Saturday, November 23, 2019

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)




बहुत समय बाद एक बार फिर कहीं जाने का सुयोग बन रहा था। इससे पहले भी कई बार कई जगहों पर जाने का प्रयत्न किया पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। कभी ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाना, कभी कोई अन्य काम, तो कभी कुछ तो कभी कुछ कारण सामने आ जाते और हर बार मन को समझाकर घर पर ही बैठना पड़ता। इस बार जब जाने का कार्यक्रम तय किया तो कुछ पता नहीं था कि कहां जाएंगे; पर ये पता था कि कहीं न कहीं तो जाएंगे ही और इस बार तो ऑफिस की छुट्टियां भी बाधा नहीं बन रही थी। नवरात्रि के त्यौहार के कारण दो छुट्टियां पड़ रही थी और एक रविवार मिलाकर तीन दिन का इंतजाम तो अपने आप हो गया था और एक दिन आगे और एक-दो दिन बाद की छुट्टी लेने पर कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी तो बना लिया कहीं जाने का प्लान।

सब कुछ की योजना बनाने के बाद 4 अक्टूबर को रात्रि में निकलने का प्लान तैयार किया और एक टिकट भी बुक कर लिया। 5 अक्टूबर शनिवार को छुट्टी ले लिया और 6 अक्टूबर रविवार तथा 7-8 अक्टूबर तो ऑफिस की छुट्टी थी ही और उसके बाद 9 अक्टूबर का भी छुट्टी ले लिया और 10 अक्टूबर के लिए कह दिया कि अगर सब कुछ सामान्य रहा तो 10 को ऑफिस आ जाऊंगा नहीं तो 11 को आऊंगा और निकल पड़ा अपने सुनहरे सफर पर।

4 अक्टूबर को घर से यही सोच कर निकला था कि 11 अक्टूबर की सुबह तक वापस आऊंगा पर वसुधारा से लौटते हुए पैर में चोट लग जाने के कारण वापसी 8 को रात तक हो गई। घर से निकलने तक नहीं पता था कि कहां जाएंगे लेकिन बुलावा बदरीनाथ ने भेजा था तो उनके ही दर पर चल पड़े थे और प्रभु की कृपा से एक मनोहारी और मनभावन यात्रा सकुशल पूर्ण हुआ।

हमारी यह यात्रा 4 अक्टूबर 2019 की शाम को दिल्ली से आरंभ होकर 8 अक्टूबर की आधी रात को दिल्ली आकर समाप्त हुई। (यात्रा का आरंभिक और समाप्ति स्थल-दिल्ली)। संक्षिप्त ब्यौरा इस प्रकार है :

4 अक्टूबर 2019
रात 10.15: घर से निकलना।
10.25: गणेश नगर बस स्टैंड तक पहुंचना और बस का इंतजार करते हुए आगे बढ़ते रहना।
10.35: गणेश नगर से आगे बढ़ते हुए मदर डेयरी तक पहुंच जाना, लेकिन बस का कोई अता-पता नहीं।
10.50: नोएडा मोड़ तक पहुंचना और बस न मिलने पर नोएडा मोड़ से निजामुद्दीन जाने के लिए आॅटो में बैठना।
11.00: निजामुद्दीन स्टेशन पहुंचना और प्लेटफाॅर्म की तरफ प्रस्थान।
11.30: ट्रेन जी का आगमन और ट्रेन में बैठना।
11.45: ट्रेन जी का निजामुद्दीन से हरिद्वार की तरफ चलना।
12.00: मेरा नींद की शरण में पहुंचना (कहीं फिर से देहरादून न पहुंच जाए इसलिए कभी जागकर तो कभी सोकर रात गुजार देना)।

