Sunday, June 27, 2021

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

एक मुलाकात : तीन नजर (One Meeting: Three Eye)

पहली नजर : अभ्यानन्द सिन्हा


एक मधुर मिलन की सुनहरी यादें 
14 फरवरी 2020, दोपहर 2.30 बजे

स्थान बिहार शरीफ का रामचन्द्रपुर बस स्टैंड पर : पटना, बख्तियारपुर, बाढ़, मोकामा, नवादा, गया, राजगीर, हिलसा, रांची, धनबाद, बोकारो, हजारीबाग, रामगढ़, गढ़वा, टाटा, चाईबासा, कलकत्ता, पूर्णिया, सहरसा, भागलपुर, मुंगेर, जमुई, पकरीबरावां, जहानाबाद, आदि जगहों की कर्णभेदी आवाजों से पूरा वातावरण गुंजायमान था और एक मुसाफिर पटना की बस पर बैठने को आतुर था, और दो-तीन बस छोड़ने के बाद उसे अपनी मनपसंद की सीट मिल गई और वो उस सीट पर अपने कब्जे में लेकर बैठ गया। बस चली और ठुमकते हुए बाईपास पर पहुंचने के बाद दाएं तरफ मुड़ते हुए राष्ट्रीय राजमार्ग 20 पर पहाड़ के किनारे किनारे तांडव करते हुए आगे बढ़ने लगी। बस चली जा रही थी और मुसाफिर अपनी धुन में बाहर के हरे भरे दृश्यों का आनंद लेते हुए न जाने कौन सी दुनिया में मगन था तभी फोन में कंपन होती है और एक मैसेज दिखता है :


—गुरुजी प्रणाम! आप कहां हैं?
—शुभाशीष! मैं अभी बिहार शरीफ में हूं।
—पटना कब तक आइएगा?
—6 बजे तक।

बस बात खतम और सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो गया और दो घंटे के सफर के बाद बस जी भी पटना पहुंच गए और फिर मुसाफिर ने अपना मोबाइल निकाला और एक नम्बर पर डायल किया। घंटी बजी और उधर से फोन पर जानी पहचानी आवाज आई।

—हेलो!
—प्रणाम भैया!
—खुश रहिए! कहां पहुंचे?
—हनुमान नगर पहुंच गया हूं।
—अच्छा बाईपास पर न?
—हां बाईपास पर ही, और कुछ देर में मीठापुर पहुंच जाऊंगा, और तत्पश्चात् जंक्शन।
—अच्छा ठीक है, पर अभी हम अपने आॅफिस दानापुर में हैं। आप ऐसा कीजिए कि गाड़ी और सीट का विवरण मुझे भेज दीजिए।
—अच्छा ठीक है, अभी भेजता हूं।

बातचीत पूरा होने के बाद मुसाफिर ने टिकट डिटेल उस नम्बर पर प्रेषित कर दिया और साथ ही जिनसे पहले दो घंटे पहले बात हुई थी उनको भी वही विवरण प्रेषित कर दिया और उधर से खुश होने वाले ईमोजी आया और फिर एक गहरी खामोशी छा गई और बस जी भी अब अपने तांडव के रूप को बदलकर ठुमकने लगे थेे मतलब कि उनका विश्राम स्थल आने वाला था और जल्दी ही वो अपने विश्राम स्थल पर जाकर खड़े हो गए।

मुसाफिर भी अपनी सीट से उठा और बिजली से चलने वाले त्रिचक्रीय वाहन से जंक्शन पहुंच गया और प्रतीक्षालय में जाकर आराम से खाना खाया और फिर स्टेशन के बाहर जाकर मुआयना करने लगा। तभी घोषणा हुई कि गाड़ी संख्या 12435 आज प्लेटफाॅर्म संख्या 6 पर आएगी। उद्घोषणा सुनकर मुसाफिर सीधा प्लेटफाॅर्म संख्या 6 पर पहुंच गया और एक खाली जगह पर बैठ गया और सवारी गाडि़यों को आते जाते देख देख कर आह्लादित होने लगा और साथ ही इंतजार करने लगा कि हमारी रेलगाड़ी कब आएगी?

