बदरीनाथ (Badrinath)
बदरीनाथ के बारे में
बदरीनाथ भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक स्थान है जो हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है। यह उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यहाँ बद्रीरीनाथ मन्दिर है जो हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध धामों में से एक है। बदरीनाथ जाने के लिए तीन ओर से रास्ता है रानीखेत से, कोटद्वार होकर पौड़ी (गढ़वाल) से ओर हरिद्वार होकर देवप्रयाग से। ये तीनों रास्ते रूद्वप्रयाग में मिल जाते है। रूद्रप्रयाग में मन्दाकिनी और अलकनन्दा का संगम है। जहां दो नदियां मिलती है, उस जगह को प्रयाग कहते है। बदरी-केदार की राह में कई प्रयाग आते है। रूद्रप्रयाग से जो लोग केदारनाथ जाना चाहतें है, वे उधर चले जाते है। भारत के प्रसिद्ध चार धामों में द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर व बदरीनाथ आते है. इन चार धामों का वर्णन वेदों व पुराणौं तक में मिलता है. चार धामों के दर्शन का सौभाग्य पूर्व जन्म पुन्यों से ही प्राप्त होता है. इन्हीं चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है. बद्रीनाथ धाम ऎसा धार्मिक स्थल है, जहां नर और नारायण दोनों मिलते है. धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इसे विशालपुरी भी कहा जाता है. और बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है. बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है. यह माना जाता है, कि महर्षि वेदव्याज जी ने यहीं पर महाभारत और श्रीमदभागवत महान ग्रन्थों की रचना हुई है. यहां भगवान श्री कृ्ष्ण को केशव के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस स्थान पर क्योकि देव ऋषि नारद ने भी तपस्या की थी. देव ऋषि नारद के द्वारा तपस्या करने के कारण यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. यहां आकर तपस्या करने वालों में उद्वव भी शामिल है. इन सभी की मूर्तियां यहां मंदिर में रखी गई है. मंदिर के निकट ही अन्य अनेक धार्मिक स्थल है. जिसमें नारद कुण्ड, पंचशिला, वसुधारा, ब्रह्माकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति,शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम.
बदरीनाथ भारत के उत्तरी भाग में स्थित एक स्थान है जो हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ है। यह उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित एक नगर पंचायत है। यहाँ बद्रीरीनाथ मन्दिर है जो हिन्दुओं के चार प्रसिद्ध धामों में से एक है। बदरीनाथ जाने के लिए तीन ओर से रास्ता है रानीखेत से, कोटद्वार होकर पौड़ी (गढ़वाल) से ओर हरिद्वार होकर देवप्रयाग से। ये तीनों रास्ते रूद्वप्रयाग में मिल जाते है। रूद्रप्रयाग में मन्दाकिनी और अलकनन्दा का संगम है। जहां दो नदियां मिलती है, उस जगह को प्रयाग कहते है। बदरी-केदार की राह में कई प्रयाग आते है। रूद्रप्रयाग से जो लोग केदारनाथ जाना चाहतें है, वे उधर चले जाते है। भारत के प्रसिद्ध चार धामों में द्वारिका, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर व बदरीनाथ आते है. इन चार धामों का वर्णन वेदों व पुराणौं तक में मिलता है. चार धामों के दर्शन का सौभाग्य पूर्व जन्म पुन्यों से ही प्राप्त होता है. इन्हीं चार धामों में से एक प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है. बद्रीनाथ धाम ऎसा धार्मिक स्थल है, जहां नर और नारायण दोनों मिलते है. धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार इसे विशालपुरी भी कहा जाता है. और बद्रीनाथ धाम में श्री विष्णु की पूजा होती है. इसीलिए इसे विष्णुधाम भी कहा जाता है. यह धाम हिमालय के सबसे पुराने तीर्थों में से एक है. मंदिर के मुख्य द्वार को सुन्दर चित्रकारी से सजाया गया है. मुख्य द्वार का नाम सिंहद्वार है. बद्रीनाथ मंदिर में चार भुजाओं वली काली पत्थर की बहुत छोटी मूर्तियां है. यहां भगवान श्री विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान है. बद्रीनाथ धाम से संबन्धित मान्यता के अनुसार इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी. यहीं कारण है, कि इस धाम का माहात्मय सभी प्रमुख शास्त्रों में पाया गया है. इस धाम में स्थापित श्री विष्णु की मूर्ति में मस्तक पर हीरा लगा है. मूर्ति को सोने से जडे मुकुट से सजाया गया है. यहां की मुख्य मूर्ति के पास अन्य अनेक मूर्तियां है. जिनमें नारायण, उद्ववजी, कुबेर व नारदजी कि मूर्ति प्रमुख है. मंदिर के निकट ही एक कुंड है, जिसका जल सदैव गरम रहता है. बद्रीनाथ धाम भगवान श्री विष्णु का धाम है, इसीलिए इसे वैकुण्ठ की तरह माना जाता है. यह माना जाता है, कि महर्षि वेदव्याज जी ने यहीं पर महाभारत और श्रीमदभागवत महान ग्रन्थों की रचना हुई है. यहां भगवान श्री कृ्ष्ण को केशव के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त इस स्थान पर क्योकि देव ऋषि नारद ने भी तपस्या की थी. देव ऋषि नारद के द्वारा तपस्या करने के कारण यह क्षेत्र शारदा क्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है. यहां आकर तपस्या करने वालों में उद्वव भी शामिल है. इन सभी की मूर्तियां यहां मंदिर में रखी गई है. मंदिर के निकट ही अन्य अनेक धार्मिक स्थल है. जिसमें नारद कुण्ड, पंचशिला, वसुधारा, ब्रह्माकपाल, सोमतीर्थ, माता मूर्ति,शेष नेत्र, चरण पादुका, अलकापुरी, पंचतीर्थ व गंगा संगम.