5 अक्टूबर 2019

सुबह 3.00: नींद की चादर को फेंककर जागते हुए ट्रेन के हरिद्वार पहुंचने का इंतजार करना।
3.50: हरिद्वार पहुंचकर ट्रेन से उतरते ही बस स्टेशन की तरफ भागना और बस की खोजबीन।
4.00: बस पर बैठना।
4.10: बस की सीट अपने नाम करके गंगा स्नान के लिए चल पड़ना।
4.15: गंगा स्नान के लिए ई-रिक्शा से विष्णु घाट की तरफ भागना।
4.20: विष्णु घाट पर पहुंचकर रिक्शे से उतरकर घाट की तरफ दौड़ पड़ना और कुछ मिनट घाट पर व्यतीत करने के बाद श्वानों के गुर्राहट के कर्णभेदी आवाज सुनते हुए गंगा के ठंडे पानी में डुबकी लगाना।
4.40: विष्णु घाट से बस स्टैंड की तरफ भागना और पूरे रास्ते रिक्शे वाले का गुंजन-गायन सुनता रहना।
4.50: इससे एक दो मिनट पहले ही बस स्टैंड पहुंचना और भागम भाग करके बस पकड़ना और इसके बाद बस जी का ठुमक ठुमक कर चलना पर हमें तो इंतजार तांडव का था।
5.30: तीर्थनगरी ऋषिकेश की सड़कों से गुजरना।
7.45: तीनधारा पर कुछ मिनटों का विश्राम और हिमलाय दर्शन के साथ साथ फोटोखींचन।
8.00: देवप्रयाग पहुंचकर गंगा दर्शन और तत्पश्चात अलकनंदा और भागीरथी के संगम को देखते हुए आगे बढ़ते जाना।
9.30: श्रीनगर के भीड़ भरे बाजार को निहारते हुए चलते चले जाना।
11.00: अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम नगरी के बाजार से होकर गुजर जाना, बाईपास बेचारा इंतजार करता रह गया।
12.00: अलकनंदा और पिंडर के संगम स्थल कर्णप्रयाग को देखते हुए गुजरना।
1.00: अलकनंदा और नंदाकिनी के संगम नगरी नंदप्रयाग से गुजरना।
2.30: चमोली के बाजार से गुजरना और ऊंचाई पर बैठकर आराम करते हुए गापेश्वर शहर की सुंदरता का निहारना।
3.15: पीपलकोटी में कुछ देर का आराम और फोटोखींचन महोत्सव मनाना।
4.45: जोशीमठ पहुंचना और यहां की ऊंचाई से नीचे घाटी में बदरीनाथ जाने वाली सड़क के विहंगम दृश्य के आनंदसागर में डुबकी लगाना।
5.30: अलकनंदा और धौलीगंगा के संगम क्षेत्र विष्णु प्रयाग से गुजरना।
6.40: भगवान विष्णु के नगर बदरीनाथ पहुंचना औैर बस से उतरते ही ठंड से कांपते हुए कमरे की तलाश।
7.15: कमरा खोज लेने में सफलता हासिल करना।
8.00: बदरीनाथ मंदिर पहुंचना और छलकते आंखों के साथ काली कमली वाले का शरणागत होना और कुछ पल वहीं गुजारना।
9.00: आधे-अधूरे मन से प्रभु के पास से कमरे की तरफ चलना और रास्ते में कुछ साथियों से मुलाकात, जिसकी उम्मीद सपने में भी नहीं सोच सकते थे। जिन साथियों से मुलाकात हुई वो थे कोलकाता निवासी संदीप मन्ना और उनकी पत्नी, संदीप मन्ना के दोस्त और उनकी पत्नी और उनका बालक।
9.30: कमरे पर पहुंचकर, इंतजार करते हुए 8 सेबों में से एक को उदरस्थ करना और फिर नींद की शरण में जाने की तैयारी।
10.00: नींद की शरण में पहुंच जाना और रात में बुखार से रात भर तड़पना।

