Friday, December 13, 2019

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)

घोड़ा कटोरा ताल-2: गिरियक से घोड़ा कटोरा ताल (Ghoda Katora Taal-2: Giriyak to Ghoda Katora Taal)




घोड़ा कटोरा ताल (राजगृह या राजगीर, नालंदा, बिहार) : हम अपने गांव से चलकर गिरियक पहुंचे और वहां एक दुकान वाले से घोड़ा कटोरा तक जाने का रास्ता पूछा तो उन्होंने दो रास्ते बताए, एक तो सीधा नदी पार करके और दूसरा अगर नदी पार करना नहीं चाहते हैं तो 3 किलोमीटर घूम कर जाने वाला रास्ता जहां नदी पर पुल बना है, पर पुल वाला रास्ता भी आगे बढ़कर यहीं नदी के रास्ते में ही मिलता है। अब केवल पानी में पार होने से बचने के लिए 3 किलोमीटर का लंबा रास्ता कौन तय करे और वैसे भी नदी के पानी में पार हुए बहुत दिन हो गए हैं क्योंकि अब अधिकतर जगहों पर पुलों का निर्माण हो गया है तो नदी से गुजरने का मौका भी नहीं मिलता है और आज ये मौका मिल रहा था तो हम इस मौके को गंवाना नहीं चाहते थे और चल पड़े थे पानी वाले नदी को नदी पार करने। उन्होंने हमें जो रास्ता बताया था हम उसी ओर आहिस्ता आहिस्ता बढ़ने लगे। गली से चलते हुए नदी तक पहुंचने में हमें करीब 20 मिनट का समय लगा। वहां देखा तो कुछ लोग नदी पार कर रहे हैं तो हम भी उनके पीछे हो लिए। नदी पार करते ही एक सज्जन ने बताया कि आगे अभी और एक जगह पार करना पड़ेगा और सवाल भी शुरू किया कि 

— अेधिर कहां जा रहला हा?
— घोड़ा कटोरा।
— नपाई वला हकहो की?
— नै।
— त ई कैमरवा काहे लगी ले जा रहला हा?
— ऐसहीं घूमे अैलिये हा, पर ई कउची के नपाई दिया पूछ रहलो हा?
— नीतिश बाबू अेधिर के 784 बीघा जमीन ले लेलखिन हां सबके, और सुनैये कि ईहे नदिया में यहां से जरि सा आगे एगो डैम बनतै?
— त तो तोरो जमीनिया चल गेलो होत?
— नै, हम तो वहां काम करे जा रहलियो हो, पर तो कहां के हकहो?
— हमर घर परोहा हको।
— त अेधिर कहां घूमे आ गेलहो, यहां कउची मिलतो घोड़ा कटोरा में तोरा?
— हमरा घोड़ा कटोरा गांव से आगे झील तक जायके है।
— त अेधिर से काहे आ गेला, रजगीरवा दिया काहे नै गेलहो?
— ओधिर से तो सब जैवे करहैं और ईहे से हम कोई नाया रास्ता से वहां पहुंचे लगी अेधिर दिया अैलियै हा।
— ठीक हको, थोड़े सा आगे जैवहो ने, त दू रस्ता हो जैतो, त तो दहिना दने चल जैहा हल और गांवां से आगे बढ़ल चल जैहा, और कोई भी मिलतो त पूछ भी लिहा हल, काहे कि ओधिर कोई नै जाको।
— ठीक हको, जैसन तो कहला हा हम औसहीं करवो हल।

ये संवाद तो हमारे स्थानीय मगही भाषा में हुआ था जो कुछ लोगों को समझ में आएगा और कुछ लोगों को समझ में नहीं आएगा, इसलिए उपरोक्त संवादा का हिंदी रूपांतरण नीचे लिख रहे हैं :