- अलकनंदा के तट पर स्थित गर्म झरना- तप्त कुंड
- धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल
- पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप
- शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड – शेषनेत्र
- चरणपादुका- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं।
- बद्रीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ, जो 'गढ़वाल क्वीन' के नाम से जाना जाता है।
- बद्रीनाथ का नामकरण एक समय यहाँ प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली जंगली बेरी बद्री के नाम पर हुआ।
बदरीनाथ मंदिर |
दर्शनीय स्थल
कैसे पहुंचे
रेल मार्ग
बद्रीनाथ के सबसे समीपस्थ रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहां से मात्र 297 किमी. दूर स्थित है। ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और लखनऊ आदि से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है।
सड़क मार्ग
प्राइवेट टैक्सी और अन्य साधनों को किराए पर लेकर ऋषिकेश से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
छठा दिन
आज हमारी यात्रा का छठा दिन था और अब तक हम लोगों के ऊपर लगातार हो रही यात्रा का असर होने लगा था। और दिनों की तरह आज भी हम लोग रात रहते ही जाग गए। नहा धोकर तैयार हो गए। 4 :30 तक हम लोग निकलने के लिए बिलकुल पूरी तरह तैयार थे। सारा सामान उठाकर पहली मंज़िल से नीचे आये। नीचे आने पर मुझे कोई स्टाफ नहीं दिखाई दिया। बस इतना कि बाथरूम में कोई नहा रहा है। मैं रिसेप्शन पर बैठ गया। करीब 5 मिनट बाद एक आदमी नहा कर निकला तो मैंने उससे कहा कि ये सब सामान रख लीजिये हम लोग अब निकल रहे हैं और अब कल शाम तक आएंगे। उसने कहा कि आप सामान को वहीं रहने दें हम पूजा करने के बाद रख देंगे। उसके बाद हम लोग गेस्ट हाउस से निकल गए। बस स्टॉप पर पहुँच कर खड़े ही हुए थे कि आदमी ने पूछा कि कहाँ जाना है मैंने उसे बताया कि मुझे बदरीनाथ जाना है। उन्होंने मुझे बताया कि यहाँ से बदरीनाथ के लिए कोई गाड़ी नहीं मिलेगी आप कर्णप्रयाग चले जाइए वहाँ से कुछ मिल जाएगा। इतने में एक खाली जीप आ रही जो कर्णप्रयाग की तरफ जा रही थी। उस व्यक्ति ने जीप वाले को बोला कि इन लोगों को कर्णप्रयाग तक छोड़ दो। जीप वाले ने हम लोगों को बैठा लिया। मैंने घडी देखा तो 5 बज गए थे। यहाँ भी वैसे ही सड़क घूम-घुमाव और चढ़ाई और उतराई वाली। एक पल में गाड़ी ऊपर जा रही है तो दूसरे ही पल ढलान पर। ये सड़क अलकनन्दा नदी के किनारे किनारे बद्रीनाथ होते हुए माणा गांव तक जाती है। सड़क के बाएं तरफ अलकनन्दा नदी और दाएं तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ बड़ा ही भयानक लग रहा था। मन में फिर से एक डर। यदि ड्राइवर की आँख एक पल के लिए भी झपके तो पता नहीं क्या हो। ड्राइवर ने हमसे पूछा कि आप बदरीनाथ वाले हैं तो मैंने कहा कि हाँ बदरीनाथ जा रहे हैं। फिर उसने कहा कि जीवन में कभी-कभार यात्रा करनी चाहिए। 20 मिनट में हम कर्णप्रयाग पहुँच चुके थे। कर्णप्रयाग पहुँचने के बाद मुझे जीप वाले ने 100 रूपए लिए। मुझे उसने उतारने के बाद बोला की बद्रीनाथ की गाड़ी यहीं पर मिलेगी। कर्णप्रयाग में अलकनंदा और नंदाकिनी नदी का संगम है। आप मन्दाकिनी मत समझ लीजियेगा। अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम रुद्रप्रयाग में है। यहाँ अलकनंदा और नंदाकिनी संगम है।
जीप से उतरने के बाद हम लोग वही खड़े थी कि कोई बस आएगी। जितने देर हम वहां खड़े थे उतने देर में में बहुत सारे जीप वाले आये। सब कहाँ जाना है तो मैं कहता कि बद्रीनाथ। हर किसी का एक ही जवाब होता कि बदरीनाथ के लिए यहाँ से कोई बस नहीं मिलेगी आपको जीप से पहले चमोली जाना होगा, फिर चमोली से जोशीमठ और उसके बाद जोशीमठ से बदरीनाथ। पर मैं अपनी जिद पर अड़ा था कि बस जाती है क्योकि जिस जीप वाले ने मुझे यहाँ उतारा था उसने ही बताया था कि बदरीनाथ के लिए बस यहीं से मिलेगी। वहां पर खड़े खड़े करीब 30 मिनट हो चुके थे। घड़ी देखा तो 5:50 बज रहे थे। हम परेशान भी हो रहे थे कि समय बीतता जा रहा है और कोई बस नहीं आ रही है। पर उसी समय 21 लोगों का एक ग्रुप वही पर आया। उन लोगों को भी बद्रीनाथ जाना था। इतने लोगों को एक साथ देखकर एक आदमी आया और पूछा कि कहाँ जाना तो मैंने और उस ग्रुप के कुछ लोगों ने कहा कि बदरीनाथ जाना है। उस व्यक्ति ने कहा कि ठीक है आप लोग 5 मिनट इंतज़ार करो मैं बस लेकर आता हूँ। आप लोग यहीं खड़े राहिएगा किसी और गाड़ी में मत बैठ जाइएगा। उसकी ये बात सुनकर कि "ठीक है आप लोग 5 मिनट इंतज़ार करो मैं बस लेकर आता हूँ" मुझे और साथ में कई लोगों को हँसी आ गयी। उसने बोला कि आप लोग हँस क्यों रहे हैं तो मैंने उसे कहा कि आप "5 मिनट इंतज़ार करो मैं बस लेकर आता हूँ" इस बात को ऐसे कह रह हैं कि जैसे आप किसी दुकान से बिस्कुट और नमकीन लाने जा रहे हैं। उसने कहा कि आप लोग ऐसा ही समझो मैं अभी गया और अभी आये।
ठीक 5 -6 मिनट में ही वो एक खाली बस लेकर आ गया और बोला कि ये लीजिये मैं आप लोगों के लिए बिस्कुट और नमकीन मतलब कि बस ले आया, पर चाय नहीं ला पाया। फिर हम लोग बस में बैठ गए। इतने में ही पास चाय की दुकान वाला भी चाय लेकर आ गया। सब लोगो ने चाय पिया, और चाय के पैसे दिए। कुछ देर बाद यानी 6 :30 बजे बस चल पड़ी। पहाडों के बगल से बस सरपट चली जा रही थी। एक तरफ पहाड़ एक तरफ उफनती हुई अलकनन्दा नदी। नज़ारा बहुत ही खूबसूरत था और खूबसूरत के साथ भयानक भी था। रास्ते में बहुत जगह लैंड स्लाइडिंग भी हुआ पड़ा था। कहीं कहीं अलकनन्दा में किसी गाड़ी के अवशेष दिख जाते थे। देखकर यही निष्कर्ष निकल सकते हैं कि एक्सीडेंट होने के बाद नदी से लोगों को जीवित या मृत निकाल लेते है और गाड़ी को नदी में ही छोड़ देते है। और कर भी क्या सकते हैं सड़क से 300 से 400 फ़ीट गहरी घाटी जो है, यहाँ से गाड़ी को निकालना कितना मुश्किल है ये तो वही जानते हैं जो ये काम करते हैं, हम तो बस सोच सकते हैं।