गाड़ी के पटना पहुंचने का समय शाम 6.45 और वहां से खुलने का समय 6.55 था पर गाड़ी अपने समय से करीब 30 मिनट देर हो चुकी थी। मुसाफिर भी अपने धुन में धुनी रमाकर बैठा था तभी मोबाइल में कंपन होने लगा और मोबाइल पर गुरुजी गुरुजी कहने वाले व्यक्ति का नम्बर दर्शा रहा था पर आज से पहले उनसे कभी कभी फोन पर बात नहीं हुई थी। मुसाफिर ने फोन का हरा बटन दबाया और मुसाफिर के कुछ बोलने से पहले ही आवाज आई :

—गुरुजी, कहां पर हैं आप।
—प्लेटफाॅर्म संख्या 6 पर, पश्चिमी सीढ़ी से नीचे उतरते ही बैठा हूं।
—ठीक है, मैं अभी पहुंच रहा हूं।

इतना बात होने के बाद मुसाफिर का आवारा मन सोचने लगा कि कैसा संयोग कि गाड़ी लेट है और गाड़ी लेट होने से एक कुछ पल की छोटी सी मिलने वाली है। यही बात मन में सोचते हुए मुसाफिर ईधर उधर देखने लगा तभी देखा कि सीढि़यों पर एक हेलमेट लिए हुए इंसान तेजी से उतर रहा है। न कभी बात हुई थी और न कभी मिलना हुआ था फिर भी दूर से ही दोनों ने एक दूसरे को ऐसे पहचान लिया जैसे न जाने कितनी बार मिले हों। पास आकर उन्होंने अभिवादन स्वरूप मुसाफिर का चरण-स्पर्श किया तो मुसाफिर का मन भावविभोर हो गया और उसके बाद शुरू हुआ अपने अपने किस्से कहानियों का दौर। कुछ बातें होती और फिर नजरें प्लेटफाॅर्म की तरफ चली जाती कि गाड़ी आ तो नहीं गई।

इन बातों के दौरान ही पांडे जी ने नींद वाले बाबा बड़े भाई बीरेंद्र जी को फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी तो हम आॅफिस में ही हैं और दानापुर में ही मिलने की कोशिश करेेंगे। दानापुर की बात सुनकर पांडे जी ने बीरेंद्र भैया को बताया कि गाड़ी वहां नहीं रुकेगी और ऐसा सुनकर उनकी तरफ से जवाब आया कि हम अभी आते हैं और बातचीत खत्म हुई। उसके बाद पता चला कि ये गाड़ी दानापुर में भी दाना चुगने के लिए रुक जाती है लेकिन अब तो दोनों तरफ से संवादों का आदान-प्रदान का दौर खत्म हो चुका था।

बातचीत का दौर खत्म होने के बाद फिर से यहां उपस्थित दोनों लोगों में बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ और घूमने के साथ साथ घर परिवार की बातें होने लगी। ईधर बातों का दौर जारी था और उधर समय बीतने के दौर भी जारी था। तभी अचानक पांडे जी के फोन की घंटी बजी और घंटी बजाने वाले थे बीरेंद्र भैया, मतलब कि वो भी दानापुर से अपना दाना छोड़कर पटना आ चुके थे। फोन पर बात खत्म भी नहीं हुई थी कि पटना बाबू पटना के प्लेटफाॅर्म संख्या 6 पर दौड़ते हुए आते दिख गए।

पास आते ही अभिवादन का दौर शुरू हुआ और उसके बाद हाल समाचार का सिलसिला आरंभ हो गया तभी घोषणा हुई कि गाड़ी संख्या 12435 प्लेटफाॅर्म संख्या 4 पर आने वाली है और ये सुनते ही अरे दौड़ो, भागो का दौर शुरू हुआ और दौड़ते भागते जल्दी ही सब लोग प्लेटफाॅर्म संख्या 6 से 4 पर पहुंच गए और वहां पहुंचते ही देखा कि ट्रेन जी भी मंद मंद गति से बढ़ते हुए आ रहे हैं और पास आकर ट्रेन जी के पहिये का घूर्णन रुका और वो स्थिर हो गए।

