoda Katora Taal)



घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : आइए हम आपको इस बार एक प्राकृतिक झील की सैर पर ले चलते हैं, जो 2500 साल से भी ज्यादा पुरानी है और यह स्थान बिहार के नालंदा जिले में राजगीर और गिरियक के मध्य पहाडि़यों के बीच स्थित है और इसका नाम है घोड़ा कटोरा ताल। यहां तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता राजगीर विश्व शांति स्तूप तक जाने वाले रोपवे के पास से है और दूसरा रास्ता गिरियक से है। गिरियक पटना-रांची राजमार्ग पर बिहार शरीफ से रांची की ओर जाने पर बिहार शरीफ से 18 किलोमीटर दूरी पर स्थित है जो जानवरों के हाट के लिए प्रसिद्ध है। राजगीर वाले रास्ते से इस झील की दूरी 6 किलोमीटर है, वैसे कहते हैं कि 6 किलोमीटर है लेकिन है 7 किलोमीटर और साधन के रूप में या तो आपको पैदल जाना पड़ेगा या टमटम (घोड़ा गाड़ी) से। पक्षी अभयारण्य क्षेत्र होने के कारण यहां मोटर गाड़ी पूरी तरह से प्रतिबंधित है। गिरियक वाले रास्ते से भी दूरी करीब 5-6 किलोमीटर है और जाने का साधन कच्ची सड़कों पर मलंग फकीर बनकर धूल उड़ाते हुए चलना। वैसे पारंपरिक रास्ता राजगीर से ही है, गिरियक वाला रास्ता तो हम जैसे भटकटैया लोगों के लिए है कि वीराने में भटकते हुए चलते चले जाएं।

Saturday, November 30, 2019

बेचैन रातें (Anxious Nights)

बेचैन रातें (Anxious Nights)




दीपक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में व्यस्त था तभी पूरे दिन खामोश पड़ा रहने वाला चलभाष अचानक ही घनघना उठता है। ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....!!!!!
दीपक अनजान नम्बर देखकर बड़े ही अनमने ढंग से फोन रिसीव करता है, पर उधर से जानी-पहचानी आवाज से सामना होता है। आपस में कुशलक्षेम की पूछने का दौर चलता है।
‘‘हेलो अमित, कैसे हो?’’
‘‘मैं ठीक हूं दीपक। आप बताइए आप कैसे हैं?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं। पर आज अचानक इस समय कैसे? सब कुछ कुशल मंगल तो है न?’’
‘‘हां, सब कुछ ठीक है। वो क्या है कि आरती को रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल लेकर आया था, पर डाॅक्टर ने उसे एडमिट कर लिया।’’

Friday, November 29, 2019

उस रात की यादें (Memories of that night)

उस रात की यादें (Memories of that night)





वैसे तो रात को अंधेरे के लिए जाना जाता है लेकिन कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसा घटित होता है जिसके कारण रात अंधेरी न होकर सुनहरी हो जाती है। यह घटना तब की है जब हमारी आयु केवल 15 वर्ष थी। मैट्रिक की परीक्षा का अंतिम दिन था। सभी विषयों की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और अंतिम दिन केवल एक विषय बचा हुआ था। हर साल की तरह इस साल भी हमारे स्कूल का परीक्षा केन्द्र करीब 40 किलोमीटर दूर था। परीक्षा के अंतिम दिन सुबह पिताजी सारा सामान लेकर गांव की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और हम स्कूल की तरफ। एक बजे परीक्षा समाप्त हुई और अंतिम बार स्कूल के साथियों से मुलाकात करते करते और बातें करते करते कब दो घंटे बीत गए पता नहीं चला।

Thursday, November 28, 2019

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)



मैं मगध हूँ..!
मैं मगध हूँ... एक सभ्यता हूँ... एक संस्कृति हूँ...

