हम लोग जीप में बैठ गए। जीप अलकनंदा नदी के किनारे टेढ़े मेढ़े रस्ते पर चलने लगी। सड़क की हालात कुछ अच्छी नहीं कही जा सकती। सामरिक दृष्टि (भारत-चीन और भारत-तिब्बत) का सीमान्त इलाका होने के बाद भी सड़क की हालात एक गांव के सड़क जैसी थी। इस रास्ते पर चलते हुए नज़ारे बहुत ही खूबसूरत दिख रहे थे। हवा में वही खुसबू थी जिसे मैं कैद कर लेना चाहता था सदा के लिए पर ये तो संभव था नहीं बस मन में सोच रहे थे।
20 मिनट की यात्रा के बाद हम माणा गांव पहुच चुके थे। जीप से उतरते हुए ऐसा महूसस हो रहा था कि काश ये यात्रा 20 मिनट की नहीं होकर 20 घंटे की होती और हम इन खूबसूरत दृश्य कोई ऐसे देखते हुए चलते जाते अनंत में। खैर सोचने से क्या होता हम जीप से बाहर आ चुके थे और इससे आगे रास्ता भी तो नहीं था कि जीप आगे जा सकती थी। जहाँ हम उतरे वहां कुछ दुकाने थी और एक गेट बना हुआ था। हमने वह कुछ फोटो ली।
दो-चार फोटो लेने के बाद हमने माणा गांव में प्रवेश किया। एक पतली से गली जैसे सीमेंटेड सड़क और सड़क के दोनों ओर बने छोटे छोटे घर, और हर घर में दुकानें। दुकानों में वहां की निवासी हाथ की बनायीं चीज़े बेच रहे थे जैसे, स्वेटर, शॉल, जैकेट, कम्बल, चादर और कुछ लोग जड़ी-बूटी, आयुर्वेदिक उत्पाद भी बेच रहे थे। थोड़ी दूर आगे जाने पर वहां से दो रास्ते थे। एक रास्ता जो दाहिने तरफ जा रही थी वो गणेश गुफा, व्यास गुफा और भारत की अंतिम चाय की दुकान की तरफ जा रही थे और दूसरा रास्ता जो बाएं तरफ जा रही थी वह सरस्वती नदी पर बने पुल "भीम पुल" की तरफ जा रही थी।
हम लोग यहाँ रुके। अब पहले किधर जाएँ गणेश गुफा, व्यास गुफा जाएँ या फिर भीम पुल (जिसे भीम शिला भी कहते हैं), उधर जाएँ। यही तय किया गया कि पहले गणेश गुफा ही देख लेते है उसके बाद भीम शिला चलेगे। अब हम सड़क के दाहिने मुड़ चुके थे। यहाँ सीढियाँ चढ़नी पड़ थी। हम सब लोग के पैरों ने साथ छोड़ दिया था। केदारनाथ की चढ़ाई और उतराई और 7 दिन तक लंबा सफर करके हम लोग पूरी तरफ थक चुके थे। फिर भी किसी तरफ सीढियाँ चढ़ते हुए गणेश गुफा तक पहुचे। कहा तो ये जाता है कि जब वेद व्यास वेद की रचना कर रहे थे तो गणेश जी इसी गुफा में निवास करते थे और व्यास जी थोड़ा ऊपर व्यास गुफा में।
गणेश गुफा देखने के बाद हम लोग कुछ और ऊपर स्थित व्यास गुफा की तरफ बढ़े और वहीं पर भारत की आखिरी चाय की दुकान भी थी । अब एक एक कदम चलना था मुश्किल था। एक कदम चलने में भी दिक्कत हो रही थी। थोड़ी दूर चलने पर पिताजी बैठ गए और बोले कि तुम लोग जाओ अब हमसे नहीं चला जायेगा। मैंने कहा कि इतनी दूर आये है कुछ दूर के लिए आप यहाँ क्यों रुकेंगे हम लोग जाते हैं आप भी धीरे धीरे आ जाइयेगा। किसी तरह धीरे धीरे हम लोग व्यास गुफा तक पहुंचे। जहाँ सीढियाँ ख़तम होती है वही पर व्यास गुफा का दरवाजा है और दाहिने तरफ एक चबूतरे पर "भारत की आखिरी चाय की दुकान" भी है।
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व्यास गुफा के दरवाजे पर कंचन, मम्मी और आदित्या |
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व्यास गुफा के दरवाजे पर कंचन, मम्मी और मैं |
