Tuesday, January 23, 2018

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन (Ujjain-Omkareshwar Journey-1: Delhi to Ujjain)

उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन (Ujjain-Omkareshwar Journey-1: Delhi to Ujjain)




रामेश्वरम के पवित्र ज्योतिर्लिंग के दर्शन करके लौटने के बाद से ही उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने का मन होने लगा था। जैसा कि हमारी एक गलत आदत है कि कहीं भी जाओ तो एक जगह जाकर वापस आना मुझे अच्छा नहीं लगता है तो हमने उज्जैन के पास ही स्थित किसी और जगह जाने के बारे में हिसाब-किताब लगा लिया और वो जगह थी ओम्कारेश्वर। उज्जैन और ओंकारेश्वर में कोई खास दूरी नहीं है और उज्जैन से करीब चार घंटे का सफर करके ओंकारेश्वर पहुंचा जा सकता है तो हमने उसी हिसाब से उज्जैन के साथ-साथ ओंकारेश्वर को भी अपनी इस यात्रा में जोड़ लिया। छुट्टियों के हिसाब से बहुत सोच विचार कर दिन और तिथियों का हिसाब लगाया तो अगस्त में दो ऐसा संयोग बन रहा था कि एक छुट्टी लेकर इस यात्रा को अंजाम दिया जा सकता था। पहला संयोग था 6 से 8 अगस्त और दूसरा था 13 से 15 अगस्त। 6 से 8 अगस्त तो पहले ही तुंगनाथ-चंद्रशिला के लिए आरक्षित हो चुका था तो दूसरे विकल्प पर ही जाने का निश्चित हुआ। अतः 13 अगस्त रविवार और 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस की छुट्टी को देखते हुए हमने आॅफिस में पहले ही बीच में पड़ रहे 14 अगस्त की छुट्टी के लिए आवेदन दे दिया। अब एक दिन की छुट्टी ले रहा था तो कोई दिक्कत नहीं हुई।


छुट्टियों का हिसाब लगाने के बाद हमने किसी साथी की तलाश करना शुरू किया कि कोई और एक साथी मिल जाएं तो सफर आसानी से कट जाएगा पर ऐसा हुआ नहीं और ये सफर भी एकल सफर ही हुआ। सब कुछ निश्चित करने के बाद हमने 12 अगस्त का टिकट दिल्ली से इंदौर (इंटरसिटी एक्सप्रेस, गाड़ी संख्या 12416) और 15 अगस्त का टिकट उज्जैन से दिल्ली (इंटरसिटी एक्सप्रेस, गाड़ी संख्या 12415) का ले लिया और यात्रा की तिथि का इंतजार करने लगा। कहते हैं कि इंतजार के दिन मुश्किल से बीतते हैं तो बीतते-बीतते वो दिन भी आ गया जब हमें यात्रा पर निकलना था।

मैं एक यात्रा संबंधी ग्रुप में व्हाट्सएप्प ग्रुप में सम्मिलित हूं जहां देश के कई राज्यों के घूमने वाले लोग जुड़े हैं। यात्रा ग्रुपों में रहने का एक फायदा ये होता है कि यात्रा के लिए कोई न कोई मार्गदर्शक के रूप में मिल ही जाते हैं और मेरे साथ भी यही हुआ। जैसे दक्षिण की यात्रा में महाराष्ट्र निवासी घुमक्कड़ मित्र नरेंद्र शेलोकर ने मार्गदर्शन किया था वैसे ही इस यात्रा में इंदौर निवासी डाॅ. सुमित शर्मा जी  ने हमारा मार्गदर्शन किया। यात्रा की योजना तो हमने अपने अनुसार ही बनाया था पर अब यात्रा उनके मार्गदर्शन में करना था इसलिए योजना में थोड़ा बदलाव भी लाजिमी था। हमारी योजना पहले ओंकारेश्वर और बाद में उज्जैन को निपटाने की थी लेकिन अब योजना बदल कर पहले उज्जैन और बाद में ओंकोरेश्वर हो गई। अंततः जिस यात्रा को मूर्त रूप दिया जाना था उसका खाका इस प्रकार बना : 

12 अगस्त : रात्रि में दिल्ली से उज्जैन के लिए प्रस्थान।
13 अगस्त : उज्जैन पहुंचकर पहले राम घाट पर स्नान और फिर महाकाल के दर्शन के उपरांत उज्जैन के विभिन्न स्थानों का भ्रमण और शाम में इंदौर के लिए प्रस्थान और घुम्मकड़ मित्र सुमित शर्मा के यहां रात्रि विश्राम।
14 अगस्त : सुबह में ओंकारेश्वर के लिए प्रस्थान, ज्योतिर्लिंग दर्शन, परिक्रमा पथ पर परिक्रमा और फिर वापस इंदौर और रात्रि विश्राम।
15 अगस्त : सुबह में इंदौर से देवास के लिए प्रस्थान और चामुण्डा देवी के दर्शन के पश्चात दिल्ली के लिए वापसी।
16 अगस्त : सुबह में दिल्ली पहुंचकर यात्रा की समाप्ति!

