Friday, April 14, 2017

ज्वालादेवी धाम (Jwaladevi Dham)

ज्वालादेवी धाम (Jwaladevi Dham)



ज्वालाजी मंदिर को ज्वालामुखी मंदिर भी कहते हैं ! ज्वालाजी मंदिर को भारत के 51 शक्तिपीठ में गिना जाता है ! लगभग एक टीले पर बने इस मंदिर की देखभाल का जिम्मा बाबा गोरखनाथ के अनुयायियों के जिम्मे है ! कहा जाता है की इसके ऊपर की चोटी को अकबर ने और शोभायमान कराया था ! इसमें एक पवित्र ज्वाला सदैव जलती रहती है जो माँ के प्रत्यक्ष होने का प्रमाण देती है ! ऐसा कहा जाता है कि माँ दुर्गा के परम भक्त कांगड़ा के राजा भूमि चन्द कटोच को एक सपना आया , उस सपने को उन्होंने मंत्रियों को बताया तो उनके बताये गए विवरण के अनुसार उस स्थान की खोज हुई और ये जगह मिल गयी , जहां लगातार ज्वाला प्रज्वलित होती है ! ये ही ज्वाला से इस मंदिर का नाम ज्वाला जी या ज्वालामुखी हुआ ! इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि प्राकृतिक रूप से निकलती ज्वाला की ही पूजा होती है ! एक आयताकार कुण्ड सा बना है जिसमें 2-3 आदमी खड़े रहते हैं !


4 बजे से कुछ पहले ही हम ज्वालादेवी पहुँच गए। अब सबसे पहला काम कोई कमरा ढूंढ़ना था। मैं थोड़ा इधर उधर घुमा तो देखा कि एक हिमाचल टूरिज्म का होटल है। मैं अंदर गया और कमरे के लिए बात किया तो उसने जो रेट बताया सुनकर पहले तो होश उड़ गए। 1 दिन का 1800 रूपये। मैं वहां से फिर बस स्टेशन आया और बस स्टेशन के बायीं तरफ एक बोर्ड पर "नगर परिषद् गेस्ट हाउस" लिखा हुआ दिखा गया। मैं सीधा वही पहुँच गया। कमरे के लिए बात किया तो उहोने कहा मिल जाएगी। केवल 250 रूपये में उसने मुझे कमरा दे दिया। कमरा भी ऐसा कि देखते ही लगा कि वाह क्या बात है।  कमरा बिलकुल साफ-सुथरा था।  मैंने कमरा देखने बाद उनको पैसे दिए और फिर से कमरे आकर नहाने की तैयारी करने लगा। इतने में वो फिर से आये और कहा, अगर आपको गरम पानी से नहाना हो तो ऊपर चले जाइये वहां गीजर लगा हुआ है। मैं ऊपर जाकर गरम पानी से नहाया। नहाने के बाद मैंने मंदिर का समय पुछा तो उन्होंने कहा कि 9 बजे तक मंदिर खुला रहता है।  मैंने घडी पर निगाह डाली तो 5 बजने वाले थे। भूख भी बड़ी तेज़ लग रही थी।  मैं तो घर से ये सोचकर चला था कि मंदिर के दर्शन कल होंगे पर यहाँ तो आज ही मुझे माँ ज्वालादेवी के दर्शन होने वाले थे।  मैं जल्दी से मंदिर पहुँच जाना चाहता था।  मैं भूख की परवाह किये बिना कमरे में गया, बेल्ट और चप्पल वही उतार दिया। इसके बाद कैमरा उठाया और मंदिर कि तरफ चल दिया।  


