Friday, June 25, 2021

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)

तीर्थ : भारत का हृदय (Pilgrimage: Heart of India)



भारत गांवों और तीर्थों का देश है और हम इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि भारत का शरीर गांवों में और हृदय तीर्थों में बसता है। भारतीय जनजीवन में संचित चिरकालीन श्रद्धा एवं भावना का यथार्थ दर्शन इन तीर्थों में ही होता है। हमारे देश में यह जो एक अद्भुत सामासिक एकता दिखाई देती है, उसका रहस्य भी हमारे हृदयस्वरूप इन्हीं तीर्थों की पवित्रतम एवं मनोरम तपोभूमि में निहित है। क्योंकि वहां देश के कोने-कोने से लाखों नर-नारी एक ही कामना, एक ही आकर्षण के वशीभूत होकर पुरातन काल से एकत्रित होते आ रहे हैं। वे कहीं भी रहते हों, कुछ भी करते हों, उनका अन्तर्मन अधिक नहीं तो जीवन में कम-से-कम एक बार इन तीर्थों की पवित्र रज मस्तक पर धारण करने को आतुर रहता है। यही कारण है कि जब यात्रा की आधुनिक सुविधाएं प्राप्त नहीं थी, तब भी तीर्थयात्रियों का तारतम्य कभी टूटा नहीं और सहस्रों मील पैदल चलकर तीर्थों के दर्शन करने लागे सहर्ष आते-जाते रहे। इस प्रकार उपलब्ध इतिहास की दृष्टि से भी परे, काल की अनन्त श्रृंखला को लांघकर अनेकानेक छोटे-बड़े उथल-पुथल के अभ्यन्तर, वैयक्तिक, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक अथवा अन्य किसी भी विवशता के बन्धन से मुक्त, देश की आन्तरिक समता को अक्षुण्ण बनाए रखकर उसे अमर जीवन प्रदान करने का जो श्रेय प्रकृति के सुरम्य वातावरण में बसे हमारे तीर्थों को प्राप्त है। उसकी मिसाल संसार में अन्यत्र दुर्लभ है।

इस वृहत् देश के एक छोर से दूसरे छोर तक मणियों की माला जैसे गूंथे हुए उन अनेक तीर्थों में चार दिशाओं में अवस्थित चारों धाम की बहुत प्रसिद्ध है, जहां हर व्यक्ति अपने जीवन में एक बार अवश्य जाना चाहता है। उन्हीं चारो धामों में अपनी पर्वतीय भव्यता से पूर्ण हिमालय के हृदय-तल पर विराजमान श्री बदरी-केदारधाम उत्तर दिशा का मुकुटमणि है, जिसे हिमालय के दो नयन भी कह सकते हैं। अब जब हिमालय का नाम आ ही गया तो कुछ बातें हिमालय की भी हो जाए।

हिमालय ने सदा से ही धर्म-प्राण भारतीयों को आकृष्ट किया है। उनकी सदा ही यह जिज्ञासा रही है कि ऐसी कौन सी प्रेरणा है जिसने युगों युगों से हमारे योगियों, साधकों और धर्माचार्यों को आह्वान किया है। हिमालय की प्राकृतिक छटा, उसकी गगन-चुम्बी पर्वतमाला, उसके कल-कल निनाद करते प्रपात, जल स्रोत और नदियां मनन और चिन्तन की स्वतः प्रेरणा देते हैं। इसी के कारण भारतीय संस्कृति का विकास करने वाले आचार्यों ने हिमालय की कन्दराओं में बैठकर साधना की।

हिमालय को देवी-देवताओं का निवास भी कहते हैं। हिमालय देवतात्मा है। हिमालय शिव स्वरूप है। शिव और पार्वती का संबंध हिमालय के साथ जुड़ा हुआ है। न जाने कितने देवता आज भी हिमालय के उन्नत शिखरों पर वास करते हैं। हिमालय भारत का स्वर्ण मुकुट है। हिमालय का संबंध युग-युगों से भारत के महापुरुषों, ऋषियों और तपस्वियों के नाम के साथ हुड़ा है। इसकी कन्दराओं और उपत्यकाओं में न जाने कितने ऋषियों ने साधना की है।

हिमालय वसुधा के लिए अनुपम कोषागार है। हिमालय अनेक सरिताओं का उद्गम स्थान है जिनमें इस देश को गौरवान्वित करने वाली गंगा और यमुना जैसी नदियां सम्मिलित हैं। हिमालय खनिज-सम्पत्ति का अनूठा भंडार है। हिमालय साधना करने वाले व्यक्तिों के लिए तपोभूमि है। हिमालय का अनुपम सौंदर्य अनायास ही मानव-हृदय को मोह लेता है। हिमालय-आत्मचन्तिन, ज्ञान और मुक्ति प्राप्ति के लिए साधकों, चिन्तकों एवं योगियों को प्रश्रय देता रहा है। न जाने कितने तपस्वियों और महापुरुषों ने इसे अपना साधना-क्षेत्र बनाया।

फोटो : केदारनाथ (Kedarnath)

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