तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 1) : दिल्ली से हरिद्वार

इसी दौरान फेसबुक पर बीरेंद्र कुमार जी नए नए मित्र बने थे जो पटना के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में एकाउंटेट के रूप में कार्यरत हैं। यात्रा से 8 दिन पहले एक दिन उनसे थोड़ी बहुत बात हुई और इसी दौरान मैंने उनसे कह दिया कि आजकल हम तुंगनाथ यात्रा की तैयारियों में लगे हैं और साथ ही पूरी यात्रा का ब्यौरा हमने उनको बता दिया। बरसात के मौसम में तुंगनाथ जाने के नाम पर पहले तो उन्होंने ऐसे मौसम में वहां की यात्रा न करने की सलाह दी और जब हम अपनी जिद पर अड़े रहे तो उन्होंने मुझे यात्रा की शुभकामनाएं दी और बात खत्म हो गई। उसी दिन शाम को अचानक ही उनका फोन आया और कहने लगे कि अभय भाई हमने भी आपके साथ जाने का फैसला किया है और पटना से हरिद्वार का आने जाने का टिकट करवा लिया। हमारी यात्रा 5 अगस्त दिन शनिवार को शुरू होनी थी और ये बात यात्रा से पहले वाली रविवार की बात थी। मेरी टिकट तो हरिद्वार के लिए 5 अगस्त को थी और हम 6 अगस्त की सुबह हरिद्वार पहुंच जाते इसी हिसाब से उन्होंने पटना से हरिद्वार तक का टिकट 4 अगस्त का बनाया और 5 अगस्त की शाम तक हरिद्वार पहुंचने और अगले दिन सुबह मुलाकात की बात तय हुई। उसके बाद उनसे 4 अगस्त को ही बात हुई जब वो पटना से हरिद्वार के लिए निकल रहे थे तोे उन्होंने बताया कि हम कुल 5 लोग हैं। पांच लोगों में पहला नाम बीरेंद्र कुमार, उनकी पत्नी सीमा कुमारी, उनके आॅफिस के ही एक कर्मचारी राकेश आजाद, राकेश आजाद की पत्नी सुप्रिया सोनम तथा वहीं के एक दूसरे स्टाफ धीरज कुमार शामिल थे। यात्रा की जो योजना बनी थी वो इस प्रकार थी कि हरिद्वार में पहले मां मनसा देवी के दर्शन करेंगे उसके बाद बस से उखीमठ जाएंगे और फिर अगले दिन उखीमठ से चोपता और फिर तुंगनाथ-चंद्रशिला और फिर यदि समय बचा तो कार्तिकस्वामी का रुख करेंगे और यदि समय नहीं बच पाता है तो फिर सीधे हरिद्वार वापसी।
हमने भी यात्रा की निर्धारित तिथि से एक दिन पहले तक अपनी सारी तैयारियां पूरी कर ली और यात्रा वाले दिन के लिए कुछ बचने नहीं दिया। अब क्या कहें वैसे हमें यात्रा के लिए कोई तैयारी नहीं करनी पड़ती सब कुछ कंचन खुद ही कर देती है। हम तो बस केवल तिथि बता देते हैं कि फलाने दिन मुझे जाना और फलाने दिन वापस आना है और उसके हिसाब से वे खुद ही सारी तैयारी कर देते हैं। हमारा काम तो बस झोला उठाकर निकल जाना होता है। यात्रा वाले दिन हम अपने समयानुसार ही आॅफिस से निकले क्योंकि ट्रेन रात में 12 बजे के करीब थी तो जल्दी आॅफिस से निकलने का कोई कारण ही नहीं था। समय से आफिस से निकले और घर जाकर केवल सारी तैयारियों का जायजा लिया और सब कुछ ठीक ठाक देखकर कंचन का मन ही मन खूब धन्यवाद दिया कि बिना मेरे कुछ किए इन्होंने सारी तैयारी कर दी है। चूंकि हमारी ट्रेेन नंदा देवी एक्सप्रेस नई दिल्ली स्टेशन से रात 11ः50 पर थी और इसी हिसाब से हम 10 बजे घर से स्टेशन के लिए निकले। अकेला आदमी था तो आॅटो से जाना उचित न लगा और मेट्रो की शरण ली और 11 बजे से पहले ही नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गए। कुछ देर बाद करीब 11ः30 बजे ट्रेन भी प्लेटफाॅर्म पर आ गई और हम अपनी सीट पर पहुंच कर सामान रखा और आराम से बैठ गए। एक बात और बताते चलूं कि जब हमने टिकट लिया था तो हरिद्वार के मुझे टिकट नहीं मिली थी तो हमने हरिद्वार की टिकट न लेकर देरादून की टिकट ले लिया था और इस डिब्बे में जितने भी लोग सवार हुए सभी देहरादून वाले ही थे और सब देहरादून में ही उतरने वाले थे। उस कोच में केवल मैं ही ऐसा इकलौता आदमी जिसकी टिकट तो देहरादून की थी पर उतरना हरिद्वार में था पर होनी को तो कुछ और ही होना था। ट्रेन अपने समयानुसार ही ठीक 11ः50 बजे नई दिल्ली रवाना हो गई। ट्रेन के प्रस्थान करते ही हमने घर पर बच्चों से बात की ट्रेन खुल गई है और अब मैं मोबाइल बंद करके रख रहा हूं और कल सुबह हरिद्वार पहुंचकर बात करूंगा। 12 बज ही चुके थे तो सभी यात्री अपनी अपनी बर्थ पर सोने की तैयारी करने लगे और साथ में हम भी। जल्दी ही नींद भी आ गई और जैसे जैसे ट्रेन की गति बढ़ती जा रही थी वैसे वैसे मेरी नींद भी गहरी होती जा रही थी।