ट्रेन रुकते ही मुसाफिर पांडे जी के साथ अपने डिब्बे में सवार हुए और उधर पटना बाबू उर्फ नींद वाले बाबा मतलब कि बीरेंद्र भैया हेलमेट की सुरक्षा में नीचे प्लेटफाॅम पर ही खड़े रहे। डिब्बे में सवार होकर मुसाफिर किसी तरह अपनी सीट तक पहुंचे और अपने सीट पर पहले से कब्जा जमाए कब्जाधारी को हटाकर अपना कब्जा जमाया और उधर पांडेय जी अलविदा कहते हुए ट्रेन से नीचे उतरे। उधर पांडे जी गाड़ी से नीचे उतरे और ईधर बीरेंद्र भैया का फोन आया कि जरा दरवाजे पर आइए। मुसाफिर उठा और दूसरे दरवाजे की तरफ भागा। दरवाजे पर पहुंचते ही फोटो खींचने का दौर एक बार और शुरू हुआ। अभी फोटो कार्यक्रम शुरू ही हुआ कि ईधर ट्रेन जी की भोंपू बज गई और वो ठुमकते हुए मंद मंद आगे बढ़ने लगे। उधर ट्रेन जी आगे बढ़ते रहे ईधर फोटो कार्यक्रम चलता रहा फिर अरे खुल गई रे, खुल गई रे, भागो, दौड़ो करके मुसाफिर ट्रेन में सवार हो गया।

अब ई फोटुआ देखके ई मत कहिएगा कि अभ्यानन्द जी आपके चेहरे पर ये हवाइयां क्यों उड़ रही है, तो बात ऐसन है कि रेलगडि़या के खुल गेला पर फोटुआ खींचवो हल त ऐसने फोटुआ ने अैते कि बढि़या फोटू अैतै।


बाएं से : धर्मवीर पांडेय, मैं (अभ्यानन्द सिन्हा), बीरेंद्र कुमार






दूसरी नजर : बीरेंद्र कुमार


मिलन दिल से
आफिस की घड़ी शाम के पाँच बजा रहें थे और मैं आफिस में बज रहा था।
घन्न... घन्न... घन्न... मोबाइल साइलेंट मोड में मेज पर डाँस करने लगा। देखा कि महादेव का काॅल आ रहा है।

मै : कहाँ पहूचे?
महादेव : प्रणाम भैया जी, हनुमान नगर पार कर गये हैं।
मैं : गरीबरथ है ना...! अभी आॅफिस में हुँ, बोगी नंबर भेज दीजिए। कोशिश करता हूँ..
महादेव : हाँ.. गरीबरथ ही है। मैं भेजता हुँ।
मैं : ओके..

....यह एक साधारण बातचीत का अंश लग सकता है पर है नहीं। हजारों किलोमीटर से चलकर जब कोई आपका अपना पहुँचने की सूचना देता है तो सुनने वाले का मन मिलने को बेचैन ना हो... यह हो ही नहीं सकता।

...आफिस का काम अपनी दुर्तगति से समय को भगाये जा रहा है। कब साढे छह बज गये पता ही नही चला... और मै अभी आफिस मे ही हुँ।

6.45 बज चुके हैं ..फोन फिर से भनभनाया.. मुझे लगा शायद गुस्से में हो..। देखा कि सोनपुर वाले छोटे भाई Pandey Jee (धर्मवीर पांडेयधर्मवीर पांडेय ) का फोन आ रहा है...

मैं : हाँ, भाई, क्या हाल?
पाण्डेजी : भइया, परनाम करते हैं। आप कहाँ हैं? मै गुरुजी Abhyanand Sinha के साथ हूँ।
मैं : अभी... दानापुर हुँ... आफिस में... उनका फोन आया था, ये ट्रैन दानापुर रुकती हे क्या?

पाण्डेजी : भइया, आपको तो समय लगेगा । ट्रेन, अभी बख्तियारपुर आ रही है और ये शायद दानापुर नहीं रुकती है। देखिये हो सके तो..

मैं : अरे कोई नहीं... कोशिश करता हूँ पर सिर्फ ये शाम की ट्रैफिक का चक्कर हैं। ओके...।

मेरे आफिस से पटना जंक्शन करीब 15 किमी दूर है और शाम को आफिस छुटने के बाद का जबर ट्रैफिक.. लगभग 35 मिनट... करीब करीब का चक्कर हैं ट्रेन और मेरे स्टेशन पहुँचने और भाईयो के बीच।

आफिस से निकलते हुये 7.05 बज गये। दस मिनट तो हाइवे तक आने में लग गये अब बारी थी रेस 3 की... 7.15 और 7.30बजे पटना जंक्शन की पार्किंग मे बाइक खडी़ करते हुए, पाण्डेजी को फोन मिलाया....