— ईधर कहां जा रहे हैं?
— घोड़ा कटोरा।
— नपाई वाले हैं क्या?
— नहीं।
— तो ये कैमरा किसलिए?
— बस घूमने आए हैं, पर ये किस चीज की नपाई के बारे में आप पूछ रहे हैं?
— नीतिश बाबू ने जो ईधर के 784 बीघा जमीन है, सब ले लिया है, सुनने में आ रहा है कि इसी नदी पर थोड़ा ऊपर एक डैम बनेगा।
— आपकी भी जमीन गई होगी?
— नहीं, हम तो वहीं काम करने जा रहे हैं, पर आप कहां से हैं?
— परोहा गांव का निवासी हूं।
— पर ईधर कहां आ गए घूमने, क्या मिलेगा घोड़ा कटोरा में आपको?
— मुझे घोड़ा कटोरा गांव से आगे झील तक जाना है।
— तो ईधर से काहे आ गए आप, राजगीर से क्यों नहीं गए?
— उधर से तो सब जाते ही हैं इसलिए हम कोई नया रास्ता खोजते हुए पहुंचेंगे।
— ठीक है, फिर आगे जाकर दो रास्ता हो जाएगा, आप दाएं मुड़ जाइएगा और गांव से आगे बढ़ते चले जाइएगा, और कोई भी मिल जाए तो पूछ भी लिया कीजिएगा, क्योंकि उधर कोई जाता नहीं है।
— ठीक है, आपने जैसा कहा हम वैसा ही करेंगे।

उसके बाद नदी पार होने के बाद वो दूसरे तरफ चले गए और मैं घोड़ा कटोरा की तरफ अपना कटोरा मतलब कैमरा लेकर कच्ची सड़क पर आगे बढ़ने लगा। बाएं तरफ पंचाने नदी (सप्पिनी नदी) की शीतल धारा और दाएं तरफ मध्यम-ऊंचे पहाड़ के साथ साथ हमारा कच्चा रास्ता भी चलता चला जा रहा था। बीच बीच में कोई ट्रैक्टर हड़हड़ाता-खड़खड़ाता हुआ गुजर जाता और हम भी अपने सुस्त कदम से गुजरते चलते चले जा रहे थे क्योंकि तबियत खराब होने के कारण तेज चला ही नहीं जा रहा था। कुछ दूर आगे बढ़ा तो जैसा उन लोगों ने बताया था, यहां से दो रास्ते हो गए और हम दाएं रास्ते पर आगे बढ़ चले और घोड़ा कटोरा गांव को पार करके आगे बढ़ते गए। जो भी कोई मिलता उससे पूछ लेता तो लोग यही बताते कि आगे इसी रास्ते पर चलते चले जाइए। वैसे ही चलते हुए जब हमने एक लड़के से पूछा तो उसने बताया कि आगे जाकर एक बूढ़वा बाबा का मंदिर आएगा, पर वो मंदिर जैसा नहीं है, वहां से पश्चिम की ओेर देखिएगा तो पहाड़ कटा हुआ है उसी पहाड़ को पार कर लीजिएगा तो आप झील तक पहुंच जाएंगे।

हम धीरे धीरे उस कच्ची सड़क पर धूल उड़ाते हुए आगे बढ़ते चले जा रहे थे, चले जा रहे थे और चले ही जा रहे थे लेकिन कोई मंदिर हमें नहीं दिखा तो मन में घबराहट होने लगी कि कहीं हम आगे तो बढ़ नहीं गए या फिर कहीं दूसरे रास्ते पर तो नहीं जा रहे। एक संभावना तो थी कि हम मंदिर को देख नहीं पाए और आगे बढ़ गए हों पर दूसरे रास्ते पर चले आने की कोई संभावना ही नहीं थी क्योंकि और कोई रास्ता था ही नहीं जिससे हम उस रास्ते से इस रास्ते पर आ गए। मन में इन्हीं विचारों के घोड़े दौड़ाते हुए कभी पहाड़ को तो कभी दूसरी तरफ खेतों लगे धान के पौधों को देखते और आगे बढ़ते जाते। 