गाड़ी के हरिद्वार पहुंचने का समय सुबह के 3ः50 बजे था, मतलब कि 3 घंटे में जागना होगा। रेलवे वालों ने डिब्बे का तापमान इतना कम कर रखा था कि गर्मी के मौसम में भी कम्बल ओढ़ना पड़ा। वातानुकूलित डिब्बे में कम्बल ओढ़कर जो सोए तो हमें नींद इतनी प्यारी आई कि ट्रेन कब गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, रूड़की और यहां तक कि हरिद्वार से गुजर गई कुछ पता ही नहीं चला। जब हमारी नींद खुली और हमने घड़ी देखा तो 5ः00 बज चुके थे। अब ऐसा कैसा हुआ कुछ नहीं कह सकता, घर में सालों भर 4 बजे सुबह ही जागने की आदत थी और आज 5 बजे नींद खुली। समय देखते ही मेरे होश उड़ गए कि ये क्या कर दिया मैंने। हरिद्वार पहुंचने का समय चार बजे से भी पहले था और हम पांच बजे तक सोते ही रहे। मन बिल्कुल बेचैन हो गया और मन ही विनती करने लगा कि हे भगवान ट्रेन अपने समय से दो घंटे की देरी से चल रही हो तो मेरे लिए अच्छा हो। आज पहली बार ट्रेन के देर होने की विनती कर रहा था। खिड़की से बाहर देखा तो चारों तरफ घुप्प अंधेरा था और बाहर कहीं कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था और ट्रेन इस समय कहां पहुंची है इसके बारे में भी कुछ अंदाज लगा पाना मुश्किल था। इस डिब्बे में मेरे अलावा जो भी यात्री मौजूद थे सभी गहरी नींद में सोए हुए थे, कोई भी ऐसा नहीं दिखा जिससे लगे कि वो जगा हुआ है और उससे कुछ पूछूं कि कि गाड़ी कहाँ पहुंची। पहले तो यही सोचा कि लगता है ट्रेन लेट हो गई है फिर भी न जाने एक अनजाना सा डर मुझे सता रहा था। उधर पटना से आए पांचों साथी ट्रेन का समय निकल जाने परेशान होने लगे थे और वे लोग मेरे घर फोन करके बात भी कर चुके थे कि अभ्यानन्द जी के मोबाइल पर काॅल नहीं जा रही है। इन लोगों से बात करके पत्नी को भी कुछ अनहोनी की चिंता सताने लगी थी और घर में वो भी परेशान हो रही थी। अब क्या करें क्या न करें के उधेड़बुन में समय निकलता जा रहा था। अचानक दिमाग की बत्ती जल उठी और मैंने झटपट मोबाइल आॅन किया और पत्नी को फोन लगाया और कहा कि जरा बेटे को जगाओ और देखकर बताने के लिए बोलो कि ट्रेन कहां पहुंची क्योंकि ट्रेन का समय तो हरिद्वार पहुंचने का 4 बजे से भी पहले है और हमारी नींद एक ही बार पांच बजे खुली है। मुझसे बात होते ही पत्नी ने कहा कि हम तो घबरा रहे थे कि फोन नहीं लग रहा और आपके साथियों का भी फोन आया कि उनसे बात नहीं हो रही और ट्रेन के बारे में भी कुछ पता नहीं लग रहा कि पहुंची या नहीं पहुंची। अब पत्नी ने बेटे (आदित्या) को जगाया और उसने ट्रेन की स्थिति को देखकर जो बताया उसे सुनकर ही मुझे बहुत बड़ा झटका लगा।
आदित्या : पापा जी, आपकी ट्रेन तो हरिद्वार अपने समय से पहुंच गई थी और समय से ही वहां से खुल भी चुकी है।
मैं : तुम ये देखकर बताओ कि ट्रेन अभी कहां पहुंची है?
आदित्या : पापाजी, ट्रेन राईवाला, दोईवाला स्टेशन से बहुत पहले गुजर गई है और किसी हर्रावाला स्टेशन पर पहुंची है जो कि नाॅन-स्टाॅपिंग स्टेशन है।
मैं : अब तुम ये बताओ कि देहरादून कितनी दूर है?
आदित्या : यहां से देहरादून केवल आठ किलोमीटर आगे है।
उसकी इन बातों को सुनकर हम खुद ही अपने सिर के बाल नोचने लगे और उससे कहा कि मेरा तो अब दिमाग काम नहीं कर रहा कि क्या करूं, वहां वो लोग मेरा इंतजार कर रहे होंगे और यहां मैं इतना ज्यादा आगे निकल चुका हूं कि देहरादून तक जाने में और वापस हरिद्वार पहुंचने में न जाने कितना समय व्यर्थ होगा। मेरी इन बातों से उसने मुझे धैर्य बंधाया।
आदित्या : पापाजी आप परेशान मत होइए और आप देहरादून चले जाइए फिर वहां से किसी ट्रेन या बस से वापस हरिद्वार चले जाइएगा।
मैं : बच्चे वो सब तो ठीक है पर यदि मैं अकेला होता तो देहरादून से ही श्रीनगर या रुद्रप्रयाग की बस पकड़ लेता पर और लोग हरिद्वार में इंतजार कर रहे हैं और मेरे कारण उनका भी समय व्यर्थ हो गया मेरे कारण।
आदित्या : तो क्या हुआ पापाजी, आप उन लोगों को हरिद्वार से रुद्रप्रयाग जाने कहिए और आप उनसे वहीं मुलाकात कीजिएगा।
बेटे की इन बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि 12-13 वर्ष का बच्चा अपने पिता को धैर्य रखने कह रहा है। इस उम्र में तो मुझे धैर्य जैसे शब्दों का अर्थ भी पता नहीं था। आजकल के बच्चे कितने होशियार हो गए हैं। चलिए बच्चे तो बच्चे ही हैं। इस समय मेरी हालत बिल्कुल सांप-छछुंदर वाली हो गई थी। बेटे से बात करके मैंने पत्नी को कहा कि जरा उन लोगों को एक बार फोन करो और उनको स्थिति से अवगत करा दो और ईधर मैं देखता हूं कि क्या हो सकता है। उसके बाद हमने अपना सामान उठाया और दरवाजे पर आ गए। दरवाजे से बाहर झांक कर देखा तो दूर दूर तक स्याह अंधेरा फैला था और कहीं भी कोई उम्मीद की रोशनी नहीं दिख रही थी। अगर कुछ दिख रहा था तो यही कि यह एक छोटा सा स्टेशन है जहां पूरे दिन में कभी कभार कोई ट्रेन रुक जाती होगी। हमने ट्रेन से देहरादून जाकर समय व्यर्थ ही बर्बाद करना उचित न समझा और यहीं उतरने का फैसला लिया और किधर उतरें किधर न उतरें के उधेड़-बुन में दाईं तरफ उतर गया। गाड़ी से उतर कर रेलवे लाइन को पार करते हुए प्लेटफार्म पर जाकर पहले तो हरिद्वार में इंतजार कर रहे साथियों से बात की और स्थिति से अवगत कराया कि नींद न खुलने के कारण मैं बहुत आगे आ चुका हूं और मुझे वापस हरिद्वार पहुंचने में अभी दो घंटे से ज्यादा का वक्त लगेगा तब तक आप लोग गंगा स्नान करके आ जाओ और कुछ देर बाद मैं आपको आगे की स्थिति के बारे में जानकारी दूंगा।