—हैं... कि निकल लिये...
पाण्डेजी : भइया, पश्चिम की तरफ वाली ब्रिज के पास हैं। ट्रेन 6 नंबर पर लगने वाली है...

आगे कुछ सुना ही नहीं ... सीढियों पर भागते हुये चढा और दोड़ते हुए 6 नंबर प्लेटफार्म पर दौड़ लगा दी, देखा तो सामने दोनों भाई खड़े है...

ट्रेन से पहले पहूँच गया और मिलने की जिद्द को पूरा कर लिया। छोटे भाईयों ने आगे बढकर भाववश चरण स्पर्श कर मेरा मान बढाया और मैने स्नेहवश उन्हें अपने गले से लगा लिया..

एनांउसमेंट् - जयनगर से चलकर आनन्द विहार को जाने वाली गरीबरथ चार नंबर प्लेटफार्म पर आ रही है..... आंये! .. अरे भागो.. भाइयों ...
मेरे लिए यही #वैलेंटाइन_डे है ...







तीसरी नजर : धर्मवीर पांडेय


दिल से मिलन
पटना जंक्शन
14 फरवरी 2020
हर रोज की तरह पढ़ी जानी वाली एक किताब जिसे लोग फेसबुक कहते हैं, अकसर ही काम की वजह से वॉट्सएप्प का उपयोग अधिक होता हैं तो लगे हाथ फेसबुक वाली किताब को भी पढ़ ही लेता हूँ

09 फरवरी 2020, दिन रविवार और समय हो रहा था 11:05 AM पर रोजाना की तरह फ़ेसबुक चेक कर रहा था तभी एक पोस्ट पर नजर पड़ी, देखा तो नजर अचानक से चमक उठी क्यूँकि पोस्ट मेरे गुरुजी का था, जी हाँ मैं उनको गुरुजी कहकर संबोधित करता हूँ । पता नहीं क्यूँ लेकिन अंतर्मन से आवाज निकली कि मैं उनको गुरुजी कहूँ

तो हाँ मैं पोस्ट की बात कर रहा था पता चला कि गुरु जी गया (बिहार) आ गये हैं , हालांकि मुझे पहले से ही पता था कि गुरु जी बिहार आने वाले है तभी से मन में इच्छा थी कि इस बार जरूर मिलना होगा लेकिन कैसे ? तो इस संदर्भ में पता चला कि 14 फरवरी 2020 को दिल्ली के लिए पटना जंक्शन से शाम में वापसी होगी । मैनें अपने मोबाइल का कैलेण्डर खोला और रिमाइंडर सेट कर दिया और अपने काम में व्यस्त हो गया ।

दिन शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को रोजाना की तरह उठा, तैयार हुआ और अपने ऑफ़िस के लिए निकल गया एवं अपने काम में मशगूल हो गया । दिन में जैसे ही 12:00:01 PM बजा तभी मेरे मोबाइल में एक टोन बजा, देखा तो पता लगा कि किसी व्यक्ति विशेष का फोन नहीं बल्कि रिमाइंडर टोन है जो मैंने कैलेण्डर में रिमाइंडर सेट किया था । एक बार फिर से मन प्रसन्न था कि आज तो मेरे गुरुजी से मिलना होगा और अपने काम को थोड़ा अधिक तेजी से खत्म करना शुरु किया ।

इधर समय अपनी रफ्तार से चल रही थी दोपहर के 02 बजे भूख लगी, मैनें अपनी गाड़ी उठाई और घर की ओर निकल पड़ा । खाना खाया और थोडी देर आराम से बैठा एवं सोचा कि गुरु जी को मैसेज करता हूँ ।

फेसबुक मैसेंजर खोला :
दिन के 02:31 PM

मैं : गुरु जी प्रणाम
मैं : आप कहाँ हैं
थोड़ी सी देर में ही जवाब आता हैं  (गुरु जी) :
गुरुजी : शुभाशीष
गुरुजी : अभी बिहारशरीफ में हैं
मैं : पटना कब तक आयेंगे
गुरुजी : 6 बजे तक