बस अपनी गति से चली जा रही थी। इतने में ही कंडक्टर आया और बोला कि नमकीन और बिस्कुट तो मैंने तो मैंने आपको लाकर दे दिया अब उसी नमकीन और बिस्कुट के 190 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से दे दीजिये। अरे वो बस का किराया इस तरह से मांग रहा था मैंने उसे 500 के 2 नोट दिए और उसने मुझे 50 रुपए वापिस किया। और वो जो 21 लोगो का ग्रुप था उनकी कहानी ही अलग थी। सभी 21 लोगों के पैसे एक आदमी के पास जमा थे और सारे खर्च वो एक आदमी ही करता था और एक कॉपी पर लिखता जाता था।
कुछ देर में नंदप्रयाग, चमोली, पीपलकोटि होते हुए बस जोशीमठ पहुँच गयी। कुछ देर का मतलब यहाँ 3 घंटे से है, बस अब तक लगभग 85 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी थी। बद्रीनाथ यहाँ से 48 किलोमीटर की दूरी पर है । जोशीमठ में बस 10 मिनट रुकी। जोशीमठ में एक सड़क नीचे दिखाई दे रही थी जो करीब एक घाटी की तरह लगभग 500 से 600 मीटर नीचे थी। मैंने कंडक्टर को पूछा कि वो कौन सी सड़क है तो उसने बताया की वही सड़क बद्रीनाथ की है। उसकी ये बातें सुनकर अधिकतर लोगों के रोएं खड़े हो गए। जब बस चलने लगी तो बिलकुल 45 डिग्री के हिसाब से खड़ी सड़क पर बस नीचे जा रही थी। बस के नीचे पहुँचते ही हमने देखा की यहाँ नदी में हर जगह बांध बनाकर थर्मल पावर लगाया हुआ है, जिससे बिजली बनाई जा रही थी। यहाँ से सड़क और ज्यादा खतरनाक थी। जोशीमठ से बद्रीनाथ का पूरा ही रास्ता लैंड स्लाइडिंग एरिया है। हर जगह स्लाइडिंग के निशान दिख रहे थे। जोशीमठ से करीब 30-35 मिनट चलने के बाद विष्णुप्रयाग आया। यहाँ अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम है। उसके कुछ देर बाद गोविंदघाट नामक एक जगह आया। यहाँ से दो रास्ते हो जाते हैं। एक रास्ता बदरीनाथ और दूसरा हेमकुण्ड साहिब चला जाता है। गोविंदघाट से आगे बढ़ने पर बद्रीनाथ की चोटियों पर चमकती हुई बर्फ दिखाए देने लगी। 11 :30 बजे हम बद्रीनाथ पहुँच चुके थे।
बस से उतरने के बाद मैंने एक दुकान वाले से पूछा कि मुझे गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस में जाना है तो उसने कहा कि गढ़वाल मंडल विकास निगम के दो गेस्ट हाउस हैं। एक 500 बेड वाला दूसरा 30 बेड वाला। मैंने कहा कि 500 वाला तो उसने बता दिया कि बस स्टेशन से बाहर निकलने पर 100 मीटर आगे जाकर दाहिने साइड में है। मैं थोड़ा आगे गया तो गेस्ट हाउस का बोर्ड लगा हुआ था। मैं गेस्ट हाउस के अंदर गया। रिसेप्शन पर एक स्टाफ बैठा हुआ था। मैंने उससे कहा कि मेरी बुकिंग है 5 लोगो का। उसने पहले घडी देखा, उस वक़्त 11:45 हुए थे। फिर उसने मुझे बैठने के लिए कहा। बैठने के बाद उसने कहा कि मंदिर 12 बजे बंद हो जाती है दुबारा 3 बजे खुलती है। मैंने उससे कहा कि हम लोग नहाना चाहते हैं। उसने बताया की यहाँ तो पानी इतना ठंडा है कि आप इस पानी से नहा नहीं सकते। यदि हिम्मत करके नहा भी लिए तो आपकी तबियत ख़राब हो जाएगी। आप अपना सामान कमरे में रखकर मंदिर चले जाएँ। वहां नहा लीजियेगा और नहाने के बाद जिस दुकान में प्रसाद लेंगे वो आपका सामान रख लेगा। मैंने उससे कहा कि यदि यहाँ पानी इतना ठंडा है तो मंदिर के पास अलकनंदा का पानी और ज्यादा ठंडा होगा उसमें कैसे कोई नहा सकेगा। उसने कहा कि वहां आपको नदी में नहीं नहाना पड़ेगा। वहां एक कुंड जिसे तप्त कुंड कहते हैं उसका पानी बिलकुल उबलता हुआ होता है आप किसी दुकान वाले से कोई बर्तन माँग कर पानी निकाल कर नहा लीजियेगा। फिर उसने एक दूसरे व्यक्ति को कहा कि इनको रूम डी-7 में पहुँचा दो।
अब मैं आपको बदरीनाथ की एक खासियत बताता हूँ। जैसे ही हम लोग बस उतरे तो एक अलग ही तरह की खूशबू वहां के वातावरण में फैली हुई थी। ऐसी खुशबु मैंने आज तक कहीं भी महसूस नहीं किया। ऐसा लग रहा था जैसे इस खूशबू को कैद कर लें और लेते जाएँ। काश वो खूशबू हर जगह होती....
मैं अब गेस्ट हाउस रूम डी -7 में था। बालकनी का गेट खोला तो जिस तरफ मंदिर है उसी तरफ कमरे का बालकनी था। भले मंदिर दिख नहीं रहा था पर मंदिर के जिस पहाड़ की छोटी के नीचे था वो दिख रहा था। पहाड़ की चोटिया बर्फ से ढंकी थी।
हम लोग कुछ देर आराम करने के बाद कुछ कपड़े, टॉवेल आदि लेकर मंदिर जाने के लिए गेस्ट हाउस से निकले। मेन रोड पर आकर कुछ लोग मंदिर की तरफ से आ रहे थे मैंने उनसे मंदिर का रास्ता पूछा उन्होंने मुझे रास्ता बता दिया। उन्होंने कहा की आगे मोड़ से बाएं साइड में मुड़ना है फिर मार्किट से होकर जाने पर नदी पर करके मंदिर है। ज्यादा दूर नहीं है करीब 15 मिनट लगेंगे। मंदिर के रास्ते में एक माइलस्टोन दिखा जिसपर लिखा था गाजियाबाद 524 किलोमीटर और बदरीनाथ 0 किलोमीटर।
हम लोग उनके बताये अनुसार चलते गए। करीब 100 मीटर चलने पर एक टी-पॉइंट आया। उस टी-पॉइंट से बिना मुड़े जाने पर सड़क माणा गांव चली जाती है और बद्रीनाथ मंदिर जाने के लिए टी-पॉइंट से बाएं मुड़ना पड़ता है।
हम लोग बाएं मुड़े। कुछ दूर के बाद बाजार आरम्भ हो गया। कुछ लोग मंदिर से आ रहे थे और कुछ जा रहे थे। बाजार पार करते ही मंदिर दिखने लगा। मंदिर देखते ही मन में एक उत्साह की लहर दौड़ने लगी। हम लोग नदी पर बने पुल से होकर नदी पर किये। पुल के ऊपर से नदी की धारा बहुत ही सुहानी लग रही थी।
