Monday, October 30, 2017

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 3) : काशी विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी

तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 3) : काशी विश्वनाथ मंदिर, गुप्तकाशी



तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा के इस भाग में आईए हम आपको ले चलते हैं गुप्तकाशी में स्थित भगवान भोलेनाथ के प्रसिद्ध और पुरातन मंदिर में जिसका संबंध महाभारत काल से ही है। गुप्तकाशी कस्बा केदारनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव है। कहा जाता है कि पहले इसका नाम मण्डी था। जब पांडव भगवान् शंकर के दर्शन हेतु जा रहे थे तब इस स्थान पर शंकर भगवान् ने गुप्तवास किया था जिसके बाद पांडवों ने यहां काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया था। इस कारण इस स्थान का नाम गुप्तकाशी पड़ा। काशी विश्वनाथ के मंदिर में एक मणिकर्णिका नामक कुंड है जिसमे गंगा और यमुना नामक दो जलधाराएं बहती है। हमने भी अपनी तुंगनाथ यात्रा के दौरान इस मंदिर में महादेव के दर्शन किया तो आइए आप भी हमारे साथ इस मंदिर में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करिए। कहा जाता है न कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। अगर कल शाम को बरसात न हुई होती तो शायद हम गुप्तकाशी न आकर उखीमठ ही चले जाते और उखीमठ जाते तो ये यात्रा केवल तुंगनाथ तक ही सीमित रह जाती और हम गुप्तकाशी में स्थित भगवान भोलेनाथ के दर्शन के से वंचित रह जाते वो भी श्रावण महीने के पूर्णिमा के दिन। मेरे सबसे पहले जागने और नहा-धो कर तैयार होने का मुझे एक फायदा यह मिला कि जब तक हमारे सभी साथी स्नान-ध्यान में लगे तब तक हम पहाड़ों की खूबसरती का दीदार करने के लिए गेस्ट हाउस की छत पर चला गया। यहां जाकर जो पहाड़ों में बरसात का जो नजारा दिखा वो कभी न भूलने वाले पलों में शामिल हो गया। बहुत लोगों को कहते सुना है कि बरसात में पहाड़ों की घुमक्कड़ी करने से बचना चाहिए और ये बात बहुत हद तक सही भी है। पर इस बरसात में यहां आकर हमने पहाड़ों का जो सौंदर्य देखा उसके बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। जिस तरह शादी में नई दुल्हन सजी संवरी होती है ठीक वैसे ही पहाड़ भी इस मौसम में एक दुल्हन की तरह दिख रही थी। बरसात के कारण मुरझाए पेड़ों पर हरियाली छाई हुई थी। पिछले साल जब जून के महीने में हम यहां आए तो यही पहाड़ सूना-सूना लग रहा था पर बरसात में इन पहाड़ों का मुझे एक अलग ही रूप देखने को मिला। एक तो हरा-भरा पहाड़ उसके ऊपर से अठखेलियां करते बादल का आना और जाना मन को मुग्ध कर रहा था।

तो आइए अब आज की यात्रा की बात करते हैं। कल पूरे दिन की सफर के थकान के कारण जो नींद आई तो सुबह चार बजे अलार्म बजने के साथ ही खुली। कमरे का दरवाजा खोल कर देखा तो कल शाम को जो बरसात आरंभ हुई थी अभी तक जमकर बरस रही थी। कल रात तो हमने सोचा था कि क्या पता मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत हो और आज बरसात से हमारा पाला न पड़े पर मौसम विज्ञान की भविष्यवाणी आज 100 प्रतिशत से भी ज्यादा सच हो रही थी। कल रात से लगातार हो रही झमाझम बारिश ने हमारी चिंताएं बढ़ा दीं। जिस हिसाब से बरसात हो रही थी उसमें अपने आवास से निकल पाना भी मुश्किल लग रहा था और हमें तो पूरे दिन ही यात्रा करनी हैं। अब ये यात्रा कैसे पूरी होगी इसी चिंता में हमने अपना करीब 10 मिनट बर्बाद कर दिया। उसके बाद जो होगा सो होगा यही सोचते हुए सबसे पहले स्नान-ध्यान का सोचा और नहाने के लिए चल दिए। करीब 20 मिनट में हम नहा धो कर तैयार हो गए। हमने तो नहा लिया पर अभी तक हमारे सभी साथी सोए हुए ही थे तो हमने सबसे पहले बीरेंद्र भाई जी को जगाया और उसके बाद हम उन्होंने ही एक-एक करके सबको जगाया। साढ़े पांच बजते-बजते हम सभी लोग नहा-धो कर तैयार हो गए और बरसात बंद होने का इंतजार करने लगे।