इतनी सी बात के बाद मैंने फिर अपनी गाड़ी उठाई और ऑफ़िस की ओर निकल पड़ा और एक बार फिर से काम को निपटाने में लग गया और घड़ी की समय फिर से अपनी रफ्तार से चलने में मशगूल हो गई, मैं बार बार मोबाइल में समय को देख रहा था और सोच रहा था कि कितनी देर में सोनपुर से पटना जंक्शन पहुँच जाऊँगा और कितना पहले निकलना उचित होगा क्यूंकि इन दिनों हमारे क्षेत्र में ट्रैफिक जाम की समस्या बहुत ही अधिक हो गई है तो एक मित्र से पूछ ही लिया कि कितना समय लग जायेगा सोनपुर से पटना जंक्शन पहुँचने में तो दोस्त ने कहा कि वैसे तो आधा घंटा काफी है लेकिन जंक्शन जाना है तो 45-50 मिनट मान कर चलिये ।

इधर काम और बातो ही बातो में घड़ी में 05:00 PM बज गये और इधर फोन में वॉट्सएप्प संदेश मिला देखा तो गुरुजी का मैसेज था जिसमे ट्रेन संख्या और अन्य डिटेल थी और ये भी पता चला कि ट्रेन शाम के 06:45 PM को पटना से रवाना होगी तो मेरे अंदर भी मानो जैसे बिजली दौड़ पड़ी और काम को बंद किया एवं जल्दी ही ठीक 05:35 PM पर ऑफ़िस से सीधा पटना जंक्शन के लिए निकल पड़ा और गाड़ी को लगभग 50-60 KMPH की रफ्तार से दौड़ाने लगा क्यूँकि समय कम था और ट्रैफिक जाम में फँस ना जाऊ इस बात का ड़र भी था लेकिन संयोग कहिये कि बहुत अधिक परेशानी नहीं हुई और मैं कुछ ही देर में रेलवे स्टेशन के बाहर पहुँच गया ।

जल्दी से गाड़ी को पार्किंग में लगाया और पार्किंग टिकट को लेकर प्लेटफॉर्म की तरफ बढ़ा तो याद आया कि मैनें प्लेटफॉर्म टिकट तो लिया ही नहीं और ये सोच कर वही रुका और मोबाइल निकाल कर UTS App खोला और प्लेटफॉर्म टिकट बुक करने की कोशिश की लेकिन किसी कारण वश पैसे तो डेबिट हो गये लेकिन टिकट जेनरेट नहीं हो पाया, मन थोड़ा झल्लाया लेकिन कहा कि छोड़ जाने दे काउंटर से टिकट ले लेता हूँ और मैं टिकट काउंटर की ओर भागा और इसी क्रम में गुरुजी को फोन भी लगाया लेकिन मेरी कॉल पर उधर से कोई उत्तर नहीं मिला लेकिन तुरंत ही उधर से पुनः कॉल आया, फोन उठाते ही मैने पूछा कि गुरुजी कहाँ हो तो बोले कि प्लेटफॉर्म नं 06 पर पश्चिम की ओर सीढियों के पास ही हूँ मैनें भी कहा कि आता हूँ ।

इधर टिकट लिया और सीधा प्लेटफॉर्म की ओर भागा और 06 नं की सीढियों से उतरने के क्रम में ही मुझे मेरे गुरुजी दिखाई पड़ गये, उन्होंने भी मुझे एक ही नजर में पहचान लिया । मैं भी जल्दी से नीचे उतरकर उनके चरण स्पर्श किये, शुभाशीष मिला और फिर बातों का सिलसिला शुरु हो गया । गुरुजी को विश्वास नहीं था कि मैं आऊँगा लेकिन मैने तो ठान रखी थी ।

कुछ घर की बातें हुई तो कुछ काम की तो कुछ घुमक्कड़ी की । बातों के क्रम में पूछा कि बीरेंद्र भैया को पता है ना कि आप आज दिल्ली जा रहे हैं वो मिलने आयेंगे ना, तो गुरुजी बोले कि हाँ उनको फोन किया था वो अपने ऑफ़िस के काम में व्यस्त हैं लेकिन आयेंगे ऐसा बोला हैं । लगे हाथ मैनें भी बीरेंद्र भैया को फोन लगा दिया ।

मैं : भैया प्रणाम
बीरेंद्र भैया : खुश रहिये
मैं : कहाँ है आप
बीरेंद्र भैया : ऑफ़िस में
मैं : मैं तो पटना जंक्शन पर हूँ गुरुजी के साथ
बीरेंद्र भैया : मैं भी आने की कोशिश करता हूँ
मैं : मैनें कहा आ जाईये
बीरेंद्र भैया : ट्रेन दानापुर स्टेशन पर रुकती हैं क्या ?
मैं : जानकारी के आभाव में बोल दिया कि नहीं रुकती हैं