नदी पार करते ही हम मंदिर के सीढियों के पास पहुँच गए। मंदिर से सटे उस इलाके का एकलौता बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया दिखाई दिया। उसमे बहुत भीड़ थी और होगी भी क्यों नहीं एकलौता बैंक जो है। 10 सीढ़ी नीचे तप्त कुंड है। जिसके पानी का तापमान 30 से 40 डिग्री रहता है और और बगल में बह रही अलकनन्दा के पानी का तापमान जून के महीने में भी 2 से 3 डिग्री होता है। हम लोग तप्त कुंड के पास गए और एक टॉवल बिछाकर सारा सामान रखा।
यहाँ महिलाओं के लिए अलग और पुरुषो के लिए अलग अलग कुंड बना है। अलग अलग कुंड तो गौरीकुंड में भी था पर वहाँ 2013 में आयी आपदा ने सब कुछ तबाह कर दिया था। कंचन और माताजी महिलाओं के लिए बने कुंड में नहाने चले गए और पिताजी भी पुरुषों के लिए बने कुंड में नहाने चले गए। मैं और आदित्य सामान के पास ही रहे। जब पिताजी नहाकर कर आये तो मैं आदित्या को लेकर उसे नहाने गया। पर ये किया पानी इतना गरम था कि नहाना तो दूर हाथ डालना भी संभव नहीं हो रहा था। मैंने एक बाल्टी में नदी से ठंडा पानी लाया और उसमे मिलकर आदित्य को नहाया उसके बाद मैं भी नहाया। तब तक कंचन और माताजी भी नहा कर आ चुकी थी। अब हम लोगो ने प्रसाद ख़रीदा और सारे गीले कपडे और जूते चप्पल उसी दुकान में रख दिए। इस वक़्त घडी में 2 बज रहे थे। हम लोग मंदिर के दरवाजे पर कपाट खुलने के इंतज़ार में बैठ गए। वहां पहले से करीब 50 आदमी और बैठे थे। धीरे धीरे भीड़ बढ़ती गयी और 3 बजते बजते भीड़ करीब 1000 लोगो की हो चुकी थी।
ठीक 3 बजे मंदिर के कपाट खोल दिए गए। श्रद्धालु एक एक करके मंदिर में जाने लगे। 10 मिनट में हम भी मंदिर में अंदर दाखिल हो चुके थे। बाहर से मंदिर जितना छोटा लग रहा था अंदर से वो बहुत बड़े एरिया में है। मुख्य दरवाजे से अंदर जाने के बाद बहुत बड़े खाली एरिया के बाद मुख्य मंदिर है। बहुत ही जल्दी हम मुख्य मंदिर में प्रवेश कर चुके थे। भगवान बद्रीनारायण के दर्शन हुए। कुछ लोग दर्शन करके तुरंत ही निकल बाहर निकल रहे थे। पर हम लोग कुछ देर के लिए रुक गए। भगवन बदरीनाथ की प्रतिमा के पास ही एक लौ (दीपक) जल रही थी। उसके बारे में कहा जाता है ये दीपक पुरे साल भर जलती रहती है। 6 महीने मंदिर खुलता है और 6 महीने मंदिर बंद रहता है। 6 माह बाद जब मंदिर खोला जाता है तो दीपक की लौ वैसे ही जलती रहती है। करीब 30 मिनट मंदिर प्रांगण में बिताने के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आये। जब मैं कपाट खुलने का इंतज़ार कर रहा था तो कुछ सिक्ख (सरदार लोग) भी लाइन में लगे थे। मैंने उनसे पूछा कि आप लोग तो हेमकुंड साहिब गए होंगे तो इधर भी आ गए। तो उन्होंने कहा कि जब पंजाब से इतनी दूर आ गए तो यहाँ भी दर्शन कर लिए।
मंदिर से मंदिर से निकलने के बाद हम सब थोड़ी देर तक वहीं मंदिर के बाहर कुछ फोटो लिए और कुछ विडियो बनाया। उसके बाद हम वापस प्रसाद की दुकान में गए और उनको पैसे दिए और अपना सामान लिया वापस लौटने से पहले मैंने के बोतल में अलकनंदा नदी का जल भर कर ले जाने का सोचा। मैंने एक बोतल लिया और कुछ दूर आगे बने घाट पर पानी भरने गया। उधर देखा की एक ब्रह्मकपाल नाम का एक स्थान वहां पर कुछ लोग अपने पितरों को पिंडदान कर रहे थे। मैंने पानी भरने लगा। जितने देर में बोतल में पानी भरा देखा की अलकनंदा की धारा एक पल में 2-3 फ़ीट नीचे चली जाती और अगले ही पल उतना ही ऊपर आ जाती। कभी तो ये ज्वार भाटा 4 से 5 फ़ीट भी हो रही थी। मैंने जल भरा। पानी भरते टाइम मेरा हाथ अलकनन्दा के ठन्डे जल के अंदर था और इतने देर में मुझे ऐसा लग रहा था कि हाथ में जान नहीं बची है।
जल भरकर आने के बाद देखा तो घडी में 4 बज चुके थे। अब हम वापस गेस्ट हाउस जाने के लिए अपना सामान उठाकर चल दिए। कंचन और मम्मी ने कुछ सामान ख़रीदा। उसके बाद हम गेस्ट हाउस आ गए। गेस्ट हाउस में आते ही हम लोग थोड़ा देर आराम करने की सोचे। इतने में ही एक स्टाफ आया और खाने के बारे में पूछा। मैंने सवाल किया कि कितने बजे तक कहना मिल जायेगा। उसने बताया की 8 बजे तक।
खाने का आर्डर लेकर वो व्यक्ति चल गया। मंदिर से लौटते समय एक मिठाई की दुकान से कुछ जलेबी, समोसे और ब्रेड पकोड़े ले लिए थे। हम सब ने नाश्ता किया। उसके बाद हम लोग ने प्लान किया कि एक बार फिर से बाजार चलते हैं पता नहीं फिर कभी आएं या न आये और अगर आ भी गए तो पुरे परिवार के साथ तो होंगे नहीं। पिताजी ने कहा कि मैं थका हुआ हूँ इसलिए मैं नहीं जाऊंगा। अब क्या बताएं थके हुए तो हम सब लोग थे। पिताजी सो गए। इस वक़्त शाम के 6 बजने वाले थे। मैं, कंचन, मम्मी और आदित्या निकल गए बाजार के लिए। बदरीनाथ का पूरा बाजार हम लोगों ने घुमा। मम्मी और कंचन ने कुछ खरीदारी की।
घड़ी में इस समय 7:40 बज चुके थे। अब हम लोग वापस गेस्ट हाउस की ओर चल पड़े। 8 बजे हम लोग गेस्ट हाउस आ गए और सीधा डाइनिंग हॉल की तरफ गए। वहां पहले से कुछ लोग खाना खा रहे थे। हम लोग भी बैठ गए। मम्मी और कंचन रूम में सामान रखने चली गयी और पापा को भी खाने के लिए बुलाना था। 5 मिनट में कंचन, मम्मी और पिताजी डाइनिंग हॉल में आ गए। हम लोगों ने खाना खाया। एक बोतल गरम पानी लिया और अपने कमरे की तरफ चल दिए। कमरे में आकर हम लोग कल की योजना बनाने लगे कि कल माणा गांव जाना है उसके बाद वापस। माणा गांव बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर है। उसके बाद हम लोग सोने की तैयारी करने लगे और सो गए।
आज के लिए बस इतना ही, इससे आगे का विवरण आगे भाग में तब तक हम चलते है सोने, क्योकि सुबह माणा गांव जाना है। आप लोग भी सो जाइये। बस जल्दी ही मिलते हैं अगले पोस्ट के साथ।