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गुफा के प्रवेश द्वार पर आदित्य और उसके बाएं हाथ की तरफ वो चाय की दुकान है |
वहां पहुँचने पर पहले तो हम लोग कुछ देर बैठे। हम लोग इतने थके हुए थे कि एक कदम भी चला नहीं जा रहा था। थोड़ा आराम आने पर पहले मम्मी, पापा, आदित्या और कंचन गुफा में गए। वहां एक पुजारी थे जो सबको गुफा के बारे में समझा रहे थे। अब सबसे अंत में मैं गुफा के अंदर गया। मैंने कंचन से पूछा कि क्या गुफा के अंदर फोटो लेने दे रहे है तो उसने कहा की नहीं। फिर भी मैं कैमरा लेके गया। मैं भी गुफा देखा, पुजारी ने गुफा घूम घूम कर दिखाया। अब हम गुफा से बाहर आने से पहले उनसे पूछा कि क्या हम एक दो तस्वीर ले सकते है तो उन्होंने साफ मना कर दिया। फिर मैंने कहा उसने कहा की गुफा के अंदर की न सही पर बाहर की ले सकते है तो उन्होंने कहा की ठीक है ले लीजिये तो मैंने गुफा के बाहर दीवार पर लिखे हुए ये श्लोक का फोटो लिया।
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जैसा कि लाल रंग से लिखा हुआ है उससे प्रतीत होता है कि ये गुफा 5321 वर्ष पुराना है |
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इस पट्ट पर लिखा है कि व्यास जी ने इसी गुफा में श्रीमद भागवत महापुराण की रचना की थी |
अब गुफा देख लेने के बाद हम लोग वही चबूतरे पर बैठ गए। अब तक पिताजी भी धीरे धीरे चलते हुए आ चुके थे। अब हम लोग उस चाय की दुकान पर बैठे थे जिसे भारत की अंतिम चाय की दुकान कही जाती है। यहाँ आकर सब लोग एक एक चाय पी रहे थे। और पीना भी जरुरी था क्योकि एक तो ठण्ड, दूसरा इतनी थकान, तीसरा ये आख़िरी चाय की दुकान जो है और चौथा बदरीनाथ से 3 किलोमीटर गाड़ी से और इतनी दूर सीढियाँ चढ़कर चाय ही तो पीने आये है। अब अगर चाय नहीं पीये तो बहुत नाइंसाफी'होगी।
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भारत की आख़िरी चाय की दुकान के सामने खड़ा आदित्या |
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भारत की आख़िरी चाय की दुकान के बैठे पिताजी |
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भारत की आख़िरी चाय की दुकान के सामने बैठा आदित्या |
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भारत की आख़िरी चाय की दुकान के सामने खड़ा मैं |
अब मैंने चाय की दुकान वाले से कहा कि अब हम लोगों के लिए चाय बनाओ। उसने कहा कि हम तो बैठे ही है चाय पिलाने के लिए अभी बनाते है पर थोड़ा देर लगेगा क्योंकि आपसे पहले जिन लोगो ने कहा है पहले उनको देगे चाय। मैंने उसे कहा कि थोड़ी देर क्यों तुम बहुत देर लगाओ वैसे भी मैं थका हुआ हूँ जब तक चाय नहीं पिलाओगे मैं जाऊँगा नहीं। उसने कहा कि आप ये बता दो कि कितने कप चाय बनाऊं। मैंने बताया कि हम लोग आदमी तो 5 हैं पर चाय मुझे 6 चाहिए क्योकि मैं 2 कप चाय पिऊँगा। वो थोड़ा मुस्कुराया और अच्छा कहकर चाय बनाने लगा। इतने ही वहां एक कुत्ता आया। उसे देखकर मुझे केदारनाथ की चढ़ाई के टाइम कुछ कुत्ते मिले थे जो अगले दिन केदारनाथ से वापस आते समय हम लोगो के साथ 2 किलोमीटर तक साथ चला। उस टाइम हमलोगों से एक गलती हो गयी थी कि उसे कुछ हमने खाने को नहीं दिया था। पर यहाँ पर वो गलती दुहराना नहीं चाहता था। मैंने उसी दुकान से बिस्कुट लिया और उसे खाने के लिए दिया।
