Saturday, November 30, 2019

बेचैन रातें (Anxious Nights)

बेचैन रातें (Anxious Nights)




दीपक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में व्यस्त था तभी पूरे दिन खामोश पड़ा रहने वाला चलभाष अचानक ही घनघना उठता है। ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....!!!!!
दीपक अनजान नम्बर देखकर बड़े ही अनमने ढंग से फोन रिसीव करता है, पर उधर से जानी-पहचानी आवाज से सामना होता है। आपस में कुशलक्षेम की पूछने का दौर चलता है।
‘‘हेलो अमित, कैसे हो?’’
‘‘मैं ठीक हूं दीपक। आप बताइए आप कैसे हैं?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं। पर आज अचानक इस समय कैसे? सब कुछ कुशल मंगल तो है न?’’
‘‘हां, सब कुछ ठीक है। वो क्या है कि आरती को रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल लेकर आया था, पर डाॅक्टर ने उसे एडमिट कर लिया।’’


‘‘आज अचानक अभी तो बहुत समय बाकी है।’’
‘‘हां पर डाॅक्टर ने कहा तो भर्ती करना पड़ा।’’
‘‘ठीक है, कोई खास या छोटी मोटी जरूरत हो तो आदेश करो प्रभु।’’
‘‘जरूरत ही तो है, अस्पताल के नियमों के अनुसार महिला वार्ड में 11 बजे के बाद मरीज के साथ महिला को ही रहना होगा और मैं तो केवल चेकअप करवाने आया था, अब अकेले छोड़कर मैं घर से माताजी को कैसे लाने जाऊं?’’
‘‘चिंता मत करो, हम हैं न। अभी ऑफिस में हैं, फिर भी बताओ कब आना है?’’
‘‘बस आप किसी भी समय आ जाइए, क्योंकि ग्यारह बजे से पहले मुझे मां को अस्पताल लेकर आना है। आप आएंगे, उसके बाद मैं जाऊंगा और लेकर आऊंगा।’’
‘‘ठीक है, तुम निश्चिंत रहो हम आठ बजे तक आ जाएंगे।’’
उसके बाद दोनों तरफ से फोन काट दिया जाता है। काट दिया जाता है मतलब तलवार से नहीं, बटन दबाकर काट दिया जाता है।

ऑफिस का काम खत्म कर दीपक अपने ऑफिस से पहले घर जाता है और अपनी पत्नी ज्योति को सारी बातें बताता है। ज्योति भी जल्दी-जल्दी चाय बनाकर दीपक के सामने रख देती है। दीपक चाय-नाश्ते के बाद घड़ी देखता है तो हड़बड़ा जाता है कि अमित को तो हमने आठ बजे पहुंचने का समय दिया था पर आठ तो यहीं बजने वाले हैं। उसके बाद वो घर से अस्पताल की तरफ निकल पड़ता है। आधे घंटे के सफर के बाद वो अस्पताल के दरवाजे पर पहुंचकर अमित को फोन करता है कि मैं आ गया हूं अब बताओ किस वाॅर्ड में आना है। अमित दीपक को साथ ले जाने के लिए अस्पताल से बाहर आता है और इमरजेंसी वाॅर्ड के सामने प्रतीक्षालय में बैठाकर वो अपनी मां को लाने के लिए अपने घर चला जाता है।

दो मिनट बाद एक अस्पताल प्रचारिका मरीज का नाम पुकारते हुए आती है।

‘‘आरती के रिश्तेदार कौन हैं?’’
‘जी कहिए, मैं हूं उनके साथ।’’
‘‘आरती के पति कहां गए, कब से आवाज लगाया जा रहा है, पर कोई कुछ बोल ही नहीं रहा है?’’
‘‘वो मुझे लेने के लिए अस्पताल से बाहर गए थे?’’
‘‘ठीक है, तो अब कहां हैं?’’
‘‘जी अब वो अपनी माताजी को लाने घर गए हैं?’’
‘‘अच्छा आप कौन?’’
‘‘मैं आरती के पति का दोस्त।’’
‘‘ठीक है, उनको उनके रूम में पहुंचा दिया गया है, आप वहीं चले जाइए। और एक बात वो आपको पहचानती हैं या नहीं?’’
‘‘अजी बहुत अच्छे से पहचानती हैं, एक ही साथ खाना-बैठना होता है।’’
’’ठीक है।’’

इतना कहकर प्रचारिका चली जाती है और उसके बाद दीपक उस रूम में पहुंचता है, जहां पहले से ही आरती अस्पताल के बेड पर बैठी हुई थी। सेमी प्राइवेट वार्ड होने के कारण पहले से ही उसमें एक और महिला थी जिसकी आज अस्पताल से छुट्टी हो चुकी थी और उसके रिश्तेदार अपना सामान समेट रहे थे और जाने की तैयारी कर रहे थे। कुछ देर में वो दूसरी महिला अपने रिश्तेदारों के साथ अपने घर को प्रस्थान कर गई।