- बदरीनाथ में तथा इसके समीप कई दर्शनीय स्थल हैं, जिनमे प्रमुख है-
- अलकनंदा के तट पर स्थित तप्त-कुंड
- धार्मिक अनुष्टानों के लिए इस्तेमाल होने वाला एक समतल चबूतरा- ब्रह्म कपाल
- पौराणिक कथाओं में उल्लिखित सांप (साँपों का जोड़ा)
- शेषनाग की कथित छाप वाला एक शिलाखंड–शेषनेत्र
- चरणपादुका :- जिसके बारे में कहा जाता है कि यह भगवान विष्णु के पैरों के निशान हैं; (यहीं भगवान विष्णु ने बालरूप में अवतरण किया था।)
- बदरीनाथ से नज़र आने वाला बर्फ़ से ढंका ऊँचा शिखर नीलकंठ।
- माता मूर्ति मंदिर :- जिन्हें बदरीनाथ भगवान जी की माता के रूप में पूजा जाता है।
- माणा गाँव- इसे भारत का अंतिम गाँव भी कहा जाता है।
- वेद व्यास गुफा, गणेश गुफा: यहीं वेदों और उपनिषदों का लेखन कार्य हुआ था।
- भीम पुल :- भीम ने सरस्वती नदी को पार करने हेतु एक भारी चट्टान को नदी के ऊपर रखा था जिसे भीम पुल के नाम से जाना जाता है।
- वसु धारा :- यहाँ अष्ट-वसुओं ने तपस्या की थी। ये जगह माणा से ८ किलोमीटर दूर है। कहते हैं की जिसके ऊपर इसकी बूंदे पड़ जाती हैं उसके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और वो पापी नहीं होता है।
- लक्ष्मी वन :- यह वन लक्ष्मी माता के वन के नाम से प्रसिद्ध है।
- सतोपंथ (स्वर्गारोहिणी) :- कहा जाता है कि इसी स्थान से राजा युधिष्ठिर ने सदेह स्वर्ग को प्रस्थान किया था।
- अलकापुरी :- अलकनंदा नदी का उद्गम स्थान। इसे धन के देवता कुबेर का भी निवास स्थान माना जाता है।
- सरस्वती नदी :- पूरे भारत में केवल माणा गाँव में ही यह नदी प्रकट रूप में है।
- भगवान विष्णु के तप से उनकी जंघा से एक अप्सरा उत्पन्न हुई जो उर्वशी नाम से विख्यात हुई। बदरीनाथ कस्बे के समीप ही बामणी गाँव में उनका मंदिर है।
कैसे पहुंचे
रेल मार्ग
बद्रीनाथ के सबसे समीपस्थ रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो यहां से मात्र 297 किमी. दूर स्थित है। ऋषिकेश भारत के प्रमुख शहरों जैसे मुंबई, दिल्ली और लखनऊ आदि से सीधे तौर पर रेलवे से जुड़ा है।
सड़क मार्ग
प्राइवेट टैक्सी और अन्य साधनों को किराए पर लेकर ऋषिकेश से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
बदरीनाथ मंदिर |
छठा दिन
आज हमारी यात्रा का छठा दिन था और अब तक हम लोगों के ऊपर लगातार हो रही यात्रा का असर होने लगा था। और दिनों की तरह आज भी हम लोग रात रहते ही जाग गए। नहा धोकर तैयार हो गए। 4 :30 तक हम लोग निकलने के लिए बिलकुल पूरी तरह तैयार थे। सारा सामान उठाकर पहली मंज़िल से नीचे आये। नीचे आने पर मुझे कोई स्टाफ नहीं दिखाई दिया। बस इतना कि बाथरूम में कोई नहा रहा है। मैं रिसेप्शन पर बैठ गया। करीब 5 मिनट बाद एक आदमी नहा कर निकला तो मैंने उससे कहा कि ये सब सामान रख लीजिये हम लोग अब निकल रहे हैं और अब कल शाम तक आएंगे। उसने कहा कि आप सामान को वहीं रहने दें हम पूजा करने के बाद रख देंगे। उसके बाद हम लोग गेस्ट हाउस से निकल गए। बस स्टॉप पर पहुँच कर खड़े ही हुए थे कि आदमी ने पूछा कि कहाँ जाना है मैंने उसे बताया कि मुझे बदरीनाथ जाना है। उन्होंने मुझे बताया कि यहाँ से बदरीनाथ के लिए कोई गाड़ी नहीं मिलेगी आप कर्णप्रयाग चले जाइए वहाँ से कुछ मिल जाएगा। इतने में एक खाली जीप आ रही जो कर्णप्रयाग की तरफ जा रही थी। उस व्यक्ति ने जीप वाले को बोला कि इन लोगों को कर्णप्रयाग तक छोड़ दो। जीप वाले ने हम लोगों को बैठा लिया। मैंने घडी देखा तो 5 बज गए थे। यहाँ भी वैसे ही सड़क घूम-घुमाव और चढ़ाई और उतराई वाली। एक पल में गाड़ी ऊपर जा रही है तो दूसरे ही पल ढलान पर। ये सड़क अलकनन्दा नदी के किनारे किनारे बद्रीनाथ होते हुए माणा गांव तक जाती है। सड़क के बाएं तरफ अलकनन्दा नदी और दाएं तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़ बड़ा ही भयानक लग रहा था। मन में फिर से एक डर। यदि ड्राइवर की आँख एक पल के लिए भी झपके तो पता नहीं क्या हो। ड्राइवर ने हमसे पूछा कि आप बदरीनाथ वाले हैं तो मैंने कहा कि हाँ बदरीनाथ जा रहे हैं। फिर उसने कहा कि जीवन में कभी-कभार यात्रा करनी चाहिए। 20 मिनट में हम कर्णप्रयाग पहुँच चुके थे। कर्णप्रयाग पहुँचने के बाद मुझे जीप वाले ने 100 रूपए लिए। मुझे उसने उतारने के बाद बोला की बद्रीनाथ की गाड़ी यहीं पर मिलेगी। कर्णप्रयाग में अलकनंदा और नंदाकिनी नदी का संगम है। आप मन्दाकिनी मत समझ लीजियेगा। अलकनंदा और मन्दाकिनी का संगम रुद्रप्रयाग में है। यहाँ अलकनंदा और नंदाकिनी संगम है।
बदरीनाथ मंदिर के पास स्थित तप्त कुण्ड के पास आदित्या |
जीप से उतरने के बाद हम लोग वही खड़े थी कि कोई बस आएगी। जितने देर हम वहां खड़े थे उतने देर में में बहुत सारे जीप वाले आये। सब कहाँ जाना है तो मैं कहता कि बद्रीनाथ। हर किसी का एक ही जवाब होता कि बदरीनाथ के लिए यहाँ से कोई बस नहीं मिलेगी आपको जीप से पहले चमोली जाना होगा, फिर चमोली से जोशीमठ और उसके बाद जोशीमठ से बदरीनाथ। पर मैं अपनी जिद पर अड़ा था कि बस जाती है क्योकि जिस जीप वाले ने मुझे यहाँ उतारा था उसने ही बताया था कि बदरीनाथ के लिए बस यहीं से मिलेगी। वहां पर खड़े खड़े करीब 30 मिनट हो चुके थे। घड़ी देखा तो 5:50 बज रहे थे। हम परेशान भी हो रहे थे कि समय बीतता जा रहा है और कोई बस नहीं आ रही है। पर उसी समय 21 लोगों का एक ग्रुप वही पर आया। उन लोगों को भी बद्रीनाथ जाना था। इतने लोगों को एक साथ देखकर एक आदमी आया और पूछा कि कहाँ जाना तो मैंने और उस ग्रुप के कुछ लोगों ने कहा कि बदरीनाथ जाना है। उस व्यक्ति ने कहा कि ठीक है आप लोग 5 मिनट इंतज़ार करो मैं बस लेकर आता हूँ। आप लोग यहीं खड़े राहिएगा किसी और गाड़ी में मत बैठ जाइएगा। उसकी ये बात सुनकर कि "ठीक है आप लोग 5 मिनट इंतज़ार करो मैं बस लेकर आता हूँ" मुझे और साथ में कई लोगों को हँसी आ गयी। उसने बोला कि आप लोग हँस क्यों रहे हैं तो मैंने उसे कहा कि आप "5 मिनट इंतज़ार करो मैं बस लेकर आता हूँ" इस बात को ऐसे कह रह हैं कि जैसे आप किसी दुकान से बिस्कुट और नमकीन लाने जा रहे हैं। उसने कहा कि आप लोग ऐसा ही समझो मैं अभी गया और अभी आये।
