Wednesday, June 30, 2021

हमारा संसार : जय-जय बिहार (Hamara Sansar: Jay Jay Bihar)

हमारा संसार : जय-जय बिहार (Hamara Sansar: Jay Jay Bihar)



(22 मार्च 2019
): मेरे प्यारे बिहार आज तुमने अपने जीवन का 107 साल पूरा कर लिया और 108वें वर्ष में प्रवेश करने की बहुत सारी बधाइयां शुभकामनाएं तुमको।

तुमने 22 मार्च 1912 को बंगाल से अलग होकर अपना एक अलग घर बसाया और समय के थपेड़ों को सहते हुए एक-एक वर्ष करते करते आज तुमने अपने जीवन का 107 वर्ष पूरा कर लिया। इन 107 वर्षों में तुमने क्या-क्या नहीं देखा। एक इंसान की तरह तुम्हें हर समय प्रताडि़त किया गया, तुम्हारी मेहनतकशी को लानते-तोहमतें दी गई, हर पल तुमको धराशायी करने का प्रयास चलता रहा फिर भी तुम उसी शान से खड़े रहे जिस शान से तुम सदियों और सहस्रों साल पहले खड़े थे।

Tuesday, June 29, 2021

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा (Chau Chau Kang Nilda Mountain)

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा
(Chau Chau Kang Nilda Mountain)





अनिल दीक्षित जी ने एक पर्वत की चोटी के बारे में कुछ पूछा तो हम उस पर्वत के बारे में इंटरनेट पर खोजने लगे जो उस पहाड़ से संबंधित वहां की एक लोककथा हमें मिली, जो कि अंग्रेजी में था जो हमें बहुत अच्छा लगा तो हमने उसे हिन्दी में अनुवाद किया और अनिल दीक्षित जी के उसी फोटो के साथ हम उसे यहां पोस्ट कर रहे हैं।

चाउ चाउ कांग कांग निलदा स्पीति में एक प्रसिद्ध पर्वत है। चै चै का अर्थ है छोटी लड़की, परी या राजकुमारी। कांग का मतलब बर्फ से ढका पहाड़ होता है। नी यानी नीमा जिसका अर्थ सूर्य है। दा यानी दाव का अर्थ चंद्रमा है। यानी कि यह एक परी पर्वत है जिस पर जिस पर सूर्य और चंद्रमा चमकते हैं। चाउ चाउ लंगजा मठ से बहुत सुंदर दिखाई देता है।

Monday, June 28, 2021

अथ श्री कचौड़ी-जलेबी कथा (Kachaudi Jalebi Katha)

अथ श्री कचौड़ी-जलेबी कथा (Kachaudi Jalebi Katha)



बात पिछले साल की है। जेठ के तपते झुलसते महीने में एक दिन शाम के समय हम घर से निकलकर खेतों की तरफ जाकर एक छोटे से पुलिया पर बैठे हुए थे। गोधूलि बेला के इस समय में खेत में चरने गई गाय-भैंसे हरी और सूखी घास चरकर वापस अपने घर को आ रहे थे और उनके पीछे उनका मालिक भी कंधे पर लाठी और गमछा लिए हुए हो-हो, है-है, हे-हे करते हुए आ चले आ रहे थे और मैं ध्यानमग्न होकर उन दृश्यों को निहारे जा रहा था। उधर सूर्य देव भी दिन पर अपनी चमक बिखेरने के बाद अपनी बची हुई लालिमा को लेकर वापस अपने घर को जा रहे थे और उनकी इस लालिमा से चारों दिशाएं केसरिया रंग में रंग चुकी थी और हम इसी केसरिया रंगों में डूबे हुए कई साल पीछे के दृश्यों में तैर रहे थे।

Sunday, June 27, 2021

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

पहली नजर : अभ्यानन्द सिन्हा


एक मधुर मिलन की सुनहरी यादें 
14 फरवरी 2020, दोपहर 2.30 बजे

स्थान बिहार शरीफ का रामचन्द्रपुर बस स्टैंड पर : पटना, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा, नवादा, गया, राजगीर, हिलसा, रांची, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़, गढ़वा, टाटा, चाईबासा, कलकत्ता, पूर्णिया, सहरसा, भागलपुर, मुंगेर, जमुई, पकरीबरावां, जहानाबाद, आदि जगहों की कर्णभेदी आवाजों से पूरा वातावरण गुंजायमान था और एक मुसाफिर पटना की बस पर बैठने को आतुर था, और दो-तीन बस छोड़ने के बाद उसे अपनी मनपसंद की सीट मिल गई और वो उस सीट पर अपने कब्जे में लेकर बैठ गया। बस चली और ठुमकते हुए बाईपास पर पहुंचने के बाद दाएं तरफ मुड़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 20 पर पहाड़ के किनारे किनारे तांडव करते हुए आगे बढ़ने लगी। बस चली जा रही थी और मुसाफिर अपनी धुन में बाहर के हरे भरे दृश्यों का आनंद लेते हुए न जाने कौन सी दुनिया में मगन था तभी फोन में कंपन होती है और एक मैसेज दिखता है :

Saturday, June 26, 2021

उस रात के अंधेरे में.... (In the darkness of that night...)

उस रात के अंधेरे में.... (In the darkness of that night...)



