रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
आज से एक साल पहले जब हमने भारत के उत्तर में हिमालय पर स्थित केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन किये थे तो ये सोचा भी नहीं था कि एक साल बाद देश के सबसे दक्षिण में स्थित भगवान शंकर के एक और ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। रामेश्वरम महादेव के ज्योतिर्लिंग के साथ साथ भगवान् विष्णु के चार धामों में से एक धाम भी है। रामेश्वरम शहर के पूर्वी भाग में स्थित श्री रामनाथ स्वामी मंदिर की ऊंची ऊंची दीवारें, सुन्दर कलाकारी से सजे हुए स्तम्भों की श्रृंखलाएं, बुलंद और सजे धजे गोपुरम (मंदिर का प्रवेश द्वार) के साथ साथ विशालकाय नंदी को देखना किसी सुन्दर कल्पना के सच होने जैसा लगता है। मंदिर का खूबसूरत विशाल गलियारा जिसे एशिया में मौजूद हिन्दू मंदिरों में सबसे लम्बा गलियारा होने का दर्जा प्राप्त है। यहाँ दो शिवलिंग की पूजा होती है, एक वो जिन्हें हनुमान जी कैलाश से लेकर आये थे और उसे विश्वलिंगम कहा जाता है जबकि दूसरे को जिसे भगवान राम ने बनाया था जिसे रामलिंगम कहा जाता है। मन्दिर परिसर में 24 कुंड है, जिसमें से 2 कुंड सुख चुके हैं और 22 कुंडों में पानी है पर यहाँ आने वाले लोगों को 21 कुंड के पानी से ही स्नान कराया जाता है क्योंकि 22वें कुंड में सभी कुंडों का पानी है। कुछ लोग जो लोग इन सभी कुंडों में नहीं करना चाहें उनके लिए इस 22वें कुंड में स्नान करना ही पर्याप्त है। इन सभी कुंडों के नाम रामायण और महाभारत कालीन लोगों के नाम पर रखे हैं जैसे अर्जुन तीर्थ, नल तीर्थ, नील तीर्थ, गायत्री तीर्थ, सावित्री तीर्थ और सरस्वती तीर्थ, गंगा-जमुना तीर्थ,आदि आदि। मंदिर में दर्शन के लिए आने वाले भक्तगण इन कुंडों में स्नान के पश्चात ही मंदिर में दर्शन के लिए जाते है, वैसे इसके लिए कोई बाध्यता नहीं है, बिना इसमें स्नान के भी दर्शन किया जा सकता है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु चाहे इन कुंड में स्नान करें या न करें पर मंदिर से करीब 200 मीटर की दूरी पर यहाँ के महत्वपूर्ण स्नान अग्नितीर्थम (समुद्र) में स्नान जरूर करते हैं।
आइये अब आगे की बात करते हैं। मेरे रामश्वेरम स्टेशन पहुंच कर रेलवे रिटायरिंग रूम जाने का वृतांत तो आप पिछले पोस्ट में पढ़ ही चुके होंगे, अब उससे आगे की बात करते हैं। सुबह के 5:00 बज चुके थे, अभी पूरी तरह सबेरा नहीं हुआ था, कुछ कुछ अँधेरा था। हम लोग अग्नितीर्थम में स्नान करने के बाद पहनने के लिए कपड़े लेकर मंदिर जाने के लिए स्टेशन के बाहर आए तो कुछ ऑटो वाले खड़े थे जो मंदिर तक पहुँचाने के 10 रुपए प्रति सवारी के हिसाब से लोगों को ऑटो में बैठा रहे थे। ऑटो में बैठने से पहले मैं फिर से एक बार राजू ऑटो वाले को कॉल किया कि बात हो जाये तो पूरे दिन घूमने में आसानी हो जाएगी लेकिन पहले की तरह इस बार भी असफलता ही हाथ लगी। मैंने वहीं एक ऑटो वाले से मंदिर तक चलने की बात की तो जो ऑटो वाले अभी 10 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से लोगो को ऑटो में बैठने के लिए खुशामद कर रहे थे वही सब सवारी मिलता देख 20 रुपये प्रति सवारी की मांग करने लगे। मैं उनसे बात कर ही रहा था कि एक बस आकर रुकी और कंडक्टर टेम्पल टेम्पल की आवाज लगा रहा था। मंदिर तक का किराया बस का केवल और केवल 5 रुपये था। हम सब बस में बैठ गए, 10 मिनट बाद बस चली और कुछ ही मिनटों में हम मंदिर के पास पहुंच गए। स्टेशन से मंदिर की दूरी ज्यादा नहीं है और अगर आप स्टेशन से मंदिर तक पैदल भी जाते है तो मुश्किल से 15 मिनट में आप मंदिर के पास और 20 मिनट में अग्नितीर्थम पहुंच जाएंगे। बस वाले ने हमें मंदिर के पश्चिमी गेट के पास उतारा और यहाँ से अग्नितीर्थम तक का रास्ता हमें पैदल ही तय करना था।
बस से उतरने वाला हर व्यक्ति अग्नितीर्थम की ओर ही जा रहा था इसलिए किसी से कुछ पूछने की भी कोई जरूरत नहीं पड़ी, हम भी उन उन लोगों के पीछे चल पड़े और 5 से 7 मिनट में ठीक 5:30 बजे हम अग्नितीर्थम पहुंच गए। यहाँ पहुँचते ही एक बार फिर से समुद्र देवता से सामना हुआ और समुद्र को देखने का ये दूसरा अनुभव था। इससे पहले 3 दिन पहले चेन्नई में समुद्र देखा था। चेन्नई का समुद्र जहाँ खूब चंचलता लिए हुए हुए था तो यहां समुद्र का बहुत ही शांत रूप देखने को मिला। कहते हैं कि भगवान् श्री राम और वानरी सेना को लंका जाने के लिए कोई मार्ग नहीं मिला तो भगवान राम ने अपने अग्निवाण से समुद्र को ही सूखा डालने के लिए जैसे ही अपना धनुष उठाया तो समुद्र देवता ने लंका पहुंचने का तरीका बताया और उसी दिन से यहाँ समुद्र बिलकुल शांत स्थिति में है और अग्निवाण का प्रयोग करने के कारण इस स्थान का नाम अग्नितीर्थम पड़ा। दूर दूर तक जहाँ तक नज़र जा रही थी बस मछुआरों की नावें ही दिख रही थी। अब तक हर तरफ उजाला फ़ैल चुका था। धीरे धीरे यहाँ पहुंचने वालों तादाद बढ़ रही थी। हम यहाँ स्नान करने की सोच ही रहे थे कि एक अनजान आवाज़ कानों में गूंज पड़ी। एक सज्जन हमें सम्बोधित करते हुए कह रहे थे कि क्या आप मणि दर्शन कर लिए। अब उनकी ये बात मेरे लिए बिलकुल नई थी तो उन्होंने ही मुझे मणिदर्शन के बारे में बताया और साथ ही ये भी कहा कि आप नहाने का कार्य बाद में कर लीजिएगा पहले जाकर मनिदर्शन कर लीजिये। उनको धन्यवाद कहते हुए सबने हम मंदिर की दौड़ लगा दी। यहाँ से मंदिर की दूरी महज 200 मीटर होगी और जल्दी ही हम मंदिर के पास पहुंच गए। यहाँ गए तो पता चला कि मणि दर्शन का टिकट 50 रुपए प्रति व्यक्ति है। मैंने 250 रुपए देकर 5 टिकट ख़रीदा और वहीं एक दुकान में 20 रुपये देकर सामान रखा और मंदिर की ओर चल दिए।
