Wednesday, February 12, 2025

तीर्थ स्थान और तीर्थ यात्रा (Pilgrimage places and pilgrimages tour)

तीर्थ स्थान और तीर्थ यात्रा (Pilgrimage places and pilgrimages tour)


भारत भूमि तीर्थों से भरी पड़ी है। ये तीर्थ स्थान हमारे देश के हृदय स्थल कहे जा सकते हैं, जहां चहुं ओर से लोग आते हैं और फिर लौट जाते हैं। हमारे समाज में तीर्थों का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। हर व्यक्ति के मन में एक महत्वाकांक्षा और लालसा सदैव बनी रहती है कि अपने जीवन-काल में वह किसी-न-किसी पवित्र देव-स्थल यानी तीर्थ स्थान के दर्शन अवश्य कर ले। कोई भी तीर्थ स्थान एक परम पवित्र स्थान होता है।

तीर्थ यात्रा से मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति आस्था और भक्ति-भावना जाग्रत होती है और साथ उसके चरित्र का भी विकास होता है साथ ही हमारे ये तीर्थ स्थान संस्कृति को एक सूत्र में बांधे रखने लिए तथा मनुष्य में सदाचार, दयालुता, स्वच्छता, परोपकार की भावना को जाग्रत करने के श्रेष्ठ साधन का कार्य करते हैं।

कहा जाता है कि तीर्थ-स्थानों में कुछ तीर्थ ऐसे हैं, जिन्हें स्वयं देवी-देवताओं ने स्थापित किया है। कुछ स्थानों पर भगवान ने अपने भक्तों को दर्शन दिए और वे परम तीर्थों में परिणत हो गए। कुछ स्थानों पर ईश्वर के परम भक्तों का निर्वाण हुआ और वे स्थान पुण्य तीर्थ कहलाए।

कुछ नदियों और पर्वतों की गणना भी तीर्थों में की जाती है, जिन्हें ईश्वर से संबंधित माना गया है और कुछ स्थानों को ईश्वर का आवास ही माना गया है। इस प्रकार हमारे तीर्थों का आविर्भाव किसी न किसी देव-कारणवश ही हुआ है। इन तीर्थों के दर्शन हर वर्ष लाखों श्रद्धालु करते हैं और अपने आप को धन्य समझते हैं।

पहले अधिकांश लोग अपने वृद्धावस्था में तीर्थ-स्थानों की यात्रा किया करते थे पर आजकल जिसे जब अवसर मिलता है लोग तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ते हैं। तीर्थ यात्रा का अपना आनन्द और अपना लाभ होता है। यही कारण है कि देश के कोने-कोने से हजारों लोग दूर-पास के तीर्थों की यात्रा करने जाते हैं।

तीर्थ यात्रा करने से हमें एक और भी फायदा होता है कि हमें देश और देशवासियों का देखने और जानने का अवसर मिलता है। हमारा देश बहुत बड़ा है और इसमें कितने ही स्थान इतने सुन्दर हैं कि हम उसे देखकर बहुत खुश और आश्चर्यचकित होते हैं। कहीं बर्फ से ढंके ऊंचे-ऊंचे पहाड़ हैं, तो कहीं कल-कल कर बहते झरने हैं, कहीं लहलहाते खेत हैं तो कहीं हरे-भरे मैदान हैं, कहीं घने जंगल हैं तो कहीं समुद्र और उसकी लहरें हैं।

तब भी जब तीर्थों तक जाने या पहुंचने के लिए कोई सुविधा प्राप्त नहीं थी तब भी लोग तीर्थ यात्रा पर जाया करते थे। लोग पैदल ही बिना किसी सुविधा के अपने गांव-शहर से तीर्थों तक पहुंचते थे और यही कारण है कि सदियों से चली आ रही तीर्थों पर लोगों के अनवरत जाने का सिलसिला कभी नहीं टूटा।

फोटो: मध्यमहेश्वर मंदिर (द्वितीय केदार)
✍️ अभ्यानन्द सिन्हा

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