Thursday, November 2, 2017

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता




तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा के इस भाग में आईए हम आपको ले अपने साथ चोपता तक लेकर चलेंगे। चोपता का नाम सुनते ही कुछ अजीब सा लगता है कि कैसा नाम है चोपता। चोपता नाम बेशक कुछ बेढब सा है, मगर यह उत्तराखंड में गढ़वाल हिमालय की सबसे खूबसूरत जगह है। यहां पहुंचकर आप प्रकृति से सीधा साक्षात्कार कर सकते हैं। चोपता समुद्र तल से करीब 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है और इससे थोड़ी ज्यादा ऊंचाई तक का क्षेत्र हम सबकी पहुंच में होता है। यहां आपने के लिए सबसे उपयुक्त समय मई से लेकर नवंबर तक है लेकिन बरसात में यहां आना थोड़ी परेशानी खड़ी करता है। दिसंसबर से अप्रैल तक यहां की ठंड बिल्कुल ही असहनीय होती है। यहां बहने वाली हवाएं बहुत ही ठंडी होती है। यहां आस-पास चारों तरफ फैली हरियाली के बीच पल-पल बारिश से सामना और बदन पर बादलों की मखमली छुअन का आनंद ही कुछ और है। तुंगनाथ जाने के लिए चोपता आधार शिविर हैं। चोपता तक आप सड़क मार्ग से आ सकते हैं और चोपता से आगे का सफर पैदल चढ़ाई या घोड़े से पूरी होती है। भले ही ही यहां खाना-पीना थोड़ा महंगा मिलता है पर खाने-पीने की कोई दिक्कत नहीं है। यहां दूर दूर तक फैले घास के मैदान जिसे स्थानीय भाषा में बुग्याल कहते है, आपको एक अलग ही दुनिया की सैर कराती नजर आएंगी। वैसे अगर हम अपने अनुसार कहें तो चोपता के तारीफ जितनी की जाये उतनी कम है। कुछ लोगा तो चोपता की तुलना स्वीटजरलैंड से करते हैं। प्रकृति की ने भी इस जगह को दिल खोलकर सजाया-संवारा है। आज भी यह स्थान शहरों की भागा-दौड़ी से बहुम दूर है। भीड़भाड़ के नाम पर यहां केवल कुछ ढाबे और कुछ दो कमरे वाले होटल हैं, जिसमें यहां आने वाले यात्री विश्राम कर सकते हैं और साथ ही जो भी गेस्टहाउस या ढाबे यहां पर बने हैं सब लकड़ी के ही बने मिलते हैं।


आईए अब यात्रा की बात करते हैं। करीब साढ़े नौ बजे हम कालीमठ से गुप्तकाशी वापस आ चुके थे और गुप्तकाशी में ज्यादा समय व्यतीत न करते हुए करीब 10 मिनट में ही हम गेस्ट हाउस से अपना सामान लेकर बाहर आ गए। होटल वाले अंकल जी को पैसे हमने कल शाम को ही दे दिया था। अतः इस समय केवल उनको बताया दिया कि हम लोग अब जा रहे हैं और आप अपना कमरा देख लीजिए। ठीक है कहते हुए वो कमरा देखने चले गए। हमने जीप बुक करने के बाद जीप वाले को होटल के पास ही आने के लिए कह दिया था और वो हमारे पीछे ही होटल के पास आ गया था। गेस्ट हाउस से बाहर आकर हमने जीप में सामान रखने में व्यस्त हो गए। जीप में सामान रखने के बाद हम लोगों ने वहीं पास में एक दुकान पर एक-एक कप चाय पिया और फिर गाड़ी में बैठ गए। घड़ी देखा तो ठीक 9ः45 यानी पौने दस बजे थे। हम सबके गाड़ी में बैठते ही जीप वाले ने जीप स्टार्ट की और चोपता की तरफ चल पड़ा। गुप्तकाशी से बाहर आकर पहले तो एक पेट्रोल पंप पर उसने डीजल भरवाया और वहीं पर एक आदमी को पीछे की सीट पर ये कह कर बैठा लिया कि ये मेरे परिवार का सदस्य है और आगे उतर जाएगा। पर हकीकत में वो व्यक्ति उसके परिवार का सदस्य था या नहीं ये तो पता नहीं पर एक चोर जरूर था इसका पता मुझे चोपता पहुंचने पर पता चला जब हमें अपने बैग के पिछले पाॅकेट की चैन खुली हुई मिली। अच्छा था कि उस पिछले पाॅकेट में दवाइयों के अलावा हमने कुछ नहीं रखा था, वरना एक बड़ा नुकसान हो सकता था। अब आप कहेंगे कि यात्र के शुरुआत में ही हमने ये क्यों बताना शुरू कर दिया तो ऐसा हम ये इसलिए बता दिए कि हमारे साथ तो ये घटना हुई ही आपके साथ न हो। वैसे गलती हमारी ही थी कि हमने गाड़ी रिजर्व ही किया तो फिर दूसरे के ऊपर मोह-ममता दिखाते हुए उसे गाड़ी बैठने की अनुमति ही क्यों दी। अब एक बार गलती हो गई पर आगे से इसका पूरा ख्याल रखा जाएगा और ऐसी हालत में चाहे कोई भी गाड़ी बैठने देने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहेगी। पेट्रोल भरवाने के बाद हमारी गाड़ी भीगी और फिसलन भरी सड़क पर धीरे धीरे चोपता की तरफ चल पड़ी।