यहाँ मणि दर्शन करने के लिए ज्यादा बड़ी लाइन नहीं थी जल्दी ही हम महादेव के उस मणि रूप के दर्शन हो गए। महादेव का ऐसा रूप हमें पहले बार देखने को मिल रहा था। नज़रें बिलकुल हट नहीं रही थी और यहाँ से जाने का बिलकुल भी मन नहीं हो रहा था। खैर यहाँ से जाना तो था ही और हम जल्दी ही मंदिर से बाहर आ गए और दुकान से अपना सामान उठाकर फिर से अग्नितीर्थम में समुद्र स्नान के लिए आ गए। अभी कुछ देर पहले जब हम यहाँ से गए तो भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी पर इस समय भीड़ बहुत हो चुकी थी। जो श्रद्धालु पहले आये थे वो स्नान के बाद जाने की तैयारी में लगे थे और कुछ स्नान कर भी रहे थे। हर किसी का अपना धुन होता है और जहाँ लोग नहाने की धुन में लगे थे तो मैं फोटो लेने की धुन में लग गया। ऐसे ही फोटो ले रहा था तो अचानक माँ की आवाज़ सुनाई पडी कि फोटो ही खींचते रहोगे या नहाओगे भी, हम सबने एक एक करके नहा लिया। मैंने भी झट से कैमरा बंद किया और पिताजी के हाथ में कैमरा देकर आदित्या के साथ नहाने के लिए समुद्र में उतर गए और जल्दी ही नहा कर तैयार हो गए। यहाँ समुद्र में कहीं भी ऐसा नहीं लगा जहां पैर ठीक से रखा जा सके। समुद्र की सतह पर पुराने कपड़ों की भरमार थी जिनमें पैर फँस रहे थे। पता नहीं लोग क्यों अपने कपडे समुद्र में डाल देते हैं। अगर अपने पुराने कपड़ों को समुद्र में न डालकर किनारे पर रख दें तो किसी के काम आएगा। खैर सबकी अपनी मन्नतें होती होंगी ये तो वही जानें। अब तक सूर्य देवता भी आकाश में अपनी लालिमा बिखेरते हुए बादलों से झांकने लगे थे। समुद्र के पानी पर पड़ती सूर्य किरणों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र में हर जगह सुनहरे मोती बिछे हुए हों। दृश्य ऐसा था कि नज़रें बिलकुल इनसे हट नहीं रही थे और मैं हटाना भी नहीं चाह रहा था, फिर कभी आना हो या न हो इसलिए इन दृश्यों को पूरी तरह से अपने आँखों में उतार लेना चाहता था। जैसे जैसी दिन चढ़ रहा था ये नज़ारे धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे थे। जब ये सुनहरे रंग पूरी तरह से गायब हो गए तो हमने मंदिर की तरफ जाना उचित समझा और सामान उठाकर चल दिए मंदिर की तरफ।
कुछ ही पल में हम एक बार फिर मंदिर के पूर्वी दरवाजे के पास पहुंच गए। यहां जूते-चप्पल रखने वाले स्थान पर अपने चरण-पादुकाओं को रखने के बाद मोबाइल, कैमरा और सारा सामान वहीं पास ही दूसरे दुकान में बने लॉकर में रखा और चल पड़ा मंदिर की तरफ और घडी देखा तो 7:00 बज चुके थे। मंदिर के मुख्य दरवाजे के बाहर ही कैमरा और मोबाइल कोई मंदिर के अंदर न ले जा सके इसके लिए चेकिंग की जा रही थी और उसके लिए लम्बी लाइन लगी थी। मंदिर के अंदर आपको सामान तो ले जाने दे रहे थे पर उसके साथ मोबाइल/कैमरे ले जाने की इज़ाज़त नहीं थी। कुछ लोग सामान के साथ मंदिर में प्रवेश कर रहे थे और उनके सामान की जाँच के कारण ही इतनी लाइन लम्बी हो गई थी। जिन लोगों के पास कोई सामान नहीं था वो बिना लाइन में लगे अंदर जा रहे थे और हमारे पास भी कोई सामान नहीं था जिसका फायदा मुझे मिला और बिना लाइन में लगे ही हम मंदिर के अंदर चले गए। अंदर जाते ही पंडों ने घेर लिया और कुंड स्नान के लिए पूछने लगे। कुंड स्नान के लिए 25 रूपये का टिकट लगता है लेकिन यहाँ के पंडा लोग जल्दी स्नान करवा देंगे, लाइन में नहीं लगना पड़ेगा, ज्यादा पानी से स्नान करवाएंगे आदि बातें कहकर लोगों से 135 रुपये और 245 रुपये ले लेते हैं, लेकिन हकीकत यही है कि कुंड स्नान के लिए केवल 25 रूपये का ही टिकट है जिसके लिए मंदिर समिति ने जगह जगह बोर्ड लगाए हुए हैं। पंडों की बात को दरकिनार करते हुए हमने 25 रुपए वाला 5 टिकट लिया और और कुंड स्नान के लिए चल दिया। यहाँ हर कुंड पर एक आदमी कुंड से पानी निकलता और 3-4 लोगों के ऊपर थोड़ा थोड़ा डालता और फिर लोग दूसरे कुंड की तरफ बढ़ जाते। इसी तरह अगले कुंड पर भी यही प्रक्रिया दोहराई जाती और इस पूरे प्रक्रिया में करीब 30 मिनट लग गए। सभी कुंड एक ही जगह पर न होकर पूरे मंदिर परिसर में फैले हुए है। कहीं एक, कहीं दो तो कहीं तीन कुंड हैं और इस प्रकार सभी कुंड स्नान के लिए आपको हर जगह जाना पड़ता है। यहाँ नहाते हुए भक्ति का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा था। लोग नहाते और जय श्री राम बोलते हुए दूसरे कुंड की तरफ बढ़ जाते। ऐसा दृश्य देखकर मन बिलकुल प्रफुल्लित हो रहा था। मैंने और भी ज्योतर्लिंग के दर्शन किये हैं और हर जगह हर हर महादेव के नारे लगते देखे है लेकिन यहाँ हर हर महादेव कम और जय श्री राम के नारे ज्यादा लग रहे थे जिसका एक ही कारण था कि इस मंदिर से जितना भोलेनाथ का सम्बन्ध है उतना ही भगवान् राम से भी है। कुछ भी हो माहौल बिलकुल भक्तिमय था।