बस स्टैंड के बिलकुल सामने से मंदिर के लिए रास्ता बना हुआ है ! चौड़ी रोड और रोड के दोनों तरफ प्रसाद , खिलौनों और महिलाओं के श्रृंगार के सामान से सजी दुकानें ! हाँ पूरे रास्ते पर फाइबर की छत पड़ी हुई है जिससे धूप और बरसात से बचा जा सकता है ! 15 मिनट चलने के बाद ही मैं मंदिर पहुँच गया।  वहां कुछ प्रसाद और कुछ फूल लिए और सीढियाँ चढ़ते हुए मंदिर परिसर में दाखिल  हो गए। इस समय भीड़ बिलकुल भी नहीं थी मुश्किल से पूरे मंदिर परिसर में 200 लोग होंगे और मुख्य मंदिर के दर्शन की लाइन में 50 लोग। मैं मुख्य मंदिर में प्रवेश करते समय कैमरा को चालू हालत में रखा था कि मौका मिलते ही ज्यादा तो नहीं पर 1 फोटो ले सकूँ।  पर मेरी ये तमन्ना धरी की धरी रह गयी।  एक पुजारी ने कैमरा देख लिया और फोटो नहीं लेने के लिए हिदायत दे दी।  मैं कैमरा बंद करके पॉकेट में रख लिया।  मंदिर में घुसा तो वो दृश्य मेरे सामने था जो मैं सुना करता था।  एक बड़ी सी लौ जल रही थी। वो केवल लौ ही थे उसमे धुँआ नाम की कोई चीज़ नहीं थी।  पुजारी ने मेरे फूल ज्वालादेवी को अर्पित किया और मुझे टीका लगाया और फिर दूसरे की बारी आ गयी।  जिसके लिए मैं 2 दिन का सफर करके यहाँ तक आया वहाँ पर 2 मिनट भी रुक नहीं पाया। यहाँ कुछ और भी मुझे देखने को मिला। इस मंदिर में जो मुख्य ज्योति जल रही थी उसके अलावा भी दिवार में भी कई और ज्योतियां थी जो जल रही थी।  जहाँ मुख्य ज्योति आग का रंग लिए हुई थी वहीं बाकि ज्योतियां नीला रंग लिए हुई थी।

यहाँ से निकालकर मैं उस जगह गया जहाँ अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र रखा हुआ है। उसके बाद एक शयन-कक्ष मंदिर है वहां गया, फिर कुछ फोटो ली और मंदिर परिसर में ही एक एकान्त और शांत जगह में करीब 30 मिनट बैठकर मंदिर की खूबसूरती को निहारता रहा। शाम के समय मंदिर की जो खूबसूरती होती है वो बहुत मनमोहक होती है।  6 बजे चुके थे। अब मैं मंदिर से गेस्ट हाउस के लिए निकला और कमरे में आकर कंचन का दिया हुआ कुछ ब्रेड और बिस्कुट थे उससे अपने पेट में कूद रहे चूहों को शांत कराया।  फिर बाहर निकल और 2 घंटे मैं पूरा मार्किट घूमा। फिर पता नहीं कब आना हो या न आना हो इसलिए जितना देख घूम सकता था उतना घूम लिया।  करीब 8;30 बजे एक ढाबे पर खाना खाया और कमरे पर आकर  कल की प्लानिंग में लग गया। 


दिल्ली से चलते हुए जो प्लान बनाया था उसके हिसाब से मुझे ज्वाला देवी के दर्शन कल होने की उम्मीद थी पर दर्शन आज ही हो गए।  तो मुझे अपने प्लान में बदलाव तो करना ही था।  कल के लिए मैंने जो प्लान किया वो था कि सुबह फिर से एक बार ज्वाला देवी दर्शन किया जाये उसके बाद बैजनाथ महादेव जो पालमपुर से थोड़ा आगे है वहां चला जाये। सुबह उठकर पहले मंदिर के दर्शन किया जाये, फिर बस से ज्वालामुखी रोड और उसके आगे का सफर उसी काँगड़ा वैली वाली ट्रेन से बैजनाथ तक का सफर।  अकेला आदमी हूँ न कोई रोकने वाला, न कोई कुछ कहने वाला बस जिधर मन हुआ चले जाना है।  अब ऐसा भी अकेला मत समझ लीजिये जैसे कोई रमता जोगी हूँ।  हर 1 या 2 घंटे बाद पत्नी या बेटे का फ़ोन आता रहता और ये याद दिलाता रहता कि आप रमता जोगी या बहता पानी नहीं है जो कहीं भी चले जाये इधर दिल्ली में हम लोग आपका इंतज़ार कर रहे हैं।  कभी कभी मम्मी का फ़ोन भी आता कि ये कौन सा घूमने की बीमारी पाल लिए हो, ऐसे ही जहाँ मन करता है चले जाते हो। आज की कहानी बस इतनी थी इसके बाद मैं सोने की तैयारी में लग गया और 10 बजते बजते मैं सो गया। 