मौसम अब तक बिल्कुल साफ हो चला था और मौसम का मिजाज देखकर हम सब आपस यही बातें कर रहे थे कि अगर ऐसा ही मौसम रहा तोे हम लोग चोपता पहुंचने के बाद वहीं कोई कमरा लेंगे और सारा सामान रखकर जल्दी ही तुंगनाथ के लिए निकल जाएंगे और उसके बाद समय बचा तो चंद्रशिला जाएंगे अन्यथा फिर वापस आकर चोपता में रात्रि विश्राम करेंगे। इस बात का सभी साथियों ने समर्थन किया। चोपता पहुंच कर आज ही तुंगनाथ जाना और फिर आज ही वापस चोपता आ जाने वाली बात शायद हमारे सातवें साथी को पसंद नहीं आई, तभी वो फिर से बरसने के लिए अपनी आतुरता प्रदर्शित करने लगा। अभी करीब दस मिनट ही हुए होंगे कि बूंदा-बादी फिर से आरंभ हो गई जो समय के साथ तेज होती जा रही थी और जल्दी ही अपने पूरे वेग के साथ बरसने भी लगी। कुण्ड तक आते आते इस बरसात ने बहुत ही विकराल रूप धारण कर लिया और हमारी योजना पर पानी फेरने की कोशिश करने लगा। हम सबकी बात सुनकर ड्राइवर अपने आप बोल पड़ा कि आप लोग कहां इस मौसम में ईधर आ गए हैं, इस मौसम में केदारनाथ जाने वाले यात्रियों की गिनती भी उंगलियों पर की जा सकती है और तुंगनाथ की तो कुछ कहिए ही मत। जुलाई और अगस्त के महीने में तुंगनाथ जाने वाले यात्रियों की अगर बात की जाए तो औसतन हर दिन के हिसाब से 5 यात्री भी नहीं आते हैं। आप लोगों के लिए एक अच्छी बात ये है कि आज श्रावण पूर्णिमा है और आज के दिन आसपास के गांवों के अधिकतर लोग बाबा तुंगनाथ के दर्शन के लिए जाते हैं इसलिए आपको चोपता से तुंगनाथ के बीच कुछ लोग मिल भी जाएंगे वरना पूरे दिन में कोई भूला-भटका आदमी भी बहुत मुश्किल से ही मिलेगा। इसी तरह बातें करते हुए हमारा कुण्ड तक का सफर पूरा हो गया। गुप्तकाशी से आते हुए कुण्ड में मंदाकिनी नदी को पार करने के बाद दाएं हाथ की तरफ वाला रास्ता रुद्रप्रयाग होते हुए हरिद्वार की ओर बाएं हाथ की तरफ वाला रास्ता उखीमठ होते हुए चोपता और आगे गोपेश्वर चली जाती है तथा यही रास्ता आगे जाकर चमोली पहुंच जाती है।