सभी कुंडों में स्नान के पश्चात हम दर्शन के लिए मंदिर में फिर उसी जगह आ गए जहां से सुबह अंदर गए थे। यहाँ जाते ही पता लगा कि यहाँ दर्शन 3 तरह से होता है। पहला है फ्री दर्शन जिसमे आप लाइन में लगकर दूर से ही दर्शन कर सकते हैं। दूसरा दर्शन थोड़ा नज़दीक से होता है और उसके लिए मंदिर समिति की तरफ से 50 रुपए राशि ली जाती है। तीसरा दर्शन 500 रुपए वाला था जिसमे आप शिवलिंग पर जलार्पण (जलाभिषेक) कर सकते हैं। यहाँ पहुंचते ही मेरा सामना सबसे पहले यहाँ के पंडों से पड़ा जो 100 रुपए में जल्दी से दर्शन कराने के नाम पर लोगों से 100 रुपए लेते और 50 रुपए अपने पॉकेट में रखते और 50 रुपए की पर्ची कटवाकर लाइन में लगा देते। ये लोग हमारे पास भी आए और 100 रुपए में दर्शन करवाने की बात करने लगे और साथ ही डराने लगे कि फ्री वाली लाइन में 3 घंटे से कम नहीं लगेगा और 100 रूपये में जल्दी दर्शन हो जाएंगे। मैंने भी उनको उनकी ही अंदाज़ में जवाब दिया कि मैं दिल्ली से 50 घंटे का सफर पूरा करके यहाँ तक पहुंचे हैं तो 3 घंटे और समय लगा देंगे और वैसे भी मेरे पास पूरा दिन भर है और आप इस तरह ठगने वाला काम किसी और के पास जाकर करें। एक तो मैंने उसकी बात नहीं मानी और ऊपर से उसे ठग बोल दिया और मेरा ठग बोलना आग में घी डालने का काम कर गया और वो हमारे ऊपर बिलकुल ही पूरी तरह भड़क गया। खैर उसके भड़कने से मेरा कुछ बिगड़ना तो था नहीं और मैं फ्री वाली लाइन में लग गया। करीब 200 लोगों की लाइन थी और 30 मिनट में दर्शन हो गए और जब हमारी बारी आई तो मुश्किल से 10 सेकंड ही हम वहां रुक सके और उसके बाद हमें वहां आगे बढ़ना पड़ा क्योंकि पीछे सैकड़ों लोगो की भीड़ खड़ी थी।
दर्शन के बाद हम एक जगह बैठे और जहां बैठे हुए थे वहीं पर 50 रुपए वाली दर्शन की पर्ची कट रही थी। पत्नी और मां का मन एक बार फिर से नज़दीक से दर्शन के लिए हुआ तो कंचन, आदित्या और मम्मी-पापा पर्ची 50 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से पर्ची लेकर नज़दीक से दर्शन के लाइन में लग गए और इस बार चारो ने थोड़ा नज़दीक से दर्शन का लाभ उठाया और वापस आकर एक और पर्ची कटवाकर मुझे भी फिर से दर्शन के लिए भेज दिया गया। हमने भी दुबारा दर्शन कर लिया। अब कंचन के मन में पता नहीं क्या चल रहा था जो उसने कहा कि इतनी दूर आये है तो 501 रुपए और खर्च करके जलार्पण कर ही लेते हैं। मैंने भी इंकार नहीं किया और 5 लोगों के 2505 रुपए देकर पर्ची कटवाकर जलार्पण करने चल पड़े। यहाँ बहुत भीड़ नहीं थी, हम सबने आराम से बड़े आराम से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया और फिर परिक्रमा करके मंदिर परिसर में ही बने छोटे मंदिरों को देखने के बाद मंदिर से बाहर आ गए। महादेव के दर्शन के मन बिल्कुल खुश था। बाहर निकलकर हम लोगों ने नाश्ता किया और फिर कंचन और माँ कुछ सामान खरीदने लगी। सब कुछ करते करते 10:30 बज चुके थे और हमने अभी तक सिर्फ मंदिर में दर्शन और पूजा पाठ ही किया अभी तो पूरा रामेश्वरम घूमना बाकी ही था। पूछने पर पता चल कि बस या ऑटो अग्नितीर्थम की तरफ से ही मिलेगी तो हम उसी तरफ फिर से चल दिए। इससे आगे का वृतांत अगले भाग में बताएंगे जिसमें लक्ष्मण मंदिर, सीता मंदिर, कलाम का घर, धनुषकोडि बीच, राम सेतु, विभीषण मंदिर और भी कुछ जगहों का विवरण होगा। तब के लिए आज्ञा दीजिये। आपका अपना अभ्यानन्द।
जय भोलेनाथ।
कहाँ ठहरे : रामेश्वरम में ठहरने के लिए प्राइवेट होटल और गेस्ट हॉउस की कोई कमी नहीं है। यहाँ हर बजट के लिए लोगों के रहने के लिए आसानी से कमरे मिल जाते हैं। मंदिर परिसर के चारों और गेस्ट हाउस, होटल और धर्मशाला बहुतायत में उपलब्ध है। कुछ धर्मशालाएं मंदिर समिति द्वारा भी संचालित की जाती है जिसकी बुकिंग मंदिर समिति की वेबसाइट http://rameswaram.hrce.org.in पर 30 दिन पहले की जा सकती है।
मंदिर में दर्शन : मंदिर में सुबह 4:30 से 6:30 तक मणि दर्शन का समय होता है उसके बाद रेत के बने शिवलिंग के दर्शन होते हैं। मणि दर्शन के लिए 25 रूपये का टिकट लेना पड़ता है। मंदिर में दर्शन की तीन श्रेणियां हैं : पहला फ्री दर्शन, दूसरा शीघ्र दर्शन जिसका 50 रुपए का टिकट है और तीसरा जलाभिषेक जिसका 501 रुपए का टिकट है। कभी कभी फ्री दर्शन से ज्यादा भीड़ शीघ्र दर्शन वाले लाइन में ही हो जाता है।
क्यों जाएँ : यदि आप धार्मिक यात्रा के कारण जाते हैं तो रामेश्वरम भगवन शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और साथ ही भगवान विष्णु के चार धामों में से एक धाम है। यदि आप ऐसे ही सैर सपाटे के लिए जाना चाहते है तो रामेश्वरम में देखने के लिए बहुत कुछ है, धनुष्कोडी बीच, अग्नितीर्थम, राम सेतु, पम्बन ब्रिज आदि बहुत सी ऐसी चीज़े हैं जो यात्रा में एक रोमांच बनाये रखते हैं।