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बिस्कुट खाता हुआ कुत्ता, मुझे तो लगता है कि ये वही कुत्ता है जो पांडवों के साथ था। |
अब तक चाय की दुकान वाला भी हम लोगो को चाय दे चूका था। हम लोग चाय पीये। चाय का स्वाद बहुत अच्छा था। चाय ख़तम होने के बाद हमने एक कप और चाय लिया और पिया। चाय पी चुकने के बाद मैंने दुकान वाले से कहा कि मैंने आपकी दुकान का चाय पिया आपकी दुकान का फोटो लिया। आपकी दुकान को तो हम बार बार देखेगे पर ये कैसे पता लगेगा की मैंने चाय आपकी दुकान में पिया और ये दुकान आपकी है। तो उसने कहा कि तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ। मैंने उसे कहा कि आप क्या करेगे कुछ भी नहीं। बस आप मेरे बेटे के साथ खड़े हो जाइए और हम एक फोटो लेते है आपकी अपने बेटे के साथ।
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चाय पिता हुआ आदित्या |
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आदित्या और चाय की दुकान का मालिक (अभी चाय के दुकान वाले का बेटा है पर बाद में यही इस दुकान का मालिक बनेगा) |
अब मैंने उससे पूछा कि कितने पैसे हुए हुए तो उसने कहा कि 6 चाय के 10 रुपए के हिसाब से 60 रूपए और बिस्कुट के 20 रुपए। मैंने उसे कहा कि इतनी फेमस दुकान है लोग यहाँ इतनी दूर बद्रीनाथ से चाय पीने के लिए विशेष रूप से आते हैं फिर भी केवल 10 रुपए। मैंने तो अपने मन में यही सोच रखा था कि एक कप चाय के कम से कम 50 रूपये तो होंगे ही। फिर मैंने उसे 100 का नोट दिया और कहा कि एक पैकेट बिस्कुट और दे दो तो आपके पूरे 100 रुपए हो जायेगे।
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माणा गांव से हिमालय की चोटियों का नज़दीक का दृश्य |
अब हम लोग वापस चलने के लिए तैयार हुए और ये सोचा की भीम शिला भी देख लेंगे। 10 -20 कदम चलने के बाद ही हम लोगों को ये अहसास होने लगा कि भीम शिला देख पाना अब संभव नहीं है। हम सब लोग और हम सब लोग ही क्यों जितने लोग थे सब वैसे ही थके हुए थे। हर कोई वापस आना चाह रहा था कोई भी भीम शिला देखने नहीं गया। हम लोग भी वापस आ गए। वापस आ तो गए पर सरस्वती नदी पर बने उस पुल को नहीं देख पाने का दुःख आज तक है खैर कुछ छूटेगा तभी तो दुबारा जाने का मन करेगा। उस पुल के बारे में कहा जाता है कि भीम ने इस नदी को पार करने के लिए नदी के ऊपर एक बड़ा सा पत्थर रख दिया था जो एक पुल की तरह हो गया, इसलिए इसे भीम पुल कहते हैं।
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माणा गांव में आदित्या |
अब कुछ भी हो हमे वापस तो जाना ही है। कुछ उदास सा हम भी नीचे उतरने लगे। वापस आते हुए बार बार हम पीछे देख रहे थे। मेरा मन भीम पल देखने का कर रहा था पर हिम्मत नहीं थी जाने की। जहाँ मुझे जीप वाले ने उतार था वहां पहुँचने से पहले सोचे कि जीप वाले को फ़ोन कर दें फिर मन में लगा कि वहां पहुँच कर ही फ़ोन करेंगे। हम लोग धीरे धीरे थके क़दमों से उस जगह पहुँच गए जहाँ जीप खड़ी थी। ड्राइवर जीप में ही बैठा हुआ था मुझे फ़ोन करने की जरुरत नहीं पड़ी।
