केदारनाथ (Kedarnath)
सुबह के 3 बजते ही मोबाइल का अलार्म बजना शुरू हो गया। नींद पूरी हुई नहीं थी इसलिए उठने का मन बिलकुल नहीं हो रहा था। सब लोगों को जगाकर मैं एक बार फिर से सोने की असफल कोशिश करने लगा।जून के महीने में भी ठण्ड इतनी ज्यादा थी कि रजाई से बाहर निकलने का मन नहीं हो रहा था। 5 बजे तक हम लोगों को तैयार होकर गेस्ट हाउस से केदारनाथ के लिए निकल जाना था इसलिए ना चाहते हुए भी इतनी ठण्ड में रजाई से निकलना ही था। पहले तो पिताजी और बेटे नहाने गए। उसके बाद माताजी और पत्नी की बारी आयी। मेरा मन गरम पानी के झरने में नहाने का करने लगा पर हिम्मत नहीं हो रही थी कि बाहर निकलें। कमरे के अंदर का तापमान जब 5 डिग्री के करीब था तो सोचिये बाहर का तापमान कितना होगा। फिर मैं टॉर्च और एक टॉवेल लिया और पिताजी को ये बोलकर कि मैं कुछ देर में आता हूँ और तेज़ी से कमरे से निकल गया। बाहर निकलते ही ठण्ड ने अपना असर दिखाया। ऐसा लग रहा था कि मैं किसी बर्फ से भरे किसी टब में हूँ। मैं दौड़ता हुआ गेस्ट हाउस की 50 सीढियाँ उतर गया। हर तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था। उस सन्नाटे में मन्दाकिनी नदी की पानी के बहने की जो आवाज़ थी बहुत ही मधुर लग रही थी। मन्दाकिनी की आवाज ऐसे लग रही थी जैसे कोई संगीत की धुन हो। मैं सीढ़ियों से उतरने के बाद मन्दाकिनी की तरफ गया और देखने लगा की गरम पानी का झरना किधर है।
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मंदिर के पास कुछ लोग और आदित्या |
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मन्दाकिनी नदी पर बने पुल पर मैं और पीछे केदारनाथ की खड़ी चढ़ाई |
मेरे पास एक टॉर्च था और उस स्याह अँधेरे में उस टॉर्च की रौशनी कुछ भी नहीं थी। मैं इधर उधर देख ही रहा था कि किसी ने आवाज़ दी कि क्या आप नहाने आये हैं। मैंने कहा हाँ नहाने ही आया हूँ पर मुझे गरम पानी का झरना नहीं मिल रहा है। उन्होंने कहा कि इधर आ जाओ यहाँ है गरम पानी। मैं वहां गया तो देखा कि एक अंकल और आंटी हैं जो नहाने के लिए आये हुए हैं। उन्होंने कहा कि मेरे पास टॉर्च नहीं है पर शाम को ही हम दोनों ये जगह देख कर गए थे तो आ गए। मैंने बोला कि मैं नहाऊँगा कैसे यहाँ तो बिना किसी मग या बर्तन के नहा नहीं सकते। उन्होंने कहा मेरे पास एक मग है हम सब लोग इसी से नहा लेंगे। फिर आंटी ने बोला कि टॉर्च को ऐसी जगह और इस स्थिति में रखो की रोशनी ठीक से लगे और हम लोग नहा सकें। फिर पहले अंकल, उसके बाद आंटी और सबसे बाद में मैं नहाया।
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आदित्या और उसके पीछे 2013 में आयी आपदा के निशान |