12 अगस्त की सुबह आॅफिस जाने से पहले सफर की सारी तैयारियों को पूरा कर लिया, जिससे शाम को दिक्कत न हो। वैसे इस तैयारी में हमने कुछ नहीं किया, हम तो बस मूकदर्शक बने बैठे थे क्योंकि सारी तैयारियों का जिम्मा कंचन जी ने अपने पास ले रखा था। सफर पर निकलने वाले दिन भी मैं आराम से समय से आॅफिस गया और पूरे दिन काम की व्यस्तताओं में उलझे हुए कब शाम हो गई पता ही नहीं लगा। शाम को समय से आॅफिस से निकला और घर गया। यात्रा की तैयारियां तो पहले ही पूरी हो चुकी थी और अब केवल बैग उठाकर स्टेशन के लिए निकलना था। जिस गाड़ी का हमने टिकट लिया था वो दिल्ली सराय रोहिल्ला से रात 9:10 बजे खुलकर नई दिल्ली होते हुए 10:10 पर निजामुद्दीन पहुंचती है और 10:15 बजे निजामुद्दीन से खुलती है। हमारे लिए सबसे नजदीक का स्टेशन निजामुद्दीन ही है और मैंने टिकट भी निजामुद्दीन से लिया था। गाड़ी के समयानुसार उपयुक्त समय देखकर करीब हम घर से 9 बजे निकले और साढ़े नौ बजे निजामुद्दीन स्टेशन पहुंच गए। अब जैसा कि भारतीय रेल का नियम है उसके हिसाब से दिल्ली से खुलने वाली गाड़ी दिल्ली से ही करीब 25 मिनट की देरी से रात 10:40 पर निजामुद्दीन से इंदौर के लिए चली। गाड़ी में अधिकतर लोग उज्जैन या ओंकारेश्वर जाने वाले ही थे। उज्जैन वाले को तो उज्जैन में ही उतरना होगा पर ओंकारेश्वर जाने वाले के लिए इंदौर तक ट्रेन से उसके बाद का सफर बस से करना होता है। हमने भी अपनी योजना के अनुसार पहले ओंकारेश्वर जाने का ही सोचा था इसलिए टिकट इंदौर तक का लिया था। 

जैसा कि अक्सर होता है कि कुछ यात्री रेल का सफर करते समय पूरा रसोईघर ही साथ लेके चलते हैं जैसे कभी खाया ही नहीं हो। भाई सफर है एक दिन कम खा लोगे तो दुबले और कमजोर नहीं हो जाआगे। और यात्राओं की तरह यहां भी यही हुआ, ट्रेन खुलते ही लोगों ने अपने अपने बरतन और थाली निकालकर बर्थ पर पसारना आरंभ कर दिया। मेरी सीट साइड अपर वाली थी अतः किसी से कोई मतलब नहीं था, जब चाहो सोओ, जब चाहो बैठो और जब चाहो खाओ। मुझे तो खाना था नहीं और न ही बैठना था बस अब जल्दी से सो जाना था। उधर की छः सीट में पांच सीट एक परिवार का था और एक तरफ का मिडिल बर्थ किसी अकेले था। अब जैसे ही उस परिवार ने अपने रसोईघर को वहां फैलाना आरंभ किया तो उस अकेले बंदे ने साफ कह दिया कि आप लोगों को खाना है तो कहीं और जाकर खाओ क्योंकि मेरे सोने का समय हो चुका है और मैं अपना बर्थ लगा रहा हूं क्योंकि मुझे सोना है। उन सब में कुछ बहस-विवाद भी हुआ और उस खाऊ-पकाऊ परिवार उस अकेले आदमी को नियम-कानून का हवाला भी देने लगा। अब वो अकेला बंदा भी नियमों की दुहाई देने पर अपने जिद पर आ गया कि अगर नियम की बात है तो मैं आराम से बर्थ लगाकर सो सकता हूं आपको जिससे भी फैसला करवाना है करवा लीजिए। नौ बजे के बाद हम बर्थ लगा सकते हैं और यहां तो 11 बज रहे हैं, आप घर से खाना लेकर इसीलिए लेकर आए हैं कि दूसरे को परेशान करें।

