Sunday, February 25, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर (Kalbhairav Temple and Siddhvat Temple)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर (Kalbhairav Temple and Siddhvat Temple)



उज्जैन के दर्शनीय स्थानों के भ्रमण की श्रृंखला में महाकालेश्वर मंदिर, विक्रमादित्य का टीला, हरसिद्धी मंदिर, भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर जैसी जगहों को देखने के पश्चात आइए अब हम आपको कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम लेकर चलते हैं। गढ़कालिका मंदिर में दर्शन के पश्चात आॅटो वाला हमें अगले पड़ाव की तरफ ले चला। हमारे ये पूछने पर कि अब यहां के बाद आप किस जगह पर ले चलेंगे तो उनका जवाब मिला कि अब हम पहले कालभैरव मंदिर जाएंगे उसके बाद सिद्धवट मंदिर। हम आॅटो वाले से बातें करते हुए चले जा रहे थे। करीब दस-पंद्रह मिनट के सफर के बाद दूर से ही एक मंदिर की तरफ इशारा करते हुए उन्होंने मुझे बताया कि वो मंदिर ही कालभैरव मंदिर है। साथ ही उन महाशय ने भी बताया कि यहां कालभैरव को प्रसाद के रूप में शराब चढ़ाया जाता है। मैंने उनसे कहा कि भाई मैं शराब नहीं पीता इसलिए मुझे शराब जैसी चीजों से कोई मतलब नहीं है। तब उन्होंने कहा कि आने वाला हर भक्त बाबा को शराब का भोग जरूर लगाता है इसलिए आप भी अपनी तरफ से बाबा को भोग लगा दीजिएगा। उनकी बातों पर मैंने कहा कि ठीक है भोग तो लगा देंगे पर हम उस भोग का करेंगे क्या क्योंकि मैं मदिरापान नहीं करता तो उन्होंने कहा कि कोई बात नहीं आप हमें दे दीजिएगा। ठीक है बोलकर मैं चुप रहना ही उचित समझा और चुप बैठ गया। ऐसे ही चलते हुए कुछ देर में हम मंदिर के पास पहुंच गए।

काल भैरव मंदिर : उज्जैन शहर से आठ किलोमीटर दूर भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थापित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव यहां अपने भैरव स्वरूप में विराजते हैं। काल भैरव के इस मंदिर में मुख्य रूप से मदिरा का ही प्रसाद चढ़ता है। मंदिर के पुजारी भक्तों के द्वारा चढ़ाए गए प्रसाद को किसी बरतन में डाल कर भगवान के मुख से लगा देते हैं और देखते-देखते ही लोगों की आंखों के सामने जो घटना घटित होता है वो किसी चमत्कार से कम नहीं है। एक ऐसा चमत्कार जिसे देखकर भी यकीन करना मुश्किल है क्योंकि कुछ ही देर में मदिरा से लबालब भरा हुआ बर्तन खाली हो जाता है। बाबा काल भैरव के इस मंदिर एक और बहुत ही मनोहारी चीज है जो यहां आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है, वह है मंदिर परिसर में ही मौजूद दीप-स्तंभ। ऐसा ही दीपस्तंभ हरसिद्धी मंदिर में भी है।

कालभैरव के इस मंदिर में दिन में दो बार आरती होती है। पहली बार आरती सुबह आठ बजे के आस-पास होती है और दूसरी बार की आरती रात के आठ बजे के करीब। कालभैरव को महाकाल के नगर उज्जैन का सेनापति भी कहा जाता है। यहां के बारे में कहा जाता है कि यहां मराठा काल में महादजी सिंधिया ने युद्ध में विजय के लिए भगवान को अपनी पगड़ी अर्पित की थी। पानीपत के युद्ध में मराठों की पराजय के बाद तत्कालीन शासक महादजी सिंधिया ने राज्य की पुर्नस्थापना के लिए भगवान के सामने पगड़ी रख दी थी और उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि युद्ध में विजयी होने के बाद वे मंदिर का जीर्णोद्धार करेंगे। कालभैरव की कृपा से महादजी सिंधिया युद्ध में विजय हासिल करते चले गए और उसके बाद उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उसके बाद तब से लेकर आज तक मराठा सरदारों की पगड़ी भगवान कालभैरव के शीश पर पहनाई जाती है।