बदरीनाथ मंदिर के पास अलकनन्दा नदी पर पुल ऊपर से अलकनन्दा नदी का दृश्य |
ठीक 5 -6 मिनट में ही वो एक खाली बस लेकर आ गया और बोला कि ये लीजिये मैं आप लोगों के लिए बिस्कुट और नमकीन मतलब कि बस ले आया, पर चाय नहीं ला पाया। फिर हम लोग बस में बैठ गए। इतने में ही पास चाय की दुकान वाला भी चाय लेकर आ गया। सब लोगो ने चाय पिया, और चाय के पैसे दिए। कुछ देर बाद यानी 6 :30 बजे बस चल पड़ी। पहाडों के बगल से बस सरपट चली जा रही थी। एक तरफ पहाड़ एक तरफ उफनती हुई अलकनन्दा नदी। नज़ारा बहुत ही खूबसूरत था और खूबसूरत के साथ भयानक भी था। रास्ते में बहुत जगह लैंड स्लाइडिंग भी हुआ पड़ा था। कहीं कहीं अलकनन्दा में किसी गाड़ी के अवशेष दिख जाते थे। देखकर यही निष्कर्ष निकल सकते हैं कि एक्सीडेंट होने के बाद नदी से लोगों को जीवित या मृत निकाल लेते है और गाड़ी को नदी में ही छोड़ देते है। और कर भी क्या सकते हैं सड़क से 300 से 400 फ़ीट गहरी घाटी जो है, यहाँ से गाड़ी को निकालना कितना मुश्किल है ये तो वही जानते हैं जो ये काम करते हैं, हम तो बस सोच सकते हैं।
बस अपनी गति से चली जा रही थी। इतने में ही कंडक्टर आया और बोला कि नमकीन और बिस्कुट तो मैंने तो मैंने आपको लाकर दे दिया अब उसी नमकीन और बिस्कुट के 190 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से दे दीजिये। अरे वो बस का किराया इस तरह से मांग रहा था मैंने उसे 500 के 2 नोट दिए और उसने मुझे 50 रुपए वापिस किया। और वो जो 21 लोगो का ग्रुप था उनकी कहानी ही अलग थी। सभी 21 लोगों के पैसे एक आदमी के पास जमा थे और सारे खर्च वो एक आदमी ही करता था और एक कॉपी पर लिखता जाता था।
बदरीनाथ माइलस्टोन के पास मैं |
कुछ देर में नंदप्रयाग, चमोली, पीपलकोटि होते हुए बस जोशीमठ पहुँच गयी। कुछ देर का मतलब यहाँ 3 घंटे से है, बस अब तक लगभग 85 किलोमीटर की दूरी तय कर चुकी थी। बद्रीनाथ यहाँ से 48 किलोमीटर की दूरी पर है । जोशीमठ में बस 10 मिनट रुकी। जोशीमठ में एक सड़क नीचे दिखाई दे रही थी जो करीब एक घाटी की तरह लगभग 500 से 600 मीटर नीचे थी। मैंने कंडक्टर को पूछा कि वो कौन सी सड़क है तो उसने बताया की वही सड़क बद्रीनाथ की है। उसकी ये बातें सुनकर अधिकतर लोगों के रोएं खड़े हो गए। जब बस चलने लगी तो बिलकुल 45 डिग्री के हिसाब से खड़ी सड़क पर बस नीचे जा रही थी। बस के नीचे पहुँचते ही हमने देखा की यहाँ नदी में हर जगह बांध बनाकर थर्मल पावर लगाया हुआ है, जिससे बिजली बनाई जा रही थी। यहाँ से सड़क और ज्यादा खतरनाक थी। जोशीमठ से बद्रीनाथ का पूरा ही रास्ता लैंड स्लाइडिंग एरिया है। हर जगह स्लाइडिंग के निशान दिख रहे थे। जोशीमठ से करीब 30-35 मिनट चलने के बाद विष्णुप्रयाग आया। यहाँ अलकनंदा और धौलीगंगा का संगम है। उसके कुछ देर बाद गोविंदघाट नामक एक जगह आया। यहाँ से दो रास्ते हो जाते हैं। एक रास्ता बदरीनाथ और दूसरा हेमकुण्ड साहिब चला जाता है। गोविंदघाट से आगे बढ़ने पर बद्रीनाथ की चोटियों पर चमकती हुई बर्फ दिखाए देने लगी। 11 :30 बजे हम बद्रीनाथ पहुँच चुके थे।
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बस से उतरने के बाद मैंने एक दुकान वाले से पूछा कि मुझे गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस में जाना है तो उसने कहा कि गढ़वाल मंडल विकास निगम के दो गेस्ट हाउस हैं। एक 500 बेड वाला दूसरा 30 बेड वाला। मैंने कहा कि 500 वाला तो उसने बता दिया कि बस स्टेशन से बाहर निकलने पर 100 मीटर आगे जाकर दाहिने साइड में है। मैं थोड़ा आगे गया तो गेस्ट हाउस का बोर्ड लगा हुआ था। मैं गेस्ट हाउस के अंदर गया। रिसेप्शन पर एक स्टाफ बैठा हुआ था। मैंने उससे कहा कि मेरी बुकिंग है 5 लोगो का। उसने पहले घडी देखा, उस वक़्त 11:45 हुए थे। फिर उसने मुझे बैठने के लिए कहा। बैठने के बाद उसने कहा कि मंदिर 12 बजे बंद हो जाती है दुबारा 3 बजे खुलती है। मैंने उससे कहा कि हम लोग नहाना चाहते हैं। उसने बताया की यहाँ तो पानी इतना ठंडा है कि आप इस पानी से नहा नहीं सकते। यदि हिम्मत करके नहा भी लिए तो आपकी तबियत ख़राब हो जाएगी। आप अपना सामान कमरे में रखकर मंदिर चले जाएँ। वहां नहा लीजियेगा और नहाने के बाद जिस दुकान में प्रसाद लेंगे वो आपका सामान रख लेगा। मैंने उससे कहा कि यदि यहाँ पानी इतना ठंडा है तो मंदिर के पास अलकनंदा का पानी और ज्यादा ठंडा होगा उसमें कैसे कोई नहा सकेगा। उसने कहा कि वहां आपको नदी में नहीं नहाना पड़ेगा। वहां एक कुंड जिसे तप्त कुंड कहते हैं उसका पानी बिलकुल उबलता हुआ होता है आप किसी दुकान वाले से कोई बर्तन माँग कर पानी निकाल कर नहा लीजियेगा। फिर उसने एक दूसरे व्यक्ति को कहा कि इनको रूम डी-7 में पहुँचा दो।
अब मैं आपको बदरीनाथ की एक खासियत बताता हूँ। जैसे ही हम लोग बस उतरे तो एक अलग ही तरह की खूशबू वहां के वातावरण में फैली हुई थी। ऐसी खुशबु मैंने आज तक कहीं भी महसूस नहीं किया। ऐसा लग रहा था जैसे इस खूशबू को कैद कर लें और लेते जाएँ। काश वो खूशबू हर जगह होती....
