Saturday, September 14, 2019

घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं—अभ्यानन्द सिन्हा

घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं—अभ्यानन्द सिन्हा



इस साक्षात्कार को एकऑनलाइन पोर्टल ने छापा था, लेकिन कालांतर में उसने वहां से हटा दिया तो मैं उन शब्दों का यथावत् अपने ब्लाॅग पर प्रकाशित कर दिया।



1. आप अपनी शिक्षा दीक्षा, अपने बचपन का शहर एवं बचपन के जीवन के विषय में पाठकों को बताएं कि वह समय कैसा था?

उत्तर : बिहार के नालंदा जिले में एक छोटा सा गांव है परोहा, वही मेरी जन्मभूमि है और वहीं के एक मध्यवर्गीय परिवार से आता हूं। उस समय गांव में स्कूल नहीं था इसीलिए मैट्रिक तक की पढ़ाई अपने बुआ के यहां रहकर की। उसके बाद नवादा आ गया जहां से इंटरमीडियट किया और इसके आगे की पढ़ाई गया काॅलेज (गया) में पूरी की। इसके आगे भी पढ़ना चाहता था और बहुत कुछ करना भी चाहता था पर कुछ हालातों ने कदमों को रोक दिया, फिर रोजगार की तलाश में दिल्ली आ गया। बचपन में सीखने और ऐतिहासिक धरोहर को जानने की ललक आज भी है, उसी को अपनी घुमक्कड़ी से पूरा कर रहा हूं। 

2. वर्तमान में आप क्या करते हैं एवं परिवार में कौन-कौन हैं ?
उत्तर : करीब दो दशक से दिल्ली में ही हूं, मेरी जीवन साथी कंचन और बेटा आदित्या, बस छोटा सा परिवार है। एक पब्लिकेशन हाउस में वरिष्ठ डिजायनर के पद पर कार्यरत हूं। बेटा अभी नौवीं कक्षा में पढ़ता है लेकिन वो मुझे हमेशा ही ब्लाॅग में नई नई चीजें डालने के लिए प्रेरित करता रहता है। हमारे माता-पिता जी गांव में ही रहते हैं, उनके साथ हमारे दो छोटे भाई भी रहते हैं जिनकी शादी हो चुकी हैं। 

3. घूमने की रुचि आपके भीतर कहां से जागृत हुई?
उत्तर : घूमने का शौक तो बचपन से ही था लेकिन पहले पढ़ाई में उलझा रहा और फिर परिवार की जिम्मेदारियों ने मेरे कदमों को रोके रखा। एक बार बचपन में इसी घूमने के चक्कर में एक दिन अपने घर से निकल लिया। करीब दो सप्ताह तक गया, देवघर, कोलकाता और वाराणसी आदि जगहों पर विचरण करता रहा। शायद उस समय ये हमारी घुम्मकड़ी की बानगी भर थी। अब ये मत पूछ दीजियेगा कि इतने दिन घूमने के लिए पैसे कहां से आये। भाई पैसे की जरूरत केवल खाने के लिए थी पर भूख सहने की क्षमता मुझमें बचपन से रही है, तीन-चार दिन तक तो भूखे रह ही सकता हूं। रह गई बात आने जाने की, तो बिना पैसे के यात्राा करने के लिए अपना भारतीय रेल तो था ही। इधर मैं घूमने में मस्त था उधर घर वाले मुझे खोजने में पस्त थे। जब जेब खर्च के पैसे खत्म हो गए तो सीधा ताऊ (बड़े पापा) जी के पास पटना पहुंच गया, पता चला कि घर में सब बहुत परेशान हैं, मेरी मां का रो-रो कर बुरा हाल हो गया था। ताऊ जी ने तुरंत घर फोन करके मेरी सलामती की खबर दी। लेकिन मुझे घूमने का नशा तो लग ही चुका था। अब जब कुछ जिम्मेदारियों से राहत मिली है तो फिर शुरू कर दी है घुमक्कड़ी। अपने ब्लाॅग राही चलता जा के माध्यम से हजारों लोगों से जुड़ रहा हूं। आज अगर कुछ है तो बस खुला आसमान, बस पंछी बनकर हम निकल पड़ते हैं। 