बाबा कालभैरव के भक्तों के लिए उज्जैन का भैरो मंदिर किसी धाम से कम नहीं। सदियों पुराने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके दर्शन के बिना महाकाल की पूजा भी अधूरी मानी जाती है। अघोरी जहां अपने इष्टदेव की आराधना के लिए साल भर कालाष्टमी का इंतजार करते हैं और आम भक्त भी इस दिन उनके आगे शीश नवा कर आशीर्वाद पाना नहीं भूलते हैं। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि अगर कोई उज्जैन आकर महाकाल के दर्शन करे और कालभैरव न आए तो उसे महाकाल के दर्शन का आधा लाभ ही मिलता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक कालभैरव को ये वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी।

इस मंदिर के बारे में एक और कहानी कही जाती है। स्कंद पुराण के मुताबिक चारों वेदों के रचियता ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना करने का फैसला किया तो परेशान देवता उन्हें रोकने के लिए महादेव की शरण में गए। उनका मानना था कि सृष्टि के लिए पांचवें वेद की रचना ठीक नहीं है लेकिन ब्रह्मा जी ने महादेव की भी बात नहीं मानी। कहते हैं इस बात पर शिव क्रोधित हो गए। गुस्से के कारण उनके तीसरे नेत्र से एक ज्वाला प्रकट हुई और इसी ज्वाला ने कालभैरव का रौद्ररूप धारण किया और ब्रह्माजी के पांचवें सिर को धड़ से अलग कर दिया। कालभैरव ने ब्रह्माजी का घमंड तो दूर कर दिया लेकिन उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भैरव दर दर भटके लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। फिर उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना की। शिव ने उन्हें क्षिप्रा नदी में स्नान कर तपस्या करने को कहा। ऐसा करने पर कालभैरव को दोष से मुक्ति मिली और वो सदा के लिए उज्जैन में ही विराजमान हो गए।

मंदिर के पास पहुंचकर जैसे ही मैं आॅटो से उतरा तो आस-पास के दुकान वालों ने आकर ऐसे घेर लिया जैसे कि मैं कोई बहुत बड़ा अपराधी और ये सब प्रशासन के लोग हैं जो कि अपराधी को भागने के लिए रोक कर खड़े हैं। सभी दुकान वाले आपाधापी बस एक ही वाक्य कह रहे थे कि कितने वाला प्रसाद (मदिरा) चाहिए। मैंने उनसे केवल इतना ही कहा कि भाई मैं दर्शन करने के लिए यहां आया हूं, मदिरा पीने और पिलाने नहीं आया हूं। उनका जवाब मिला कि सर यही तो यहां का प्रसाद है, आप मत पीजिएगा लेकिन प्रसाद चढ़ाने के बाद किसी को भी दे दीजिएगा उसके काम आ जाएगा। दाम पूछने पर पता चला कि 150 से कम का कुछ है ही नहीं लेकिन बात उसके आधे पर आकर बन गई और हम भी एक टोकरी में फूल, मिठाई और मदिरा की बोतल लेकर चल पड़े काल भैरव के दर्शन करने। मैं यहां पैसे पहले ही देना चाह रहा था कि क्या पता आने के बाद दुकान वाला ये कहने लगे कि नहीं जी इतने में नहीं इतने में बोला था पर दुकान वाले ने पैसे पहले नहीं लिए और बोला कि आप आकर ही दीजिएगा और आने के बाद ज्यादा नहीं मांगेंगे।