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हाथ में चाय का गिलास लिए हुए आदित्या |
हम लोग जीप में बैठ गए। जीप में बैठते ही जीप वाले ने जीप स्टार्ट किया और बद्रीनाथ के तरफ चल दिया। 20 मिनट में हम लोग बदरीनाथ पहुँच गए। घडी में उस समय 9 :30 बज चुके थे। हमने जीप वाले को पैसे दिए और गेस्ट हाउस की तरफ चल दिए। अब हमने यहाँ से आज गौचर तक जाना था और रात में वही रुकना था फिर अगले दिन हरिद्वार और वहां से दिल्ली की ट्रेन थी। गेस्ट हाउस पहुँच कर हम लोग कल का ख़रीदा हुआ ब्रेड खाया पानी पिया और सामान उठाकर बस स्टेशन आ गया।
10 : 00 बज चुके थे। जहाँ मुझे बस वाले ने उतारा वहां गया तो एक ही बस थी वो भी बोला कि 2 बजे खुलेगी। 2 बजे खुलने के बाद बस रात में श्रीनगर (गढ़वाल) में रुकेगी और अगले दिन सुबह श्रीनगर से हरिद्वार के लिए जाएगी। मैंने उसे कहा कि मैं गौचर तक जाऊँगा तो उसने कहा की बैठ जाइये बस खुलने के टाइम अगर सीट बची रह गयी तो आप चले जाइएगा। मैं उसे दुत्कारता हुआ कि रख अपने बस को अपने घर में मैंने किसी और गाड़ी से चल जाऊँगा तो उसने कहा कि कोई और गाड़ी नहीं मिलने वाली। मैं सारा सामान उठाकर स्टेशन के दूसरे गेट पर गया वहां बहुत सारी जीपें खड़ी थी। जीप वाला जोशीमठ-जोशीमठ पुकार रहा था। जीप में पहले से ही 4 -5 लोग बैठे हुए थे। हम लोग जीप में बैठ गए। हम लोगों के बैठते ही जीप वाले ने जीप स्टार्ट की और जोशीमठ के लिए चल दिया समय 10 :30 हुए थे।
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माणा गांव में कंचन और पीछे खड़ा आदित्य |
जीप अपनी गति से बद्रीनाथ से जोशीमठ के सड़क पर दौड़ती जा रही थी और मैं उदास हुआ बैठा था। पता नहीं क्यों इस जगह से जाने का मेरा मन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मैं सदा सदा के लिए इसी जगह का होके रह जाऊं। जीप जैसे जैसे बद्रीनाथ से दूर होती जा रही थी वो खुसबू जो पता नहीं किस चीज़ की थी धीरे धीरे कम होती जा रही थी।अलकनन्दा के किनारे किनारे 2 घंटे के सफर के बाद जीप जोशीमठ पहुँच गई। जोशीमठ में फिर वही 45 डिग्री वाली वही भयंकर चढ़ाई देखकर मन में एक डर लगने लगा। वैसे तो ऋषिकेश से केदारनाथ, बद्रीनाथ , गंगोत्री, यमुनोत्री आप कहीं भी जाये सड़क ऐसी ही है। जोशीमठ पहुँचने पर जीप वाले ने 100 रूपये प्रति व्यक्ति की हिसाब से 500 रुपए लिए।
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माणा के बारे में भौगोलिक जानकारी का बोर्ड और उसपर ट्रेकिंग के लिए विज्ञापन |
12 :30 बज चुके थे। यहाँ से गौचर जाना था। गौचर जाने के लिए कोई भी गाड़ी डायरेक्ट नहीं थी। मुझे पहले चमोली, फिर चमोली से कर्णप्रयाग और फिर कर्णप्रयाग से गौचर की गाड़ी मिलेगी। कुछ जीपें खड़ी थी जो चमोली जा रही थी। एक जीप वाले को मैंने कहा कि हम 5 लोग है मुझे बीच वाली 4 सीट और 1 सीट आगे की दे दो तो उसने मन कर दिया। उसने कहा कि चार पीछे और एक सीट आगे की या बीच की दे देता हूँ तो मैंने उस जीप में नहीं