गंगा के विस्तृत जलोड़ और कछार की मेरी यह भूमि समृद्ध रही है अपने मतवाले गजों और घनघोर साल के जंगलों से...! शिलागृहों और गर्तवासी आदिमानवों की शिकार-क्रीड़ांगन रही यह भूमि, संस्कृति सूर्य के चमकने पर जन से जनपद, जनपद से महाजनपद, महाजनपद से राज्य और राज्य से अखिल जम्बूद्वीप का केंद्र और निर्माणकर्ता रही है और इसने ही प्रथम साम्राज्य बने उस आर्यावर्त को भी बनाया।

Wednesday, November 27, 2019

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)




दद्दा चंद्रेश कुमार (Chandresh Kumar) जी आपने मुझे सिक्किम का सपना दिखाकर यूं ही पागल बना दिया। और तब से हमें घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने आने लगे हैं। उन सपनों में से एक सपना यह भी है। एक दिन सुबह सुबह हम आॅफिस के लिए निकले और डीटीसी की प्रशीतक यंत्र वाली लाल बस पर बैठते ही हमने एक हसीन सपना देखा। हमने देखा कि मेरा मन कहीं घूमने का हो रहा है और हम बहुत जल्द कहीं घूमने निकल जाएं। बहुत दिमाग लगाने के बाद हमने रेल का टिकट कटाया और और हवाई अड्डे पहुंचकर बोर्डिंग पास लेकर ट्रैक्टर में सवार होकर बालू की लहरों पर अपने साइकिल के पतवार को चलाते हुए समुद्री रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी ऐसा लगा कि जैसे हमारे बाइक का पहिया पंक्चर हो गया और एक परचून की दुकान पर जाकर एलपीजी डलवाया और पहुंच गए गुजरात की बर्फीली वादियों में और वहां से देखा तो महाराष्ट्र के एक कोने में बैठा चौखम्भा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा। हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि एवरेस्ट रास्ते में बैठा मेरा इंतजार कर रहा है फिर हम उससे कुछ बातें करने के बाद चल पड़े केरल की तरफ और वहां देखा कि कंचनजंघा चोटी पर बादलों ने बसेरा बसा लिया है और वहां मेरा मन वहां नहीं लगा तो हम वहीं से सीधा अपनी बैलगाड़ी के काॅकपिट में गए और बैलगाड़ी को पहाड़ी रास्ते के ढलान पर लुढ़काते हुए सीधा दिल्ली पहुंच गए।

Tuesday, November 26, 2019

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)




सफर के रोमांच का मजा लेना चाहते हैं तो रात के सन्नाटे में तेज हवा के झोंकों के बीच बिल्कुल अकेले ऋषिकेश में रामझूला अवश्य पार करें और उस पल के अद्भुत रोमांच को महसूस करें। ऋषिकेश स्थित राम झूला और लक्ष्मण झूला का आज तक हमने केवल नाम ही सुना था पर कभी देखा नहीं था। पर अचानक हुई यात्रा में हमें इसे देखने का मौका मिल गया। 30 मार्च 2019 रात को तीन बजे ऋषिकेश पहुंचे और पैदल ही चल पड़े राम झूला की तरफ। रात के सन्नाटे को चीरते हम केवल तीन लोग (मैं, पत्नी कंचन और बेटा आदित्या) तीर्थनगरी की सड़कों पर बढ़े जा रहे थे। बस स्टेशन से चन्द्रभागा पुल तक एक भी इंसान दिखाई नहीं दे रहा था, बस एक-दो बसें ही थी जो आ-जा रही थी और हम सब डरे-सहमे ऐसे ही आगे बढ़ते जा रहे थे। कभी कभी एक-दो कुक्कुर महाराज जी भौंकते हुए बगल से गुजर जाते तो कभी खड़े होकर अपने संगीत सुनाकर डराने का असफल प्रयास करते, लेकिन हम तो बस अपने धुन में चले ही जा रहे थे।

