मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)
मैं मगध हूँ... एक सभ्यता हूँ... एक संस्कृति हूँ...
गंगा के विस्तृत जलोड़ और कछार की मेरी यह भूमि समृद्ध रही है अपने मतवाले गजों और घनघोर साल के जंगलों से...! शिलागृहों और गर्तवासी आदिमानवों की शिकार-क्रीड़ांगन रही यह भूमि, संस्कृति सूर्य के चमकने पर जन से जनपद, जनपद से महाजनपद, महाजनपद से राज्य और राज्य से अखिल जम्बूद्वीप का केंद्र और निर्माणकर्ता रही है और इसने ही प्रथम साम्राज्य बने उस आर्यावर्त को भी बनाया।
हां मैं वही मगध हूं, जिसकी वीरता से बंधे सीमाओं को न तो मुगल प्राप्त कर सके न ही ब्रिटिश। हां मैं वही मगध हूं जिसने देखा है बुद्ध के ज्ञान को, परखा है जीवक के औषधि को, महसूस किया है महावीर के निर्वाण को, झेला है अशोक के क्रोध को और बनाया है आर्यावर्त को।
हां मैं वही मगध हूं जो आज एक शापित अश्वत्थामा बना हुआ दर-दर भटक रहा है, और ठीक उसी तरह जैसे अश्वत्थामा के अस्तित्व को कभी मिटाया नहीं जा सका और न कभी मिटाया जा सकता है वैसे ही इस मगध के अस्तित्व को भी कभी मिटाया नहीं जा सकता। हां मैं वही मगध हूं जहां फलती-फूलती थी एक पुरानी संस्कृति, जहां था दुनिया का पहला विद्यालय जिसकी शिक्षा की जलती लौ में देश-दुनिया के छात्र आकर अपनी शिक्षा की अग्नि को प्रज्वलित करते थे।
हां मैं वही मगध हूं जिसने एक-एक ईंट को अपनी मेहनत के गारे से जोड़ जोड़ कर निर्माण किया है आधुनिक भारत का और भारत के महानगरों का। आज वही निर्जीव तंत्रा के रूप में खड़े महानगर जहां न तो कोई संस्कृति है, न ही कोई सम्मान है और वही निर्जीव महानगर आज अपने निर्माता को बिहारी शब्द से संबोधित करके ये सोच लेते हैं कि उन्होंने मेरा अपमान कर दिया, तो ये उनकी भूल है कि मेरा अपमान हुआ। मगध तो गुरु है पूरे आर्यावर्त का, पूरे विश्व का और गुरु का कभी अपमान नहीं किया जा सकता। गुरु का अपमान करने वाले का हश्र अब तक हरेक संस्कृतियों ने देखा और भुगता है।
हां मैं वही मगध हूं और मगध केवल शब्द नहीं है, यह बताता है मुझे मेरे त्याग-बुद्धि-क्रोध-हिंसा-शांति का पर्याय बने मेरी मिट्टी के गौरव को जिसके कण-कण से आर्यावर्त के साम्राज्य बनने की नींव रखी गई। जो एक साथ ही हिंसा और अहिंसा के साथ हलचल का केंद्र बनकर आज बिहार बना और जिसने शरीर और दिमाग दोनों ही जगह पराकाष्ठा पर जाकर भारत को भारत बनाया।
हां मैं वही मगध हूं जो बिम्बिसार और अजातशत्राु जैसे राजाओं की जन्मभूमि रही है। मैं वही मगध हूं जिसने देश को चाणक्य जैसा महान गुरु दिया। हां मैं वही मगध हूं जिसकी गोद में चंद्रगुप्त, बिन्दुसार और अशोक जैसे राजाओं को अपनी गोद में पाला है। हां मैं वही मगध हूं जिसकी गोद में सारिपुत्रा और महामौदग्लयायन जैसे संत खेला करते थे। मैं वही मगध हूं जिसकी मिट्टी से जरासंध जैसे राजा तिलक किया करते थे। हां मैं वही मगध हूं जिसने सिकन्दर के घमण्ड को तोड़ा।
हां मैं वही मगध हूं जिसने दुनिया को पहला सर्जन वाला वैद्य दिया। मैं वही मगध हूं जिसने पूरी दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाया। मैं वही मगध हूं जिसने बुद्ध को ज्ञान दिया। मैं वही मगध हूं जो बुद्ध के लिए सबसे प्यारा था। हां गंगा किनारे खड़ा मैं वही मगध हूं जिसकी मर्जी से पानी का रंग सफेद और लाल होता आया है, जिसने हिंसा के कोख से शांति का सृजन किया है। हां मैं वही मगध हूं, हां मैं वही मगध हूं।