बस से उतरने वाला हर व्यक्ति अग्नितीर्थम की ओर ही जा रहा था इसलिए किसी से कुछ पूछने की भी कोई जरूरत नहीं पड़ी, हम भी उन उन लोगों के पीछे चल पड़े और 5 से 7 मिनट में ठीक 5:30 बजे हम अग्नितीर्थम पहुंच गए। यहाँ पहुँचते ही एक बार फिर से समुद्र देवता से सामना हुआ और समुद्र को देखने का ये दूसरा अनुभव था। इससे पहले 3 दिन पहले चेन्नई में समुद्र देखा था। चेन्नई का समुद्र जहाँ खूब चंचलता लिए हुए हुए था तो यहां समुद्र का बहुत ही शांत रूप देखने को मिला। कहते हैं कि भगवान् श्री राम और वानरी सेना को लंका जाने के लिए कोई मार्ग नहीं मिला तो भगवान राम ने अपने अग्निवाण से समुद्र को ही सूखा डालने के लिए जैसे ही अपना धनुष उठाया तो समुद्र देवता ने लंका पहुंचने का तरीका बताया और उसी दिन से यहाँ समुद्र बिलकुल शांत स्थिति में है और अग्निवाण का प्रयोग करने के कारण इस स्थान का नाम अग्नितीर्थम पड़ा। दूर दूर तक जहाँ तक नज़र जा रही थी बस मछुआरों की नावें ही दिख रही थी। अब तक हर तरफ उजाला फ़ैल चुका था। धीरे धीरे यहाँ पहुंचने वालों तादाद बढ़ रही थी। हम यहाँ स्नान करने की सोच ही रहे थे कि एक अनजान आवाज़ कानों में गूंज पड़ी। एक सज्जन हमें सम्बोधित करते हुए कह रहे थे कि क्या आप मणि दर्शन कर लिए। अब उनकी ये बात मेरे लिए बिलकुल नई थी तो उन्होंने ही मुझे मणिदर्शन के बारे में बताया और साथ ही ये भी कहा कि आप नहाने का कार्य बाद में कर लीजिएगा पहले जाकर मनिदर्शन कर लीजिये। उनको धन्यवाद कहते हुए सबने हम मंदिर की दौड़ लगा दी। यहाँ से मंदिर की दूरी महज 200 मीटर होगी और जल्दी ही हम मंदिर के पास पहुंच गए। यहाँ गए तो पता चला कि मणि दर्शन का टिकट 50 रुपए प्रति व्यक्ति है। मैंने 250 रुपए देकर 5 टिकट ख़रीदा और वहीं एक दुकान में 20 रुपये देकर सामान रखा और मंदिर की ओर चल दिए।
यहाँ मणि दर्शन करने के लिए ज्यादा बड़ी लाइन नहीं थी जल्दी ही हम महादेव के उस मणि रूप के दर्शन हो गए। महादेव का ऐसा रूप हमें पहले बार देखने को मिल रहा था। नज़रें बिलकुल हट नहीं रही थी और यहाँ से जाने का बिलकुल भी मन नहीं हो रहा था। खैर यहाँ से जाना तो था ही और हम जल्दी ही मंदिर से बाहर आ गए और दुकान से अपना सामान उठाकर फिर से अग्नितीर्थम में समुद्र स्नान के लिए आ गए। अभी कुछ देर पहले जब हम यहाँ से गए तो भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी पर इस समय भीड़ बहुत हो चुकी थी। जो श्रद्धालु पहले आये थे वो स्नान के बाद जाने की तैयारी में लगे थे और कुछ स्नान कर भी रहे थे। हर किसी का अपना धुन होता है और जहाँ लोग नहाने की धुन में लगे थे तो मैं फोटो लेने की धुन में लग गया। ऐसे ही फोटो ले रहा था तो अचानक माँ की आवाज़ सुनाई पडी कि फोटो ही खींचते रहोगे या नहाओगे भी, हम सबने एक एक करके नहा लिया। मैंने भी झट से कैमरा बंद किया और पिताजी के हाथ में कैमरा देकर आदित्या के साथ नहाने के लिए समुद्र में उतर गए और जल्दी ही नहा कर तैयार हो गए। यहाँ समुद्र में कहीं भी ऐसा नहीं लगा जहां पैर ठीक से रखा जा सके। समुद्र की सतह पर पुराने कपड़ों की भरमार थी जिनमें पैर फँस रहे थे। पता नहीं लोग क्यों अपने कपडे समुद्र में डाल देते हैं। अगर अपने पुराने कपड़ों को समुद्र में न डालकर किनारे पर रख दें तो किसी के काम आएगा। खैर सबकी अपनी मन्नतें होती होंगी ये तो वही जानें। अब तक सूर्य देवता भी आकाश में अपनी लालिमा बिखेरते हुए बादलों से झांकने लगे थे। समुद्र के पानी पर पड़ती सूर्य किरणों को देखकर ऐसा लग रहा था जैसे समुद्र में हर जगह सुनहरे मोती बिछे हुए हों। दृश्य ऐसा था कि नज़रें बिलकुल इनसे हट नहीं रही थे और मैं हटाना भी नहीं चाह रहा था, फिर कभी आना हो या न हो इसलिए इन दृश्यों को पूरी तरह से अपने आँखों में उतार लेना चाहता था। जैसे जैसी दिन चढ़ रहा था ये नज़ारे धीरे धीरे लुप्त होते जा रहे थे। जब ये सुनहरे रंग पूरी तरह से गायब हो गए तो हमने मंदिर की तरफ जाना उचित समझा और सामान उठाकर चल दिए मंदिर की तरफ।
कुछ ही पल में हम एक बार फिर मंदिर के पूर्वी दरवाजे के पास पहुंच गए। यहां जूते-चप्पल रखने वाले स्थान पर अपने चरण-पादुकाओं को रखने के बाद मोबाइल, कैमरा और सारा सामान वहीं पास ही दूसरे दुकान में बने लॉकर में रखा और चल पड़ा मंदिर की तरफ और घडी देखा तो 7:00 बज चुके थे। मंदिर के मुख्य दरवाजे के बाहर ही कैमरा और मोबाइल कोई मंदिर के अंदर न ले जा सके इसके लिए चेकिंग की जा रही थी और उसके लिए लम्बी लाइन लगी थी। मंदिर के अंदर आपको सामान तो ले जाने दे रहे थे पर उसके साथ मोबाइल/कैमरे ले जाने की इज़ाज़त नहीं थी। कुछ लोग सामान के साथ मंदिर में प्रवेश कर रहे थे और उनके सामान की जाँच के कारण ही इतनी लाइन लम्बी हो गई थी। जिन लोगों के पास कोई सामान नहीं था वो बिना लाइन में लगे अंदर जा रहे थे और हमारे पास भी कोई सामान नहीं था जिसका फायदा मुझे मिला और बिना लाइन में लगे ही हम मंदिर के अंदर चले गए। अंदर