Thursday, June 24, 2021

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)

मैं और मेरा पागल मन (Main aur Mera Pagal Man)



अगर कोई हमें ये पूछे कि आपको क्या अच्छा लगता है और आपके पास कुछ भी करने के लिए नहीं हो तो क्या करेंगे तो मेरा जवाब कुछ ऐसा होगा!

हम वो पथिक हैं जो सदा ही एक सफर में रहना चाहते हैं और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलते ही रहना चाहते हैं। हमें मंजिल नहीं चाहिए, हमें तो बस रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते ही मेरे लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव।

हम चलते रहना चाहते हैं और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहते हैं। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें हमें पागल, बावला और दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में हम बस चलते रहते हैं, उससे मिलने के लिए। हम बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहते हैं और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेने चाहते हैं।

किसी हवाई सफर में छोटी सी खिड़की से निहारते हुए जब वो बादलांे को रुई की तरह उड़ते हुए देखते हैं तो वो बस उसके साथ ही तैरने के लिए मचलने लगते हैं। हमें पहाड़ों के किनारे किनारे बने रास्तों पर चलना अच्छा लगता है और पहाड़ की ऊंचाइयों को हम गर्दन ऊपर करके पूरी आंख खोलते हुए निहारकर उसे हृदय में बसा लेते चाहते हैं। हमें अच्छा लगता है पहाड़ की गोद में बसे उन घाटियों और नदियों को देखना और अच्छा लगता है उन नदियों में बह रहे जल स्रोतों की मधुर ध्वनि को सुनना।

हमें अच्छा लगता है समुद्र के पानी के साथ अठखेलियां करना। समुद्री सीपों को इकट्ठा करना और फिर से उसे उसी समुद्र की अनंत गहराइयों में समा जाने के लिए छोड़ देना। हमें अच्छा लगता है समुद्र के किनारे घंटों बैठकर रेत को जमा करना और फिर इंतजार करना कि कोई लहर आए और उसे बहा ले जाए। हमें अच्छा लगता है दूर दूर तक फैले रेगिस्तान में बालू के टीलों पर दौड़ना, चलना और लुढ़कना।

हमें अच्छा लगता है शहर की गलियों में भटकना और हमारी चाहत होती है जब शहरवासी रात को सो चुके हों तो हम अकेले ही सड़कों और गलियों की खाक छानते रहे जहां हमें कोई रोकने-टोकने वाला न हो। हम चाहते हैं कि किसी सुनहरी शाम से लेकर घनी-अंधेरी काली रात तक किसी सूने खंडहरों में कुछ भटकाव महसूस करें और कुछ अपरिचित आवाजों को सुने जिसकी गूंज हमारे दिलो-दिमाग में बरसों बरसों तक बरकरकार रहे।

हमें अच्छा लगता है यात्रा से संबंधित पुरानी पुस्तकें पढ़ना। हमें अच्छा लगता है गुमनाम जगहों के बारे में पढ़ना और जानना। अच्छा लगता है हमें किसी ऐसे जगह अकेले जाना जहां बहुत कम लोग जाते हों, जहां एकांत हो, शांति हो, नीरवता हो। हमें अच्छा लगता है किसी भी जगह के फोटो देखना। हमें अच्छा लगता है यूं ही राह चलते हुए रुक जाना और आते जाते लोगों को देखना, आते जाते गाडि़यों को टाटा बाय बाय करना।

हमें अच्छा लगता है चांदनी रात में किसी छत पर बैठकर तारों को देखना, गिनना और उससे बातें करना। हमें अच्छा लगता है किसी जंगल में चलते रहना और उससे भी ज्यादा अच्छा लगता है उसे किसी जंगली रास्तों पर चलते हुए भटक जाना। हमें अच्छा लगता है सुनसान और वीरान रास्तों पर चलते रहना और दुख पहुंचाता है हमें मंजिल पर पहुंच जाना।

हम चाहते हैं किसी पेड़ की छाया में उसके तने से पीठ टिका कर देर तक बैठना और चारों तरफ फैले वातावरण को महसूस करना। हम चाहते हैं कि हमारे जीवन में एक ऐसा दिन आए जिस दिन हम अपने जिंदगी के एक खूबसूरत सफर पर निकले जिसमें सफर शुरुआत करने का दिन तो तय हो लेकिन वापसी की कोई तिथि न हो। वह बस चलते रहें, चलते रहें और चलते ही रहें, एक अंतहीन सफर पर। मेरी इस हरकत पर जमाना हमें पागल भी कह देता है पर हमें फर्क नहीं पड़ता कि हमें लोग क्या कह रहे हैं।

फोटो : बूढ़ा मध्यमहेश्वर (Budha Madhyamaheshwar)

4 comments:

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    1. बहुत सारा धन्यवाद आपको। आपको मेरा ब्लाॅग अच्छा लगा ये मेरे लिए खुशी की बात है, एक बार पुनः धन्यवाद आपको। आपने कहा है तो आपके ब्लाॅग पर भी अवश्य जाएंगे।

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  2. ऐसे चलते चले जाना हर एक घुमक्कड़ की इच्छा में शुमार होता है। बस कमबख्त जीवन और जीविका पीछे खींच देती है। लोगों के लिए आप पागल हो लेकिन हमारे लिए तो अपनी ही बिरादरी के हो।

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    1. हर इंसान के साथ घर-परिवार और गांव-समाज की बहुत सारी जिम्मेदारियां साथ-साथ चलती है और इन जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए घूमना ही असली जीवन है। कुछ लोग सोचते हैं कि अरे मेरा घूमना नहीं हो रहा है और घूमना ही उनके लिए सर्वोपरि होता है पर असली घूमने वाला वही होता है जो सब कुछ का सामंजस्य बनाकर चले। समय अच्छा है तो चल दिए घूमने नहीं तो बाकी जिम्मेदारियों को पूरा करना भी एक घुमक्कड़ी ही है।

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