6 अक्टूबर 2019

4.00: नींद की जंजीरों से तोड़कर जागना।
4.30: एक बार फिर से बदरीनाथ के चरणों में और तप्तकुंड के गरम जल से नहाने का आनंद लेना और वहीं कुछ पल प्रभु के चरणों में व्यतीत करते हुए ईधर उधर के जगहों को आंखों के रास्ते में मन में बसाना और कुछ दृश्यों को कैमरे में कैद करना और फिर सूर्योदय के समय नीलकंठ पर्वत को निहारते हुए कैमरे में बंद करना।
7.30: एक बार फिर से कमरे पर आना और माना गांव तथा वसुधारा फाॅल जाने की तैयारी में लग जाना, पर तबियत ठीक नहीं होने के कारण एक मन कहता कि अभय मत जो तो दूसरा मन कहता कि अभय निकल ले, यहां भी तो बैठा ही रहेगा।
8.15: सभी साथियों के साथ उनकी गाड़ी से माना गांव के लिए प्रस्थान।
8.45: माना गांव पहुंचकर वहां के सुंदर मनभावन वादियों का दर्शन और मुग्धता में खो जाना; फिर आगे बढ़ते हुए भीमपुल तक पहुंचना और कल-कल बहती सरस्वती नदी को देखना। फिर नजरों को घुमाकर सरस्वती और अलकनंदा के संगम केशव प्रयाग पर सरस्वती को अलकनंदा में विलीन होते देखना।
9.15: सभी साथियों के साथ मानागांव से आगे वसुधारा फाॅल की ओर प्रस्थान और करीब 3.30 घंटे की कठिन सफर के बाद वसुधारा तक अकेले पहुंचना, क्योंकि सभी साथी एक-एक करके रास्ते से ही लौट आए।
2.00: वसुधारा पहुंचना और उन शांत और मनोरम वादियों में आधे घंटे की उछलकूद और दृश्यनिहारन महोत्सव के साथ फोटोखींचन कार्यक्रम करना।
2.30: वसुधारा से वापसी और चोटिल पैरों के साथ आधे समय में ही माना गांव पहुंच जाना और रास्ते में श्वान देवता के साथ भी फोटोखींचन महोत्सव का आयोजन।
4.30: माना गांव पहुंचकर इंतजार करते साथियों के साथ चाय पार्टी करना और घंटे भर माना गांव की गलियों में भटकने का आनंद लेना।
5.45: माना गांव से बदरीनाथ की ओर प्रस्थान।
6.00: एक बार पुनः बदरीनाथ आगमन और कमरे पर पहुंचकर करीब घंटे भर से कुछ कम देर का आराम।
7.00: एक बार फिर से बदरीनाथ से मिलने उनके निवास स्थान बदरीनाथ मंदिर तक जाना।
10.00: मंदिर से वापस कमरे पर आना और बचे हुए सात सेबों में से 1 सेब को ठिकाने लगाना और नींद में डूब जाना।

