Tuesday, April 23, 2019

रेगिस्तान की एक सुबह (A morning of Sand Dunes)

रेगिस्तान की एक सुबह (A morning of Sand Dunes)




16 दिसम्बर की सुबह जैसलमेर की रेगिस्तानी वादियों में आपके सभी साथी अपने अपने तबेले में ऊंट बेच कर सो रहे हों। चारों तरफ सन्नाटा हो, अगर कुछ सुनाई पड़ रहा हो तो अगल-बगल के टेंटों से एक-दो मानवीय ट्रेक्टरों की आवाज। आप भी जागते हैं और रजाई से बाहर आते ही ऐसा लगता है जैसे ठंड काटने को दौड़ रहा है और आप फिर से रजाई में दुबके जाते हैं और याद आता है कि अरे हमने तो पांच बजे सबको जगाने का वादा किया है फिर थोड़ा हां थोड़ा ना करते हुए आप 4 से 5 डिग्री के तापमान में भी रजाई को फेंक कर बाहर निकलते हैं।


तंबू का दरवाजा खोलते ही ऐसा लगता है जैसे सर्द हवा स्वेटर-जैकेट की परतों को चीरकर आपके हड्डियों तक प्रवेश कर जाएगा। फिर भी आप हिम्मत करते हुए बाहर निकल जाते हैं। चारों तरफ सन्नाटा बिखरा पड़ा हो, कोई आपको देखने वाला नहीं हो। तारों का समूह और आधा चांद आसमान से आपको देखकर खिलखिला रहे हो। परिसर में दूर दूर तक फैले बालू भी चांद की दूधिया रोशनी में चमक रहे हों। आप कदम बढ़ाते हुए ठंडी रेत पर कुछ कदम चलते हों तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे ये ठंड जान ले लेगी लेकिन आप नहीं मानते हैं और उन बिखरे पड़े रेत पर बिखरी हुई कुछ खुशियों को समेट कर अपनी झोली में भर लेना चाहते हों।

कुछ खुशियों के समेटने के बाद जब आप फिर से झोपड़ी में पहुंचते हैं तो देखते हैं नजारे जस के तस हैं। आपके सभी साथी कोई जमीन पर तो कोई पलंग पर नींद रानी से लिपटे हुए सोये पड़े हैं। आप साथियों का नाम लेकर पुकारते हैं तो बस हां-हूं की आवाज के बाद फिर से खामोशी छा जाती है। साथियों के न जागने के बाद आप नहाने की प्रक्रिया आरंभ करते हैं और ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए, गाना आए या न आए गाना चाहिए की तर्ज पर मन में ही गाते हैं कि ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए, साथी जागे या न जागे जगाना चाहिए कहते हुए नहा लेते हैं।

नहाने के बाद जब आपकी नजरें ऊपर जाती हैं तो देखते हैं गीजर महोदय आप पर हंस रहे हैं और कह रहे हैं कि तू भी कितना पागल है, मैं यहां बैठा हूं फिर भी तू ठंडे पानी से नहा रहा है, मतलब तेरे पागलपन में कोई कमी नहीं। अब सोचिए उतने ठंडे मौसम में ठंडे पानी से नहाने के बाद गीजर दिख जाए तो क्या होगा। अजी होगा क्या, दिल टूट जाएगा आपका जैसे मेरा टूटा था। गीजर देखते ही मेरा दिल टूट और मैंने उसे संभालने के लिए हाथ बढ़ाया तो देखा कि ये टूटा ही नहीं है पूरी तरह से बिखर चुका है। समेटने की बहुत कोशिश किया पर अपने टूटे और बिखरे दिल को समेट न पाया और उस टूटे हुए दिल के साथ ही एक बार फिर से टेंट से बाहर आ गया।

