रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya)
बिछड़े हुए दो प्रेमी : रेगिस्तान और हिमालय (Registan aur Himalaya): कितनी अजीब बात है न, हम दोनों ने एक ही जगह से अलग-अलग दिशाओं में सफर करना आरंभ किया था और सोचे थे कि चलते चलते एक न एक दिन कहीं मिल जाएंगे। मिलने की उम्मीद में बस चले ही जा रहे थे कि सहसा ही हमारे कदम रुक गए थे। हमने पीछे मुड़कर देखा था कि जरूर तुम भी मुझे पीछे मुड़कर देख रहे होगे और बहुत खुशी हुई थी कि ये देखकर कि तुम भी मुझे ठीक वैसे ही देख रहे हो जैसे हम तुमको देख रहे हैं। हम सोच रहे थे कि तुम वापस आओगे और तुम सोच रहे थे हम वापस आएंगे और इसी सोच में न जाने कब हम दोनों ही अपने स्थान पर जड़बद्ध हो गए पता ही नहीं चला।
जिधर को तुम चले थे उधर फूल और बहारें थीं और जिधर हम चले थे उधर कांटे और फिजाएं थीं। तुम्हें खुशियां और हंसी मिली, मुझे गम और आंसू मिले, तुम हंसते रहे और हम रोते रहे। मेरे आंसुओं से तुम्हारा अस्तित्व हर दिन गीला होता रहा और तुम मुस्कुराते हुए ऊंचे और ऊंचे होते गए और उन आंसूओं से सिंचित होकर तुम्हारे आस-पास, चारों तरफ फूल और पौधों की जमात खड़ी हो गई और तुम उनमें ही मग्न हो खो गए और इधर हम सोचते रहे कि तुम्हारी आंखों से भी कुछ पानी निकलेगा जो मेरी धरा को गीला करेगा और उस पर भी कुछ बहारें आएंगी। पर ऐसा हो नहीं सका, तुम मुझे भूल चुके थे और अपनी दुनिया में सिमट चुके थे और ईधर मैं हर दिन वीरान होता गया, सूखता चला गया।
जो कुछ भी बहारें मेरे पास थी वो उन आंसूओं के साथ बहती चली गई और मेरे पास बचा तो बस वीराना ही वीराना, जो कभी आबाद नहीं होगा, जहां कभी कोई गुल नहीं खिलेगा। तुमसे मिलने भी जो भी लोग जाते हैं और तुम्हें आबाद देखकर लोग दिन, सप्ताह, महीने यहां तक कि सालों तुम्हारी पनाह में गुजार देते हैं। ऐसा नहीं कि हमारे पास लोग नहीं आते हैं, हमारे पास भी लोग आते हैं पर मेरा वीराना देखकर साल, महीने, सप्ताह नहीं गुजार पाते हैं। बस आते हैं और हाल-समाचार पूछ कर चले जाते हैं। हम दोनों भले ही एक दूसरे से दूर हैं, पर हम दोनों का स्वभाव अभी भी बिल्कुल एक जैसा ही है।
यदि तुमसे मिलने के लिए जाने वाला मुसाफिर अगर एक बार भटक जाए तो तुम उसे अपनी पनाहों में समेट लेते हो तो मैं भी तुम्हारी उस आदत को अभी तक बकररार रखते हुए हूं, मेरी भी पनाहों में आने वाला मुसाफिर अगर भटक जाए तो मैं भी उसे सदा के लिए अपनी पनाहों में समेट लेता हूं। न जाने कितनी सदियों से, युगों से मैं इस इंतजार में बैठा हूं कि मेरे दिल के वीराने को आबाद करने के लिए तुम अपने प्यार की बरसात करोगे और यहां कुछ गुल खिलेंगे, पर हरजाई न तो तुझे आना है और न तू आएगा और मुझे ऐसे ही तड़पता रहना होगा युगों युगों तक तेरे इंतजार में।
फोटो : सम सैंड दून, जैसलमेर, राजस्थान (15 दिसम्बर 2018)
सर्वप्रथम आपको मेरा नमस्कार सर जी। सर्वश्रेष्ठ से भी ऊपर कुछ होता है तो मेरी ओर से वह प्रतिक्रिया इस पोस्ट को और आपको देना चाहूंगा। सच में सर जी आपने तो कमाल कर दिया, आखिर ऐसा शीर्षक आपके अलावा कौन सोच सकता है, और वो रेगिस्तान के ह्दय के भाव और एहसास.....
ReplyDeleteआज मेरे पास इस पोस्ट के ऊपर बोलने के लिए शब्द नहीं मिल रहे हैं आज में पूरी तरह से निःशब्द हूँ ।
आपको भी नमस्कार अर्जुन जी साथ ही बहुत सारा धन्यवाद आपको। अब तक हिमालय को देखता आ रहा था और इस बार पहली बार रेगिस्तान को देखने का अनुभव हुआ। उसे देखकर मन में यही भाव आए कि हिमालय के हिस्से में सभी सुख सुविधाएं आ गई और रेगिस्तान के हिस्से कुछ नहीं आया। और अगर कुछ आया भी तो एक प्यास, एक तड़प, एक इंतजार औेर इसके सिवा कुछ नहीं।
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