अपने साथियों से बात करने के बाद हम हर्रावाला स्टेशन पर इधर-उधर देखने लगे कि यहां से किधर जाया जाए। रात का घना अंधेरा, दूर दूर तक किसी की उपस्थिति का अहसास भी नहीं हो रहा था। कुछ मिनट यही सोचने में गुजर गए कि अब क्या किया जाए। ऐसे ही सोचते हुए हमने अपना बैग उठाया और चल पड़े स्टेशन मास्टर के कक्ष की ओर। स्टेशन मास्टर के पास पहुंचकर हमने उनको अपनी स्थिति से अवगत कराया तो उन्होंने पहले तो सहानुभूति जताई और फिर बताया कि यहां से हरिद्वार की ट्रेन तो ढाई घंटे बाद है, पर आप चाहें तो बस से जा सकते हैं और उन्होंने बाहर का रास्ता बता दिया। इसके बाद हमने उनको बाहर ज्यादा अंधेरा होने और कुछ अनहोनी की आंशका जताई तो उन्होंने कहा कि आप बिल्कुल इत्मीनान से जाएं कुछ नहीं होगा। उनकी बातों पर भरोसा करके हम स्टेशन से बाहर निकले और देहरादून-हरिद्वार हाईवे की तरफ बढ़ गये। अंधेरी रात, अनजान जगह और समय भी खराब चल रहा हो तो चाौकन्ना होना और इधर-उधर ताकते-झांकते चलना आम बात है। हम दस कदम चलते फिर आगे-पीछे, दाएं-बाएं देखते कि कहीं कोई आ तो नहीं रहा। जैसे जैसे रेलवे स्टेशन पीछे जा रहा था और हाइवे नजदीक आता जा रहा था वैसे वैसे मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी और आखिरकार 10 मिनट चलने के बाद हम हाईवे पर पहुंच गए। हाईवे पर पहुंचकर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे हम किसी बहुत बड़ी मुसीबत से बच गए।
यहां पहुंचकर पहले तो हमने घर बात की कि स्टेशन से निकलकर हाईवे पर आ गया हूं और अब कोई परेशानी की बात नहीं है और चिंता की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि यहां से जल्दी ही हमें हरिद्वार की बस मिल जाएगी। उसके बाद हमने अपने साथियों से बात की और पूरी तरह प्लानिंग को बदला कि अब हमारा आप लोगों के साथ मनसा देवी जाना नहीं हो पाएगा। अब आप लोग मेरा इंतजार न करें और मनसा देवी के लिए निकल जाएं, मैं जब तक हरिद्वार आउंगा तब तक आप लोग भी मनसा देवी से वापस आ जाओगे और उसके बाद आगे के सफर पर निकलेंगे। वे लोग मनसा देवी के लिए होटल से निकलते समय होटल वाले को मेरे आने के बारे में बता दिए कि हम लोगों के एक और साथी हैं तो कुछ देर में आएंगे। उन लोगों से बात करके फोन रखा ही था कि एक उत्तराखंड रोडवेज की बस आ गई जो हरिद्वार जा रही थी। बस आधी से भी ज्यादा खाली थी। हाथ के इशारे से बस को रुकवाया और बस में सवार होकर 65 रुपए का हरिद्वार का टिकट लेकर एक खाली पड़ी सीट पर बैठ गया। कुछ देर बाद बस में कुछ और सवारियां चढ़ी और उन लोगों से कंडक्टर ने केवल 42 रुपए ही किराया लिया। यह सब देखकर हम हमने कंडक्टर से कहा कि भाई आपने तो मुझसे 65 रुपए लिया और इन लोगों से केवल 42 रुपए तो कंडक्टर का जवाब था कि ये लोग हरिद्वार नहीं जाएंगे पहले ही उतर जाएंगे। अब कंडक्टर से उलझने की बारी उन लोगों की थी।
सवारी : अरे मैंने तो हरिद्वार का टिकट मांगा था।
कंडक्टर : आपका टिकट हरिद्वार तक का ही है।
सवारी : तो अभी आपने कैसे कहा कि ये लोग पहले ही उतर जाएंगे।
कंडक्टर : बस ऐसे ही बोल दिया।
सवारी : देख लेना कोई लफड़ा हुआ तो अच्छा नहीं होगा।
कंडक्टर : अरे मैंने मजाक में बोला कि ये पहले ही उतर जाएंगे। घबराने की कोई बात नहीं आप निश्चिंत रहें।
सवारी : ठीक है।
इतने के बाद वो लोग शांत हो गए और अपनी अपनी सीट पर जाकर बैठ गए और मैं शुरू हो गया।
मैं : आपने इन लोगों को टिकट 42 रुपए का दिया और मुझे 65 रुपए का, ऐसा क्यों?
कंडक्टर : आप इन लोगों से पहले चढ़े हैं बस में।
मैं : अच्छा तो हम 2 किलोमीटर पहले चढ़े तो 65 रुपए हो गया और 2 किलोमीटर बाद चढ़ने पर 42 रुपए हो गया और इस हिसाब से जो 10 किलोमीटर बाद बस में बैठेगा वो फ्री में जाएगा। कुछ तो ऐसे लोग भी होंगे जो बहुत बाद में बस में बैठेंगे तो उनको तो आप अपनी तरफ से पैसे दोगे फिर।
कंडक्टर : बड़े अजीब आदमी हैं आप, बेसिरपैर की बात कर रहे हैं।
मैं : पैसे आपने ज्यादा लिए हैं तो बात तो करनी ही पड़ेगी।
कंडक्टर : उत्तराखंड रोडवेज का यही नियम है।
मैं : देखो भाई जी, आपकी बस सरकारी है और आपके पास किराये की लिस्ट होगी आप मुझे वो दिखा दो।
कंडक्टर : क्यों दिखा दें आपको?
