Wednesday, February 14, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर (Bharthari Gufa and Gadhkalika Temple)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर (Bharthari Gufa and Gadhkalika Temple)



विक्रमादित्य का टीला देखने और हरसिद्धी मंदिर में दर्शन करने के बाद हम उज्जैन के कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थानों (भतृहरि गुफा, गढ़कालिका मंदिर, कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम) को देखने के लिए निकल पड़े। बड़ी मान-मनौती करने पर एक आॅटो वाला हमें इन जगहों पर घुमाने के लिए तैयार हो गया। मोल-तोल के बाद सौदा तय होने के बाद हम आॅटो में बैठ गए। मेरे आॅटो में बैठते ही उसने मेरे हाथ में एक कार्ड थमा दिया और खुद चाय पीने चला गया। मैंने कार्ड को उलट-पुट कर देखा तो एक तरफ किसी बड़े दुकान का विज्ञान छपा था और दूसरी तरफ उज्जैन के दर्शनीय स्थलों के नाम अंकित थे। कार्ड को देखने से ही पता चल रहा था कि दुकान वाले ने कार्ड छपवाकर आॅटो वालों को बांटा होगा कि इसी बहाने कुछ प्रचार-प्रसार हो जाएगा। पांच मिनट में ही आॅटो वाला भी अपनी चाय खत्म करके आ गया। उसके आते ही मैंने सबसे पहले उसे कहा कि भाई अब चलोगे या कुछ और बाकी है। जवाब मिला कि अब कुछ नहीं बस चलते हैं। इतना कहकर उसने आॅटो स्टार्ट किया और अपने मंजिल की तरफ बढ़ने लगा। अभी चले ही थे कि उसने अपने सवालों की बौछार आरंभ कर दिया कि कुछ खरीदना चाहते हैं, जैसे साड़ी, कपड़े, यहां की पुरानी चीजें आदि-आदि। मैंने उसे साफ मना कर दिया कि मैं कुछ खरीदने नहीं बस जगहों को देखने आया हूं। मेरी इन बातों को सुनते ही वो कुछ देर के लिए चुप हो गया।

कुछ दूरी तय करने के बाद आॅटो वाले ने अपनी आॅटो को एक पुरानी और पतली सड़क पर मोड़ दिया। सड़क के दोनों तरफ पुरानी इमारतें स्वागत करती हुई साथ-साथ चल रही थी। उन्हीं पुरानी इमारतों में दुकानें सजी हुई थी। भरा-पूरा बाजार देखते ही आॅटो वाले ने एक बार फिर से हमसे कुछ खरीदने के लिए पूछा। इस बार भी मैंने उसे अपना वही शब्द दुहराया कि मैं यहां कुछ खरीदने नहीं, बस जगहों को देखने आया हूं। साथ ही ये भी कहा अगर अब आप एक बार भी कोई भी सामान खरीदने के बारे में पूछा तो हम आॅटो रुकवाकर वहीं उतर जाएंगे। जहां भी चले जाएं ये आॅटो वाले ऐसी हरकतों से बाज नहीं आते हैं, उसका भी एक खास कारण है कि अगर आप कुछ खरीदते हैं तो दुकान से इनको कमीशन प्राप्त होता है। जब हमने सामान खरीदने के लिए साफ तौर पर मना कर दिया तो आॅटो वाले आधे मन से ही यह बोला कि ठीक है अब हम आपको कुछ भी खरीदने के लिए नहीं पूछेंगे। 

कुछ देर के सफर के बाद हम बाजार को पार करते हुए शहर से बाहर आ चुके थे। इसी दौरान हमने आॅटो वाले से पूछा कि आप पहले किस स्थान पर ले जाएंगे तो उसका जवाब मिला कि सबसे पहले हम आपको भर्तृहरि (भरथरी) गुफा ले जाएंगे। शहर से बाहर आते ही हमारा सामना सुनसान सड़कों और दूर दूर तक खेतों में फैली हरियाली से हुआ। नीचे हरियाली और ऊपर आसमान में काले बादलों का बसेरा देख मन का मयूर नाचने लगा था। कितने दिनों बाद तो ऐसा नजारा देखने के लिए मिला है क्योंकि दिल्ली में तो बस इमारतें ही दिखती है। धीरे धीरे हम आबादी से दूर और बिल्कुल ही सुनसान इलाके में पहुंच गए। सुनसान इलाके को देख मन में कभी कभी आशंकाओं के बादल छाने लगते पर आने जाने वाली गाडि़यों को देखकर आशंका के बादल जल्दी ही छंट जाते। ऐसे ही चलते हुए हम आॅटो वाले से बात करते हुए और प्रश्न करते हुए चलते रहे और आॅटो वाला हमारे सवालों का जवाब देता रहा और इसी तरह चलते हुए करीब बीस मिनट में हम भर्तृहरि गुफा के करीब आ गए। 