मंदिर के बालकनी से लिया गया आदित्या की फोटो |
मैं अब गेस्ट हाउस रूम डी -7 में था। बालकनी का गेट खोला तो जिस तरफ मंदिर है उसी तरफ कमरे का बालकनी था। भले मंदिर दिख नहीं रहा था पर मंदिर के जिस पहाड़ की छोटी के नीचे था वो दिख रहा था। पहाड़ की चोटिया बर्फ से ढंकी थी।
हम लोग कुछ देर आराम करने के बाद कुछ कपड़े, टॉवेल आदि लेकर मंदिर जाने के लिए गेस्ट हाउस से निकले। मेन रोड पर आकर कुछ लोग मंदिर की तरफ से आ रहे थे मैंने उनसे मंदिर का रास्ता पूछा उन्होंने मुझे रास्ता बता दिया। उन्होंने कहा की आगे मोड़ से बाएं साइड में मुड़ना है फिर मार्किट से होकर जाने पर नदी पर करके मंदिर है। ज्यादा दूर नहीं है करीब 15 मिनट लगेंगे। मंदिर के रास्ते में एक माइलस्टोन दिखा जिसपर लिखा था गाजियाबाद 524 किलोमीटर और बदरीनाथ 0 किलोमीटर।
माइलस्टोन के पास आदित्या |
हम लोग उनके बताये अनुसार चलते गए। करीब 100 मीटर चलने पर एक टी-पॉइंट आया। उस टी-पॉइंट से बिना मुड़े जाने पर सड़क माणा गांव चली जाती है और बद्रीनाथ मंदिर जाने के लिए टी-पॉइंट से बाएं मुड़ना पड़ता है।
जिधर आदित्य का मुँह है उधर स्टेशन की तरफ सड़क जाती है और आदित्या के पीछे जो सड़क जा रही है सीधे जाने पर माणा गांव और बाएँ तरफ मुड़ने पर मंदिर की तरफ चली जाती है। |
बदरीनाथ मंदिर के पास अलकनन्दा नदी पर पुल ऊपर से अलकनन्दा नदी का दृश्य |
नदी पार करते ही हम मंदिर के सीढियों के पास पहुँच गए। मंदिर से सटे उस इलाके का एकलौता बैंक स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया दिखाई दिया। उसमे बहुत भीड़ थी और होगी भी क्यों नहीं एकलौता बैंक जो है। 10 सीढ़ी नीचे तप्त कुंड है। जिसके पानी का तापमान 30 से 40 डिग्री रहता है और और बगल में बह रही अलकनन्दा के पानी का तापमान जून के महीने में भी 2 से 3 डिग्री होता है। हम लोग तप्त कुंड के पास गए और एक टॉवल बिछाकर सारा सामान रखा।
तप्त कुण्ड |
नहाने की तैयारी में कुछ लोग |
यहाँ महिलाओं के लिए अलग और पुरुषो के लिए अलग अलग कुंड बना है। अलग अलग कुंड तो गौरीकुंड में भी था पर वहाँ 2013 में आयी आपदा ने सब कुछ तबाह कर दिया था। कंचन और माताजी महिलाओं के लिए बने कुंड में नहाने चले गए और पिताजी भी पुरुषों के लिए बने कुंड में नहाने चले गए। मैं और आदित्य सामान के पास ही रहे। जब पिताजी नहाकर कर आये तो मैं आदित्या को लेकर उसे नहाने गया। पर ये किया पानी इतना गरम था कि नहाना तो दूर हाथ डालना भी संभव नहीं हो रहा था। मैंने एक बाल्टी में नदी से ठंडा पानी लाया और उसमे मिलकर आदित्य को नहाया उसके बाद मैं भी नहाया। तब तक कंचन और माताजी भी नहा कर आ चुकी थी। अब हम लोगो ने प्रसाद ख़रीदा और सारे गीले कपडे और जूते चप्पल उसी दुकान में रख दिए। इस वक़्त घडी में 2 बज रहे थे। हम लोग मंदिर के दरवाजे पर कपाट खुलने के इंतज़ार में बैठ गए। वहां पहले से करीब 50 आदमी और बैठे थे। धीरे धीरे भीड़ बढ़ती गयी और 3 बजते बजते भीड़ करीब 1000 लोगो की हो चुकी थी।
कंचन , आदित्या , मम्मी-पापा |
कंचन , आदित्या |
ठीक 3 बजे मंदिर के कपाट खोल दिए गए। श्रद्धालु एक एक करके मंदिर में जाने लगे। 10 मिनट में हम भी मंदिर में अंदर दाखिल हो चुके थे। बाहर से मंदिर जितना छोटा लग रहा था अंदर से वो बहुत बड़े एरिया में है। मुख्य दरवाजे से अंदर जाने के बाद बहुत बड़े खाली एरिया के बाद मुख्य मंदिर है। बहुत ही जल्दी हम मुख्य मंदिर में प्रवेश कर चुके थे। भगवान बद्रीनारायण के दर्शन हुए। कुछ लोग दर्शन करके तुरंत ही निकल बाहर निकल रहे थे। पर हम लोग कुछ देर के लिए रुक गए। भगवन बदरीनाथ की प्रतिमा के पास ही एक लौ (दीपक) जल रही थी। उसके बारे में कहा जाता है ये दीपक पुरे साल भर जलती रहती है। 6 महीने मंदिर खुलता है और 6 महीने मंदिर बंद रहता है। 6 माह बाद जब मंदिर खोला जाता है तो दीपक की लौ वैसे ही जलती रहती है। करीब 30 मिनट मंदिर प्रांगण में बिताने के बाद हम लोग मंदिर से बाहर आये। जब मैं कपाट खुलने का इंतज़ार कर रहा था तो कुछ सिक्ख (सरदार लोग) भी लाइन में लगे थे। मैंने उनसे पूछा कि आप लोग तो हेमकुंड साहिब गए होंगे तो इधर भी आ गए। तो उन्होंने कहा कि जब पंजाब से इतनी दूर आ गए तो यहाँ भी दर्शन कर लिए।
मंदिर से लौटते हुए अलकनन्दा नदी के पल पर खड़ा आदित्या |
मंदिर से मंदिर से निकलने के बाद हम सब थोड़ी देर तक वहीं मंदिर के बाहर कुछ फोटो लिए और कुछ विडियो बनाया। उसके बाद हम वापस प्रसाद की दुकान में गए और उनको पैसे दिए और अपना सामान लिया वापस लौटने से पहले मैंने के बोतल में अलकनंदा नदी का जल भर कर ले जाने का सोचा। मैंने एक बोतल लिया और कुछ दूर आगे बने घाट पर पानी भरने गया। उधर देखा की एक ब्रह्मकपाल नाम का एक स्थान वहां पर कुछ लोग अपने पितरों को पिंडदान कर रहे थे। मैंने पानी भरने लगा। जितने देर में बोतल में पानी भरा देखा की अलकनंदा की धारा एक पल में 2-3 फ़ीट नीचे चली जाती और अगले ही पल उतना ही ऊपर आ जाती। कभी तो ये ज्वार भाटा 4 से 5 फ़ीट भी हो रही थी। मैंने जल भरा। पानी भरते टाइम मेरा हाथ अलकनन्दा के ठन्डे जल के अंदर था और इतने देर में मुझे ऐसा लग रहा था कि हाथ में जान नहीं बची है।