मैं : किराया कितना है ये मुझे पता लग जाएगा।
कंडक्टर : किराए का चार्ट दिखाने की अनुमति नहीं है।
मैं : भाई मैं पहली बार बस में सफर नहीं कर रहा हूं, या तो आप मुझे चार्ट दिखाए अन्यथा पैसे वापस करें।
कंडक्टर : अगर नहीं दिखाया तो?
मैं : अगर नहीं दिखाए तो डिपो पहुंचते ही आपकी शिकायत डिपो मैनेजर से करेंगे।
कंडक्टर : लगता है मुझे समझने में चूक हो गई इसलिए आपसे ज्यादा किराया ले लिया।
मैं : समझने में चूक हो ही नहीं सकती क्योंकि क्योंकि आपकी बस हरिद्वार तक ही जा रही है तो चूक कहां हुई।
कंडक्टर : माफ कीजिए, मैं आपको पैसे वापस करता हूं।
इसके बाद उसने मुझे 23 रुपए वापस किया और पैसे लेकर हम भी अपनी सीट पर चुपचाप बैठ गए। बस टेढ़ी-मेढ़ी सड़क पर हिचकोले खाती हुई सरपट चली जा रही थी। सड़क के दोनों तरफ हरियाली छाई हुई थी। कुछ कुछ ठंड भी हो रही थी और हो भी क्यों नहीं आखिर पहाड़ जो है। धीरे धीरे सुबह हो गई और सूर्य देवता भी धीरे धीरे अपना दर्शन देने के लिए आतुर हो रहे थे। बस चलती रही और मैं चुपचाप बैठा रहा। कुछ कुछ देर में बस का कंडक्टर मुझे घूर घूर कर ऐसा देखता जैसे मैंने कोई अपराध किया हो। हमने भी पूरे रास्ते कंडक्टर को चिढ़ाने का काम किया। जैसे ही वो मेरी तरफ देखता था मैं झट से अपनी जीभ बाहर निकाल लेता और ये देखकर वो खिड़की की तरफ देखने लगता। बस चलती रही और हरिद्वार की दूरी कम होती रही। करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद हम हरिद्वार पहुंच गए। बस से उतरकर मैंने जानबूझ कर कंडक्टर को चिढ़ाने के अंदाज में बाय बाय किया और आगे बढ़ गए। पांचों साथी रेलवे स्टेशन से हरकी पैड़ी जाने वाले रोड में भटिंडा धर्मशाला में ठहरे हुए थे। धर्मशाला को खोजते हुए हम वहां तक पहुंच गए। आगंतुक कक्ष पर मैंने उन लोगों को अपने साथियों के बारे में बताया कि मेरे कुछ साथी हैं जो आपके यहां ही ठहरे हुए हैं और अभी मनसा देवी गए हैं। मेरी बात सुनकर उन्होंने मेरा नाम पूछा। हमने उनको अपना नाम बताया तो उन्होंने मुझे एक खाली कमरे की चाभी दी और कहा कि जब तक वो लोग मनसा देवी से आते हैं तब तक आप दूसरे कमरे में सामान रखकर गंगा स्नान के लिए जा सकते हैं। मैंने कमरे में सामान रखा हाथ मुंह धोया और उसके बाद गंगा स्नान के लिए चल दिया। समय ज्यादा न लगे इसलिए हमने हरकी पैड़ी न जाकर वही सबसे पास में स्थित विष्णु घाट पर स्नान किया और फिर वापस धर्मशाला आ गए। हमारे धर्मशाला पहुंचने के करीब पांच-दस मिनट बाद वे लोग भी मनसा देवी से आ गए। आते ही हम सबने एक दूसरे का अभिवादन किया और बीरेंद्र जी ने बाकी साथियों से मेरा परिचय कराया। सबसे मिलकर ऐसा एक पल के लिए भी नहीं लगा कि ये हम सबकी पहली मुलाकात है और घुमक्कड़ों की यही अदा घुमक्कड़ी को आनंददायक बना देती है। यहां कुछ देर हम सबने बातें की और कुछ नाश्ता करके आगे के सफर के लिए निकल पड़े जिसके बारे में हम आपको अगले भाग में बताएंगे। तब तक के लिए आज्ञा दीजिए और जल्दी ही मिलते हैं अगले भाग के साथ। एक बात के लिए माफी चाहूंगा कि इस भाग के लिए मेरे पास फोटो नहीं हैं क्योंकि इस यात्रा में मुझे जो परेशानी हुई उसके कारण मैं फोटो नहीं ले सका।
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे 'हरिद्वार' का शाब्दिक अर्थ है 'हरि तक पहुँचने का द्वार'। हरिद्वार को "धर्म की नगरी" माना जाता है। सैकडों वर्षों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं। इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना यहाँ लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं।
कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल :
हर की पौड़ी : यह स्थान भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो गंगा में नहाने को ही मोक्ष देने वाला माना जाता है लेकिन किंवदन्ती है कि हर की पौडी में स्नान करने से जन्म जन्म के पाप धुल जाते हैं। शाम के वक़्त यहाँ महाआरती आयोजित की जाती है। गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा यहाँ बेहद आकर्षक लगती है। हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है शाम होने वाली गंगा की आरती। हर शाम हज़ारों दीपकों के साथ गंगा की आरती की जाती है। पानी में दिखाई देती दीयों की रोशनी हज़ारों टिमटिमाते तारों की तरह लगती है।
मनसा देवी का मंदिर : हर की पौडी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर मनसा देवी का मंदिर बना है। मंदिर तक जाने के लिए पैदल रास्ता है। मंदिर जाने के लिए रोप वे भी है। पहाड़ की चोटी से हरिद्वार का ख़ूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। देवी मनसा देवी की एक प्रतिमा के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं जबकि अन्य प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।
चंडी देवी मंदिर : गंगा नदी के दूसरी ओर नील पर्वत पर यह मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा 1929 ई. में बनवाया गया था। कहा जाता है किआदिशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में चंडी देवी की मूल प्रतिमा यहाँ स्थापित करवाई थी। किवदंतियों के अनुसार चंडी देवी ने शुंभ निशुंभ के सेनापति चंद और मुंड को यहीं मारा था। चंडीघाट से 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग के बाद यहाँ पहुंचा जा सकता है। अब इस मंदिर के लिए भी रोप वे भी बना दिया गया है। रोप वे के बाद बडी संख्या में लोग मंदिर में जाने लगे हैं।
