Thursday, February 20, 2025

यात्रा और यात्री (Travel and Traveller)

यात्रा और यात्री (Travel and Traveller)

—हम मिलेंगे कभी-कहीं!
—आखिर कब-कहां?
—वहीं कहीं दूर जहां मिलते हैं नदिया और आसमान एक दूसरे से और मिलकर एक हो जाते हैं या फिर मिलेंगे वहीं जहां से नदिया निकलती है या फिर वहीं जहां जाकर नदिया जाकर खत्म हो जाती है।

शायद यही पंक्तियां होंगी जिसने लोगों को यहां से वहां, वहां से कहीं और घूमने के लिए विवश किया होगा। फिर यही सोचकर लोगों ने अलग अलग दिशाओं में चलना शुरू किया होगा। कुछ लोग पूरब की ओर निकले होंगे ये देखने के लिए आखिर ये सूरज हर रोज आता कहां से है और बस चलते ही चले गए होंगे फिर कभी न लौटने के लिए। वैसे ही कुछ लोग पश्चिम की ओर चले होंगे ये देखने के लिए आखिर ये सूरज हर शाम को जाता कहां है, कहां जाकर वो रात में रुकता है और फिर पूरब की तरफ जाने वाले लोगों की तरह वो भी पश्चिम की ओर चले हेांगे बस चलते रहने के लिए।

कुछ लोग ये सोचकर चले होंगे कि चलो देखते हैं कि आखिर ये उमड़ती-घुमड़ती नदिया आती कहां से है और कैसी है वो जगह जहां इतना पानी है जहां से ये नदिया इतना सारा पानी लेके लगातार बहती रहती है। फिर कुछ लोग ये सोचकर चले होंगे कि चलो उस जगह को देखते हैं जहां ये नदिया जाती है और अपना सारी पानी कहां जमा करती है और वो नदियों के गंतव्य स्थल की ओर चले होंगे।
 
जहां नदियों के उद्गम की ओर गए लोगों को पहाड़ और जंगल हासिल हुआ तो नदियों के गंतव्य की ओर गए लोगों को पानी का अथाह भंडार हासिल हुआ जहां पहुंचकर नदियों का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है क्योंकि नदियों का आकर्षण ही बस धरा तक सीमित है क्योंकि नदियों के सागर से मिलती है हमारे लिए नदियों के प्रति आकर्षण खत्म होकर सागर के लिए शुरू हो जाता है जिसका कोई अंत ही नहीं।

शायद इन बातों का पता लगाने के लिए ही लोग जंगम से यात्री बने होंगे। वैसे यात्रा को अगर हम अपने शब्दों में कहें जो कष्ट सहने के बादशाही तरीके को ही यात्रा कहेंगे। किसी यात्रा में यात्री जितनी चीजें देखता है उतनी चीजों को वह अपना बना लेता है, उन चीजों के लिए उसके मन में प्यार का सागर भर जाता है। यात्री ज्यों ज्यों यात्रा करता है त्यों त्यों उसका मन विकसित होता जाता है। यात्रा में हम जितना देख लेते हैं उतने के प्रति हमारे मन में लोगों से सुनी-सुनाई बातों हटकर अपनी खुद की एक विशेष धारणा बन जाती है। यात्रा में आए जगहों से, यात्रा में मिले लोगों से हमारा संबंध और अधिक प्रगाढ़ हो जाता है।

कभी कभी अगर कोई मुझसे पूछ लेता है कि आप किस उद्देश्य से यात्रा करते हैं तो मेरा उनको बस कुछ चंद शब्दों में ही जवाब होता है कि उसी उद्देश्य से जिस उद्देश्य से आप खाना-पीना, नहाना-सोना आदि अन्योन्य क्रियाएँ करते हैं उसी उद्देश्य से मैं कभी-कभार कोई यात्रा कर लेता हूं। अतः आपके द्वारा पूछे गए प्रश्न का जवाब स्वयं आपके ही पास हैं....

फोटो: कन्याकुमारी
अभ्यानन्द सिन्हा

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