वो अकेला बंदा एक बार ये भी बोला कि मैं आपके अपर बर्थ पर सो जाता हूं और आप लोग मिडल बर्थ ले लीजिए तो वो परिवार इस बात पर भी सहमत नहीं हो रहा था और कह रहा था कि भाई ऊपर की दोनों बर्थों पर हमने बच्चों को सुला रखा है। ये भी एक हद ही थी कि एक आदमी आपकी सुविधा के लिए बर्थ बदलने कह रहा है और फिर भी आप नहीं मान रहे हों। खूब बहस के बाद अंततः उस परिवार ने उनको ऊपर की बर्थ दी तो मामला सुलझा। अब उन लोगों का खाऊ-पकाऊ प्रोग्राम जो चालू हुआ उसका क्या कहना। ट्रेन दिल्ली से चलकर मथुरा पहुंच गई पर भोजन अभी तक बंद नहीं हुआ था। लगता है उन लोगों ने सालों से नहीं खाया था। और तो और खाने के साथ-साथ उन लोगों ने सीट की जो हालत की उसे देखकर यही कहा जा सकता है, ऐसे इंसान से अच्छा तो जानवर भी होता है जो बैठने से पहले जगह को पैरों से थोड़ा साफ कर लेता है। ट्रेन मथुरा से करीब एक बजे खुली पर उनकी खाने की योजना चलती रही। उनके इस भोज के आयोजन को देखते देखते मथुरा के बाद कब हमें भी नींद आ गई कुछ पता नहीं।

पूरे दिन की थकान और सोने में हुई देर के कारण जो नींद आई कि ट्रेन मथुरा से खुलने के बाद कब भरतपुर, बयाना, गंगापुर और सवाई माधोपुर से से गुजर गई पता नहीं नहीं चला। सुबह जब नींद खुली थी तो देखा कि गाड़ी कोटा स्टेशन पर खड़ी है। घड़ी देखा तो छः बजने वाले थे और समयानुसार गाड़ी एक घंटे की देरी से चल रही थी। ट्रेन कुछ देर में कोटा से खुली और अपने कुछ पड़ावों पर रुकते हुए करीब डेढ़ घंटे की देरी से नागदा जंक्शन पहुंच गई। नागदा से उज्जैन तक जाने के लिए एक घंटे का सफर और बाकी था। नागदा स्टेशन को देखते ही अपनी त्रिवेंद्रम से दिल्ली वापसी की यात्रा भी याद आ गई। उस समय भी गाड़ी यहां करीब एक घंटे खड़ी रही थी। खैर जैसे तैसे करके करीब ग्यारह बजे ट्रेन दो घंटे की देरी से नागदा स्टेशन से खुली और उज्जैन की तरफ बढ़ने लगी। धीरे धीरे रेंगते हुए किसी तरह ट्रेन करीब बारह बजे उज्जैन स्टेशन पहुंच गई। गाड़ी रुकते ही हम जल्दी से ट्रेन से उतरकर स्टेशन से बाहर निकले इतने में ही मित्र सुमित शर्मा जी का फोन आ गया और उन्होंने उस दिन की आगे की पूरी योजना को विस्तार समझाया। सुमित जी से बात करने के बाद अब बारी थी पहले रामघाट तक पहुंचने की, जिसके लिए आॅटो की तलाश में मैं सड़क किनारे जाकर खड़ा हो गया और आॅटो का इंतजार करने लगा। अब जब तक आॅटो आएगी तब तक आप लोग भी थोड़ा आराम कर लीजिए और मैं भी यहीं एक पत्थर पर बैठ कर आॅटो का इंतजार करता हूं।

अभी के लिए बस इतना ही। इससे आगे की जानकारी अगले पोस्ट में जिसमें हम आपको ले चलेंगे क्षिप्रा के किनारे उज्जैन के प्रसिद्ध रामघाट तक स्नान के लिए और साथ ही महाकाल मंदिर के दर्शन करेंगे। 
धन्यवाद।



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :




इस पोस्ट में लगाए गए स्टेशनों के सभी फोटो मेरी पिछली यात्रा की हैं जो हमने त्रिवेंद्रम से दिल्ली आते हुए लिया था, पर ये स्टेशन दिल्ली से उज्जैन के बीच में ही उसी यात्रा मार्ग पर पड़ते हैं।