माया देवी मंदिर : माया देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। कहा जाता है कि शिव की पत्नी सती का हृदय और नाभि यहीं गिरा था। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर माँ मनसा और माँ चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित हैं तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं।
सप्तऋषि आश्रम : इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्त सागर' भी कहा जाता है।
दक्ष महादेव मंदिर : यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।
चीला वन्यजीव अभयारण्य : प्रकृति प्रेमियों के लिए हरिद्वार में राजाजी नेशनल पार्क भी है। राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अन्तर्गत यह अभयारण्य आता है जो लगभग 240 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ 23 स्तनपायी और 315 वन्य जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ हाथी, टाइगर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सांभर, चीतल, बार्किग डियर, लंगूर आदि जानवर हैं। अनुमति लेकर यहाँ फिशिंग का भी आनंद लिया जा सकता है।
कैसे पहुँचें
सड़क मार्ग : हरिद्वार सड़क मार्ग द्वारा पूरे देश से बहुत अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से हरिद्वार पहुंचने के लिए सहारनपुर, अम्बाला, चंडीगढ़, जयपुर, मुरादाबाद, दिल्ली जैसे शहरों से बसें बहुतायत में उपलब्ध हैं।
रेलमार्ग : हरिद्वार तक देश के सभी शहरों से रेल नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और हर बड़े शहर से यहां के लिए सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। यदि कहीं से यहां तक पहुंचने के लिए रेल सेवा नहीं भी है तो यात्री पहले दिल्ली और फिर दिल्ली से हरिद्वार बहुत आसानी से रेल या बस से पहुंच सकते हैं। दिल्ली से हरिद्वार की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। जो विभिन्न मार्गों से सफर करने पर कुछ या कुछ ज्यादा भी हो जाता है।
वायु मार्ग : हरिद्वार तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट हवाई अड्डा है जो हरिद्वार से करीब 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर है और दिल्ली से यहां के लिए दैनिक उड़ानें हैं।
कहां ठहरें
हरिद्वार आने वाले लोगों के लिए यहां ठहरने की कोई दिक्कत नहीं है। यहां हर बजट के लोगों के लिए अच्छी और सुविधाजनक होटल, धर्मशालाएं आदि उपलब्ध हैं।
हरिद्वार के बारे में कुछ जानकारियां
हरिद्वार उत्तराखंड में स्थित भारत के पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। पवित्र गंगा नदी के किनारे बसे 'हरिद्वार' का शाब्दिक अर्थ है 'हरि तक पहुँचने का द्वार'। हरिद्वार को "धर्म की नगरी" माना जाता है। सैकडों वर्षों से लोग मोक्ष की तलाश में इस पवित्र भूमि में आते रहे हैं। इस शहर की पवित्र नदी गंगा में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना-जाना यहाँ लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिद्वार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं।
कुछ प्रमुख दर्शनीय स्थल :
हर की पौड़ी : यह स्थान भारत के सबसे पवित्र घाटों में एक है। कहा जाता है कि यह घाट विक्रमादित्य ने अपने भाई भतृहरि की याद में बनवाया था। इस घाट को 'ब्रह्मकुण्ड' के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो गंगा में नहाने को ही मोक्ष देने वाला माना जाता है लेकिन किंवदन्ती है कि हर की पौडी में स्नान करने से जन्म जन्म के पाप धुल जाते हैं। शाम के वक़्त यहाँ महाआरती आयोजित की जाती है। गंगा नदी में बहते असंख्य सुनहरे दीपों की आभा यहाँ बेहद आकर्षक लगती है। हरिद्वार की सबसे अनोखी चीज़ है शाम होने वाली गंगा की आरती। हर शाम हज़ारों दीपकों के साथ गंगा की आरती की जाती है। पानी में दिखाई देती दीयों की रोशनी हज़ारों टिमटिमाते तारों की तरह लगती है।
मनसा देवी का मंदिर : हर की पौडी के पीछे के बलवा पर्वत की चोटी पर मनसा देवी का मंदिर बना है। मंदिर तक जाने के लिए पैदल रास्ता है। मंदिर जाने के लिए रोप वे भी है। पहाड़ की चोटी से हरिद्वार का ख़ूबसूरत नज़ारा देखा जा सकता है। देवी मनसा देवी की एक प्रतिमा के तीन मुख और पांच भुजाएं हैं जबकि अन्य प्रतिमा की आठ भुजाएं हैं।
चंडी देवी मंदिर : गंगा नदी के दूसरी ओर नील पर्वत पर यह मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा 1929 ई. में बनवाया गया था। कहा जाता है किआदिशंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में चंडी देवी की मूल प्रतिमा यहाँ स्थापित करवाई थी। किवदंतियों के अनुसार चंडी देवी ने शुंभ निशुंभ के सेनापति चंद और मुंड को यहीं मारा था। चंडीघाट से 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग के बाद यहाँ पहुंचा जा सकता है। अब इस मंदिर के लिए भी रोप वे भी बना दिया गया है। रोप वे के बाद बडी संख्या में लोग मंदिर में जाने लगे हैं।
माया देवी मंदिर : माया देवी मंदिर भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में एक है। कहा जाता है कि शिव की पत्नी सती का हृदय और नाभि यहीं गिरा था। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है, जिसका इतिहास 11 शताब्दी से उपलब्ध है। मंदिर के बगल में 'आनंद भैरव का मंदिर' भी है। पर्व-त्योहारों के समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु माया देवी मंदिर के दर्शन करने को पहुंचते हैं। प्राचीन काल से माया देवी मंदिर में देवी की पिंडी विराजमान है और 18वीं शताब्दी में इस मंदिर में देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ ही तंत्र साधना भी की जाती है। हरिद्वार में भगवती की नाभि गिरी थी, इसलिए इस स्थान को ब्रह्मांड का केंद्र भी माना जाता है। हरिद्वार की रक्षा के लिए एक अद्भुत त्रिकोण विद्यमान है। इस त्रिकोण के दो बिंदु पर्वतों पर माँ मनसा और माँ चंडी रक्षा कवच के रूप में स्थित हैं तो वहीं त्रिकोण का शिखर धरती की ओर है और उसी अधोमुख शिखर पर भगवती माया आसीन हैं।