जाते ही पंडों ने घेर लिया और कुंड स्नान के लिए पूछने लगे। कुंड स्नान के लिए 25 रूपये का टिकट लगता है लेकिन यहाँ के पंडा लोग जल्दी स्नान करवा देंगे, लाइन में नहीं लगना पड़ेगा, ज्यादा पानी से स्नान करवाएंगे आदि बातें कहकर लोगों से 135 रुपये और 245 रुपये ले लेते हैं, लेकिन हकीकत यही है कि कुंड स्नान के लिए केवल 25 रूपये का ही टिकट है जिसके लिए मंदिर समिति ने जगह जगह बोर्ड लगाए हुए हैं। पंडों की बात को दरकिनार करते हुए हमने 25 रुपए वाला 5 टिकट लिया और और कुंड स्नान के लिए चल दिया। यहाँ हर कुंड पर एक आदमी कुंड से पानी निकलता और 3-4 लोगों के ऊपर थोड़ा थोड़ा डालता और फिर लोग दूसरे कुंड की तरफ बढ़ जाते। इसी तरह अगले कुंड पर भी यही प्रक्रिया दोहराई जाती और इस पूरे प्रक्रिया में करीब 30 मिनट लग गए। सभी कुंड एक ही जगह पर न होकर पूरे मंदिर परिसर में फैले हुए है। कहीं एक, कहीं दो तो कहीं तीन कुंड हैं और इस प्रकार सभी कुंड स्नान के लिए आपको हर जगह जाना पड़ता है। यहाँ नहाते हुए भक्ति का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा था। लोग नहाते और जय श्री राम बोलते हुए दूसरे कुंड की तरफ बढ़ जाते। ऐसा दृश्य देखकर मन बिलकुल प्रफुल्लित हो रहा था। मैंने और भी ज्योतर्लिंग के दर्शन किये हैं और हर जगह हर हर महादेव के नारे लगते देखे है लेकिन यहाँ हर हर महादेव कम और जय श्री राम के नारे ज्यादा लग रहे थे जिसका एक ही कारण था कि इस मंदिर से जितना भोलेनाथ का सम्बन्ध है उतना ही भगवान् राम से भी है। कुछ भी हो माहौल बिलकुल भक्तिमय था।
सभी कुंडों में स्नान के पश्चात हम दर्शन के लिए मंदिर में फिर उसी जगह आ गए जहां से सुबह अंदर गए थे। यहाँ जाते ही पता लगा कि यहाँ दर्शन 3 तरह से होता है। पहला है फ्री दर्शन जिसमे आप लाइन में लगकर दूर से ही दर्शन कर सकते हैं। दूसरा दर्शन थोड़ा नज़दीक से होता है और उसके लिए मंदिर समिति की तरफ से 50 रुपए राशि ली जाती है। तीसरा दर्शन 500 रुपए वाला था जिसमे आप शिवलिंग पर जलार्पण (जलाभिषेक) कर सकते हैं। यहाँ पहुंचते ही मेरा सामना सबसे पहले यहाँ के पंडों से पड़ा जो 100 रुपए में जल्दी से दर्शन कराने के नाम पर लोगों से 100 रुपए लेते और 50 रुपए अपने पॉकेट में रखते और 50 रुपए की पर्ची कटवाकर लाइन में लगा देते। ये लोग हमारे पास भी आए और 100 रुपए में दर्शन करवाने की बात करने लगे और साथ ही डराने लगे कि फ्री वाली लाइन में 3 घंटे से कम नहीं लगेगा और 100 रूपये में जल्दी दर्शन हो जाएंगे। मैंने भी उनको उनकी ही अंदाज़ में जवाब दिया कि मैं दिल्ली से 50 घंटे का सफर पूरा करके यहाँ तक पहुंचे हैं तो 3 घंटे और समय लगा देंगे और वैसे भी मेरे पास पूरा दिन भर है और आप इस तरह ठगने वाला काम किसी और के पास जाकर करें। एक तो मैंने उसकी बात नहीं मानी और ऊपर से उसे ठग बोल दिया और मेरा ठग बोलना आग में घी डालने का काम कर गया और वो हमारे ऊपर बिलकुल ही पूरी तरह भड़क गया। खैर उसके भड़कने से मेरा कुछ बिगड़ना तो था नहीं और मैं फ्री वाली लाइन में लग गया। करीब 200 लोगों की लाइन थी और 30 मिनट में दर्शन हो गए और जब हमारी बारी आई तो मुश्किल से 10 सेकंड ही हम वहां रुक सके और उसके बाद हमें वहां आगे बढ़ना पड़ा क्योंकि पीछे सैकड़ों लोगो की भीड़ खड़ी थी।
दर्शन के बाद हम एक जगह बैठे और जहां बैठे हुए थे वहीं पर 50 रुपए वाली दर्शन की पर्ची कट रही थी। पत्नी और मां का मन एक बार फिर से नज़दीक से दर्शन के लिए हुआ तो कंचन, आदित्या और मम्मी-पापा पर्ची 50 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से पर्ची लेकर नज़दीक से दर्शन के लाइन में लग गए और इस बार चारो ने थोड़ा नज़दीक से दर्शन का लाभ उठाया और वापस आकर एक और पर्ची कटवाकर मुझे भी फिर से दर्शन के लिए भेज दिया गया। हमने भी दुबारा दर्शन कर लिया। अब कंचन के मन में पता नहीं क्या चल रहा था जो उसने कहा कि इतनी दूर आये है तो 501 रुपए और खर्च करके जलार्पण कर ही लेते हैं। मैंने भी इंकार नहीं किया और 5 लोगों के 2505 रुपए देकर पर्ची कटवाकर जलार्पण करने चल पड़े। यहाँ बहुत भीड़ नहीं थी, हम सबने आराम से बड़े आराम से भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया और फिर परिक्रमा करके मंदिर परिसर में ही बने छोटे मंदिरों को देखने के बाद मंदिर से बाहर आ गए। महादेव के दर्शन के मन बिल्कुल खुश था। बाहर निकलकर हम लोगों ने नाश्ता किया और फिर कंचन और माँ कुछ सामान खरीदने लगी। सब कुछ करते करते 10:30 बज चुके थे और हमने अभी तक सिर्फ मंदिर में दर्शन और पूजा पाठ ही किया अभी तो पूरा रामेश्वरम घूमना बाकी ही था। पूछने पर पता चल कि बस या ऑटो अग्नितीर्थम की तरफ से ही मिलेगी तो हम उसी तरफ फिर से चल दिए। इससे आगे का वृतांत अगले भाग में बताएंगे जिसमें लक्ष्मण मंदिर, सीता मंदिर, कलाम का घर, धनुषकोडि बीच, राम सेतु, विभीषण मंदिर और भी कुछ जगहों का विवरण होगा। तब के लिए आज्ञा दीजिये। आपका अपना अभ्यानन्द।
जय भोलेनाथ।
अब कुछ रामेश्वरम के बारे में