4. किस तरह की घुमक्कड़ी आप पसंद करते हैं, ट्रेकिंग एवं रोमांचक खेलों भी क्या सम्मिलित हैं, कठिनाइयां भी बताएं ?
उत्तर : वैसे तो मुझे धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थानों को देखना पसंद है, और इनमें भी उन जगहों पर जाना ज्यादा पसंद करता हूँ जहां के बारे में बहुत कम लोग जानते हों। ट्रेकिंग का शौक तो बहुत है लेकिन ट्रेकिंग के ज्यादा मौके नहीं मिले।  मेरी सबसे पहले ट्रेकिंग गौरीकुंड से केदारनाथ (2016) और दूसरा ट्रेकिंग चोपता-तुंगनाथ-चंद्रशिला (2017) है। अब अगर खेलों की बात किया जाये तो किसी भी खेल में हमारी कभी कोई रूचि नहीं रही, पर साइकिलिंग थोड़ा बहुत किया है। 

5. उस यात्राा के बारे में बताएं जहां आप पहली बार घूमने गए और क्या अनुभव रहा?
उत्तर : वैसे पहली बार की घुमक्क्ड़ी का जवाब देना तो कठिन है। फिर भी वैष्णो देवी के दर्शन को ही मैं अपनी पहली घुमक्क्ड़ी मानता हूं, उससे पहले आगरा का भ्रमण किया था पर उसे घुमक्क्ड़ी की श्रेणी में नहीं रखता हूं। वैष्णो देवी का अनुभव बहुत ही शानदार रहा। सच कहें तो वो जगह मेरे मन में ऐसी बस गयी है कि हर साल एक बार वहां की हाजिरी लगा ही देता हूं। 

6. घुमक्कड़ी के दौरान आप परिवार एवं अपने शौक के बीच किस तरह सामंजस्य बिठाते हैं?
उत्तर : घुमक्क्ड़ी के लिए तो मुझे केवल आॅफिस से सामंजस्य बिठाना पड़ता है। पर घर में मेरी धर्मपत्नी का पूरा सहयोग मिलता है। यदि मैं घर में कह दूं कि फलाने तारीख को मैं फलाने जगह जाऊंगा तो उसके पहले दिन ही मेरा बस्ता मतलब कि मेरा सामान तैयार मिलता है और साथ में उसमें दो-चार दिन के खाने का सामान भी भर दिया जाता है। बस उनका एक छोटा सवाल होता है कि आने-जाने के लिए धन की व्यवस्था तो हो गई है ना। इसके अलावा स्कूल की छुट्टियों में मैं परिवार के साथ ही घुम्मकड़ी करता हूं। अब तो आॅफिस में भी लोग कहने लगे हैं कि अभय जी आपको घूमने की लत लग गई। हां मैं स्वीकार करता हूं यदि घूमना नशा है तो मैं नशा करता हूं, यदि घूमना पागलपन है तो मैं पागल हूं।

7. आपकी अन्य रुचियों के साथ बताइए कि आपने ट्रेवल ब्लाॅग लेखन कब और क्यों प्रारंभ किया?
उत्तर : मेरा जुनून मेरी आशिकी तो बस अब देश-दुनिया घुमक्कड़ी ही है। मुझे पढ़ने और अपने कैमरे से तस्वीरें उतारने का भी बहुत शौक है। धार्मिक, ऐतिहासिक या पुरातात्विक संबंधी लेखन को ज्यादा पढ़ता हूं। जहां तक मेरे ट्रेवल ब्लाॅग लिखने का सवाल है तो बात इतनी सी थी कि जब मैं केदारनाथ जाने के लिए वहां के बारे में इंटरनेट पर कुछ खोज रहा था जिससे अपनी यात्राा को सुगम बना सकूं, लेकिन अफसोस, निराशा ही ज्यादा हाथ लगी, विशेषकर हिंदीभाषी और क्षेत्राीय भाषाओं को जानने वालों को इंटरनेट से जानकारी पाना अभी भी दूर की कौड़ी है। हिंदी में कंटेंट का अभाव है, वहां मुझे कुछ ऐसा विशेष नहीं मिला जिसके आधार पर अपनी योजना को मूर्त रूप दे पाता। बस फिर क्या था, मैने फैसला कर लिया कि कहीं से तो शुरुआत करनी ही पड़ेगी। तय कर लिया कि केदारनाथ बाबा के दर्शन के बाद ब्लाॅग बनाना है और वहां से लौटने के बाद अपने ब्लाॅग राही चलता जा (https://rahichaltaja.blogspot.in) को मूर्त रूप दिया और लिखना शुरू कर दिया। इसमें सबसे पहले मैंने केदारनाथ यात्राा पर ही अपनी पहली पोस्ट डाली, जिसका मुझे बहुत ही अच्छा रिस्पांस भी मिला। ब्लाॅग से जुड़ने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है, उन लोगों के सुझाव हमारे लिए बहुत अनमोल हैं। मैं तो बस उनका सेवक बन अपना ब्लाॅग लिख रहा हूं जिससे अपनी यात्राा पर जाने वाले लोगों को कुछ सहूलियत हो सके। 