सप्तऋषि आश्रम : इस आश्रम के सामने गंगा नदी सात धाराओं में बहती है इसलिए इस स्थान को सप्त सागर भी कहा जाता है। माना जाता है कि जब गंगा नदी बहती हुई आ रही थीं तो यहाँ सात ऋषि गहन तपस्या में लीन थे। गंगा ने उनकी तपस्या में विघ्न नहीं डाला और स्वयं को सात हिस्सों में विभाजित कर अपना मार्ग बदल लिया। इसलिए इसे 'सप्त सागर' भी कहा जाता है।
दक्ष महादेव मंदिर : यह प्राचीन मंदिर नगर के दक्षिण में स्थित है। सती के पिता राजा दक्ष की याद में यह मंदिर बनवाया गया है। किवदंतियों के अनुसार सती के पिता राजा दक्ष ने यहाँ एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। यज्ञ में उन्होंने शिव को नहीं आमन्त्रित किया। अपने पति का अपमान देख सती ने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह कर लिया। इससे शिव के अनुयायी गण उत्तेजित हो गए और दक्ष को मार डाला। बाद में शिव ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया।
चीला वन्यजीव अभयारण्य : प्रकृति प्रेमियों के लिए हरिद्वार में राजाजी नेशनल पार्क भी है। राजाजी राष्ट्रीय पार्क के अन्तर्गत यह अभयारण्य आता है जो लगभग 240 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ 23 स्तनपायी और 315 वन्य जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ हाथी, टाइगर, तेंदुआ, जंगली बिल्ली, सांभर, चीतल, बार्किग डियर, लंगूर आदि जानवर हैं। अनुमति लेकर यहाँ फिशिंग का भी आनंद लिया जा सकता है।
कैसे पहुँचें
सड़क मार्ग : हरिद्वार सड़क मार्ग द्वारा पूरे देश से बहुत अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। सड़क मार्ग से हरिद्वार पहुंचने के लिए सहारनपुर, अम्बाला, चंडीगढ़, जयपुर, मुरादाबाद, दिल्ली जैसे शहरों से बसें बहुतायत में उपलब्ध हैं।
रेलमार्ग : हरिद्वार तक देश के सभी शहरों से रेल नेटवर्क से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और हर बड़े शहर से यहां के लिए सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। यदि कहीं से यहां तक पहुंचने के लिए रेल सेवा नहीं भी है तो यात्री पहले दिल्ली और फिर दिल्ली से हरिद्वार बहुत आसानी से रेल या बस से पहुंच सकते हैं। दिल्ली से हरिद्वार की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। जो विभिन्न मार्गों से सफर करने पर कुछ या कुछ ज्यादा भी हो जाता है।
वायु मार्ग : हरिद्वार तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा जौलीग्रांट हवाई अड्डा है जो हरिद्वार से करीब 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर है और दिल्ली से यहां के लिए दैनिक उड़ानें हैं।
कहां ठहरें
हरिद्वार आने वाले लोगों के लिए यहां ठहरने की कोई दिक्कत नहीं है। यहां हर बजट के लोगों के लिए अच्छी और सुविधाजनक होटल, धर्मशालाएं आदि उपलब्ध हैं।
इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें
भाग 1: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 1) : दिल्ली से हरिद्वार
भाग 2 : तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग-2) : हरिद्वार से गुप्तकाशी
भाग 2 : तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग-2) : हरिद्वार से गुप्तकाशी
भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली
आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :
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हरिद्वार रेलवे स्टेशन के बाहर लगी भोलेनाथ की प्रतिमा ( ये फोटो 2 साल पहले की गई हरिद्वार यात्रा के समय का है) |
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देहरादून और हरिद्वार के बीच चलती बस से लिया गया फोटो |
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सूर्योदय की आहट |
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सड़क किनारे खड़े पेड़ और उसके ऊपर बादलों के बसेरा |
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कमाल के लोग |
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साधुओं की टोली |
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रात में हरिद्वार रेलवे स्टेशन |
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मनसा देवी से दिखाई देता हरकी पैड़ी (ये फोटो साथी बीरेंद्र भाई के फेसबुक वाल से) |
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गंगा से हरकी पैड़ी आने वाली नहर |
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हरिद्वार बाईपास के पास |
इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें
भाग 1: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 1) : दिल्ली से हरिद्वार
भाग 2 : तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग-2) : हरिद्वार से गुप्तकाशी
भाग 2 : तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग-2) : हरिद्वार से गुप्तकाशी
भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली
गजब कर दिया भाई गजब।
ReplyDeleteपहला गजब हुआ 4:00 हरिद्वार में सोते हुए निकल गए।
दूसरा गजब किया देहरादून पहुंचने से पहले ही उतर गए और तीसरा गजब तो बस वाले के साथ कर दिया। आखिर ₹23 लेकर ही मारने और वैसे यदि हरिद्वार घूमने का प्रोग्राम ना होता तो आप सीधे देहरादून से ऋषिकेश की बस में बैठते ताकि वह लोग हरिद्वार से आगे की बस में बैठते हैं आप उनको ऋषिकेश जा पकड़ लेते आपका भी उनका दोनों का समय तालमेल सही रहता उस समय बचाता।