7 अक्टूबर 2019

4.00: कल ही तरह आज नींद की जंजीरों से तोड़कर जागना।
4.30: एक बार फिर से बदरीनाथ के चरणों में और आज भी तप्तकुंड के गरम जल से नहाने का आनंद लेने के पश्चात् वहीं कुछ पल प्रभु के चरणों में व्यतीत करते हुए ईधर उधर के जगहों को आंखों के रास्ते में मन में बसाने के बाद एक बार फिर से नीलकंठ पर्वत को निहारने के लिए निर्धारित स्थान पर जाना पर आज बादल सर और बर्षा मैडम की नाराजागी के कारण उस दृश्य को देखने से वंचित रह जाना।
7.00: बादल सर की नाराजगी झेलते हुए उदास मन से कमरे तक पहुंचना और फिर कुछ देर बदरीनाथ के बाजारों में भटकना।
9.00: एक बार फिर से बदरीनाथ के चरणों की धूल को माथे पर सजाने के लिए और साथ ही उनसे विदाई लेने के लिए मंदिर पहुंच जाना और मंदिर के अंदर सभी साथियों से एक बार फिर से अचानक ही मिल जाना।
10.30: प्रभु से विदा लेकर उदास मन से आहिस्ता आहिस्ता कमरे तक आना और बैग को कंधे पर लटकाकर सभी साथियों के साथ पहुंचना।
11.15: साथियों के साथ उनकी गाड़ी से वापसी के रास्ते पर चलना, पर हमें उतरना कहां है नहीं पता था क्योंकि मन तो केदारनाथ जाने का था पर पैर का दर्द उसकी इजाजत नहीं दे रहा था।
1.15: जोशीमठ पहुंचना और बाजार के रौनक को देखते हुए बढ़ना।
2.00: वृद्ध बदरी जाने वाले रास्ते के पास पहुंचना और मंदिर की तरफ प्रस्थान, तत्पश्चात् गाड़ीचालक द्वारा गाड़ी को आगे ले जाना, जहां वृद्ध बदरी के दर्शनोपरांत मिलना था।
2.10: वृद्ध बदरी मंदिर पहंचना और जंगलों और घाटियों में बसे उस मंदिर के दिव्य दर्शन के बाद नीचे की ओर प्रस्थान।
2.30: नीचे सड़क पर गाड़ी तक पहुंचकर आगे का सफर जारी करना।
3.15: गरुड़ गंगा नदी के पास रुककर साथियों द्वारा जलपान और मेरा फोटोखींचन कार्यक्रम।
4.00: गरुड़ गंगा से आगे के लिए प्रस्थान।
5.00: चमोली के बाजार से गोपश्वर के रौनक को देखते हुए कर्णप्रयाग की तरफ बढ़ना।
6.00: नंदप्रयाग बाजार से गुजरने के बाद एक लंबे जाम में फंसना।
8.30: लंबे जाम में जूझते हुए 20 किमी का सफर ढाई घंटे में पूरा करते हुए कर्णप्रयाग पहुंचना और फिर कमरे की खोजबीन आरंभ, और कमरा मिलने के बाद सेब जी को ठिकाने लगाकर सोने की तैयारी।

8 अक्टूबर 2019

4.00: नींद की जंजीरों से खुद को आजाद करना।
5.30: रात्रि विश्राम स्थल से निकलकर बस स्टैंड तक पहुंचना और मन पसंद सीट पर कब्जा करना क्योंकि उस बस का मैं ही पहला मुसाफिर था।
6.00: बस का हरिद्वार के लिए प्रस्थान।
6.15: आज भी बस का रुद्रप्रयाग के बाजार से होकर गुजरना और बाईपास की तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखना।
8.15: श्रीनगर पहुंचकर बस जी द्वारा कुछ देर आराम की घोषणा।
8.25: श्रीनगर से प्रस्थान।
9.45: देवप्रयाग पहुंचना और बिना रुके आगे बढ़ते रहना।
10.25: तीनधारा पहुंचकर बस चालक द्वारा नाश्ते की घोषणा के पश्चात् सभी लोगों द्वारा अपने मनपसंद भोजन पर टूट पड़ना और हमारा मनपसंद भोजन तो फोटोखींचन है तो एक बार फिर से साफ मौसम में चौखम्भा के दीदार करते हुए फोटोंखींचन कार्यक्रम जारी रहा।
10.45: बीस मिनट पश्चात् बस का हरिद्वार की तरफ प्रस्थान।
1.00: जाम के झाम में जूझते हुए 1.00 बजे ब्यासी पहुंचना।
2.15: तीर्थनगरी ऋषिकेश के सड़कों से गुजरते हुए हरिद्वार की तरफ बढ़ना।
3.30: हरिद्वार पहुंचकर, पहाड़ी यात्रा की समाप्ति और अब मैदानी यात्र की तैयारी।
4.00: क्या करें, क्या न करें के उधेड़बुन में 30 मिनट की बर्बादी के बाद दिल्ली जाने वाली उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बस पर आगे की सीट पर विराजमान होना।
4.30: बस का दिल्ली की ओर प्रस्थान।
10.00: रुड़की, मुजफ्फरनगर, मेरठ, राजनगर, होते हुए बस का मोहन नगर पहुंचना और मेरा भी वहीं उतर जाना कि जितने देर में बस महाराज कश्मीरी गेट पहुंचेंगे उससे पहले तो हम घर पहुंच जाएंगे। मोहन नगर उतरकर वैशाली मेट्रो स्टेशन जाने वाले आॅटो में बैठना। आॅटो में बैठकर हम वैशाली पहुंचने का इंतजार करते ही रह गए और आॅटो वाला वैशाली से गुजरते हुए मुझे आनंद विहार पहुंचा दिया।
10.30: पहले बस का इंतजार करना और आज भी बस के न मिलने पर आॅटो वालों से बातचीत पर वही 150 रुपए ही लूंगा जी उससे कम नहीं और हम भी 20 रुपए से ज्यादा खर्च करने के मूड में नहीं थे तो चल पड़े मेट्रो की तरफ।
10.45: टोकन लेकर मेट्रो का इंतजार करने प्लेटफाॅर्म पर पहुंचना और आने वाली मेट्रो में सवार होना।
10.50: निर्माण विहार पहुंचकर मेट्रो को बाय बाय करते हुए घर की तरफ चल पड़ना।
11.00: घर पहुंचकर एक सुखद यात्रा की समाप्ति।



