Tuesday, June 29, 2021

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा (Chau Chau Kang Nilda Mountain)

चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत की लोककथा
(Chau Chau Kang Nilda Mountain)





अनिल दीक्षित जी ने एक पर्वत की चोटी के बारे में कुछ पूछा तो हम उस पर्वत के बारे में इंटरनेट पर खोजने लगे जो उस पहाड़ से संबंधित वहां की एक लोककथा हमें मिली, जो कि अंग्रेजी में था जो हमें बहुत अच्छा लगा तो हमने उसे हिन्दी में अनुवाद किया और अनिल दीक्षित जी के उसी फोटो के साथ हम उसे यहां पोस्ट कर रहे हैं।

चाउ चाउ कांग कांग निलदा स्पीति में एक प्रसिद्ध पर्वत है। चै चै का अर्थ है छोटी लड़की, परी या राजकुमारी। कांग का मतलब बर्फ से ढका पहाड़ होता है। नी यानी नीमा जिसका अर्थ सूर्य है। दा यानी दाव का अर्थ चंद्रमा है। यानी कि यह एक परी पर्वत है जिस पर जिस पर सूर्य और चंद्रमा चमकते हैं। चाउ चाउ लंगजा मठ से बहुत सुंदर दिखाई देता है।

हिमालयी लोककथाओं और लोकगीतों के अनुसार, चाउ चाउ गाथा के संदर्भ में, वह एक परी थी जिसे एक ऐसे व्यक्ति से प्यार हो गया जिसने उसका दिल तोड़ दिया। ऐसा कहा जाता है कि जब भी कोई पुरुष उससे संपर्क करने की कोशिश करता है तो मौसम खराब हो जाता है।

यह कहानी सालों पहले की है। लंगजा गांव को इस पहाड़ की धारा से पानी मिलता है इसलिए हर साल गर्मियों में किसी को धारा की जांच करने और किसी भी प्रकार की दिक्कत को दूर करने के लिए भेजा जाता था। एक दिन लांडुप को धारा की जांच के लिए भेजा गया था। लांडुप एक बहुत ही आलसी आदमी था और वह सारंगी बजाने में ही ज्यादा व्यस्त रहता था और इसी तरह वह सारंगी बजाते जाते पहाड़ के आधार तक चला गया। वहां पहुंचकर उसने वहां से आने वाले पानी की धारा की जांच पड़ताल के बाद वहीं बैठकर सारंगी बजाने में व्यस्त हो गया और सारंगी की धुन में ही खो गया।

सारंगी बजाने के बाद जैसे ही उसने अपनी आंखें खोली तो उसने अपने सामने एक खूबसूरत लड़की को देखा। उस लड़की ने भी उसे देखा और धीरे से कहा, ‘लांडुप आप बहत अच्छा संगीत बजाते हैं और मुझे बहुत अच्छा लगेगा यदि आप अपना संगीत फिर से मेरे लिए बजाएंगे।’’

लांडुप ने मना नहीं कर सकता और उसने फिर से सारंगी बजाना शुरू कर दिया। संगीत खत्म होने के बाद उस लड़की ने लांडुप को बताया कि ‘‘वह चाउ चाउ नील मिल्दा परी है और मैं चाहती हूं कि तुम अक्सर यहां आओ और मेरे लिए ये संगीत बजाओ।’’

उस दिन के बादसे वह स्थायी रूप से पानी की धारा की जांच के लिए अपने गांव से यहां तक आने लग गया और इसी तरह दोनों मंे प्रेम हो गया और पूरा ग्रीष्म ऋतु ऐसे ही बीत गया। और इसी दौरान उस परी ने उसका जिक्र किसी से नहीं करने के लिए कहा और गलती से भी उसने किसी से इसका जिक्र किया तो वह सदा सदा के लिए उससे दूर हो जाएगी।

गरमी का मौसम जाते ही सर्दियों का मौसम आया। एक दिन लांडुप की पत्नी ने लांडुप को कुछ काम के लिए बोला तो लांडुप ने कहा कि वह अभी परी के साथ है और अभी कोई काम नहीं करेगा। इस बात पर लांडुप की पत्नी ने उसे फालतू के सपने देखने से मना किया। तो इसी बात पर लांडुप घर छोड़कर निकल गया। सुबह लांडुप जब जागा तो उसने देखा कि उसके शरीर पर बहुत से फोड़े फुन्सी हो रखे हैं। तब उसे याद आया कि परी ने उसे अपना जिक्र किसी से नहीं करने के लिए कहा था लेकिन रात में सपने में उसने उसका जिक्र अपनी पत्नी से कर दिया।
अपने शरीर की ये हालत देखकर लांडुप बहुत चिंतित और परेशान हुआ। अब वह जल्द से जल्द परी से मिल लेना चाहता था लेकिन सर्दियों में पहाड़ तक जाना संभव नहीं था। सर्दियां बीती और गरमी का मौसम आया तो लांडुप अपनी सारंगी लेकर पहाड़ तक पहुंचा और वहां उसने अपनी सारंगी बजाना शुरू किया पर परी नहीं आई। उसने परी को खूब पुकारा, रोया और चिल्लाया भी लेकिन परी नहीं आई। पूरा दिन उसने अपना रोना-चिल्लाना जारी रखा लेकिन परी को नहीं आना था तो नहीं आई। शाम को लांडुप निराश होकर घर लौट आया और उस दिन के बाद से जब भी वह पहाड़ की तरफ जाने की कोशिश करता तो मौसम खराब हो जाता और उसे हार कर वापस आना पड़ता।

कहते हैं कि जब कोई आदमी चाउ चाउ कांग निलदा पर चढ़ने की कोशिश करता है तो मौसम खराब हो जाता है और यह कहा जाता है कि परी अभी भी अपने टूटे हुए दिल के साथ वहीं रहती है जो किसी भी पुरुष को अपने पास नहीं आने देती है।

साभार : अंग्रेजी लेख इंटरनेट से प्राप्त।
अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद : अभ्यानन्द सिन्हा।


चाउ चाउ कांग निलदा पर्वत


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