कैसे पहुंचे : रामेश्वरम सड़क और रेलमार्ग द्वारा देश के सभी शहरों से जुड़ा है। देश के बड़े शहरों से रामेश्वरम तक पहुँचने के लिए सीधी रेल सेवा है। इसके अलावा जिन शहरों से रामेश्वरम तक रेल सेवा नहीं है वो चेन्नई और मदुरै होते हुए रामेश्वरम तक बस या रेल से जा सकते हैं। मदुरै से रामेश्वरम जाने के लिए बसें भी बहुतयात में उपलब्ध है। रामेश्वरम रेलवे स्टेशन से मंदिर की दूरी 2 किलोमीटर ही है जिसे पूरा करने में लगभग 15 से 20 मिनट का समय लगता है।
कहाँ ठहरे : रामेश्वरम में ठहरने के लिए प्राइवेट होटल और गेस्ट हॉउस की कोई कमी नहीं है। यहाँ हर बजट के लिए लोगों के रहने के लिए आसानी से कमरे मिल जाते हैं। मंदिर परिसर के चारों और गेस्ट हाउस, होटल और धर्मशाला बहुतायत में उपलब्ध है। कुछ धर्मशालाएं मंदिर समिति द्वारा भी संचालित की जाती है जिसकी बुकिंग मंदिर समिति की वेबसाइट http://rameswaram.hrce.org.in पर 30 दिन पहले की जा सकती है।
मंदिर में दर्शन : मंदिर में सुबह 4:30 से 6:30 तक मणि दर्शन का समय होता है उसके बाद रेत के बने शिवलिंग के दर्शन होते हैं। मणि दर्शन के लिए 25 रूपये का टिकट लेना पड़ता है। मंदिर में दर्शन की तीन श्रेणियां हैं : पहला फ्री दर्शन, दूसरा शीघ्र दर्शन जिसका 50 रुपए का टिकट है और तीसरा जलाभिषेक जिसका 501 रुपए का टिकट है। कभी कभी फ्री दर्शन से ज्यादा भीड़ शीघ्र दर्शन वाले लाइन में ही हो जाता है।
क्यों जाएँ : यदि आप धार्मिक यात्रा के कारण जाते हैं तो रामेश्वरम भगवन शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और साथ ही भगवान विष्णु के चार धामों में से एक धाम है। यदि आप ऐसे ही सैर सपाटे के लिए जाना चाहते है तो रामेश्वरम में देखने के लिए बहुत कुछ है, धनुष्कोडी बीच, अग्नितीर्थम, राम सेतु, पम्बन ब्रिज आदि बहुत सी ऐसी चीज़े हैं जो यात्रा में एक रोमांच बनाये रखते हैं।
इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें
भाग 3 : मरीना बीच, चेन्नई (Marina Beach, Chennai)
भाग 4: चेन्नई से तिरुमला
भाग 5: तिरुपति बालाजी (वेंकटेश्ववर भगवान, तिरुमला) दर्शन
भाग 6: देवी पद्मावती मंदिर (तिरुपति) यात्रा और दर्शन
भाग 7: तिरुपति से चेन्नई होते हुए रामेश्वरम की ट्रेन यात्रा
भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: रामेश्वरम यात्रा (भाग 2): धनुषकोडि बीच और अन्य स्थल
भाग 10: कन्याकुमारी यात्रा (भाग 1) : सनराइज व्यू पॉइंट
भाग 11 : कन्याकुमारी यात्रा (भाग 2) : भगवती अम्मन मंदिर और विवेकानंद रॉक मेमोरियल
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आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
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मंदिर का उत्तरी द्वार |
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स्वामी विवेकानंद का एक वक्तव्य |
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अग्नितीर्थम के पास आदित्या |
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उत्तरी द्वार से पूर्वी (मुख्य द्वार ) की झलक |
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सामने उत्तरी द्वार और वहीं से दीखता पूर्वी द्वार (मुख्य द्वार ) |
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अग्नितीर्थम के पास |
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समुद्र में मछुआरों की नावें |
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अग्नितीर्थम के पास सूर्योदय की आहत |
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मछुआरों की नावें |
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शांत समुद्र |
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समुद्र में जिंदगी की जद्दोजहद |
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समुद्र में नहाते भक्तगण और आसमान में उड़ते पक्षी |
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रामेश्वरम स्थित कुछ तीर्थों की जानकारी |
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समुद्र में नहाते श्रद्धालु और इन्हीं श्रद्धालुओं की बीच मैं भी अपने बेटे के साथ |
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वाह समुद्र में भी सेल्फी |
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पानी पर पड़ती सूर्य की किरणें |
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शांत समुद्र में श्रद्धालु और दूर नावें |
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शांत समुद्र में श्रद्धालु और दूर नावें |
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विभिन्न स्थानों की दूरियां |
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केबल और बिजली के तारों ने मंदिर की खूबसूरती छीन ली है |
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अग्नितीर्थम के पास एक अन्य मंदिर |
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ऐसे तीर्थों पर इनका दर्शन होना और भी शुभ होता है |