टोकरी लेकर हम आगे बढ़े और मुख्य द्वार से अंदर जाते ही भयंकर भीड़ से सामना हुआ। भीड़ इतनी कि पैर रखने तक की जगह नहीं थी। कुछ लोग इतनी जल्दी में थे कि दूसरे के कंधे पर चढ़कर आगे बढ़ जाना चाहते थे पर ये भी संभव नहीं था। इतनी भीड़ देखकर हम लाइन में लगने के बजाय कुछ देर इंतजार करना ही उचित समझ कर वहीं बगल में खड़े होकर भीड़ कम होने का इंतजार करने लगे। कुछ ही देर में भीड़ में कमी आई तो मैं भी लाइन मंे खड़ा हो गया। भीड़ धीरे-धीरे आगे बढ़ती और हम फिर सीढि़यों तक पहुंच गए। पंद्रह बीस सीढि़यां चढ़ने के बाद आखिकर हम भी उस जगह पहुंच गए जहां से कालभैरव के दर्शन होते हैं। कुछ मिनट पहले की भीड़ में यदि हम यहां आते तो शायद सेकेण्ड भर का समय मिलता यहां रुकने का लेकिन भीड़ कम होने पर आने का ये फायदा हुआ कि लगभग मिनट भर मैं यहां आराम से खड़ा रह सका। कालभैरव के दर्शन के पश्चात कुछ पल मंदिर के परिसर में बिताने के बाद हम आगे के सफर पर चल पड़े। मंदिर से बाहर निकलकर दुकान वाले को पैसे देकर हम आॅटो में बैठ गए और अपने अगले पड़ाव सिद्धवट मंदिर की तरफ चल पड़े।

कालभैरव से सिद्धवट मंदिर जाने के रास्ते में आॅटो चालक ने मदिरा की बोतल मांग की तो मैंने उससे साफ कह दिया कि बोतल मैं आपके आॅटो में ही छोड़ कर जाऊंगा और जब तक आप मुझे हर जगह घूमा नहीं देते तब तक बोतल को हाथ नहीं लगाएंगे वरना मैं इसके पैसे काट लूंगा। पहले तो उसने कहा कि आप डरे नहीं इतने से कुछ नहीं होगा इसलिए आप मुझे बोतल दे दीजिए। उसकी इस बात के बाद मैंने बोतल को बैग में डाल कर ताला लगा दिया, जिससे कि जब मैं अन्य मंदिरों में जाऊं जब तक ये महाशय उसे गटक न जाएं। कुछ ही मिनटों के सफर के बाद हम कालभैरव से सिद्धवट मंदिर पहुंच गए।

सिद्धवट मंदिर : उज्जैन के भैरवगढ़ के पूर्व में क्षिप्रा के तट पर प्रचीन सिद्धवट का स्थान है। इसे शक्तिभेद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पुराणों में इस स्थान की महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदू मान्यता के अनुसार चार वट वृक्षों का महत्व अधिक है। ये चारों वट वृक्ष अक्षयवट, वंशीवट, बौद्धवट और सिद्धवट है और इनकी प्राचीनता के बारे में किसी को नहीं पता। स्कंद पुराण में वर्णित कथा के अनुसार माता पार्वती द्वारा लगाए गए इस वट की शिव के रूप में पूजा होती है। पार्वती के पुत्र कार्तिकस्वामी को यहीं पर सेनापति नियुक्त किया गया था। यहीं उन्होंने तारकासुर का वध किया था। संसार में केवल चार ही पवित्र वट वृक्ष हैं। प्रयाग (इलाहाबाद) में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट जिसे बौद्धवट भी कहा जाता है और उज्जैन में पवित्र सिद्धवट है। संतति, संपत्ति और सद्गति ये तीन तरह की सिद्धियां हैं। इन तीनों की प्राप्ति के लिए यहाँ पूजन किया जाता है। सद्गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान किया जाता है। संपत्ति अर्थात लक्ष्मी कार्य के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया (स्वस्तिक) बनाया जाता है। यह वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है। यहाँ पर कालसर्प शांति का विशेष महत्व है, इसीलिए कालसर्प दोष की भी पूजा होती है। वर्तमान में इस सिद्धवट को कर्मकांड, मोक्षकर्म, पिंडदान, कालसर्प दोष पूजा एवं अंत्येष्टि के लिए प्रमुख स्थान माना जाता है।