बैठा। उसके बाद एक दूसरे जीप वाले ने पूछा की कहा जाना है मैंने उसे चमोली बताया तो उसने कहा कि ये जीप चमोली जा रही है तो मैंने उसे कहा की बीच की सीट दिलवा दो तो उसने जीप वाले से बीच वाली सीट देने कहा तो उसने मना। अब उस आदमी ने कहा मुझे एक दूसरे जीप में बैठा दिया जो 4 -5 जीप के बाद बिलकुल साइड में लगी हुई थी। हम लोग उसमे बैठ गए। करीब 10 मिनट में पहले वाली जीप चली गयी। अब वही आदमी जो मुझे इस जीप में बैठाया था वो आया और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया तो मुझे लगा कि अच्छा ये जीप इसका ही है। जल्दी ही जीप भर गयी और 1 बजे जीप जोशीमठ से चमोली की तरफ चल दी।
हम लोग जीप में बैठे थे और जीप चली जा रही थी। मैं, कंचन, मम्मी और आदित्य बीच की सीट पर थे और पिताजी आगे की सीट पर। बस को जो दुरी तय करने में 1 घंटा लगता था वही दूरी जीप 40 से 45 मिनट में पूरी कर ले रही थी कारण ये था कि बस रास्ते में सवारी उतारती और बैठाती है और जीप खुलने की जगह ही सवारी ले लेती है और बीच में उसे गाड़ी रोकने की जरुरत नहीं पड़ती है। हाँ तो मैं ये कह रहा था कि जीप चली जा रही थी उसी घूम-घुमाव और निचे ऊपर वाली सड़क पर। 2 :45 बजे हम चमोली पहुँच गए। जोशीमठ से चमोली का जीप का किराया 90 रुपए है।
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माणा गांव से हिमालय की चोटियों पर पड़े बर्फ का दृश्य
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जीप से उतरते ही एक बस मिली जो कर्णप्रयाग तक जा रही थी हम लोग उसमें बैठ गए। नन्द प्रयाग होंते हुए करीब 4 बजे कर्णप्रयाग पहुँच गयी। यहाँ बस वाले ने हमसे सभी लोगों के 150 रूपये लिए। वहां भी जैसे ही बस से उतरा एक दूसरी बस लगी हुई थी जो श्रीनगर जा रही थी हम लोग उसमे बैठ गए। कर्णप्रयाग से नन्द प्रयाग करीब 10 किलोमीटर ही है। करीब 4 :30 बजे हम गौचर पहुँच गए। यहाँ बस वाले को मैंने 100 रुपए दिए। बस वाले ने मुझे बिलकुल गेस्ट हाउस के गेट पर उतारा। बस से उतारकर हम लोग गेस्ट हाउस में गए। उन लोगो ने मुझे फिर से वही रूम दिया जो मुझे बद्रीनाथ जाते समय दिया था। हम लोग गेस्ट हाउस में आने के बाद कुछ देर आराम करने के बाद स्नान किये। कपडे धोकर कर सूखने दे दिया गया। आज भी हम लोगों ने 8 बजे खाना खाया और सो गए क्योकि हमें कल सुबह फिर जल्दी जागना था और हरिद्वार के लिए जाना था। 9 बजे से पहले ही हम लोग सो चुके थे।
आठवाँ दिन
आज हम लोग 4 बजे जागे। आराम से तैयार हुए क्योकि आज कोई जल्दी नहीं थी बस शाम होने तक हरिद्वार तक पहुँचना था। फिर भी 5 बजने से पहले हम गेस्ट हाउस से निकल गए। बस स्टॉप पर आये हमे करीब 30 मिनट हो गए थे। मैंने घड़ी देखा 5:30 हो चुके थे। इतने देर में एक भी गाड़ी नहीं आयी थी। एक आदमी से पूछा तो उसने बताया की हरिद्वार के लिए यहाँ से कोई गाड़ी नहीं मिलेगी आपको जीप से रुद्रप्रयाग या श्रीनगर जाना होगा वही से बस मिलेगी। इतने में एक जीप आयी मैंने उससे पूछा कि किधर जा रहे हैं उसने कहा की श्रीनगर। उसने पूछा कि आप कहाँ जाएंगे तो मैंने कहा कि मुझे हरिद्वार जाना है यदि कोई बस रुद्रप्रयाग में हरिद्वार की मिली तो हम रुद्रप्रयाग में उतर जायेंगे यदि नहीं तो फिर श्रीनगर में उतरेंगे। उसने कहा कि बैठ जाइये। मैंने जीप में सामान रखा ही था कि पीछे से एक बस भी आ गयी जो हरिद्वार तक जा रही थी। हमें जीप वाले से सॉरी बोला और कहा कि मुझे हरिद्वार की बस मिल रही है हम उसी में चले जाएंगे उसने कहा ठीक है जाइये और हम लोग बस में बैठ गए। बस में बैठते ही कंडक्टर आया और किराया मांगने लगा। 