Friday, June 11, 2021

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण') (The Helmet story)

एक विरहन की प्रेम कथा ('अथ श्री हेलमेट पुराण'
(The Helmet 
story)



जी हां, मैं वही हूं, जिसे हर बाइक खरीदने वाला बड़े अरमान के साथ अपने घर ले जाता है और कहीं खूंटी पर टांग देता है या किसी मेज के नीचे रख देता है। अरे जब मुझे प्रयोग ही नहीं करना था तो अपने घर में मुझे क्या घर की शोभा बढ़ाने के लिए लाए हो। मुझे अगर तुम केवल अपने घर की शोभा ही बढ़ाने के लिए लाए थे तो उससे अच्छा मुझे दुकान में ही पड़े रहने देता, कम से कम मैं वहां अपने अन्य साथियों के साथ तो रहता था। मुझे अपने दोस्तों से अलग करके अपने घर लाते समय तो तुम कह रहे थे कि मैं कहीं भी जाऊंगा तो तुमको अपने साथ ही लेकर जाऊंगा और मैंने भी वादा किया था तुमसे कि जब तक मैं तुम्हारे साथ रहूंगा तुमको कुछ नहीं होने दूंगा, पर तुम तो घर लाकर मुझे भूल ही गए।

तुम ठीक करते हो जो मुझे अपने साथ नहीं ले जाते क्योंकि जब मैं साथ होता हूं तो मैं तुम्हारे बालों को खराब कर देता हूं। तुम्हारे चमकते हुए चेहरे के ऊपर भी पर्दा कर देता हूं। अगर तुम ले भी जाते हो मुझे तो कभी पीछे बांध देते हो, कभी केहूनी में लटका लेते हो, कभी टंकी पर तो कभी साइड मिरर में लटका देते हो, पर वादा तो सिर पर रखने का था न। बोलो न याद है न वो वादा जो तुमने मुझे लाते समय किया था, भूल गए न तुम सब कुछ। तुम्हें पता है कि तुम्हारे ऐसा करने से मैं कितना अकेला महसूस करता हूं, कितना दर्द होता है और तुम्हारी लापरवाही के कारण ही मैं तुमसे किए गए वादे को पूरा करने में असमर्थ हो जाता हूं।

क्या तुम केवल मुझे इसलिए अपने घर लाए थे कि मैं तुमको कुछ जुर्माने से बचा सकूं तो क्या जरूरत थी मुझे लाने की। जो खर्च तुमने मुझे लाने में किया उसी पैसे से तुम जुर्माने की राशि भर देते। तुमको लगता है कि जब मैं तेरे सिर पर सजा होता हूं तो बोझ बना रहता हूं इसलिए मुझे टंकी पर रख देते हो। पैर में कोई कांटा, पत्थर न चुभ जाए इसलिए तुम चप्पल और जूते तो पहन लेते हो पर सिर के बाल खराब न हो जाएं इसलिए मुझे खुद से दूर कर देते हो, तुम्हारी इस करतूत पर मुझे बहुत रोना आता है, काश कि तुम मेरे निर्जीव आंसुओं को देख पाते।

मैं बोझ नहीं हूं। जब मैं तुम्हारे सिर पर होता हूं तो एक साथ तुम्हें कई चीजों से बचाता हूं। तुमको पुलिस के जुर्माने से बचाता हूं, तुम्हारे सिर को ठंडक और धूप से बचाता हूं, तुम्हारी आंखों को धूल से भी बचाता हूं, बरसात भी होने लग जाए तो तुम्हारे सिर को भींगने से बचा लेता हूं, पर तुम फिर भी मुझसे प्यार नहीं करते, मुझे खुद से दूर ही रखते हो। कितना रोता हूं मैं तुम्हारे ऐसा करने पर, कभी मेरे दुख को समझते हुए मुझे अपने सिर पर धारण कर लो और साथ में बेल्ट भी बांध लो। फिर देखो दुकान से लाते समय हमने जो वादा तुमसे किया था वो कभी नहीं टूटेगा, पर तुम मानते ही नहीं, मुझे अकेला तड़पने के लिए छोड़ देते हो और खुद मुसीबत में फंसते हो।

कभी सोचा है मेरे बारे में कि मैं कितना दर्द में जीता हूं। ठीक है तुम मेरे बारे में कभी मत सोचना पर तुम अपने पत्नी-बच्चे, माता-पिता, भाई-बहन, परिवार-संबंधी, दोस्तों-शुभचिंतकों के लिए सोच लिया करो। जब तुमको चोट लगती है और वो रोते हैं तो मैं किसी खूंटी पर टंगा हुआ या मेज के नीचे बैठा हुआ उन सबको रोते हुए देखता हूं तो मुझे उस समय कितना दर्द होता है, उस समय पर मैं कुछ बोल नहीं सकता, कुछ कह नहीं सकता, सहानुभूति भी प्रदर्शित नहीं कर पाता क्योंकि मैं निर्जीव हूं न और निर्जीव की परवाह कौन करता है। ठीक है तुम मेरी परवाह मत करो, पर तुम्हारे बाहर जाने पर घर में तुम्हारा इंतजार करते हैं उनकी परवाह कर लिया करो, मैं दुखी नहीं होऊंगा।
प्लीज कहीं भी जाओ तो मुझे साथ ले जाओ अपने सिर पर बांधकर और मैं तुमसे दूर नहीं हो पाऊं इसलिए बेल्ट लगाकर बांध लिया करो जिससे मैं तुमसे अलग न हो पाऊं। मैं सदा तुम्हारे साथ रहूंगा, तुम्हारी सुरक्षा करूंगा और बदले में कुछ नहीं लूंगा, बस अपने साथ रखना, अपने से दूर मत करना मुझे।
 
बाइक खरीदते समय हम हों या कोई भी हो सभी को लगता है कि इतना महंगा हेलमेट क्यों लें सस्ते से काम चला लेते हैं, महंगा लेकर पैसे की बर्बादी क्यों करें। 60000 से 100000 तक की बाइक के लिए 1200 से 1500 का हेलमेट महंगा तो नहीं है। आगे सबका अपना अपना सिर है, अपनी अपनी मरजी। हम तो पहले भी हेलमेट लगाते थे, अब भी लगाएंगे, अब तो और अच्छे से ठोक-पीट कर लगाएंगे। हेलमेट हैं तो हम हैं, हेलमेट नहीं तो हम भी नहीं।


नोट : शीर्षक 'अथ श्री हेलमेट पुराण' आदरणीय देवेन्द्र कोठारी (Devendra Kothari) द्वारा दिया गया है।

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