Wednesday, June 23, 2021

शब्द (Word)

शब्द (Word)


शब्द ... आप जो चाहें सो कह सकते हैं, जी हां, लेकिन ये शब्द ही हैं जो गाते हैं, वे ऊपर उठते हैं और नीचे उतरते हैं... मैं उनके सामने नत मस्तक होता हूं... मैं उन्हें प्यार करता हूं, उन्हें पकड़ता हूं, उनकी अवमानना करता हूं, उन्हें काटता हूं, उन्हें पिघलाता हूं... मैं शब्दों से इतना प्यार करता हूं... अनपेक्षित शब्द... कुछ शब्द...



...जिनके लिए मैं बेताबी से प्रतीक्षा करता हूं या उनका पीछा करता हूं और अचानक वे प्रकट होते हैं... स्वर जिन्हें मैं प्यार करता हूं... वे रंगीन पत्थरों की तरह चमकते हैं, रजत मछलियों से उछलते हैं, वे झाग जैसे, धागे जैसे, धातु जैसे, ओस जैसे... मैं कुछ शब्दों के पीछे दौड़ता हूं... वे इतने सुंदर हैं कि मैं उन सब को अपनी कविता, कहानियां, लेखों में प्रयोग करना चाहता हूं... मैं उन्हें बीच हवा में पकड़ता हूं जब वे गुजर रहे होते हैं... मैं उन्हें पकड़ कर साफ करता हूं, छीलता हूं, भोजन के सामने बैठता हूं... वे पारदर्शी हैं, कंपायमान, हाथीदांत के रंग के, तैलीय, फल जैसे, शैवाल जैसे, जैतून जैसे... और तब मैं उन्हें मथता हूं, हिलाता हूं, पीता हूं, निगलता हूं, पीसता हूं, सजाता हूं, उन्हें स्वतंत्र जाने देता हूं... मैं उन्हें अपनी कविता में लटकाता हूं, कहानियों में फंसाता हूं, लेखों में उलझाता हूं... जैसे पालिश की हुई लकड़ी के फट्ठे, जैसे कोयला, जैसे टूटे जहाज से उठाई चीजें, लहरों के उपहार... सब कुछ शब्द में अस्तित्वमान है... एक शब्द अगर अपना स्थान बदल ले या उसकी जगह कोई दूसरा आकर बैठ जाए तो पूरा विचार ही बदल जाता है... उनकी परछाईं होती है, पारदर्शिता, वजन, पंख, बाल होते हैं और वह सब चीजें होती हैं जो उन्होंने नदी में बहते हुए एकत्रित की हैं, जो उन्होंने देश-देश घूमकर अर्जित की हैं, जिनकी जड़ें बहुत गहरी हैं... वे बहुत प्राचीन हैं और बहुत ही नवीन हैं, वे मृत में भी निवास करते हैं और खिलते फूलों में भी... कैसी महान भाषा है मेरे पास, इस सुंदर भाषा को हमने अपने पूर्वजों से विरासत में पाया है... वे उत्ताल तरंगों पर चढ़े, बीहड़ों में चले, आलुओं, शिकार, फलियों, तंबाकू, मक्का, तले अंडों की तलाश में, ऐसी जबरदस्त भूख जो दुनिया में उसके बाद कभी नहीं देखी गई... उन्होंने हर चीज का भक्षण किया, धर्मों, पिरामिडों, आदिम जनजातियों, मूर्तिपूजाओं का ठीक उसी तरह उन्होंने अपने थैलों में लाई चीजों का भक्षण किया था... जहां-जहां वे गए, उन्होंने जमीन को समतल कर दिया.. लेकिन शब्द पत्थर के टुकड़ों की तरह उन बर्बरों के जूतों से, उनकी दाढियों से, उनके टोपों से, उनके घुड़सवारी के जूतों से, प्रकाशित शब्द जिन्हें यहां चमकता छोड़ दिया गया... हमारी भाषा। हम पराजित हुए... हम जीते... वे कुछ ले गए और कुछ हमारे छोड़ गए... वे हर चीज ले गए और हमारे लिए हर चीज छोड़ गए... वे हमारे लिए शब्द छोड़ गए।

फोटो :  रामेश्वरम् (Remeshwaram)

2 comments:

  1. सुन्दर....शब्द ही हैं तो हमारे जाने के बाद बचे रह जाते हैं...शब्द ही हैं विरासत के रूप में छोड़ सकते हैं....

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    1. वे कुछ ले गए और कुछ हमारे छोड़ गए... वे हर चीज ले गए और हमारे लिए हर चीज छोड़ गए... वे हमारे लिए शब्द छोड़ गए।

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