मंदिर के पास पहुंच कर और जगहों की तरह यहां भी हमने बैग आॅटो में ही छोड़ कर मंदिर की तरफ चल दिया। एक बड़े से गलियारे से होते हुए हम उस पवित्र वृक्ष के पास पहुंच गए। मंदिर और वटवृक्ष बिल्कुल क्षिप्रा के किनारे पर बना है। देखकर यही लगता है कि अगली बरसात में पेड़ जरूर नदी की धार में समा जाएगा पर ऐसा होता नहीं है और सदियों से पेड़ भी वहीं है और नदी भी वहीं हैं। नदी के किनारे पर भी गढ़कालिका मंदिर और कालभैरव मंदिर की तरह यहां भी एक दीपस्तंभ बना हुआ था। मंदिर में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी। गिनती के बीस-पच्चीस लोग भी नहीं थे इसलिए थोड़ी खुशी हुई कि चलिए यहां आराम से सब कुछ देखा जाएगा पर ऐसा हो नहीं सका। यहां भीड़ न होने की खुशी को यहां के पुजारियों ने ज्यादा देर तक टिकने नहीं दिया। जैसा कि अन्य मंदिरों में होता है कि पुजारी आतंक मचाए रखते हैं, यहां भी वही हाल था। पुजारी हर कदम पर सुरसा की तरह मुंह बाए खड़े थे। यहां आने वाले श्रद्धालुओं से जबरदस्ती पैसे लेने का सारा स्वांग रच रखा था। यदि आप पुजारी को पैसे देंगे तो आप फूल और प्रसाद चढ़ा सकते हैं वरना आगे बढ़ते रहे। भीड़ ज्यादा थी नहीं इसलिए मेरी बारी भी जल्दी ही आ गई। पहुंचते ही पुजारियों के आतंक से सामना हुआ। उन लोगों ने पहला सवाल यही किया कि कितने वाली पूजा करवानी है 51, 101 या 251 वाला। इस बात से एक बात और याद आ गई कि एक बार मैं शेविंग करवाने सैलून में गया, बेचारे ने हमसे पूछ लिया कि कितने वाला बनाऊं 20, 30 या 50 वाला। मैंने कहा अगर पांच वाला हो तो वही बना दो भाई काम तो उतना ही होना है। मेरे इस जवाब से बेचारा दुकानदार खुद ही शर्मिंदा हो गया था। उसी तरह यहां भी हमने पुजारियों को वही जवाब दिया कि देख लीजिए गरीब आदमी हूं कोई 11 या 15 वाला हो तो काम चला लीजिए वरना दर्शन तो हमने कर ही लिया, फूल और माला उसी दुकान वाले को दे देंगे जहां से खरीदा था। मेरे इस जवाब पर पुजारी भड़क गया कि पता नहीं कैसे कैसे लोग चले आते हैं। पैसे होते नहीं और मंदिर में पूजा करने आते हैं। उनकी इन बातों ने मेरे मन में भी पूरी तरह से आग लगा दिया। मैंने भी उनको कहा पता नहीं कैसे-कैसे लोग पुजारी बन बैठे हैं पैसे के हिसाब से पूजा करवाते हैं, दिन रात लोगों को लूटते हैं फिर भी भिखारी बने रहते हैं। खैर अब वहां पूजा तो होना था नहीं तो बहस-विवाद के बाद भी मैं वहीं टिका रहा और दो-चार लोगों को उन पोंगा-पंडितों और गुरुघंटालों से लुटते हुए देखता रहा और फिर मंदिर से बाहर आकर दरवाजे पर मत्था टेक कर बाहर आ गया।