और फोन की वार्तालाप का विराम हो गया, तभी गुरुजी बोले कि गाड़ी तो दानापुर स्टेशन पर रुकती हैं तो मैंने कहा कि रुकती है तो ठीक है लेकिन बीरेंद्र भैया को बताने की कोई जरुरत नहीं है क्यूंकि इसी बहाने बीरेंद्र भैया से भी मुलाकात हो जायेगी, इस बात पर गुरुजी थोड़ा मुस्काये और हम फिर से इधर उधर की बातों में मशगूल हो गये ।

इधर ट्रेन भी अपने निर्धारित समय से लगभग 01 घंटे की देरी से चल रही थी । थोडी ही देर में एक बार फिर से मेरा फोन बजा, फोन पर दुसरी ओर बीरेंद्र भैया बोल रहे थे बोले कि अभी है कि निकल लिये, मैंने कहा कि नहीं जल्दी आ जाईये अभी ट्रेन अपने समय से थोड़ी देरी से चल रही है । बीरेंद्र भैया बोले कि किस प्लेटफॉर्म पर है, मैने कहा कि 06 नं. प्लेटफॉर्म पर है पश्चिम की ओर और इतने में ही फोन पर बात करते हुए सीढियों से नीचे उतरे और पूछे किस तरफ है तो मैने भी दूर से हाथ ऊपर उठाकर हाथ हिलाते हुए कहा कि पश्चिम की तरफ देखिये और फिर आगे बढ़ते हुए मैनें और गुरुजी ने झुक कर चरण स्पर्श किया और स्नेह स्वरुप आशीर्वाद एवं प्यार मिला

इतने में ही एक उद्घोषणा होती हैं कि यात्रीगण कृप्या ध्यान दें ट्रेन नं. 12435 जयनगर-आनंद विहार गरीब रथ एक्सप्रेस जो जयनगर से चलकर समस्तीपुर - बरौनी - पटना - प्रयागराज - कानपुर जँ0 होते हुए आनंद विहार को जाने वाली प्लेटफॉर्म संख्या 04 पार आ रही है, इतना सुनते ही सभी ने कहा कि भागों चलते हैं 04 नं. प्लेटफॉर्म पर और उक्त प्लेटफॉर्म पर पहुँचते ही ट्रेन भी सामने से आती दिखाई पड़ी ।

हम सभी थोड़ी देर फोटो सेशन में व्यस्त हो गये, 2-4 फोटो लेने के बाद अपनी निर्धारित कोच की तरफ भागे और फिर कुछ पल के सुनहरे और अनमोल साथ के बाद मैने और बीरेंद्र भैया ने गुरुजी को अलविदा कहा ।

ट्रेन के जाने के बाद थोड़ी देर तक मैं और बीरेंद्र भैया साथ में रहे, चाय पी और कुछ बातें की । कुछ कीमती समय बिताने के बाद बीरेंद्र से भी अलविदा लिया, प्रणाम किया भैया ने गले लगा कर मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया।

मेरे लिए आज का दिन एक यादगार दिन था, आज मैं अपने गुरुजी से मिला था । घुमक्कड़ी समुदाय में मेरे गुरुजी महादेव के नाम से प्रचलित है, जी हाँ मैं Abhyanand Sinha (अभ्यानन्द सिन्हा) की बात कर रहा हूँ और मेरे प्रिय भैया Birendra Kumar (बीरेंद्र कुमार) ।

मेरी खुशी की कोई सीमा नहीं थी, मैं बहुत प्रसन्न था । इस अनमोल पल को कैदकर अपने घर की निकल पड़ा ।

धन्यवाद







बाएं से : धर्मवीर पांडेय, मैं (अभ्यानन्द सिन्हा), बीरेंद्र कुमार


बाएं से : धर्मवीर पांडेय, मैं (अभ्यानन्द सिन्हा), बीरेंद्र कुमार

बाएं से : धर्मवीर पांडेय, मैं (अभ्यानन्द सिन्हा), बीरेंद्र कुमार


बाएं से : धर्मवीर पांडेय, मैं (अभ्यानन्द सिन्हा), बीरेंद्र कुमार


पटना जंक्शन के बाहर का एक दृश्य और मैं भी


पटना जंक्शन के बाहर का एक दृश्य


पटना जंक्शन के बाहर का एक दृश्य




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