कुछ दूर चलने के बाद दूर से से ही आगे एक महिला पर नजर पड़ी जो अपने जानवरों के लिए चारा इकट्ठा कर रही थी। इंसान का अहसास होते ही हमने अपने सुस्त सुस्त चलते कदमों को तेज तेज दौड़ाना शुरू कर दिया कि कहीं ऐसा न हो जाए कि हम उन तक पहुंचे उससे पहले ही वो आगे बढ़ जाएं और हम ठगे के ठगे रह जाएं। कुछ कदम के बाद अहसास हुआ कि एक और महिला है जो सड़क के दूसरी तरफ हैं। हम वहां पहुंचे और उनमें में किसी को बिना संबोधित करते हुए ये सवाल किया कि हमें घोड़ा कटोरा जाना है तो उनमें से एक महिला ने जवाब दिया कि वो तो पीछे ही रह गया। फिर हमने उनको बताया कि मुझे घोड़ा कटोरा गांव नहीं हमें तो वहां जाना है जहां एक झील है, बीच में एक बुद्ध की मूर्ति बनी हुई है तो एक ने जवाब दिया कि इसी कच्ची सड़क पर चलते चले जाइए, कहीं इस सड़क से अलग मत जाइएगा तो आप वहीं पहुंच जाएंगे।

उनके द्वारा रास्ता बताने के बाद हम उसी रास्ते पर पहले की तरह आगे बढ़ने लगे, पर इस समय हमारे मन में दो विचार तैर रहे थे पहला उस लड़के द्वारा बताया गया रास्ता कि आगे एक बुढ़वा बाबा का मंदिर आएगा वहां से सीधे पश्चिम देखिएगा तो पहाड़ कटा हुआ है वहां से पहाड़ को पार करके दूसरी तरफ चले जाइएगा तो झील आ जाएगा और दूसरा इन महिलाओं द्वारा बताया गया कि सड़क सड़क ही धूल उड़ाते हुए चलते चले जाइए। अब कौन सी बात मानूं कौन सी न मानूं ये सवाल खुद से ही कर रहा था कि जवाब मिला कि ओ मुसाफिर अभी तो तुम दोनों विकल्प को साथ लेकर चलो क्योंकि तुमको अभी वो मंदिर भी नहीं मिला है और जब मंदिर मिल जाए तो तो तुम वहां सोचना कि अब क्या करना है और इसके बाद हम आगे चल पड़े।

अभी 100-150 मीटर ही गए होंगे कि एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ के नीचे एक मंदिर दिख गया। वैसे मंदिर दिख तो गया था पर वहां कोई मंदिर नहीं था, केवल पुराने जमाने की एक कोठरी थी जो अभी सही स्थिति में था। इस जगह को देखकर भी मन में दो विचार आ गए कि क्या पता उस लड़के ने इसी के बारे में बताया हो या किसी और जगह के बारे में। उसके बाद हमने वहां चारों तरफ नजर घुमाना शुरू किया तो देखा कि पेड़ के बगल में एक ध्वजा है, एक तुलसीचौरा भी बना हुआ है और इन चीजों को देखकर ये अहसास हो गया यही वो मंदिर है जिसके बारे में उस लड़के ने बताया था।

मंदिर से आगे बढ़ते ही पश्चिम की तरफ कुछ दूर आगे हमें कटा हुआ पहाड़ भी दिख गया जिसे देखते ही बीमार और थके हुए शरीर में खुशियों की एक नई ऊर्जा का संचार हुआ पर दूसरे ही पल उन महिलाओं द्वारा बताए गए रास्ते की याद आते ही वो ऊर्जा छू-मंतर हो गई कि महिलाओं ने सड़क सड़क ही चलते जाने कहा है। हम कुछ कदम कच्ची सड़क पर बढ़ाते फिर वापस आकर उस कटे हुए पहाड़ की तरफ चलते। कभी हम ईधर जाते तो कभी उधर जाते और फिर यही तय किया कि कटे हुए पहाड़ को ही पार करते हैं पर रास्ते में खड़ी घनी झाडि़यां और तेज हवाओं के कारण पता नहीं क्या मन में एक डर बैठ गया कि नहीं ईधर अकेले नहीं जाना और कुछ ही कदम के बाद वापस फिर से उसी कच्ची सड़क पर आ गए और धूल उड़ाते हुए आगे बढ़ने लगे।