5 लोगो के 250 रुपए के हिसाब से कुल 1250 रुपए मैंने उसे दिए।
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माणा गांव में चाय की दुकान के पास लगा बैनर |
बस चली जा रही थी, पहले रुद्रप्रयाग आया , फिर श्रीनगर, और फिर अब देवप्रयाग सब पीछे छूट रहे थे। बस देवप्रयाग से करीब 10 किलोमीटर आगे बढ़ने के बाद कुछ खाने पिने के लिए रुकी। हम लोगो ने वहां कुछ खाया। करीब 20 मिनट बस वहां रुकने के बाद वहां से चली। करीब 12 : 15 बजे हम लोग ऋषिकेश पहुँच चुके थे। कुछ लोगों को ऋषिकेश में उतरे कुछ नए लोग भी चढ़े और करीब 1 बजे हम लोग हरिद्वार आ गए।
बस से उतरकर हम लोग सीधे हरिद्वार रेलवे स्टेशन आ गए और खाली जगह देखकर वही बैठ गए। हमारी ट्रेन मसूरी एक्सप्रेस (ट्रेन संख्या 14042 डाउन) रात में 10:50 बजे थी। हम लोगो के पास अभी बहुत समय था। फिर ये तय हुआ कि एक बार फिर से गंगा स्नान किया जाये। फिर पहले मम्मी और कंचन गंगा स्नान के लिए गयी। उसके बाद मैं, आदित्या, कंचन और पिताजी गए। उसके बाद हम लोग हरिद्वार के बाजार में कुछ खरीदारी की। उसके बाद हम लोग रात में 8 बजे एक होटल में खाना खाये। करीब 10 बजे हम लोग प्लेटफार्म पर आ गए। कुछ देर में ट्रेन आ गयी। हम लोग ट्रेन में बैठ गए। ट्रेन हरिद्वार स्टेशन पर करीब 20 मिनट रुकने के बाद दिल्ली के लिए चली। ट्रेन के चलते ही हम लोग अपने अपने बर्थ पर सो गए।
नौवां दिन और यात्रा समाप्ति
हमारी नींद खुली तो मैंने घडी देखा तो सुबह के 6 :20 बजे थे और ट्रैन पिलखुआ हापुड़ स्टेशन पर खड़ी थी। हम लोग बर्थ खोलकर बैठ गए। ट्रैन पिलखुआ से चली और गाजियाबाद में रुकी। कुछ देर गाजियाबाद में रुकने के बाद ट्रैन दिल्ली के लिए चली। कुछ ही देर में ट्रेन शाहदरा स्टेशन आ गयी। हालांकि मेरा टिकट पुरानी दिल्ली तक का था पर जहाँ मुझे जाना था वह शाहदरा से नज़दीक है और जितने देर में ट्रेन पुरानी दिल्ली पहुँचती उतने देर में हम शाहदरा से अपने घर पहुँच जाते। इसलिए हम शाहदरा में ही उतर गए। स्टेशन से बाहर एक बस खड़ी थी हम लोग बैठ गए। कुछ देर में बस निर्माण विहार आ गयी। हम लोग उतरे और अपने घर चले गए।
मेरी ये यात्रा तो पूरी हुई और सब कुछ अच्छा रहा।
ब्लॉग पढ़ कर कैसा लगा या कोई त्रुटि हो तो कमेंट करके जरूर बताइयेगा ताकि उन गलतियों को सुधार सकूँ।
धन्यवाद।
very nice post and informative
ReplyDeletethanks for reading my post, i will try to give more and more such post
Deletethanks for reading my post, i will try to give more and more such post
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ReplyDeleteमाना गाँव 19000 फुट पे कैसे हो गया।।?????