एक जरूरी बात यदि रात में या अनजान जगह अनजान इलाके में अपनी लोकेशन देखनी हो तो अपना Android मोबाइल खोलिए और उसमें अपनी लोकेशन चेक करिए आप अगर वहां नेट भी नहीं चल रहा है तो भी आप को यह बता देगा आप हाईवे पर रेल पर जंगल में कहां पर और कितने नजदीक हो यह आफलाइन भी काम करेगा और हो सके तो अपने मोबाइल में एक ऑफलाइन मैप जैसे साइजिक और मैप्समी जरुर डाल कर रखे क्योंकि गूगल मैप ऑफ लाइन धोखा दे जाता है।
बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी।
Deleteहां गजब तो हो ही गया था।
जब हम हरिद्वार में सोते हुए निकल गए तो मेरा दिमाग बिल्कुल शून्य हो चुका था।
अनजान जगह पर उतर जाना एक रोमांचक बात रही मेरे लिए।
बस वाले से पैसे तो हर हाल में लेना ही था, जब बस एक ही है सीट एक ही फिर किराये कम ज्यादा क्यों, लाओ भाई पैसे वापस करें।
हां अकेले होते तो हम हर्रावाला से सीधे रुद्रप्रयाग की गाड़ी में बैठ जाते, क्योंकि वहां से मेरे सामने ही श्रीनगर और रुद्रप्रयाग की कई गाडि़यों निकली थी। यदि ऐसा करते तो 2 से 3 घंटे का समय बचाया जा सकता था। हो गूगल मैप धोखा दे जाता है आॅफलाइन और उस वक्त मोबाइल में नेट भी नहीं चल पा रहा था। आपने ये तो आॅफलाइन मैप जैसे साइजिक और मैप्समी के बारे में बताया ये आज ही हम डाउनलोड करेंगे। ये बहुत अच्छी जानकारी दिया आपने।
भई वाह, हमने तो यात्रा पटना से शुरू की और हरिद्वार पहुचे ।आपके लेखन ने तो दिल्ली से हरिद्वार भाया हर्रावाला की यात्रा भी लाइव करवा दी जैसे हम सब भी आपके साथ साथ हीं थे ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाई जी। साथ तो हम थे ही हरिद्वार तक की यात्रा में हम मन से साथ थे और आगे की यात्राा में तन, मन और धन से साथ थे।
Deleteहोता है कभी कभी अभय जी लेकिन सही -सुरक्षित आप हरिद्वार पहुँच गए , अच्छा रहा !! बढ़िया जगह निकले हैं आप होता है कभी कभी अभय जी लेकिन सही -सुरक्षित आप हरिद्वार पहुँच गए , अच्छा रहा !! बढ़िया जगह निकले हैं आप , साथ चलेंगे , साथ चलेंगे
ReplyDeleteधन्यवाद योगेन्द्र जी! हां कभी कभी हो जाता है, वही हर दिन की व्यस्तता से थोड़ा समय निकाल कर घुमक्कड़ी करना बहुत ही मुश्किल काम है। हां साथ चलते रहेंगे जी
Deleteपरेशानियों से भरी शुरुआत.... ऐसा ही होता है कभी-कभार जब आप अपनी रोज़ाना दिनचर्या की व्यस्तता में से अपने आप को निकाल कर दूसरे माहौल में फिट करने की कोशिश करते हैं और हमारा शरीर हमे ही धोखा दे जाता है। बेहद खूब लिखा आपने, अपनी परेशानियों को....!!
ReplyDeleteबहुत बहुत सुमधुर धन्यवाद आपको। वैसे इस पूरी यात्रा में परेशानियों ने हम सबका पीछा एक जगह भी नहीं छोड़ा। हुआ भी वही जो हम करने निकले पर थे पर सब कुछ अपनी योजना के विपरीत। बिल्कुल सही बात कही आपने अपने रोजमर्रा के कामों में हम इतने व्यस्त होते हैं और शरीर इतना थक चुका होता है कि किसी और चीज की इजाजत नहीं देता। ये तो एक जुनून है जो इस हद तक हम घुमक्कड़ी को अंजाम देते हैं और अचानक से आए बदलाव से हम सामंजस्य बिठा नहीं पाते और ये सब हो जाता है।
Delete
ReplyDeleteयह कंडक्टर वाली घटना आपके साथ मजेदार हुई। बहुत बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है जी। चिढ़ाने वाली बात पढ़कर मजा आ गया जी।
आब आगे के लेखों का रोमांच बना रहेगा जी
बहुत बहुत धन्यवाद भाई। इस यात्राा में कंडक्टर के साथ हुई बात तो रोचक रही। साथ मेरो सोते हुए अपने गंतव्य से आगे निकल जाना फिर एक सुनसान जगह पर गाड़ी से उतर जाना भी इस सफर को रोमांचक बना दिया। पर मेरी जो स्थिति उस समय थी वो केवल मैं ही समझता हूं।
Deleteसीधे रास्ते भी कभी-कभी टेढ़े हो जाते हैं घुमक्करी मे. लेकिन घुमंतू फिर भी चलते रहते हैं.
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जी। जीं हां सही कहा आपने सीधे रास्ते भी कभी कभी टेढ़े हो जाया करते हैं और यही मेरे साथ हुआ। पर मुझ जैसे यायावर प्राणी के लिए ये भी एक अलग ही रोमांच रहा।
Deleteवाह सिन्हा जी !! गजब कर दिया आपने, रोमांच पर रोमांच कि तडका।
Deleteआखिरकार तुंगनाथ सीरीज शुरू हो ही गयी, इतने इंतजार के बाद। यात्रा वर्णन मजेदार, सुरूचि और बोधगम्य रहा। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी।
🙏🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद अनुराग जी। हां जी रोमांच तो इस यात्रा में शुरू से ही हावी हो गया है। जहां के लिए हमने सोचा था कि वहां कुछ होगा तो हुआ ये सीधा रास्ता दिल्ली से हरिद्वार में भी कुछ उलट-पुलट हो ही गया। ये पूरी यात्रा हमारे जीवन की सबसे रोमांचक यात्रा रही है अभी तक की। बस ऐसे ही अपना संवाद बनाए रखिएगा।
Deleteरोमांच किसी भी स्थिति में मिल सकता है अच्छी हो या बुरी....बस वाले से झगड़ा पहली बार देर से उठाना और घर वालो का चिंता करना...एडवेंचर यात्रा के शुरुआत में ही हो गया...बढ़िया शुरुआत
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद और साधुवाद आपको। रोमांच तो रोमांच ही होता है, चाहे वो जिस भी स्थिति में आए बस केवल कुछ अप्रिय नहीं होना चाहिए। वैसे ये तुंगनाथ-चंद्रशिला के सफर में रोमांच ही रोमांच रहा मेरे साथ, जैसा सोचा था वैसा केवल दस प्रतिशत हुआ और बाकी नब्बे प्रतिशत सोच से अलग हटकर हुआ।
Deleteहरिद्वार उतरना था। पहुंच गए देहरादून, वापसी में कन्डेक्टर को सही पाठ पढाया। आपके बेटे नें बहुत अच्छी बातें कही। बाकी हरिद्वार तो हमेशा से ही दिल के करीब है। बहुत सुंदर पोस्ट रही...