हमें चोपता की तरफ जाना था, अतः चालक ने गाड़ी को बाएं की तरफ मोड़ लिया और हम चल पड़े उखीमठ के रास्ते से होते हुए चोपता की तरफ। पता नहीं ये बरसात हमसे कौन सी दुश्मनी निकाल रहा था या कोई बिछड़ा हुआ दोस्त था तो साथ छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। कभी मद्धिम तो कभी तेज गति से बरसते हुए ये हमारे साथ-साथ बिना हमारी मर्जी के चला जा रहा था। इस बरसात के रंग-रूप देखकर तो हम बस यही कहेंगे कि ये कोई दोस्त ही था जो अपने कारनामे से मुझे पहाड़ में मौसम के अजग-गजब रंग दिखलाने के लिए ही साथ चल रहा था। बरसात होती रही और हम चलते रहे तथा करीब 20 मिनट के सफर के बाद हम उखीमठ पहुंच गए। हमारी गाड़ी रिजर्व थी अतः गाड़ी वाले ने उखीमठ बाजार की तरफ न जाकर बाहर ही बाहर गाड़ी को निकाला और चलता रहा। हर जगह रास्ते में एक तरफ पहाड़ों से गिरता झरना तो दूसरी तरफ गहरी खाई रोमांचित करती रही। वैसे यहां रोमांच कम और डर ज्यादा लग रहा था। वैसे इस मौसम में भी यहां आने का एक अलग ही अहसास है। सब कुछ बिल्कुल अलग ही दुनिया की चीजें लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि जैसे हम कोई फिल्म देख रहे हों जहां सब कुछ सजाया-संवारा गया हो। कभी बचपन में छोटे दादा से तो चार धाम यात्र वाली कहानी सुनी थी वो सब कुछ आज अपनी आंखों से देख रहा था। मौसम के हालात ऐसे थे कि जहां तक नजर जा रही थी या यों कहें तो बादलों के कारण जहां तक दिखाई पड़ रहा था केवल हरियाली ही हरियाली थी। पहाड़ों पर हरे-हरे पेड़ उसके ऊपर काले-सफेद बादल साथ साथ चल रहे थे। कहीं कहीं तो ऐसा लग रहा था कि हम ऊपर हैं और बादल नीचे। इसी तरह चलते हुए हम मक्कू बैंड तक पहुंच गए।

मक्कू बैंड से दाएं तरफ वाला रास्ता मक्कू गांव की तरफ चला जाता है और बाएं तरफ का रास्ता चोपता चला जाता है। हम चोपता के रास्ते पर चलने लगे और साथ ही चालक से कुछ बातें करने लगे। बातों बातों में चालक ने बताया कि सर्दियों में इस तरफ से कोई गाड़ी नहीं जाती है और जिसे भी चोपता जाना होता है वो यहां से पैदल ही जा सकते हैं क्योंकि उस समय सड़कों पर इतनी बर्फ होती है कि किसी भी गाड़ी का आना-जाना संभव नहीं हो पाता। उस समय ये पूरा इलाका देखने लायक होता है। पेड़ और पहाड़ सब बर्फ से ढंक जाते हैं। काली स्याह सड़क पर बर्फ की सफेद चादर बिछ जाती है। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि अप्रैल से जून और सितंबर से नवंबर ही यहां आने के लिए सबसे अच्छा और सुविधाजनक होता है। जुलाई-अगस्त में यहां आने वाले को भारी बरसात का सामना करना पड़ता है तथा दिसंबर से जनवरी में भारी ठंड और फरवरी मार्च में भारी बर्फबारी का। बातें करते हुए और वहां की जानकारियां लेते लेते सफर चलता रहा और और धीरे धीरे हम मंजिल के नजदीक पहुंचते रहे और आखिरकार वह समय भी आ गया जब हम चोपता पहुंच गए। बरसात का आलम ये था कि जीप से बाहर निकलना मुश्किल था। सारा सामान गाड़ी में ही छोड़कर मैं और बीरेंद्र जी गाड़ी से उतरे और पास ही में चाय की दुकान वाले से कमरे के लिए पूछा तो उसने 400 रुपए प्रति कमरे के हिसाब से तीन-तीन बेड वाले दो कमरे मुझे दे दिया। हम सबने गाड़ी से सामान उतारा और भीगते हुए ही कमरे तक पहुुंचे उसके बाद गाड़ी वाले को पैसे देकर विदा किया और फिर चोपता से तुंगनाथ जाने की तैयारी करने लगे। घड़ी देखा तो अभी 11ः30 ही बजे थे, मतलब अभी हमारे पास इतना समय था कि हम आराम से तुंगनाथ जाकर वापसे आ सकते थे और उसके बाद आराम से पूरी रात चैन की नींद सोते पर होना तो कुछ और ही था। कहते हैं न कि आप केवल सोच सकते हैं और होना न होना आपके हाथ में नहीं होता है, तो यहां भी हमारे साथ यही हुआ। अब आगे हमारे साथ क्या हुआ इसकी जानकारी हम अगले आलेख में देंगे और तब तक के लिए आपसे आज्ञा लेते हैं। बस जल्दी ही मिलते हैं अगले पोस्ट में जिसमें हम आपको अपने साथ चोपता से तुंगनाथ जी के मंदिर तक ले चलेंगे।