कुछ मिनट बाद नर्स महोदया आई और आरती को एक इंजेक्शन लगाया। इंजेक्शन देखते ही आरती मैडम की आंखें गोल-गोल घूम रही थी, पर मरता क्या न करता वाली बात, इंजेक्शन तो लगवाना ही था। इंजेक्शन लगवाने के बाद नर्स दीपक के हाथ में एक पर्चा पकड़ाकर हिदायत देते हुए कहने लगी कि अभी जो इंजेक्शन लगाया है वो वाॅर्ड से लगवाया गया है इसलिए आप अभी जाएं और एक इंजेक्शन लाकर वाॅर्ड में जमा करवा दें।
बेचारा दीपक दवाई की पर्ची लेकर अस्पताल के दवाई काउंटर पर गया पर वहां उसे निराशा हाथ लगी जब वहां बैठै व्यक्ति ने कहा कि दवाई नहीं है। अब दीपक महाराज बिना दवाई के ही नर्स के पास पहुंच गए और उसे खरी-खोटी सुना दिए कि किसलिए इतना बड़ा अस्पताल बनाय रहे आप लोग, यहां दवाई ही नहीं है। नर्स ने कहा कि हमने तो आपको बाहर से लाने के लिए कहा था तो आप बाहर से लेकर आइए, ये दवाई अस्पताल में नहीं मिलेगी।

अब दीपक बाबू पर्ची लेकर रूम में जाकर बैठ जाते हैं। कुछ ही मिनटों में दूसरी नर्स बहुत सारी दवाइयां लेकर आती है और आरती को समझाकर जाती है कि ये सभी दवाइयां अभी खानी हैं। पर दवाई खाने के लिए पानी चाहिए होता है और बोतल या गिलास नहीं था जिसमें पानी लेकर दवाई खाया जा सके। अब दीपक महोदय आरती को ये बताकर रूम से निकल जाते हैं कि मैं दवाई लेकर आता हूं साथ ही एक बोतल पानी भी लेता आऊंगा।

दीपक जी एक दवाई की दुकान पर पहुंचते हैं और दवाई मांगते हैं। दुकान का मालिक सेल्समैन को दवाई देने कहता है तो सेल्समैन कहता है कि दवाई खत्म हो चुकी है। फिर दुकानमालिक और सेल्समैन में जोर से ठन जाती है कि खत्म हो गया तो लिखा रजिस्टर में। मुझे सपने आते हैं जो मैं मंगवा लूं। उसके बाद दीपक को दुकानदार ने बताया कि आगे जाइए इसी रोड पर कई दुकानें हैं जहां मिल जाएगी, पर अफसोस अब तक सारी दुकानें बंद हो चुकी थी। अब दीपक महाराज फिर से परेशान हो गए और एक बोतल पानी लेकर अस्पताल पहुंच गए।

यहां भी दीपक महाराज के सामने अलग शामत आने वाली थी। वो कमरे में बैठकर आरती से दवाई खाने के लिए कह ही रहे थे कि चैकीदार जी आ धमके कि आप किसी महिला को लेकर आइए क्योंकि 11 बजने वाले हैं और महिला वार्ड में पुरुष नहीं रह सकते। दीपक जी ने चैकीदार को कुछ अच्छा, कुछ बुरा बोलकर समझाया कि 11 बजने दीजिए, हम खुद चले जाएंगे। खैर समय बीता और अमित जी भी कुछ देर बाद अपनी मां को लेकर अस्पताल आ गए। अब दीपक जी के विदाई का वक्त होने वाला था और अमित से विदा लेकर दीपक अपने घर को चले।

दीपक जी चले तो देखा कि सीढि़यों वाले रास्ते को चैकीदार ने ताला लगाकर बंद कर दिया है और अब एक ही रास्ता है लिफ्ट वाला और लिफ्ट भी ऐसा कि सारे बटन के अस्थि-पंजर निकले पड़े थे। खैर दीपक जी लिफ्ट में प्रवेश कर गए और उनके लिफ्ट में प्रवेश करते ही एक आदमी और लिफ्ट में प्रवेश किया क्योंकि उसे भी अपने घर जाना था। अब देखिए लिफ्ट में क्या होता है।