8. घुमक्कड़ी (देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन) को जीवन के लिए आवश्यक क्यों माना जाता है? 
उत्तर : तीर्थाटन सदियों से हिन्दू धर्म का अभिन्न हिस्सा रहा है। घुमक्क्ड़ी से इंसान को हर जगह की सभ्यता और संस्कृति को नजदीक से देखने, जानने और समझने का अवसर मिलता है। घुमक्क्ड़ी ही वो चीज थी जिसने नरेंद्र नाथ को विवेकानंद बना दिया। सच कहूं तो "घुमक्कड़ी इंसान को बदल देती है" और यही वो चीज है जो इंसान को कल्पनिक दुनिया से हकीकत के धरातल पर लाती है, मुश्किल से मुश्किल परिस्थितियों में भी लड़ने की शक्ति प्रदान करती है। दिन रात बस काम और काम करने वाले अभय को तो इस घुम्मकड़ी ने इंसानियत के मायने ही सिखा दिये। 

9. आपकी सबसे रोमांचक यात्रा कौन-सी थी, अभी तक कहां कहां की यात्रााएं की और उन यात्राओं से क्या सीखने को मिला?
उत्तर : अगर रोमांचक यात्रा की बात की जाये तो मैंने अब तक दो ट्रेकिंग किया और दोनों ही रोमांचक थे। पहली यात्रा केदारनाथ की थी जो पहली ट्रेकिंग थी  और दूसरी यात्रा चोपता से तुंगनाथ-चंद्रशिला की है और इसकी ट्रेकिंग मैंने भारी बरसात में किया जो शायद नहीं करना था फिर भी किया। इन दोनों ही जगहों पर ऊंचे पहाड़, गहरी घाटियां, बर्फ से ढंका हिमालय, प्राकृतिक मनोरम दृश्य और पल-पल बदलता मौसम एक अलग ही अनछुआ रोमांच पैदा करता है। अगर मैं तुंगनाथ और चंद्रशिला की बात करूँ तो ये मेरी यात्राओं का सबसे खास यात्राओं में हैं, जब  मुझे तुंगनाथ से चंद्रशिला तक जाने में दो बार कोशिश करनी पड़ी। अब प्रश्न के दूसरे हिस्से पर आते हैं। अब तक जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, दिल्ली सहित कई अन्य स्थानों की यात्रााएं की हैं। कुछ अनुभव अच्छे रहे कुछ बहुत अच्छे नहीं रहे। पर घुमक्कड़ी के दौरान एक बात मुझे सबसे ज्यादा अखरती है और दिल से दुखी भी हो जाता हूं कि लोग बड़े जोर शोर से तैयारी करके घर से चलते हैं, बहुत सारा अपने साथ सामान भी ले जाते हैं लेकिन दर्शन करने या यात्रा में मौज मस्ती करने के बाद बहुत सारा कचरा वहीं पर छोड़कर या यहां वहां बिखेर कर चले जाते हैं। ऐसा क्यों करते हैं? जिस श्रद्धा के साथ दर्शन करने जाते हैं उसी श्रृद्धा से अपने कचरे को भी सही स्थान पर ठिकाने लगाना चाहिए। वैसे हमारी प्रकृति हमारी धरा समय समय पर हमसे इसका हिसाब लेती रहती है। मेरी उन लोगों से अपील है कि ऐसा मत करें, ऐसा लंबे समय तक नहीं चल पायेगा। आज स्वच्छता अभियान को अपनी यात्रााओं के दौरान भी अमल में लाने की जरूरत है।