दिल्ली का एक स्टेशन ओखला

दिल्ली का एक स्टेशन तुगलकाबाद

दिल्ली और मथुरा के बीच

मथुरा 

मथुरा स्टेशन का एक दृश्य

मथुरा और भरतपुर के बीच

भरतपुर

सवाईमाधोपुर

धरती और बादल 

धरती और बादल

दरा स्टेशन 

चलती ट्रेन का एक दृश्य 

महिदपुर रोड स्टेशन 

रोहल खुर्द स्टेशन 

नागदा जंक्शन 

पवनचक्की 

बरसने को आतुर बादल 


इस पोस्ट में लगाए गए स्टेशनों के सभी फोटो मेरी पिछली यात्रा की हैं जो हमने त्रिवेंद्रम से दिल्ली आते हुए लिया था, पर ये स्टेशन दिल्ली से उज्जैन के बीच में ही उसी यात्रा मार्ग पर पड़ते हैं।


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 1: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-1 : दिल्ली से उज्जैन
भाग 2: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-2 : महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
भाग 3: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-3 : विक्रमादित्य का टीला और हरसिद्धी मंदिर
भाग 4: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-4 : भतृहरि गुफा और गढ़कालिका मंदिर
भाग 5: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-5 : कालभैरव मंदिर और सिद्धवट मंदिर
भाग 6: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-6 : मंगलनाथ मंदिर और संदीपनी आश्रम
भाग 7: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-7 : इंदौर से ओंकारेश्वर
भाग 8: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-8 : ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन
भाग 9: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-9 : ओंकारेश्वर परिक्रमा पथ
भाग 10: उज्जैन-ओंकारेश्वर यात्रा-10: ओंकारेश्वर से देवास











32 comments:

  1. हम भी यही सोच रहे थे कि आप तो रात को निकले पर फोटो सारे दिन के.. भोज की फोटो देखने की लालसा रह गयी 😉😉
    चल पड़ी अब नयी रेल है। राही चलता जा..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका जो आप हमारे दर पर पधारे।

      हां जी ये फोटो पहले के रिजर्व रखे हुए थे कि कभी बाद में काम आएगा। भोज का फोटो लेने का मतलब था कि एक बड़ा विस्फोट पहले से ही गदर मचा हुआ था और हम फोटो लेते तो सोचिए क्या होता।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी!!! बस आते रहिएगा!!!

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  3. बहुत बढ़िया शुरुआत ..... अभय जी ....

    यात्रा रात की और फोटो दिन के.... पर आपके ऊपर वाले टिप्पणी से समझ गये..

    कुछ लोगो को ट्रेन में खाना खाने में आनंद आता है... और खाने की महक पूरी बोगी में भर जाती है ... वैसे यदि आपकी यात्रा रात नौ बजे के बाद है तो खाना खाकर ही चलना चाहिए ...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी!!!
      हां यात्रा रात की है और फोटो दिन के है ये पहले वाली यात्रा के फोटो हैं। इसलिए मैंने फोटो के नीचे लिख दिया है कि ये किसी और समय की फोटो है।
      कुछ लोगों की आदत होती है कि ट्रेन में बैठते ही खाना शुरू, जैसे कि गाड़ी में खाने के लिए ही आए हों। रात ग्यारह बजे गाड़ी खुले उसके बाद खाना शुरू करना कहीं से भी उचित नहीं लगता। आराम से घर से खाकर निकलिए और ट्रेन में बैठिए या सो जाइए।

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  4. बढ़िया लिखा है ..पेटू सवारी से लेकर कोटा की सुबह का नजारा...........महाकाल की नगरी में स्वागत है आपका

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद महेश जी!!! वाह वाह पेटू सवारी और कोटा की वो शानदार सुबह के बाद, महादेव की शरण में।

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  5. अच्छी शुरूआत सर जी
    यह आप ने सही कहा कुछ लोगों को ट्रेन में पता नहीं इतना सारा खाना लेकर आने की क्या आदतों हैं
    रेल विभाग इतना नोटिफिकेशन जारी करता है कि कम से कम सामान रखिए और यात्रा का आनंद लीजिए कि मगर कुछ लोगो को यह बात समझ नहीं आतीं

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    1. बहुत सारा धन्यवाद अर्जुन जी!!!
      हां जब दिन और रात का सफर हो तो खाना लेकर चलना तो ठीक लगता है पर जब गाड़ी दस बजे रात को खुलने वाली हो तो भी लोग खाना लेकर चलते हैं, ऐसा न कि घर से ही खा लें। सफर में जितना कम सामान उतना आनंद।

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  6. बहुह अच्छी शुरुआत, भाई जी

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद अंकित जी!!!!

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  7. बहुत बहुत धन्यवाद जी!!!!

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