Wednesday, April 24, 2019

चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (Chopta-Tungnath-Chandrashila)

चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (Chopta-Tungnath-Chandrashila)




इस जगह पर जाने का सौभाग्य हमें दो बार प्राप्त हुआ और दोनों ही बार मौसम ने बिल्कुल अलग अलग रंग दिखाए। एक ही दिन में मौसम के हजार रंग देखने को मिले। कभी बादल भैया ने रास्ता रोका तो कभी बरखा दीदी ने दीवार खड़ा किया तो कभी सूरज बाबा ने अपनी चमक से हमें चमकाया। कभी उन वादियों में खो गए तो कभी रास्ता भी भटके। कभी हिमालय के बड़े से कप में बादलों की आईसक्रीम का स्वाद लिया, तो कभी सुनहरे बादलों में सूरज का गुलाब जामुन भी बनते देखा। कभी सूरज को बादलों में प्रवेश करते देखा तो कभी उसी सूरज बाबा को बादलों से के आगोश से निकलने के लिए तड़पते भी देखा। कभी महादेव के चरणों में लोटे तो कभी चंद्रशिला से उगते सूरज का देखा।

तुंगनाथ मंदिर की वो हसीन शाम तो हम कभी भूल ही नहीं सकते क्योंकि किसी तरह जान बची नौ लाखो पाए वाली कहावत को सिद्ध करते हुए हम रजाई में दुबके हुए थे तभी ऐसा लगा जैसे हमें कोई आवाज दे रहा हो। हमने खिड़की खोला तो सामने जो नजारा दिखा उसे देखकर पहले तो हमारे होश उड़ गए। जिन चीजों के बारे में अब तक टीवी और फिल्मों में देखा करते थे कि और गाना सुना करते थे कि ‘‘आज मैं ऊपर आसमां नीचे, आज मैं आगे जमाना है पीछे’’ और आज ये सब हमारी आंखों के सामने थे।

मौसम बिल्कुल साफ हो चुका था। हसीन वादियों ने बादलों का घूंघट हटा कर अपनी खूबसूरती लुटाना शुरू कर दिया था। बादल रुई के ढेर की तरह दिख रहे थे और उसे देखकर लग रहा था जैसे हम उस पर कूद जाएं पर कूद नहीं सकते थे क्योंकि अगर कूद जाते तो इन फोटो को आपको हम कैसे दिखा पाते। सामने सब कुछ देखकर भी उस दृश्य पर यकीन नहीं हो रहा था। ऐसा लग रहा था कि हम कोई सपना देख रहे हैं। सफेद बादल घाटियों से ऊपर की ओर उठ रहे थे और देखकर ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े से बर्तन में दूध उबल रहा है और उबलकर बर्तन से बाहर गिर रहा हो।

अब तक सूर्योदय सुबह को ही होता आया है लेकिन सूरज बाबा आज शाम में उगना चाह रहे थेेे क्योंकि सुबह से बादलों ने उनको जकड़ रखा था और वो बादलों की जकड़ से निकल नहीं सके थे लेकिन इस समय ऐसा लग रहा था कि वो बादलों की बेडि़यों को हटाकर बाहर निकल ही आएंगे लेकिन ऐसा हो नहीं सका। जैसे ही वो निकलने वाले थे रात ने उनको अंधेरे की गिरफ्त में ले लिया। जब उनको अंधेरा अपने जकड़ में बांध रहा था तो ऐसा लग रहा था जैसे सूरज बाबा चीख चीख कर कह रहे हों कि मुझे आजाद करो और उनके चीखने की आवाज बादलों में अग्निरेखा के रूप में दिखाई पड़ रही थी।

दूसरी बार चोपता में सूर्यास्त का दृश्य देखा था। वाह क्या नजारा था। हर तरफ लालिमा बिखरी पड़ी थी। सभी लोग सूरज को अपने अपने फोटोखींचक यंत्र (अनिल दीक्षित ने ये शब्द दिया है) में बंद करने की कोशिश में लगे हुए थे लेकिन वो पकड़ में ही नहीं आ रहे थे और केवल दो मिनट का समय दिया था उन्होंने कि पकड़ सको तो पकड़ो तो कुछ ने पकड़ा और कुछ बस कोशिश करते रह गए। बिल्कुल ऐसा लग रहा था जैसे किसी बड़े से कड़ाह में केवल और केवल एक गुलाब जामुन पकाया जा रहा हो, जिसे खाने के लिए सब तैयार हों।

फिर बारी आई चंद्रशिला जाकर सूर्योदय देखने की। पहली बार तो बादलों ने निराश किया था पर इस बार मौसम मेहरबान था और चंद्रशिला से उगते सूर्य को देखने का सौभाग्य मिला था। अंधेरा रहते ही चंद्रशिला पर हम सब अपने चरण कमल रख चुके थे और उगते सूरज को देखने के लिए लालायित पूरब दिशा की तरफ अपनी अपनी नजरें गड़ाए हुए थे। तभी सूरज बाबा भी पहाड़ के कटे हुए भाग से आंख मलते हुए बाहर निकलते हुए दिख गए और हमने भी देर न करते हुए उनको पकड़ कर फोटोखींचक यंत्र में बंद कर दिया। कहा जाता है कि दुनिया में दो लोग बहुत ही खुशकिस्मत होते हैं। एक वो जिनके तरबूज मीठे निकल जाएं और दूसरे वो जिनको चंद्रशिला पर बादल न मिले तो इस बार हम भी उन खुशकिस्मत लोगों में शामिल हो गए थे (ये कथन सूरज मिश्रा जी का है)।

चौखम्भा पर पड़ती सूरज की किरणों से ऐसा लग रहा था जैसे कि कोई बहुत बड़े आईसक्रीम के ऊपर के लाल लाल चेरी के कुछ टुकड़े बिखरा दिए हों या फिर किसी ने लाल लाल सिरप डाल दिया हो, काश कि हाथ उतने लम्बे होते और हम उस आईसक्रीम का स्वाद ले पाते। चंद्रशिला पर उगते सूरज का देखने का दृश्य आदमी जिंदगी भर नहीं भूल सकता और साथ ही चंद्रशिला चोटी से पूरे हिमालयी क्षेत्र का जो चारों तरफ का नजारा दिखाई देता है वो तो सोने पर सुहागा हो जाता है। ऐसा लगता है कि जैसे हम ही सबसे ज्यादा ऊंचाई पर हैं और चारों तरफ के क्षेत्र हमसे नीचे हैं और सूरज की पहली किरण से सब कुछ लाल हो जाता है वो बोनस के रूप में साथ आता है। सभी फोटो नवम्बर 2017 के हैं।


चोपता की हसीन वादियों के संग मनोहारी हिमालय

चोपता से दिखाई देता मनभावन हिमालय

तुंगनाथ के रास्ते का प्रवेश द्वार

3 comments:

  1. भाई चंद्रशिला पर सवेरे गए थे या रात वहीं पर गुजरना पड़ा सूर्योदय के लिए?

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको।
      रात चोपता में ही गुजारे थे और चोपता से रात में दो बजे ही चंद्रशिला के लिए प्रस्थान किए थे और सुबह से पहले वहां पहुंच गए थे। 15 लोग थे इसलिए रात चले गए थे।

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