भर्तृहरि गुफा : भर्तृहरि गुफा अति प्राचीन तपस्थली है। यहां ढाई हजार वर्ष पूर्व उज्जैन नगरी के राजा भर्तृहरि को सतगुरु गोरक्षनाथ ने शिक्षा दी जिससे भर्तृहरि को वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने तपस्या प्रारम्भ की। उनकी कठिन तपस्या से देवराज इन्द्र को अपना राज्य छिन जाने का भय हुआ तब इन्द्र ने इस गुफा की शिला पर वज्र का प्रहार किया जिससे शिला टूट गई। भर्तृहरि ने तपस्या के बल पर शिला को ऊपर ही रोक दिया और बारह वर्ष की तपस्या पूर्ण की जिससे भगवान श्री विष्णु ने प्रसन्न होकर दर्शन दिए। भर्तृहरि की प्रेरणा से उनके भांजे गोपीनाथ ने भी तपस्या की जिससे भगवान नीलकंठेश्वर ने दर्शन दिए। यह गुफा उज्जैन शहर से बिल्कुल ही बाहर एक सुनसान इलाके में एक टीले पर स्थित है। इस गुफा के संबंध यह कहा जाता है कि यहां भर्तृहरि ने तपस्या की थी। गुफा के पास से ही क्षिप्रा नदी भी बहती है। गुफा की ऊंचाई भी काफी कम है, इसलिए अंदर जाते समय काफी सावधानी रखनी होती है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता भी काफी छोटा है। गुफा के अंदर अंधेरा छाया रहता है और उसके लिए बल्ब लगे हुए हैं फिर भी गुफा में अंधेरे का ही साम्राज्य दिखाई देता है। यहां की छत बड़े-बड़े पत्थरों के सहारे टिकी हुई है। गुफा के अंत में राजा भर्तृहरि की प्रतिमा है और उस प्रतिमा के पास ही एक और गुफा का रास्ता है। इस दूसरी गुफा के विषय में ऐसा माना जाता है कि यहां से चारों धामों का रास्ता है। गुफा में भर्तृहरि की प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है। गौर से देखने पर आपको गुफा के अंत में एक गुप्त रास्ता दिखाई देगा जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ से चारो धामों को रास्ता जाता है। एक दूसरी गुफा भी है जो कि पहली गुफा से भी छोटी है और इसे गोपीचन्द गुफा कहा जाता है जो कि भर्तृहरि का भतीजा था। 

भर्तृहरि गुफा तक पहुंचते पहुंचते आसमान में छाए काले बादलों ने बरसना आरंभ कर दिया था। समय कम था इसलिए हम बरसात की परवाह न करते हुए दौड़ते हुए गुफा की तरफ बढ़ गए। भींगते हुए हम गुफा के करीब पहुंचे तो देखा कि यहां पर दो गुफाएं हैं जिनमें से एक भर्तृहरि गुुफा तो दूसरी गोपीचंद गुफा है। सबसे पहले हम भर्तृहरि गुफा की तरफ ही गए। गुफा का प्रवेश द्वारा बहुत ही छोटा है। द्वार से अंदर प्रवेश करते ही अंधेरे से सामना हुआ। रोशनी के लिए बल्ब लगे हुए थे। बल्ब लगे होने के बावजूद भी रोशनी पूरी तरह नहीं था। द्वार से प्रवेश करने के पश्चात गुफा तक जाने के लिए सीढि़यों से नीचे उतरना पड़ता है और सीढि़यां भी इतनी संकरी कि एक बार में एक ही आदमी या तो ऊपर आ सकता है या नीचे जा सकता है। 