ये बात 20 साल पूर्व उस समय की है जब हम नवादा के कन्हाई लाल साहू महाविद्यालय में प्रवेशिका (इंटरमीडिएट) में पढ़ते थे। मार्च के महीने हमारी की परीक्षा चल रही थी। इन परीक्षाओं के बीच में ही हमें रविवार के दिन दानापुर छावनी में सेना भर्ती के लिए कुछ जरूरी प्रकियाओं के लिए दानापुर भी जाना था। शनिवार को दोपहर 1.30 बजे परीक्षा खत्म होने के बाद हम अपने कमरे पर गए और वहां से बैग उठाकर बस स्टेशन आ गए। वैसे तो नवादा से पटना के लिए हर दस मिनट में बसें मिल जाती थी लेकिन उस समय चारा वाले मुख्यमंत्री जी की कोई रैली निकलने वाली थी इसलिए बसों की संख्या कम हो गई थी, फिर भी हमें बस जल्दी ही मिल गई और रात होते होते हम पटना पहुंच गए और समयानुसार कहें तो 8 से ज्यादा बच चुके थे।

Friday, June 25, 2021

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)



भारत गांवों और तीर्थों का देश है और हम इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि भारत का शरीर गांवों में और हृदय तीर्थों में बसता है। भारतीय जनजीवन में संचित चिरकालीन श्रद्धा एवं भावना का यथार्थ दर्शन इन तीर्थों में ही होता है। हमारे देश में यह जो एक अद्भुत सामासिक एकता दिखाई देती है, उसका रहस्य भी हमारे हृदयस्वरूप इन्हीं तीर्थों की पवित्रतम एवं मनोरम तपोभूमि में निहित है। क्योंकि वहां देश के कोने-कोने से लाखों नर-नारी एक ही कामना, एक ही आकर्षण के वशीभूत होकर पुरातन काल से एकत्रित होते आ रहे हैं। वे कहीं भी रहते हों, कुछ भी करते हों, उनका अन्तर्मन अधिक नहीं तो जीवन में कम-से-कम एक बार इन तीर्थों की पवित्र रज मस्तक पर धारण करने को आतुर रहता है। यही कारण है कि जब यात्रा की आधुनिक सुविधाएं प्राप्त नहीं थी, तब भी तीर्थयात्रियों का तारतम्य कभी टूटा नहीं और सहस्रों मील पैदल चलकर तीर्थों के दर्शन करने लागे सहर्ष आते-जाते रहे। इस प्रकार उपलब्ध इतिहास की दृष्टि से भी परे, काल की अनन्त श्रृंखला को लांघकर अनेकानेक छोटे-बड़े उथल-पुथल के अभ्यन्तर, वैयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक अथवा अन्य किसी भी विवशता के बन्धन से मुक्त, देश की आन्तरिक समता को अक्षुण्ण बनाए रखकर उसे अमर जीवन प्रदान करने का जो श्रेय प्रकृति के सुरम्य वातावरण में बसे हमारे तीर्थों को प्राप्त है। उसकी मिसाल संसार में अन्यत्र दुर्लभ है।

Thursday, June 24, 2021

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)



अगर कोई हमें ये पूछे कि आपको क्या अच्छा लगता है और आपके पास कुछ भी करने के लिए नहीं हो तो क्या करेंगे तो मेरा जवाब कुछ ऐसा होगा!

हम वो पथिक हैं जो सदा ही एक सफर में रहना चाहते हैं और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलते ही रहना चाहते हैं। हमें मंजिल नहीं चाहिए, हमें तो बस रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते ही मेरे लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव।

हम चलते रहना चाहते हैं और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहते हैं। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें हमें पागल, बावला और दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में हम बस चलते रहते हैं, उससे मिलने के लिए। हम बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहते हैं और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेने चाहते हैं।

Wednesday, June 23, 2021

शब्द (Word)

शब्द (Word)


शब्द ... आप जो चाहें सो कह सकते हैं, जी हां, लेकिन ये शब्द ही हैं जो गाते हैं, वे ऊपर उठते हैं और नीचे उतरते हैं... मैं उनके सामने नत मस्तक होता हूं... मैं उन्हें प्यार करता हूं, उन्हें पकड़ता हूं, उनकी अवमानना करता हूं, उन्हें काटता हूं, उन्हें पिघलाता हूं... मैं शब्दों से इतना प्यार करता हूं... अनपेक्षित शब्द... कुछ शब्द...

Friday, June 11, 2021

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण') (The Helmet story)

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण'
(The Helmet 
story)



जी हां, मैं वही हूं, जिसे हर बाइक खरीदने वाला बड़े अरमान के साथ अपने घर ले जाता है और कहीं खूंटी पर टांग देता है या किसी मेज के नीचे रख देता है। अरे जब मुझे प्रयोग ही नहीं करना था तो अपने घर में मुझे क्या घर की शोभा बढ़ाने के लिए लाए हो। मुझे अगर तुम केवल अपने घर की शोभा ही बढ़ाने के लिए लाए थे तो उससे अच्छा मुझे दुकान में ही पड़े रहने देता, कम से कम मैं वहां अपने अन्य साथियों के साथ तो रहता था। मुझे अपने दोस्तों से अलग करके अपने घर लाते समय तो तुम कह रहे थे कि मैं कहीं भी जाऊंगा तो तुमको अपने साथ ही लेकर जाऊंगा और मैंने भी वादा किया था तुमसे कि जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूंगा तुमको कुछ नहीं होने दूंगा, पर तुम तो घर लाकर मुझे भूल ही गए।