हमने तो सोचा कि दिन निकलने के साथ क्या पता बरसात की रफ्तार कुछ कम हो जाए पर ऐसा नहीं हुआ और जो हुआ इसका उल्टा ही हुआ। बरसात कम होने के बजाय और बढ़ती जा रही थी। जैसे जैसे बरसात की रफ्तार बढ़ रही थी वैसे वैसे हमारी चिंताएं भी बढ़ती जा रही थी। हम तो यही सोचने में लगे थे कि अगर बरसात बंद नहीं हुई तो हमारा आज का पूरा दिन खराब होगा और जो कल का दिन बचेगा वो वापसी में ही चला जाएगा और हमारी ये यात्रा अधूरी रह जाएगी। बरसात कम नहीं होता देख हम सबने बरसात में ही भोलेनाथ के दर्शन करने का मन बना लिया कि यात्रा आगे जारी रहे न रहे पर जब यहां हैं तो पहले यहां के दर्शन कर लेते हैं उसके बाद आगे का सोचेंगे। मेरे बात का सभी साथियों ने समर्थन किया और हम चले पड़े दर्शन के लिए। गेस्ट हाउस से निकलते ही बरसात से भीगी ठंडी हवा ने जोरदार स्वागत किया। ये ठंडी हवाएं बिल्कुल तीर की चुभ रही थी। यहां तो ऐसे ही जून के महीने भी कंपकपाती ठंड रहती और ऊपर से बरसात ने ठंड को और ज्यादा ही बढ़ा दिया था। ठंड से कांपते हुए ही हम सब मंदिर की ओर चलते रहे। गुप्तकाशी में मंदिर जाने का रास्ता मुख्य बाजार में बस पड़ाव के पास ही है। मंदिर जाने के लिए करीब 100 सीढि़यां चढ़नी पड़ती है। रात से हो रही बरसात के कारण सीढि़यां भी फिसलन भरी हो गई थी। सीढि़यों के दोनों तरफ पानी निकलने के लिए बने नाले में पानी बहुत ही तेज रफ्तार से नीचे आ रहा था। उसकी रफ्तार इस समय एक नदी के जैसे लग रही थी। पानी को हाथ लगाकर देखा तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हाथ जम जाएगा।

करीब 10 मिनट से भी कम समय में सीढि़यां चढ़ते हुए हम मंदिर के पास पहुंच गए। मंदिर के बाहर ही बेलपत्र और प्रसाद की कुछ दुकानें हैं। हम सबने भी बेलपत्र और प्रसाद खरीदा और मंदिर की तरफ चल दिए। मंदिर के पास जाते ही देखा कि यहां पहले से ही स्थानीय लोगों की भारी भीड़ जमा है। एक तो श्रावण का महीना, उसके ऊपर पूर्णिमा और उसमें भी सोमवार का दिन तो कुल मिलाकर कहा जाए तो आज भगवान भोलेनाथ का ही दिन था और अगर इस दिन भोलेनाथ के मंदिर में भीड़ नहीं होगी तो कब होगी। मंदिर परिसर में प्रवेश करते ही सबसे पहले हमारी नजर उस मणिकर्णिका कुंड पर पड़ी जिसमें गंगा और यमुना नाम की दो धाराएं बहती रहती हैं। हम सबने वहीं पास ही में पड़े बर्तनों में दोनों धाराओं से पानी भरा और मंदिर में प्रवेश के लिए पंक्ति में खड़े लोगों के पीछे खड़े हो गए। धीरे धीरे हमारी भी बारी आ गई और हम भी मंदिर में प्रवेश कर गए। मंदिर के गर्भगृह में बहुत ही ज्यादा भीड़ थी। पैर रखने तक की जगह नहीं थी फिर भी किसी तरह बेलपत्र और फूल आदि से भगवान भोलेनाथ की पूजा करने के पश्चात जलाभिषेक किया और वहीं कोने में खड़े हो गए और सोच लिया कि जब तक पुजारी जाने के लिए नहीं कहेगा जाएंगे नहीं। यहां मेरी ये मंशा अधूरी ही रह गई, करीब 10 मिनट तक मंदिर के गर्भगृह में एक कोने में खड़ा रहा फिर भी पुजारी ने एक बार भी बाहर जाने के लिए नहीं तो थक हार कर हम खुद ही मंदिर से बाहर निकल गए। 