‘‘भाई साहब बेबी हुआ है क्या?’’
‘‘कौन बेबी?’’
‘‘ओहो! मैं ये पूछ रहा हूं कि बेबी हुआ है क्या?’’
‘‘नहीं, होने वाला है।’’
‘‘पहला बेबी है क्या?’’
‘‘आपको क्या मतलब?’’
‘‘नहीं कोई मतलब नहीं, बस ऐसे ही पूछ रहा हूं।’’
‘‘नहीं पहला बेबी नहीं, सातवां बेबी।’’
‘‘क्या, सातवां बेबी?’’ पूछने वाले का सिर चकरा जाता है।
‘‘हां, सातवां बेबी।’’
‘‘मैं नहीं मानता।’’
‘‘आपके मानने से क्या गिनती कम हो जाएगी।’’
‘‘उतनी उम्र तो नहीं लग रही कि सातवां बेबी हो।’’
‘‘अरे भाई, पत्नी भी तो तीसरी है।’’
‘‘हे भगवान, कैसे कैसे लोग हैं यहां।’’
‘‘क्या कैसे कैसे लोग हैं, तुम चार करो, हमने रोका क्या?’’
‘‘साॅरी भाई साहब साॅरी। आजकल हम दो, हमारे दो का नारा लग रहा है फिर भी।’’
‘‘लगने दो नारे। वैसे नारे तो बहुत कुछ लग रहे हैं।’’
‘‘ओके साॅरी, पर आप झूठ बोल रहे हो, सातवां बेबी नहीं हो सकता।’’
‘‘ठीक है जाइए, सीआईडी बैठा लीजिए, पता लग जाएगा।’’
‘‘साॅरी भाई साहब।’’

इतनी बातें होते होते दीपक उस अनजान आदमी के साथ लिफ्ट से बाहर निकलने के साथ ही अस्पताल से भी बाहर आ चुके थे।

‘‘अच्छा भाई साहब कल मिलते हैं आपसे।’’
‘‘क्यूं, कल क्या है?’’
‘‘सातवें बेबी की मिठाई खानी है आपसे।’’
‘‘ठीक है।’’

इसके बाद दीपक अपने घर और वो आदमी अपने घर की तरफ चले जाते हैं। दीपक पूरे रास्ते उस आदमी को पागल बना देने की बात सोचते हुए घर पहुंचा और अपनी पत्नी ज्योति को सारी बातें बताया। ज्योति पहले तो खुश हुई फिर उसने दीपक को ही बावला बोल दिया कि क्या जरूरत थी एक अनजान आदमी को इस तरह से परेशान करने की। और उधर वो अनजान आदमी को पूरी रात नींद नहीं आई और उसकी पूरी रात बेचैनी में ही गुजर गई कि ‘‘तीसरी पत्नी और सातवां बच्चा’’। अगली सुबह वो फिर अस्पताल पहुंचता है और दीपक को खोजता है पर उसे अस्पताल में दीपक नहीं मिलता। थक हार वो अमित के पास पहुंचता है और सब कुछ पूछता है।

‘‘भाई साहब, वो आदमी कहां गए?’’
‘‘किस आदमी को खोज रहे हैं, यहां तो कोई नहीं आया कुछ देर से।’’
‘‘वही आदमी जिनकी पत्नी यहां एडमिट हैं।’’
‘‘कौन आदमी, किसकी पत्नी और कौन एडमिट हैं?’’
‘‘अरे वही जिनके रूम से अभी आप निकले, उनके पति को खोज रहा हूं मैं।’’
‘‘अरे यार ये महिला मेरी पत्नी है, तुम किसे खोज रहे हो मुझे नहीं पता।’’
‘‘मजाक नहीं सच बताइए, वो कब आएंगे। मुझे कुछ पूछना है उनसे।’’
‘‘क्या पूछना है?’’
‘‘आपसे नहीं उनसे ही पूछना है।’’
‘‘वो अब नहीं आएंगे।’’
‘‘क्यूं नहीं आएंगे, उनकी पत्नी यहां हैं तो वो आएंगे क्यों नहीं।’’
‘‘भाई यहां जो महिला एडमिट है, मेरी पत्नी आरती है, और मैं उसका पति अमित हूं।’’
‘‘भाई साहब रात में एक आदमी थे वो तो ये कह रहे थे कि ये महिला उनकी तीसरी पत्नी है और सातवां बच्चा है।’’
‘‘यार वो मेरा दोस्त दीपक था। कभी कभी पागलपन के दौरे पड़ते हैं उसे, किसी को भी अपनी पत्नी बता देता है।’’
‘‘ओहो, मतलब वो मुझे बेवकूफ बना कर निकल लिए।’’
‘‘हां, वो आज रात में फिर आएंगे, तो बात कर लेना उनसे।’’

