Thursday, January 17, 2019

घुमक्कड़ (Traveller)

घुमक्कड़ (Traveller)




एक घुमक्कड़ हमेशा एक सफर में रहना चाहता है और बिना थके, रुके, बिना मुड़े, बस ईधर-उधर देखते हुए चलता ही रहना चाहता है। उसे मंजिल नहीं चाहिए होता है उसे तो रास्ते अच्छे लगते हैं। रास्ते उसके लिए मंजिल होते हैं और मंजिल बस एक पड़ाव। वह चलता रहना चाहता है और किसी चलती हुई रेलगाड़ी के पीछे भागते हुए पेड़-पौधों, घर और दीवार को गिनना चाहता है। रास्ते में मिलने वाले खूबसूरत नजारें उसे दीवाना बनाते हैं और उसकी दीवानगी में वो बस चलता रहता है, उससे मिलने के लिए। वह बर्फ की चादर ओढ़ कर सोए हुए किसी झील के किनारे बैठकर उसके प्यार की आग में जलते रहना चाहता है और उसे अपने हृदय की अनंत गहराइयों में उतार लेना चाहता है।


किसी हवाई सफर में छोटी सी खिड़की से निहारते हुए जब वो बादलांे को रुई की तरह उड़ते हुए देखता है तो वो बस उसके साथ ही तैरने के लिए मचलने लगता है। उसे पहाड़ों के किनारे किनारे बने रास्तों पर चलना अच्छा लगता है और पहाड़ की ऊंचाइयों को गर्दन ऊपर करके पूरी आंख खोलते हुए निहारकर उसे हृदय में बसा लेता चाहता है। उसे अच्छा लगता है पहाड़ की गोद में बसे उन घाटियों और नदियों को देखना और अच्छा लगता है उसे उन नदियों में बह रहे जल स्रोतों की मधुर ध्वनि को सुनना।

उसे अच्छा लगता है समुद्र के पानी के साथ अठखेलियां करना। समुद्री सीपों को इकट्ठा करना और फिर से उसे उसी समुद्र की अनंत गहराइयों में समा जाने के लिए छोड़ देना। उसे अच्छा लगता है समुद्र के किनारे घंटों बैठकर रेत को जमा करना और फिर इंतजार करना कि कोई लहर आए और उसे बहा ले जाए। उसे अच्छा लगता है दूर दूर तक फैले रेगिस्तान में बालू के टीलों पर दौड़ना, चलना और लुढ़कना।

उसे अच्छा लगता है शहर की गलियों में भटकना और उसकी चाहत होती है जब शहरवासी रात को सो चुके हों तो वह अकेला ही सड़कों और गलियों की खाक छानता रहे जहां उसे कोई रोकने-टोकने वाला न हो। वह चाहता है कि किसी सुनहरी शाम से लेकर घनी-अंधेरी काली रात तक किसी सूने खंडहरों में कुछ भटकाव महसूस करे और कुछ अपरिचित आवाजों को सुने जिसकी गूंज उसके दिलो-दिमाग में बरसों बरसों तक बरकरकार रहे।

उसे अच्छा लगता है चांदनी रात में किसी छत पर बैठकर तारों को देखना, गिनना और उससे बातें करना। अच्छा लगता है उसे किसी जंगल में चलते रहना और उससे भी ज्यादा अच्छा लगता है उसे किसी जंगली रास्तों पर चलते हुए भटक जाना। अच्छा लगता है उसे सुनसान और वीरान रास्तों पर चलते रहना और दुख पहुंचाता है उसे मंजिल पर पहुंच जाना।

वह चाहता है उसके जीवन में एक ऐसा दिन आए जिस दिन वो अपने जिंदगी के एक खूबसूरत सफर पर निकले जिसमें सफर शुरुआत करने का दिन तो तय हो लेकिन वापसी की कोई तिथि न हो। वह बस चलता रहे, चलता और चलता ही रहे, एक अंतहीन सफर पर। एक घुमक्कड़ के इस हरकत पर जमाना उसे पागल भी कह देता है पर उसे फर्क नहीं पड़ता कि उसे लोग क्या कह रहे हैं।

फोटो : खडारा चट्टी के आस-पास (रांसी से मध्यमहेश्वर के बीच), सितम्बर 2018

3 comments:

  1. 🙏नमस्कार श्रीमान जी🙏।
    इस पोस्ट का ऐसा शीर्षक चुनाव किया है आपने, जिसमें आपने अपने विचारों को नहीं अपितु विश्व के समस्त राहियों (ट्रेवलर) के विचारों और उनके ह्दय के एहसासों और अनुभूतियों को आपने अपनी पोस्ट समाहित कर दिया है ।
    आपने सही कहा हर राही की चाहत होती है कि वह कभी अपनी मंजिल तक ना पहुंचे वह तो बस प्रकृति द्वारा रचित चारों ओर बसी उसकी रचना को निहारता रहें बस....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद अर्जुन जी। वो कहते हैं कि सबको तलाश मंजिल की तो हमारी तलाश रासते की। मंजिल तो बस एक पड़ाव है और असली खूबसूरती तो रास्ते में बिखरी मिलती है जिनमें से कुछ को आंखों में कुछ को कैमरे में समेटते हुए आगे चलते चले जाना होता है चले जाना होता है और चले जाना होता है एक अंतहीन सफर पर।

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