Monday, November 25, 2019

बदरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 minutes aur Ganga Snan)

दरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 Minutes aur Ganga Snan)





बदरीनाथ यात्रा के दूसरे भाग में आइए हम आपको हरिद्वार से आगे के सफर पर ले चलते हैं। आगे चलने से पहले हम आपको थोड़ा बीते हुए लम्हों में एक बार फिर से ले जाना चाहते हैं। अभी तक आपने देखा कि कैसे हम हरिद्वार पहुंचे और कैसे केदारनाथ की बस मिली लेकिन पीछे की सीट मिलने के कारण हमने उस बस को छोड़ दिया और उसके बाद बदरीनाथ जाने वाली बस पर मनपसंद सीट मिलने पर उसी सीट पर अपना कब्जा जमाया और सीट अपने नाम कर लिया। अब सीट तो हमने हथिया लिया था पर अभी भी ये तय नहीं था कि हम बदरीनाथ पहुंचेंगे या फिर रुद्रप्रयाग उतरकर केदारनाथ चले जाएंगे; या चमोली उतरकर रुद्रनाथ चले जाएंगे। खैर वो बातें आगे होगी अभी हम पिछले आलेख में किए गए वादे के अनुसार आपको गंगा स्नान के लिए ले चलते हैं।

Sunday, November 24, 2019

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)




एक बहुत ही लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से एक छोटी या बड़ी घुमक्कड़ी का संयोग बन रहा था, जिसमें जाने की तिथि तो हमने तय कर लिया था कि अमुक दिन हमें जाना है लेकिन वापसी की तिथि का कुछ पता नहीं था कि वापसी कब होगी, क्योंकि पहले यही नहीं पता था कि जाना कहां है, किस ओर कदम बढ़ेंगे, कितने दिन लगेंगे, और कौन साथ में चलेंगे या फिर अकेले ही जाना होगा, अगर कुछ तय था तो जाने का दिन और जाने की दिशा। अब जब जाने का दिन और दिशा तय था ही तो हमने सोचा कि क्यों न जाने का एक टिकट करवा लेता हूं और यही सोचकर हमने दिल्ली से हरिद्वार का एक टिकट बुक कर लिया। टिकट बुक करने के बाद कुछ साथियों को पूछा कि इतने तारीख को हम कहीं जाएंगे अगर आपका विचार बनता है तो साथ चलिए, जगह आप जहां कहेंगे हम वहां चले जाएंगे, पर वही ढाक के ढाई पात, ओह साॅरी ढाई नहीं तीन पात वाली बात हुई। कोई भी साथी जाने को तैयार न हुए।

Saturday, November 23, 2019

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)




बहुत समय बाद एक बार फिर कहीं जाने का सुयोग बन रहा था। इससे पहले भी कई बार कई जगहों पर जाने का प्रयत्न किया पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। कभी ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाना, कभी कोई अन्य काम, तो कभी कुछ तो कभी कुछ कारण सामने आ जाते और हर बार मन को समझाकर घर पर ही बैठना पड़ता। इस बार जब जाने का कार्यक्रम तय किया तो कुछ पता नहीं था कि कहां जाएंगे; पर ये पता था कि कहीं न कहीं तो जाएंगे ही और इस बार तो ऑफिस की छुट्टियां भी बाधा नहीं बन रही थी। नवरात्रि के त्यौहार के कारण दो छुट्टियां पड़ रही थी और एक रविवार मिलाकर तीन दिन का इंतजाम तो अपने आप हो गया था और एक दिन आगे और एक-दो दिन बाद की छुट्टी लेने पर कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी तो बना लिया कहीं जाने का प्लान।

Monday, October 28, 2019

प्रकृति पूजा का महापर्व है : छठ महापर्व

प्रकृति पूजा का महापर्व है : छठ महापर्व





केलवा जे फरेला घवद से, आह पर सुगा मंडराय
उ जे चढैवो आदित्य के, सुग्गा देले जुठियाय
मरबो रे सुगवा धनुष से, सुग्गा गिरै मुरछाय
सुगनी जे रोवे ला वियोग से आदित्य होवा न सहाय