इतनी बात होने के बाद अमित दीपक को फोन करके सारी बातें बताता है कि भाई तुम सामने वाले रूम के उस आदमी को क्या बता कर चले गए, कह रहा है कि यहां तुम्हारी पत्नी एडमिट है और ये तुम्हारा सातवां बच्चा है और इन्हीं बातों के तनाव में उसने अपनी पूरी रात बेचैनी में बिना सोए गुजार दिया।

‘‘यार तुम उसे कुछ मत बताना।’’
‘‘क्यों?’’
‘‘आज रात मैं फिर से उसे उल्लू बनाऊंगा।’’
‘‘यार मैंने तो उसे सब कुछ बता दिया।’’
‘‘हे भगवान, तुमने मेरे मनोरंजन के साधन को मुझसे छीन लिया।’’
‘‘तो पहले बताते न कि ऐसी बात हुई है।’’
‘‘अब मुझे क्या पता कि वो इतना बेचैन होगा इस बात से।’’
‘‘खैर, रहने दो बेचारे को ये घटना पूरी जिंदगी याद रहेगी।’’
‘‘हां वो तो है।’’

फोन फिर कट जाता है और आज रात को फिर दीपक फिर अस्पताल पहुंचता है, पर इस बार वो अपनी पत्नी ज्योति के साथ जाता है, लेकिन दीपक को ये नहीं पता कि आज फिर से वो आदमी उसे मिल जाएगा। दीपक और ज्योति जैसे ही अस्पताल पहुंचते हैं तो उस आदमी से सबसे पहले सामना होता है। कमरों के बाहर बरामदे में लगे कुर्सी पर बैठा वो आदमी मिल जाता है। देखते ही पहले तो वो ऐसे मुस्कुराता है जैसे उसे गड़ा हुआ खजाना मिल गया हो और दीपक को देखते ही उस पर टूट पड़ता है।

‘‘भाई साहब, मैं जाने वाला था, पर पता था कि आप आएंगे इसलिए आपका इंतजार यहीं बैठकर रहा था।’’
‘‘क्यूं ऐसा क्या हो गया जो मेरा इंतजार करने लगे।’’
‘‘अच्छा पहले ये बताइए कि आपके साथ में ये कौन हैं?’’
‘‘ये मेरी पहली पत्नी है?’’
‘‘और दूसरी पत्नी कहां गई?’’
‘‘भाग गई छोड़कर।’’
‘‘भाई साहब! मुझे सच्चाई पता लग गई है। आपने तो मुझे बेचैन कर दिया।’’
‘‘साॅरी, मुझे माफ कीजिए। मैं तो पूरा पागल बना देता आपको पर आप बेचैन होकर ही रह गए, धन्यवाद कीजिए अमित का कि उसने आपको सब कुछ बता दिया वरना आज आप अपने बाल नोच रहे होते।’’
‘‘हां, वो तो है, धन्यवाद उनको जा उन्होंने मुझे सच्चाई बता दिया। लेकिन भाई साहब, आप क्या करते हो?’’
‘‘आॅरकेस्ट्रा बजाता हूं।’’
‘‘फिर से झूठ बोल रहे हो न?’’
‘‘अच्छा ठीक है, मैं अंडे बेचता हूं।’’
‘‘फिर झूठ।’’
‘‘मतलब मैं झूठा आदमी हूं?’’
‘‘अरे नहीं भाई साहब, मैंने ऐसा नहीं कहा।’’
‘‘पर मेरी बात तो आपको झूठ लगी न?’’
‘‘आप मुझे एक बार फिर से मूर्ख बना देंगे, इसलिए ऐसा कहा।’’
‘‘ठीक है, कोई बात नहीं, आप अब अपना काम कीजिए और हम भी अपना काम कर लें, फिर मुझे जाना होगा।’’
‘‘ओके भाई साहब।’’
‘‘ये ओके क्या होवे है।’’
‘‘ओके मतलब ठीक है।’’
‘‘ओह, धन्यवाद आपका।’’

तो ये थी अनजान आदमी ... अस्पताल का लिफ्ट ... पागल मन ... तीसरी पत्नी ... सातवां बच्चा ... बेचैन रातें ... जोरदार ठहाके ... एक अधूरी कहानी का पूरा परिदृश्य। इस कहानी में प्रयुक्त हुए सभी पात्रों के नाम काल्पनिक हैं, अब आप बताइए कैसी लगी आपको ये कहानी।

—अभ्यानन्द सिन्हा

5 comments:

  1. रोचक कहानी। ऐसे दीपक वाला वाक्या मैंने भी किया है। मैंने के बीवी और दो बच्चे बनाये थे। अभी भी सोचता हूँ तो हँस पड़ता हूँ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको। अपना भी कुछ यही हाल है, उस दिन को याद करके बहुत हंसी आती है।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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