मंदिर परिसर के अंदर ही मुख्य मंदिर के बगल में ही एक छोटा मंदिर है जिसे अद्र्धनारीश्वर मन्दिर कहते हैं। इस अद्र्धनारीश्वर मन्दिर में भगवान शिव की मूर्ति आधे पुरुष और आधे स्त्री के रूप में स्थापित हैं। अद्र्धनारीश्वर मन्दिर में पूजा-अर्चना करने के बाद हम मंदिर परिसर में ही बने अन्य छोटे छोटे मंदिरों और मूर्तियों पर जलाभिषेक किया और फिर कुछ फोटो लेने की कोशिश करने लगे। इस समय मेरे लिए एक स्वर्णिम पल यह हुआ कि बरसात की फुहारें कुल मिनट के लिए बंद हो गई और हम फोटो लेने में व्यस्त हो गए। दो-चार मिनट ही हुआ कि एक बार फिर से बरसात ने हमारे ऊपर धावा बोल दिया और बरसात इतनी तेज थी कि फोटो लेना तो दूर कैमरा भी निकलना मुश्किल हो रहा था। एक हाथ में छाता और दूसरे हाथ में कैमरा लेेकर फोटो लेते रहे और कुछ फोटो लेने के बाद वापसी की तैयारी शुरू कर दी। मंदिर से बाहर निकलकर जिस दुकान से प्रसाद और बेलपत्र लिया था उसे पैसे दिये और उसके थाल को वापस किया और और चल पड़े अपने गेस्ट हाउस की तरफ। बारिश ने भी जैसे सोच रखा था कि आज वो हम सबको परेशान करके ही रखेगा। जिन सीढि़यों से हम आए थे उन्हीं सीढि़यों से नीचे की तरफ जाने लगे और कहते हैं न कि जोश में होश खो देना यही हमारे साथ हुआ। एक हाथ में छाता दूसरे हाथ में कैमरा लेकर फोटो खींचते हुए सीढि़यों से उतर रहे थे और एक बंदर के दिखते ही उसकी फोटो लेने की कोशिश में कुछ ध्यान नहीं रहा और पीछे हटते हटते सीढि़यों के बिल्कुल किनारे आ गए और पैर फिसल गया और वहीं गिर गए। ये तो अच्छा हुआ कि जो भी हल्की-फुल्की चोट का असर हुआ वो मेरे ऊपर ही हुआ और कैमरे को कुछ नहीं हुआ। अपनी चोट तो मैं मुस्कुराते हुए सह गया पर अगर कैमरे को चोट आती तो उस चोट को सहना मेरे लिए मुश्किल होता क्योंकि उसमें हमारी यात्रा की यादें बसी हुई थी और आगे भी बसने वाली थी। ऐसी ही एक घटना कन्याकुमारी में मेरे साथ घट चुकी है जब समुद्र की लहरों ने मेरे साथ साथ कैमरे को भी अपने खारे पानी से स्नान करवा चुका था।

मेरे गिरते ही बंदर तो अपने रास्ते निकल लिया और मैं देखता ही रह गया। फोटो लेने का सुख तो मिल नहीं सका, उल्टे चोट का दर्द जरूर मिल गया। मैं किसी तरह उठा और झूठी मुस्कुराहट के साथ साथियों से कहा कि कुछ नहीं हुआ और सीढि़यां उतरने लगे। सीढि़या उतरने के बाद जब नीचे आए तो सबसे पहले हम लोगों ने कालीमठ जाने के लिए गाड़ी के बारे में पता किया तो इस सीजन में वहां कोई भी गाड़ी वाला जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। सबका एक ही कथन था कि जिस हिसाब से बरसात हो रही है उसे देखकर तो यही लगता है कि अगर हम उधर गए और भू-स्खलन हो गया तो न जाने कितने देर उधर ही रहना पड़ेगा। अब कालीमठ के लिए कोई गाड़ी न मिलने से हम लोगों के हंसते-मुस्कुराते चेहरे पर उदासी छाने लगी। ऐसे ही पूछते-पूछते बहुत मुश्किल से हजार खुशामदों के बाद एक जीप वाला 600 रुपए में कालीमठ जाने के लिए तैयार हो गया और जीप वाले के हां कहते ही हम सबके मुरझाए चेहरे एक बार फिर से खिल उठे। अब तक 7ः15 बज चुके थे बरसात भी अब बूंदा-बूंदी में बदल चुकी थी और मौसम थोड़ा थोड़ा साफ होने लगा था। बरसात कम होता देख हमारे मन में थोड़ी खुशी हुई कि लगता है कि अब मौसम साफ हो जाएगा पर ये खुशी भी बस कुछ ही मिनटों की थी। जीप वाले से बात पक्का करके हम लोग अपने कमरे की तरफ चल दिए कि जो भी सामन है उसे कमरे पर रख कर आते हैं फिर कालीमठ की तरफ प्रस्थान करेंगे। इस भाग में बस इतना ही आगे के भाग में हम आपको ले चलेंगे कालीमठ के सफर पर। तब तक के लिए आज्ञा दीजिए।
जय भोलेनाथ।