10. नये घुमक्कड़ों के लिए आपका क्या संदेश हैं?
उत्तर : घुमक्क्ड़ी करने में मैं खुद ही नया हूं लेकिन यही कहूंगा "राही चलता जा बस चलता जा"। थोड़ा घर से बाहर निकलो, अपने परिवार के साथ निकलो, बाहर की दुनिया भी देखो। बड़ी न सही पर छोटी यात्रााओं पर तो जाओ, अच्छे इंसानों से मिलो और भारत माता को सुंदर बनाओ, स्वच्छ बनाओ। जय हिन्द, जय भारत। भारत माता की जय। 


6 comments:

  1. यही कहँगे बस #राही चलता जा 👍

    ReplyDelete
    Replies
    1. #राही चलता जा ... मंजिल मिलेगी जरूर

      Delete
  2. अभय सर जी को मेरा सादर नमस्कार 🙏
    वैसे तो मैने आपके बचपन के किस्से आपके ब्लॉग के माध्यम से पढे हैं, लेकिन इस बार ब्लॉग पर आपके साक्षात्कार के माध्यम से आपके मन के भावों को और भी अच्छी तरह से जानने का मौका मिला।
    इस बार भी सदैव की तरह आपके ब्लॉग का शीर्षक अच्छा है जिससे मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ। जिस प्रकार एक मानसिक रूप से विक्षिप्त एक व्यक्ति अपनी ही बनाई गई दुनिया 🌏 और ख्यालों में खोया रहता है उसी प्रकार जब एक व्यक्ति को घूमने की लत लग जाती है तो वह भी हर क्षण हर पल सिर्फ अपनी यात्रा और उसकी रुपरेखा बनाने में खोया रहता है जिसके कारण दुनिया के निर्दयी लोग उसे पागल समझने लगते हैं।
    "घुम्मकडी इंसान को बदल देती हैं। " वास्तव में जब एक व्यक्ति अपने परिवेश और वातावरण से बाहर निकल कर जब भिन्न-भिन्न जगहों तथा भिन्न-भिन्न संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त करता है तो उसके मानसिक विकास के साथ-साथ सोचने समझने की क्षमता विकसित होती हैं।
    अंत में आपके द्वारा दिया गया स्वच्छता अभियान का संदेश विशेष सराहनीय है, जिस प्रकार हम अपने मेहमानों के लिए अपने घरों को स्वच्छ रखते हैं उसी प्रकार हमारा देश भी हमारा घर हैं तथा यहां आने वाले विदेशी पर्यटक हमारे मेहमान। आपके ब्लॉग के माध्यम से आपके साथ साथ मैं भी सभी लोगों से अपने आस पास के परिवेश के साथ पर्यटन स्थलों को भी स्वच्छ रखने की अपील करता हूँ।

    🙏🌷जय माता की 🙏🌷

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सारा धन्यवाद अर्जुन जी।

      Delete
  3. इस साक्षात्कार के माध्यम से आपको बेहतर रूप में समझने का अवसर मिला। पर ये प्रश्न कुछ ऐसे लगे जैसे किसी ने फार्म छपवा रखे हों और भरने के लिए दे देता हो। आप जो उत्तर दे रहे हैं, उनसे उस व्यक्ति को कोई लेना देना नहीं है! उसे तो अपने कुछ निश्चित प्रश्नों के जवाब चाहियें, बस!

    मेरे मन में इस साक्षात्कार को पढ़ते पढ़ते जो प्रश्न आते रहे, उनके जवाब मैं आपसे अवश्य चाहूंगा!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी अवश्य सर जी, आपके सवालों का हमें इंतजार रहेगा और जहां तक हुआ हम उनका जवाब अवश्य देंगे।

      Delete