वहां से बाहर आकर कुछ देर सीढि़यों पर बैठकर मां शिप्रा को देखता रहा और खुद से सवाल पूछता रहा कि क्या यह पैसे के हिसाब वाली पूजा ठीक है। क्या देवों के दर्शन के हिसाब से पैसे देने होंगे। जो जितना देर दर्शन करेगा, जो जितनी बड़ी माला चढ़ाएगा, जो जितना देर मंदिर में बिताएगा उसी हिसाब से उसे भुगताना करना पड़ेगा। बहुत सोचा विचारा पर कोई जवाब नहीं मिला और उसी सवालों के भंवर में डूबते-उतराते वहां से उठकर आगेे बढ़ गया। इस मंदिर के पास शिप्रा की एक और खासियत है पूरे उज्जैन क्षेत्र में बहने के अनुसार शिप्रा की गहराई इस मंदिर के पास सबसे ज्यादा है। अपने अनसुलझे सवालों के साथ मैं आगे बढ़ा तो एक छोटा सा मंदिर और दिख गया। कुछ देर पहले हुए वाद-विवाद से मन इतना दुखी हो गया था कि इस मंदिर में घुसने का मन नहीं हो रहा था, पर पंडे पुजारियों की करतूतें ऐसी होती है कि प्रवेश करने के बाद निकालने तक इस तरह से बैरिकेटिंग कर देते हैं कि इंसान को न चाहकर हर छोटे-बड़े मंदिरों में प्रवेश करना ही पड़ता है चाहे वो मंदिर हो या मंदिर परिसर में ही बनाये गए दूसरे मंदिर जहां कुछ पुजारी बैठ कर लोगों को उनकी मनोकामना पूर्ण करवाते हैं। यहां भी यही हुआ न चाहते हुए भी हमने उस छोटे से मंदिर में प्रवेश किया जहां लोगों मनोकामनाएं पूर्ण करवाई जा रही थी। हम भी वहां से गुजरे और आगे बढ़ते चले गए क्योंकि मेरी तो कोई मनोकामना थी ही नहीं तो पूरी क्या करवाते और जिस गलियारे से घुसे थे उसी गलियारे से होते हुए वापस फूल वाले की दुकान पर पहुंचे और उनको उनका फूल वापस किया और फूल के पैसे देकर उदास मन से आॅटो में बैठ गया। मेरे आॅटो में बैठते ही आॅटो वाले ने आॅटो स्टार्ट किया और आगे के सफर (मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम) पर चल पड़ा जिसका वृत्तांत हम आपको अगले भाग में बताएंगे। तब तक के लिए आज्ञा दीजिए, बस जल्दी ही मिलते हैं अगले भाग के साथ।

धन्यवाद।



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :



रास्ते से दिखाई देता कालभैरव मंदिर

रास्ते में एक मंदिर

कालभैरव मंदिर का एक दृश्य

कालभैरव मंदिर परिसर

दर्शन के लिए आए लोगों की भीड़

कालभैरव का प्रसाद

भीड़ का एक दृश्य ये भी

कालभैरव मंदिर परिसर में दीप-स्तंभ

कालभैरव मंदिर का प्रवेश द्वार

मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की भीड़

सिद्धवट मंदिर परिसर

सिद्धवट मंदिर परिसर से क्षिप्रा का एक दृश्य

सिद्धवट मंदिर में क्षिप्रा के दूसरी तरफ स्थित एक मंदिर

सिद्धवट मंदिर परिसर में दीप-स्तंभ

सिद्धवट मंदिर परिसर से क्षिप्रा का एक दृश्य

सिद्धवट मंदिर परिसर से क्षिप्रा को पार करता एक व्यक्ति

सिद्धवट

आकाश में बादलों का डेरा

सिद्धवट मंदिर

सिद्धवट मंदिर का प्रवेश द्वार

इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास















15 comments:

  1. आपका ऑटो वाला मजेदार आदमी लगा 😃😃
    कालभैरव के प्रसाद का सीन कुछ हजम ही नहीं हो रहा, ऐसे तो अच्छा खासा बिजनेस चल रहा है। लगता है कालभैरव की जो मुर्ति वो ऐसे पत्थर से बनी है जो पानी को सोख सकता हो, या उस मुर्ति को भीतर से खोखला बनाया गया हो और वो प्रसाद कहीं इक्कठा होकर फिर बिकने आ जाता हो।🤔
    सिद्धवट तो बहुत छोटा लग रहा जैसे दिवार पर उगा हुआ हो।
    इन पंडे पुजारीयों के चक्कर में मैं कहीं दर्शन नहीं करता, तीर्थ पर पहुँच गये भीतर मंदिर भी घुम-टहल देख लेते, फिर हाथ जोड़कर निकल जाते है।

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    1. आॅटो वाला सच में मजेदार था, जब उसके हाथ प्रसाद लगा था तो वो पल देखने लायक था, काश कोई फोटो लेने वाला एक व्यक्ति साथ में होता। हजम तो करना ही पड़ेगा आपको नहीं तो हाजमोला खिलाऊंगा आपको, आपने ही दिया था हरिद्वार में। अधिकतर बड़े मंदिरों में पुजारी जोर-जबरदस्ती करते हैं। खैर अब मंदिरों को दूर से ही प्रणाम करना पड़ रहा है और ऐसे जगह पर जाने की योजना बनानी पड़ेगी जहां पुजारी लोगों से वास्ता नहीं हो।

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  2. सिद्धवट मंदिर में जो मुझे एक बात अखरी वह थी मंदिर में विक्रम वेताल सीरियल की एक फोटो का लगा होना । बाकी पंडों पुजारियों को तो सीधा जवाब होता है "दर्शन" के लिए आया हूँ । लेकिन यह भी कहते हैं कि गुरु ,वैद्य, व ईश्वर के दरबार में खाली हाथ नहीं जाना चाहिए इसलिए मंदिर के दानपात्र में कुछ न कुछ जरूर डालता हूँ व फूल माला भी हिसाब से मिली तो ले लेता हूँ ।

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    1. सर जी दानपात्र में डालने वाली बात तो अलग है पर उनका हो व्यवहार होता है वो असहनीय होता हैे। फूल माला मैं तो जरूर लेता हूं उससे एक काम ये भी होता है कि फूल बेचने वाले को कुछ हासिल होता है। हां आजकल मंदिरों में आधुनिक गुरुओं की भी फोटो लगने लगी है वो भी अच्छा नहीं लगता।

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  3. इस मंदिर के बारे में एक और कहानी कही जाती है। स्कंद पुराण के मुताबिक चारों वेदों के रचियता ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना करने का फैसला किया तो परेशान देवता उन्हें रोकने के लिए महादेव की शरण में गए। उनका मानना था कि सृष्टि के लिए पांचवें वेद की रचना ठीक नहीं है लेकिन ब्रह्मा जी ने महादेव की भी बात नहीं मानी। कहते हैं इस बात पर शिव क्रोधित हो गए। गुस्से के कारण उनके तीसरे नेत्र से एक ज्वाला प्रकट हुई और इसी ज्वाला ने कालभैरव का रौद्ररूप धारण किया और ब्रह्माजी के पांचवें सिर को धड़ से अलग कर दिया। कालभैरव ने ब्रह्माजी का घमंड तो दूर कर दिया लेकिन उन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भैरव दर दर भटके लेकिन उन्हें मुक्ति नहीं मिली। फिर उन्होंने अपने आराध्य शिव की आराधना की। शिव ने उन्हें क्षिप्रा नदी में स्नान कर तपस्या करने को कहा। ऐसा करने पर कालभैरव को दोष से मुक्ति मिली और वो सदा के लिए उज्जैन में ही विराजमान हो गए। बहुत ही बेहतरीन जानकारी ! सुन्दर फोटो लिए हैं आपने