अब बिडम्बना देखिये हमने नहा तो लिया पर मेरे पास एक टॉवल के अलावा और कुछ नहीं था। पहने हुए कपडे मैं फिर से पहनना नहीं चाहता था और ठंडी भी इतनी कि यदि नहीं पहनूँ तो शायद अपने कमरे तक पहुंच नहीं पाऊँ। फिर भी हिम्मत किया और अंकल आंटी को बोला कि अब चलिए मैं आपको टॉर्च दिखाता हुआ चलूँगा। उन्होंने कहा कि अरे नहीं आप जाओ आपने कुछ नहीं पहना है आपको ठण्ड लग जाएगी। फिर भी मैं नहीं माना और कहा कि कुछ नहीं होगा पर असल में मेरी हालात ठण्ड के कारण बहुत ख़राब होती जा रही थी। किसी तरह से नदी से निकालकर सड़क तक आया। वहां आकर मैंने उनसे कहा की मुझे दाईं तरफ जाना है और आप किधर जायेगे उन्होंने कहा कहा कि मेरा रूम इसी होटल में है। मैंने उनसे कहा कि ठीक फिर मैं चलता हूँ। जल्दी जाओ और जल्दी से गरम कपड़े पहन लेना कहते हुए वो अपने होटल में चले गए। ठीक है अंकल जी कहता हुआ मैं भी अपने होटल की और दौड़ पड़ा। मैं उस समय ठण्ड से काँप रहा था। ऐसा लग रहा था कि मैं अपने रूम तक भी नहीं पहुँच पाऊँगा। किसी तरह रूम तक पहुँचा और जल्दी से कपड़े पहना और पास ही में जल रहे इलेक्ट्रिक हीटर के सामने बैठ गया। मेरे रूम में घुसते ही पत्नी और माताजी बोलने लगी कि जब वहाँ नहाने गए ही तो हम लोगो को क्यों नहीं ले गए। मैं बोला कि मैं तो बस देखने गया था 2 लोग नहा रहे थे तो नहा लिया। अगर आप लोगों को नहाना है तो चलिए तो जवाब मिला कि अब क्या अब तो नहा लिए।
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गौरीकुंड से 4 किलोमीटर ऊपर , यहाँ से केदारनाथ 12 किलोमीटर की दुरी पर हैं |
उसके बाद हम लोगो ने सारा सामान एक जगह करके गेस्ट हाउस के स्टाफ को बुलाया और बोला कि 5 कप चाय ले आइए और ये सामान लेते जाईये। ठीक है बोल कर वो चला गया। कुछ देर में दो लोग आये और सामान ले गए। फिर एक आदमी चाय लेकर आया। हम लोगों ने चाय पी। चाय पीने के बाद मैंने घडी देखा तो उस वक्त 5 बजने में बस कुछ ही मिनट बाकी था। मैं बहुत ही ज्यादा रोमांचित हो रहा था। मन में एक डर भी था कि पता नहीं क्या होगा आगे 16 किलोमीटर कि खड़ी चढ़ाई चढ़ पाएंगे या नहीं। यदि मौसम ने साथ दिया तो ठीक नहीं तो पता नहीं कितनी मुश्किल आएगी। साल 2013 में आये आपदा के बाद इस क्षेत्र में कुछ बचा नहीं था। आपदा आई और पूरी केदार घाटी को अपने साथ बहा ले गयी। उस आपदा के निशान अभी भी केदार घाटी में हर जगह दिखता है। खैर जो भी हो मुझे तो अब जाना ही है। हम लोग गेस्ट हाउस के पीछे के दरवाजे से निकले और हम लोगों के साथ ही गेस्ट हाउस में रात में रुके बहुत लोग भी निकले और उसके बाद सब अलग अलग हो गए। कुछ लोग रास्ते में एक-दो जगह दिखे कुछ लोग नहीं दिखे।
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गौरीकुंड से केदारनाथ के रास्ते में लिया गया एक सीन |
अब हम लोग गौरकुंड से केदारनाथ के चढ़ाई के रास्ते पर थे। हम सब लोग बहुत ही ज्यादा उत्साहित थे। मन में एक उत्साह, एक लालसा, एक डर सब कुछ चल रहा था। अभी गौरकुंड के बाजार से बाहर निकले ही थे कि चढ़ाई शुरू हो गयी। अभी रास्ते में बस दो-चार लोग ही थे। ठंडी हवा चल रही थी। हम सब लोग स्वेटर, टोपी, टॉवेल जो भी हो अपने पुरे बदन को ढक रखे थे। रास्ते के बाईं तरफ ऊँचे ऊँचे पहाड़, दाईं तरफ मन्दाकिनी की गहरी घाटी, घाटी के दूसरी तरफ फिर ऊँचे ऊँचे पहाड़। बात ये हुई की मन्दाकिनी नदी दो पहाड़ो के बीच से बहती है।
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मेरे आदरणीय पिताजी अपने पोते के साथ |