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सचिन भाई! बहुत ही गजब गजब हुआ मेरे साथ पहली बार ऐसा हुआ कि मैं ट्रेन में सोते रह गया और कहीं और पहुंच गया। कंडक्टर से अपने पैसे तो लेना ही था और अगर इतना नहीं करता तो वो पैसे नहीं देने वाला था। हरिद्वारा तो दिल के करीब रहेगा ही जी, आखिर हरि और हर दोनों धामों पर जाने का प्रवेश मार्ग है। एक बार पुनः धन्यवाद
Deleteबहुत खूब अभय सर जी
ReplyDeleteअभी तक मैंने जो भी आपकी पोस्ट पढीं है सारी बढिया पोस्ट है ऐसा लगता है कि मानो हम घर बैठे ही उन सभी जगहों पर घूम रहे हैं
आपका एक बार फिर से धन्यबाद
इस बार तो आपने गजब कर दिया ऐसा भी क्या सोए आप कि आपकी नींद हीं नहीं खुली शायद माता ने आपका बुलावा नहीं भेजा होगा अगली बार सही
आपके अगले पोस्ट का इंतजार रहेगा
बहुत बहुत धन्यवाद जी।
Deleteआपको मेरा ब्लाॅग पढ़कर अच्छा लगा ये मेरे लिए बहुत खुशी की बात है जी।
एक बार पुनः धन्यवाद जी।
हां गजब तो हो ही गया कि नींद नहीं खुली और ऐसा मेरे साथ पहली बार हुआ। सच तो यही है कि माता ने बुलावा ही नहीं भेजा और हम जाने की चाह रहे थे तो माता ने कहा कि बेटा चल तू अभी सोया रहा। अगली पोस्ट आज ही डाल रहा रहा हूं जी।
जोरदार यात्रा । मुझे भी हरिद्वार के सभी मन्दिरो के दर्शन करने है। देखते है रांशी आगमन में ये सम्भव होगा क्या। आगे के भाग का इंतजार ...
ReplyDeleteआभार बुआ जी। आपको हरिद्वार के सभी मंदिरों के दर्शन जल्द हो बुआ ऐसी प्रार्थना है मेरी। रांसी यात्रा के दौरान ये मंदिर देख पाना संभव नहीं पाएगा बुआ जी क्योंकि उस यात्रा में आपके पास उतना समय नहीं होगा कि हरिद्वार घूम सकें। अगला भाग भी जल्दी ही लिखूंगा बुआ जी......
DeleteTrain mai jab aap soaye tha, tab haridwar aane ke bbad koi jagya nahi kya aapko...yatra aapka jabardast raha...bloh acchi likhte hain aap..
ReplyDeleteट्रेन में हमें कौन जगाता, जब उस कोच की सारी सवारियों ही देहरादून की थी और मेरा टिकट भी देहरादून का ही था, उतरना हरिद्वार में था। जब सबकी टिकट देहरादून की ही थी तो सब आराम से सोए थे दो घंटे पहले से जाग के कौन बैठा रहता। वैसे ये भी यात्राा का एक अलग रोमांच रहा। रोमांच कहीं भी मिल सकता है, ट्रेन,बस पहाड़, मैदान समुद्र में भी तो हमें यहां मिला। बहुत बहुत धन्यवाद मेरा पोस्ट पढ़ने और काॅमेंट करने के लिए।
Deleteवाह अभय भाई, पैसा वसूल करने के चक्कर में हरिद्वार के बजाय देहरादून निकल लिए, आखिर टिकट जो लिया था देहरादून का।����
ReplyDeleteऔर कंचन भाभी ने सारी तैयारी कर दी थी यात्रा की तो आपने उन्हें मन ही मन धन्यवाद दिया ,क्यों उन्हें सामने से धन्यवाद् नही दे सकते थे आप ?
�������� बहुत बढ़िया भाई।
बहुत बहुत धन्यवाद मनोज भाई।
Deleteपैसे क्या वसूल करेंगे मनोज भाई, उस समय मेरी जो हालत थी वो पागलों वाली हो गई थी, सब दिन घर में चार बजे जागने की आदत और उस दिन नींद ने ऐसे गले लगाया कि छोड़ा ही नहीं, हो पैसे तो वसूल भी हुआ और आनंद भी बहुत आया वहां से वापसी हरिद्वार तक के सफर मंे। मन ही मन धन्यवाद करना ज्यादा असर करता है समझा करो भाई।
ये रही रोमांचक यात्रा..... सोते रहे... उठे तो स्टेशन निकलने के बाद.....उतरे भी अंजान स्टेशन पर ...... ये बस वाल शायद खाली बस का किराया वसूलने की कोशिश में था आपने भी खूब पंगा लिया....
ReplyDeleteकभी के अनजान लोगो से अपने लोगो की तरह मुलाकात ....
बाकी सब कुछ बढ़िया रहा ...दिल से
बहुत बहुत धन्यवाद आपका रितेश भाई जी!!!
Deleteसही कहा आपने रोमांचक यात्राा। सच में रोमांचक ही तो थी कि चले थे कहीं और के लिए पहुंच गए कहीं और रात के साथ-साथ वीराने में अकेले भटकते हुए सड़क आना भी शरीर का रोयां-रोयां खड़ा कर रहा था। जो भी मजा बहुत आया था, जो सोचा था न वैसा हुआ।
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ReplyDeleteबहुत सारा धन्यवाद आपको।
Delete