Saturday, November 30, 2019

बेचैन रातें (Anxious Nights)

बेचैन रातें (Anxious Nights)




दीपक अपने ऑफिस में बैठा अपने काम में व्यस्त था तभी पूरे दिन खामोश पड़ा रहने वाला चलभाष अचानक ही घनघना उठता है। ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....ट्रिन.....!!!!!
दीपक अनजान नम्बर देखकर बड़े ही अनमने ढंग से फोन रिसीव करता है, पर उधर से जानी-पहचानी आवाज से सामना होता है। आपस में कुशलक्षेम की पूछने का दौर चलता है।
‘‘हेलो अमित, कैसे हो?’’
‘‘मैं ठीक हूं दीपक। आप बताइए आप कैसे हैं?’’
‘‘मैं भी ठीक हूं। पर आज अचानक इस समय कैसे? सब कुछ कुशल मंगल तो है न?’’
‘‘हां, सब कुछ ठीक है। वो क्या है कि आरती को रूटीन चेकअप के लिए अस्पताल लेकर आया था, पर डाॅक्टर ने उसे एडमिट कर लिया।’’

Friday, November 29, 2019

उस रात की यादें (Memories of that night)

उस रात की यादें (Memories of that night)





वैसे तो रात को अंधेरे के लिए जाना जाता है लेकिन कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसा घटित होता है जिसके कारण रात अंधेरी न होकर सुनहरी हो जाती है। यह घटना तब की है जब हमारी आयु केवल 15 वर्ष थी। मैट्रिक की परीक्षा का अंतिम दिन था। सभी विषयों की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी और अंतिम दिन केवल एक विषय बचा हुआ था। हर साल की तरह इस साल भी हमारे स्कूल का परीक्षा केन्द्र करीब 40 किलोमीटर दूर था। परीक्षा के अंतिम दिन सुबह पिताजी सारा सामान लेकर गांव की तरफ प्रस्थान कर चुके थे और हम स्कूल की तरफ। एक बजे परीक्षा समाप्त हुई और अंतिम बार स्कूल के साथियों से मुलाकात करते करते और बातें करते करते कब दो घंटे बीत गए पता नहीं चला।

Thursday, November 28, 2019

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)

मैं मगध हूँ...! (Main Magadh Hoon...!)



मैं मगध हूँ..!
मैं मगध हूँ... एक सभ्यता हूँ... एक संस्कृति हूँ...

गंगा के विस्तृत जलोड़ और कछार की मेरी यह भूमि समृद्ध रही है अपने मतवाले गजों और घनघोर साल के जंगलों से...! शिलागृहों और गर्तवासी आदिमानवों की शिकार-क्रीड़ांगन रही यह भूमि, संस्कृति सूर्य के चमकने पर जन से जनपद, जनपद से महाजनपद, महाजनपद से राज्य और राज्य से अखिल जम्बूद्वीप का केंद्र और निर्माणकर्ता रही है और इसने ही प्रथम साम्राज्य बने उस आर्यावर्त को भी बनाया।

Wednesday, November 27, 2019

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)

घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने (Amazing dreams of Travelling)




दद्दा चंद्रेश कुमार (Chandresh Kumar) जी आपने मुझे सिक्किम का सपना दिखाकर यूं ही पागल बना दिया। और तब से हमें घुमक्कड़ी के अजब-गजब सपने आने लगे हैं। उन सपनों में से एक सपना यह भी है। एक दिन सुबह सुबह हम आॅफिस के लिए निकले और डीटीसी की प्रशीतक यंत्र वाली लाल बस पर बैठते ही हमने एक हसीन सपना देखा। हमने देखा कि मेरा मन कहीं घूमने का हो रहा है और हम बहुत जल्द कहीं घूमने निकल जाएं। बहुत दिमाग लगाने के बाद हमने रेल का टिकट कटाया और और हवाई अड्डे पहुंचकर बोर्डिंग पास लेकर ट्रैक्टर में सवार होकर बालू की लहरों पर अपने साइकिल के पतवार को चलाते हुए समुद्री रास्ते पर आगे बढ़ने लगे तभी ऐसा लगा कि जैसे हमारे बाइक का पहिया पंक्चर हो गया और एक परचून की दुकान पर जाकर एलपीजी डलवाया और पहुंच गए गुजरात की बर्फीली वादियों में और वहां से देखा तो महाराष्ट्र के एक कोने में बैठा चौखम्भा मुस्कुराता हुआ नजर आने लगा। हम उसे गले लगाने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो देखा कि एवरेस्ट रास्ते में बैठा मेरा इंतजार कर रहा है फिर हम उससे कुछ बातें करने के बाद चल पड़े केरल की तरफ और वहां देखा कि कंचनजंघा चोटी पर बादलों ने बसेरा बसा लिया है और वहां मेरा मन वहां नहीं लगा तो हम वहीं से सीधा अपनी बैलगाड़ी के काॅकपिट में गए और बैलगाड़ी को पहाड़ी रास्ते के ढलान पर लुढ़काते हुए सीधा दिल्ली पहुंच गए।

Tuesday, November 26, 2019

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)

राम झूला (ऋषिकेश) को रोमांच (Thrill of Ram Jhula)