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गाय को थोड़ा सा खिलाने के बाद ये गाय आदित्या से घुल मिल गया |
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मंदिर का मुख्य द्वार (पूर्वी द्वार) |
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समुद्र में नावें |
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समुद्र में कुछ निर्माण कार्य |
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समुद्र में नावें |
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लक्षमण मंदिर में एक जल पक्षी |
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रेलवे स्टेशन से कुछ स्थानों की दूरी |
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कुंड स्नान के टिकट मूल्य के बारे मंदिर समिति द्वारा लगाया गया बोर्ड |
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भाग 8: रामेश्वरम यात्रा (भाग 1) : ज्योतिर्लिंग दर्शन
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जी भर के दर्शन किये आपने....बढ़िया विवरण..एकदम आराम से पड़ा तो भी 10 मिनट लग गए
ReplyDeleteआपने आपने कीमती समय देकर मेरे लेख को पढ़ा इसलिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका भाई जी, हाँ दर्शन तो जी भर कर किए , अगर अकेले होता तो एक बार दर्शन करता पर सब लोगों की अपनी अपनी इच्छा थी
Deleteआपने फ्री, 50 और 500, तीनो तरह से दर्शन किये। बहुत बढ़िया विवरण
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद गौरव जी, हाँ हमने तीन बार और तीनो तरह से दर्शन किये यही सबकी इच्छा थी और शायद भगवान् भोले शंकर की भी मर्ज़ी थी
Deletekya bhagwan ne apne bhakto ko teen category mai baat rakha h jee ..???
Deletesarvtha nindniy. chhama shahit
केटेगरी में बांटने का काम भगवन जी का नहीं है जी, वो तो सबके है और सब उनके है, सूर्य सबको बराबर ही ऊर्जा देता है, नदी और समुद्र सबको अपने जल में बराबर का अधिकार देते है, ये तो केवल पुजारियों का हथकंडा है
Deleteबेहतरीन यात्रा संस्मरण.
ReplyDeleteबनारस के पुजारी खानदान से होते हुए भी पता नही क्यों पंडो को देख मेरा आधा तौला खून जल जाता है जी।
कई प्रसिद्ध मंदिरों से तो में बस उनकी स्थापत्य कला देख कर बाहर से ही प्रणाम कर चला आता हूँ।
बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी, हाँ पंडा लोग थोड़ा परेशान करते है और ये उनकी मजबूरी है , वैसे पंडा लोग भी तो हम-आप जैसे इनसान ही हैं, उनका भी परिवार है, उनकी भी जरूरतें हैं, और उन जरूरतों को पूरा करने लिए इस पर ही निर्भर रहना पड़ता है , हाँ जब पुजारी लोग जबरदस्ती करने लगते है तब बुरा लगता है, बल्कि वो प्रेम से बात करे तो वो आदर के पात्र हो जाएंगे और कोई उनको बुरा नहीं कहेगा और लोग उनको सम्मान भी करेंगे , जैसे राजगीर जाओ तो कुंड स्नान के पास ही हाथ में फूल-अक्षत पकड़ा देंगे और कहेंगे की दक्षिणा दो, तब मन बिलकुल क्षुब्ध हो जाता है
Deleteबहुत अच्छी जानकारी दी आपने। पंडों की अराजकता की वजह से मुझे तो मंदिरों के दर्शन से ही अरूचि हो जाती है। कई जगहें तो ऐसी हैं जहाँ पास जाकर भी मैंने दर्शन नहीं किया। पहले से किसी मन्दिर की व्यवस्था के बारे में जानकारी हो तो इन पंडों की सहायता लेने की नौबत ही न आये।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद पांडेय जी। पंडा लोग परेशान करते है जी, पर घुमक्कड़ी करने के लिए जब निकलते है तब ये सोचकर ही चलते है की दुश्वारियां मिलेगी , हम जहाँ जाते है वहां की जानकारी होने से आसानी हो जाती है,
Deleteमैंने भी तीन बार ही दर्शन किये थे लेकिन साधारण पंक्ति में लगकर,
ReplyDelete2009 में दिसम्बर माह में बहुत ज्यादा भीड नहीं मिली थी।
कुओं में नहाने का लुत्फ तो हमारी टीम ने भी उठाया था।
रही बात पंडो पुजारियों की,
अधिकतर पंडे पाखंडी मिलेंगे, जो लोगों को ठगकर ही अपना रोजगार चलाते आ रहे है।
श्री शैलम ज्योतिर्लिंग में एक नारियल तोडते पंडे से मैं भी भिड गया था। नास्तिक में भी एक पुजारी रुपी भिखारी अपना आपा खो बैठा था।
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी, आपने भी 3 बार दर्शन किये और मैंने भी, मैं तो एक बार ही दर्शन करता पर परिवार की मर्जी जैसे थी वैसे किया। भीड़ तो मुझे भी ज्यादा नहीं मिली थी, और कुंड स्नान भी एक रोमांचक बात रही, कुछ पण्डे लोगो के कारण सभी बदनाम हो जाते है, ऐसे ही त्रिवेंद्रम के गणपति मंदिर में नारियल तोड़ते हुए मुझसे भी एक पुजारी भीड़ गया था
Deleteयात्रा विवरण बहुत ही बढ़िया किया भाई आपने और जानकारी भी बहुत मिली इस पोस्ट से जय भोले नाथ
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाई जी, आते रहिएगा ब्लॉग पर , हर हर महादेव
Deleteबहुत बढिया विवरण
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जी
Deleteनमस्ते। बधाई। तीर्थाटन का आनंद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ खुशी इसी बात की होती है।