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यहाँ से एक रास्ता माणा जाती है, एक मंदिर की तरफ और एक रास्ता स्टेशन |
खाने का आर्डर लेकर वो व्यक्ति चल गया। मंदिर से लौटते समय एक मिठाई की दुकान से कुछ जलेबी, समोसे और ब्रेड पकोड़े ले लिए थे। हम सब ने नाश्ता किया। उसके बाद हम लोग ने प्लान किया कि एक बार फिर से बाजार चलते हैं पता नहीं फिर कभी आएं या न आये और अगर आ भी गए तो पुरे परिवार के साथ तो होंगे नहीं। पिताजी ने कहा कि मैं थका हुआ हूँ इसलिए मैं नहीं जाऊंगा। अब क्या बताएं थके हुए तो हम सब लोग थे। पिताजी सो गए। इस वक़्त शाम के 6 बजने वाले थे। मैं, कंचन, मम्मी और आदित्या निकल गए बाजार के लिए। बदरीनाथ का पूरा बाजार हम लोगों ने घुमा। मम्मी और कंचन ने कुछ खरीदारी की।
बदरीनाथ मंदिर के पीछे हिमालय की चोटियां |
घड़ी में इस समय 7:40 बज चुके थे। अब हम लोग वापस गेस्ट हाउस की ओर चल पड़े। 8 बजे हम लोग गेस्ट हाउस आ गए और सीधा डाइनिंग हॉल की तरफ गए। वहां पहले से कुछ लोग खाना खा रहे थे। हम लोग भी बैठ गए। मम्मी और कंचन रूम में सामान रखने चली गयी और पापा को भी खाने के लिए बुलाना था। 5 मिनट में कंचन, मम्मी और पिताजी डाइनिंग हॉल में आ गए। हम लोगों ने खाना खाया। एक बोतल गरम पानी लिया और अपने कमरे की तरफ चल दिए। कमरे में आकर हम लोग कल की योजना बनाने लगे कि कल माणा गांव जाना है उसके बाद वापस। माणा गांव बद्रीनाथ से 3 किलोमीटर है। उसके बाद हम लोग सोने की तैयारी करने लगे और सो गए।
आज के लिए बस इतना ही, इससे आगे का विवरण आगे भाग में तब तक हम चलते है सोने, क्योकि सुबह माणा गांव जाना है। आप लोग भी सो जाइये। बस जल्दी ही मिलते हैं अगले पोस्ट के साथ।
जो भी गलती आप लोगो को दिखे या जो भी सुधार की बात हो जरूर बताएं।
thanks itni sari jaankari k liye bhut acha laga padh k
ReplyDeleteआपको भी बहुत धन्यवाद। आप पढ़ते हैं तभी तो हम लिख पाते हैं। मेरा तीसरा ब्लॉग बदरीनाथ से माणा भी उपलब्ध है उसे भी पढ़ें, और शब्दों के भाव को समझें
DeleteHA JARUR PADHEGE
ReplyDeletethanks
Deleteबढ़िया लेख अभयानंद ... जानकारी और चित्रों से यूक्त
ReplyDeleteगढ़वाल मंडल विकास निगम में कमरा कितने में मिला था
पहले तो अआपने पढ़ा उसके लिए धन्यवाद।
Deleteऔर आज ही केदारनाथ के कपाट खुले है और 2 दिन बाद बद्रीनाथ के खुलेंगे, लगे हाथ आप भी हो आइये
मेरी भी इच्छा दुबारा जाने की हो रही है पर इस साल तिरुपति, कन्यकुमारी, रामेश्वरम और पद्मनाभ स्वामी मंदिर जाने का प्लान कर लिया है।
गढ़वाल मंडल विकास निगम में जब मैं गया था था तब का रेट मैं आपको बता रहा हूँ :
श्रीनगर (गढ़वाल ) 120 रुपए प्रति व्यक्ति
गरिकुण्ड 220 रुपए प्रति व्यक्ति
केदारनाथ में टेंट 150 रुपए प्रति व्यक्ति
गौचर 130 रुपए प्रति व्यक्ति
बद्रीनाथ 110 रुपए प्रति व्यक्ति
जोशीमठ से बद्रीनाथ का रास्ता खूबसूरत भी हे औए डरावना भी ।लेकिन प्रभु भी इतनी आसानी से नही मिलते । बद्रिधाम का वातावरण ही कुछ और हे । एक पवित्र ता की खुशुबू और भाव मन मोह लेते हे
ReplyDeleteहां श्रीमान जी सही कहा आपने वो पवित्रता की खुसबू है है, काश ऐसी ऐसी खुसबू सब जगह होती, और प्रभु भी इतनी आसानी से नहीं मिलते, केदारनाथ और बद्रीनाथ की यात्रा मेरे लाइफ के सबसे यादगार यात्रा रहेगी, एक बार फिर से जाने की इच्छा हो रही है मन में
Deleteबस मिलने वाला किस्सा हर यात्रा में आपके लिए रोमांचक बना देता है बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteयदि आप पहली बार कहीं जा रहे हों तो बस यात्रा ही नहीं पूरी यात्रा ही रोमांचक हो जाती है
Deleteजोशिमठ से आगे वह नीचे दिखता रास्ते पर सबकी नजर ठहरती है। मैने भी उस रास्ते को देखा था। एक दम ऊंचे ऊंचे पहाडो के बीच सड़क थी वो। अभयानंद जी आपने बहुत सुंदर वर्णनो में यह लेख लिखा है। मुझे अपनी यात्रा का स्मरण हो रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन जी पढ़ने के लिए और उत्साह बढ़ाने के लिए। हाँ, जोशिमठ में ऊपर से नीचे देखने पर लगता है तो एक अलग ही रोमांच होता है, फिर नीचे उसी जगह पहुँचने पर ऊपर जोशीमठ देखकर फिर से एक रोमांच पैदा होता है, और काबिले तारीफ है वो ड्राइवर जो ऐसी जगह पर गाड़ी चला लेता है
Deleteजोशिमठ से आगे वह नीचे दिखता रास्ते पर सबकी नजर ठहरती है। मैने भी उस रास्ते को देखा था। एक दम ऊंचे ऊंचे पहाडो के बीच सड़क थी वो। अभयानंद जी आपने बहुत सुंदर वर्णनो में यह लेख लिखा है। मुझे अपनी यात्रा का स्मरण हो रहा है।
ReplyDeleteधन्यवाद सचिन जी पढ़ने के लिए और उत्साह बढ़ाने के लिए। हाँ, जोशिमठ में ऊपर से नीचे देखने पर लगता है तो एक अलग ही रोमांच होता है, फिर नीचे उसी जगह पहुँचने पर ऊपर जोशीमठ देखकर फिर से एक रोमांच पैदा होता है, और काबिले तारीफ है वो ड्राइवर जो ऐसी जगह पर गाड़ी चला लेता है
DeleteJankari dene ke liye thanks
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको
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