टिप्पणी : समय में दो-चार-पांच मिनट का अंतर हो सकता है क्योंकि ये केवल याददाश्त पर आधारित है।



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें








बदरीनाथ मंदिर रात में

4 comments:

  1. रोचक। यह मिनी वृत्तांत सही लगा। अब विस्तृत पढ़ने जा रहा हूँ। काफी कुछ कर लिया आपने इन तीन चार दिनों में।

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    1. आपको धन्यवाद खूब सारा। ये इस तरह लिख देने से आगे का पूरा वृत्तांत याद रह जाता है कि हम उस समय वहां थे या कहां पर थे। और इस तरह लिखने का एक फायदा ये भी हो जाता है कि याददाश्त के तौर पर सदा सदा के लिए मन में बस जाता है।

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  2. नमस्कार 🙏 सर जी।
    बहुत ही अच्छा यात्रा वृतांत। आखिर कार आप ने मेरे जैसे अपने कई फैन फालोइंग की बात मानकर पुनः ब्लॉग लिखना प्रारंभ किया। उसके लिए आपको धन्यवाद।
    मुझे व्हाटसअप पर आपका मैसेज प्राप्त हुआ था। आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ कि आपने मुझे प्राथमिकता दी तथा व्यक्तिगत रूप से आपने मुझे मैसेज किया, परंतु पारिवारिक व्यस्तता के कारण आपके ब्लॉग का रिप्लाई नहीं दे पाए। उसके लिए क्षमा चाहता हूं।
    ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आप पर उनका प्यार और आशीर्वाद इसी तरह बना रहे।
    ।। हर हर महादेव।। 🙏🙏🙏

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    1. नमस्कार अर्जुन जी।
      बहुत बहुत धन्यवाद आपको। आप लोगों के प्यार और स्नेह ने फिर से लिखने के लिए आगे बढ़ा दिया ही दिया और आपके ये शब्द ही आगे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं। हां आपको मैसेज भेजा था और आप पारिवारिक कार्यक्रम में व्यस्त थे। और इसमें क्षमा की कोई बात नहीं है, पहले वही काम किया जाएगा जो जरूरी है उसके बाद दूसरा काम। आपको सदा खुश रहे और जीवन में हमेशा आगे बढ़ते रहें यही ईश्वर से विनती है।
      जय शिव शंकर, हर हर महादेव।

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