पागल मन (Pagal Man)
कहीं जाने का विचार आते ही सबसे पहले मन में यही आता है कि कहां जाऊं, किधर जाऊं, किस साधन से जाऊं, किसके साथ जाऊं और भी न जाने क्या क्या संशय मन में उमड़ने लगते हैं।
इन सब संशयों से पार पाकर केवल खुद को साथ लेकर निकल पड़ना ही घुमक्कड़ी, यायावरी या मुसाफिरी है, तो एक बार निकल पडि़ए खुद के साथ, खुद की खोज में खुद से मिलने के लिए इन हसीन और मनभावन वादियों में।
रास्ते में मिलने वाले मोड़ों पर कुछ समय गुजारिए, किसी झरने के पास बैठकर झरने में पैर डालकर बैठे रहिए और बहते हुए पानी को देखते रहिए, हरे-हरे पेड़ों के नीचे बैठकर उससे छनकर आती हुई धूप को निहारा कीजिए और किसी सुनसान वीराने में पक्षियों के चहचहाने की आवाज को महसूस कीजिए।
किसी नदी के किनारे बैठकर उसके बहने के मधुर संगीत को अपने दिल घर बना लेने दीजिए। चलते रहिए उन उबड़-खाबड़ पर रास्तों पर कदम धीरे धीरे रखते हुए और आनंदित होते रहिए अपनी घुमक्कड़ी के उस पल को याद करके।
फोटो : मध्यमहेश्वर जाते हुए, बनटोली और खडारा चट्टी के बीच कहीं एक जगह से दिखाई देता हिमालय का ये मनोहारी नजारा
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