इस फोटो को देखकर आप समझ जायेगे की की मन्दाकिनी नदी किस तरह दो पहाड़ों के बीच बहती है। दोनों तरफ पहाड़ के बीच में जो खाली जगह आप देख रहे हैं वही मन्दाकिनी नदी है। इस तस्वीर में जो आप रास्ता देख रहे हैं वही केदारनाथ तक जाती है। पहले यही रास्ता केदारनाथ तक चली जाती थी पर 2013 में आयी आपदा के बाद 7 किलोमीटर के बाद आगे का जो रास्ता था वो आपदा में बह गया। अब जो रास्ता बनाया गया है वो रामबाड़ा में नदी को पार करके दूसरे तरफ से बनाया गया है जो 7 किलोमीटर के बदले 9 किलोमीटर का हो गया है। जो रास्ता पहले 14 किलोमीटर था अब वही रास्ता 16 किलोमीटर का हो गया।
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मेरे पिताजी और मेरा बेटा |
घाटी में बहती मन्दाकिनी की तेज़ धारा की आवाज़ मधुर संगीत की तरह लग रही थी। बड़े बड़े पत्थर नदी की धारा में घिस घिस कर सपाट और चिकना हो गया था। मन्दाकिनी को देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि इतनी शांत नदी इतनी बड़ी तबाही कैसे ला सकती है। इन रास्तों पर चलते हुए मन में बहुत ही शांति महसूस हो रही थी। हर तरफ बस पहाड़, पहाड़ के ऊपर बड़े बड़े पेड़, नीचे नदी, कहीं कहीं ऊपर पहाड़ से गिरते हुए झरने भी थे। कुछ लोग कहते हैं कि धरती का स्वर्ग कश्मीर है, पर मैं तो कहता हूँ कि अगर कही शांति, सुकून है तो बस यहीं है। एक बार आकर देखिये मन खुश हो जायेगा वापस जाने का मन नहीं करेगा। हम कभी बैठते कभी चलते बहुत दूर आ चुके थे।
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कंचन (मेरी पत्नी ) |
इस तस्वीर में दोनों पहाड़ों के बीच बहुत दूर जो कुछ दिखाई पड़ रहा है उसी जगह पर केदारनाथ का मंदिर है। तस्वीरों में वो जितना पास लग रहा है हकीकत बिलकुल अलग है। असल में वो है बहुत दूर। ये फोटो जिस जगह से ली गयी है वो एक हेलिपैड है जो आपातकाल के लिए बनाया गया है और इस हेलिपैड को चिरबासा हेलिपैड कहते हैं। असली इम्तिहान तो अभी थोड़ी देर बाद शुरू होता है जब खड़ी चढ़ाई आरम्भ होती है। चलने पर साँस फूलने लगता है।
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मन्दाकिनी नदी की दूधिया रंग की निर्मल धारा |
हम 5 लोग में सबसे ज्यादा परेशानी मुझे ही हो रही थी। यहाँ ऑफिस में सीटिंग वर्क के कारण पूरे दिन बैठा रहता हूँ। ज्यादा चलने की आदत नहीं है। ये तो एक बात अच्छा था कि यहाँ आने से 5 महीने पहले से ही मॉर्निंग वाक शुरू किया था नहीं तो ये चढ़ाई मैं चढ़ नहीं पाता। पिताजी, माताजी, पत्नी और बेटा सब आराम से चल रहे थे और मैं थक जाता था। कुछ दूर चलकर थोड़ा बैठते फिर चलना शुरू करते। इतनी थकान के बाद भी मन बिलकुल प्रफुल्लित था। धीरे धीरे हम लोग आधी दूरी आ गए। पर अब इसे आधी दूरी कहना बेमानी होगा क्योंकि पहले ये जगह दोनों तरफ से बराबर दूरी पर थी। यहाँ से 7 किलोमाटर नीचे गौरीकुण्ड और 7 किलोमाटर ऊपर केदारनाथ पर 2013 में आयी आपदा ने यहाँ से ऊपर केदारनाथ तक जाने वाले 7 किलोमाटर के रास्ते को पूरी तरह खत्म कर दिया। हालात ऐसे हैं कि उस रास्ते को फिर से ठीक भी नहीं किया जा सकता। अब यहाँ से केदारनाथ जाने के लिए मन्दाकिनी नदी को पार करके दूसरे तरफ से नया रास्ता बनाया गया है जो 7 किलोमाटर के बदले 9 किलोमाटर का है। इस स्थान को रामबाड़ा कहते हैं। रामबाड़ा से केदारनाथ के मंदिर तक आपदा के दौरान कुछ भी बचा बस तबाही के निशान बाकी हैं।