कुछ चोपता और आसपास की जगहों के बारे में

दुगलबिट्टा : चोपता से कुछ किलोमीटर पहले दुगलबिट्टा नामक रमणीक स्थल है। यहां एक-दो प्राइवेट होटल व रिजाॅर्ट है जिसमें रहने के लिए कमरे मिल जाते हैं। यहां वन विभाग का एक डाक-बंगला भी है पर उसमें वीआईपी लोगों के आवाजाही के कारण आवास मिलना मुश्किल हो जाता है। घने जंगल और भव्य शिखरों से घिरे ठंडे दोगलबिट्टा में रात्रि विश्राम बहुत ही रोमांचकारी अनुभव प्रदान करता है। ऊपरी हिमालय में हिमनदियों के टूटने की आवाजें आपको डराने का काम कर सकती है।

बनियाकुण्ड : उखीमठ से चोपता की तरफ आने पर चोपता से 2 किलोमीटर एक बनियाकुण्ड नामक जगह पड़ती है, वहां दो-चार गेस्ट हाउस हैं, जहां रुकने की व्यवस्था हो जाती है।

चोपता में : ऐसा नहीं कि चोपता में रुकने की व्यवस्था नहीं है। चोपता बाजार में भी कुछ दुकानें और होटल हैं जहां रहने की व्यवस्था हो जाती है। इसके अलावा घूम-फिर लेने के पश्चात आप रात में रुकने के लिए ऊखीमठ या गोपेश्वर भी वापस जा सकते हैं। जहां हर बजट में कमरा उपलब्ध है और साथ ही गढ़वाल मंडल विकास निगम के गेस्ट हाउस में रहने की व्यवस्था है, जिसकी आप पहले से ही आॅनलाइन बुकिंग निगकी की वेबसाइट पर कर सकते हैं। 

तुंगनाथ मंदिर के दर्शन : चोपता आए हैं तो छोटी ट्रैकिंग आनंद उठाए बगैर बात नहीं बनेगी। यहां से ट्रैकिंग करके आप प्रसिद्ध पंचकेदार तीर्थ तुंगनाथ जी के दर्शन का लाभ ले सकते हैं। पंचकेदारों (केदारनाथ, रुद्रनाथ, कल्पेश्वर, मदमहेश्वर और तुंगनाथ) में तुंगनाथ सबसे अधिक यानी 13 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित शिवधाम है। चोपता से करीब साढ़े तीन किलोमीटर की चढ़ाई पार करने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है। तुंगनाथ जाए बिना चोपता भ्रमण का आनंद उठाया ही नहीं जा सकता। चोपता से तुंगनाथ का पूरा रास्ता देखकर यही लगता है जैसे किसी ने पूरे रास्ते में नीचे से ऊपर हरी मखमली चादर बिछा दी हो। थोड़ा ही आगे बढ़ने पर हिमालय की 25 हजार फुट ऊंची चैखंभा पर्वतमाला आपका स्वागत करती नजर आएगी। 

चंद्रशिला चोटी : तुंगनाथ के मंदिर के दर्शन कर यदि आप और ऊपर चढ़ने की हिम्मत कर सकें तो मात्र डेढ़ किलोमीटर के फासले पर चंद्रशिला नामक स्थल है, जो 14 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। चोटी पर पहुंचते ही आपको एक बड़ी ही सुखद शांति का अहसास होगा, ऐसा लगेगा कि जैसे आप और प्रकृति एक साथ हो गए हों। ये स्थान वैसे जितनी खूबसूरत है उतनी ही डरावनी भी है। अब चाहे जो कुछ भी हो इतनी ऊंचाई तक आना ही आपके लिए एक न भूलने वाला यादगार सफर बन जाता है।