छठ महापर्व के ऐसे ही कुछ कर्णप्रिय और मधुर गीत आजकल पूरे बिहार और पूर्वांचल क्षेत्र के हर गली, नुक्कड़, गांव, शहर और चौक-चौराहे पर सुनने के लिए मिल जाएंगे। कुछ दशक पहले तक छठ पर्व एक ऐसा त्यौहार था जो केवल बिहार और पूर्वांचल तक ही सीमित था और इन इलाकों से अलग दूसरे राज्य के निवासी इसे एक आश्चर्य की तरह देखते थे कि ये कैसा त्यौहार है, लेकिन अब यहां के निवासियों का दूसरे राज्यों और यहां तक कि दूसरे देशों में बसने के कारण यह त्यौहार वहां भी मनाया जाने लगा है। मुझे याद है जब दिल्ली में 18 साल पहले आया था तो बहुत कम लोग यहां छठ मनाते थे और बिहार के लोग भी छठ में अपने अपने शहरों की ओर त्यौहार मनाने के लिए लौट जाते थे, लेकिन अब एक तो आने जाने में गाडि़यों की इतनी दिक्कत होने लगी है कि लोग उस परेशानी से बचने के लिए यहीं छठ मनाने लगे और आज के समय में छठ यहां धूमधाम से मनाया जााने लगा है।

Saturday, September 14, 2019

घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं—अभ्यानन्द सिन्हा

घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं—अभ्यानन्द सिन्हा



इस साक्षात्कार को एकऑनलाइन पोर्टल ने छापा था, लेकिन कालांतर में उसने वहां से हटा दिया तो मैं उन शब्दों का यथावत् अपने ब्लाॅग पर प्रकाशित कर दिया।

Thursday, April 25, 2019

रात में चोपता से चंद्रशिला (Chopta to Chandrashila in the Night)

रात में चोपता से चंद्रशिला
(Chopta to Chandrashila in the Night)







चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला श्रृंखला के इस पोस्ट में आइए हम आपको चोपता से लेकर चंद्रशिला तक की यात्रा (नवम्बर 2017) करवाते हैं। रात के दो बज रहे थे और सभी साथी चोपता के एक बुगियाल में अपने अपने घोसले (टेंट) में नींद की आगोश में लिपटे हुए हसीन सपने में खोए हुए सो रहे थे। तभी अचानक से मोबाइल का अलार्म बजता है और किसी एक की नींद में खलल उत्पन्न होता है और वह नींद के थैले (स्लीपिंग बैग) के अंदर से ही उसी घोसले में अपने साथ सो रहे तीन और साथियों को हिला-डुला कर और कुछ आवाज लगाकर जगाता है। कुछ आंखें खुलती है तो कुछ बंद ही रहती है लेकिन जगाने वाला भी जिद में था कि जगा कर ही छोड़ना और आखिरकार सबको जगाकर ही वो रुकता है।

Wednesday, April 24, 2019

चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (Chopta-Tungnath-Chandrashila)

चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (Chopta-Tungnath-Chandrashila)




इस जगह पर जाने का सौभाग्य हमें दो बार प्राप्त हुआ और दोनों ही बार मौसम ने बिल्कुल अलग अलग रंग दिखाए। एक ही दिन में मौसम के हजार रंग देखने को मिले। कभी बादल भैया ने रास्ता रोका तो कभी बरखा दीदी ने दीवार खड़ा किया तो कभी सूरज बाबा ने अपनी चमक से हमें चमकाया। कभी उन वादियों में खो गए तो कभी रास्ता भी भटके। कभी हिमालय के बड़े से कप में बादलों की आईसक्रीम का स्वाद लिया, तो कभी सुनहरे बादलों में सूरज का गुलाब जामुन भी बनते देखा। कभी सूरज को बादलों में प्रवेश करते देखा तो कभी उसी सूरज बाबा को बादलों से के आगोश से निकलने के लिए तड़पते भी देखा। कभी महादेव के चरणों में लोटे तो कभी चंद्रशिला से उगते सूरज का देखा।