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मन्दाकिनी नदी में पड़े ये बड़े बड़े पत्थर जिनको 100 लोग मिलकर हिला भी नहीं सकते उनको मन्दाकिनी अपने रौद्र रूप में आने पर तिनके की तरह बहा कर ली आयी |
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मन्दाकिनी नदी के स्वच्छ जल को देखते ही सारी थकान कहाँ चली गयी पता ही नहीं चला।
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you write in a different way but beautiful
ReplyDeletei am trying to change my writing style but not change, main apne likhne ka dhang badalna chahta hoon par badal nahi pata hai, to jaisa chal raha hai chalne de rahe hain
Deletei am trying to change my writing style but not change, main apne likhne ka dhang badalna chahta hoon par badal nahi pata hai, to jaisa chal raha hai chalne de rahe hain
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, लेकिन पोस्ट 1000 शब्दों से अधिक की नहीं होनी चाहिए। फोटो टेम्पलेट के साइज की हों तो उत्तम।
ReplyDeleteललित जी आपके सुझाव के लिए धनयवाद, अब जो पोस्ट प्रकाशित हो गयी उसे तो १००० शब्द में करना तो मुश्किल है, पर आगे आने वाली पोस्ट में इस बाद का ख्याल ध्यान रखूँगा कि १००० शब्द के करीब ही हों।
DeletePhoto wali baat meri samjh me nahi aayi, ki aap kya kahna chahte hai, choti rakhu photo ya badi
Deleteजय भोलेनाथ
ReplyDeleteमैं 2014 से हर साल बाबा के दर्शन करने जाता हूं।जब पहली बार गया था तभ गाड़ी गौरीकुंड भी नही पहुंच पाती थी और रास्ता भी खराब था भीमबली से आगे।
धन्यवाद अनिल जी , आप २०१४ से लगातार जा रहे है, इस बार हम फिर दुबारा जाएंगे बाबा के दर्शन के लिए, संभवतः अक्टूबर में।
DeleteVery good and detailed description
ReplyDeleteye bas ek chota sa paryas hai apni yatraon ka vivran ek jagah ikattha karne ka
DeleteVery good and detailed description
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Deleteनहाने के लिए कपडे न ले जाना जिसका खामियाजा भुगतना पड़ा...बहुत बढ़िया दर्शन किये आपने ...
ReplyDeleteहाँ कपडे नहीं ले जाने का खामियाजा तो भुगतना पड़ा पर भोलेनाथ की कृपा से सब अच्छा रहा , और यात्रा के दौरान ऐसी ही कुछ बातें घटित होती है जिससे यात्रा रोमांचक हो जाती है
Deleteमाँ नर्मदा मध्यप्रदेश से प्रवाहित होती है।। तो ये बाबा केदारनाथ के पास से कोनसी नर्मदा का वर्णन किया है आपने ?
ReplyDeleteजी वो एक छोटी सी नदी है और उसका नाम भी नर्मदा ही है, जो मंदिर के थोड़े ऊपर से आती है और मंदिर से आगे आकर मंदाकिनी में मिल जाती है।
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