कैसे जाएं : चोपता जाने के लिए इन दो रास्तों में से किसी एक से आप जा सकते हैं। ऋषिकेश से गोपेश्वर होकर या ऋषिकेश से ऊखीमठ होते हुए जा सकते हैं। ऋषिकेश  से गोपेश्वर की दूरी 212 किलोमीटर है और गोपश्वर से चोपता 40 किलोमीटर। ऋषिकेश से ऊखीमठ 178 किलोमीटर और वहां से चोपता 24 किलोमीटर है। ऋषिकेश से गोपश्वर या ऊखीमठ के लिए यात्री बसें उपलब्ध हैं। गोपश्वर या ऊखीमठ दोनों स्थानों से चोपता जीप अथवा टैक्सी भी बुक करके भी चोपता पहुंच सकते हैं।



इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :



उखीमठ से मक्कू बैंड के बीच कहीं 

 कुंड से उखीमठ जाने वाली सड़क पर एक झरना (फोटो गुप्तकाशी से)


मन्दाकिनी नदी पर 2013 के आपदा के निशान 


मन्दाकिनी नदी 


मन्दाकिनी नदी


कुंड से गुप्तकाशी जाने वाली सड़क पर एक झरना (फोटो उखीमठ से)


कुंड से गुप्तकाशी जाने वाली सड़क पर एक झरना (फोटो उखीमठ से)


पहाड़ से गिरता बरसात का पानी 


उखीमठ और मस्तूरा के बीच कहीं 


उखीमठ और मस्तूरा के बीच कहीं 


मस्तूरा और मक्कू बैंड के बीच कहीं 


मस्तूरा और मक्कू बैंड के बीच कहीं


मस्तूरा और मक्कू बैंड के बीच कहीं


सड़क पर एक तीखा मोड़ 


बरसात के कारण खामोश सड़क


बरसात के कारण खामोश सड़क


मक्कू बैंड से चोपता के बीच 


सुनसान सड़कें 


सुनसान सड़कें 


पहाड़, पेड़ और बादल 


बरसात  तो बंद हुई पर बादल जमे रहे 


बनियाकुण्ड में सड़क के किनारे बने मकान  


चोपता बाजार 
चढ़ाई आरम्भ होने वाले स्थान पर तुंगनाथ जी की जानकारी देता बोर्ड 


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली




18 comments:

  1. सस्पेंस पे कहानी छोड़ दिये..मुझे लगा आज ही चोपता चंद्रशिला सब हो जाएगा..बारिश दोस्त है दुश्मन नही उससे प्यार करना वो और तुम्हारी अपनी हो जाएगी...क्या मौसम है ग़ज़ब...,

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    1. आपको बहुत सारा मिश्री जैसा मीठा धन्यवाद। अगले भाग में तुंगनाथ तक पहुंच जाएंगे और वहां भी हमारा सामना दुश्वारियों से ही हुआ था। हां बारिश बिल्कुल साथी बनकर ही चलता रहा था पूरे सफर में और इस सफर को एक यादगार सफर बनाने में बारिश का पूरा सहयोग रहा वरना ये सफर भी आम सफर की तरह रह जाता। एक बार फिर से धन्यवाद अगले भाग के लिए एडवांस में।

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  2. बहुत बेहतरीन यात्रा वर्णन Abhyanand Sinha जी, लगता है आपकी इस पुरी यात्रा में बस जल, जल और जल ही है। दुगड्डा में आइसबर्ग टुटने आवाज रोमांचक अनुभव होती है। इस बार नवंबर में ही जा रहे है, मेरी बर्फ वाली ट्रैकिंग अभी बाकी है। अब जल्दी से तुंगनाथ पहुँचीए महाराज !!
    तुगंनाथ भगवान की जय 🙏🙏🙏

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    1. आपका बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी, हां पूरी यात्रा में जल, जल और जल ने पूरा साथ निभाया एक अच्छे साथी की तरह, हां दुगलबिट्टा में हिमनदियों के टूटने की आवाजें रोमांचक होती है। नवंबर में बर्फ नहीं मिलगी, बर्फ जो दिसंबर से मार्च-अप्रैल तक मिलती है। हां जल्दी ही तुंगनाथ पहुंच जाएंगे कल सुबह आपको तुंगनाथ पहुंचा देंगे। हर हर महादेव। जय भोलेनाथ।