ReplyDeleteजबकि बद्रीनाथ मंदिर तो 10200 फुट की ऊँचाई पे है।
क्या 3 किलोमीटर में 9000 फुट चढ़ना पड़ता है।
इसका मतलब प्रति किलोमीटर 3000 फुट चढ़ना पड़ेगा।
इतनी चढ़ाई तो एवरेस्ट भी नही है।।
आप के खिंचे हुये एक फोटो में माना गांव 10133 फुट दिखा रहा है
Deleteपर ये 19000 फुट वाला चक्कर समझ नही आया?????
सचिन जी ये टाइप करते समय नज़र से चूक हो गयी होगी, आपने बताया और में उसे सुधार दिया, यदि आप जिसे सब लोग गलतियों पर ध्यान दिलाने लगे तब तो मज़ा आ जाये, धीरे धीरे सारी गलतियां निकल जाएगी और एक भी गलती बचेगी
Deleteमुझसे अनजाने में हुई गलती की तरफ ध्यान दिलाने धनयवाद सचिन जी
DeleteVery nice description.feel as if we have visited sitting in Mumbai
ReplyDeletethanks for visit and reading my post
Deleteबहुत सुन्दर यात्रा वर्णन
ReplyDeleteआपको बहुत सारा धन्यवाद और शुभकामनाएं।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको
Deleteअभयानंद जी। फेसबुक पर आपको पढता रहा हूं। आपकी लेखनी निस्संदेह काबिले तारीफ है। ऐसे ही लिखते रहें जिससे वहां जाने वाले यात्री लाभान्वित हों। केदारनाथ-बदरीनाथ यात्रा पर मुझे भी निकलना है। आपकी यात्रा का अनुभव मेरे लिए अत्यंत ही लाभदायी होगा, ऐसा मेरा मानना है। उम्मीद करता हूं कि इस बार मैं भी अपनी यात्रा का अनुभव घुमक्कडी ग्रुप में साझा करूंगा।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको। बहुत अच्छा लगा ये जानकर कि आपको मेरा लिखा पसंद है, एक बार पुनः ढेर सारा धन्यवाद सुनील जी। कोशिश करूंगा लिखते रहने की, पर कभी कभी समयाभाव के कारण नहीं लिख पाता हूं। वाह बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको केदार-बदरी यात्रा की। आपके वर्णन का इंतजार रहेगा जी।
Deleteआपका यात्रा वृत्तांत पढ़कर स्वयं को अहसास हुआ, जैसे बद्री-केदार धाम की यात्रा कर ली। कलम से यात्रा का आंखों देखा वर्णन सचित्र किया है आपने। मेरा घर पहले प्रयाग देवप्रयाग क्षेत्र में देवी चन्द्रवदनी मंदिर के पास है। मंदिर देवप्रयाग से 35 किलोमीटर दूर चंद्रकूट पर्वत पर सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। कभी मौका मिले तो अवश्य चंद्रवदनी मां के दर्शन किजिएगा।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपको। इतने सुंदर सुंदर शब्दों से मेरे लेखन की तारीफ करने के लिए आपको शत शत बार धन्यवाद। देव प्रयाग से तो हर बार उधर जाते हुए गुजरना होता ही है। चन्द्रबदनी मंदिर भी जरूर जाएंगे, जल्दी कोशिश करूंगा कि दिसंबर या जनवरी में चन्द्रबदनी मंदिर की यात्रा कर लूं।
Deleteअभयानंद जी बहुत अच्छा वर्णन किया आपने केदारनाथ और बद्रीनाथ जी की यात्रा का साथ ही आवश्यक जानकारी भी दी, सुंदर
ReplyDeleteअभयानंद जी बहुत अच्छा वर्णन किया आपने केदारनाथ और बद्रीनाथ जी की यात्रा का साथ ही आवश्यक जानकारी भी दी, सुंदर
ReplyDeleteसारी जानकारियां ज्ञानवर्धक है मित्र, मगर गेस्ट हाउस के बुकिंग की प्रक्रिया और वहाँ के किराए के विषय मे बताएं।🙏🏻😊
ReplyDeleteबहुत सारा धन्यवाद आपको।
Deleteगेस्ट हाउस की बुकिंग जीएवीएन के बवेसाइट पर होता है और उस समय किराया मात्र 110 रुपए थे पर अब 400 रुपए कर दिया गया है। वैसे आप मई जून छोड़कर कभी भी जाएंगे तो वहां बहुत आसानी से रहने की व्यवस्था हो जाती है, कोई दिक्कत नहीं है।