मंदिर में दर्शन का समय 

सर्दियों में सुबह 6 बजे से रात्रि 9 बजे तक (आश्विन माह के नवरात्रि से)
गर्मियों में सुबह 5 बजे से रात्रि 10 बजे तक (चैत्र माह के नवरात्रि से)


जाने के साधन 

सड़क मार्ग : दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से काँगड़ा के लिए हिमाचल रोडवेज की बसें बहुत आसानी से मिल जाती है। काँगड़ा से ज्वालादेवी के लिए हिमाचल रोडवेज या निजी बसें बहुतायत में मिलती है।  

वायु मार्ग : ज्वालादेवी तक पहुँचने के लिए वैसे तो कोई सीधे हवाई साधन नहीं है।  नजदीकी हवाई अड्डा गग्गल एयरपोर्ट है।  यहाँ से कांगड़ा और फिर काँगड़ा से ज्वालादेवी के लिए बसें उपलब्ध है। 

रेल मार्ग : ज्वालादेवी कहीं से भी रेल मार्ग से जुड़ा नहीं है। यहाँ के लिए नज़दीकी रेलवे स्टेशन ज्वालामुखी रोड है।  जो पठानकोट से जोगिन्दर नगर नैरो गेज लाइन पर स्थित है। पठानकोट सभी प्रमुख शहरों से रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। पठानकोट से जोगिन्दर नगर जाने वाली नैरो गेज रेलवे (टॉय ट्रेन, जिसे काँगड़ा वैली रेलवे भी कहते हैं ) से ज्वालामुखी रोड स्टेशन तक और इसके बाद का सफर बस से

इससे आगे की यात्रा का विवरण हम अगले पोस्ट में देंगे तब तक आज्ञा दीजिये।  हम लौटेंगे बस बने रहिये मेरे साथ। 






अब कुछ फोटो हो जाये :



ज्वालादेवी मंदिर



मुख्य ज्वाला (यह फोटो इंटरनेट से ली गयी है)


दीवारों में जलती हुई ज्वाला (यह फोटो इंटरनेट से ली गयी है)




बस स्टैंड से मंदिर का रास्ता और रास्ते में दोनों तरफ दुकानें



मंदिर के पास की सीढ़ियों पर मैं 



मुख्य मंदिर की सीढियाँ

मुख्य मंदिर की सीढियों के पास मैं 



मुख्य मंदिर


मंदिर परिसर में मैं 




बस स्टैंड के पास मदिर की तरफ जाने का रास्ता

मंदिर के ऊपर पहाड़ी पर जंगल

सूर्यास्त के समय

मुख्य मंदिर के बाहर शेर की प्रतिमाएं

शयन कक्ष मंदिर

मंदिर परिसर एक मनमोहक दृश्य

मंदिर के पीछे की पहाड़ी


मंदिर परिसर से सूर्यास्त के समय का दृश्य

मंदिर परिसर में मैं 



गोरख डिब्बी को दर्शाता बोर्ड

अकबर का चढ़ाया हुआ छत्र

मंदिर के ऊपर सोने का गुम्बद

मुख्या दरवाजे पर विराजते दो शेर

मंदिर का मुख्य द्वार

ज्वालादेवी मंदिर, गेस्ट हाउस के छत से

गेस्ट हाउस के छत से दिखता मंदिर और मंदिर जाने का रास्ता

बस स्टैंड , मंदिर जाने वाला रास्ता और मंदिर

11 comments:

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    1. mera blog dekhne aur padhne ke liye sadar dhanyabad, ha jee jaroor kam aayegi, jankari koi bhi kabhi na kabhi kam jaroor aati hai

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  2. mera blog dekhne aur padhne ke liye sadar dhanyabad, kyaa aap bhi jwala devi ke darshan ko jane wale hai

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  3. जय माँ ज्वाला देवी

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    1. जय माँ ज्वालादेवी

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  4. Sir aapki ye Post padh kar mai ye yatra karunga jis tarha aapne ye jankri di hai wo kafi mere kaam aayegi

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद जी पोस्ट को पढ़ने और उसके ऊपर प्यार भरी टिप्पणी के लिए। आप कौन हैं ये तो नहीं पता क्योंकि नाम नहीं आ रहा लेकिन बहुत सारा धन्यवाद आपको।

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    2. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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  5. Nice. Border. Mae.bhi.gaya.hoon.chintpurinitak

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको

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