Tuesday, April 23, 2019

रेगिस्तान की एक सुबह (A morning of Sand Dunes)

रेगिस्तान की एक सुबह (A morning of Sand Dunes)




16 दिसम्बर की सुबह जैसलमेर की रेगिस्तानी वादियों में आपके सभी साथी अपने अपने तबेले में ऊंट बेच कर सो रहे हों। चारों तरफ सन्नाटा हो, अगर कुछ सुनाई पड़ रहा हो तो अगल-बगल के टेंटों से एक-दो मानवीय ट्रेक्टरों की आवाज। आप भी जागते हैं और रजाई से बाहर आते ही ऐसा लगता है जैसे ठंड काटने को दौड़ रहा है और आप फिर से रजाई में दुबके जाते हैं और याद आता है कि अरे हमने तो पांच बजे सबको जगाने का वादा किया है फिर थोड़ा हां थोड़ा ना करते हुए आप 4 से 5 डिग्री के तापमान में भी रजाई को फेंक कर बाहर निकलते हैं।

Sunday, April 21, 2019

हिमालय (Himalaya)

हिमालय (Himalaya)






बचपन से तुम्हारे बारे में सुना करता था, कभी किताबों में पढ़ता था, तो कभी अखबारों में देखता था, तो कभी बड़े-बुजुर्गों से तुम्हारे बारे में सुना करता था, पर तुमको कभी देख नहीं पाया था। बस मन ही मन महसूस करता था कि तुम कैसे दिखते होगे, कितने खूबसूरत होगे, तुमको देखकर कैसा लगता होगा। तुम्हारा नाम जब भी कोई लेता था मन में एक जिज्ञासा उठती थी आखिर ऐसा क्या है जो तुम इतना लुभाते हो सबको। तुमसे मिलने की ईच्छा लिए कई बार घर से भी भागा पर तुम तक पहुंच नहीं पाया। कभी कलकत्ता तो कभी बनारस, कभी गया तो कभी देवघर, कभी पटना तो कभी सुल्तानगंज, कभी रांची तो कभी बोकारो, कभी राजगीर तो कभी गिरियक, कभी यहां तो कभी वहां, कभी ईधर तो कभी उधर--कहां कहां नहीं गया तुमसे मिलने के लिए, लेकिन तुम इतने दूर बैठे थे कि मैं तुम तक कभी पहुंच ही नहीं पाता था। तुमसे मिलने की आस में आधी से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर पर तुम नहीं मिले।

Saturday, January 19, 2019

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)

शम्भू जी की रेल यात्रा (Train Journey of Shambhu Jee)




मेरे पड़ोस में एक शम्भू दयाल नामक एक व्यक्ति रहते हैं। एक बार अचानक ही उन्हें कहीं जाना पड़ गया। बड़ी मुश्किल से उन्होंने एक तत्काल टिकट का इंतजाम किया, वो भी वेटिंग हो गई, लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और टिकट कंफर्म भी हो गई। वो यात्रा के लिए घर से निकले और स्टेशन पहुंच गए। स्टेशन पर जाने पर पता चला कि उन्होंने जिस गाड़ी का टिकट लिया उससे पहले की दो ट्रेन और बाद की तीन ट्रेन कैंसिल है। ट्रेन कैंसिल होने का कारण भी ये था कि जो ट्रेनें यहां से जानी थी वो आई ही नहीं थी क्योंकि जहां से वो आने वाली थी वो किसी राजनीतिक पार्टी के देश या राज्य बंद के कारण रास्ते में ही खड़ी थी। मतलब कुल मिलाकर यह हुआ कि उन सभी ट्रेनों की जितनी सवारियां हैं उनमें से अधिकतर सवारियां जो भीड़ का सामना करने का हौसला रखती है, वो इसी में सवार होगी।