टूटे हुए दिल पर हाथ रखे हुए, दांत से दांत बजाते हुए सभी साथियों को आवाज दे देकर जगा रहा था। कुछ साथी हूं, तो कोई ऊं के साथ जागते हैं, तो कोई बेधड़क आवाज में कहते हैं कि हां जाग चुके हैं बस दस मिनट में चलने की तैयारी करते हैं। उसके बाद अपने टेंट में आकर भी साथियों को जगाने का सिलसिला आरंभ करते हैं तो एक-दो को छोड़कर किसी ने भी जागने की हिम्मत नहीं किया, क्योंकि पता नहीं सभी ऊंट बेच कर सोए थे या सोए हुए ही ऊंट की खरीदारी कर रहे थे। नहीं जागने वाले साथियों में चोपता की तरह यहां भी प्रतीक भाई का क्रमांक एक रहा।

खैर जो जागे उनके साथ आगे बढ़े और बाहर निकले तो ठंडी हवाओं ने कहा कि बच्चे अभी बहुत रात है, अभी सूरज बाबा नहीं जागेंगे और जा वापस जाकर अपने अपने तबेले में बैठ या सो जा। पर अब न तो दिल को चैन था न करार उसे तो सोना लूटने की जल्दी पड़ी थी तो कुछ और साथियों को जगाने के बाद चल पड़े पैदल ही सूरज बाबा को पकड़ने। रात का अंधेरा धीरे धीरे दूर जा रहा था और सुबह जल्द से जल्द आने के लिए आतुर था। सहसा एक छोटी सी जीप आती है जिसमें मुश्किल से 6 से 8 लोग ही आ सकते थे। जीप वाला सबको लालच देता है कि अच्छी जगह ले जाऊंगा आप लोगों को सूर्योदय देखने के लिए। वो जितना धन मांगता है वो बहुत ज्यादा भी था और हम लोगों को चलना भी पैदल ही था इसलिए उस उसका आधा बोल दिया कि इतना ही देंगे बस इससे ज्यादा नहीं।

उसने भी पता नहीं क्या सोचा और बोला कि चलिए और 6-7 लोगों की जगह वाले जीप में हम 12-13 लोगों को पकड़ पकड़ कर बंद कर दिया और करीब दस मिनट तक जीप को दौड़ाते हुए ले गया और बालू के टीले पर हम लोगों को फेंक आया। नरम और ठंडी बालू को देखकर हम भी धमाचौकड़ी मचाने लगे। बालू इतनी ठंडी कि लग रहा था कि पैर के अंदर का खून जम जाएगा फिर भी चलते रहे और कूछ दूरी पर दिख रहे सबसे ऊंचे टीले पर जाकर शरण लिया।

कुछ देर की दौड़ भाग के बाद सूरज बाबा गुस्से में लाल हुए हम लोगों को डराने आ गए पर हम लोग डरे नहीं और डरते भी क्यों वो अकेले और हम दर्जन भर। वो भी हर तरह से रंग बदलते रहे कि हम डरें पर हम सब लोग भी उनको अपने अपने हथियारों से बांधने में लगे हुए थे आखिरकर हम लोगों ने भी जब उनको ज्यादा परेशान करना आरंभ कर दिया तो सूरज बाबा भी अपनी लालिमा छोड़कर दूधिया रंग में बदल गए और हम लोगों को अपने भरे-पूरे खजाने से बहुत कुछ दे गए और उन्हीं खजाने में से एक मोती हम आप लोगों के सामने रख रहे हैं।

अनमोल मोती रेगिस्तान के 

4 comments:

  1. रेगिस्तानी सूर्योदय के बढिया, सजीव वर्णन,, गीजर कथा तो हास्य रंग भरा ही,, साथ ही साथ सूर्योदय पूर्व की परिस्थिति का जो वर्णन है मन में इच्छा करता है कभी जाड़े में ही जाया जाए।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपको। यदि गीजर को पहले देख लेते तो गीजर प्रकरण नहीं आ पाता इस आलेख में, कभी कभी कुछ न देखन भी आनंददायक हो जाता है। जी जरूर एक बार सर्दी के मौसम में अवश्य जाएं।

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