गुप्तकाशी के आसपास के दर्शनीय स्थल
विश्वनाथ मंदिर : यह मंदिर गुप्तकाशी कस्बे में ही स्थित है।
कालीपीठ : वैसे तो कालीपीठ को उखीमठ में बताया जाता है पर कालीमठ जाने का रास्ता गुप्तकाशी से ही होकर जाता है। हरिद्वार की तरफ से आने पर गुप्तकाशी कस्बा आरंभ होने से पहले ही दाएं तरफ एक सड़क जाती है, जिसमें करीब 9 किलोमीटर के बाद कालीपीठ मंदिर आता है।
गौरीकुण्ड : गौरीकुण्ड की दूरी गुप्तकाशी से 33 किलोमीटर है।
सोनप्रयाग : सोनप्रयाग गुप्तकाशी से 28 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
त्रियुगीनारायण : यहां जाने के लिए भी गुप्तकाशी से होकर ही जाना पड़ता है। गुप्तकाशी से सोनप्रयाग उसके बाद सोनप्रयाग से एक रास्ता गौरीकुण्ड होते हुए केदारनाथ और एक रास्ता त्रियुगीनारायण चली जाती हैं
केदारनाथ : वर्तमान में गुप्तकाशी से केदारनाथ की दूरी 49 किलोमीटर है। 2013 में आई आपदा से पहले यह दूरी 47 किलोमीटर है।


इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली




आइये अब इस यात्रा के कुछ फोटो देखते हैं :



गुप्तकाशी से उखीमठ का सुन्दर दृश्य 

उखीमठ के ऊपर बादल 

बादलों के बीच उखीमठ 

 बरसने वाले बादल 

साफ मौसम में मन्दाकिनी घाटी 

मन्दाकिनी घाटी के ऊपर बादल 

पहाड़ के ऊपर बादल या बादलों के बीच पहाड़ 

 साफ मौसम में निखरता पहाड़ 

पहाड़ से खेलते बादल 

एक गांव 

पहाड़ के साथ खेलते बादल 

मन्दाकिनी के ऊपर बादल या वाष्प 

जब दृश्य ऐसा हो तो डरना लाजिमी है 

जब दृश्य ऐसा हो तो डरना लाजिमी है

पेड़ से घने बादल 

जितने पेड़ उतने बादल 

विश्वनाथ मंदिर में गंगा और यमुना की धारा 

विश्वनाथ मंदिर

विश्वनाथ मंदिर

विश्वनाथ मंदिर में अर्घ्य देते श्रद्धालु 

विश्वनाथ मंदिर की पौराणिक जानकारी 

गुप्तकाशी और विश्वनाथ मंदिर की भौगोलिक जानकारी

विश्वनाथ मंदिर परिसर में मैं 

विश्वनाथ मंदिर में भाई बीरेंद्र कुमार और उनकी पत्नी सीमा कुमारी 

मंदिर से वापसी के समय सीढ़ियों से उतरते हुए राकेश आजाद और उनकी पत्नी सुप्रिया सोनम 

बरसात का पानी बहता हुआ 

धीरज कुमार (फोटो खींचते हुए)

बाजार से मंदिर की तरफ जाने वाला रास्ता 

गुप्तकाशी से दिल्ली और हरिद्वार की दूरी दर्शाता बोर्ड (बरसात के समय)

गुप्तकाशी से दिल्ली और हरिद्वार की दूरी दर्शाता बोर्ड (साफ मौसम में)

बरसने के लिए उतावले घने और काले बादल 

गुप्तकाशी से उखीमठ के साथ मेरी मैं 

गुप्तकाशी से गौरीकुंड और केदारनाथ की दूरी दर्शाता बोर्ड (वैसे अब गुप्तकाशी से केदारनाथ की दूरी 49 किलोमीटर है)