Thursday, January 17, 2019

घुमक्कड़ (Traveller)

घुमक्कड़ (Traveller)




एक घुमक्कड़ हमेशा एक सफर में रहना चाहता है और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलता ही रहना चाहता है। उसे मंजिल नहीं चाहिए होता है उसे तो रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते उसके लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव। वह चलता रहना चाहता है और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहता है। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें उसे दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में वो बस चलता रहता है, उससे मिलने के लिए। वह बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहता है और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेना चाहता है।

Tuesday, January 15, 2019

रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)

रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)




बिछड़े हुए दो प्रेमी : रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)कितनी अजीब बात है न, हम दोनों ने एक ही जगह से अलग-अलग दिशाओं में सफर करना आरंभ किया था और सोचे थे कि चलते चलते एक न एक दिन कहीं मिल जाएंगे। मिलने की उम्मीद में बस चले ही जा रहे थे कि सहसा ही हमारे कदम रुक गए थे। हमने पीछे मुड़कर देखा था कि जरूर तुम भी मुझे पीछे मुड़कर देख रहे होगे और बहुत खुशी हुई थी कि ये देखकर कि तुम भी मुझे ठीक वैसे ही देख रहे हो जैसे हम तुमको देख रहे हैं। हम सोच रहे थे कि तुम वापस आओगे और तुम सोच रहे थे हम वापस आएंगे और इसी सोच में न जाने कब हम दोनों ही अपने स्थान पर जड़बद्ध हो गए पता ही नहीं चला।

Monday, January 14, 2019

रास्ता (Way)

रास्ता (Way)



जब हम कहीं किसी सफर पर निकलते हैं तो बस दो चीजें ही ध्यान में रहती है कि कहां से चलना है और कहां जाना है। यहां से वहां तक और फिर वहां से वहां तक। पर कुछ दीवाने हमारे और आप जैसे भी होते हैं जिनका ध्यान यहां से वहां तक बहुत कम होता है। उनको ध्यान तो यहां से वहां के बीच पड़ने वाले रास्ते पर होता है। जो रोमांच रास्तों को देखकर होता है वो मंजिल पर पहुंचकर नहीं। मंजिल तक पहुंचकर तो सफर समाप्त हो जाता है। रास्ते तो बस चलते रहते हैं जो कभी खत्म नहीं होता। जो खूबसूरती किसी सफर में रास्ते में दिखाई देती है वो मंजिल पर पहुंचकर नहीं। मंजिल तो बस एक विश्रामस्थल है जहां कुछ देर रुकना फिर आगे चल पड़ना है।

Saturday, January 5, 2019

वैष्णो देवी यात्रा का सारांश (Summary of Vaishno Devi Journey)

वैष्णो देवी यात्रा का सारांश 

(Summary of Vaishno Devi Journey)




वैष्णो देवी के प्रति मेरे मन में ऐसी श्रद्धा बैठ गई है या कहें तो ये जगह मेरे मन में ऐसे बस गई है कि हमारा बेचैन मन हर बार और बार बार यहां जाना चाहता है। अब बार-बार जाना संभव तो है नहीं तो उस इच्छा पूर्ति के लिए साल में एक बार यहां का रुख कर लेते हैं और वो समय होता है नवरात्रों का। पूरा विवरण लिखने से पहले आइए उसी यात्रा एक सारांश हम आपके सामने रखते हैं। हमारी यह यात्रा 16 अक्टूबर की शाम को दिल्ली से आरंभ होकर 19 अक्टूबर की सुबह को दिल्ली आकर समाप्त हुई। (यात्रा का आरंभिक और समाप्ति स्थल-दिल्ली)। टिकट बुकिंग चार महीने पहले, ट्रेन 12445 अप, रात 8.50 (दिल्ली से कटरा), 12446 डाउन, शाम 6.55 (कटरा से दिल्ली)। यात्रा का कुल खर्च 1300 रुपए (10 रुपया घर से नई दिल्ली, 385 रुपया नई दिल्ली से कटरा, 406 रुपया रुकने का (दो दिन का, एक दिन का 203 रुपया) साथ ही नाश्ता फ्री और पानी बोतल मुफ्त, 40 रुपए का प्रसाद, 385 रुपया कटरा से नई दिल्ली, 15 रुपया नई दिल्ली से घर, दस-बीस रुपए और अतिरिक्त खर्च)।