आगे बढ़ते हुए मन में एक बहुत बड़ा द्वंद्व चल रहा था कि मैं किधर जाऊं, किधर न जाऊं, क्या करूं, क्या न करूं, आदि आदि और यहां कोई दूर दूर तक इंसान भी नहीं है जिससे कि हम पूछ सकें कि रास्ता किधर से है और मेरी तबियत भी खराब होती जा रही है और दवाई भी हम साथ में रखना भूल गए थे। इन्हीं द्वंद्वों के साथ हमने करीब 500 मीटर का सफर तय कर लिया फिर लगा कि पहले इस लंबे रास्ते पर चलने से अच्छा है कि एक बार उन झाडि़यों को पार करके उस कटे हुए पहाड़ के पार जाकर देख लेना चाहिए था तो हम इस लंबे रास्ते से बच जाते। इन बातों के मन में आते ही हमने आगे बढ़ते हुए कदमों को पीछे लौटने का ईशारा किया और कुछ मिनट के सफर के बाद हम फिर से वहीं पर आ गए जहां से कटे हुए पहाड़ की तरफ रास्ता जाता था।

तो अब हम उस कटे हुए पहाड़ के उस तरफ जाकर देखते हैं कि वहां हमारा घोड़ा कटोरा है या नहीं है और आप लोग तब तक इस बात को मन में सोचिए कि अगर वहां वो ताल है तो कैसा है, कैसी उसकी आकृति है, कैसा उसका पानी है, और क्या क्या उसके पास है, आदि आदि। और जब तक आप ये सोचेंगे हम देखकर आते हैं तो आपको बताएंगे कि वहां हमने क्या देखा और क्या महसूस किया। और तब तक के लिए हमें आज्ञा दीजिए बस कल ही मिलते हैं अगले लेख के साथ, क्योंकि अगला लेख भी तैयार है, बस लेख बहुत बड़ा हो रहा था इसलिए हमने इसे कई भागों में बांट दिया है। तो ठीक है, अभी के लिए आज्ञा दीजिए।


आपका अभ्यानन्द सिन्हा





पंचाने (सप्पिनी) नदी पार करते कुछ लोग

नदी के पार के पहाड़

घोड़ा कटोरा गांव की तरफ जाता रास्ता

दाएं तरफ वाला रास्ता घोड़ा कटोरा गांव होते हुए घोड़ा कटोरा ताल तक जाता है और बाएं तरफ वाला नए बन रहे डैम की तरफ

वो दूर पहाड़ के पीछे ही है घोड़ा कटोरा ताल

पहाड़, हरियाली और रास्ता

मलंग फकीर बनकर चलने वाला रास्ता और आगे दूर दिख रहे पेड़ के पास बुढ़वा बाबा मन्दिर और आगे कटा पहाड़

बुढ़वा बाबा मन्दिर

कटे पहाड़ के पास का एक दृश्य

कटे पहाड़ के दूसरे तरफ का नजारा

इसी पहाड़ के पीछे है घोड़ा कटोरा ताल

इसी रास्ते को पार करना था और हम भटक रहे थे

आखिरकार पहुंच ही गए मंजिल के पास

पहाड़ के कटे हुए कंधे के पास दूर दिखाई देता बुढ़वा बाबा मन्दिर




घोड़ा कटोरा ताल/घोड़ा कटोरा झील [(राजगह, राजगृह, राजगीर), नालंदा, बिहार] Ghoda Katora Taal/Ghoda Katora Lake [(Rajgah, Rajgrih, Rajgir), Nalanda Bihar] :


3 comments:

  1. अभयानंद भैया एकदम जबरदस्त वृतांत लिखते हैं आप।
    पढ़कर मजा आ गया और जानकारी भी मिली।
    वृतांत आजकल के सभी यात्रा ब्लॉगर से हटकर और बेहतरीन लेखनी है आपकी

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    1. ब्लाॅग पर आने के बहुत बहुत धन्यवाद माधव जी और साथ ही अपने सुंदर टिप्पणी से लेख की शोभा बढ़ाने के लिए बार और धन्यवाद।
      ये आप जैसे लोगों के चंद शब्द ही होते हैं जो आगे लिखने के लिए प्रेरित करते हैं, आपको मेरा लिखा अच्छा लगा उसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपको।

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  2. साहब ब्लॉग को पढ़कर काफी खुशी हो रही है।आप ऐसे ही वृतांत लिखते रहे,और हम आपकी लेखनी से इस दुनिया की सैर करते रहे।

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