बरसात का आनंद लेता पक्षी 

इनको क्या कहेंगे

इस यात्रा के अन्य भाग भी अवश्य पढ़ें

भाग 4: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 4) : कालीपीठ, उखीमठ
भाग 5: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 5) : गुप्तकाशी से चोपता
भाग 6: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 6) : तुंगनाथ जी मंदिर
भाग 7: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्राा (भाग 7) : चंद्रशिला का अधूरा सफर
भाग 8: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 8) : चंद्रशिला फतह और चोपता वापसी
भाग 9: तुंगनाथ-चंद्रशिला यात्रा (भाग 9) : चोपता से दिल्ली





14 comments:

  1. सच मे बारिश में पहाड़ो में घूमना एक अलग ही आनंद है...साफ मौसम नही रहता कोहरा और धुन्ध रहती है...लेकिन यह जो एहसास होता है मुझे बहुत पसंद है...बढ़िया पोस्ट गुप्तकाशी घुमक्कड़ी की.....

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    1. पहले तो बहुत सारा धन्यवाद आपको। हां बरसात में इन पहाड़ों का अलग ही रूप देखने के लिए मिला। जो कहते हैं कि बरसात में पहाड़ में जाने से बचना चाहिए वो एक बार ऐसे मौसम में जरूर आएं। मौसम दिन में भी बिल्कुल रात के जैसा ही रहता है, थोड़ा सा दूर कुछ दिखाई नहीं देता। एक बार पुनः धन्यवाद

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद बुआ जी

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जी

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  4. आपने अच्छी यात्रा करवाई गुप्तकाशी की .... एक बात है बारिश कभी कभी अच्छी लगती है जब बहुत जरूरी काम हो या कही निकलना हो तो झुझलाहट होने लगती है | खैर बारिश में धुंध के कारन चित्र भी अच्छे नहीं आते

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    1. बहुत सारा धन्यवाद आपको!!
      बरसात मुझे तो बहुत अच्छी लगती है, बरसात में भीगना बहुत प्यारा लगता है मुझे। पर जब कहीं जाना हो और बरसात हो तो दिक्कत लगती है पर ये भी जो जरूरी है। जल ही जीवन है।

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  5. बहुत ही सुंदर जानकारी और तस्वीरेंl सिन्हा साहब, वैसे तो मैं भी बहुत बार गुप्तकाशी और सोनप्रयाग की तरफ गया हूं लेकिन काशी विश्वनाथ मंदिर जाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाया या यूं कहिए कि समय के अभाव के चलते इस मंदिर के दर्शन नहीं कर पाया लेकिन आपने जितनी अच्छी तस्वीरें पोस्ट की हैं उन्हें देखकर ऐसा लगा ही नहीं कि मैंने मंदिर के दर्शन नहीं किए मैं दिल से धन्यवाद करता हूं आपका ईश्वर आपको ऐसे ही घुमाता रहे और स्वस्थ रखें

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद नरेश जी। हम भी यहां जाने के लिए नहीं गए थे, हमारी यात्रा तो तुंगनाथ जी की थी पर शाम को जब रुद्रप्रयाग पहुंचे तो वहां कोई गाड़ी उखीमठ के लिए नहीं मिली और बड़ी मुश्किल से एक जीप वाला हम लोगों को उखीमठ तो नहीं गुप्तकाशी तक पहुंचाने के लिए तैयार हुआ और भरी बरसात में हम गुप्तकाशी पहुंच गए। शाम से आरंभ हुई बरसात सुबह तक जारी थी तो कहीं निकल नहीं सकते थे तो फिर यहीं दर्शन की योजना बनी और अच्छा भी हुआ। सोमवार और सावन की पूर्णिमा के दिन हमें महादेव पर जल चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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  6. बहुत ही खूबसूरत वृत्तान्त।पर्वतों की खूबसूरती का अलग ही आयाम देखने को मिला इस वर्णन में। सभी चित्र हमेशा की तरह बहुत सुंदर। भगवान शिव की जय हो

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद वेद जी। बरसात के महीने में ही पहाड़ की रंगत ही निखर जाती है। हर तरफ हरियाली, झरनों की मधुर संगीत, काले-सफेद बादल और बरसात व कुहरे से मौसम सुहावना हो जाता है।

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  7. त्रियुगीनारायण मंदिर का दृश्य बहुत ही आनंदित प्रतीत होता है।

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