ReplyDeleteपण्डा व अन्य लोगों की जिविकोपार्जन का साधन ही तीर्थयात्री ही तो हैं।
धन्यवाद स्मृति ताज़ा करने के लिए।
पहले तो बहुत बहुत धन्यवाद मान्यवर। जी हाँ सही कह रहे हैं आप, तीर्थाटन का सौभाग्य सबको नहीं मिल पाता , लोग शिमला मसूरी ऊटी मनाली और न जाने कहा कहा घूम लेते पर तीर्थाटन के लिए समय नहीं निकाल पाते , रही बात पंडा लोग और पुजारियों की तो वो भी हमारी तरह इंसान ही हैं उनके भी परिवार होते हैं, उनकी भी जरूरतें होती है, पर दुःख तब होता है जब वो परेशान करते हैं
Deleteपण्डे इस कार्य को धार्मिक भावना से नहीं बल्कि व्यापारिक भावना से करते हैं जो कष्टदायी हो सकता है।
Deleteइसके लिए परिस्थितियां उत्तरदायी हैं। धन्यवाद।
जी मान्यवर सही कहा आपने धन्यवाद
Delete9:39 AM
ReplyDeleteवो जून 2013 के समय था जब पहली बार रामेश्वरम गया था उसके बाद भोले की ऐसी किरपा बनी की मई 2017 तक भारत के चार धाम ओर 12 ज्योतिर्लिंग पूरे हो चुके है।।।मेने भी ये कभी नही सोचा था।।
पण्डे की वजह से कई मन खराब हो जाता है अब में इन पंडो की आदतों को भाप गया हूं इसलिए में इनपे ध्यान ही नही देता हु।एक बार कलकत्ता काली मंदिर में एक पण्डे से भयंकर बहस हुई थीं।।
ReplyDelete
धन्यवाद सचिन जी, बहुत अच्छा लगा जो आप हमारे ब्लॉग पर आये, आपने 12 ज्योतिर्लिंग और चार धाम पूरा कर लिया ये सुनकर मुझे भी खुशी हुई और वो भी दिल से, आप जितना तो नहीं पर आपका आधा 6 ज्योतिर्लिंग और 2 धाम मेरा भी हो चुका है
DeleteMaja aa gaya yatra vritant padh ke
ReplyDeleteBahut bahut dhanyavad naman jee, bas aate rahiyega blog par
DeleteRealy bahut Hi Badhiya Welcome to Hello Taxi Service, We are providing the best car rental service in India. Cab Service in India, Taxi Service in India, Cab Booking in India, Car Hire in India, Cab on Rent in India, Online Cab booking in India, Online Taxi Service in India, Non Ac Cab Service, Airport Taxi Service, Railway Taxi Service, Airport cab booking, Cabs in India, Car Rental Tour Packages in India
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प्रभावी रूप से लिखा है आपने अभयानंद जी ! जानकारी काम आएगी !!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद योगेंद्र भाई जी, जानकारी किन्हीं के काम आ जाये तो समझूगा कि मेरा लिखना सार्थक हुआ
Deleteजय श्री रामेश्वरम शिव की.... बहुत अच्छा और जानकारी योग्य विवरण,
ReplyDeleteलेख में काफी मेहनत की आपने .... चित्र भी शानदार ..... आपकी यात्रा की कहानी बखूबी कह रहे है....
घुमक्कड़ी दिल ♥ से ...
हर हर महादेव , धन्यवाद भाई जी, आपको हमारी पोस्ट अच्छी लगी हमें बड़ी खुशी हुई , आपको चित्र भी पसंद आये उसके लिए एक बार फिर से धन्यवाद , घुमक्कड़ी दिल से
DeleteSir kamal ka lekh hai aap ka puri jaankati mil gaye south ke temple ki Superb
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Deleteरामेश्वरम दर्शनीय स्थल की जानकारी देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया.
ReplyDeleteब्लाॅग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको
Deleteरामेश्वरम यात्रा की विस्तृत जानकारी निश्चित ही हमारे लिए मार्गदर्शक होगा ।मैं भी 16 अक्टूबर से दक्षिण भारत के धार्मिक यात्रा में जा रहा हु।लेख से हमे आसानी होगा।
ReplyDeleteब्लाॅग पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको।
Deleteमेरे लिखे लेख से आपको थोड़ी भी सहायता मिल जाए तो समझिए कि मेरा ये लेख लिखना सफल हुआ।
Excellent description
ReplyDeleteYou provide very good information on the Rameshwaram Jyotirling temple for Hindi readers. It will be good information for Hindi readers of India.
ReplyDeleteFor more Indian tourist places please visit website TouristBug. Here you will get details of tourist places in India.
Neelkanth Mahadev Temple Rishikesh Uttarakhand
Omkareshwar Mamleshwar Jyotirling Temple Khandwa Madhya Pradesh
अग्नितीर्थ के बाद भींगे कपड़े में मंदिर मे प्रवेश करने की अनुमति है?
ReplyDeleteअगर हां तो मंदिर के अंदर वस्त्र बदलने के व्यवस्था है?
हां जी अग्नितीर्थम के बाद आप गीले कपड़े में भी मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं। और यदि आप मंदिर परिसर के कुंड के जल से स्नान करना हो तो वैसे भी सूखे वस्त्र पहनकर भी जाएंगे तो उन सभी कुंडों के पानी से नहाने के बाद आप गीले हो ही जाएंगे। मंदिर के अंदर प्रवेश करने के बाद दो-तीन जगह पंडों ने कपड़े बदलने की व्यवस्था किया हुआ है।
Deleteअत्यंत खूबसूरत यात्रांत चित्रण। धन्यवाद।
ReplyDeleteRameshwaram me Mahadev ko arpit karne ke liye Kamal ka pushp milta hai?
ReplyDeleteबहुत सुंदर और सहज लिखा।मैं अभी तक महादेव का दर्शन नही कर सका।लेकिन आपके लेख के माध्यम से आनंद ले पाया हूँ।
ReplyDelete