सफर के रोमांच का मजा लेना चाहते हैं तो रात के सन्नाटे में तेज हवा के झोंकों के बीच बिल्कुल अकेले ऋषिकेश में रामझूला अवश्य पार करें और उस पल के अद्भुत रोमांच को महसूस करें। ऋषिकेश स्थित राम झूला और लक्ष्मण झूला का आज तक हमने केवल नाम ही सुना था पर कभी देखा नहीं था। पर अचानक हुई यात्रा में हमें इसे देखने का मौका मिल गया। 30 मार्च 2019 रात को तीन बजे ऋषिकेश पहुंचे और पैदल ही चल पड़े राम झूला की तरफ। रात के सन्नाटे को चीरते हम केवल तीन लोग (मैं, पत्नी कंचन और बेटा आदित्या) तीर्थनगरी की सड़कों पर बढ़े जा रहे थे। बस स्टेशन से चन्द्रभागा पुल तक एक भी इंसान दिखाई नहीं दे रहा था, बस एक-दो बसें ही थी जो आ-जा रही थी और हम सब डरे-सहमे ऐसे ही आगे बढ़ते जा रहे थे। कभी कभी एक-दो कुक्कुर महाराज जी भौंकते हुए बगल से गुजर जाते तो कभी खड़े होकर अपने संगीत सुनाकर डराने का असफल प्रयास करते, लेकिन हम तो बस अपने धुन में चले ही जा रहे थे।

Monday, November 25, 2019

बदरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 minutes aur Ganga Snan)

दरीनाथ यात्रा-2 : वो 30 मिनट और गंगा स्नान (Wo 30 Minutes aur Ganga Snan)





बदरीनाथ यात्रा के दूसरे भाग में आइए हम आपको हरिद्वार से आगे के सफर पर ले चलते हैं। आगे चलने से पहले हम आपको थोड़ा बीते हुए लम्हों में एक बार फिर से ले जाना चाहते हैं। अभी तक आपने देखा कि कैसे हम हरिद्वार पहुंचे और कैसे केदारनाथ की बस मिली लेकिन पीछे की सीट मिलने के कारण हमने उस बस को छोड़ दिया और उसके बाद बदरीनाथ जाने वाली बस पर मनपसंद सीट मिलने पर उसी सीट पर अपना कब्जा जमाया और सीट अपने नाम कर लिया। अब सीट तो हमने हथिया लिया था पर अभी भी ये तय नहीं था कि हम बदरीनाथ पहुंचेंगे या फिर रुद्रप्रयाग उतरकर केदारनाथ चले जाएंगे; या चमोली उतरकर रुद्रनाथ चले जाएंगे। खैर वो बातें आगे होगी अभी हम पिछले आलेख में किए गए वादे के अनुसार आपको गंगा स्नान के लिए ले चलते हैं।

Sunday, November 24, 2019

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)

बदरीनाथ यात्रा-1 : दिल्ली से हरिद्वार (Delhi to Haridwar)




एक बहुत ही लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से एक छोटी या बड़ी घुमक्कड़ी का संयोग बन रहा था, जिसमें जाने की तिथि तो हमने तय कर लिया था कि अमुक दिन हमें जाना है लेकिन वापसी की तिथि का कुछ पता नहीं था कि वापसी कब होगी, क्योंकि पहले यही नहीं पता था कि जाना कहां है, किस ओर कदम बढ़ेंगे, कितने दिन लगेंगे, और कौन साथ में चलेंगे या फिर अकेले ही जाना होगा, अगर कुछ तय था तो जाने का दिन और जाने की दिशा। अब जब जाने का दिन और दिशा तय था ही तो हमने सोचा कि क्यों न जाने का एक टिकट करवा लेता हूं और यही सोचकर हमने दिल्ली से हरिद्वार का एक टिकट बुक कर लिया। टिकट बुक करने के बाद कुछ साथियों को पूछा कि इतने तारीख को हम कहीं जाएंगे अगर आपका विचार बनता है तो साथ चलिए, जगह आप जहां कहेंगे हम वहां चले जाएंगे, पर वही ढाक के ढाई पात, ओह साॅरी ढाई नहीं तीन पात वाली बात हुई। कोई भी साथी जाने को तैयार न हुए।

Saturday, November 23, 2019

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)

बदरीनाथ यात्रा-0: बदरीनाथ यात्रा का सारांश (Summary of Badrinath Journey)




बहुत समय बाद एक बार फिर कहीं जाने का सुयोग बन रहा था। इससे पहले भी कई बार कई जगहों पर जाने का प्रयत्न किया पर हर बार असफलता ही हाथ लगी। कभी ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल पाना, कभी कोई अन्य काम, तो कभी कुछ तो कभी कुछ कारण सामने आ जाते और हर बार मन को समझाकर घर पर ही बैठना पड़ता। इस बार जब जाने का कार्यक्रम तय किया तो कुछ पता नहीं था कि कहां जाएंगे; पर ये पता था कि कहीं न कहीं तो जाएंगे ही और इस बार तो ऑफिस की छुट्टियां भी बाधा नहीं बन रही थी। नवरात्रि के त्यौहार के कारण दो छुट्टियां पड़ रही थी और एक रविवार मिलाकर तीन दिन का इंतजाम तो अपने आप हो गया था और एक दिन आगे और एक-दो दिन बाद की छुट्टी लेने पर कोई दिक्कत नहीं होने वाली थी तो बना लिया कहीं जाने का प्लान।