हां मैं वही मगध हूं जिसे एक इंसान की तरह हर समय प्रताडि़त किया गया, हमारी मेहनतकशी को लानते-तोहमतें दी गई, हर पल मुझे धराशायी करने का प्रयास चलता रहा फिर भी हम उसी शान से खड़े रहे जिस शान से सदियों और सहस्रों साल पहले खड़े थे।
आतताइयों को हमारी समृद्ध संस्कृति पच नहीं पाई, हमें देखकर उनके कलेजे छलनी होते रहे और फिर उन्होंने हमें लूटना और बर्बाद करना आरंभ किया। अपने जी-जान भर वो जितना हमारा विध्वंस कर सकते करते रहे और फिर भी हम मुस्कुराते हुए उस दर्द को सहते रहे। और सबसे बड़ा जख्म तो तब दिया जब मुझसे मेरी ही हृदय झारखण्ड को काटकर अलग कर दिया और हम दर्द से कराहते रह गए। हम मौके पर हमारे दामन में में दर्द ही दिया गया, कभी खुशियां हमारी झोली में नहीं दिया गया फिर भी जीवनदायिनी गंगा के जल से अपने भूमि को सींचते हुए हम हर बार उठ खड़े हुए।
हमारी पवित्रा मिट्टी से गंगा को भी इतना प्यार हो गया कि उसने हमारी मिट्टी को अपना आंगन बना लिया और उसी गंगा के किनारे पर हमारी बोली-भाषा, संस्कृति, शिक्षा-दीक्षा और पर्व-त्यौहार पलते और बसते हैं। हमारी ही पवित्रा मिट्टी में मगध, अंग, मिथिला, वज्जी आदि जैसी संस्कृतियों ने जन्म लिया और पले-बढ़े। हां मैं वही मगध हूं जिसे गंगा हर साल मिटा देती है और और हम हर साल उसे पूजते हुए फिर से उठ खड़े होते हैं।
कभी हम विहार थे और अपभ्रंशियों के कारण आज हम विहार से बिहार बन गए हो लेकिन कालान्तर में हमारी ही मिट्टी को मगध के नाम से जाना जाता था। जिसने न जाने कितने विद्वान, कितने शूर-वीर, कितने राजा-महाराजा इस देश को दिए और फिर भी हम ही हर बार छले जाते रहे।
और अंत में, हां मैं वही मगध हूं जहां मैं नहीं हम होता है, जहां नफरत नहीं प्यार होता है, जहां अपमान नहीं सम्मान होता है।
✍️अभ्यानन्द सिन्हा
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नालंदा महाविहार |
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नालंदा महाविहार |
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नालंदा महाविहार |
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नालंदा महाविहार |
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नालंदा महाविहार |
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विश्व शांति स्तूप (गृधकूट पर्वत, राजगृह) |
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स्वर्णभंडार गुफा, राजगृह |
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मनियार मठ, राजगृह |
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नालंदा महाविहार |
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विश्व शांति स्तूप (गृधकूट पर्वत, राजगृह) के पास एक शिलालेख |
सुन्दर आलेख। पर क्षमा के साथ कहना चाहूँगा कि मगध निवासियों ने भी इसका काफी नुकसान किया है। सत्ता पर काबिज लोगों ने इसका दोहन किया है। लेख में इस बिंदु पर भी बात होती तो लेख और खिल सकता था। अभी ऐसा लग रहा है जैसे सारा कसूर बाहरी ताकतों का है। ऐसे ही अन्य लेखों की प्रतीक्षा रहेगी।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको। आपकी बात सही है, सत्ता पर काबिज लोगों ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। इसमंे हमने केवल मगध की महिमा लिखा था और उसके पुराने समय की बातों को लिखा था इसलिए राजनीति से संबंधित कुछ नहीं लिखा। ऐसा ही एक लेख लिखा है ऐसा देश है मेरा जो भारतवर्ष पर केंद्रित है।
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