किसी तरह अपनी बारी आने पर हम भी सीढि़यों से नीचे उतरे तो एक छोटे से बरामदे में पहुंच गए। बरामदे से ही कई कमरे जुड़े हुए हैं। गुफा का जमीन के अंदर होने के कारण यहां आॅक्सीजन की भी कमी है जिस कारण कुछ देर में ही सांस लेने में परेशानी होने लगती है। सांस लेने की परेशानी के साथ गरमी और उमस से भी गुफा के अंदर हालत खराब होने लगती है। इस गुफा को देखने के पश्चात हम भी जल्दी ही बाहर निकल आए और बगल में ही स्थित दूसरी गुफा के अंदर प्रवेश किया जिसे गोपीचंद गुफा कहा जाता है। यह गुफा भर्तृहरि गुफा से भी छोटी है। गुफा के बगल में ही एक मंदिर है और बगल में ही उनकी समाधि भी है जिसे पीर गंगनाथ के नाम से जाना जाता है। समाधि और मंदिर को देखने के पश्चात हम बाहर आए और आॅटो की तरफ चल दिए। बरसात अभी भी हो रही थी किसी तरह कैमरे को भीगने से बचाते हुए भागते-दौड़ते आॅटो तक पहुंचे। आॅटो में बैठते ही आॅटो वाले ने आॅटो स्टार्ट किया और अगले स्थान के लिए चल दिया। पूछने पर बताया कि यहां के बाद वो हमें अब गढ़कालिका मंदिर ले जाएगा। 

गढ़कालिका मंदिर : गढ़कालिका मंदिर तांत्रिक और सिद्ध स्थान है। मंदिर के अंदर गणेशजी की प्राचीन पौराणिक प्रतिमा है। सामने ही एक प्राचीन हनुमान मंदिर भी है। इसके पास ही विष्णु की एक भव्य चतुर्भुज प्रतिमा है जो अद्भुत और दर्शनीय है। मंदिर परिसर में अतिप्राचीन दीप स्तंभ भी हैं जो कि नवरात्रि के दौरान रोशन होते हैं। इस स्तंभ में दीपों की संख्या 108 है। नौंवी शताबदी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार हर्ष विक्रमादित्य ने करवाया था। कालिका देवी को महाकवि कालिदास की आराध्य देवी भी कहा जाता है। इस मंदिर से शुंगकालीन, गुप्तकालीन और परमारकालीन प्रतिमाएं प्राप्त हुई हैं। सम्राट हर्षवर्धन ने सातवीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णाद्धार भी करवाया था। इस मंदिर से परमारकाल में कराए गए जीर्णोद्धार के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

भर्तृहरि गुफा से करीब दस मिनट के सफर के बाद हम गढ़कालिका मंदिर क्षेत्र में पहुंच गए। यहां भी भर्तृहरि गुफा की तरह ही आॅटो में ही बैग को रहने दिया और चल पड़े मंदिर की ओर। मंदिर के पास पहुंचते ही सबसे पहले बंदरों से सामना हुआ। मंदिर के बाहर प्रसाद और खाने-पीने की दुकानें सजी हुई थी और इन्हीं दुकानों से कुछ लोग सामान खरीदकर बंदरों को खिलाने-पिलाने में जुटे थे। हमने भी प्रसाद लिया और मंदिर के अंदर प्रवेश कर गए। मंदिर में देवी कालिका की प्रतिमा के दर्शन के पश्चात हमने परिक्रमा किया और मंदिर से बाहर आ गए। भूख भी अब तक अपने चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी, पर हमने भी सोच लिया था कि चाहे जो भी खाना तो इंदौर पहुंचकर मित्र सुमीत शर्मा जी के यहां ही खाऊंगा। मन में मित्र के घर मुफ्त का खाना खाने की ऐसी लालच घुस चुकी थी कि खाना देखकर भी मैं खरीदकर नहीं खा रहा था। असल बात तो ये थी कि अभी मेरे लिए खाना खाने से ज्यादा महत्वपर्ण समय की बचत करना था इसलिए मैं खाना नहीं खा रहा था। भूख को तो कुछ देर के लिए दबाया जा सकता है पर प्यास को नहीं इसलिए हमने पास की एक चाय की दुकान से एक बोतल पानी खरीदा और आॅटो में आकर बैठ गया। आॅटो में बैठते ही आॅटो वाला अब अगले पड़ाव की तरफ बढ़ चला। जिसका वृत्तांत हम आपको अगले भाग में बताएंगे। तब तक के लिए आज्ञा दीजिए। बस जल्दी मिलते हैं जिसमें हम आपको अपने साथ कालभैरव मंदिर, सिद्धवट मंदिर, मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम की सैर पर ले चलेंगे।



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :


भतृहरि गुफा के अंदर का एक आंतरिक दृश्य

गुफा के आंगन में प्रवेश का रास्ता

गुफा के अंदर बरामदे का एक दृश्य

भतृहरि गुफा परिसर में स्थित पीर गंगानाथ की समाधि

भतृहरि गुफा परिसर में स्थित नवनाथ मंदिर का एक दृश्य

भतृहरि गुफा का मुख्य प्रवेश द्वार

गोपीचंद गुफा का प्रवेश द्वार

भतृहरि गुफा परिसर में स्थित एक गणेश प्रतिमा

भतृहरि गुफा की जानकारी

भतृहरि गुफा की जानकारी

भतृहरि गुफा की जानकारी

भतृहरि गुफा का रास्ता

भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर के बीच कहीं

गढ़कालिका मंदिर की जानकारी

गढ़कालिका मंदिर के अंदर का एक दृश्य

गढ़कालिका मंदिर

गढ़कालिका मंदिर के पास प्रसाद की दुकानें

गढ़कालिका मंदिर के ऊपर विराजमान ये दोनों

गढ़कालिका मंदिर का गुंबद का दृश्य

गढ़कालिका मंदिर से कालभैरव के रास्ते में एक मंदिर

गढ़कालिका मंदिर से कालभैरव के रास्ते में कहीं

गढ़कालिका मंदिर से कालभैरव के रास्ते में कहीं

गढ़कालिका मंदिर से कालभैरव के रास्ते में कहीं



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास









9 comments:

  1. इन सुरंगों से मैं हमेशा परेशान रहता हूँ,जहाँ जाइए वहीं यह फदिल्ली जाती है तो यह कैलाश जाती फलाना ढिमाका। अब जैसे ही कोई बताने की कोशिश करता है कि यह... मैं तपाक से बोल पड़ता हूँ कोई कहीं नहीं जा रही सब फालतु में कहानी बना रखे है।
    आप तो उज्जैन से बाहर ही आ गये थे।
    बहुत खूब, भोज के लिए एकदम तैयार थे नमक जीरा खाकर !!😃😃😄🤗

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    1. बहत बहुत धन्यवाद जी।
      जो भी वहां भी यही लिखा हुआ था और एक बार किसी टीवी प्रोग्राम में भी मैंने यहां के बारे में ऐसा सुना था, क्या सत्य है क्या गलत है ये मैं नहीं जानता। हां भतृहरि गुफा तो उज्जैन के बाहर ही स्थित है। हां जी भोज के लिए मैंने सुबह से कुछ नहीं खाया है।

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  2. यह आपने सही कहा ये आटो वाले अपने कमीशन के पीछे यात्रियों को काफी परेशान कर देते हैं ये लोग बिल्कुल भी नहीं मानते।
    मैं भी अनुराग जी से सहमत हूँ कि ये गुफा चारधाम तक कैसे पहुंच सकती हैं
    आगे की बरसात और यात्रा का इंतजार रहेगा.......

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    1. बहत बहुत धन्यवाद जी।
      आगरा में तो ताजमल के अंदर ऊंट गाड़ी वाले ने भी कमीशन के लालच में मुझे किसी दुकान में घुसा दिया था, और जब मैंने सामान नहीं खरीदा तो बहुत नाराज हुआ था। इन गुफाओं में बारे में इतना ज्ञान नहीं है पर वहां जाकर जो जानकारियां हासिल हुई मैंने वही लिखा। अगला भाग भी जल्दी ही आपके सामने होगा।

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  3. सच मे उज्जैन भी कभी इतने अच्छे से नही देखा....पास होकर हम कभी यहाँ घूमे नही तो आपके माध्यम से ही सही घूम रहे है....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको। घर के पास की चीजें ही लोग बाद में देखते हैं जैसे मैं दिल्ली में रहकर भी दिल्ली के पास की चीजें नहीं देख पा रहा हूं और दूर-दूर भागता रहता हूं।

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  4. वाह.....भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर का आपका ये सफर अच्छा लगा ..
    गुफा कोई भी अंदर की तरफ एक सुरंग या रास्ता बताया जाता है कहते है ये वहां जा रही और ये यहाँ... हकीकत में मैं तो इन्हें बंद ही मानता हूँ क्योकि अंदर हवा की कमी और गर्मी के कारण कोई जा ही नहीं पाता ....

    खैर शरीर पर इतना अत्याचार क्यों ... कुछ तो खा ही लेते.... तभी तो मजा अलग आता घूमने में

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    1. ढेर सारा धन्यवाद आपको। हां अधिकतर गुफा की यही कहानी है कि वहां तक जाती है और वहां तक निकलती है लेकिन कुछ दूर जाकर गुफा बंद मिलती है, क्योंकि वहां अनुकूल परिस्थितियां नहीं होती, हवा और प्रकाश तो होता ही नहीं। नहीं खाने का एकमात्र कारण यही था उस दिन कि मैं अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहता क्योांकि पहले ही गाड़ी ने दो घंटो समय खराब कर दिया था।

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