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  3. चोपता के बारे में थोड़ी जानकारी अच्छी लगी ,अब सफर का मजा ओर दुगना हो जाएगा।
    ओर ये सातवाँ घोड़ा (दोस्त) तो रुकने का नाम ही नही ले रहा है सरपट दौड़ता ही जा रहा है ☺☺☺

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    1. बहुत सारा धन्यवाद बुआ जी, चोपटा है ही ऐसी जगह कि वहां जाकर इंसान प्रकृति का हो जाता है, बहुत ही सुंदर और शांत जगह है। इस सातवें घोड़े ने एक बार भी हमारा साथ नहीं छोड़ा और आगे जाकर हमारा एक और साथी मिल गया जिसका नाम परेशानी है।

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  4. Tv serial ki tarah aap bhi suspense create karte hain par yatra gazab ka tha bhole baba aapko shakti wa samarthya de

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जितेन्द्र जी, मुझे बहुत खुशी हुई इस बात के लिए आपको हमारी ये यात्रा लेख पसंद आ रही है, वैसे इस यात्राा में हर पल हमारा सामना ऐसे ही जोखिम भरे रास्ते से हुआ कि खुद ही याद करके सिहर उठता हूं, जब चंद्रशिला गए और रास्ता भटक कर कहीं और चले गए थे

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  5. आपने कहानी सस्पेंस में छोड़ दी. जल ने आपको अधरझूल में लटकाया, देखें अब क्या होता है.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जयश्री जी, बस एक-दो दिन में सारा संस्पेंस खत्म हो जाएगा। जल, जल और केवल जल ही थो तो इस पूरे सफर साथ रहा, वरना ये इतनी यादगार नहीं हो पाती।

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  6. बहुत बढ़िया जी
    हर कड़ी रोमांच से भरपूर
    ओर कठिनाइयों पर विजय की दास्तान

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    1. बहुत बहुत और बहुत सा धन्यवाद महेश भाई जी, वैसे ये मेरे घुमक्कड़ी जीवन की सबसे रोमांचक यात्रा थी, हमने जो सोचा था वैसा कुछ नहीं होकर सब कुछ अलग ही हुआ। टिप्पणी करने के लिए बहुत सा धन्यवाद।

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  7. अभयानंद जी, मुझे मालूम है की आपका तुंगनाथ का प्लान कैसा रहा होगा !

    वैसे चोपता तुंगनाथ की यात्रा मैंने भी २ बार की है, मगर आपका यात्रा वर्णन पढ़ कर ऐसा लगा की मेरी यात्रा अभी अधूरी ही है.

    इतने विस्तार से जानकारियां संगृहीत करने एवं साझा करे के लिए आपका धन्यवाद, यात्रा चालू रखिये,

    - आपका एक प्रशंसक,

    विकास भदौरिया

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    1. विकास भदौरिया भाई जी आपका हार्दिक धन्यवाद जी। आप गए हैं चोपता और तुंगनाथ तो आपको जरूर पता है कि मेरा प्लान कैसा रहा। आप हमारा लिखा पढ़ते हैं तो हमें आगे लिखने का संबल मिलता है और हम लिखते हैं। पढ़ने के लिए एक बार पुनः आपका धन्यवाद। यात्रा तो चालू ही रहेगी भाई जी, जब आप जैसे प्रशंसक बन जाए हम जैसे लोगों के तो समझिए कि हम कितने शुक्रगुजार हैं आपके।

      आपका अभ्यानन्द सिन्हा

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  8. गुप्तकाशी से उखीमठ के रास्ते चोपता का वर्णन रोमांचक रहा ..यहाँ भी आपके चौथे साथी ने साथ ने छोड़ा और लगा रहा आपको परेशान करने में .....
    अब पढ़ता हूँ तुंगनाथ का सफर को

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    1. धन्यवाद जी!!!
      हां गुप्तकाशी से चोपता तक सफर ही बरसात के कारण बहुत मजेदार रहा। इस अनजाने साथी ने पूरे रास्ते साथ नहीं छोड़ा, इसने भी सोच रखा था हर कदम पर मेरी परीक्षा लेने की।

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