Friday, January 4, 2019

मध्यमहेश्वर यात्रा का सारांश (Summary of Madhyamaheshwar Journey)

मध्यमहेश्वर यात्रा का सारांश
(Summary of 
Madhyamaheshwar Journey)



जब हम पहली बार केदारनाथ गए थे तभी से मन में पांचों केदार (केदारनाथ, मध्यमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर) के दर्शन करने की इच्छा हुई थी जो धीरे-धीरे फलीभूत भी हो रही है। केदारनाथ के बाद तुंगनाथ गया और फिर दुबारा भी तुंगनाथ पहुंच गया। समय के साथ आगे बढ़ते हुए दुबारा भी हमने केदारनाथ यात्रा कर लिया और उसके बाद बारी थी किसी और केदार तक पहुंचने की। दो बार केदारनाथ और दो बार तुंगनाथ के दर्शन के पश्चात हमारे कदम चल पड़े थे एक और केदार मध्यमहेश्वर के दर्शन करने। मध्यमहेश्वर यात्र का पूरा विवरण लिखने से पहले आइए पढि़ए उसी यात्रा का सारांश। हमारी यह यात्रा 27 सितम्बर 2018 की शाम को दिल्ली से आरंभ होकर 2 अक्टूबर सुबह को दिल्ली आकर समाप्त हुई। (यात्रा का आरंभिक और समाप्ति स्थल-दिल्ली)। रांसी से मध्यमहेश्वर की दूरी 18 से 20 किलोमीटर है जो पैदल ही तय करनी होती है या घोड़े द्वारा।

Thursday, January 3, 2019

एक अधूरा सफर (An unfinished journey)

एक अधूरा सफर (A unfinished journey)



बहुत दिनों से मन में था कि दीपावली का दिन बदरीनाथ में ठाकुर जी के चरणों में बिताऊंगा और उसी पर अमल करते हुए हम झोला लेकर निकल पड़े थे ठाकुर जी से मिलने। निकल तो पड़े थे लेकिन या तो ठाकुर जी मुझसे मिलना नहीं चाहते थे या फिर मेरी परीक्षा ले रहे थे कि कर्म और पूजा में मैं किसे प्राथमिकता देता हूं। अपनी बनाई योजना के अनुसार रात नौ बजे (5 नवम्बर 2018) घर से निकले और करीब 40 मिनट के छोटे से सफर के बाद हम पहुंच गए कश्मीरी गेट बस अड्डे। वहां जाते ही बस अड्डे के बाहर एक हरिद्वार जाने वाली यूपी रोडवेज की बस मिल गई। लेकिन बस जी पहले से ही सवारियों से सजे-धजे भरे हुए थे, केवल पीछे की दो-तीन सीटें खाली थी, इसलिए हमने उनको बाय-बाय कर दिया और बस अड्डे के अंदर चले गए। वहां कई सारी बसें थी जो अपने गंतव्य पर जाने के लिए सवारियों के इंतजार में खड़ी थी। हम भी एक देर न करते हुए एक हरिद्वार जाने वाली बस में समाहित हो गए और एक सीट पर अपना कब्जा जमा लिया।