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    1. बहुत सारा धन्यवाद आपको

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  4. अभय सर जी आटो वाला वास्तव में मजेदार किरदार था लेकिन आपने आटो वाले का दिल तोड़ दिया।
    अनुराग जी आपको यह बात हजम करनी ही होगी यह कोई पानी सोखने वाला पत्थर नहीं है क्योंकि काफी समय पहले मेरे पिताजी भी कालभैरव मंदिर गये हुए थे तो उन्होंने बताया था कि यदि उनको प्रसाद पीने के दौरान यदि कोई टोक देता हैं तो वो प्रसाद पीना बंद कर देते हैं। मेरे पिताजी ने स्वंय यह चमत्कार देखा हैं।
    सिद्धवट मंदिर के पुजारियों के द्वारा किया गया व्यवहार मुझे अशोभनीय लगा। मैं इसकी निंदा करता हूं।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अर्जुन जी!
      हां आॅटो वाला तो बहुत बढि़या और मजेदार था, पर मैंने उसका दिल नहीं तोड़ा। वो तो बस थोड़ा सा चटकाया है।
      मंदिरों में जब इस तरह के भेदभाव होते हैं तो बहुत ही ज्यादा दुख होता है कि जैसे धर्म और आस्था इन पंडे पुजारियों की बंधक है।

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  5. पहली बार ऐसा हुआ होगा कि आपने किसी मंदिर के प्रसाद को ना कहा होगा

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    1. हां यही बात है। पहली बार प्रसाद को मना किया मैंने वरना तो किसी भी मंदिर के नाम पर कुछ भी हो मैं मना नहीं करता।

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  6. बहुत बढ़िया अभय जी ...

    ऑटो वाले को बड़ी जल्दी थी मादक प्रसाद पाने की... मजेदार रहा...
    कालभैरव मंदिर का यही चमत्कार भक्तो को मन्दिर तक खीच लाता है....क्योकि आजकल चमत्कार को ही नमस्कार किया जाता है....
    आप भूखे तो इस पोस्ट में भी रह गये बिना कुछ खाए हुए....
    ये मंदिरों की लुट खसोट मेरे मन का बड़ा विचलित करती है ..... आपने भी धेर्य से जबाब दिया...पर ये सब व्य्वस्याय बना दिया है भगवान के दर्शन को ...

    और बाकी लेख और चित्र बहुत अच्छे रहे....
    जय भैरव जय महाकाल

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    1. धन्यवाद रितेश जी। हां आॅटो वाले को उस मादक पेय की बहुत जल्दी थी पर मैंने भी सोच लिया था कि सफर समाप्त होने पर ही दूंगा। हां कालभैरव की यही बात तो अद्भुत है। हां देख लीजिए सुमित जी के यहां दाल बाटी खाने के लालच में अभी तक पेट को दर्द दे रहे हैं। मंदिरों की लूट-खसोट से मन कभी-कभी विचलित हो जाता है पर आस्तिक मन फिर एक बार वहीं पहुंच जाता है जहां उसे दुत्कार मिलती है क्योंकि हमें प्यार तो भोलेनाथ से है, कुछ लोग दुत्कारते हैं पर भोलेनाथ पुकारते हैं। एक बार और धन्यवाद।


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  7. लूट का अड्डा जैसे शब्द प्रयोग नहीं करने चाहिएं. गन्दे लोगों से पवित्र स्थानों को मुक्त करवाने का अभियान चलाना चाहिए परंतु पवित्र स्थान को ही गलत बताना गलत है

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    1. धन्यवाद सचिन भाई, हमने उस स्थान को गलत नहीं कहा, ये तो वहां जो लोग इस तरह लोगों को परेशान करते रहते हैं उनके बारे में है। जगह अच्छी है तभी तो लोग लाख मुसीबतों के बाद भी वहां सिर झुकाने जाते हैं।

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